शक्तिसिंह ने अपना सिर ऊपर कर राजमाता की निप्पल को मुंह में ले लिया और चटकारे मारकर चूसने लगा। राजमाता उसे अपनी निप्पल से दूर करना चाहती थी पर शक्तिसिंह ने उनके चूतड़ों को इतनी मजबूती से पकड़े रखा था की वह अपनी निप्पल छुड़वा नहीं पा रही थी। उसकी चुसाई के बदौलत उनकी चुत में बाढ़ सी आ गई थी। kambikuttan
“आह्ह… शक्तिसिंह… “
शक्तिसिंह ने देखा तो उनका चेहरा अब छत की ओर था और वह आँखें बंद कर धमाधम उछल रही थी। उसने निप्पलों को बारी बारी चूसना जारी रखा।
शक्तिसिंह का लंड राजमाता की चुत में तूफान मचा रहा था। साथ में उनकी दोनों निप्पलों को मुंह में भरकर चूसे जा रहा था। उसके मजबूत हाथ राजमाता के भारी चूतड़ों को दबोचे हुए थे। राजमाता को अपनी मंजिल नजदीक आती नजर आई। इस पुरुष से चुदने पर, की जिसने उसकी बहु को भी उनके सामने चोदा था, राजमाता को अजीब तरह से उत्तेजित कर रहा था। और अब वह उसे अपने महल में खिलौने की तरह खेल पाएगी, इस संभावना का ज्ञान होने पर उन्हे बेहद खुशी मिल रही थी। वह अब जब चाहे अपने जिस्म को, शक्तिसिंह का उपयोग कर गुदगुदा सकती थी और संतुष्ट भी कर सकती थी।
“आहह बेटा.. हाँ… ऊई… अममम… हाय… आह्ह” राजमाता की चुत का बांध टूट गया… उनके अंदर भड़क रहे वासना के ज्वालामुखी का लावारस उनकी चुत से फव्वारे की तरह छूटा। शक्तिसिंह को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसके टट्टों पर किसी ने गरम पानी डाल दिया हो… थरथराती हुई राजमाता झटके मारते हुए स्खलित हो गई।
राजमाता थकान के मारे चूर होकर शक्तिसिंह के बगल में लाश की तरह गिरी.. उनका सम्पूर्ण शरीर क्षुब्ध हो गया था..
लेकिन शक्तिसिंह अभी स्खलित नहीं हुआ था…
वह अब राजमाता के ऊपर आ गया.. उनकी आँखें बंद थी इसलिए वह ये देख ना पाई। शक्तिसिंह ने तुरंत उनकी दोनों जंघाओं को विपरीत दिशा में खींचकर चौड़ा किया और अपना लंड एक झटके में राजमाता की शाही गुफा में अंदर तक घुसेड़ दिया।
अचानक से थकी चुत में हमला होते महसूस कर, राजमाता ने अचंभित होकर आँखें खोली। अपने ऊपर सवार इस सैनिक को देखकर वह उसकी ऊर्जा और शक्ति से अभिभूत हो गई।
शक्तिसिंह ने अब न आव देखा न ताव… जंगली घोड़े की तरह उसने राजमाता के चिपचिपे भोंसड़े में लगातार धक्के लगाने शुरू कर दिए। साथ ही वह उनके स्तनों पर भी टूट पड़ा… ताज़ा स्खलन से उभरी राजमाता की निप्पल काफी संवेदनशील हो गई थी पर इस बात से शक्तिसिंह को कोई फरक न यही पड़ता था। उसने दोनों स्तनों को जगह जगह पर चूमते और चाटते हुए निप्पलों को काटना शुरू कर दिया। राजमाता कराहने लगी… वासना का बहुत सिर से उतार जाने के बाद, इस तरह का वैशिपन बर्दाश्त करने में उन्हे कठिनाई हो रही थी… पर वह कुछ भी कर सक्ने की स्थिति में ना थी। नियंत्रण की डोर शक्तिसिंह के हाथ में थी। उसने बार बार शक्तिसिंह को अपने हाथों से रोकना चाह तब शक्तिसिंह ने मजबूती से उनके दोनों हाथों को नीचे दबा दिया और चोदने लगा।
लगातार पंद्रह मिनट तक जोरदार चुदाई के बाद शक्तिसिंह के लंड ने झाग छोड़ दिया… राजमाता का पूरा भोंसड़ा शक्तिसिंह के वीर्य से भर गया!! हालांकि रजोनिवृत्ति पार कर गई राजमाता को गर्भवती होने का कोई डर नहीं था वह गनीमत थी। kambikuttan
पसीने से लथबथ और हांफता हुआ शक्तिसिंह, राजमाता के बगल में सो गया… उसकी साँसे अभी भी काफी तेज चल रही थी। राजमाता ने शक्तिसिंह के लंड को प्यार से पकड़ा और उसे आहिस्ता आहिस्ता हिलाते हुए उसका बच कुछ वीर्य बाहर निकालने में मदद करने लगी। अपने वीर्य से सने हाथ उसने स्तनों पर पोंछ लिए। और फिर अपनी निप्पल शक्तिसिंह के मुंह में दे दी। काफी समय तक दोनों उसी अवस्था में पत्थर पर पड़े रहे।
