राजमाता दामिनीदेवी – kambikuttan stories

रात को बिस्तर पर नंगी पड़ी राजमाता शक्तिसिंह के जिस्म से लिपट कर अभी अभी खतम हुए संभोग की थकान उतार रही थी। राजमाता की बाहों मे लिपटा शक्तिसिंह उनकी भारी भरकम चूचियों की निप्पल को बच्चे की तरह चूस रहा था। उसका आधा मुरझाया लंड राजमाता के हाथों में था।

“क्यों रे.. जंगल में गुलछर्रे उड़ाने जा रहा है और मुझे बताया भी नहीं तूने?” शरारती आवाज में राजमाता ने कहा

सुनकर शक्तिसिंह चोंक गया… उसके मुंह से राजमाता की निप्पल छूट गई।

“जी में तो वहाँ महाराज के सुरक्षा दस्ते का नेतृत्व करने जा रहा हूँ…”

“किसकी सुरक्षा? महाराज की या महारानी की?” चुतकी लेते हुए राजमाता ने कहा

“महारानी शिकार पर? आपको कुछ गलतफहमी हुई है” निर्दोष शक्तिसिंह ने कहा

“हाँ… तेरी चाहिती महारानी भी आने वाली है… पर कोई खयाली पुलाव मत पकाना… तुम दोनों पर नजर रखने के लिए में भी वहाँ मौजूद रहूँगी”

“राजमाता जी, आप भी मेरा मज़ाक बना रही है। अब तो वह मेरे बीज से गर्भवती भी बन चुकी हूँ… में कहाँ उनके करीब जाने वाला था!!”

“हम्म… तू दूर ही रहना उससे… चाहे वह कितना भी फुदक ले… और तेरा जब भी मन करे तब में तो तेरे साथ ही रहूँगी” मुसकुराते हुए राजमाता ने कहा

“राजमाता जी, पिछली यात्रा की बात और थी, इस बार तो महाराज भी साथ होंगे… ऐसी सूरत में हमे ऐसा जोखिम नहीं उठाना चाहिए”

“उसकी चिंता तू मत कर… वैसे भी रात में महाराज शराब के नशे में धुत होकर किसी दासी की चुत में मुह डाले पड़े होंगे… हमे कोई दिक्कत नहीं होगी”

“जैसा आप ठीक समझे… ” शक्तिसिंह ने हार मान ली

कुछ दिनों बाद सूरजगढ़ से महाराजा का शाही दस्ता शिकार के लिए निकला… पूरा अश्व-दल और हस्ति(हाथी) दल उनके साथ था। सैनिकों को पूरी पलटन शक्तिसिंह के नेतृत्व में सवारी के आगे चल रही थी। पीछे एक सुशोभीत हाथी पर महाराज बैठे थे। उनकी स्त्री सैनिक चन्दा हाथ में भाला लिए हाथी की बगल में चल रही थी। बीच की बग्गीयों में राजमाता दामिनीदेवी और महारानी पद्मिनी बिराजमान थे। सेवक, दासियों और बावर्चियों का दल, घोड़े पर सुख सुविधा के सारे साधन लादकर पीछे चल रहा था। इस शाही जुलूस को देखने के लिए प्रजागण इकठ्ठा हो गए थे। इस शानदार सवारी ने सूरजगढ़ से निकालकर जंगल की तरफ जाती सड़क का रुख किया। kambikuttan stories

प्रातः सात बजे निकली सवारी, अपने गंतव्य स्थान पर १२ बजे के करीब पहुँच गए। घनघोर जंगल के बीच बह रही नदी के किनारे पेड़ों की छाँव में छावनी की स्थापना की गई। थोड़े थोड़े अंतर पर सेवकों ने तंबू लगा दिए। बावर्चियों ने भोजन का प्रबंध करना शुरू किया और राज परिवार अपने तंबू में विश्राम करने चले गए। शक्तिसिंह भी सारी व्यवस्था सुनिश्चित करने के बाद एक पेड़ के नीचे, अपने हाथ का तकिया बनाकर सो गया।

वह कितनी देर सोया उसे पता ही न चला पर अचानक किसी के हिलाने से उसकी नींद खुल गई। प्रकाश से आँखें थोड़ी अनुकूलित होने पर देखा तो उसके बगल में महारानी पद्मिनी खड़ी थी!! उन्हे देखते ही उसके तोते उड़ गए…

वह अपने वस्त्रों से धूल झटकाते तुरंत खड़ा हो गया और महारानी को सलाम कर अपना सर झुकाकर खड़ा हो गया।

“महारानी जी, हुक्म कीजिए”

“में तो तुम्हें देखने ही आई थी शक्तिसिंह… काफी दिनों से तुम नजर ही नहीं आए? ना मिलने आते हो और ना ही कहीं दिखते हो…!!”

“जी में तो राजमहल में ही रहता हूँ, राजमाता की सेवा में… “

“वो तो मुझे भलीभाँति पता है की वह तुम्हारी सेवा का लाभ पूरी रात उठाती है… पर तुमने मुझे मिलने आना क्यों बंद कर दिया? पता है अकेले अकेले मेरा क्या हाल होता है?”

