राजमाता दामिनीदेवी – kambikuttan stories

आज बड़ी देर तक राजमाता सोती रही… आँख खुलने के बाद भी, कल रात की चुदाई की थकान उन्हे उठने नहीं दे रही थी… पूरे जिस्म में ऐसा मीठा दर्द हो रहा था की हल्की सी हलचल करने पर भी उनकी आह निकल जाती। वह और कुछ देर तक इस एहसास को महसूस करते हुए अपनी जांघें रगड़ती रही… उनकी निप्पल इतनी संवेदनशील हो गई थी की हल्का सा छूने पर भी सहम जाती। दशकों बाद ऐसी दमदार चुदाई प्राप्त कर राजमाता धन्य हो गई। वह सोच रही थी की आज रात भी ऐसी शानदार चुदाई होगी और इस विचार से उनकी चुत पानी पानी हो रही थी। kambikuttan stories

वह उठकर अपने कक्ष के बाहर निकली… और बाहर किसी को भी ना देखकर चोंक गई!! उन्होंने अपने वक्ष को चूनर से ढंका और बाहर निकल आई… काफी चलने के बाद उन्हे तीन सिपाही मिले जिसने यह जानने को मिला की उन्होंने आज शक्तिसिंह को कहीं नहीं देखा!! वह क्रोध से आग बबूला हो उठी…!! उन्होंने तुरंत एक सिपाही को शक्तिसिंह को बुलाने के लिए उसके घर भेजा… जो थोड़ी ही देर में यह समाचार के साथ लौटा की कल रात से शक्तिसिंह अपने घर गया ही नहीं था… !!

राजमाता के आश्चर्य का ठिकाना न रहा… कहाँ गायब हो गया शक्तिसिंह? दिखने पर तुरंत उनके पास भेजने का आदेश देकर वह अपने कक्ष लौट गई।

दरवाजे पर दस्तक पड़ते ही, महारानी की बाहों में खर्राटे मारकर सो रहे शक्तिसिंह की सहसा आँख खुल गई!! वह डरकर खड़ा हो गया… महारानी अधनंगी अवस्था में, अपने दोनों स्तनों को खुले रख… घोड़े बेचकर सो रही थी। उनकी चुत और जांघों पर सूखे हुए वीर्य के धब्बे थे.. स्तनों पर शक्तिसिंह के काटने के लाल निशान भी थे… बाहर से अभी भी कोई लगातार दरवाजा खटखटाए जा रहा था। शक्तिसिंह ने घबराकर महारानी को जगाया… और बाहर किसीके आगमन के समाचार दिए। महारानी ने तुरंत उठकर अपनी चोली और घाघरा पहनना शुरू किया और शक्तिसिंह को इशारे से खिड़की से चले जाने को कहा। एक ही पल में शक्तिसिंह खिड़की फांदकर झाड़ियों से गुजरते हुए बागीचे के रास्ते बाहर चला गया।

बागीचे के पास बने बरामदे से वह गुजर ही रहा था तब शक्तिसिंह के साथी सैनिक ने उसे राजमाता के बुलावे के बारे में बताया। शक्तिसिंह हड़बड़ाते हुए राजमाता के कक्ष की तरफ गया। वह तो सोच रहा था की रात की घनघोर चुदाई के बाद राजमाता उसे दूसरी रात तक याद नहीं करेगी… उसकी अनुपस्थिति के बारे में पूछेगी तब क्या जवाब देना है यही असमंजस में उसने दस्तक देकर राजमाता के कक्ष में प्रवेश किया।

राजमाता एक बड़ी सी सुशोभित राजसी कुर्सी पर फैल कर बैठी हुई थी.. सरोते से सुपारी काटकर खाते हुए उसने शक्तिसिंह की ओर देखा

“कहाँ थे तुम? मैंने हर जगह तुम्हारी तलाश करवाई.. यहाँ तक की तुम्हारे घर पर भी सैनिक को भेजा.. तुम वहाँ भी नहीं थे… “थोड़े क्रोध के साथ राजमाता ने कहा

“जी वो… रात की थकान दूर करने में तालाब पर स्नान करने गया था… स्नान के पश्चात इतनी अच्छी हवा चल रही थी की में वहीं पेड़ के नीचे सो गया” शक्तिसिंह ने सफाई देते हुए कहा

“सच बोल रहा है ना तू? कहीं वापिस उस पद्मिनी के घाघरे में तो नहीं घुसा था न??” राजमाता ने अपनी शंका व्यक्त करते हुए बड़े तीखे सुर में कहा

“जी… न.. नहीं नहीं.. ” शक्तिसिंह की धड़कने एकदम तेज हो गई..

“तब ठीक है… पर यह जान ले… अगर वापिस कभी महारानी की टांगों के बीच गया तो तेरा लिंग काटकर चौराहे पर लटका दूँगी में… समझा!!” धमकी देते हुए राजमाता ने कहा

शक्तिसिंह कांप उठा… वह मन ही मन सोच रहा था की इस दोहरे खेल को जल्द ही बंद करना होगा वरना वह अपनी जान से हाथ धो बैठेगा…

“चल जा अभी… और रात को जब में बुलाऊँ तब अंदर आ जाना” राजमाता वापिस सरोते से सुपारी को कुतरने में व्यस्त हो गई।

राहत की सांस भरते हुए शक्तिसिंह कक्ष के बाहर निकल गया…

महारानी के दरवाजा खोलते ही उनकी दासी नजर आई.।

“महारानी साहिब… में काफी देर से दरवाजा खटखटा रही थी… लगता है आप बड़ी गहरी नींद सो रही थी”

“हाँ… आजकल तबीयत जरा नरम रहती है तो आँख लग गई थी… ” आँखने मलने का नाटक करते हुए महारानी ने कहा

“बता, क्या बात थी?” उभासी लेटे हुए महारानी बोली

“जी, वो आपकी शारीरिक जाँच के लिए राजमाता के आदेश से राजवैद्य पधारे है… आप कहों तो उन्हे अंदर भेज दूँ… ” दासी ने पूछा

“थोड़ी देर बाद भेज दे अंदर… ” कहते हुए राजमाता ने दरवाजा अटका दिया..

