Romance शादी का मन्त्र – Buwa ki beti

महिलायें बिना वजह ही बतकही के नाम पे अधिक बदनाम है वर्ना पुरूष भी इधर उधर की गप्पे हाँकने में कहीं से पीछे नही रहते,,दस मिनट में समाप्त होने वाली पूरी कचौरी पूरे डेढ़ घन्टे तक थाली में अपने उदरस्थ होने की प्रतीक्षा करती रही।।

तभी छन छन पायल छनकाती सुशीला वहाँ आयी और थोड़ी दूर से ही आवाज़ लगा दी__

” अजी सुनिये!! अब निकलना भी पड़ेगा,घर पहुँचते पहुँचते रात हो जायेगी,,बो तो अच्छा है फूलमणि को घर छोड़ आये थे तो सांझ का दिया बाती हो जायेगा।।”

” हाँ हाँ!! ठीके कह रही हो,चलो युव की अम्मा,निकलते हैं अब।।”

अबकी बार सुशीला पूरी तैयारी में थी,कौन किस गाड़ी में सवार होगा,कहाँ बैठेगा उसने मन ही मन पूरा खाँचा खींच रखा था,उसने महिलाओं के बीच खड़ी प्रिया और रूपा को ठेल ठाल के युवराज की गाड़ी में बैठा दिया,और खुद प्रिंस प्रेम और एक दो नौकरों को लिये राज की गाड़ी में जा बैठी।।

राज जब शास्त्री जी की चरण वन्दना कर अपनी गाड़ी पे ,
आया तो प्रिया को वहाँ ना पा कर असमंजस में प्रिंस को देखा,प्रिंस ने त्वरित गति से बड़े भैय्या की गाड़ी की ओर इशारा कर दिया, बड़े भैय्या की गाड़ी में प्रिया को बैठे देख राज को आश्चर्य हुआ __ :कि ये वहाँ कैसे चली गयी: पर प्रत्यक्ष में बिना कुछ कहे चुपचाप आकर ड्राईविंग सीट पर बैठ गया।।

उधर अम्मा जी के कड़े तेवर देख बिना ना नुकुर किये प्रिया चुपचाप युवराज भैय्या की गाड़ी में जा बैठी थी,रूपा भाभी से भी कम ही मिलना हुआ था उसका और उसे उनकी स्वप्रशंसा की बातें पसंद भी कम ही आती थी इसीसे मन ही मन उदास प्रिया अपने ही मन के आगे लाचार हुई जा रही थी।।

कैसा द्वंद उसके मन में चल रहा था,दो दिन पहले तक जिस राज से सिर्फ जिम मे एक डेढ़ घन्टे की मुलाकात ही काफी होती थी आज उसके बिना पांच मिनट भी काटना कितना मुश्किल लग रहा था।। उसे पता था कि राज की गाड़ी भी उसके आगे या पीछे ही चलेगी फिर भी कैसा खालीपन सा मन में भर गया था,जैसे बहुत सारे बादल छा तो गये हैं,पर बरस नही रहे . तभी गाड़ी का सामने का दरवाजा खोल राज अन्दर आकर बैठ गया__

” अरे राज तुम यहाँ कैसे?? तुम्हारी गाड़ी कौन चला रहा बाबू??”

” भैय्या वो प्रिंस चला रहा,हमारा हाथ में ज़रा दर्द था तो ,
प्रिंस को चलाने बैठा दिये,बाऊजी को उसी गाड़ी में बैठाए,काहे अम्मा नही तो अकेली हो जाती ,अम्मा बोली भी कि बाऊजी आपकी गाड़ी में बैठेंगे,तो हम बोल दिये हम चले जाते हैं भैय्या के पास,और यहाँ चले आये . अम्मा आवाज़ भी दी ,हम बोले चिंता ना करो अम्मा ,हम दोनो भाई समय से पहुंच जायेंगे घर।।ठीक है ना भैय्या।।”

” ठीके है छुटके ।चलो फिर गाड़ी भगायी जाये।।तुम्हरी भौजाई को अपना मायका गावँ का चाट भी खिलाना है,और उनको यहाँ तालाब पार शिव मन्दिर का दर्शन भी करना है,तो ये सब करते चलते हैं . काहे प्रिया तुमको कोनो जल्दी तो नही है ना?”

” नही भैय्या जी कोई जल्दी नही,,हम मम्मी को फोन करके बता देते हैं ।”

गाड़ी चारों को लिये सरपट कानपुर की ओर दौड़ चली।।

तैनु ले के मैं जावांगा,दिल दे के मै जावांगा
तेरे नाल मैं आवान्गी,ससुराल मैं जावान्गी।।।भाग 10

“अरे ए फूलमनी जा तो ओ रखिया को घीस घास के रख !! राज के बाऊजी भी ,बस काम फैलाना जानते है,इत्ता बड़ा पेठा उठा लाये,अब इसकी बरी तोड़ने के लिये उत्ता सारा उरद भी तो पीसे पड़ी,का का देखें हम,अब हमारा भी उत्ता जी नही चलता।।”

“हो जायेगा अम्मा जी ,सब काम हो जायेगा,काहे इत्ता परेसान हुई जा रही हैं।”

” काहे ना हो !! हम तो अपना किस्मत मे लिखा के लाये हैं परेसान होना,,पन्द्रह के हुए थे कि सादी हो गयी उसके बाद मजाल है ये घर के लोगो की, कि कभी हमको चैन से अपना मायका में चार दिन रुकने दिये हों,जैसी महतारी वैसने लड़का!!
भगवान झूठ ना बुलवाये,,बड़के की जचकी में अम्मा जी भेजी रही तब भी एक महीना नही पूरा की वापिस बुला ली,वही हाल राज के मे रहा,अब का- का बताएं,अच्छा भी नही लगता ,सब सोचेंगे अपनी सास की बुराई गा रही ,पर हम जितना झेले हैं ना कोई ना झेल सकता,,ये आज कल की , Page
लड़कियाँ जरा सा कुछ बोल भर दो इत्ता बड़ा मुहँ फूला लेंगी।”

स्वगत भाषण में आकन्ठ डूबी सुशीला बीच बीच मे कनखियों से देखती भी जाती कि कहीं उसकी अग्निगर्भा बहु रसोई से आंगन में टपक तो नही पड़ी।।

शन्नो मौसी और प्रेमा बुआ का इन सब बतकही में खूब मनोरंजन होता था।।सुशीला की सास जीवित थी और अभी भी अपने सास वाले पूरे रूतबे के साथ मौजुद थी,हालांकि वो पुराने ज़माने की न्यायप्रिय महिला थी फिर भी थी तो सुशीला की सास ही।।
अपने जमाने में उन्होनें ढेरों दुख देखे थे।। छोटी उमर में वैधव्य का दंश और अकेले बच्चों का पालन पोषण वो भी सिर्फ खेती खार के भरोसे उन्होने किया था,इसीसे हर छोटी से छोटी वस्तु पे उनकी अपार ममता थी जो स्वाभाविक भी थी पर सुशीला को यही उनकी कंजूसाई लगा करती थी।

सुशीला ठीक ठाक खाते पीते घर की नौ भाई बहनों में सबसे बड़ी बहन थी,जब ब्याह के आयी तब भले ही उमर से कम परन्तु सीख समझ में चतुर थी,बनाने खिलाने में उसकी अटूट भक्ति थी,कोई मेहमान घर से बिना मीठा खारा लिये निकल नही सकता था,यही यजमानी सास को कष्ट दे देती थी,वो अक्सर बहु को उसके खुले हाथ घर लुटाने की आदत पे खरी खरी सुनाती रहती थी,पर इतने साल बीत गये . कल की नवेली बहु आज खुद सास बन गयी पर अपने खिलाने पिलाने के रुचिकर गुणों को आज भी त्याग ,
नही पायीं ।।

इतने सालों में रुपया पैसा भी जम गया पर सुशीला की सास नही बदली, और ना बदली सुशीला ।।
वो प्रारम्भ से ही अपनी सास की अनुपस्थिती में उन्हें पानी पी पी के कोसा करती थी,वही आदत आज तक उसमें शुमार थी,हालांकि खुद की बहु आने के बाद शुरु शुरु में उसने सोचा भी कि मैं ऐसा करूंगी तो मेरी बहु क्या सीखेगी पर ये विचार बिल्कुल ‘ चार दिन की चान्दनी’ साबित हुआ,और वो वापस अपने ढर्रे पे आ गयी।।