“जी वो… राजमाता का सख्त आदेश है की में आपसे दूरी बनाए रखूँ… और वैसे भी अभी आप गर्भवती है.. ऐसी सूरत में और कुछ हो भी नहीं सकता… ऊपर से राजमाता की भी हिदायत है… ” विनम्रता से शक्तिसिंह ने कहा

“वो राजमाता क्या जाने की मेरे ऊपर क्या बीत रही है!! उन्हे तो बस हुकूम देना आता है… यहाँ मुझे अपना खाली बिस्तर काटने को दौड़ता है… पूरी रात में बिना सोएं तड़पती रहती हूँ… कुछ भी करो… तुरंत हम से मिलने का प्रयोजन करो तुम.. ” महारानी ने बेचैनी भरी आवाज में कहा

“यह मुमकिन नहीं है महारानी साहिब… मिलना तो दूर.. इस वक्त अगर राजमाता ने मुझे आपसे बात करते भी देख लिया तो मेरी शामत आ जाएगी… आप समझने का प्रयत्न कीजिए… ” शक्तिसिंह ने विनती के सुर में कहा

महारानी ने शक्तिसिंह का हाथ पकड़कर अपने पेट पर रख दिया..

“मुझे मिलने ना सही… इस पेट में पल रही तुम्हारी निशानी से तो मिलने आ सकते हो ना!! यह तुम्हारा बीज ही तो मेरे गर्भ में पनप रहा है”

शक्तिसिंह हक्का-बक्का रह गया… किसी के देख लेने के डर से उसकी हालत पतली हो चली थी… उसने तुरंत अपना हाथ महारानी के पेट के ऊपर से खींच लिया और हाथ जोड़कर उनके सामने गिड़गिड़ाया…

“महारानी जी, आप से हाथ जोड़कर विनती है की कृपया आप यहाँ से चले जाएँ… वरना मुझ पर बड़ा गहरा संकट आ जाएगा… में वादा करता हूँ की इस यात्रा के दौरान, कैसे भी करके में आपसे मिलूँगा जरूर” अपनी जान छुड़ाने के लिए शक्तिसिंह ने कहा

“वादा करते हो?”

“पक्का वचन है मेरा… अब आप महरबानी कर यहाँ से जाइए इस से पहले की कोई देख ले… “

विजयी मुस्कान के साथ महारानी वहाँ से चली गई। शक्तिसिंह की जान में जान आई…

शाम ढलने को थी और छावनी की चारों ओर मशालें जलाई जा रही थी। इस से प्रकाश भी बना रहता था और जंगली जानवर भी दूर रहते थे। रात का भोजन निपटाकर शक्तिसिंह अपने साथियों संग गप्पें लड़ा रहा था। तभी एक सैनिक ने आकार उसे यह सूचित किया की राजमाता ने उसे याद किया था।

खड़ा होकर शक्तिसिंह राजमाता के तंबू की ओर चल पड़ा…

भारी भोजन के पश्चात अपनी कुर्सी पर चौड़े होकर महाराज कमलसिंह बैठे हुए थे… अपनी मस्ती में कोई धुन गुनगुनाते हुए वह मदिरा के प्याले समाप्त किए जा रहे थे। नशा सिर पर सवार होते ही उन्हे अपने लंड की प्यास का एहसास हुआ… पर यहाँ ना तो सुखिया हाजिर था और ना ही कोई रानी… महारानी साथ थी पर वह पेट से थी… निराश होकर उन्होंने एक और प्याला भरने के लिए सुराही झुकाई और पाया की शराब खतम हो गई थी।

“कोई है?” नशे में चूर होकर महाराज ने आवाज लगाई

तंबू के बाहर नियुक्त उनकी महिला रक्षक चन्दा, पर्दा खोलकर अंदर आई…

“जी महाराज, आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ?”

उस तगड़े सशक्त जिस्म की साम्राज्ञी को आज पहली बार महाराज ने अलग नजर से देखा। उस जिस्म में उन्हे कई संभावनाएं नजर आने लगी।

“आप को कुछ चाहिए महाराज?” कमलसिंह का कोई उत्तर ना मिलने पर चन्दा ने पूछा

“हं.. हाँ… सेवक को सूचित करो की मेरी सुराही में मदिरा समाप्त हो गई है… उसे तुरंत भर दिया जाए” महाराज की आँखें चन्दा के जिस्म का पृथक्करण कर रही थी

“जी महाराज” कमलसिंह की नज़रों को देखकर मुसकुराते हुए चन्दा तंबू से बाहर चली गई। कुछ ही देर में सेवक आकार सुराही में मदिरा भर चला गया और महाराज ने ओर एक जाम बनाया और चन्दा के बारे में सोचने लगे।

चन्दा कम से कम छह फुट तीन इंच लंबी, साँवले रंग की और शक्तिशाली कद-काठी वाली थी। उसमें कुंवारी लड़की के सौम्यता थी और चीते जैसी छुपी हुई शक्ति भी। वह आश्चर्यजनक रूप से आकर्षक थी, सुंदरता और साहस का एक अनोखा संयोजन था चन्दा में।

उसने सैनिकों जैसा तंग वस्त्र पहना हुआ था, जो पीठ और पेट के भाग से खुला हुआ था। उसका चेहरा आत्मविश्वास से भरपूर होते हुए भी अत्यंत शांत था और उसकी चौकस आँखें स्वाभाविक रूप से काली थीं। उसकी गर्दन चमकदार काली त्वचा से चमक रही थी और उसके स्तन, जो मुश्किल से उसके तंग वस्त्र में छिपे थे, कम से कम प्रत्येक पके पपीते के कद और आकार के थे। उसके खुले मध्य भाग में गहरी लेकिन छोटी नाभि के साथ सख्त चिकनी पेट की मांसपेशियाँ थीं। उसके नितंब विशाल गोलाकार और सुडौल थे और उसकी जांघें मजबूत मांसपेशियों से सुसज्जित थीं और पैर लंबे व उपयुक्त थे। कमर के नीचे उसने छोटे से स्कर्ट जैसी घाघरी पहन रखी थी जो उसके घुटनों के ऊपर तक रहती थी। kambikuttan stories

