Romance शादी का मन्त्र – Buwa ki beti

भाग 12

तेरे बिना चांद का सोना खोटा रे
पीली पीली धूल उड़ावे रे
तेरे संग सोना पीतल
तेरे संग कीकर पीपल
आजा कटे ना रतिया
ओ हम दम बिन तेरे क्या जीना
तेरे बिना बेस्वादी बेस्वादी रतिया ओ सजना .

” लगे रहो बेटा . सही जा रहे हो,,एक एक लक्षण प्रेम मे पागल प्रेमी का दिख रहा तुममे।”

” क्या यार बन्टी,,अब ऐसा क्या देख लिये तुम?”

” जैसे गाने सुन रहे हो ना आजकल बेटा मैं ही क्या कोई अन्धा भी तुम्हारी आंखों में देख पढ लेगा कि बच्चा प्यार में है,,,मैं तो फिर भी पढा लिखा हूँ,और वो भी अच्छी खासी दिल्ली युनिवर्सिटी से . तुमने ये तो ना सोच लिया कि झुमरितलैया से पढ कर भाई इतना ज्ञान बघार रहा है . ” अपनी ही बात पे बन्टी ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा

” पता है एक बार हमारा बॉस अड़ गया कहता है __ लड़कों कुछ अच्छा करना है मुझे,जिससे मेरे बाद मेरा नाम हो,मैनें धीरे से कहा _ ट्रेन के टॉयलेट में अपना नाम नम्बर लिख आईये,,सदियों तक लोग गंदे टॉयलेट की फ्रस्ट्रेशन में गालियाँ आपके नाम की निकालेंगे।।”

” तुमने ऐसा कह दिया बॉस से।”

” अबे नही यार!! ऐसी पते की बातें तो मेरे मन में ही दफन रह जाती हैं,ऊपर से मैनें कहा __ क्या सोच रहे हैं आप बताइये सर जिससे आपकी कुछ मदद की जा सके,,कम्बख्त कहता है बाइजूज़ जैसा कोई काम का एप बनाना चाहता हूँ कि लोग उसमें बच्चों को पढ़ा कर मेरा नाम लें लाइक ‘ साहूज़’ ।।
मैनें कहा सर एप सही नही है, मैनें एक बार बाईजूज में इतिहास पढ़ना चाहा,कम्बख्त इतना अनाप शनाप हड़प्पा की खुदाई में निकलवा दिया इन लोगों ने कि ‘साहनी साहब’ की आत्मा भी कलप गयी कि यार ये सब इन लोग कहाँ से निकाल निकाल ला रहे मुझे तो ना मिला आज तक .

” फिर मान गया बॉस??”

” जो अपने मातहत की बात मान जाये वो बॉस ही कैसा?? उसके बाद एप का भूत उतरा तो अब अपने क्लाइंट और खुद की प्रोजेक्ट डिस्कशन की विडियो यू ट्यूब पे लॉन्च करने की प्लान कर रहा है कमीना।।कुल मिला के ना खुद चैन से
जियेगा,ना हमे जीने देगा . खैर मेरी बातें छोड़ और जल्दी से तैयार हो जा फिर मौसी को लेकर मन्दिर भी तो जाना है।”

दोनों भाई बातों में लगे थे कि सुशीला एक बड़ी सी ट्रे में दो प्लेट में नाश्ता और चाय लिये ऊपर चली आयी।।

” अरे मौसी जी हम नीचे ही आ रहे थे,आप यहाँ नाश्ता क्यों ले आईं ।”

” 9 बज गया अभी तक तुम लोग नीचे आये नही तो हम यहीं ले आये,चलो जल्दी से नाश्ता कर लो,तुम्हारी पसंद का आलू का पराठा और मूँग की दाल का हलुआ बनाये हैं बन्टी।।”

” अरे वाह!! मौसी जी इसी बात पे चलिये मन्दिर घूम आते हैं ।”

” मन्दिर?? अभी !! मतलब सुबह सुबह।।”

” मन्दिर तो सुबह सुबह ही जाया जाता है ना मौसी।”

इतनी देर से चुप बैठे राज ने अपनी माँ का हाथ पकड़ कर उन्हें कुर्सी पर बैठाया और माँ की आंखों में देखते हुए अपनी बात उनके सामने रख दी__

” माँ आज प्रिया और उसकी माँ तुमसे मिलने आने वाली हैं शिव मन्दिर मे!! एक बार मिल लो उन लोगों से।”

सुशीला कभी राज कभी बन्टी को भौचक नजरों से देखने लगी

” कर ली आखिर अपने मन की,जब हमसे पूछे बिना ही मिलनी तय कर आये तो टीका बरिक्षा भी तय कर आओ।।”

” अम्मा नाराज काहे हो जाती हो . बिना तुम्हरी मर्ज़ी कुछ नही करेंगे भई ,,कम से कम एक बार मिल तो लो,।।”

” का फायदा मिलने जुलने का ,जब हमरी राय कोनो मायने ही नही रखती तो का फायदा बोलो।”

” कैसी बात कर रही हो मौसी,राज को बचपन से देखे हैं,आज तक आपसे पूछे बिना तो पानी भी नही पीता लड़का,शादी तो बहुत दूर की बात है।”

” पानिये भर नही पीता है,बाकी सलगे काम अपन मर्ज़ी का ही कर रहा आजकल।”

” एक बार मिलने में कोई बुराई नही मौसी,मिल तो लो पहले,बाद की बाद में देखी जायेगी।”

आखिर दोनो लड़कों की बहुतेरी जद्दोजहद ने सुशीला को मिलने जाने की हामी भरने मजबूर कर ही दिया .
सभी समय से तैयार हो कर मन्दिर पहुंच गये।।

” कहाँ हैं भई तुम्हरे मेहमान ?? अभी तक मन्दिरे नई पहुँचे,

बड़ा लड़की ब्याहने चले हैं ।।”
सुशीला की बड़बड़ जारी थी कि बुआ जी मन्दिर के अन्दर से निकल वहाँ उन लोगों के बीच धम्म से कूद पडीं .

” कैसन हो सुसीला, पहले पहल तो मोहल्ले के सब कार्यक्रम में दिख भी जाती थी,आजकल तो दरसनों दुर्लभ है,अब तो बहु वाली हो फिर भी बाहर फिरे को टैम नही निकाल पाती ।”

” अरे हम बाहर घूमै फिरै लागें तो हुई जाये सब काम धाम।।बहु तो आन गयी पर आजकल की छोरियां ना काम की ना काज की . अपने मरे बिना सरग कहाँ दिखता है जिज्जी,लगे रहत हैं दिन भर काम मा, हम ना सकेलें तो पूरा घर पड़ा रहे,बचपना से एही करते आ रहे बस,अपनी मर्ज़ी से तो आज तक एक साड़ी भी नही ली,अब आजकल के बच्चे हैं सादी ब्याह भी अपनी मर्ज़ी से करना चाहतें हैं ।”

” का कहें सुसीला,आज कल के बच्चो में लाज शरम तो रह नही गया,एक हमारा जमाना था,हम सास के भी सामने अपने इनसे बात नही कर पाते थे,और आजकल के लड़िका लोग पहले ही कहे देते हैं ए अम्मा इन संग हमर फेरे फिरा,लुगाई बना दो।”

” खाली लड़कों को काहे दोस दे रहीं,लड़कियाँ कम है का आजकल की,ऐसा तो चटक मटक बनी घूमेन्गी ,और फिर कहीं कोनो लड़का कुछ बोल भर दे तो उसके सर जूतियाँ बरसायेंगी . आजकल की लड़कियाँ बड़ी जब्बर हैं,इनसे पार
पाना मुस्किल है बल्कि लड़के सीधे हो गये है इनके सामने।”

प्रिया ने राज को देखा,वो सर नीचे किये जमीन पर पड़े छोटे से पत्थर के टुकड़े को अपने पैरों से इधर उधर करता बैठा था,बन्टी ने प्रिया को देखा फिर उसकी माँ को और आखिर बीच बचाव करने कूद पड़ा .

” इस चर्चा का तो कोई उपाय और कोई फल नही मौसी जी,,आप दोनो विदुषीयां जब बात कर रहीं तो मुझे बीच मे बोलना तो नही चाहिये,पर मैं कहना चाह रहा था कि राज और प्रिया के बारे में अगर बात कर लेते तो . “

” तो और किसके बारे में बात कर रहे।” मौसी के कठोर जवाब पे बन्टी एक बार फिर मुखर हो उठा

” नहीं मेरा मतलब कि,इनकी शादी के बारे में बात कर लेते तो . “

” अब यही तो तुम बच्चों के दिमाग मे नही आता, कैसे ये ब्याह सम्भव है?? कोई मेल मिलाप ही नही है दोनों घरों का,, आप ही बताइये जिज्जी!! आप बड़ी हैं घर की,,आप ठहरे सरजूपारी हम के के,,कैसे हो पायेगा,नही नही राज के बाबूजी बिल्कुल नही मानेंगे।”

” देखो दुल्हीन हम का कह रहे कि एक बार दुनो के बाबूजी लोगो को बात करने देते हैं,हम भी जानते हैं, की रीत रीवाज, दान दहेज,मिलनी पूछनी सब अलग है ,पर हैं तो दुनो परिवार

ब्राम्हण ।।तो एक बार बात बढाने मे हर्ज का है।”

” बुज़ुर्गवार हो कर कैसी बात कर रही जिज्जी,,पूरा समाज थू थू करेगा,कहेगा हमारे पास नही रही का लड़की जो बाहर से धरे लायी,और सही बोले अब कोई दुराव छिपाव भी नही रह गया,हमारे राज के लिये 50-50 लाख का भी रिस्ता आ रहा है।।”

बहुत देर से चुप बैठी शर्मिला ने अपनी बात रखी__

” मैं कह रही थी,हमाई भी तो अकेली ही लड़की है अब शादी के लिये,इसके पापा ने जो जोड़ जाड़ के रखा है,सब इसी का तो है,हमलोग भी अपनी तरफ से बहुत अच्छी शादी ही करेंगे दीदी।”

” देखो मैं किसी को कम जादा नही आंक रही भाई,,बुरा मत मान जाना पर हमरे बड़के के में भी बिना मांगे पूछे ही सब कुछ आ गया था,अब ये हमारा आखिरी लड़का है,रुखा सूखा ब्याह देंगे तो समाज ताना मारेगा_ कहेगा लड़के में कोनो खोट रहा होगा जभी बिना लेन देन के हो गयी सादी।”

शर्मिला- हम पूछ तो रहे जिज्जी,आप अपनी बात रखिये ना ,हम कोसिस पूरी करेंगे कि आपको कोई असुविधा ना हो।