वह वापिस बिस्तर पर लेट गई… शक्तिसिंह के मजबूत मूसल का स्पर्श उसकी चुत अबतक भूल नहीं पाई थी… उस मजेदार चुदाई की याद आते ही वह नए सिरे सी गरम होने लगी… उनकी चुत का दाना अवधान की अपेक्षा करने लगा… जिस तरह से आज शक्तिसिंह ने धक्के लगा लगाकर चोदा था, उनका मन प्रफुल्लित हो गया था.. वह अपनी चोली खोलकर अपने स्तनों को मसलने लगी… घाघरे का नाड़ा खोलकर वह नग्न हो गई और बिस्तर पर लैटकर एक हाथ से अपना स्तन मसलने लगी और दूसरे से अपनी चुत के दाने को रगड़ने लगी। kambikuttan

थोड़ी ही देर में उनकी चुत पनियाने लगी… स्तनों की निप्पल भी कड़ी और सख्त हो गई… अब तो उनके गांड के छेद में भी चुनचुनी होने लगी थी। वह सोच रही थी की शाम को दासी को बुलाकर फिरसे अपने छेद की तेल मालिश करवाएगी। महारानी बिस्तर पर पैर फैलाकर पागलों की तरह अपने जिस्म से खेल रही थी तभी दरवाजे पर दस्तक पड़ी और वह खुलता हुआ नजर आया…!!

घबराकर हड़बड़ाहट में राजमाता ने पास पड़ी चद्दर से अपने जिस्म को गले तक ढँक लिया और बिस्तर पर लेट गई।

दरवाजे से बूढ़े राजवैद्य ने प्रवेश किया। वह धीमी चाल से चलते चलते महारानी के बिस्तर के पास पहुंचे। बिस्तर पर चद्दर ओढ़े लेटी महारानी के बगल में पड़ी चोली और नीचे पड़े घाघरे को देखकर राजवैद्य चोंक गए पर चुपचाप पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गए।

“जी राजवैद्य जी, कहिए कैसे आना हुआ…” महारानी ने पूछा

“प्रणाम महारानी साहिबा… मुझे सेवक ने सूचित किया था की राजमाता ने आपकी शारीरिक जांच करने का आदेश दिया है तो में चला आया… बताइए महारानी जी, आपको क्या कष्ट है?”

महारानी एक पल के लिए सोच में पड़ गई की किस कारण से राजमाता ने इस राजवैद्य को जांच के लिए भेजा होगा… फिर उसके दिमाग में विचार आया की शायद यह जानने के लिए भेजा होगा की वह गर्भवती हुई भी या नहीं!! महारानी के शरारती मन में एक खयाल आया

“जी राजवैद्य जी, कुछ दिनों से बड़ी बेचैनी सी हो रही है… अंग अंग में दर्द हो रहा है… न कुछ खाने को मन करता है न ही सोने को… पूरा दिन परेशान सी रहती हूँ… बिना कारण गबरहट सी होती रहती है… ” महारानी ने नाटक शुरू कर दिया

“पिछले कुछ दिनों में आपकी दिनचर्या में कोई खास बदलाव तो नहीं आया ना?”

“जी वैसे तो कुछ नहीं है… पर हाँ यात्रा से लौटने के बाद से यह सब शुरू हो गया है.. “

“हो सकता है सफर की थकान के कारण ऐसा हुआ हो… में आपकी दासी के हाथों कुछ चूर्ण और काढ़ा भिजवाता हूँ… आप उनका सेवन कीजिए और हो सके उतना आराम कीजिए… कुछ ही दिनों में आप स्वस्थ हो जाएगी… “

“वो सब तो ठीक है राजवैद्य जी… पर मुझे कुछ कुछ जगह बहुत तकलीफ हो रही है… कृपया वहाँ जरा जांच कीजिए ना… ” नटखट महारानी वैसे भी काफी गरम हो चुकी थी… अब वह इस बूढ़े के पूरे मजे लेने वाली थी

“जी बताइए… “

“जी मुझे यहाँ दोनों छातियों के बीच में काफी घबराहट हो रही है… जरा देखिए ना” नखरीले अंदाज में महारानी ने कहा

राजवैद्य के पसीने छूट गए… महारानी की चद्दर से दिख रही उकसी हुई निप्पलों को देखकर उन्हे पता चल गया की उस कपड़े के नीचे उनके स्तन खुले थे… वह घबराकर महारानी की तरफ देखते ही रहे…

“वैद्यजी, जरा जांच कर देखिए ना… मेरी धड़कने भी बहुत तेज चल रही है… ” बचकाना मुंह बनाकर महारानी ने कहा… जब राजवैद्य की कुछ भी करने की हिम्मत ना हुई… तब महारानी ने उनका हाथ पकड़ा और चद्दर के नीचे सरकाते हुए अपने दोनों स्तन के बीच रख दिया…

राजवैद्य जहां थे वहीं पुतला बनकर बैठे रहे… उनका सारा शरीर सुन्न पड़ गया था… वैसे तो वह शारीरिक रूप से काफी सक्रिय थे… आए दिन इलाज करवाने आती दासियों को पकड़कर चोदते भी थे… पर यहाँ हालात काफी अलग थे… महारानी के संग किसी भी तरह की गुस्ताखी करने की उन में हिम्मत नहीं थी…. राजमाता के क्रोध से वह भलीभाँति परिचित थे… महारानी के एक शब्द कहने पर उनका लंड काटकर राजमहल के पालतू कुत्तों को खिला देने का आदेश निकलने में देर न लगती… वह समझ नहीं पा रहे थे की महारानी आखिर क्या चाहती थी… फिर उन्हों ने सोचा की हो सकता है की वाकई उन्हे तकलीफ हो…