“चन्दा…. !!” उसकी खूबसूरती का एहसास होते ही महाराज को चन्दा की उपस्थिति की इच्छा हुई

तंबू का पर्दा हटाकर चन्दा महाराज के पास आई, उसकी चाल शिकारी तेंदुए जैसी, अजीब मंत्रमुग्ध कर देने वाली थी। महाराज की नजर और नशे की अवस्था से वह भांप चुकी थी की उसे किस उद्देश्य से बुलाया गया था। वह अपनी कमर को तेजी से मोड़कर झुकी और महाराज के हाथों को अपनी शहद जैसी भूरी हथेलियों में मजबूती से ले लिया और धीरे से चूम लिया। महाराज रोमांचित हो गए। चन्दा के पास एक ऐसा शरीर था जिसकी रखवाली की ज़रूरत थी, महाराज को नहीं!

“चन्दा, आओ यहाँ बैठो मेरे सामने… ” महाराज कुर्सी पर बैठे थे और उनके सामने उनका बिस्तर था। जाहीर सी बात थी की उन्होंने चन्दा को बिस्तर पर बैठने का निर्देश दिया था।

चन्दा महाराज के बिल्कुल सामने बिस्तर पर बड़े आत्मविश्वास के साथ बैठ गई।

“मदिरा पीओगी??”

“जी नहीं महाराज… में काम करते वक्त नहीं पीती.. “

“अरे अभी तो रात हो गई है.. अब कैसा काम!! लो पीओ… इसे हमारे आदेश समझो” महाराज ने दूसरे प्याले में सुराही झुकाई और उसे पूरा भर दिया…

चन्दा ने बेझिझक प्याले को उठाया और एक ही घूंट में पी गई… महाराजा उसे अचरज से देखते रहे और उसके खाली प्याले को फिर से भरने लगे।

“कमाल की ताकत है पीने में तेरी… “

“महाराज, शराब पीना भी मेरी तालिम का हिस्सा था… मेरे गुरुजी मुझे नशे में धुत करके तीरंदाजी का अभ्यास करवाते… यह सुनिश्चित करने के लिए की मैं हर स्थिति में एकाग्र होकर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम रहूँ..”

“बड़ी गजब की अभ्यस्त हो तुम… ” अचंभित महाराज ने कहा… अचरज के साथ ठरक भी महाराज के चेहरे से झलक रही थी

“आओ हम तुम्हारी चुस्तता का मुआयना करते है… ” महाराज ने अपनी चाल चल दी

“जी में समझी नहीं… “

“उठो और मेरे सामने खड़ी हो जाओ… में भी तो देखूँ की मेरी सुरक्षा में नियुक्त सैनिक पूर्णतः उपयुक्त है भी या नहीं”

चन्दा तुरंत उठी और महाराज के सामने मजबूती से खड़ी हो गई।

वह महाराज के सामने खड़ी थी और उसका चमचमाता सपाट पेट महाराज की आँखों के बिल्कुल सामने था। उसकी छोटी पर गहरी काली नाभि महाराज को जैसे आमंत्रित कर रही थी। आज तक महाराज ने असंख्य गोरे-गुलाबी जिस्मों को भोगा था… उन सब में चन्दा का जिस्म बिल्कुल अलग और अनोखा था… केवल पारखी नजर ही इस हीरे जैसे शरीर की सुंदरता को पहचान सकते थे।

महाराज के हाथों ने उसके पेट को सहलाया और उन मजबूत मांसपेशियों में ऐसी फड़फड़ाहट हुई जिसने चन्दा को कराहने पर मजबूर कर दिया। महाराज ने अपने बाएँ हाथ से उसकी म्यान में रखी तलवार की बाधा को हटा दिया। तलवार के अलग होते ही वह अब थोड़ी कम हिंसक लग रही थी। अब वह सैनिक कम और स्त्री जैसी ज्यादा नजर आ रही थी। ऐसी स्त्री जैसे महाराज नियंत्रित कर सके।

कमलसिंह के हाथ उसकी काले ग्रेनाइट जैसी मजबूत मांसल जाँघों से रगड़े और ऊपर की ओर चढ़े और उसकी जाँघों के पर बंधी लंगोटी (प्राचीन समय की पेन्टी) को देखा। चन्दा थोड़ी सी छटपटाई लेकिन महाराज ने उनका हाथ नहीं हटाया। अभी मुआयना खतम कहाँ हुआ था !!

महाराज ने उसके गुब्बारे जैसे नितंबों को दोनों हथेलियों में पकड़ लिया, उन चिकनी गोलाइयों की अनुभूति का आनंद लेते हुए, उसकी घाघरी की गाँठ खोली और उस वस्त्र को नीचे गिरा दिया। दूसरे ही पल महाराज की उंगली ने उसकी लंगोटी को खींच कर खोल दिया।

“आह! म्म्म्म” चन्दा कामुकता से कराह उठी जब उसकी घाघरी और लंगोटी नीचे गिर गई और कमरे की ठंडी हवा ने उसकी ताज़ा उगी हुई चूत के बालों को सरसरा दिया। देखकर प्रतीत होता था की वह नियमित अपने चुत के बालों को उस्तरे से साफ करती होगी.. पिछली सफाई के बाद उगे हुए छोटे छोटे नुकीले बाल इसका प्रमाण दे रहे थे।