सुशीला के साथ यही होता था,बात कोई भी हो वो घूम फिर के अपने प्रारब्ध को कोसती हुई अपनी सास की बुराई पे उतर आती थी ,और यही सुनना शन्नो मौसी जैसों के लिये अति रुचिकर होता था, ऐसे लोग अपने साथ एक अदृश्य दिया सलाई लेकर बैठते हैं और जब जैसे मौका मिलता है तीली लगाने से पीछे नही हटते।।

शन्नो मौसी की संगत के लिये प्रेमा बुआ भी तैयार बैठी होती थी,प्रेमा राधेश्याम जी की दूर की बहन की बेटी थी,उन्हें भी अपनी मामी की बुराई का रस गुदगुदा जाता था।।

‘ तुमको बुलाऊं के पलकें बिछाऊँ,कदम तुम जहां-जहां रखो,ज़मीन को आस्माँ बनाऊं सितारों से सजाऊँ,अगर तुम कहो . ‘

राज अपनी धुन में गुन गुनाता जा रहा था कि उसकी अम्मा ने आवाज़ लगा दी__
” अरे कुछ काम का भी काम कर लिया कर लल्ला . जब देखो मरे जिम में मूसल बेलन उठा उठा के वर्जिश करता फिरे है।”

” बोलो ना कुछ काम है तो कर के ही जायेंगे।”

” मेरा कोई काम ना है . अब कल रात इत्ती अबेर हो गयी वापस आते आते ,का ज़रूरत सुबह सबेरे उठ के जिम निकलने की।”

” अम्मा तुम भी तो लग गयी हो सुबह सुबह अपने काम में! फिर !! हम भी तुम्हारे ही बेटा हैं ।” हँसता हुआ राज निकल गया और सुशीला वापस अपनी रामकथा में लग गयी।।

2.

दोपहर राज की अम्मा खाना पीना निपटा कर अपने कमरे में ऊन और सलाई लिये बैठी स्वेटर बुन रही थी कि राज पहुंच गया,उसे जितना कठिन प्रिया से बात करना नही लगा था उससे कहीं अधिक कठिन अपनी अम्मा से बात करना लग रहा था . ” अम्मा . क्या कर रही हो।”

” का करेंगें,तुम्हारे लिये स्वेटर बुन रहें हैं,बस पूरा होने को है उसके बाद तुम्हारे बाऊजी के लिये शुरु करेंगे।।”

,

” सारा दिन काम मे लगी रहती हो,थोड़ा तो अपने आपको भी आराम दिया करो,बस घर भर की चिंता में दुबला रही हो।”

” कहाँ से दुबला रहें हैं,अच्छे खासे तो हैं ।” सुशीला को ज़ोर की हँसी आ गयी . अम्मा को हँसते देख राज को भी थोड़ी हिम्मत आ गयी वो आगे बढ अम्मा के पैरों के पास ज़मीन में ही आलथी पालथी मार बैठ गया।।

अम्मा की गोद में सर रखे राज अपनी बात की भूमिका बना रहा था कि सुशीला का चचेरा भाई धर्मेश दौड़ा दौड़ा आया __

” जिज्जी बाबू( पिता जी) को फालिज मार गया है अभी अस्पताल ले जा रहे हैं,जल्दी चलो ।।”

सुशीला हड़बड़ा कर उठ बैठी,और जल्दी जल्दी सीधी उल्टी चप्पल पैरों में डाल धर्मेश के साथ अस्पताल निकल गयी ,जाते जाते राज को ताकीद कर गयी

” राज अपने बाऊजी को फोन लगा दो,और बोलो तुरंत अस्पताल पहुँचे।”

सुशीला के मायके में संयुक्त परिवार था,उसके पिता और चाचा दोनो ही के परिवार एक साथ ही रहा करते थे,बचपन से सब को साथ देखते सुशीला के मन में अपने चचेरे भाई बहनों के लिये भी अपने सगे भाई बहनों सा ही प्रेम अनुराग था,घर ,
में सबसे बड़ी होने के कारण सारे छोटे भाई बहन हर बात में सुशीला जिज्जी की सहमती अवश्य लेते थे।और सुशीला भी पूरे मन से सबके सहयोग को सदा तैयार रहती थी।।

कुछ आठ दस साल पहले सुशीला के पिता का निधन हुआ था इसीसे उसके चाचा ही अब उसके लिये पिता समान थे,चाचा की ऐसी नाज़ुक हालत सुन वो अपने भाई के साथ दौड़ पड़ी,उसके पीछे राज भी भागा।।

वो पूरा दिन दोनो माँ बेटे का अस्पताल में ही बीत गया,आई सी यू में भर्ती सुशीला के चाचा शाम होते तक खतरे से बाहर आ चुके थे . भाई भावज को सारी देखभाल के नुस्खे थमा के सुशीला राज के साथ रात नौ बजते बजते घर पहुंची,,रूपा दोनो का रास्ता देखती भीतर वाले आंगन में बैठी कोई काम निपटा रही थी,जैसे ही सास को आते देखा झट घूंघट सर में खींच उठ कर चली आयी__

” कैसी तबीयत है अब चच्चू नाना की अम्मा जी।”

रूपा भले ही ज़बान की तेज़ और कड़वी थी,पर मन ही मन अपनी सास का सम्मान करती थी,, और राज के लिये तो उसे सच में ममता थी, इसिलिए दोनो को खाने के समय पर घर पहुंचा देख उसे संतुष्टी मिली, वो फौरन दौड़ कर चाय चढ़ा आयी और दोनो के लिये पानी लेती आयी।।

राज तो पानी पीकर अपने कमरे में चला गया पर सुशीला वही बैठी चाय पीते हुए अस्पताल का सब हाल समाचार रूपा ,

को सुनाती रही।।।

रात खाना पीना निपटने के बाद राज एक बार फिर अम्मा के पास चला आया,उसे पता था बाऊजी रात के खाने के बाद चहलकदमी करते चौक के पान वाले तक चले जाते हैं,यही सुयोग उसे अपनी बात रखने के लिये उचित जान पड़ा __

” अम्मा!! सुनो तुमसे कुछ बात करनी थी।”

” हाँ कहो!! क्या हुआ बिटवा??”

” देखो पहले हमारी बात ध्यान से सुनना ,और पूरी बात सुनना ,उसके बाद अपनी राय देना।।”

” हां भई !! पर का बात हो गयी?? वो भी तो बताओ?”

” अम्मा . हमारी दोस्त है ना प्रिया,तुम जानती हो उसे ,पिछली गली वाले तिवारी जी ,उनकी लड़की है।।”

” हाँ !! तो ??”

सुशीला ने चेहरे पर एकदम ऐसे भाव रखे जैसे उसे प्रिया या किसी भी अन्य से कोई फर्क नही पड़ता।।

” अम्मा वो हमारी बहुते अच्छी दोस्त बन गयी है, और . और हम दोनों सोच रहे कि अगर तुम हाँ बोलो तो,,तो .
,

” तो क्या??”सुशीला के कठोर शब्दों ने अचानक से राज में हिम्मत भर दी

” हम प्रिया से शादी कर सकते हैं क्या अम्मा??”