“यहाँ इर्दगिर्द हाथ घुमाकर देखिए… मुझे बेचैनी और घबराहट होती है… धड़कने भी बहुत तेज चलनी लगती है… जी मचलता है मेरा” हल्की हल्की कराह मारते महारानी ने बड़ी ही नशीली आवाज में राजवैद्य से कहा

हिम्मत जुटाकर राजवैद्य ने थोड़ा सा हाथ हिलाया… महारानी के दोनों माँसपिंडों का स्पर्श होते ही वह कांप उठे… मक्खन जैसे जिस्म वाली गोरी चीट्टी महारानी के स्तनों का स्पर्श करने के विचार मात्र से ही वह बेहद उत्तेजित हो गए।

महारानी आँखें बंद कर उन बूढ़े खुरदरे हाथों की रगड़ अपनी छाती पर मजे से महसूस कर रही थी। उत्तेजना से ज्यादा महारानी को इस शरारत में मज़ा आ रहा था। राजवैद्य के हाथों के कंपन से ही उन्हे पता चल रहा था की वह कितने घबराए हुए थे।

“बताइए ना राजवैद्य जी, मुझे क्या तकलीफ है?”

“ज.. ज.. जी… धड़कनें तो थोड़ी तेज चल रही है” राजवैद्य ने डरते डरते कहा

“और यहाँ भी जांच कीजिए… ” कहते हुए महारानी ने चद्दर के नीचे से ही राजवैद्य की हथेली को अपने स्तन पर रख दिया!!

सख्त कड़ी निप्पल का नुकीला स्पर्श होते ही राजवैद्य की सिट्टी पीट्टी गुम हो गई!! उन्हें पता नहीं चल रहा था की महारानी आखिर ऐसा व्यवहार क्यों कर रही थी… और वह इसकी कैसे प्रतिक्रिया दे… !! धोती के अंदर से उनका बूढ़ा लंड झटके से ताव में आ गया… उन्होंने अपने हथियार को दो जांघों के बीच ऐसे दबा रखा था की कहीं वो धोती में तंबू बनाकर उन्हे शर्मसार ना कर दे..!!

महारानी ने राजवैद्य की हथेली को अपने स्तन पर दबाए रखा और उनके हाथों अपना स्तन मसलवाती रही… राजवैद्य की आँखें ऊपर चढ़ गई… डर और उत्तेजना के मिश्रण ने उनकी धड़कने इतनी तेज कर दी की उन्हे लगा उनका दिल बैठ जाएगा। उनका पूरा जिस्म पसीने से तरबतर हो गया।

“और कभी कभी यहाँ भी दर्द होता है.. ” महारानी ने उनकी हथेली को दूसरे स्तन पर रख दिया

राजवैद्य का हाल देखकर महारानी को इतना मज़ा आने लगा की वह अब इस खेल को दूसरे पड़ाव पर ले जाना चाहती थी…

“आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे? बताइए ना… क्या तकलीफ़ है मुझे?”

“में… वो… जी… महारानी जी… में आपको तुरंत दवाई भ..भ..भेजता हूँ… वह लेते ही आपको राहत मिलेगी” कांपते कांपते राजवैद्य ने कहा…

“वो तो ठीक है पर… मुझे सब से ज्यादा तकलीफ तो यहाँ हो रही है… !!” कहते ही महारानी ने राजवैद्य का हाथ खींचकर अपनी चुत की लकीर पर लगा दिया… गीली पनियाई चुत का स्पर्श होते ही राजवैद्य बेहोशी की कगार पर पहुँच गए…

“अंदर उंगली डालकर देखिए… बहुत गरम गरम सा लगता है पूरा दिन वहाँ… ठीक से जाँचिए आप” महारानी ने चद्दर के नीचे राजवैद्य की उंगली को अपनी चुत में घुसेड़ दिया…

राजवैद्य अपना आपा खो रहे थे… उन्होंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था की शाही जिस्म के निजी अंगों को छूने का कभी उन्हे मौका मिलेगा!! उनका लंड अब बगावत पर उतर आया था.. और कभी भी धोती फाड़कर बाहर आने की धमकी दे रहा था

“जरा उसे अंदर बाहर कीजिए तो मुझे थोड़ा आराम मिलेगा” महारानी ने राजवैद्य की पूरी फिरकी ले ली

जब कहने पर भी राजवैद्य ने उंगली को अंदर बाहर नहीं किया तब महारानी खुद ही अपने चूतड़ों को ऊपर नीचे करते हुए उंगली के मजे लेना शुरू कर दिया…

राजवैद्य की आँखें ऊपर चढ़ गई… वह हांफने लगे… ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे महारानी ने केवल उंगली से ही उनके पूरे शरीर का चेतन खींच लिया था… उस मखमली गरम चुत की लकीर के अंदर चिपचिपे एहसास से राजवैद्य के शरीर में बिजली सी कौंध गई। महारानी अब तेजी से ऊपर नीचे करती हुई उनकी उंगली से बखूबी चुदवा रही थी…

अचानक राजवैद्य का शरीर झटके खाने लगा और उन्होंने महारानी की चुत से अपनी उंगली जबरदस्ती खींच ली… महारानी को पता नहीं चला की उन्हे क्या हो गया!! पर जब उन्होंने धोती के ऊपर से अपने लंड को दोनों हाथों से पकड़ लिया तब पता चला की राजवैद्य के लंड ने अंदर ही पिचकारी दे मारी थी… !! उनकी धोती वीर्य से सन गई थी… शरमाकर वह उठ खड़े हुए और तेजी से दरवाजे की ओर भागे… पीछे से उन्हे महारानी की खिलखिलाकर हंसने की आवाज सुनाई दी…