सुशीला- अरे का का करेंगी?? बरीक्षा ही सात आठ लाख की पड़ जायेगी,फिर तिलक कम से कम इक्कीस का तो चढायेंगी,जेवर जट्टा आप अपन बिटिया को जो दे वो आपकी
मर्ज़ी पर पांव पखारते समय दामाद को चेन तो पहनाएंगी की नही .
फिर तिलक बारात हर मौके पे मेहमानों को लिफाफ़ा पकडायेंगी,अब आजकल 20-50 रुपया का लिफाफ़ा भी तो नही चलता ,कम से कम 100 रुपैय्या तो डालना ही पड़ेगा और लड़के के ताऊ ,चाचा फूफा मौसा लोगो को 500 का ।।सास की पिटरिया रीति तो ना भेज देंगी,रूपा 3 तोले का हार लायी रही ,आप उतना ना सही पर कुछ तो डालेंगी,फिर सास के साथ जेठानि को एक आध कर्णफूल अँगूठी कुछ तो पकड़ाना पड़ेगा ही।।
सामान के लिये चलो हम मना भी कर देंगे पर पार्टी तो देंगे ना आप लोग,कम से कम ग्यारह सौ बराति का खाना खरचा हो जायेगा ।।

शर्मिला- हाँ अब इतना तो करना ही पड़ेगा,,लड़की हमारी है आखिर।।
शर्मिला के धीमे से शब्द जैसे गले में ही रुंध गये

प्रिया- इतना कुछ नही करना पड़ेगा मम्मी ।।माफ कीजियेगा आँटी जी,पर बेटी पैदा करने का जो पाप हमारी मम्मी ने किया उसकी अच्छी खासी सज़ा आपने सुना दी,पर हमे ये सज़ा मंजूर नही है।
राज तुम अच्छे तो बहुत हो,हमे बहुत प्यारे भी हो पर अब हम तुमसे शादी नही कर पायेंगे ,चलिये मम्मी।।
और आँटी आपको एक बात और बता दें,हम आगे पढ़ाई और नौकरी दोनो करना चाहतें हैं,पर शायद आपको ये भी पसंद नही आयेगा,वैसे आपकी पसंद का हममे कुछ भी नही

है,आपको यहाँ आकर हमारे कारण जो भी परेशानी उठानी पड़ी उसके लिये माफी चाहतें हैं ।नमस्ते।।

बन्टी- अरे ऐसे कैसे!! प्रिया बड़ों की बात चीत अभी चल रही है,ऐसे बीच मे तुम्हारा बोलना ठीक नही है,,ये सब तो शुरुवाती बाते हैं,धीरे धीरे सब सुलटाएंगे,तुम काहे इतना टेंशन ले रही हो।

प्रिया- नही बन्टी भैय्या,जहां बातों की शुरुवात ही गलत नींव पर हो वहाँ हमारा सपनों का महल खड़ा नही हो पायेगा,चलिये मम्मी।

प्रिया को जाने कौन सी बात इतनी परेशान कर गयी,राज की अम्मा का हद से ज्यादा बोलना या राज की गम्भीर चुप्पी !! पर इसके बाद बिना रुके वो अपनी माँ का हाथ पकड़े मन्दिर से बाहर निकल गयी,उनके पीछे बुआ जी अपने पुरखों को कोसती दहेज लोभियों पे भाषण देती धीरे धीरे चल पडी,जाते जाते उन्होनें आखिरी व्यंग सुशीला पे भी दे मारा_

” अच्छा नही किया दुल्हिन!! जितना तुमने कहा उतनी सब की तैयारी रही हमारे भाई की,पर ऐसे इस ढंग से बच्चो के सामने . का सोच रही अब खुस रह पाओगी तुम?? कर सकती हो तो हमरी प्रिया के पहले राज का ब्याह कर के दिखा दो, बड़ी खुसी से तुम्हरे द्वारे आयेंगे तुम्हरे राजकुमार के ब्याह का लड्डू खाने,और हम भी तुम्हें न्योत रहे एक महीना के अन्दर अन्दर तुम्हे प्रिया के ब्याह का लड्डू खिला के रहेंगे।।”

आंखों से आग बरसाती बुआ जी अपने घुटने संभालती चली गयी।।

एक सौ सोलह चाँद की रातें,
एक तुम्हारे काँधे का तिल
गीली मेहंदी की खुशबू,
झूठमूठ के शिकवे कुछ
झूठमूठ के वादे भी, सब याद करा दो
सब भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो .

रेडियो पर बजते गाने के बोल सुन अनजाने ही दो आंसू प्रिया के गालों पे लुढ़क आये,,खिड़की पर खड़ी वो अपनी सोच में गुम कहीं खो गयी।।

क्रमशः

aparna..
आँधी की तरह उड़कर इक राह गुज़रती है
शरमाती हुई कोई क़दमों से उतरती है
इन रेशमी राहों में इक राह तो वो होगी
तुम तक जो पहुंचती है इस मोड़ से जाती है इस मोड़ से जाते हैं .
कुछ सुस्त कदम रस्ते,कुछ तेज़ कदम राहें .

अपने कमरे में बैठी प्रिया को समझ ही नही आ रहा था कि उसने सही किया या गलत . अपनी माँ का मुरझाया चेहरा वो कभी भी सहन नही कर पाती थी,उस समय भावावेश में आकर उसने राज की अम्मा को खरी खोटी सुना तो दी पर अब रह रह के राज का बुझा बुझा सा चेहरा ,जाते समय उसे रोकती हुई राज की आंखें सब याद आ रहा था, प्रिया जैसे खुद से ही बातें कर रही थी__ अच्छे से जानती हूँ,मेरे सामने तक तो मुहँ खोल नही पाता अपनी अम्मा के सामने क्या बोलेगा,बस नाम का राज बाबू है,सारी होशियारी प्रिंस और प्रेम तक ही सीमित है,,बातें इनकी निकलेंगी जब वसूली करने जातें हैं,बाकी समय तो बस सर हिला के ही काम चला लेंगे . अरे पर एक बार तो अपनी अम्मा को टोक सकता था।”

प्रिया का मन राज से बात करने के लिये व्याकुल हो उठा,
पर हाय रे मन!! मन की भी शायद अपनी आत्मा होती है, देह होता है ,तभी तो हर बड़ी छोटी बात को खुद से लगा लेता है,हाड़ मांस से बने शरीर को जितनी चोट नही पहुंचती उससे कहीं अधिक मन चोटिल हो जाता है .
ऐसे समय जब कोई अपने प्रेम को सर्वोपरी रख अपनी या सामने वाले की गलती पे झुक जाना चाहे ये मन देवदार बन जाता है,अकड़ के तन जाता है,और हर एक इच्छा को अपने नैनों से तोल कर निर्णय लेता है।।
यही प्रिया के साथ हुआ!!उसे मन्दिर में जो सही लगा उसने कर दिया पर अभी उसका मन राज के लिये रो पड़ा,कैसे भी किसी भी हाल में उससे मिलने को वो तड़प उठी . पर जैसे ही उसे मेसेज करने उसने फोन उठाया उसके अन्दर से एक आवाज़ आयी __ वो भी तो कर सकता है फ़ोन,,ठीक है शायद हमने बात बिगाड़ दी पर शुरु तो उसी की अम्मा ने किया था,और दोनो भाई मुहँ में कुल्फ़ी जमाये बैठे थे,हम भी आखिर क्या करते।। हम जाने लगे तब आगे बढ़ कर रोक भी तो सकता था,ठीक है अपनी अम्मा के सामने नही बोल सकता पर हमें तो बोलते समय रोक सकता था,हमे भी कोई शौक तो है नही की दूसरों का अनादर करें,बस हो गया जो होना था,अब एक बार फोन तो कर ले ,पूछ तो ले ,कैसी हो प्रिया ।।पर नही जनाब तो अकड़ के बैठे होंगे,ये विचार आते ही प्रिया का दिल कसमसा के रह गया, उसे राज का मासूम सा चेहरा याद आ गया,भला आज तक कब और किस बात पे वो अकड़ के खड़ा रहा था,वो तो बेचारा फलों से लदा ऐसा तमाल तरु था जिसकी छाँव से

उसकी पूरी बिरादरी सुवासित थी।।

प्रिया ने फ़ोन करने को फ़ोन उठाया ही था की राज के नम्बर से कॉल आ गया,थोड़ी देर पहले का क्षुब्ध स्वाभिमान एक बार फिर करवट ले खड़ा हो गया,प्रिया ने तुरंत उचक कर फोन नही उठाया __ वो भी तो जाने हम प्रिया है।।
हाय रे ये मिथ्या अभिमान!! जिसके लिये दिल टूक टूक रो रहा था,सामने से उसे ही उद्विग्न देख अपनी रोग और पीड़ा भूल गया,और उसके घावों पे मलहम देने की जगह नमक की बोरी उठा ली।।

प्रिया जब तक फोन उठाती फोन कट गया, उसके चेहरे पर एक मुस्कान खिल गयी__ अब, आया ऊंट पहाड़ के नीचे,अच्छा मज़ा चखाया!

एक बार फिर फोन घनघना उठा__

प्रिया- हेलो

राज- प्रिया!!

अपना नाम राज के मुहँ से सुनना था की रहा सहा धैर्य गुस्सा सब भाटे की तरह उतर गया,वेगवती नदी सा बह गया।।

प्रिया-” इत्ती देर से याद आयी हमारी,सुबह से कहाँ मर रहे थे,एक बार को नही सोचा कि हम कैसे जी रहे होंगे।”

राज- अरे सोचा नही होता तो अभी फ़ोन क्यों करते, सुबह से मौका ही नही मिला,सब हमी को घेरे खड़े थे,मन्दिर से आने के बाद अम्मा ने घर पर सब को सब बता दिया है,घर में कर्फ्यू वाली स्थिति हो गयी है।

प्रिया- तो हमारे घर कौन सा हालात कन्ट्रोल में हैं, मन्दिर से आने के बाद बुआ ने ऐसा हंगामा मचाया है कि हमारे घर में भी इमरजेन्सी के से हालात हो गये हैं,,राज एक बात बोलें

राज- घर से भाग चलने बस मत बोलना।

प्रिया- हम वही बोलने वाले थे जादुगर सैंया।।

राज- हम दोनो तरफ सब कुछ संभाल लेंगे बस तुम अपने आप को संभाले रखना,हमे ती समझ नही आता की हम किसे किसे देखे,बाकी सब को या तुम्हें ।कभी भी तमक जाती हो।।

प्रिया– क्या करें?? हम अपनी अम्मा के लिये कुछ भी सुन नही पाते,,पर अब ध्यान रखेंगे,अच्छा सुनो!! कल कहीं मिल सकते हैं क्या?? अकेले?