सुशीला के चेहरे का रंग उड़ गया,आखिर इतने दिन से जिस बात का डर सता रहा था वही हुआ . सुशीला इस बात से बेखबर तो नही थी पर एकाएक इतनी जल्दी राज उससे बात करने आ जायेगा ऐसा भी नही सोचा था उसने,सामने सर झुकाये बैठे लाड़ले पर एकदम से ममता उमड़ आयी पर अपने आप को यथासम्भव कठोर कर उसने अपनी बात रखी__

” नही . तुम्हारे बाऊजी कभी नही मानेंगे।”

” अम्मा पहले तुम तो मान जाओ,फिर बाऊजी भी मान जायेंगे।।सुनो ना अम्मा,हम दोनो बहुत अच्छे दोस्त हैं,प्रिया बहुत अच्छी लड़की है अम्मा।”

” राज,अब क्या समझायें तुमको,यही तो करते हैं आजकल के लड़के लड़कियाँ,सब कुछ अपने मन का ।।अब हम का बोलें,जब सोच ही लिये तो जाओ कर आओ तुम दोनो भी किसी मन्दिर में सादी।”

” अम्मा ऐसे ही करना होता तो हम तुमसे काहे बात करते,विश्वास करो अम्मा,हम कुछ भी गलत नही किये,,आज ,
तक हम उसे छुए तक नही।।”

” बहुत अच्छा किये,और छूना भी नही,बेटा तुम्हरी अम्मा है,अच्छे से जानते है हमारा लड़का कभी कोई गलत काम कर ही नही सकता ,पर बस एक बात पूछना चाहते हैं,ऐसा का दिख गया उस लड़की में,इससे कही सुन्दर लडकियों की लाइन लगा देंगे राज,पर इस लड़की को भूल जाओ।”

” काहे ऐसा बोल रही अम्मा,तुम जानती हो तुम्हरी मर्ज़ी के बिना हम कुछ नही करेंगे।”

” उसी हक से बोल रहे बेटा,,समझा दो उसे वो भी अपने घर वालों के हिसाब से कर ले सादी ब्याह और तुम्हें भी करने दे,,कुछ नही रखा ये सब प्यार व्यार के चक्कर में,,एक बार सादी हो जाये फिर सब बराबर हो जाता है।।”

” मान जाओ अम्मा ,,काहे मना कर रही ,आखिर वो भी तो ब्राम्हण है।।

” कहाँ की बाम्हन?? सरजूपारिन है . और हम कनौजिये कान्यकुब्ज ,,बीस बीसंवा है लल्ला हम लोग, ऐसे सरजुपारिन को ब्याह लाएंगे तो पूरा समाज पूछेगा नही कि हमारे “के के” में लड़की नही मिली का।।तुम्हारे बाऊजी किस किस को जवाब देंगे बेटा,इस बुढऊती में काहे उनका पगड़ी उछाल रहे हो।।

” अब आजकल ये सब कौन मानता है अम्मा,हम तो नही ,
मानते।।”

” ना मानो!! हम तो पहले ही कहे रहे कि जाओ कर लो किसी मन्दिर मे सादी।।”

” तुम तो नाराज हो गयी अम्मा,अरे एक बार हमारे लिये उससे मिल तो लो!!”

” मिल तो चुके हैं,दो तीन बार !! हमें तो बिलकुले पसंद नही आयी,ना सकल ना सूरत ,रंग भी साँवला।

” अरे वो तो तुम इतनी ज्यादा गोरी हो ना इसिलिए सब तुम्हारे सामने सांवले ही लगते हैं,,वैसे दिखने में तो ठीक ठाक है अम्मा।।”

” हम अपने राजकुमार की सादी दिखने में बस ठीके ठाक लड़की से काहे करें,इससे तो शन्नो जो रिस्ता बताई रही तुम्हारे लाने वही अच्छा है,और रूपा के बाबूजी भी बताये रहे ,,दुनो लड़की गोरी सुन्दर हैं और तुम्हे पसंद आ रही ये कलूटी।।”

” राज अब हमें कोई बहस बात नही सुननी ना करनी,तुमने पहले ही कहा था कि तुम हम से पूछ कर करोगे,जो भी करोगे तो हम यही कह रहे लल्ला जाओ और उसे समझा दो कि हमारे घर में कोई उसके लिये तैयार नही है, जाओ मना कर दो उसे। जाओ बेटा हम थक गये हैं बहुत,सोने दो अब।।”

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” अम्मा . काहे इत्ता गुस्सा रही हो ,सच में बहुत अच्छी लड़की है प्रिया ।।”

” होगी लल्ला!! पर हमे नही पसंद ।।हम एक बिदेसिनी को अपन बहु ना बनाई, जो समझ आ गयी हमारी बात तो जाओ ,नही पड़े रहो ।।हम सोने जा रहे।।”

सुशीला बिना काम के भी निरर्थक चप्पल पट पट कर बजाती कमरे से बाहर निकल गयी।
कमरे में अकेले बैठे राज का दिल कराह उठा, वो चुपचाप उठा और ऊपर अपने कमरे में चला गया, सीढिय़ां चढ़ रहा था कि रूपा ने आवाज़ लगायी

” लल्ला जी ये दूध लेते जाइये,पी लीजियेगा।”

” हमें नही पीना भाभी।।” बिना रुके राज अपने कमरे में चला गया,पर उसकी आवाज़ सुशीला के कानों तक पहुंच गयी,उसने छिप कर अपने आंचल से अपनी आंखों की कोर पोंछ ली।।

कितनी शालीनता से उसने प्रिया को कहा था_” अगर अम्मा नही मानी तो हम पहले जैसे ही दोस्त बने रहेंगे।”
अम्मा तो नही मानी और क्या अब उसका खुद का दिल वापस प्रिया को सिर्फ दोस्त मानने को कर रहा??
क्या कोई भी ऐसी बात है जो उसके और प्रिया के बीच की जो वो भूल पा रहा है??
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चाहे प्रिया का पूरी तन्मयता से उसे पढाना हो या उसके जिम के सारे लेखे जोखे को सहेजना हो,कहीं भी तो प्रिया ने उसे अकेले नही छोड़ा,अपनी इतनी बुरी आदत डाल दी कि अब यही सोच सोच के कलेजा मुहँ को आ रहा कि यदि प्रिया की कहीं और शादी हो गयी तो वो क्या करेगा??

हर शाम आंखों पर तेरा आंचल लहराए
हर रात यादों की बारात ले आये,
मैं सांस लेता हूँ तेरी खुशबू आती है
इक महका महका सा पैगाम लाती है
मेरे दिल की धड़कन भी तेरे गीत गाती है
पल पल दिल के पास तुम रहती हो।।।

ये गाना कहीं दूर किसी के रेडियो पे बज रहा था जिसे सुन राज को अपनी और प्रिया की प्रथम औपचारिक मुलाकात याद आ गयी,उस दिन भी जिम में यही गाना बज रहा था जब प्रिया निरमा के साथ पहली बार जिम मे आयी थी।।

अपनी पहली मुलाकात याद कर अचानक राज के चेहरे पे मुस्कान आ गयी,कैसे उसे धडाधड़ गधा बुला रही थी . और खुद कितनी गोल मटोल सी थी,अब तो आधी रह गयी प्रिया ।।और अब वो खुद भी कहाँ गधा रह गया।।

एक बार फिर उसे ज़ोर की हँसी आ गयी,अचानक ध्यान आया कि कमरे में अकेले बैठा हँस रहा है,कहीं किसी ने देख लिया तो सोचेगा ,पागल हो गया है लड़का!!
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क्या सभी के साथ ऐसा ही होता होगा ,जैसा उसके साथ हो रहा है।।उसे खुद अपने ऊपर आश्चर्य हो रहा था,आज तक अम्मा की कोई बात कभी ना काटने वाला लड़का आज कैसे अपनी बात पे अड़ा रह गया . वाकई ऐसा क्या जादू किया प्रिया ने कि अम्मा के मना करने के बाद भी वो अम्मा को मनाने की कोशिश करता रहा . पर अब उसके सामने एक और कठिन चुनौती खड़ी थी,प्रिया को मना करने की।।

उसने बहुत सोचा,,,सोचना कभी भी राज का काम नही था!! बचपन से भले ही वो मनमौजी था पर घर पर किसी बड़े की बात उसने कभी नही काटी थी,इसीसे शायद उसकी मन की हर बात सभी मन मे आने से पहले ही पूरी कर जाते थे,अम्मा दादी बाऊजी चाचा जी, पिंकी ,बुआ जी मौसियां ,मामा लोग और इन सब के ऊपर बड़के भैय्या हर कोई उसे बच्चा ही समझते आये थे,जिद क्या होती है राज ने जाना ही नही थी।।आज तक जो मांगा तुरंत ही मिल गया . इसी से आज पहली बार मांगी हुई चीज़ ना मिलने की पीड़ा चेहरे पे छलक आयी।।

प्रिया के साथ समय कैसे पंख लगा कर उड़ जाता था,और बीच में जब उसने जिम आना बन्द कर दिया था,तब तो एक एक पल काटना मुश्किल हो गया था,कैसे कहे कि प्रिया हमें भूल जाओ, हमारे घर वाले नही मानेंगे।।

अपनी सारी हिम्मत जुटा के आखिर राज ने अपना फोन उठाया और प्रिया को लिख भेजा__

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” प्रिया . अम्मा ने मना कर दिया,अभी और कोई बात नही कर पायेंगे ,बस यही कहना चाहतें हैं कि हमें भूल जाओ।।”

” ठीक है” ।। प्रिया का तुरंत ही जवाब आ गया,ऐसा ठंडा और थका सा जवाब देख कर राज ने उसे फ़ोन लगा लिया।।

” क्या हुआ प्रिया ( प्रिया के त्वरित सन्देश से राज की उसे प्रिया पुकारने की हिम्मत नही हुई) कुछ नाराज़ हो गयी क्या??”