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अपने कक्ष में आराम फरमाते महाराज कमलसिंह ने मेज पर पड़ी शराब की प्याली को उठाया और एक घूंट में पी गए। महाराज ज्यादातर भोग विलास में मस्त रहते… राज्य का कार्यभार राजमाता ही संभालती। कमलसिंह हर वक्त मदिरा, मैथुन और शिकार में ही व्यस्त रहते… मध्यम कद के लिंग वाले इस महाराज की यौन इच्छा काफी प्रबल थी… और राजा होने के नाते उन्हे चोदने के लिए लड़कियों और औरतों की कभी भी कमी महसूस नहीं हुई थी… उनके सेवक इस कमजोरी का पूरा लाभ उठाते… जब राजा का मन रानियों को चोद चोद कर भर जाता तब उनके चमचे वेश्या और गणिकाओं को राजा के समक्ष हाजिर कर तगड़ी भेंट सौगाद जुगाड़ लेते। महाराज की एक सशक्त महिला संरक्षक भी थी जिसका नाम चन्दा था।

शराब के नशे में चूर होकर उन्होंने अपने खास सेवक सुखिया को बुलावा भेजा… वह तुरंत हाजिर हुआ…

“जी महाराज… फरमाइए.. ” सलाम करते हुए सुखिया ने कहा

“सुखिया… तेरे रहते हुए महाराज का बिस्तर खाली क्यों पड़ा है?? कोई हसीन चीज पेश कर वरना मेरे क्रोध को तो तू जानता ही है” नशे में डोलते हुए कमलसिंह ने कहा

“क्षमा करें महाराज, में आज रात को ही आपके बिस्तर को गरम करने का प्रबंध करता हूँ”

“हम्म.. और कोई अच्छी चीज लाना… जो मेरे लंड पर मस्ती से कूद सके… पिछली बार की तरह सुखी ककड़ी जैसी बदसूरत लड़की लाया तो तेरी गांड में गरम सरिया घुसेड़ दूंगा”

“साले, तेरी अंगूठे भर की नून्नी पर कौन सी लड़की कूदेगी… ” गुस्से से मन में सोच रहा था सुखिया पर चेहरे पर मुस्कान के साथ उसने कहा “आप चिंता न करे महाराज, ऐसी कटिली चीज लाऊँगा की आपका मन प्रसन्न हो जाएगा”

“हम्म ठीक है… रात होने से पहले उसे पेश करना… और यहाँ लाने से पहले उसे शाही गुसलखाने में दासियों से स्नान और मालिश करवाकर हाजिर करना, समझा !!”

“जी महाराज, आप से एक अरज करनी थी” सुखिया ने अपना पासा फेंका

“बोल… “

“परिवार बड़ा होता जा रहा है… आपकी कृपा से दोनों बेटों का विवाह हो गया है और खाने वाले मुंह बढ़ गए है.. खेत अब छोटा पड़ रहा है… थोड़ी सी महरबानी हो जाती तो… ” कुटिल सी मुस्कान के साथ सुखिया ने कहा

“ठीक है… दीवानजी से कहना मेरा आदेश है की दो खेत तेरे नाम कर दिए जाए… ” शराब को प्याली में डालते हुए महाराज ने कहा

“महाराज की जय हो… आप बड़े कृपालु है” सलाम करते हुए सुखिया खुशी खुशी चला गया।

रात्री का समय होते ही भोजन के पश्चात महाराज अपने कक्ष में व्याकुल होकर अपने चुदाई के प्रबंध की प्रतीक्षा कर रहे थे। कुछ देर तक कमरे में यहाँ वहाँ चक्कर काटने के बाद उन्होंने सैनिक से पूछने पर पता चला की एक खास गणिका को गुसलखाने में तैयार किया जा रहा था।

महाराज ने अपने उपरार्ध के वस्त्र निकाल दिए और केवल धोती में अपनी कुर्सी पर बैठ गए।

थोड़े अंतराल में ही उनके कक्ष का दरवाजा खुला और २५ की उम्र की एक आलीशान कद-काठी वाली लड़की ज़रीदार साड़ी पहने अपनी आँखें नचाती हुई कक्ष में दाखिल हुई। उसे देखते ही महाराज की आँखों में चमक आ गई।

चमकीली चोली में उसके शानदार सुगठित स्तन और उसकी चाल में ताल से ताल मिलाते हुए उसके सुंदर फूले हुए कूल्हे। वह कद में लंबी थी और उसके गहरे काले लंबे बाल थे, दांत मोती जैसे सफेद और सुगठित थे, होंठ छोटे लाल थे, उसके शरीर से मीठी गंध आ रही थी। गुसलखाने में दासियों ने विपुल मात्रा में इत्र का छिड़काव जो किया था। गोलाकार मुलायम अड़तीस इंच या इससे ऊपर के स्तन थे और गर्दन शानदार नाजुक चिकनी त्वचा से बनी थी जो देखने में बेहद कामुक लग रही थी।

वह गांड मटकाती हुई महाराज के पास आई और उन्हे गुलाब के फूलों की माला पहनाई।

महाराज ने माला स्वीकार करने के लिए अपना सिर झुकाया और उसकी चिकनी मुलायम भुजाओं को बुरी तरह से रगड़ा और उसकी चोली की गहरी खाई और उसमें छिपे नरम-नरम स्तनों को घूरने से खुद को रोक नहीं पाएं। उसमें एक मादक सुगंध थी जो महाराज को बेहद उत्तेजित करती थी।

महाराज ने उसे बाहुपाश में जकड़ लिया और पीछे से ही उसके घाघरे में अपने हाथ डाल दिए। उसकी कमर छोटी थी लेकिन छूने में काफी मुलायम थी और उसके नितंब साफ़ त्वचा वाले और कोमल मांसपेशियों से भरे हुए थे…. रेशम की तरह चिकने और मस्त।