राज- क्या हो गया,अकेले काहे मिलना चाह रही??

प्रिया- ऐसा कुछ नही,जैसा तुम सोच रहे,और सुनो!! सोचना भी मत!! हम तो प्लान बनाना चाह रहे कि आखिर ऐसा क्या हो सकता है कि तुम्हारी अम्मा की बात माननी भी ना पडे
और पूरी भी हो जाये।

राज- वही तो हम भी सोच रहे,क्या ऐसा किया जाये कि सब सही हो जाये और किसी को तकलीफ भी ना हो,चलो फिर यही ठीक रहा,कल रॉयल पेलेस चलते हैं,वहाँ बैठ के सोचेंगे ।।

प्रिया- सुनो,एक बात बोलें ।

राज- मना कर देंगे तो नही बोलोगी।

प्रिया- तब तो और ज़ोर से चिल्ला के बोलेंगे,कान फाड़ के बोलेंगे,तुम्हें सता के बोलेंगे।।

राज- तो बोलो ना,पूछती क्या रहती हो,सुनो सुनो सुनो!! जैसे बड़ा सम्मान दे देती हो।।

प्रिया– कल तुम अपनी नीली शर्ट पहन के आना और हम भी अपनी नीली कुर्ती ही पहनेंगे,ठीक है।

राज प्रिया की बात पर खिलखिला के हँस दिया, तभी अचानक किसी के आने की आहट से दोनो ही चौकन्ने हो गये_

राज- प्रिया बन्टी ऊपर आ रहा है,हम फोन रखते हैं ।।

प्रिया- अरे रुको !! सुनो तो .

राज– अरे रख रहे हैं यार,तुम तो पिटवा कर ही मानोगी लग रहा।।
हँसते हुए दोनो ने अपना अपना फोन रख दिया।।

पास बुला के गले से लगा के
तुने तो बदल डाली दुनिया
नए हैं नजारे नए हैं इशारे
रही ना वो कल वाली दुनिया

सपने दिखाके ये क्या किया
ओ रे पिया
तुने ओ रंगीले कैसा जादू किया
पिया पिया बोले मतवाला जिया।।

रेडियो पे बजते गाने ने प्रिया के चेहरे पे एक लाज भरी मुस्कान बिखेर दी।।

. ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अगले दिन दोनो परिवार अपनी अपनी दिनचर्या में लीन थे,सुशीला जहां खुश थी कि चलो उस लड़की से पीछा तो छूटा वही अपनी लाड़ली के दुख से शर्मिला दुखी थी,पर दोनो ही महिलाओं ने आम हिन्दुस्तानी औरतों की तरह ही अपने मन को पूर्ण रूपेण अपने नियन्त्रण में रखा हुआ था,एक दुखी थी एक सुखी थी पर दोनो में से किसी की दिनचर्या में
कोई व्यवधान नही था।।
घर के किसी सदस्य की किसी भी आवश्यकता को अधूरा नही रखा गया था,सब समुचित व्यवस्था थी।।

प्रिया कुछ गुनगुनाती सीढियों से नीचे उतरी, रसोई की खिड़की से झांक लगा के शर्मिला ने उसे आवाज़ लगायी

शर्मिला- लाड़ो!! नाश्ता ले आऊँ तेरा!!

प्रिया- नही मम्मी ,हम कुछ काम से बाहर जा रहे हैं, वापस आकर खा लेंगे

शर्मिला- अरे कम से कम दो पूड़ी तो खा ले।

प्रिया ने मुस्कुराते हुए शर्मिला को देखा,__”पूड़ी तो हमने कब से खाना छोड़ रखा है मम्मी ,भूल जाती हो ,अभी 2 किलो और कम करना है,चलो हम जा रहे वर्ना देर हो जायेगी।।”

” अरे पर जा कहाँ रही छोरी?”

” कहीं नहीं बुआ,जल्दी आ जायेंगे।।

प्रिया के निकलते ही बुआ जी ने शर्मिला को पृश्नवाचक निगाहों से भेद दिया__” परमिला कहीं उस रजुआ का बुखार फिर तो नही चढ़ गया छोरी को,कल तो बड़ा पांव पटकती निकली रही मन्दिर से।।

शर्मिला– नही पता जिज्जी,वैसे प्रिया ऐसी है तो नही,ज़बान की बड़ी पक्की है मेरी बेटी।।

यही तो लोग नही समझ पाते कि ना प्यार का भरोसा,ना प्यार करने वालों का।।जब एक बार इन्सान प्यार में पड़ जाये तब वो सिर्फ एक ही काम सलीके से और शिद्दत से कर सकता है वो है प्यार,
इसके अलावा हर एक काम बेमानी हो जाता है, ना तो फिर अपना वचन याद रहता है और ना मान सम्मान।।

रॉयल पैलेस जाते हुए प्रिया ने निरमा को भी साथ ले लिया,वहाँ पहुंचने पे देखा राज और, बन्टी पहले से बैठे उनका रास्ता देख रहे थे।।

प्रिया को देखते ही राज की आंखे मुस्कुरा पड़ी,
बन्टी ने आगे बढ़कर दोनो को अपने सामने की कुर्सियों पर बैठा दिया।।

बन्टी- देखो प्रिया और राज,तुम दोनो को ऐसा कोई हल निकालना पड़ेगा जिससे सांप भी मर जाये और लाठी भी ना टूटे।।

प्रिया– भैय्या हम तो चाहतें हैं,ना सांप ही मरे ना लाठी ही टूटे,क्यों राज!!

राज– तो क्या सोचा ?? ऐसा क्या करें कि सब मान जायें,
बोलो प्रिया!!

प्रिया- राज तुम हमारे तुम्हारे बारे में सब कुछ अपने पापा को बता दो,हमे यकीन है वो मान जायेंगे।

बन्टी- इत्ता आसान नही है प्रिया पण्डित जी को भोग लगाना,वो भी परले दर्जे के जट्ठर हैं,बल्कि मौसी ही कुछ मुलायम हैं,जब वही इत्ती भरी बैठी हैं तो मौसा जी का सोचो भी मत,उसपे इनके घर के सब पुरखे अमृत पीकर आये हैं,90 की हो चुकी दादी अब तक अपने पसंद की मोहनथाल बनवाती है बहुओं से।।

राज- फिर करें तो क्या करें बन्टी,हमे तो समझ ही ना आ रहा??

प्रिया– तुम्हें कभी कुछ आसानी से समझ आया भी है? भला हो ये समझ आ गया कि हमसे प्यार है।

बन्टी- देखो बिना दान दहेज ये शादी ना हो पायेगी, प्रिया तुम भी अच्छे से जानती हो,कुछ काम समाज और दुनिया को दिखाने भी किया जाता है,है ना?

प्रिया- हाँ तो?

बन्टी- तो ये कि मौसी जी ने जितना बोला उतना तो करना ही पड़ेगा,अब कुछ तो अंकल जी की भी तैयारी होगी ही,बाकी कमी बेसी को हम पूरा कर देंगे, मतलब हम नही हमारा भाई
राज!! क्यों राज?

राज ने बन्टी की बात पर प्रिया को देखा,उसके चेहरे पर भी कोई भाव नही था,जैसे उसे समझने में दिक्कत आ रही थी कि ऐसा करना सही रहेगा या नही।।

प्रिया– हमारे पापा को शायद अच्छा नही लगेगा राज

बन्टी- लेकिन कुछ तो रास्ता निकालना ही पड़ेगा ना
तुम अपने पापा को समझा भी तो सकती हो।

प्रिया- हां समझा सकते हैं,पर एक बात बताइये भैय्या ,हम पापा को ये समझायें की राज से रुपये उधार ले कर हमारी शादी उसी से करा दे इससे कहीं ज्यादा आसान ये नही रहेगा कि राज अपनी अम्मा को ये समझा दे कि वो दहेज नही लेना चाहता।

राज- प्रिया तुम्हें क्या लगता है हमनें अम्मा से बात नही की,जितना कह सकते थे कह चुके हैं,,अब देखो यार अम्मा भी अपनी जगह कहाँ गलत है बताओ।

प्रिया- तुम्हारी आँख मे ना तुम्हारी अम्मा भक्ति का चश्मा चढ़ा है,उस चश्मे को उतारो तब नज़र आयेगा की कौन गलत है और कौन सही,,हमे बन्टी भैय्या की बात अच्छी नही लगी।
भले ही एक साधारण नौकरी में हैं हमारे पापा पर आज तक हमे किसी चीज़ की कमी नही महसूस होने दी,राजकुमारी बना के पाला पोसा,और आज हम अपने
स्वार्थ के लिये अपने पापा के आत्मसम्मान को आग लगा दे,ये नही हो पायेगा राज।।
तुमसे प्यार करते हैं इसिलिए तुम्हारे आगे हमारा मान अपमान हम नही देखते पर अपने पापा को तुम्हारे पैरों में रुपयों के लिये झुकते नही देख पायेंगे।

राज- यार तुम बात को कहाँ से कहाँ मोड़ दी,,काहे तुम्हारे पापा झुकेंगे?? हम चुपचाप जितने की उन्हें ज़रूरत होगी लाएंगे और तुम्हारे घर छोड़ जायेंगे। अब कल को हम उनके दामाद बन जायेंगे तो एक तरह से उनके बेटे जैसे हुआ ना,बेटे से कुछ लेने में कैसा संकोच?