महाराज ने अपना सिर और चेहरा ऊपर की ओर झुके हुए पेट में दबा लिया और उसकी गहरी नाभि को जोर से चूमा और उसे अपने करीब खींच लिया ताकि उनकी उंगलियां उसकी चूत की परतों में घुस सकें। उसकी चूत काफी गर्म और रसीली लग रही थी और कुछ मिनट तक महाराज की बेशर्म उंगलियों से कुरेदने के बावजूद उसके संयम पर कोई असर नहीं हुआ।

महाराज ने अब चन्दा की नाभि से अपना चुंबन तोड़ा… थोड़ा सा नीचे झुके… उसकी टांगों को फैलाया और अपनी जीभ उसकी चुत की परतों के बीच में घुसेड़ दी… कब से शांत खड़ी चन्दा, महाराज की इस हरकत से अनियंत्रित रूप से थरथराने लगी। उसके मुंह से तेज़ कराहें निकल रही थीं और उसका मूर्तिमान शरीर जुनून से भड़क उठा था।

बड़ा ही अनोखा खारा स्वाद था चन्दा की चुत का… उसकी चुत के रस और प्रस्वेद की मिश्रित गंध ने महाराज के नथुनों को पागल कर दिया… उनका लंड धोती के अंदर उठकर इस सैनिक की सुंदरता का अभिवादन करने लगा।

महाराज ने अपनी बीच की उंगली और अंगूठे से उसकी चूत के मांसल बाहरी होंठों को अलग किया ताकि उसका प्रवेश द्वार अच्छी तरह से खुल जाए और अपनी तर्जनी से उसके उभरते हुए भगांकुर के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी। फिर उन्होंने उसकी योनि के डंठल को नीचे की मुलायम और गीली परतों में दबाया जिससे वह अनियंत्रित रूप से कांपने लगी।

इससे उसके मुँह से एक तेज़ गुनगुनाहट निकली और उसके बाद धीमी कराह निकली, “ओह, महाराज… आपने मुझे इतना बेहद उत्तेजित कर दिया है.. में अभी गर्मी में आई हुई कुत्तिया से भए अधिक उत्तेजित हो गई हूँ। सालों से आपको मेरे सामने उन सभी रानियों और रंडीयों को चोदते हुए देखते हुए भी इतनी उत्तेजित कभी नहीं हुई थी.. आह्ह्ह्ह!!!!”

अब उसने बेशर्मी से अपनी मजबूत श्रोणि को महाराज की ओर धकेल दिया, जिससे उनकी उंगलियाँ पोर तक उसकी नारीत्व की गरम गुफा में धँस गईं। उसकी चूत को एक बड़े ही तूफ़ानी संभोग की सख्त ज़रूरत थी। महाराज भी यह सोचने लगे की उन्हे कभी यह विचार नहीं आया की चन्दा की मौजूदगी में जब वह रानियों और वेश्याओं से संभोग करते थे तब वह कैसा महसूस करती होगी!!!

अब महारज की छटपटाने की बारी थी क्योंकि उनका शाही लंड बेहद कड़ा हो गया था, और उस अंगरक्षक के रूप में नियुक्त इस महिला का ध्यान उसके तरफ खींचने की आवश्यकता थी।

‘अब तुम्हें मेरे इस लंड का भी ख्याल करना चाहिए, है ना, वैसे भी तुम्हें मेरे अंग की रक्षा और खयाल रखने के लिए ही तो रखा गया है…’ महाराज ने शरारती सुर में कहा और उसकी तरल गर्म चूत को अपनी उंगलियों से सहलाया।

चन्दा महाराज के इशारे को समझ गई… उसने अपनी चुत को महाराज की उंगलियों से मुक्त करवाया और उनके समक्ष घुटनों के बल बैठ गई… महाराज की धोती के उभार को हौले हौले सहलाते हुए वह उनके वस्त्रों की परतों को खोलने लगी। धोती खुलते ही महाराज का नन्हा सिपाही प्रकट हुई… चन्दा की मन में ही हंसी निकल गई… हालांकि वह महाराज के लंड को कई दफा उनके संभोग सत्रों के दौरान देख चुकी थी… पर इतने करीब से इस अंगूठे जैसे लंड को देखने का यह प्रथम अवसर था। उनके लंड के नाप के विपरीत उनके अंडकोश काफी बड़े नजर आ रहे थे। या शायद बड़े टट्टों की वजह से उनका लंड ज्यादा छोटा लग रहा था… तय कर पाना मुश्किल था!!! kambikuttan stories

महाराज के लंड की त्वचा को बड़ी नाजुकता से नीचे सरकाते हुए चन्दा ने उनके सुपाड़े को बाहर निकाला। उनका सुपाड़ा एक कंचे के आकार और नाप का था… चन्दा ने अपनी जीभ से उसे छेड़ा…. और फिर लंड के मूल से लेकर सुपाड़े तक चाटने लगी… महाराज आँखें बंद कर कुर्सी पर अपना सिर टीकाकर इस अनोखे आनंद का मज़ा लेने लगे… चूसते हुए चन्दा ने महाराज के अंडकोशों को सहलाना भी शुरू कर दिया…

इस चुसाई का पूर्ण आनंद लेते हुए महाराज ने मेज से अपने प्याले को उठाया और सारी मदिरा एक घूंट में गटक गए। मस्तानी शराब और मर्दाना शबाब का नशा उन्हे सराबोर किए जा रहा था। अब महाराज की नजर चन्दा के दो पपीतों पर पड़ी… जो अभी भी वस्त्रों में कैद थे… इस स्थिति में वस्त्र उतारने की अनुकूलता न थी इसलिए वह उन वस्त्रों के ऊपर से ही चन्दा के भरकम स्तनों को दबाने लगे…. पर उन्हे स्तनों के मुलायम एहसास के बजाए कवच के कठोर स्पर्श का ही एहसास हुआ…