महारज की उंगलियाँ उसके दोनों कूल्हों पर घूम रही थीं, उनके नुकीले नाखून उसकी जाँघों के मूल पर नरम, संवेदनशील त्वचा को बेरहमी से खरोंच रहे थे, जिससे वह कामुक आनंद में छटपटा रही थी और बड़बड़ा रही थी, साथ ही साथ वह अपने मजबूत पैरों को पटक रही थी और चुपचाप सहन कर रही थी।

वह जानबूझ कर रेशमी साड़ी के नीचे बिना किसी अन्तःवस्त्रों के आई थी और महाराज के हाथ उसके नितंबों की कोमलता से प्रसन्न होकर उन्हे सहलाये जा रहे थे। उस लड़की के चूतड़ों को घाघरे के अंदर ही हाथों से फैलाकर अपनी एक उंगली को उसके गांड के छिद्र को छेड़ने लगे। आँखें बंद कर वह लड़की, इन हसीन स्पर्शों का पूर्ण आनंद ले रही थी।

“क्या नाम है तुम्हारा” महाराज ने पूछा

“जी, मुझे मेनका कहकर पुकारते है” ज्यादातर गणिकाए इस पेशे के लिए अपना नाम बदलकर कोई उत्तेजक सा नाम रख लेती है

“बड़ी सुंदर हो तुम मेनका… यह तुम्हारी खुशकिस्मती है की तुम्हें इस राज्य के महाराजा को खुश करने का मौका प्राप्त हुआ है… “

“जी, इस अवसर के लिए में कृतज्ञ हूँ.. में वचन देती हूँ की आपको स्वर्गीय सुख प्रदान करूंगी… में इस कार्य में बेहद निपुण हूँ ” आँखें झुकाकर उसने कहा

सुनते ही राजा प्रसन्न हो गए… मेनका को खींचकर बिस्तर पर बैठाते हुए उन्होंने एक झटके में अपनी धोती की गांठ खोल दी और पूर्ण नग्न हो गए। उनकी तीन इंच की लौड़ी तनी हुई थी। देखकर एक पल के लिए मेनका की हंसी छूट जाने वाली थी पर व्यावसायिक कौशल ने उसे ऐसा करने से रोक लिया। वह ऐसे नाटकीय भाव से भाव-विभोर होकर महाराज के लंड को देखने लगी जैसे कभी उसने ऐसा बड़ा लंड देखा ही न हो…!!

“अपने वस्त्र उतारो, मेनका.. ” महाराज ने आदेश दिया

यह सुनते ही वह बिस्तर से खड़ी हो गई… बेशर्मी से उसने महाराज के सामने अपने कपड़े उतारने लगी, अपनी सुनहरी ब्रोकेड वाली रेशम की साड़ी को आसानी से उतार कर सिर्फ एक छोटी सी चोली में खड़ी थी, जो उसके शानदार स्तनों को अप्रभावी रूप से नियंत्रित करने के लिए दबाव डाल रही थी।

महाराज ने दोनों हाथों से उस छोटी सी चोली को अलग कर लिया और वह रेशमी चोली के फटने की आवाज आई। चोली के फटते ही मेनका कराह उठी और महाराज ने दर्द भरे जुनून के साथ उसके चमकते देवदूत जैसे गोरे शरीर को गले लगा लिया।

उसके लाल रसीले होंठों को महाराज पागलों की तरह चूमने लगे और उसके गर्म हाथ ने उनके लंड को अपने हाथ में ले लिया। महाराज का लोडा मेनका की हथेली में उछल-कूद करने लगा। बड़ी ही कुशलता से उसने महाराज के टट्टों को भी सहलाया।

महाराज ने उसके मुलायम नितंबों को अपने हाथों से दबोचा और उसकी गर्म कमर को अपने करीब लाने के लिए उसकी कमर को खींचा ताकि दोनों के जननेन्द्रियों का तुरंत मिलन हो पाए। महाराज के हाथ उसके शरीर के रसीले किनारों को ऊपर घूमने लगे और अंत में उसके दूधिया स्तनों को और अर्ध-खड़े भूरे रंग के निपल्स को दोनों हथेलियों में भर लिया। उसके एरोला के रोंगटे इस स्पर्श से खड़े हो गए थे। महाराज काफी देर तक उसके स्तनों और निप्पलों के साथ खेलते रहे।

महाराज ने उसके कोमल होठों को अपने होंठों से खींच लिया और फिर उनका सिर उसकी भरी भरी छाती की ओर झुक गया और उसके स्वस्थ स्तनों को अपने मुँह की गर्माहट में ले लिया। स्तनों की बाहरी त्वचा को धीरे से चूसकर और उन स्वादिष्ट स्तनों के निचले हिस्से को दांतों से काटने के बाद उन्होंने मुंह में भरकर निप्पल को भी छेड़ा।

वह कराह उठी, “अहहहह… म्म्मम्म्म” और उसके हाथ ने महाराज के लंड को जोर से पकड़ लिया और उसके अंगूठा ने लंड के संवेदनशील सिरे सहलाकर, नोक पर लगी कुछ वीर्य की बूंदों को उसके उभरे हुए सुपाड़े पर फैला दिया। मेनका अब त्वरित चुदाई के लिए उत्सुक हो चली थी पर वह सारा नियंत्रण महाराज के पास ही रखना चाहती थी ताकि कोई गुस्ताखी ना हो।

मेनका की कोमल मोटी जांघों से टपकते स्त्री-स्राव के साथ, उसके भूरे रंग के निपल्स गर्म खून से सख्त हो गए थे और महाराज का लंड ऊपर-नीचे लहरा रहा था…

महाराज ने मेनका को बिस्तर के किनारे पर बैठा दिया और उसकी जाँघें फैला दी। जांघें खुलते ही उसके स्वर्गीय द्वार के दर्शन हुए। उसकी चुत एक सुगठित कमल के फूल की तरह थी, भीतरी होंठ गुलाबी, शहद की तरह टपकने वाले मीठे तीखे रस से हमेशा गीले, बाहरी होंठ जैसे कोमल पंखुड़ी और पकी हुई लाल चेरी के आकार की भगोष्ठ (क्लिटोरिस)!!!