” नही,काहे की नाराजगी?? तुमने तो पहले ही कह दिया था कि अगर अम्मा मना करेंगी तो बात आगे नही बढ़ाएँगे।।”

” तो फिर ऐसा रुखा रुखा काहे बोल रहीं।”

” हे भगवान तो अब हम कैसे बोले कैसे बतियाएं ये भी तुमसे पूछना पड़ेगा।।”

” अरे यार!! तुम पूरा लड़ने की तैयारी से ही बैठी हो, हम क्या बोल रहे, तुम क्या समझ रही,,ऐसे ही वाद विवाद होता है,रहने दो हम रखते हैं फोन।

” हाँ रख दो,अब बात भी क्या बची ?? “

दोनों बात कर ही रहे थे कि प्रिया की अम्मा की आवाज़ राज को सुनाई पड़ी,वो प्रिया से खाने को पूछ रही थी जिसे ,
प्रिया ने नकार दिया,ये कह कर की सर मे दर्द है अम्मा आज नही खायेंगे।।

” अब खाना काहे नही खा रही?? ये अच्छा नौटंकी है ,हमसे शादी नही होगी तो जीवन भर नही खाओगी क्या।।”

” नही खायेंगे!! ऐसे ही भूखे मर जायेंगे,तुम्हे इससे क्या??”

” पगला गयी हो क्या?? कोई ऐसे करता है,,??फिर हम अभी तुम्हारे घर आ जायेंगे।”

” आ जाओ ,हम कब मना किये . ले जाओ हमे घर से भगा कर .

” प्रिया कैसी बातें कर रही हो तुम?? जानती हो कि हम कभी ऐसा नही करेंगे,,अपने अम्मा बाऊजी को कभी दुखी नही कर सकते।”

” जानतें हैं राज,सब जानतें हैं हम!! पर हम भी क्या करें,,।।हम भी तो अपने मम्मी पापा को दुखी नही देख सकते,पर तुम्हारे बिना भी तो नही जी सकते,,तुम हमारे लिये चिंता मत करो,ये सब हमारा थोड़ी देर का गुस्सा है,अभी सो जायेंगे सुबह तक ठीक हो जायेंगे।।”

राज का दिल कसमसा के रह गया,उसे उसी वक्त प्रिया से मिलने उसे एक झलक देखने का मन करने लगा__
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” प्रिया !! सुनो तुमसे मिलना है।।”

” कल जिम आयेंगे ना तब मिल लेना।”

” नही अभी मिलना है,तुम्हें देखने का मन कर रहा है।”

” अब तुम पगला गये हो,रात के दस बजे तुमको हमे देखने का मन कर रहा,,हमारे बाहर वाले दरवाजे पे पापा ताला भी डाल दिये हैं,पीछे आंगन वाला दरवाजा भी बन्द हो गया है, घर में सब सो चुके हैं,ऐसे में कैसे आओगे??”

” तुम तो ऐसे मना कर रही कि लग रहा चोरी से बुला रही हो,कि सब सो गये हैं,अब आ जाओ।”

ऐसे बोलते ही राज को हँसी आ गयी ,उसकी हँसी सुन प्रिया भी खिलखिला उठी . दोनो को बातें करते दो घन्टे से ज्यादा बीत चुके थे,,राज का मन प्रिया को देखे बिना मानने को तैयार ही नही था, आखिरकार सबकी नज़रे बचाता राज चोरी छिपे धीमे धीमे कदम बढ़ाता घर से बाहर निकला,अपने घर का ताला खोलते हुए उसे एक बार खटका सा लगा कि दादी जाग गयी,पर वो उसका अन्देशा ही था,,अपनी बुलेट को खींचते हुए गेट से बाहर निकाला और उसपे सवार राज प्रिया के घर उड़ चलामासूम चेहरा नीची निगाहें भोली सी लड़की भोली अदायें
ना अप्सरा है,ना वो परी है,लेकिन ये उसकी जादुगरी है

दीवाना कर दे वो,एक रंग भर दे वो,शरमा के देखे जिधर
घर से निकलते ही कुछ दूर चलते ही रास्ते में है उसका घर।।

मोबाईल पे गाने सुनता राज प्रिया के घर के सामने वाले रास्ते पे पहुंच गया,अपनी रॉयल एनफील्ड से उतर उसके सहारे खड़े होकर उसने प्रिया को मेसेज भेजा__

” आ गये हैं . ,तुम्हारी खिड़की के सामने वाली सड़क पे खड़े हैं ।”

राज ने मेसेज पे नज़र जमाई हुई थी,पहले एक राइट का निशान हुआ,फिर दो हुए और तुरंत ही दोनो निशान नीले हो गये,राज के चेहरे पे एक मुस्कान उभर आयी ,मतलब उसने मेसेज पढ़ लिया,तभी राज के पैर के पास कुछ आ कर गिरा,नीचे देखा तो बालों में लगाने वाला क्लचर था,जिधर से आकर गिरा उधर राज ने सर उठाया तो सामने छत पर प्रिया खड़ी मुस्कुरा रही थी।।

दोनो एक दूसरे को कुछ देर तक देखते रह गये . फिर राज ने इशारे से प्रिया को हाथ हिला के कहा कि वो जा रहा है,प्रिया ने ना में सर हिला दिया।।

राज देख ही रहा था कि प्रिया छत पर से अपने कमरे में चली गयी,राज इधर उधर झांकता रहा,ताकता रहा कि अब आयेगी छत पर,,अपनी आंखे छत पे जमाये राज टकटकी लगाये खड़ा था कि प्रिया उसके सामने आ कर खड़ी हो गयी।।

दोनो एक दूसरे की आंखों में देखते रह गये,,दोनो को ही ऐसा लग रहा था जैसे आज ही पहली बार एक दूजे को देखा है .

. सही कहा है किसी ने, अगर किसी बात के लिये टोका जाये रोका जाये तो दिल ही क्या शरीर का हर हिस्सा उस चीज़ को पाने तरसने लगता है,और ये अनुभव सर्वाधिक होता है प्रेमियों के साथ।।
अगर लैला मजनूँ,हीर राँझा के घर वाले एक बार में ही उनके प्यार को कबूल लेते तो शायद ही ऐसी सफल प्रेम कहानियाँ रची जातीं।।

अम्मा की ना ने दोनो के मन में छिपा रहा सहा संकोच भी समाप्त कर दिया,दोनो को ही समझ आ गया कि एक दूसरे के बिना जीना व्यर्थ है,और अब वो दोनों सिर्फ दोस्त से कहीं आगे निकल चुके हैं ।।

” राज!! ऐसे क्यों देख रहे ,जैसे पहली बार देखा हो।।”

प्रिया की बात पर राज मुस्कुराने लगा।।।

” सुनो !! हम तुम्हें छूना चाहते हैं,तुम्हें छू कर तसल्ली करनी है कि हम सपना नही देख रहे,राज बाबू सच में हमारे घर के सामने खड़े हैं ।