चन्दा महाराज की विवशता को समझ गई… महाराज के लंड की चुसाई छोड़कर वह उठ खड़ी हुई और अपने कवच को उतारने लगी…. कवच उतरते ही अंदर का काला वस्त्र, जिनमें दोनों स्तनों को कसकर बांधा हुआ था… वह उजागर हुआ.. अपने हाथ पीछे कर उसने उस वस्त्र की गांठ खोल दी… चमकीली काली लकड़ी जैसी त्वचा वाले दो विराट गुंबज नुमा स्तन महाराज के सामने पेश हो गए… उन्हे देख महाराज की आँखें चार हो गई… उन्हे जरा सा भी अंदाजा नहीं था की तंग वस्त्र और कवच के नीचे इतना बड़ा खजाना गड़ा हुआ मिलेगा!!!

उन्होंने अपने दोनों हाथों से उन विराट स्तनों को पकड़ना चाहा पर चन्दा ने उन्हे रोक लिया… उसने महाराज का हाथ पकड़कर उन्हे कुर्सी से उठाया और बिस्तर तक ले गई। अब वह बिस्तर पर लेट गई और अपनी टाँगे खोलकर महाराज को उसके समग्र सौन्दर्य का अन्वेषण करने का न्योता दिया।

कमर पर अब भी लटक रही धोती को एक झटके में निकालकर दूर फेंक दी महाराज ने… बिस्तर पर घुटनों के बल चलते हुए वह चन्दा की दोनों जांघों के बीच ठहर गए। उनकी नजर प्रथम तो चन्दा की काली चुत पर पड़ी… हालांकि उसका स्वाद वह कुछ पलों पहले ले चुके थे इसलिए उनका सारा ध्यान चन्दा की विशाल चूचियों पर ही चिपका था… वह चन्दा के पेट को पसारते हुए उसके स्तनों तक पहुंचे… कुछ पलों के लिए उनकी हथेलियाँ उन अद्वितीय स्तनों को चारों तरफ से नापते रहे… काले पत्थर को तराश कर बनाई गई हो वैसी नुकीली निप्पलों को निहारकर वह इतने अभिभूत हो गए की अपने आप को उन्हे चूसने से रोक नहीं पाए… एक हाथ में एक स्तन को मसलते हुए दूसरे स्तन की निप्पल को वह पगालों की तरह चूसने लग गए।

चन्दा भी नरम तकिये पर अपना सिर टीकाकर आँखें बंद कर महाराज द्वारा की जा रही निप्पल चुसाई से उत्तेजित हो रही थी।।। उसकी जांघों के बीच की लकीर गीली हो रही थी… उसकी चुत कभी संकुचित होती तो कभी मुक्त… वह महाराज के लंड को योनि प्रवेश का आहवाहन दे रही थी।

दोनों स्तन महाराज की हथेलियों से काफी बड़े थे… इसलिए उन्हे हाथों में भरना मुमकिन न था… महाराज उन साँवली चूचियों की त्वचा का हर हिस्सा चूमने और चाटने लगे… उस दौरान उनका लंड चन्दा की गीली चुत पर बार बार दस्तक भी दे रहा था…

चन्दा ने अपनी जांघों को फैलाया और महाराज की कमर को अपनी लंबी टांगों की गिरफ्त में ले लिया… महाराज का लंड अब उसकी गीली चुत के मुख पर दब गया… वह महाराज को योनि प्रवेश का संकेत देना चाह रही थी… इस बात का एहसास होते ही… महाराज ने अपनी कमर को हल्का सा ऊपर किया, अपने हाथ से लंड को पकड़ा और चन्दा की गरम चुत के मुख पर रखकर… जिस्म का सारा वज़न डाल दिया… एक ही पल में चन्दा की चुत ने महाराज को लंड को खुद में समा दिया।

अब शुरू हुआ झटकों का खेल.. महाराज धीरे धीरे धक्के लगाते हुए चन्दा के स्तनों के साथ खिलवाड़ कर रहे थे… उनके लंड के मध्यम कद का होने के कारण चन्दा को अपनी चुत में किसी खास हलचल की अनुभूति नहीं हो रही थी… पर फिर भी वह महाराज का सहयोग दिए जा रही थी…

जब महाराज के धक्कों की तीव्रता पर्याप्त महसूस ना हुई… तब चन्दा ने अपने मजबूत चूतड़ों से नीचे से धक्के लगाना शुरू कर दिया… उस मजबूत कदकाठी की स्त्री के हर धक्के पर महाराज का पूरा शरीर गेंद की तरह उछल पड़ता… कुछ ही पल की इस कसरत के बाद चन्दा को यकीन हो गया की इस तरह तो वह सुबह तक स्खलित नहीं हो पाएगी…

महाराज चन्दा के धक्कों पर उछलते रहे और उस दौरान दोनों निप्पलों को बारी बारी मुंह में भरकर चूसते रहे… महाराज को तो मज़ा आ रहा था पर चन्दा को ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों कोई छोटा बच्चा उसके जिस्म पर खेल रहा हो.. उस मजबूत काठी की महिला के चूल्हे में महाराज ने आग तो लगा दी थी… पर उसे बुझाने का गुदा महाराज के पास न था…