महाराज उसकी बगल में लैट गए और उसकी शानदार छाती पर, उसकी कमर के मांस और जाँघों के किनारों के मुलायम स्तरों पर अपना हाथ सहलाने लगे। वह पीछे की ओर झुक गई, उसके शरीर के रोंगटे खड़े हो गए क्योंकि एक अजनबी आदमी के हाथों ने, इच्छा और शक्ति दोनों के साथ उसके नाजुक अंगों को छेड़ रखा था।

उसकी कोमल भूरी निप्पलों को देखकर महाराज का लंड हिलोरने लगा था। महाराज ने अपना सिर झुकाकर उसकी एक निप्पल को मुंह में भरकर कुछ देर तक चूसा और फिर हल्के से दांतों से काटा।

“उम्म्म्म्म्माह्ह्ह”, उसने महाराज के सिर को अपनी छाती से पकड़ कर कराहते हुए कहा और उसकी दूसरी कड़ी निप्पल ने महाराज के गालों में लगभग छेद कर दिया। महाराज ने अपने हाथ उसकी संगमरमर जैसी चिकनी गीली जाँघ की मांसपेशियों पर घूम रहे थे और उसकी फैली हुई जाँघों के बीच उस पंखुड़ीनुमा चुत की जाँच कर रहे थे। रेशमी घुंघराले झांटों का गुच्छा उसके प्रमुख योनी होंठों को छिपा रहा था और जहातों के झुरमुट के बीच उंगली डालकर महाराज उसकी चुत की दरार को टटोल रहे थे।

महाराज ने उसकी जाँघों को पूरी तरह से चौड़ा कर दिया और अब अपने होंठों को उसकी गर्म गीली चूत पर लगा दिया। उनकी लपलपाती जीभ ने चुत की दरार को ऊपर से नीचे तक चाट लिया।

मेनका अब बेहद बेचैन होकर बड़बड़ा रही थी, “हे महाराज… आप तो मेरे लिए ईश्वर का उपहार हैं। इतने वर्षों में किसी भी मर्द ने कभी भी मेरे साथ इस तरह से संभोग का आनंद नहीं लिया। कृपया मुझे बिना देर किए चोदिए और मेरी चुत को अपनी गर्मी से भर दीजिए।” अपने ग्राहक को रिझाने की यह युक्ति हमेशा सफल रहती थी मेनका की

यह सुनते ही महाराज अपना आपा खो बैठे। उन्होंने उसकी फूली हुई गीली चूत को चबाना बंद कर दिया और ऊपर की तरफ उठ गए। पहले उन्होंने मेनका को होंठों को चूसते हुए एक दीर्घ चुंबन दिया… फिर उसके स्तनों को बड़ी ही बेरहमी से मसला… और तत्पश्चात उसकी जांघों को फैलाकर उसके बीच में बैठ गए। उन्होंने दो तीन बार अपने लंड को मुठ्ठी में पकड़कर हिलाते हुए लंड का सख्तपना सुनिश्चित किया और फिर मेनका के चुत के होंठों को उंगलियों से फैलाकर योनि के मुख पर अपना छोटा लंड टीका दिया।

महाराज ने हल्का सा धक्का लगाया की तुरंत ही उनका लंड मेनका की अनुभवी चुत में घुस गया। महाराज के के झांट मेनका के झांटों से उलझ गए और उनका लंड अब उसकी रिसती हुई चूत के छेद का अछे से पता लगाने में व्यस्त हो गए। मेनका की आखिरी हिचकिचाहट अब उड़ गई और वह अब लंड को अपनी आरामदायक मुलायम गीली जगह में खींचकर चुदवाने लगी।

उसके स्तन अब महाराज की कामुक आँखों के सामने ऊपर-नीचे उछल रहे थे। महाराज ने उस समय का उपयोग उन तीखी गर्म निप्पलों को अपने होठों से छेड़ने के लिए किया और उन्हें अपने दांतों के बीच पकड़ लिया, जिससे मेनका बेलगाम होकर कराहने लगी।

महाराज ने अब उसके कोमल शरीर को उसकी कमर के चारों ओर से ऊपर उठाया, कमर को जोर से पीछे की ओर धकेला ताकि उनका लंड उसके अंदरूनी हिस्सों की गर्माहट का पूरा आनंद ले सके।

महाराज का लंड मेनका की योनी को लुगदी में अंदर बाहर होते हुए भिन्न भिन्न चुदाई की आवाजें, “चक्कक, थचक्क, पस्चचक्क,” इत्यादि जैसी आवाजें निकाल रही थीं। व्यस्त मिलन में लंड और चुत की इन मादक आवाजों से पूरा कक्ष गूंजने लगा।

कमलसिंह ने उसकी जाँघों पर ज़ोर से थप्पड़ मारा, उनकी थप्पड़ से मेनका की कण्ठस्थ कराह निकल गई। संभोग की मीठी गंध हवा में भर गई और मेनका के नथुने उस मादक गंध की सराहना में भड़क उठे..