” अच्छा!! सच में ??” और मुस्कुराते हुए राज ने प्रिया को अपनी तरफ खींच कर गले से लगा लिया।।भाग 11
अब तक आपने पढ़ा

” राज!! ऐसे क्यों देख रहे ,जैसे पहली बार देखा हो।।”
प्रिया की बात पर राज मुस्कुराने लगा।।।

” सुनो !! हम तुम्हें छूना चाहते हैं,तुम्हें छू कर तसल्ली करनी है कि हम सपना नही देख रहे,राज बाबू सच में हमारे घर के सामने खड़े हैं ।
” अच्छा!! सच में ??” और मुस्कुराते हुए राज ने प्रिया को
अपनी तरफ खींच कर गले से लगा लिया।।

अब आगे

दोनों एक दूसरे के गले से लगे एक दूसरे में डूबे खड़े थे कि

__

” प्रिया !!इत्ती रात गये यहां का कर रही हो।”

दोनो इस आवाज़ को सुन झटके से अलग हो गये

” पापा आप!! ये . वो राज हैं,हमारे जिम इंस्ट्रक्टर,जिन्हें हम पढाते भी थे।” राज ने लपक के प्रिया के पिता के पैर छूने चाहे,पर उन्होनें हाथ बढ़ा कर उसे रोक दिया__” हाँ ठीक है ठीक है,तुम अभी घर चलो ।”

” हां पापा चल रहे!! ” प्रिया ने आंखों ही में राज से बिदा ली और अपने पापा के पीछे सर झुकाये घर चली गयी।।

राज अपने बालों पे हाथ फेरता रह गया,अपनी बुलेट वापस उसने घर की तरफ मोड़ ली __

पूरे रास्ते मुस्कुराते हुए राज घर पहुँचा ,हालांकि प्रिया के पिता ने उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया था,पर इस बात से डरने की जगह उसे एक सुखद एहसास था कि बताना तो आखिर सभी को है,चाहे किसी ढंग से पता चला पर खुशी की बात है कि प्रिया के घर पे भी पता तो चल ही गया।।

प्रिया के पिता पढ़े लिखे सरकारी मुलाजिम थे, इसीसे उन्हें कितनी भी गम्भीर विषय से जुड़ी बात हो उसपे अनावश्यक हाय तौबा मचाना पसंद नही था,साधारण तबीयत के साधारण पुरूष थे।।

प्रिया से ना उन्होनें कुछ पूछा ना प्रिया ने ही आगे बढ़ कर कोई कैफियत दी,पर अपने धीर गम्भीर पिता की आवाज़ से ही उसने भांप लिया कि उसका यह कार्य पिता को कहीं अन्दर तक कष्ट दे गया है।।

अगले दिन सुबह और दिनों की तरह प्रिया जिम नही गयी,उसे घर पे ही इधर उधर निरर्थक डोलते देख उसकी अम्मा से रहा नही गया__

” का हुआ?? आज जिम नही जाओगी का प्रिया ?”

शर्मिला के सवाल का जवाब प्रिया की जगह उसके पिता ने दिया__

” नही! आज के बाद ये कभी जिम नही जायेगी, वर्मा से बात हुई है,कल लड़के वालों को घर बुला लिया है . सोच रहा हूँ अब इसी साल इसके भी हाथ पीले कर दूँ ।”

प्रिया ने अपनी माँ को देखा और उन्होनें प्रिया को,आंखों ही आंखों में दोनो ने एक दूसरे की पीड़ा पढ़ ली।।

” हुआ क्या?? कुछ बताएंगे भी . ऐसे कैसे तुरंत हाथ पीले कर देंगे।”

” देखो शर्मिला,मेरा यही मानना है कि हर काम अपने समय पर हो जाना चाहिये,चाहे विद्या ग्रहण हो या
पाणिग्रहण!! बहुत पढ लिख ली प्रिया,अब इसका भी ब्याह कर दूँ तो मुझे भी चैन मिले।”

” मर गयी रे,ये जोड़ गठान का दर्द मुआ मेरे परान लेकर ही जायेगा . ” अपने घुटने हाथों से सहलाती बुआ जी ने घर में प्रवेश किया_” ठीके तो कह रहा है मेरा भाई,अब इत्ता सारा तो पढ़ लिख ली है,कौन सा हमें छोकरी को कलेक्टर कमिस्नर बनाना है,अब निबटो इससे भी,उमर हुई जा रही इसकी भी।”

” परनाम करते हैं जिज्जी!! छोटा मुहँ बड़ी बात हो जायेगी,पर अभी बाईस की तो हुई है और अगले हफ्ते इसका बैंक का पेपर भी है,एक बार चुन ली जाये फिर अपने पैर पे खड़ी हो जायेगी फिर निबटाते रहेंगे ब्याह।।”

” हम तुमसे पूछ नही रहे,तुम्हे बता रहे कल शाम को खाने पे बुला लिया है उन लोगों को,तुम अपना सब तैयारी ठीक-ठाक रखना।”

” जी अच्छी बात है!!” शर्मिला ने एक बार प्रिया को देखा और रसोई में वापस चली गयी,प्रिया भी सर झुकाये ऊपर अपने कमरे में चली गयी।।

” सांसों में बड़ी बेकरारी आंखों में कई रतजगे

कभी कही लग जाये दिल तो,कहीं फिर दिल ना लगे
अपना दिल मैं ज़रा थाम लूँ,जादू का मैं इसे नाम दूँ
जादू कर रहा है,असर चुपके चुपके . “

जिम में चलता गाना असल में राज भैया के मन में चल रहा था,रह रह के नज़र दरवाजे पे जा कर अटक रही थी8 Full stopसब आ रहे थे जा रहे थे पर ना उसे आना था ना वो आई।।

आखिर इन्तजार की घडियां पहाड़ बनने लगी और राज ने प्रिया को फ़ोन लगा दिया, पूरी रिंग बजती रही पर फ़ोन नही उठा,अब कल रात की एक एक बात किसी फिल्म की रील की तरह आंखों के सामने से गुजरने लगी।।।

और समझ में आ गया कि प्रिया क्यों नही आयी , उसने फोन क्यों नही उठाया।।राज की मोटी अकल को आखिर समझ आ ही गया की प्रिया के पापा को उन दोनों का यूँ मिलना रास नही आया, अजीब बेचैनी से राज व्याकुल हो उठा,उसने एक बार फिर प्रिया को फोन लगाया,इस बार थोड़ी देर में ही फ़ोन उठा लिया गया।।

” फोन क्यों नही उठा रही थी प्रिया??”

” पापा थोड़ा गुस्से में लग रहे राज,अब हमे जिम आने नही मिलेगा,अगले हफ्ते हमारा पेपर है,पता नही दे पाएँगे या नही?”

दोनो अभी अपनी बातों में लगे थे कि राज की अम्मा किसी से बात करती राज के कमरे तक आ गयी__

” ए राज!! देखो कौन आया है??आओ बेटा बन्टी, तुम राज के कमरे में आराम करो हम तुम्हरा सामान ऊपरे भिजाये दे रहे।”

” जी मौसी जी।”

राज की मौसी का बेटा बन्टी राज का ही हमउम्र था और पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली में रह कर नौकरी कर रहा था,वही अचानक बिना किसी पूर्वसूचना के अपना बैग टाँगे राज के घर टपक पड़ा था।

” तुमसे बाद में बात करते हैं प्रिया अभी मेहमान आ गये हैं,रख रहे फोन।”

राज ने आगे बढ़ कर भाई को गले से लगा लिया__

” का हो गुरू!! एकदम दाढ़ी वाढी बढ़ाए बैठे हो, क्या हो गया ??”

” क्या बताऊँ राज!! ब्रेक अप हो गया यार,दिमाग एकदम खराब हो गया,दिल्ली में मन नही लग रहा था साला,और मम्मी पापा के पास जाता तो शादी शादी रट लगा देते इसिलिए छुट्टी लेके यहाँ आ गया।”

” ब्रेक अप हो गया ,पर काहे,हमारा मतलब कैसे?”