चन्दा के स्तनों को अपनी लार से लिप्त कर महाराजा ने उसके मोटे होंठों को चूसना शुरू किया… अपनी जीभ से चन्दा के दाँत, जीभ और तालु को चाटने लगे… चन्दा भी महाराज के इस चुंबन का योग्य अभिवादन कर रही थी… पर अब उसकी जांघों के बीच घमासान मचा हुआ था… उसने अपनी दोनों टांगों को एक के ऊपर एक रखकर चौकड़ी मार दी… ताकि महाराज के लंड का घर्षण उसकी चुत की दीवारों पर महसूस हो… आगे पीछे की हलचल अब महसूस तो हो रही थी पर धक्कों की गति और तीव्रता इतनी कम थी की चन्दा का चरमसीमा पर पहुंचना नामुमकिन सा था।

अब चन्दा से और बर्दाश्त ना हुआ… महाराज को उसी दशा में चूमते हुए वह उठी… महाराज के शरीर को छोटे बच्चे की तरह काँखों से पकड़कर उन्हे बिस्तर पर पीठ के बल लिटा दिया… अचानक हुई इस हरकत से महाराज भी स्तब्ध रह गए… पर चन्दा के इस विकराल रूप के सामने उन्होंने घुटने टेक दिए… अब साफ प्रतीत हो रहा था की चन्दा ने संभोग का नियंत्रण अपने हाथों मे ले लिया था…

महाराज के लेटे हुए जिस्म पर चन्दा खड़ी हो गई… और उनके शरीर के दोनों तरफ अपने पैर जमा लिए… चन्दा की स्तंभ जैसी दोनों जंघाओं के बीच कटे हुए झांटों में से उसकी चुत महाराज को देख रही थी… उसके ऊपर चन्दा के बड़े बड़े वक्ष… उनकी परिधि इतनी बड़ी थी की महाराज को चन्दा का चेहरा उसके मम्मों की आड़ में नजर भी नहीं आ रहा था।

चन्दा ने अपने घुटनों को मोड़ा… दो उंगलियों से चुत की फांक को चौड़ा किया… और महाराज के चेहरे पर रख दिया… महाराज ने उस काली चुत को चाटना तो शुरू कर दिया… पर उस विशाल शरीर के नीचे दबकर उनका दम घूंट रहा था… फिलहाल चन्दा को इसकी कोई परवाह नहीं थी… उसकी हवस अब उफान पर थी।

चन्दा की चुत द्रवित होकर अपने खारे पानी का अभिषेक महाराज के मुख पर कर रही थी… वह आगे पीछे होकर उनके मुख की सवारी करते हुए अपने बादामी रंग के भगांकुर को उंगलियों से रगड़ रही थी… उसकी हर रगड़ पर मुंह से सिसकी निकल जाती… कराहते हुए वह तेजी से आगे पीछे हुई जा रही थी…

अब कमलसिंह को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी… पर चन्दा जंगली घोड़ी के सवार की तरह उनके मुंह पर हिले ही जा रही थी.. उसे रोक पाने में वह असमर्थ रहे… आखिर उन्होंने तड़पते हुए चन्दा की गांड में उंगली घुसा दी… सहसा हुए इस आक्रमण से चन्दा चरमसीमा पर पहुँच गई… उसका बदन थरथराने लगा… सिहरन के मारे उसकी चूचियाँ कांप रही थी… साँसे तेज चल रही थी… और उसके योनिरस का लेप महाराज के समग्र चेहरे पर लग गया था… कुछ झटके लगाने के बाद वह शांत हो गई… महाराज की जान में जान आई.. पर खेल अभी बाकी था…!!

अपनी चुत महाराज के चेहरे से हटाते ही वह हांफते हुए सांस लेने लगे… अगर कुछ देर तक और ये सवारी चली होती तो महाराज का जनाज़ा निकल जाता… चन्दा ने अपना जिस्म उठाया… थोड़ी सी पीछे हटी… और झुककर महाराज के लंड पर अपनी चुत फैलाकर बैठ गई…

यह स्थिति महाराज को काफी आरामदायक और आनंददायी लगी… अब वह चन्दा का पूरा नग्न जिस्म, उछलते हुए स्तन और उसकी मदहोश आँखों को देख सकते थे… साथ ही साथ उनके लंड पर भी मर्दन शुरू हो गया… हालांकि चन्दा का वज़न उनके टट्टों पर आते ही वह सिहर जाते।

चन्दा ने अब आव देखा न ताव… स्प्रिंग की तरह महाराज के लंड पर उछलती ही रही… कुछ ही क्षणों में महाराज की पिचकारी छूट गई… पर चन्दा को उसका एहसास तक ना हुआ… राक्षसी ऊर्जा के साथ वह दहाड़ती हुई ऊपर नीचे करती रही… झड़ चुके लंड पर अभी भी हो रही उछलकूद से महाराज को अब दर्द होने लगा था… उन्होंने हाथों से चन्दा को दो बार रोकने की कोशिश की पर तब ये एहसास हुआ की उसे रोकना महाराज के बस की बात नहीं थी.. यह तीर धनुष्य से छूट चुका था… और अब निशाने पर पहुंचकर ही दम लेगा…

उस उछलकूद में महाराज का लंड चन्दा की चुत से मुरझाकर बाहर निकल गया.. चन्दा को इससे कोई फरक न पड़ा… वह अब आगे पीछे होती हुई महाराज के अंडकोशों की खुरदरी त्वचा पर अपनी चुत रगड़ती रही… महाराज अब दर्द से बिलबिलाने लगे…

“अब बस भी करो चन्दा… ” महाराज के स्वर में विनती का सुर साफ सुनाई पड़ रहा था… बस उनका हाथ जोड़ना ही बाकी था…