महाराज ने मेनका के नरम ग्रहणशील शरीर को बिना रुके, कमर के लगातार झटके लगाते हुए, अपने लंड को उसकी जांघों के बीच ऐसे धकेलते रहे जैसे उसकी चुत को फाड़ देने की मंशा हो। उनके जोशीले परिश्रम के कारण दोनों के जिस्म पसीने से तर हो गए। महाराज ने अपने भूखे लंड से उसकी गीली उत्सुक चूत पर अपना कामुक हमला जारी रखा। दोनों की इंद्रियाँ अपरिमेय स्वर्गीय आनंद की ओर दौड़ रही थीं।

महाराज के अंडकोष मेनका की गाँड़ से जा मिले और इस मीठे घर्षण के कारण गुदगुदी की अनुभूति होने से वह लगभग स्खलित होने के कगार पर आ गए। जैसे ही बिस्तर पर दोनों की गर्म चुदाई, सांसें रोक देने वाली प्रतियोगिता में बदल गई, कमलसिंह ने अंततः महसूस किया कि उनके अंडकोष कस गए और उनके शाही टट्टों में से उनके लंड में वीर्य, सिरिंज में इंजेक्शन के तरल पदार्थ की तरह भर गया।

जैसे ही अंतिम चरमोत्कर्ष आया, मेनका की कराहें, फुसफुसाहट और आहों में बदल गईं, उसका शरीर पूरी तरह से फैल गया, उसके पेट की मांसपेशियाँ ऐंठन में ढह गईं क्योंकि उसके गर्भ ने उसकी चुत से ढेर सारे शहद को बाहर निकाल दिया। बिल्कुल उसी समय महाराज भी असहनीय स्थिति में आ गए, वह उस अद्भुत रूप से तृप्त मुलायम गद्दीदार शरीर पर ढेर होकर गिर पड़े, उनकी आँखों के सामने तारे दिखाई देने लगे। उनका छोटा लंड उछल उछल कर अपना वीर्य मेनका की चुत में छोड़कर निढाल हो गया।

सप्ताह पर सप्ताह यूँ ही बीतते गए… राजमाता और महारानी के संग लुकाछुपी का खेल खेलते हुए शक्तिसिंह दोनों को बराबर चोदता रहा। इसी बीच एक समाचार ने पूरे राज्य को आनंदित कर दिया। महारानी पेट से थी यह राजवैद्य ने घोषित करते ही पूरे राज्य में उत्सव का माहोल फैल गया। महाराज कमलसिंह की खुशी का ठिकाना ना रहा… उन्हों ने राज्य के सारे लोगों को दावत दी, गरीबों में धन लुटाया और मामूली जुर्म के कैदियों को रिहा किया। राजमाता भी इस समाचार से काफी आनंदित थी… अपना महत्व कम होने का डर भी लगा… पर अपनी क्षमता पर उन्हे पूर्ण भरोसा था…

महारानी की सेवा में दासियों का एक पूरा दल लग गया था। उनके खानपान और दवाइयों का खास ध्यान रखा जाता था। सैनिकों का एक दस्ता २४ घंटे उनके कक्ष को चारों ओर से घेरकर चौकी करता था। महारानी के मायके से विदेश केसर और जड़ीबूटी का घोल प्रतिदिन भेजा जा रहा था। उनका गर्भकाल बिना किसी विघ्न के सम्पन्न हो इसलिए राजमहल में खास प्रार्थना भी की गई थी।

दिन और रात दासियों और सैनिकों से घिरी रहकर महारानी परेशान हो गई। अब शक्तिसिंह से मिलने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी… ना ही अब वह दासी से अपनी गांड के छेद की मालिश करवा पाती… वह ऐसे तड़प रही थी जैसे जल बिन मछली तड़पती है। वह सोच सोच कर थक गई पर उन्हे अपनी चुत की आग बुझाने कोई रास्ता न दिखा। वह दिन भर उदास सी पड़ी रहने लगी… दासियों के पूछने पर कुछ बताती नहीं थी…

आखिर बात राजमाता के कानों तक पहुँच गई… उन्हे चिंता हुई क्योंकी गर्भावस्था में औरत का खुश रहना, शिशु की तंदूरस्ती के लिए काफी जरूरी था। वह तुरंत महारानी पद्मिनी के कक्ष में उनसे मिलने पहुंची। उनके आगमन के साथ ही सारी दासियाँ कक्ष के बाहर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया।

“कैसी तबीयत है तुम्हारी महारानी?”

“ठीक ही है… ” मुंह लटकाए महारानी ने जवाब दिया

“पर दासियाँ तो कह रही थी की तुम पूरा दिन बिस्तर में ही पड़ी रहती हो?”

“मेरा मन नहीं लगता… पूरा दिन उदासी सी छाई रहती है”

“फिर क्यों पूरा दिन मृत शरीर की तरह पड़ी रहती हो? बाहर निकलो, बागीचे में घूमो, संगीतकारों से संगीत सुनों, दरबार में आकर बैठो… तभी तो तुम्हारा मन बहलेगा…यूं पड़े रहने से तो मन की उदासी दूर नहीं होने वाली” राजमाता ने समझाया

“आप नहीं समझेगी राजमाता… मेरे मन में अजीब सी कशमकश लगी रहती है… कुछ भी करने को मन नहीं करता… “

“में भी इस काल से गुजर चुकी हूँ… मुझे इस स्थिति का पूरा ज्ञान है… तुम्हें किसी न किसी चीज में तो तुम्हारा मन लगाना ही होगा” राजमाता ने थोड़े से कड़े स्वर में कहा

“राजमाता, क्यों न हम फिर से यात्रा करने निकले, पिछली बार की तरह?”

महारानी के इस बचकाने प्रश्न से राजमाता सोच में पड़ गई। वह यह तय नहीं कर पा रही थी की महारानी का इशारा यात्रा की ओर था या यात्रा दौरान जिस तरह उसने टाँगे फैलाकर चुदवाया था उसका जिक्र कर रही थी!!

“इस परिस्थिति में तुम्हारा यात्रा करना उचित नहीं होगा… यह तुम भी जानती हो.. !!”

“में कुछ नहीं जानती… फिर में और कर के अपना दिल बहलाऊँ??”