प्रिया- सही कह रहे हो ,बेटे से कैसा संकोच?? फिर चुपचाप आने का संकोच काहे कर रहे,डंके की चोट पे आना,अपने अम्मा बाऊजी को बोल कर आना की अपने होने वाले ससुर के लिये रुपये लिये जा रहे, उनके ज़रूरत है।।

राज-प्रिया तुम कोनो कसम खा कर आयी हो का कि लड़े बगैर नही जायेंगे

प्रिया- हाँ बिल्कुल!! वैसे ही जैसे कल तुम्हारी अम्मा कसम खा के आयी रही ।।

राज — प्रिया!! हम कुछ कहते नही इसका मतलब ये नही कि तुम कुछ भी कहती जाओगी,,अम्मा है हमारी,उन्होनें जितना सहा है ना तुम उनकी पैर की धूल बराबर भी नही हो।। एक बात तो सुन के सही नही जाती तुमसे अम्मा से
बराबरी करने चली हो। अरे बचपन से अपने घर परिवार पड़ोस समाज सब जगह उन्होनें जो देखा है वही उनके दिमाग में बैठा है।। तुम्हारी तरह पढ़ी लिखी होती तब तो उनकी अपनी समझ होती ना,उनके खुद के ब्याह में दहेज मिला,सभी मौसियों का ब्याह ,चाचा का ब्याह फिर बुआ का ब्याह सभी जगह यही देखी है हमरी अम्मा इसे ही सही समझती है,तो इसमे उनकी क्या गलती।।
जिस उम्र में तुम अपनी माँ के आंचल में दुबकी पड़ी थी उस उमर से घर गृहस्थी का बोझ उठा रही हमारी अम्म्मा।।बारह साल की उमर से ददिया सास चचिया सास और खुद की सास की सेवा में प्राण दिये जा रही हैं,और आज तक उनके सर का पल्लू कभी खिसका तक नही और तुम उनकी दो बातें सुन उन्हें पलट के चार बातें सुना गयी।।
मजाल है जो आज तक हमारी अम्मा ने दादी को कभी पलट के जवाब दिया हो,ऐसा तो नही है कि हर बार बड़े बूढ़े सही बात ही बोलतें हों,पर जो भी बोला सुनाया हो दादी ने हमारी अम्मा ने उन्हें या बाऊजी को कभी जवाब नही दिया।।

प्रिया– हम क्या बोल रहे और तुमने क्या समझ लिया।।

राज- क्या समझ लिया,सही ही समझा।। हमारी ही आँख में चश्मा चढ़ा था,पर अम्मा का नही तुम्हरा,अब उतार फेंकने पर साफ साफ दिख रहा कि तुम्हारा ज्ञान कितना कोरा और उथला है प्रिया ।।
एक बात और कह दें,जो लड़की हमारी अम्मा का सम्मान नही करेगी ,इज्जत नही करेगी हम किसी जनम में उससे शादी नही करेंगे।।

प्रिया– राज तुम धमकी दे रहे हो हमे।।

राज– हम सच बोल रहें हैं,,हमारी अम्मा से ज्यादा हम किसी से प्यार नही कर सकते,,तुम अपनी बताओ ,हमारी अम्मा के हिसाब से ढल सकती हो।तो ठीक है वर्ना जाओ,हमें भी तुम्हारी कोई ज़रूरत नही है।

बन्टी और निरमा चुपचाप बैठे दोनो की बातें सुन रहे थे,कुछ देर पहले की साधारण बातें अचानक ही ऐसे मोड़ ले लेंगी किसी ने सोचा भी ना था।।
किसी ने सही कहा है__ बन्दूक से निकली गोली और ज़बान से निकली बात कभी वापस नही हो सकती।।

काश दोनो में से एक ने भी अपनी जिह्वा पे समय रहते नियन्त्रण पा लिया होता तो स्थिति इतनी विकट ना होती।यहाँ गलती किसकी थी किसकी नही ये पक्ष विचारणीय रह ही नही गया,दोनों में से किसी ने उस समय झुकना अपनी शान के खिलाफ समझा।।इस पूरे वाकये को कई दिन बीत गये।। प्रिया ने इम्तिहान पास कर लिया और एक महीने की ट्रेनिंग के लिये पुणे आ गयी,बन्टी भी वापस दिल्ली लौट गया, सभी अपने अपने कामों मे लग गये,जीवन का नाम ही चलना है,वो कभी किसी के लिये रुकता कहाँ है।।
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प्रिया की ट्रेनिंग पूरी हो गयी और पहली नियुक्ति में उसे अम्बा जी गढी जाना पड़ा, उसने अपना कार्यभार संभाल लिया,कभी कुछ दिनों के लिये उसकी अम्मा या बुआ जी आ जाते हैं ।
बन्टी की जिंदगी में एक बार फिर कोई लड़की आ गयी,वो अपने जीवन अपने बॉस और नयी नयी बनी गर्लफ्रैंड में व्यस्त रहने लगा।

सभी का जीवन व्यस्त था,सभी अपने आप में लगे थे,बस एक राज था जिसका जीवन उस शाम रुक गया,,उसने पहले की तरह जिम जाना छोड़ दिया, भैय्या के वसूली के काम में भी अब प्रिंस और प्रेम ही जाते ।।
घर के लोग जैसे अम्मा,बाऊजी बड़े भैय्या चाचा जी सभी अपने लाड़ले के व्यवहार से क्षुब्द थे दुखी थे,पर वो खुश था अपने आप मे,अपने कमरे में अपनी किताबों के साथ।।
अम्मा को लगा प्रिया का भूत उतर गया,अम्मा को इस बात का कई एक बार प्रमाण भी मिल चुका था,, आखिर माँ थी कैसे अपने बेटे के जीवन से अनभिज्ञ रहती,उन्हें समझ आ चुका था की अब प्रिया और राज की हल्की फुल्की भी बातचीत नही होती।।
खूब खोद कुरेद के उन्होनें बन्टी से भी सारी सच्चाई उगलवा ली थी,कि उस शाम के बाद दोनों में कभी कोई बात नही हुई ।।
उस शाम को बीते पूरे तीन साल गुज़र गये . प्रिया चली गयी सिर्फ राज के जीवन से ही नही उसके शहर से भी दूर ।।

पर जब वो चली ही गयी थी राज के जीवन से तो ऐसा क्या था जो राज ने खुद को किताबों में इस कदर गुम कर लिया था।
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समय . समय को किसी से लेना देना नही होता, उसे सिर्फ चलना है ,चाहे कोई लाख चाहे की वो रुक जाये ठहर जाये ,पर नही समय अपनी गति से ही भागेगा।।

इन तीन साढ़े तीन सालों में राज और प्रिया के घरों में परिवारों में मुहल्ले में बहुत कुछ बदल गया।
युवराज भैया ने दो नयी एजेंसी डाल दी,सिर्फ रुपयों पैसों मे ही उनका रुतबा नही बढ़ा बल्कि घर परिवार में भी बढ़ गया,जहां पहले वो घर के सबसे बड़े लड़के थे अब एक छोटे से बालक के पिता हो गये, रूपा पहले ही अभिमानिनी थी अब पुत्र की जननी होकर उस अभिमान के सोने पे सुहागा चढ़ गया।।
खाता पीता परिवार सदा मधुमक्खियों के छत्ते सा होता है,छत्ते में एकत्र मधु के लालच में जैसे मक्खियां भिनकती हैं ऐसे ही नाते रिश्तेदार घेरे रहते हैं ।।

राधेश्याम जी के घर पर भी बेला कुबेला कुछ ना कुछ होता ही रहता था,कोई तीज त्योहार,मुंडन छेदन,सीक सुहागिल हो,इसी बहाने घर परिवार की औरतों को बहाना
मिल जाता,पहले तो सब दबी ढकी आवाज़ में ही राज के ब्याह के प्रगति पत्र का जायजा लेती थी,पर अब वही ज़बान खुलने लगी थी।।
जब घर की माल्किन ही मुहँ मे दही जमा के बैठी हो तो बोलने वालियों को मौका तो मिल ही जायेगा ना।।

” काये हो सुशीला बहन?? कब खिला रही हो रजुआ के ब्याह का लड्डू।”
पड़ोस की बिन्नी काकी अपनी मित्र मंडली में अपने मुहँफट स्वभाव के लिये जानी जाती थी

” अरे बिन्नी जिज्जी हम तो सुन रहे रजुआ कहीं का बड़ा आफीसर बन गया है,,क्यो सुसीला तुम नही बताई कभी ,अरे कहाँ का लार्ड कमिस्नर हो गया है राज।”

” अरे तुम लोग भी ना!! अपने अपने कोच के पेड़े को निहारो ना,सुहागिल तो निबटने दो तब हम बताएंगे कहाँ का लार्ड गवर्नर बना है हमारा राज।”

“चाची जी!! लल्ला जी के लाने ही तो अम्मा जी सुहागिल खिला रही हैं,जो मन्नत मानी थी वो पूरी जो हो गयी।।”

” हां भई रूपा !! अब तो जैसे तुम्हरे कन्हैय्या को गोद खिला रही ऐसे ही एक और बहुरिया आ जाये उसका भी एक आध लड़का लड़की कुछ हो जाये बस फिर तो सुसीला और भाई साहब के सब तीरथ हुई जायें।”

” तुम्हरे मुहँ मा घी सक्कर।।”

जी में आता है, तेरे दामन में सर झुका के हम
रोते रहें, रोते रहें .
तेरी भी आँखों में, आंसूओं की, नमी तो नहीं
तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई, शिकवा, तो नहीं..
तेरे बिना ज़िन्दगी भी लेकिन, ज़िन्दगी, तो नहीं
ज़िन्दगी नहीं, ज़िन्दगी नहीं, ज़िन्दगी नहीं .

माला– ओ मैडम !! और कोई गाना नही है आपके पास!!क्या यार,सुबह सुबह यही मनहूस गाना बजा देती हो।।

माला की बात पर प्रिया मुस्कुरा के वापस तैयार होने लगी .

माला– बस यही तो है!! आपसे हम कुछ भी कह लें आप बस अपनी कातिल मुस्कान फेंक दीजिये हम पे

प्रिया- चलो चलो जल्दी से तुम भी तैयार हो जाओ, आज बॉस ने तो सुबह सुबह ही मीटिंग बुलाई है।

माला- हाँ जी मुझे पता है, सुनने में आ रहा था की आर.बी.आई. की टीम आने वाली है।।

प्रिया ने हाथ पे घड़ी बांधते हुए हामी में सर हिला दिया।।

अम्बा जी गढी से एक साल पहले ही प्रिया को अपनी दुसरी पोस्टिंग पुणे में मिल गयी थी, पहले पहल वर्किंग वीमेंस हॉस्टल मे रहने के कुछ समय बाद सदाशिव पेठ में प्रिया अपने ऑफिस की कुलीग माला के साथ शेयरिंग फ्लैट में रहने चली आयी थी .
दोनों सखियाँ साथ ही ऑफिस आती जाती,
मस्तमौला और हंसमुख स्वभाव की माला बेहद बातूनी थी इसीसे उसके स्कूल कॉलेज घर परिवार ,पास के दूर के नाते रिश्तेदार हर किसी के बारे में प्रिया को सब कुछ पता था,पर माला के बार बार पूछने पता करने पर भी जाने क्यों प्रिया ने उससे उतनी ही बातें बताईं जितनी ना बताती तो भी कोई फर्क नही पड़ता।।

प्रिया का अपने घर जाना बहुत कम हो गया था,हर रविवार वो अपनी मम्मी को फोन कर घर परिवार का हाल समाचार लेती रहती थी, गाहे बगाहे बड़ी बहन वीणा भी उसे फोन कर शादी कर लेने का उलाहना सुनाती रहती थी।।