” वो तो मैं बाद में बताऊंगा,पहले तुम बताओ,किससे इतना घुस घुस के बात कर रहे थे,जो मुझे और मासी को देखते ही फोन रख दिया।”

” अरे वो ?? वो कोई नही ,,बस ऐसे ही ,,तुम अपनी कहानी बताओ पहले।”

” अच्छा !! तो हमारी कहानी सुनने के बाद साहब अपनी सुनायेंगे।अबे कुछ नही रखा यार मेरी कहानी में,बस एक लड़की थी ,पसंद आ गयी थी .

” फिर?”

” फिर क्या??फिर भाई ने प्रपोस कर दिया,और किस्मत खराब थी साला ,उसने भी एक बार में हाँ कह दी।।”

” इसमें किस्मत का क्या दोष बन्टी,ये तो अच्छा ही हुआ।”

” खाक अच्छा हुआ . राज कानपुर से बाहर निकल के देखो,लोग कितना फॉरवर्ड हो गये हैं,अच्छा एक बात बताओ क्या पढ़ाई करी है मैनें?”

” तुमने वो क्या कहते हैं .

” हाँ हाँ बताओ बताओ,निसंकोच बोलो बे।”

” बन्टी वो इंजीनियरिंग वाली पढ़ाई . “

” हाँ वही बी टेक किया है मैनें ,एम बी ए करने वाला हूँ,अच्छी खासी नौकरी कर रहा हूँ,है की नही?”

” हाँ भाई सौ टका!!”

” अब इसके बाद सुनो ,,इतना सब करने के बाद भी मैं मैडम को गंवार लगता हूँ,कहती है तुम्हारी प्रनन्सियेशन सही नही है।।”

” क्या ??क्या सही नही है??”

” अबे उच्चारण यार . कहती है बेबी तुम ना सही से बोल नही पाते हो,मैनें कहा यार सेक्रेड हार्ट इंग्लिश मीडियम स्कूल से पढ़ा हूँ,कहती है_ होगा पर तुम्हारा एक्सेन्ट सही नही है,तुम ना ब्रिटिश इंग्लिश नही बोल पाते . हिन्दुस्तानी हूँ यार अपनी इंग्लिश बोलूंगा ना भाई।।अब मैं तुझे शुरु से अपनी कहानी सुनाता हूँ ।”

” तो अभी तक क्या सुना रहे थे गुरू!!”

” दिमाग ना खराब कर भाई का यार,वर्ना नही सुनाऊंगा।”

” मजाक कर रहे थे भाई ,तुम सुनाओ यार अपनी राम
कहानी।”

“जानते हो ,पहली बार कहाँ मिला उससे,,अरे वहीं यार . आजकल का प्रेम तीर्थ !! आज कल वही एक जगह है जहां रोज़ हजारों प्रेम कहानियाँ सुबह शुरु होती हैं और शाम होते होते खतम!! मेरी तो फिर भी तीन महीना चल गयी .

” अबे ऐसी कौन जगह है दिल्ली में??”

“अबे दिल्ली नही ,,,,फेसबुक पे!! बन्दी ने ऐसी ऐसी खूबसूरत फोटो डाल रखी थी कि बस पूछ मत भाई . भाई बहक गया,,मैनें फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी उसने मान ली ,,गप्पे शप्पे शुरु हो गयी . अब तो बन्दी रोज़ नया प्रोफाइल पिक लगाये ,कभी लेफ्ट से कभी राईट से ,कभी सामने से,ऊपर से ,नीचे से . मतलब ये की फोटो देख देख के ही मैनें तो यार बच्चों के नाम तक सोच लिये,फिर एक दिन धीरे से प्रपोज़ भी कर दिया,उसने झट मान भी लिया,फिर मैनें मिलने को बुलाया,तब नखरे चालू हुए।।फिर भी आखिर मान गयी . अच्छा उसके ऊपर भी पहली डेट कैसी होनी चाहिये पर भी घुमा फिरा के खूब क्लास ले ली मेरी,कहती है __ ‘मेरी हर फ्रेंड को उसके बी एफ ने पहली मुलाकात में कोई ना कोई गिफ्ट दिया है,जैसे टॉमी हाईफ्लायर की वॉच या रिंग..लायक दैट यू नो!!’ अब मैं इतना भी नासमझ नही हूँ यार एक सोने की अँगूठी खरीद के ले गया।”

” फिर क्या हुआ??”

” फिर क्या ,जब मैं वहाँ पहुँचा और उसकी शकल देखी . कसम से भाई ,दिल का दौरा आते आते बचा,,भगवान बेड़ा गर्क करे इन चीनियों का ऐसे ऐसे फोन बनाये है ना,ओपो-विवो कि साला इस मोबाईल से अपनी ही फोटो खींच के बंदा ना पहचान पाये,जन्मजात कोयला भी इनमें फिरंगी लगे।। खैर मैनें अपना दिल सम्भाला और जाकर बैठ गया,अब उसके आत्मविश्वास की इन्तेहा देखो,पूछती है__ कैसी लग रही हूँ मैं? मैनें कहा_ तुम हूर हो परी हो, इस दिल्ली की नही लगती,शिमला मसूरी हो। मेरे इस भद्दे जोक पे भी हंसने लगी ,कहती है _ शुक्रिया !! खैर अँगूठी ले आया था तो मैनें निकाल लिया देने के लिये, कहती है __ omg ridiculous! तुम गोल्ड रिंग लाये हो ,मैं तो सिर्फ diamonds पहनती हूँ,,फिर सोच क्या हुआ।।”

” ब्रेकअप??”

” नही यार!! इतना झल्ला भी नही है तेरा भाई ,, बहुत सबर है भाई में . दिल में तो आवाज़ उठी कि जाहिल औरत किसी भी एंगल से तू डायमन्ड के लायक नही लगती पर ऊपर से मैनें कहा__ चलो बेबी शॉपिंग चलतें हैं,ले लेना अपनी पसंद का कुछ!!
अब भाई मैं तो उसे ‘ शाह जी’ ,’ अनोपचंद तिलोकचंद’ टिकाने वाला था,कम्बख्त ‘ गीतांजली’ ले गयी यार . पूरे बहत्तर हज़ार खरचे तब जाके मैडम के चेहरे पे स्माइल आयी।।
फिर पूरा दिन घुमाती रही ,कभी यहाँ कभी वहाँ, शाम को
जब उसे घर छोड़ने गया,तो मैने बाय बाय के साथ सोचा एक छोटी सी किस ले लूं,कहती है __ नो बेबी !! ये सब शादी के बाद!! मैनें कहा हमारे यहाँ भी गहने शादी में ही चढाये जाते हैं ।।पर मेरा ये खून्खार जोक भी उस नामुराद के पल्ले ना पड़ा ।।
फिर तो बस सिलसिला ही चल निकला,हर वीकएंड पे शॉपिंग मूवी डिनर!! अब यार इतना भी नही कमा रहा था तेरा भाई .

” तो इस बात पे ब्रेकअप हुआ।”

” अबे नही यार!! इतना सब कर के देने के बाद मैडम को ये समझ आया की मैं केयरलेस हूँ मैं उससे रीलेटेड महत्वपूर्ण तारीखें भूल जाता हूँ,जैसे उसके कुत्ते का जन्मदिन, उसकी फुफी की शादी की सालगिरह,हम पहली बार कब एफ बी पे दोस्त बने, इसी तरह के कई बिल्कुल ही भुला देने योग्य तारीखों को कैसे कोई याद रखे।।कहने लगी_ ” तुम मुझसे सच्चा प्यार नही करते,तुम बस मेरी खूबसूरती से प्यार करते हो।।” माँ कसम भाई कलेजा मुहँ को आ गया,जी मे आया चिल्ला चिल्ला के कहूं __ कम्बख्त किसी अच्छे आंखों के डॉक्टर से इलाज करा अपना।।पर मैं फिर ज़ब्त कर गया।।फिर उसकी लाईफ मे आ गया एक एन आर आई बंदा!! बिल्कुल फिल्मी स्टाइल में!! उसके पापा के दोस्त का लड़का !! और भाई विदेशियों ने सदियों हम हिन्दुसतानीयों पे राज किया ही है,वही हुआ ।।मैडम भी उड़ गयी सात समंदर पार,और तेरा भाई पी पिला के गम गलत करने लगा।।”