“यह तो तुम्हें ही ढूँढना होगा… इतनी सारी मनोरंजन की व्यवस्था है… थोड़ा बाहर निकलो तो अच्छा महसूस होगा” कहते हुए राजमाता उठ खड़ी हुई

राजमाता के जाने के बाद महारानी फिर से बिस्तर पर ढेर हो गई… उनकी चुत में ऐसी सरसराहट हो रही थी जो उन्हे बेचैन बना देती थी… उन्होंने उंगली कर चुत को शांत करने की भरसक कोशिश की पर उससे तो चुदाई की भूख और भी बढ़ गई। पूरा जिस्म किसी मजबूत पुरुष की चाह में तड़प रहा था। अपनी मांगे संतुष्ट ना होने पर उनकी चुत आंदोलन पर उतर आई थी। उनके शरीर के ग्रंथिओ का अंत:स्राव उन्हे पागल बना रहा था।

करवटें बदलते हुए सारी रात उन्हों ने बिना नींद के ही बीता दी।

रोज की तरह महाराज उनकी तबीयत का हाल जानने के लिए पधारे। महारानी का उतरा हुआ मुंह, लाल आँखें और सूजा हुआ चेहरा देखकर वह बेहद चिंतित हो उठे।

“आप की तबीयत ठीक नहीं लग रही पद्मिनी… ” परेशान महाराज ने पूछा

महारानी ने उत्तर न दिया

“कुछ तो बोलो… तुम्हें कोई समस्या है… किसी प्रकार की कोई चिंता… हमे बताइए… हम तुरंत उसका हल निकालेंगे..”

“आप हमे चाहकर भी खुश नहीं कर पाएंगे…”

“आप मांगकर तो देखिए… आप को खुश रखने के लिए में कुछ भी कर गुज़रूँगा… यह वचन है आप से मेरा”

“राजमहल में मेरा दम घुटता है… इन चार दीवारों में मेरा मन व्यग्र हो जाता है। में बाहर निकालना चाहती हूँ… क्या आप इसका प्रबंध कर सकते है?”

सुनकर महाराज थोड़े से हैरान हुए… गर्भावस्था में सफर करना अनुचित था… पर महारानी को खुश करना भी जरूरी था… आखिर वह इस राज्य के वारिस को जनम देने वाली थी… और वह उन्हे वचन भी दे चुके थे…

“मेरे पास एक सुझाव है… कुछ ही दिनों में, मैं पास के जंगल में शिकार करने जाने वाला हूँ… आप मेरे साथ चलिए… जगह नजदीक है और जाने के लिए पक्की सड़क भी है… आप को कोई कष्ट नहीं होगा। दो तीन दिनों में हम वहाँ सारा इंतेजाम करवा देंगे… प्राकृतिक वातावरण में तुम्हारा मन भी बहल जाएगा और आपके साथ वक्त बिताने का मौका भी मिल जाएगा”

सुनते ही महारानी की आँखें चमक उठी।

“पर महाराज, वहाँ जंगल में सुरक्षा की भी जरूरत पड़ेगी… दुश्मनों से और जंगली जानवरों से भी.. ” महारानी ने अपना जाल बिछाया

“उसकी चिंता आप मत कीजिए… हमारे चुनिंदा सैनिक आपकी सुरक्षा के लिए वहाँ मौजूद रहेंगे। “

“फिर ठीक है… हो सके उतना जल्दी शिकार पर जाने का प्रबंध कीजिए… हम से अब रहा नहीं जाता” महारानी की खुशी पूरे चेहरे पर झलक रही थी।

“चलते है… कुछ ही दिनों में शिकार यात्रा के बारे में आपको सूचित कर दिया जाएगा… ” महाराज ने विदाय ली

महारानी का मन रोमांचित हो उठा… वह शक्तिसिंह से मिलन की आस से बेहद प्रफुल्लित होकर चैन की नींद सो गई।

दूसरी सुबह जब राजमाता को यह समाचार मिल तब वह तुरंत ही महाराज कमलसिंह से मिलने पहुँच गई।

“पधारिए राजमाता… कहिए कैसे आना हुआ?”

“कमल, यह में क्या सुन रही हूँ? तुम पद्मिनी को लेकर शिकार पर जाने वाले हो?” अचंभित होकर राजमाता ने पूछा

“आप ने सही सुना है… महारानी का मन राजमहल में नहीं लग रहा है… वह कुछ दिन बाहर बिताना चाहती है… संयोग से में इसी दौरान शिकार पर भी जाने वाला हूँ… सोचा पद्मिनी को अपने साथ लेता चलूँ… महारानी की सैर भी हो जाएगी और मेरा भी दिल लगा रहेगा”

“इस अवस्था में तुम पद्मिनी को बीहड़ जंगल में ले जाने की सोच भी कैसे सकते हो? कहीं कोई उंचनीच हो गई तो?” चिंतित आवाज में राजमाता ने कहा

“कुछ नहीं होगा… जंगल तक पक्की सड़क का निर्माण तो हमने तीन साल पहले करवा ही दिया है.. वहाँ तंबू और खेमे में हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराने का में आदेश दे चुका हूँ… दासियों का समूह महारानी की अच्छी देखभाल करेगा… और सुरक्षा के लिए शक्तिसिंह के नेतृत्व में सैनिकों का दल वहाँ मौजूद रहेगा… फिर किस बात की चिंता!!”

शक्तिसिंह का नाम सुनते ही राजमाता के कान खड़े हो गए… धीरे धीरे उन्हे महारानी की सारी योजना समझ में आ गई।

“में भी तुम लोगों के साथ शिकार यात्रा पर चलूँगी” राजमाता ने पासा फेंका

“राजमाता, आप वहाँ आकर क्या करेगी? आपको खामखा तकलीफ होगी वहाँ “

“तुम ही ने तो कहा की वहाँ सारी सुविधाएं उपलब्ध करवा दी जाएगी… फिर मुझे भला क्या दिक्कत होगी!! और वैसे भी ऐसी स्थिति में परिवार की एक स्त्री का महारानी के साथ रहना बेहद जरूरी है”

“ठीक है… जैसा आप ठीक समझे… ” महाराज कमलसिंह ने राजमाता के सामने हथियार डाल दिए।

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