मम्मी पापा से बात कर घर की ,अपने मोहल्ले की अपने शहर की याद जब हद से ज्यादा सताने लगती तब वो अपनी छोटी सी टाउनशिप में बने बड़े से जिम पहुंच जाती,माला इस बात पे अक्सर उसे आड़े हाथों लिया करती __ ‘ अरे कभी समय भी तो देख लिया कर,,रोज़ तो सुबह सुबह जिम पहुंच ही जाती है,फिर अचानक क्या होता है तुझे जो कभी शाम मे कभी रात में 9 बजे जिम भाग जाती है, यार फिटनेस फ्रीक होना अच्छी बात है पर तू तो साइको होती जा रही है,अपने
आप को देख . बिल्कुल जीरो फिगर हो गयी है,कहीं कुछ समय बाद गायब ना हो जाना।।

” तेरी तो हर बात अजीब ही लगती है बन्सी!! अब इस मोबाइल के ज़माने में चिट्ठियां कौन लिखता है तुझे,,किसी दिन तेरे इस पेन फ्रेंड को पकड़ के रहूंगी।”
पर माला बस ताने मार के अपनी बात खुद भूल जाती,इतने महिनों से आने वाली चिट्ठियों को ना कभी उसने पढ़ने की कोशिश की और ना चिट्ठी भेजने वाले को पकड़ने की।।
हर पन्द्रह बीस दिन में आने वाली इन चिट्ठियों में जैसे प्रिया की जान बसती थी,, बुआ की लिखी इन चिट्ठियों में सारे रिश्तेदारों का हाल समाचार रहता था,पर कहीं किसी कोने में बुआ हमेशा उसके बारे में भी एक लाइन लिख ही जाती थी और उसी एक नाम की अमृत बूंद पूरे महीने के लिये प्रिया को जीने का बहाना दे जाती।।
” क्या बताऊँ छोरी!! तेरे पीछे से रजुआ ने तो घर से निकलना ही छोड़ दिया है।।”

” बिटिया सुनने मे आ रहा सुसीला का छोरा भी कोई परीक्षा दे रहा।।”

ऐसे ही समय समय पर बिना प्रिया के पुछे भी बुआ जी राज के बारे में यत्न पूर्वक हर खबर उसे दे जाती।

“कितना दुबला गया है का बताएँ लाड़ो,लम्बा तो पहले ही भतेरा था,अब तो पूरा ताड़ लगने लगा है।”

” सुना है सुसीला ने जहर खाने की भी धमकी दे डाली सादी कराने,,,पर मजाल लड़के के कान में जूं भी रेंग जाये।”

“बिटिया कोई कोई तो जे भी कह रहा की रजुआ दीछा उक्छा (दीक्षा) लेने वाला है।”

” मुझे तो कभी कभी डर लागे है छोरी,जे छोरा किसी कनफड़े गुरू की शरण में हिमालय ना निकल जाये।”

ऐसे ही बताने योग्य-अयोग्य हर बात बुआ जी बिना किसी आडम्बर के लिख जाती और मात्र उस एक पंक्ति में छिपे अपने जीवन की सार्थकता को बड़े यत्न से प्रिया अपनी इत्र से सुवासित हाथी दांत की बनी डिबिया में सहेज लेती ।
जैसे उसके जीवन में अब दो ही महत्वपूर्ण बातें बची थी,एक रोज़ का जिम और दूसरा बुआ जी की चिट्टीयां।।

दोनों भागती दौड़ती स्टॉप पे लगभग समय से पहुंच ही जाती थी,उनके बैंक की गाड़ी उन्हें लेने और छोड़ने आया करती जिसमें उनके अलावा आस पास के और भी एम्प्लायी हुआ करते।
और दिनों की तरह उस दिन भी गाड़ी में सब होने वाली मीटिंग की चर्चा में लगे थे।।

” प्रिया यार तू संभाल लियो ज़रा।। उस बड़बोले सिद्धार्थ
की तेरे सामने ही बस बोलती बन्द रहती है,वर्ना हम सब को तो वो आंखो से ही गोली मार देता है हिटलर!।।

” शट अप राहुल!! फिजूल में प्रिया को परेशान ना करो,और बॉस के बारे में ऐसा बोलते शरम नही आती।।”

” नो माला!! बिल्कुल शरम नही आती,उस खबीस बॉस को शरम आती है,इतनी सारी लड़कियों के सामने मुझ जैसे हैण्डसम बन्दे को यूँ लताड़ देता है, फिर . मुझे तो उसे कमीना बोलने मे भी शरम नही आती।।

” कम ऑन राहुल!! जब तुम बॉस बनोगे तब तुम भी ऐसे ही हो जाओगे,क्यों है ना प्रिया ।।”

प्रिया मुस्कुरा के रह गयी

” प्रिया यार कहाँ खोयी रहती है तू,बस हर बात का एक ही जवाब,तेरी स्माईल !! कोई लड़की इतना कम भी बोल सकती है मैनें कभी सोचा भी ना था,चलो यार भागे,,जल्दी से तैयारी कर लेते हैं,सिद्धार्थ आता ही होगा।।”

कॉर्पोरेट जगत को कई मायनों में अन्ग्रेजी सभ्यता का अनुगामी माना जा सकता है,व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में जहां सीनियर्स के लिये सर और मैडम बोलना प्रारंभ हुआ वही कॉरपोरेट में चाहे आपका सीनियर आपसे 30 साल भी बड़ा हो पूरे आदर के साथ उनका भी नाम ही लिया जाता है।

प्रिया के बैंक में भी कई सहकर्मी थे हर आकार प्रकार के,अलग अलग धर्म -जाति और उम्र के।।
प्रिया का ऑफिस का कार्य लोन इत्यादी से सम्बंधित था जहां उसे सिद्धार्थ को रिपोर्ट करना होता था,सिद्धार्थ 29-30 साल का नौजवान था जिसने बैंकिंग में कई श्रेणियाँ उत्तीर्ण कर अपने लिये यथोचित स्थान और सम्मान कमा लिया था।।

सिद्धार्थ- हेलो फ्रेंड्स ,जैसा की आप सभी जानतें हैं, आर बी आई का दौरा होने वाला है,और हमे इस बार उनकी हर बात उनकी हर चुनौती के लिये तैयार रहना है।।
उनकी सबसे ज्यादा नज़र लोनधारकों से जुड़ी है,तो मैं चाहता हूँ प्रिया,राहुल और नेहा आप तीन लोग टीम बनाकर इस काम में लग जायें।
किसी भी खाता धारक के पेपर्स अधूरे नही होने चाहिये,कोई भी रैंडम पेपर्स वो लोग मांग सकते हैं।
बड़ी सरकारी डील्स,एन जी ओ के साथ हुई डील्स और बड़ी ज़मीनों के लीज वगैरह के कोई पेपर कच्चे ना रहे,और हो सके तो आप लोग एक बार क्या क्या पूछा जा सकता है उनके जवाबों की रिहर्सल भी कर लेना,,ओके गाईज़।”

इसी तरह की कई अति महत्वपूर्ण चर्चाओ को निबटा कर सिद्धार्थ अपने केबिन में चला गया।।

” भई हम तो सिर्फ टाईम पास कर रहे यहाँ,काम तो बस दो ही बन्दे करते हैं एक सिद्धार्थ दूसरा प्रिया।”

” क्यों राहुल,ऐसा क्यों बोल रहे।”

‘” और क्या ,सही तो कह रहा हूँ,बन्दे को और कोई तो नज़र ही नही आता,सारी प्लानिंग्स बस एक, ही को बताईं जाती हैं प्रिया मैडम को,अमा यार हम भी खड़े हैं,जब हमारा नाम ले रहे हो तब तो हमें देख लो, यार प्रिया इसने तुझे अब तक प्रपोज़ कैसे नही किया।।”

प्रिया- बकवास मत करो राहुल!! सिद्धार्थ को लगता है कि हमें जल्दी से कुछ समझ नही आता इसिलिए हमे ही सब कुछ एक्सप्लेन करते हैं।”

राहुल- वॉव ग्रेट!! अच्छी जोड़ी है तुम दोनो की,सच कहता हूँ प्रिया तुम सोच सकती हो बन्दे के बारे में,अरे दक्षिण भारतीय है तो क्या हुआ है तो वेदुला ब्राम्हण।।नार्थ वेद्स साऊथ,बेहतरीन जोड़ी जमेगी।”
राहुल की बात अनसुनी कर प्रिया अपने डेस्क पे चली गयी,राहुल की हमेशा की ही आदत थी जिसे प्रिया ही क्या कोई भी गम्भीरता से नही लेता था, पर यही हँसी मजाक की बातें सिद्धार्थ के कानों में भी पहुंचने लगी थी।।

29 साल का सिद्धार्थ तेलुगू ब्राम्हण परिवार का इकलौता लड़का था,इंजिनीयरिंग की पढ़ाई के दौरान ही विदेशों में आगे की पढ़ाई के लिये की जाने वाली टफेल में सफल नही हो पाने के बाद उसने प्रथम प्रयास में ही बैंक पी.ओ.का इम्तिहान पास कर लिया था,और उसके बाद सिलसिलेवार अपनी मेहनत और बुद्धि के बल पर अच्छे खासे सिनियर्स को
पीछे छोड़ते हुए वो उच्च पद पर आसीन था।

पढ़ा लिखा नये ज़माने का सिद्धार्थ जो पहले बात बात पे शादी का माखौल उडाया करता था,उसके लिये उसके कैरियर से अधिक कोई बात महत्वपूर्ण नही रही थी,पर अब इधर कुछ दिनो से शादी ब्याह को लेकर गम्भीर होने लगा था,एक दिन हँसी मजाक में उसने अपनी माँ से पूछ भी लिया__ कि अगर वो किसी उत्तर भारतीय कन्या से विवाह करना चाहे तो क्या उसकी माँ को आपत्ति हो सकती है के जवाब में उसकी माँ ने आगे बढ़कर अपने बेटे का माथा चूम लिया और उसकी खुशी में ही अपनी खुशी का ठप्पा लगा दिया था।।

दुबली पतली सांवली सलोनी चुप चाप अपने काम में लगी रहने वाली प्रिया पहली ही नज़र में उसे बहुत भा गयी थी,पर आज तक किसी बहाने भी सिद्धार्थ उससे अपने दिल की बात नही कह पाया था .
नये साल की पार्टी में जब उसे जबर्दस्ती माईक पकड़ा दिया गया था तब कितने मन से उसने प्रिया की तरफ देखते हुए गाया था__

एक अजनबी हसीना से यूँ मुलाकात हो गयी
फिर क्या हुआ ये ना पूछो कुछ ऐसी बात हो गयी।

उसी के बाद से राहुल और ऑफिस के कुछ एक उसके हमउम्र सहकर्मी प्रिया को उसके नाम से छेड़ने लगे थे,उसे अपने केबिन से ये सब हल्की फुल्की गपशप सुनना बड़ा
पसंद आता था पर आज तक उसके नाम पे प्रिया को चहकते उसने कभी नही देखा था,बल्कि नये साल की पार्टी वाले दिन भी जब सबने उसे गाने का इसरार किया तब भी कैसा तो मनहूस सा गाना गाया था उसने__

तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नही .