” अरे दारु की लत लगा ली तुमने गुरू।”

” अबे दारु की लत लगाये मेरे दुश्मन।।दारु तो बेटा ऐसा है कि भाई के खून में घुली है,इन्जीनियरिंग फर्स्ट ईयर में रैगिंग में कमीने सीनियर्स ने जब पहली बार पिलायी,हमने फुल एक्टींग करी जैसे हमे बिल्कुल नही जन्ची ।।उन्होनें और पिलायी,हमने भी खूब ढकोल के पिया,,तो दारु तो अब ऐसा है कि चढ़नी ही बन्द हो गयी बे।।हम तो चाय पीने पिलाने की लत की बात कर रहे थे।।
तो बेटा इस तरह हमारी प्रेम कथा शुरु हुई और अपने अंजाम तक पहुंच भी गयी अब तुम बताओ,ये तुम्हारा क्या चक्कर चल रहा है।”

” क्या बताएँ बन्टी,हमारा ऐसा कुछ चलने लायक चल ही नही रहा!! एक लड़की है प्रिया!! पहले हमारी दोस्त बनी, धीरे धीरे अच्छी लगने लगी . अब तो यार आदत सी पड़ गयी है उसकी,पर हमने पहले ही उसे कह दिया कि अम्मा से पूछ कर ही आगे कदम बढ़ाना है।”

” तो मान गयी मासी जी।”

” अबे कहाँ यार!! अम्मा तो अलगे राग छेड़े बैठी हैं सरजूपारी है तो ब्याह नही हो सकता।।”

” अरे तो सरजूपारी भी तो ब्राम्हण ही है,यहाँ तो हमारे पिता श्री ने हमारा नाम ही अजीब रख दिया __ ‘ रविवर्मा’
इसिलिए बन्टी नाम चलाते हैं ।।कोई बहुत फेमस पेंटर बाबू थे रवि वर्मा साहब!! तुम्हारे कला पारखी मौसा जी यानी मेरे पिताजी को और कोई नाम नही मिला . पहले पहले तो मुझे कॉलेज में सब वर्मा समझते थे फिर जब पूरा नाम बताया तो खासा मजाक भी बन गया__ रविवर्मा उपाध्याय .
हां तो बेटा आगे क्या हुआ?”

” क्या होना था? कुच्छो नही हुआ,ना हो पायेगा,,हम सोच रहे अम्मा के एकदम पैर पकड़ लेते हैं,क्या बोलते हो तुम?”

” क्यों लड़की वाले तैयार बैठे हैं क्या?”

” अबे कहाँ यार!! पहले अम्मा तो तैयार हो जायें ।”

” और अम्मा के तैयार होने के बाद कहीं लड़की वाले मुकर गये तब,क्या करोगे।”

” ये तो सोचे ही नही भाई”

” हमारी मानो तो एक बार लड़की के घर वालों से मिल आओ!! अपने मन की बात बता दो उन्हें,,फिर वो लोग मां गये तो अम्मा तो यार मान ही जायेंगी, आ**त्या की धमकी चमकी दे डालना और क्या।”

” हम्म!! तो मतलब हम पहले प्रिया के घर वालों से मिल लें और बात कर लें ।”

” बिल्कुल!! और किसी तरह जुगत लगा के दोनो घर की औरतों की मीटिंग करा दो,किसी मन्दिर में!! घर की औरतें तैयार हो जायें ना तो आदमियों को मानना ही पड़ता है बंधु ।”

” बात तो पते की बोले हो बन्टी भाई ,तो फिर निकलते हैं हम प्रिया के घर के लिये,तुम अपनी तलब मिटाओ चाय पीकर!!”

” अबे रुको यार!! बड़ी हडबडी में हो क्या बात है?? चाय पीकर मैं भी चले चलता हूँ,,देखूँ तो ज़रा कौन सी प्रिया बजा रहे हो तुम।”

मेरी हर मन मानी बस तुम, तक बातें बचकानी बस तुम तक
मेरी नज़र दीवानी बस तुम तक
तुम तक तुम तक।।

दोनो भाई चाय खतम कर प्रिया के घर की ओर निकल चले।।

” क्या बात है राज . तुम तो बेटा सच में प्यार में पड़ गये हो जभी रान्झणा के गाने सुन रहे हो।”

” क्यों ज़रूरी है प्यार में पड़ने पर रान्झणा के गाने ही सुने जाये।।”

” नही बिल्कुल नही!! मैं तो ब्रेकअप के बाद ‘ लम्बी जुदाई’ सुनने लगा तो एक दोस्त ने कहा ,कौन से जमाने में जी रहे हो यार,मैने कही क्यों__ तो कहता है आजकल लड़कियाँ ब्रेकअप के बाद दिल पे पत्थर रख के मुहँ पे मेक’प कर लेती हैं,और तुम्हारा बावरा मन जाने क्या चाह रहा,सम्भालो यार खुद को।मैनें संभाल लिया और तबसे जस्टिन बीबर सुनने लगा।।”

” वो क्या गाता है गुरू??”

” पता नही भाई!! मैं तो फैशन के मारे सुनता हूं, लोगो को भले गाने का एक शब्द ना समझ आये पर बनेंगे ऐसे जैसे बहुत बड़े अन्ग्रेजी संगीत के ज्ञाता हो, आस पास इम्प्रेशन मारने एक आध गाना पता होना चाहिये ना।”

कुछ देर पहले अपने दिल से दुखी राज के मन का कुहासा बन्टी की बातों से छन्ट गया,अपनी पूरी ऊर्जा के साथ वो गाड़ी भगाता अगले ही पल प्रिया के दरवाजे खड़ा था।।

दरवाजे को शर्मिला ने खोला,और पूरे आदर के साथ दोनो लड़कों को अन्दर बिठाया।।।

अपने पापा के ऑफिस निकलते ही माँ बेटी में सारी बातें
हो चुकी थी,प्रिया ने पापा की नाराजगी का कारण माँ को बता ही दिया था,शर्मिला को वैसे भी पहले से ही राज पसंद था पर पति की खिलाफत करने की उस भारतीय नारी ने आज तक।कल्पना भी नही की थी,इसीसे अपनी सोच में गुम शर्मिला ने प्रिया को आवाज़ लगाई।।
इस वक्त पे माँ और बेटी दोनो यही चाहती थी की कोई भी बाहरी व्यक्ति ना आये और वो लोग राज के साथ बैठ कर आगे क्या करना है कैसे करना है कि रूपरेखा पर चर्चा कर सकें . पर भगवान को भी कभी कभी अपने प्रियजनों से हँसी मजाक करने का मन करता है इसिलिए वो बुआ जी जैसे लोगों की सृष्टि करतें हैं ।।

प्रिया अपने कमरे से उतर कर आयी ही थी कि दरवाजे को भड़भड़ाती बुआ जी का आगमन हुआ।।

” अरे कौन मेहमान बैठे हैं परमिला?”

बुआ जी का अक्समात आगमन सभी को चकित कर गया।।

“राधेश्याम जी गैस वाले हैं ना,, उन्ही के लड़कें हैं जिज्जी राजकुमार!! “

” हाँ हाँ!! मिले रहे उस दिन !! याद आ गया । औ बेटा कहो कैसन आना हुआ,सब कुसल मंगल घर में,कभी ऐसने अपन अम्मा को भी ले के आओ, शर्मान का भी चरन धूलि पड़े घर मा, ये कौन लड़का है जो साथ मे बैठा है।।”

” प्रणाम बुआ जी,ये हमारे भाई हैं मौसी के लड़के _ रविवर्मा नाम है।”

” हैं,तुम्हरी मौसी का सादी(शादी) वर्मा में हुआ रहा का,कायस्थों को ब्याह दिये लड़की।”

” नही नही बुआ जी इनका नाम ही रविवर्मा है सरनेम उपाध्याय लिखते हैं ।”

” तो बेटा तुम ऐसा उजबक नाम काहे रक्खे।”

” बुआ जी अब क्या बताएँ,ऐसे ही उटपटांग शौक हैं हमारे।”

बुआ जी ने बहुत ही बुरा सा मुहँ बना के मुहँ फेर लिया __” परमिला चाय वाय पिलाओगी कि खुदै आके बना लें।।”
वापस मुहँ घुमा के बन्टी से पूछा__” पढ़ते लिखते भी हो कुछ??”