चन्दा महाराज के कहने पर रुकना तो चाहती थी पर वासना की जलती आग को अब रोकना मुश्किल था… काफी घिसाई के बावजूद जब चन्दा झड़ न पाई तब उसे महाराज की आजमाई तरकीब याद आई… उसने खुद अपना हाथ मोडकर अपनी एक उंगली गांड के छेद में डाल दी… पीछे दबाव पड़ते ही चन्दा की चुत ने फव्वारा मार दिया… महाराज की दोनों जांघें, लंड और अंडकोश चन्दा के योनिरस से भीग गए… कुछ देर तक उसी स्थिति में हांफते हुए बैठे रहने के बाद चन्दा बिस्तर पर ढेर हो गई…

चिड़ियों की चहचहाट से जंगल की सुबह हो गई… सेवक सफाई में जुट गए थे और खानसामे सुबह का नाश्ता बनाने में… शक्तिसिंह अपने तंबू में खर्राटे मार कर सो रहा था… आधी रात तक राजमाता के भूखे भोंसड़े को पेलने के बाद वह सुबह चार बजे चुपके से अपने तंबू में लौटकर, चुदाई की थकान उतार रहा था…

शाही तंबूओ के बीचोंबीच सेवकों ने बड़ा सा मेज और कुर्सियाँ लगाई थी… महाराज और उनके परिवार के लिए विविध प्रकार के व्यंजन और फलों का इंतेजाम नाश्ते के लिए किया गया था…kambikuttan stories

राजमाता और महारानी काफी समय से मेज पर बैठे बैठे महाराज के आने का इंतज़ार करते रहे… अंत में थककर उन्होंने नाश्ता शुरू कर दिया.. थोड़ी देर बाद, महाराज लड़खड़ाती चाल से चलते हुए खाने के मेज तक आए… उनकी आँखें नशे के कारण लाल थी.. पर थकान की असली वजह तो केवल वह और चन्दा ही जानते थे…

“बड़ी देर कर दी आने में… ?” राजमाता ने सेब का टुकड़ा खाते हुए पूछा

“हाँ… रात को नींद आते काफी वक्त लग गया… इसी लिए जागने में थोड़ी देर हो गई.. “

“मुझे तो लगता है की इसका कारण तुम्हारा अधिक मात्रा में मदिरा सेवन ही है…” राजमाता ने ऋक्ष आवाज में कहा

“क्या माँ… आप हर बार यही बात क्यों निकालती है?” महाराज परेशान हो गए

“क्योंकी तुम्हारी ये आदत तुम्हारा स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है.. अब इस स्थिति में तुम शिकार करने कैसे जाओगे?”

इस बात को बदलने के उद्देश्य से महाराज ने प्रस्ताव रखा

“शिकार पर तो में जाऊंगा ही… में सोच रहा था, क्यों न आप और महारानी भी शिकार पर मेरे साथ चलें? अच्छा अनुभव रहेगा… “

“इस अवस्था में महारानी को ले जाना ठीक नहीं रहेगा…” राजमाता ने कहा

“तो फिर आप ही चलिए… एक बार देखेंगी तो विश्वास होगा की आपके बेटे का निशान कितना सटीक है.. “

राजमाता ने कुछ सोचकर कहा “ठीक है… में तुम्हारे साथ चलूँगी.. इससे पहले मुझे महारानी की देखभाल का प्रबंध करना होगा… तुम तैयार हो जाओ… जब निकलोगे तब में शामिल हो जाऊँगी.. ” राजमाता मेज से उठकर अपने तंबू की ओर चल पड़ी।

राजमाता के शिकार पर जाने का प्रयोजन सुनकर महारानी की आँखों में चमक आ गई… वह धीरे से खाने के मेज से उठ खड़ी हुई और तंबुओं के पीछे ओजल हो गई… कुछ दूरी पर स्थित शक्तिसिंह के तंबू में वह दबे पाँव घुस गई… शक्तिसिंह घोड़े बेचकर सो रहा था… उसने शक्तिसिंह को जगाया…

“अरे महारानी आप फिरसे आ गई… !!” अपनी आँखों को हथेलियों से मलते हुए शक्तिसिंह ने कहा

“ध्यान से सुनो… मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है… आज महाराज के साथ राजमाता भी शिकार पर जा रही है… तुम कुछ बहाना बनाकर यहीं रुक जाओ… फिर शाम तक हमारे पास बहुत समय रहेगा… !!” उत्सुक महारानी ने कहा

“आप जानती है की क्या कह रही है? राजमाता ऐसा कदापि होने नहीं देगी… उन्हे जरा भी भनक लगी की में यहाँ रुक गया हूँ तो वह शिकार पर जाएगी ही नहीं… यदि जाएगी भी तो बीच रास्ते वापिस लौटकर हमें रंगेहाथों पकड़ लेगी… “

“तो फिर क्या किया जाए… इस तरह तो हम मिल ही नहीं पाएंगे… ” महारानी उदास हो गई

“थोड़ी धीरज रखिए, कुछ ना कुछ रास्ता जरूर निकलेगा… हम जरूर मिल पाएंगे”

“पर कैसे? मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं होता…”

शक्तिसिंह मौन रहा… उसके पास इसका कोई उत्तर या इलाज नहीं था…

“नहीं, हमे आज ही मिलना होगा… तुम बीमारी का बहाना बना लो… और सब के जाते ही मेरे तंबू में चले आना” व्याकुल महारानी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी..