पर जो भी हो ,उसे धीर गम्भीर सी चुप चाप सी रहने वाली प्रिया ने मोह लिया था। इसिलिए इतना ध्यान रखने पर भी कोई ना कोई चूक उससे हो ही जाती थी, जब कभी प्रिया के साथ बाकी लोगो को वो काम के बारे में कुछ भी बताया करता उसकी नज़रे सिर्फ और सिर्फ प्रिया पर ही टिकी होती।

आज की इतनी महत्वपूर्ण मीटिंग में भी यही हुआ।

इस मीटिंग के पूरी होते ही सारे लोग अपने अपने क्यूबिक पे जाकर काम पर जुट गये।।
वैसे तो आर बी आई की टीम इसके पहले भी विज़िट पे आ चुकी थी,पर वो विजिट तकरीबन 8 साल पहले हुई थी,इसीसे इस बार तैयारियाँ कुछ अधिक ही उफान पर थी,इस बार 3 लोगों की टीम आ रही थी जो पूरे पांच दिन रह कर अलग अलग विषयों पर बैंकर्स को ट्रेनिंग देकर और उनका ऑडिट कर जाने वाली थी,जिनमें शुरु के दो दिन ऑडिट के थे और बाकी के दिन ट्रेनिंग के।।

सभी को ऑडिट का ही डर सता रहा था,जितनी भी
इमानदारी बरती जाये कही ना कहीं कोई ना कोई फाइल ऐसी कच्ची रह ही जाती है जिसपे ऑडिटर की पैनी नज़र पड़ ही जाती है।

अपना काम जल्दी निपटा कर प्रिया माला के क्यूबिक में पहुंची__

प्रिया-” क्या हुआ माला मैडम?? अभी तक समेटा नही ,सब का सब फैला पड़ा है।।”

माला- अरे नही यार!! ये कहाँ कहाँ से आते है धारक!!बोल बोल के हम बैंकर्स मर जायेंगे पर मजाल है जो ये लोग सारे के सारे पेपर्स एक बार में जमा कर दें,खैर तूने कर लिया क्या सारा काम।

प्रिया- हाँ डाटा हैंडलिंग तो कर ली सारी,बाकी भी फाइल्स कर ली है ,कुछ थोड़ा सा चेक करना है वो रूम पे हम कर लेंगे,तुम्हें और कितना समय लगेगा।

माला- क्यों तुझे निकलना है क्या??

प्रिया- हां . वो आज मंगल है ना हमे मन्दिर जाना है।

माला- अरे हाँ यार!! मैं भूल कैसे गयी?? तेरा तो हर मंगलवार एपॉइंटमेंट रहता है ना हनुमान जी के साथ, तो तू निकल ले,मैं सीधे रूम पे ही पहुंचती हूँ ।।और बन्सी यार आज कुछ अच्छा सा पका लेना खाने में,बॉस ने आज कुछ
ज्यादा ही पका दिया ऑफिस में ।

प्रिया- नाम भी बता दो डिश का ,क्या खाना है।।
हँसते हुए प्रिया अपना बैग लटकाये माला से विदा लेकर मन्दिर के लिये निकल गयी।।

ऑफिस से मन्दिर दूर था,जल्दी जल्दी भागती दौड़ती प्रिया ने बस पकड़ी और आरती शुरु होने के पहले पहुंच गयी।।
मंदिर की भीड़-भाड़ में उसे आज काफ़ी पीछे खड़े होना पड़ा,अपनी जगह पर खड़ी दोनो हाथ जोड़े वो वापस अपने शहर पहुंच गयी थी।
इसिलिए तो शायद हर मंगलवार वो यहाँ आया करती थी,यहाँ पहुंचते ही कितना सुकून मिलता था, सब कुछ सिलसिलेवार याद आने लगता था,हर मंगल के लिये एक ही स्मृति उसके मानस पटल पर अंकित थी,पर वही एक स्मृति हर बार उसे पुलकित कर जाती थी,जब वो राज के पीछे उसकी बुलेट पे बैठी पहली बार बड़े हनुमान मन्दिर गयी थी, दोनो ने साथ ही हाथ जोड़े थे और उसके बाद लगभग दस मिनट तक आँख बन्द किये राज के होंठ धीरे धीरे कुछ बुदबुदाते रहे थे और वो निर्निमेष उसे देखती खड़ी थी।।
लोग कहतें हैं वस्तुएं बेजान होती हैं,पर वही किसी की स्मृति से जुड़ कर कैसी सजीव हो उठती हैं।
इसी मन्दिर से पहली बार निकलते समय बाहर की छोटी सी फूलों की गुमटी में लटकी रुद्राक्ष की माला उसे कैसे मोह गयी थी,और उसने झट उसे खरीद लिया था,वैसा ही रुद्राक्ष तो वो सदा अपने दायें हाथ में पहना करता था।

गोरे चौड़े से मणिबंध में कसा रुद्राक्ष कितनी ही बार उसकी धड़कनों में उथल पुथल मचा चुका था।।

राडो की उसकी घड़ी,रे बैन के ग्लास ऐसा कौन सा उसका स्मृति चिह्न था जो प्रिया ने सहेज के ना रखा हो,ये सारी वस्तुएं अपनी कमाई से खरीद खरीद कर उसने अपनी आलमारी के एक हिस्से में ऐसे सजा रखी थी जैसे खुद राज ही उस हिस्से में आकर बस गया था।

अपने विचारों मे मगन प्रिया ने आंखें खोली तो एक बारगी उसका दिल धक से रह गया .
उसके सामने खड़े लोगों में थोड़ा आगे राज से डील डौल वाला कोई खड़ा था ।।

हाँ वही तो लग रहा है,वही चौड़े कंधे,वही घने बाल!! फिर अपनी ही सोच पे प्रिया को हँसी आ गयी__ ‘वो आकृति हृदय में ऐसी छप गयी है कि हर जगह वही नज़र आता है’ यहाँ कहाँ से राज प्रकट हो जायेगा।।
तीन साल से अधिक समय बीत चुका उसे देखे ,,उस शाम के बाद तो गुस्से में उसका नम्बर भी फ़ोन से हटा दिया था,पर दिल से कहाँ हटा पायी।।

इसिलिए कभी कहीं कोई छै फुटिया गोरा चिट्टा नज़र आता तो मुस्कुरा के रह जाती,अपने आप को समझा के __ नही ये वो नही है।।
उसके यहाँ दूध देने आने वाला गोपाल अलाहाबाद का ही तो है,उसकी आवाज़ और बोलने का तरीका कितना मिलता
है राज से,, इसिलिए आगे पीछे जब समय मिल जाये प्रिया उससे दो बातें कर ही लेती है।।

कई बार अपने मन को समझा चुकी,इतना सब उसके लिये कर के भी उसी से बात करने में इतना संकोच क्यों।।
उस शाम के बाद कितना इन्तजार किया था प्रिया ने कि एक बार वापस राज फोन कर ले,तुरंत दौड़ कर उसके पास चली जाऊंगी ,उसकी माँ के भी
पांव पकड़ लूंगी . पर वो राह तकती रह गयी,कोई फ़ोन नही आया,और फिर इम्तिहान पास कर वो दूसरे शहर चली आयी ,,पर हर दफा उसकी आंखे और कान फोन की रिंग पर ही बने रहे।।
एक फ़ोन तक करना राज ने ज़रूरी नही समझा।।

अपने मन को कितना मारा था उसने और आखिर अपनी सारी हिम्मत जुटा के अपनी पहली पोस्टिंग के बारे में बताने राज को खुद ही फ़ोन लगा लिया।
पर हाय री किस्मत!! फोन उठाया भी किसने, रूपा भाभी ने,,कैसी कड़वी थी वो बात चीत __ ” अच्छा तो नौकरी लग गयी तुम्हारी,चलो अच्छा हुआ, वर्ना जैसा रंग है ऐसे में लड़का मिलना बहुते मुस्किल होता,है ना प्रिया . अब वहीं अपने बैंक में ही कोई ठीक ठाक छोकरा पकड़ ब्याह कर लेना,तुम्हारे लिये भी वही अच्छा रहेगा।”

” हमारे ब्याह की चिंता करने की आप को ज़रूरत नही है भाभी,हमारे मम्मी पापा हैं ये सब देखने के लिये।”

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” मम्मी पापा को भी कहाँ मौका दे रही हो,तुम तो खुदे खोजे पड़ी हो,सोभा देता है का लडकियों का ऐसे उज्जडपना ,आप ही बता रहीं कि अम्मा हमारे फेरे फिरा दो अब . अब हमें मायके में नींद नही आती, वैसे तुम्हें बता दे कि हमारे लल्ला जी ने तो अम्मा के चरणों की सौगन्ध उठा ली है कि उनकी पसंद की लड़की से ही ब्याह करेंगे चाहे भले कानी लूली क्यों ना हो।।”

अपमान से प्रिया के कान जलने लगे .

” आपकी रेखा से तो ठीक ही हैं,उसने तो बताने की भी ज़रूरत ना समझी ,खुद ही मन्दिर में माला बदल आयी,और सीधे आशीर्वाद लेने पहुंच गयी।”
बोल कर तड़ाक से फोन काट दिया था उसने, बिस्तर पर पड़ी कितनी देर तक रोती रह गयी थी .
पता नही रूपा भाभी की बात में कितनी सच्चाई थी पर उस दिन के बाद से उसने कभी राज को फ़ोन नही लगाया,,बहुत बार उठा कर फिर वापस रख दिया था।।
आज, मन्दिर में उस लड़के को पीछे से देख बिल्कुल ऐसा लगा जैसे मानो राज ही दोनो हाथ जोड़े आंखे बन्द किये होंठो में कुछ बुदबुदाता खड़ा है,एक बार को मन किया कि उस तक पहुंच जाये,बाजू में जाकर कम से कम चेहरा तो देख ही सकती है,पर फिर अपनी ही बुद्धि पे हँसी आने लगी, कैसी बचकानी हरकत होगी ये,कहीं वो कोई और निकला तो?? क्या कहेगी ,कि क्यों उसे देख रही थी।।और चलो मान लिया कहीं राज ही निकल गया तो3 Question mark
इस तो का कोई जवाब प्रिया के पास नही था, ऐसा
होना सर्वथा असम्भव था,मुस्कुरा के एक बार और प्रणाम कर वो मन्दिर से बाहर निकल गयी।।रोज़ सुबह 9 बजे खुलने वाला बैंक आज सुबह 6 बजे से ही खुल गया था,पूरे बैंक को झाड़ पोंछ कर चमका दिया गया था,बैंक ऐसा दिख रहा था जैसे ताजी बनी काजू कतली पे लगा चांदी का वर्क।
और दिनों की तरह सरकारी बैंक वाला ठप्पा आज यहाँ कही नज़र नही आ रहा था,बिल्कुल किसी शानदार प्राईवेट मल्टीनेशनल बैंक की तरह चमकते अपने बैंक को देख प्रिया और माला की आंखें भी खुशी से चमक उठी थी।।
वैसे उन लोगो का कोई फॉर्मल ड्रेस कोड नही था,पर आज सारे ही लोगों को समरसता दिखाने की ताकीद की गयी थी,इसीसे सभी पुरूष सफेद शर्ट में और महिलाएं केरला ओणम वाली क्रीम कलर की साड़ी में थी।।
आर बी आई की आने वाली टीम के दो सीनियर मेंबर चेन्नई से आ रहे थे और एक मेंबर कोच्ची से था।।
अपने निर्धारित समय से दस मिनट पहले ही टीम वहाँ पहुंच गयी, सभी कर्मचारी अपने क़्युबिक में अपने अपने काम पर लगे हुए थे, लोगों की भी भीड़-भाड़ बढ़ चुकी थी,ऐसे में टीम धीरे-धीरे सब जायजा लेती एक से दूसरी जगह तफरीह कर रही थी,पहले बताया गया था 3 लोग आने वाले हैं,पर कुल 4 लोग आये थे,जिनमें से 2 अन्दर वाले हॉल में ऑडिट शुरु करने चले गये थे . बाकी दो लोग कर्मचारियों
से मिलते जुलते उनकी डेस्क पर ही किसी भी फाइल को पूछ ले रहे थे।।