” जी दिल्ली में नौकरी करते हैं ।”

नौकरी की बात सुनते ही बुआ जी की आंखों में चमक आ गयी,उन्हें प्रिया के लिये घर बैठे चमचमाता रिश्ता दिखने लगा।।
” अरे वाह बचुआ!! कितना नोट कमा लेते हो ।।”

” बस बुआ जी आपके आशीर्वाद से अस्सी हज़ार महीना
बना लेते हैं ।”

बन्टी भी बुआ जी की गिद्ध दृष्टी को ताड़ चुका था इसिलिए वो भी मज़े लेने लगा

” और कौन कौन है घर में,मतलब भाई बहन ,दादी चाचा??”

” बस हम ,मम्मी और पापा!! इकलौते हैं ।।”

बुआ जी के चेहरे पे बिल्कुल ऐसे भाव थे जैसे कई दिनो से खिचड़ी का पथ्य सेवन करते पीलिया के रोगी के सामने छप्पन व्यंजनों से सजी थाल परोस दी गयी हो।।हर एंगल से देखने पर भी इस सजीले नौजवान मे उन्हें कोई कमी नज़र नही आयी।।

वो अभी अपनी बात आगे बढ़ाती कि राज ने अपनी बात कहनी शुरु की__

” बुआ जी ,हमें जादा घुमा फिरा के कहने की आदत तो है नही,हम साफ साफ ही कहेंगे।”

अभी तो बस मन में आया था कि इस दिल्ली वाले से बात चलाऊँ और ये राज समझ भी गया,जो दहेज की बात शुरु कर रहा,बुआ जी ऐसा सोच ही रही थी कि राज ने विस्फोट कर दिया__

” हम प्रिया से शादी करना चाहते हैं ।”

शर्मिला और प्रिया चुप बैठे रहे पर बुआ जी पर जैसे बिजली सी गिरी

” हैं!! क्या करना चाहते हो??”

” शादी करना चाहतें हैं प्रिया से।”

बुआ जी कभी राज को कभी प्रिया को देखने लगी, उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास ही नही आ रहा था,जिस छोरी को उसके सांवले रंग के लिये आज तक वो माफ नही कर पाई थी आज उसके लिये साक्षात रामरतन पंचाग के श्री राम की छवि सा सुन्दर लड़का बाहें पसारे खड़ा था।
बोलो इसे कहतें है किस्मत!! है क्या इस छोकरी मे,भले ही अपने सगे भाई की बेटी है पर ना रूप ना रंग,पर इसे ही किस्मत कहते हैं ।।
बुआ जी को अपने रूप रंग पे इस बुढऊती आने तक भी नाज़ था,उनके अनुसार उनकी शादी किसी कलेक्टर से होनी थी ,वो तो कंजूस भाई ने दहेज बचाने को ऐसी सुन्दर गुलाब की कलि को एक अदना से क्लर्क से ब्याह दिया।।
अपने सारे भावों को समेट कर उन्होनें राज से पूछा __” काहे राज बाबू तुम्हरे घर सब तैयार है का?

” नही अभी तो नही,पर हो जायेंगे।।”

” पर बेटा तुम ठहरे कान्यकुब्ज,हम सरजूपारी !! बडी
मुस्किल आयेगी।।

बुआ जी की बात पर बन्टी उचक पड़ा __” बुआ जी मुश्किल सलटाने के लिये आप हैं ना,,देखिए बुआ जी,अब आपको ही तारणहार बन कर इन दोनो की नैया को पार लगाना पड़ेगा,,चाहे जो हो जाये।”

” हम !! हम ठहरे अनपढ़ ,तुम पढ़ो लिखो के बीच हम का बोलेंगे बेटा ।।”

” अरे बुआ जी खुद को कम ना समझिये . आप जितनी सुन्दर है उससे कहीं ज्यादा आप सुलझी हुई और समझदार लगती हैं हमे।।

” कह तो ठीके रहे हो बेटा पर प्रिया का बाप भी कम ज़ीद्दी नही है,बचपन से अपने छोटे होने का फायदा उठाता रहा है,और आज तक उठा रहा है,एक बार उसने कह दी फिर कोई उसकी बात नही काट सकता।।”

” वो बाद में निबटाएंगे बुआजी,पहले ऐसा किजीये ना एक बार आप और आंटी जी चल कर राज की अम्मा यानी हमारी मौसी से मिल लेते,देखिए शादी ब्याह तो असल में घर की औरतों को ही तय करना होता है,,है ना . जब घर में दामाद आता है सेवा जतन कौन करता है सास . बहू जब ससुराल जाती है,किसके साथ सबसे अधिक समय बिताती है,सास के साथ ना!! दोनों तरफ ही औरतों को ही सब बखेड़ा देखना समझना है तो सही यही रहेगा की एक बार आप लोग आपस
में मिल लो,, फिर यदि आप लोगों को सही ना लगे तो ना करना दोनो का ब्याह।।

” ठीक है बेटा तो यहाँ लेते आओ अपनी मौसी को भी।”

” नही बुआ जी घर पर नही,,कल घाट वाले शिव मन्दिर पर आप दोनों आ जाईये प्रिया को लेकर, हम दोनों आ जायेंगे मौसी जी को लेकर।।पूरी बात वहीं तय कर लेंगे,,एक बार आप लोगों का मन मिल जाये,फिर तो जय शिव शंभू!!भोलेनाथ चाहेंगे तो भाई की बारात मे नागिन डांस करने के बाद ही अब दिल्ली जाऊँगा।।”

बन्टी की बात पर सभी खिलखिला उठे . शर्मिला हँसते हुए मिठाई लेने अन्दर चली गयी और राज और बन्टी वापस जाने उठ खड़े हुए।।

प्रिया दोनों को दरवाजे तक छोड़ने आयी।।मुस्कुराती हुई दरवाजे को पकड़ी खड़ी प्रिया को देख राज ने पूछा __

” क्या हो गया!! बहुत मुस्कुरा रही हो।”

” हम्म बना दिया ना अपने जैसा,कहाँ हम सोचते थे तुम्हें पढना लिखना सीखा देंगे उल्टा तुमने ही हमे हमारी पढ़ाई से दूर कर दिया।।”

” ऐसे काहे बोल रही हो,हमने कब मना किया पढ़ने से।।”

” जब दिमाग से बाहर जाओगे तब तो पढ़ पायेंगे, अगले हफ्ते पेपर है हमारा,सेलेक्शन हो गया तो एक महीना ट्रेनिंग करने बाहर चले जायेंगे यहाँ से।”

” ओह हो एक मिनट ,ये नया पेंच क्या है भाई!! प्रिया नौकरी भी करने की सोच रही हो क्या!! लगता है राज ने तुम्हें बताया नही,मैं बता देता हूँ,हमारी मौसी जी औरतों की नौकरी के तो सख्त खिलाफ हैं,तो कल जब मन्दिर आना अपनी पढ़ाई नौकरी पेपर इत्यादी से सम्बंधित कोई चर्चा वहाँ ना करना,वर्ना बनती बात बिगड़ जायेगी।।
यार देखो !! तुम लोग ना धीरे धीरे घर में विस्फोट करो,ऐसा ना कर देना कि सब घनघोर विरोधी हो जायें तुम्हारे।”

” अच्छी बात है रविवर्मा जी,हम कल कुछ नही कहेंगे।।” प्रिया और राज फिर मुस्कुराने लगे।

” बना लो बेटा!! मेरे नाम का तुम भी मजाक बना लो, पर यही नाम तुम दोनो के शादी के कार्ड मे शुभाकांक्षी में छपने वाला है,समझे।।”

” समझ गये गुरदेव,चलें अब।।

मैं ना मांगूंगा धूप धीमी धीमी .
मैं ना मांगू चाँदनी
मेरे जीने में तुझसे हो इश्क दी चाशनी।।

दोनों भाई गाड़ी में गाने को ट्यून करते हँसते मुस्कुराते घर की ओर चल पड़े ।

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