“यह मुमकिन नहीं है महारानी जी… बहुत खतरा है ऐसा करने में “

“तो तुम नहीं मानोगे… ठीक है… लगता है वक्त आ गया है की राजमाता को बता दिया जाएँ की कैसे तुम राजमहल में वापिस लौटकर भी मेरे जिस्म को नोचते रहे हो… साथ ही महाराज को भी इस बारे में सूचित कर देती हूँ…” महारानी ने अपना अंतिम हथियार आजमाया

“ये आप क्या कह रही है महारानी जी? ऐसा मत कीजिए, में हाथ जोड़ता हुए आपके” शक्तिसिंह के होश गुम हो गए…..

“तो फिर जैसा में कहती हूँ वैसा करो…”

“मुझे एक तरकीब सूझ रही है महारानी जी… में दस्ते के साथ शिकार पर जाऊंगा… मौका देखकर में वहाँ से गायब हो जाऊंगा.. पर वापिस यहाँ छावनी में आना मुमकिन न होगा… आप एक काम कीजिए… टहलने के बहाने आप दूर नदी के किनारे, जहां बीहड़ झाड़ियाँ है, वहाँ मेरा इंतज़ार कीजिए… में वहीं आप से मिलूँगा..”

महारानी आनंदित हो गई.. उनके चेहरे पर चमक आ गई..

“ठीक है… फिर यह तय रहा… में तुम्हें नदी के किनारे मिलूँगी… पर जल्दी आना.. मुझे ज्यादा इंतज़ार मत करवाना… “

“जी जरूर… अब आप यहाँ से जल्दी जाइए.. “

उछलते कदमों के साथ महारानी वापिस चली गई। शक्तिसिंह तुरंत बिस्तर से उठा और अपने दैनिक कामों से निपटकर, सैनिकों के साथ शिकार पर जाने की तैयारी करने लगा।

शिकार पर जाने के लिए महाराज का खेमा तैयार हो गया था… आगे दो हाथी पर महाराज और राजमाता बिराजमान थे… पीछे २५ घोड़ों पर सैनिक सवार थे जिसका नेतृत्व शक्तिसिंह कर रहा था… साथ ही करीब ५० सैनिक पैदल भाला लिए चल रहे थे। महाराज कअंगरक्षक चन्दा भी हाथी के बिल्कुल बगल में चल रही थी… कुछ सैनिक ढोल नगाड़े गले में लटकाए हुए थे.. जिसका उपयोग जानवारों को भड़काकर एक दिशा में एकत्रित करने के लिए किया जाता था। साथ ही साथ एक बग्गी भी थी जिसमे भोजन और अन्य जरूरी चीजें लदी हुई थी। kambikuttan

जंगल में चलते चलते एक घंटा हो गया था.. महाराज ने अब तक दो हिरनों को अपने बाण का शिकार बनाया था… अभी उन्हे किसी खूंखार जंगली जानवर की तलाश थी.. पैदल चल रहे सैनिक चारों दिशा में घूम रहे थे… कुछ सैनिक पेड़ पर चढ़कर जानवर को ढूंढकर खेमे को इत्तिला कर रहे थे…

इसी बीच शक्तिसिंह ने अपने घोड़े की गति कम करते हुए एक जगह स्थगित कर दिया… पूरा खेमा शिकार की तलाश में आगे निकल गए… जब उनके और शक्तिसिंह के बीच सुरक्षित दूरी बन गई तब उसने घोड़े का रुख मोड़ा और वह छावनी के पास नदी के तट की ओर चल पड़ा…

तेज दौड़ रहे घोड़े के साथ शक्तिसिंह का ह्रदय भी उछल रहा था… राजमहल में छुपकर महारानी से मिलना अलग बात थी… पर यहाँ जंगल में उन से मिलना खतरे से खाली नहीं था… किसी के देख लेने का खतरा तो कम था क्योंकी नदी का तट छावनी की विपरीत दिशा में था.. पर उसे भय यह था की अकेली महारानी का सामना किसी जंगली जानवर से ना हो जाए। इसी लिए वह दोगुनी तेजी से घोड़े को दौड़ाते हुए नदी की और जा रहा था।

नदी के तट पर पहुंचते ही शक्तिसिंह ने अपने घोड़े को रोका… उसे थोड़ा सा पानी पिलाया और नजदीक के पेड़ के साथ बांध दिया… उसे महारानी कहीं भी नजर नहीं आ रही थी… वो काफी देर तक यहाँ वहाँ ढूँढता रहा और आखिर थक कर वह एक पेड़ की छाँव में खड़ा हो गया…

अचानक पीछे से दो हाथों ने शक्तिसिंह को धर दबोचा… प्रतिक्रिया में शक्तिसिंह ने अपना बरछा निकाला और वार करने के लिए मुड़कर देखा तो वह महारानी थी… वह शक्तिसिंह का डरा हुआ मुंह देखकर खिलखिलाकर हँस रही थी… शक्तिसिंह की सांस में सांस आई… उसने बरछा वापिस म्यान में रख दिया।

“आपने तो मुझे डरा ही दिया महारानी जी… ” गर्मी के कारण शक्तिसिंह के सिर पर पसीने की बूंदें जम गई थी

महारानी ने बिना कोई उत्तर दिए शक्तिसिंह को अपनी ओर खींचा और उसकी विशाल छाती में अपना चेहरा दबाते हुए उसे बाहुपाश में जकड़ लिया… शक्तिसिंह ने आसपास नजर दौड़ाई… के कोई देख ना रहा हो… फिर निश्चिंत होकर उसने महारानी को अपनी बाहों में भर लिया…
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