कुछ थोड़ी ही देर में सिद्धार्थ हडबडाया सा प्रिया के डेस्क पे आया__” प्रिया वो लीज़ वाली फाइल ले कर तुम आ जाओ ,एक्सप्लेन करना पड़ेगा,असल में वो काम मैनें देखा ही नही था,और उसीकी फाइल मांग रहे हैं,तुम आ जाओ जल्दी!!

प्रिया फाइल लिये सिद्धार्थ के केबिन में पहुंची ही थी कि टीम में से किसी ने कॉफ़ी की फरमाइश कर दी __” हमें तो सिद्धार्थ जी चाय ही पिलवाइये, कल जब से पुणे आये हैं,ढंग की एक भी चाय नही मिली।”

प्रिया का दिल उछल कर मुहँ को आ गया,ये आवाज़ तो राज की थी,हाँ उसी की थी . अपनी आखिरी सांस तक भी कभी इस गहरी आवाज़ को भूल पायेगी क्या, आवाज़ की तरफ उसने मुड़ कर देखा, रिवॉलविंग चेयर पे वही तो बैठा था,अपनी सफेद कमीज की बाहों को कुहनीयों तक मोड़ कर दाहिने हाथ मे ऑडिटर वाली पेन्सिल पकड़े टेबल पर पड़ी फाइल को देखता,,बिल्कुल वैसे का वैसा।। पर बुआ सही कह रही थी ,कुछ दुबला हो गया था,और ये चश्मा कब लग गया जनाब को।।
अपने इस अवतार में तो और भी लुभावना हो गया था राज!!
राज को देख ही रही थी कि राज से उसके किसी साथी ने कुछ कहा,जिसे सुन वो खिलखिला के ज़ोर से हँसा और

तभी उसकी नज़र दरवाजे पे खड़ी प्रिया पर पड़ गयी।।

रिवॉलविंग चेयर पे वही तो बैठा था, अपनी सफेद कमीज की बाहों को कुहनीयों तक मोड़ कर दाहिने हाथ मे ऑडिटर वाली पेन्सिल पकड़े टेबल पर पड़ी फाइल को देखता,,बिल्कुल वैसे का वैसा।। पर बुआ सही कह रही थी ,कुछ दुबला हो गया था,और ये चश्मा कब लग गया जनाब को।।
अपने इस अवतार में तो और भी लुभावना हो गया था राज!!
राज को देख ही रही थी कि राज से उसके किसी साथी ने कुछ कहा,जिसे सुन वो खिलखिला के हँस पड़ा और तभी उसकी नज़र दरवाजे पे खड़ी प्रिया पर पड़ गयी।।

कितनी दुबली हो गयी थी प्रिया!! पहले से कुछ अलग भी लगने लगी थी,अपने लम्बे बालों को सदा बांधे रखने वाली प्रिया के बाल कितने करीने से कटे संवरे उसने खुले छोड़ रखे थे,एकदम एक सीधी लाइन मे सतर सीधे बाल ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने गर्म लोहा चला दिया हो ,उसपर सामने की कुछ लटें हवा से उड़ कर बार बार ,
आंखों के आसपास आ उसे परेशान कर रही थी,जिन्हें उतनी ही शालीनता से अपनी उंगलियों से कान के पीछे संवारती प्रिया कितनी प्यारी लग रही थी .
खुले बाल ,आंखों मे लगा काजल,कानों में छोटे-छोटे हीरे के कर्णफूल,और गले में सोने की पतली सी चेन,उसी से मैच करती रागा की घड़ी, स्मार्ट तो पहले ही थी अब महानगरीय छवि को इतनी आसानी से आत्मसात कर और भी मोहक हो चली थी .

दोनों ने अभी एक दूसरे को भर नज़र देखा भी नही था कि सिद्धार्थ की आवाज़ उनके कानों में पड़ी

सिद्धार्थ -“सर ये मेरी एम्प्लायी हैं प्रिया!!,ये आपको इस फाइल की सारी डिटेल्स समझा देंगी, कम प्रिया!!”

राज-” हेलो!! प्लीज़ बी सीटेड!!

प्रिया- ” थैंक यू” बोल कर प्रिया राज की सामने की कुर्सी पर बैठ तो गयी पर उसे खुद अपने आप पर बड़ी शर्मिंदगी सी हो रही थी,,राज को देखने के बाद उसकी हृदय गति जिस तीव्रता से बढ़ती चली जा रही थी ,ऐसा लग रहा था शताब्दी से होड़ लगा रही है।।
कांपते पैरों को यथासम्भव संयत कर उसने झुक कर फाइल उठा ली,,ऑफिस की सबसे होनहार एम्प्लायी का सारा तेज़ आज चूक गया,वहाँ की सबसे धुरंधर खिलाडी का हर दांव टेढ़ा पड़ गया.. प्रिया उसे देख चकित थी,उसे बार बार देखने का मोह त्याग नही पा रही थी,लेकिन वो अपने पूरे
आत्मविश्वास के साथ मुस्कुराता उसके सामने बैठा एक के बाद एक हर साल का हिसाब उससे बड़े आराम से मांगता चला जा रहा था।

इसी हड़बड़ी में किसी एक जगह पे गलती से छूट गये दस्तखत करने जैसे ही प्रिया ने टेबल से पेन उठानी चाही,वहीं रखा पानी का गिलास लुढ़क गया, वो ज़मीन पे गिर के चकनाचूर होता उसके पहले ही राज ने उसे पकड़ लिया __

राज– रिलैक्स प्रिया!! आराम से बताती जाओ ,हमें कोई जल्दी नही है,हम पूरे पांच दिन यहाँ रुकने वाले हैं।।

पूरे पांच दिन पर राज ने सच में ज़ोर दिया था या प्रिया के ही मन का वहम था,पर जो भी था उसका दिल तो बार बार यही कह रहा था कि ये पांच दिन उसके जीवन से कभी समाप्त ना हों।।

इसके बाद करीबन तीन घन्टे दोनो फाइलों पर सर गड़ाये काम करते रहे,बीच में जितनी भी बातें हुई सिर्फ बैंक और बैंक के काम को लेकर ही हुई।।

ऑडिटर टीम का लंच फाईव स्टार होटल में प्रस्तावित था,जहां सिद्धार्थ उन सब को लेकर जाने वाला था,पर टीम के सीनियर के साथ अन्य लोगों ने भी वही बैंक के कैन्टीन में ही खाने की इच्छा जाहिर की जिससे एक पल को सिद्धार्थ भी सोच में पड़ गया कि कहीं ये भी टीम की इंटर्नल ऑडिट
का हिस्सा तो नही?
पूरी टीम को लिये सिद्धार्थ कैन्टीन में पहुंच गया, वहाँ पहले से बैठे सभी कर्मचारी सतर हो गये, पर टीम पूरी तन्मयता से मेन्यू देखने में ही व्यस्त थी,जब सभी को समझ आ गया कि ये उनके काम का हिस्सा नही है तब एक बार फिर सभी अपने खाने पीने और बातों में लग गये ।।

उसकी टेबल से कुछ दूर हट कर जिस टेबल पर सिद्धार्थ ने सब को बैठाया वहाँ जान बूझ कर राज ने ऐसा किया या अनजाने में प्रिया समझ नही पायी पर जिस कुर्सी को सिद्धार्थ ने राज के बैठने के लिये खोला उसे छोड़ राज उस कुर्सी पे जा बैठा जिससे वो ठीक प्रिया के आमने सामने पड़ गया।।

वो तो बड़े मज़े से सबसे हँसता बोलता खाता रहा पर प्रिया के गले से फिर एक निवाला भी नीचे नही उतरा . सभी का साथ देने वहाँ बैठना भी ज़रूरी था,पर अपनी प्लेट और चम्मच से निरर्थक खेलती प्रिया को बार बार यही लग रहा था की सामने बैठे वो उसे देख रहा है,और इत्तेफाक से जब जब प्रिया की नज़र राज पर पड़ी हर बार उसने उसे खुद को देखता हुआ ही पाया . शरमा कर कभी बाल ठीक करती कभी पहले से जमे आंचल को सही करती प्रिया वहाँ से निकल भागने को तड़प उठी।।

इतने सालों में मन ही मन जिसका नाम जपती चली जा रही थी ,आज उसी से ऐसे आमना सामना हो गया कि सारा प्रेम सरल संकोच में बदल गया।।

लंच समाप्त कर टीम वापस अपने काम में लग गयी,उन लोगो के रुकने की व्यवस्था बैंक की तरफ से मैरियट में की गयी थी।।
लंच के बाद प्रिया वापस अपने डेस्क पर आ गयी थी,कुछ थोड़े बहुत काम निपटा के टीम वहाँ से निकल गयी तब एक बार फिर सिद्दार्थ ने मीटिंग बुला ली।।

“गाईज़ आज का तो काम निबट गया,पर कल ये लोग सारे इंटरनल आडिट शुरु करेंगे, कल का दिन हमारे लिये थोड़ा मुश्किल हो सकता है ,सो बी रेडी”

सिद्धार्थ के जाते ही माला दो कॉफ़ी के कप पकड़े प्रिया की डेस्क पर आ गयी।।

” प्रिया !! यार देखा तूने क्या हैंडसम बंदा आया है, हाय . ऐसे बंदे आयें तो मैं रोज़ ऑडिट करा लूँ ।”

राहुल- ” सुना है ग्रेड बी क्लियर किया है उसने ,वो भी एक बार में।।सही है बॉस . भगवान जिसे देतें हैं छप्पर फाड़ के देतें हैं ।”

माला- ” सही है . क्रीम जॉब है,फुल ऐश!! बंदा शकल से ही पैदाईशी ब्रिलीयन्ट दिख रहा,स्कूल कॉलेज टॉपर टाईप,है ना प्रिया ।।

माला की बात सुन प्रिया को ज़ोर की हँसी आ गयी,वो
कैसे मुहँफट होकर राज को गधा बोल देती थी ,और आज देखो उसके ही ऊपर पहुंच गया।।

माला– नाम क्या था राहुल ,उस बंदे का?? और है कहाँ का??

‘राजकुमार ‘ बोलते बोलते प्रिया चुप रह गयी

राहुल- तुझे बड़ी माख लगी है पता करने की,,शादी करने का विचार है क्या??

माला– और क्या ? ऐसा सही प्रपोसल मिले तो क्यों ना शादी कर लूँ,तेरे जैसे बन्दर से तो फार बेटर है।

राहुल- आर के बोल रहे थे सब के सब ,हम तो भाई आर. बी.आई. वालों को सर ही बोलतें हैं,क्या पता कल को आठ दस साल बाद ये गवर्नर बन जायें और इनके दस्तखत वाले नोट से हम अपना राशन खरीदें ।
माला– हम्म पर जो भी हो,बंदा तो दिल ले गया मेरा, चल यार प्रिया अब घर चलें,आज तो थकान भी बड़ी मीठी सी लग रही।।

सब के सब हँसते हुए घर को निकल पड़े ।।

प्रिया बाथरूम से हाथ मुहँ धो कर निकली तब तक में ,

माला चाय बना कर ले आयी और रेडियो ट्यून करने लगी__

मन ये साहेब जी, जाणे हैं सब जी
फिर भी बनाए . बहाने
नैना नवाब जी, देखें हैं सब जी
फिर भी न समझे . इशारे

मन ये साहेब जी, हाँ करता बहाने
नैना नवाब जी, न समझे इशारे
धीरे-धीरे नैनों को धीरे-धीरे
जीया को धीरे-धीरे
भायो रे साएबों

धीरे धीरे कहाँ वो तो बहुत तेज़ी और मजबूती से हृदय में अपना आसन जमाये बैठा है .
प्रिया एक बार फिर सोच मे पड़ गयी__ इतना लम्बा समय तो नही बीत गया था फिर ये कैसा संकोच दोनो के बीच पसर गया था।
“चलो मैं तो लड़की हूँ,लड़कियाँ स्वभाव से ही संकोची होती हैं,पर वो तो आगे बढ कर बात कर सकता था,पूछ सकता था__ कैसी हो प्रिया ?
पर उसने भी कहाँ ज़रूरत समझी हालचाल पूछने की,अरे इतने साल कहाँ रही,कैसे रही,कुछ जानने का मन नही किया??
कैसे बना रहा जैसे कोई जान पहचान नही ,सारा वक्त बस फाइल्स और बैंक की ही बातें करता रहा, जैसे बहुत ही गम्भीर हो अपने काम के लिये, क्या मै नही जानती,एक एक ,
रग से वाकिफ हूँ,और मेरे सामने ही इतना दिखावा!!”

दिखावे वाली बात सोच प्रिया को खुद पर ही हँसी आ गयी__ कहाँ किया उसने दिखावा?? कोई दिखावा बनावटीपन ना उसे पहले कभी छू पाया था ना अभी!! वो तो बिल्कुल सामान्य बना हुआ था, ना उसे प्रिया से कोई शिकवा था ना शिकायत!!
और शायद इसी बात से प्रिया ज्यादा परेशान हो उठी थी।।
अगर कभी भी दोनो के बीच प्रेम था तो उसे वापस मिलने के बाद शिकायत करनी चाहिये थी ना, पूछना चाहिये था मुझे अकेला छोड़ कर कहाँ चली गयी थी प्रिया पर नही वो तो बिल्कुल तटस्थ बना हुआ था,ऐसे मुस्कुरा रहा था जैसे असल में उसे अब कोई फर्क ही नही पड़ता प्रिया रहे या ना रहे।।
पर जब फर्क ही नही पड़ता तो ऐसे घूर घूर के देख क्यों रहा था।।

माला- मैडम जी कहाँ खोयी हुई हो . इतनी देर से देख रही हूं बाई गॉड,खुद से बातें कर रही हो, क्या हो गया भई ,,सिद्धार्थ की याद सता रही क्या??

माला प्रिया को देख ज़ोर से हंसने लगी

माला– नही नही अच्छा है,लगे रहो!! बेटा शादी तो करनी ही है एक दिन,और बॉस अगर आप पे फिदा है तो इससे अच्छा तो कोई ऑप्शन हो ही नही सकता ।।।

,

प्रिया- चुप करो यार!! ऐसा कुछ नही है,हम तो कुछ और सोच रहे थे .

माला — अब तो लग रहा जैसे इस आर.के. के चक्कर में मुझे भी तेरे जैसे सोचने की आदत पड़ जायेगी।।
क्या महक रहा था यार बंदा ,जाने कौन सा पर्फ्यूम लगाया था उसने।

प्रिया– डेविडॉफ

माला– क्या?? क्या कहा तूने,,तुझे कैसे पता??

प्रिया– हमें कैसे पता होगा,तुम खुद ही सोचो . अरे यार हमने तो ऐसे ही मजाक मे कह दिया,और तुम सीरियस होकर बैठ गयी।।

माला– हम्म सही कहा ,पर यार राहुल कह रहा था बंदा तेरे ही शहर का है . यार इसी बहाने बात करवा दे मेरी ,कुछ तू अपने शहर की बात पूछ लियो और उसी बहाने मैं उसे ताड़ लूंगी।।

प्रिया मुस्कुरा कर रसोई में चली गयी__” पुलाव बनाने जा रही हूँ,चलेगा ना।”

माला- दौड़ेगा मेरी जान!! तेरे हाथ के मटर पुलाव पर तो ‘ मैं वारी जावाँ,’।।

,

अगले दिन सुबह से ही बैंक में अफरा तफरी मची थी, सभी टीम मेंबर्स बहुत गम्भीरता से हर एक फाइल का मुआयना कर रहे थे।।
टीम के सीनियर तीनो लोग ऑडिट में व्यस्त थे , सभी किसी ना किसी काम को करने में लगे थे बस एक वो ही कहीं नही था।।

चारों तरफ बार बार देखने पर भी प्रिया को राज नज़र नही आ रहा था,पहले उसे लगा शायद सिद्धार्थ की केबिन में होगा इसिलिए एक बार वो बहाने से वहाँ भी हो आयी,पर वहाँ भी नदारद।।
दूसरे ऑफिस रूम में भी नही था,यहाँ तक की हार कर प्रिया एक बार लॉकर रूम भी झांक आयी, आखिर आज गायब कहाँ हो गया??

अपने डेस्क पे वापस आ कर प्रिया ने फाइल खोली ही थी कि उसे अपने पीछे से वही आवाज़ सुनाई दी__ ” हमें ढूँढ रही थी??”

चौंक कर प्रिया ने पीछे देखा,,,राज खड़ा मुस्कुरा रहा था,वो भी मुस्कुरा उठी .

सिद्धार्थ– सर!!आईये आईये ,आप ही का वेट कर रहे थे,,अब तबीयत कैसी है आप की,is, everything ,
alright?”

राज- yeah everything is fine,,चलिये आगे का काम देखा जाये।।

प्रिया पे एक के बाद एक बम फोड़ा जा रहा था, पहले आर.बी.आई. की टीम के हिस्से के रूप मे, फिर ऐसी धुआँधार अन्ग्रेजी बोल के .
कितना बदल गया था वो,,पर मन से आज भी वही कानपुर का अपने मोहल्ले का राज भैय्या ही था
जी में तो आ रहा कि एक बार गले से लग के इतने दिनों के सारे ताने उलाहने माफ कर लिये जाये,पर सामने पड़ने पर तो हाथ भी मिलाने की हिम्मत नही हो रही थी।।

लंच के समय एक बार फिर प्रिया ने सोचा __ “अगर आज सामने की कुर्सी पर बैठा तो बिना किसी लाज शरम के मैं भी आँखे खोल के देखूँगी . कुछ ज्यादा ही फ्रैंक हो रहे हैं जनाब!!

पर हाय रे मन!! जो सब सोच सोच के भावी रूपरेखा तैयार की जाती है ,ज़रूरी नही कि ये मन उस समय आपका साथ दे और आपको सब अपने मन का पूरा करने दे।।
प्रिया का मन खुद हर बार उसे धोखे पे धोखे दिये जा रहा था,बेचारी कुछ सोच के रखती पर राज के सामने पड़ते ही हो कुछ जाता।।
,

एक बार फिर वही हुआ!!,वो बड़ी शान से अपनी टीम के साथ आया और ठीक उसके सामने की कुर्सी खींच बैठा गया . एक बार फिर प्रिया कट के रह गयी,ना उसके बाद वो माला से कोई बात कर पायी और ना ही ढंग से कुछ खा पायी।।

टीम के सदस्यों के खाने की व्यवस्था देख सिद्धार्थ प्रिया की टेबल पे चला आया ,और एकदम उसकी कुर्सी के पास ही खड़ा हो कर उन लोगों को आगे के बारे में कोई जानकारी देने लगा .
सिद्धार्थ पहले भी ऐसा करता था या आज ही कर रहा था पर प्रिया को उसका इतना घुल मिल के बात करना रास नही आ रहा था .

बात करते करते सिद्धार्थ ने प्रिया की प्लेट से एक इडली उठा ली और बड़े मज़े से चटनी लगा कर खाने लगा,पर उसकी इस हरकत पर प्रिया तिलमिला कर रह गयी,मन ही मन प्रार्थना करती हुई कि राज ने ना देखा हो उसने जब राज की तरफ देखा तो वो उसे ही देख रहा था।।
अब इतनी दूर से वो उसे समझाती भी कैसे कि सिद्धार्थ की इस हरकत में प्रिया की कोई जिम्मेदारी नही थी . पता नही आज ही वो क्यों इतना फ्रेंडली हो रहा था।।

प्रिया ने अपने सूखते गले को तर करने पानी पीकर गिलास नीचे रखा और सामने देखा तब तक राज वहाँ से जा चुका था।।

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