राजमाता ने जैसे अपना खोया हुआ आत्मविश्वास प्राप्त कर लिया था।
“आत्मविश्वास बहाल करने के लिए संभोग और स्खलन से बेहतर और कुछ नहीं” विजयी मुस्कुराहट के साथ राजमाता सोच रही थी…
वह अब नए सिरे से पुनर्जीवित और शक्तिशाली महसूस करते हुए राज्य की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पुनः तैयार हो गई थी…
सुबह का आगाज होते ही, शक्तिसिंह अपने खेमे के साथ सूरजगढ़ की तरफ चल पड़ा। अपने तंबू में बड़े ही आराम से, संभोग की थकान उतारते हुए राजमाता, अपने पलंग पर लैटी हुई थी। एक अद्वितीय सी संतृप्ति उनके सोये हुए चेहरे से झलक रही थी। संभोग के पश्चात आती निंद्रा सब से उत्कृष्ट होती है। उन्होंने ओढ़ी हुई मखमली चद्दर के नीचे वह नग्नावस्था में सोई हुई थी। जबरदस्त चुदाई के कारण उनका शरीर इतना संवेदनशील हो चला था की वह अपने शाही जिस्म पर वस्त्र भी बर्दाश्त नही कर पा रही थी। उनके गुप्तांग में अभी भी मीठे दर्द की झुरझुरी सी चल रही थी।
तंबू के करीब से गुजरते हुए घोड़ों के कदमों की आवाज से उनकी नींद खुल गई। अपनी दोनों जांघों को आपस में घिसकर वह अपनी योनि में लिप्त आद्रता को महसूस करते ही मुस्कुरा उठी। उन्होंने करवट ली और तकिये पर अपनी कोहनी रखकर जिस्म को उसके ऊपर टीकाकर वह गहरी सोच में डूब गई। उन्हे यकीन था की शक्तिसिंह के साथ उन्होंने जो कारनामा किया था उसका समाचार महारानी पद्मिनी के कानों तक जरूर पहुँच चुकी होगी। स्त्री-सहज ईर्षा और मालिकी-भाव से पीड़ित होकर महारानी जरूर कुछ ना कुछ करना चाहेगी, पर कर नही पाएगी। ज्यादा से ज्यादा वह इसके बारे में राजा कमलसिंह को बता देगी… फिर भी राजमाता आश्वस्त थी की कोई उनका कुछ भी बिगाड़ न पाएगा। उनका पुत्र, राज्य के सारे कारभार के लिए उन पर निर्भर था और वह उनके विरुद्ध जाने की हिम्मत नही कर पाएगा। kambikuttan
शक्तिसिंह रूपी खिलौना प्राप्त कर राजमाता इतनी आनंदित थी की वह किसी भी सूरत में उसे अपने पास से किसी को छीनने नही देने वाली थी। उनका शातिर दिमाग, उत्पन्न होने वाली सारी समस्याओं की कल्पना कर चुका था और उसके हल भी ढूंढ चुका था। फिलहाल वह कुछ दिनों के लिए इस जगह पर आराम कर, वापिस लौटना चाहती थी। जिस काम के लिए यहाँ तक आए थे, वह काम तो बीच रास्ते ही मुकम्मल हो चुका था। इसलिए यहाँ ज्यादा समय व्यतीत करने का कोई कारण नही था। वह बस इतना ही वक्त बिताना चाहती थी जो महाराज को यकीन दिलाने के लिए काफी हो। वैसे महारानी के गर्भवती होने की संभावना का पता चलते ही, महाराज ज्यादा कुछ पृच्छा करे ऐसी गुंजाइश कम ही थी।
वहाँ अपने तंबू में लैटे हुए, दासी से पैर दबवा रही थी और उनके मुंह से चुगलियाँ सुन रही थी। दासी ने बड़े ही चाव से, चटकारे लेते हुए, सारा किस्सा सुनाया। हालांकि जिस वक्त शक्तिसिंह और राजमाता उस कुटिया में चुदाई कर रहे थे, तब वहाँ कोई मौजूद नही था, पर उनकी कराहने की आवाज, राजमाता की बाहर तक सुनाई देती सीसीकियाँ, और जब वह दोनों बाहर निकले तब जिस तरह उन दोनों के वस्त्र अस्त-व्यस्त थे, वह देखकर कोई अबुद्ध व्यक्ति भी समझ सकता था की अंदर क्या गुल खिलाए जा रहे थे। राजमाता का खौफ इतना था की कोई खुले मुंह ऐसी बातों को जिक्र करने से बचता।
“हाय… जरा घुटनों के ऊपर तक दबा.. बहुत दर्द हो रहा है!!” महरानी ने आह भरते हुए कहा
“जी रानी साहिबा… आप कहो तो गुनगुने तेल से थोड़ी मालिश भी कर दूँ?”
“थोड़ी देर बाद… तू यह बता की जब राजमाता और शक्तिसिंह बाहर निकले तब उनका हाल कैसा था?”
“क्या बताऊ? शर्म आती है मुझे” खिलखिलाकर हँसते हुए दासी बोली
“ज्यादा होशियार मत बन… मुझे सब पता है तू रात को जंगल में उस घुड़सवार के साथ जाकर क्या क्या करती है.. चुदवा चुदवा कर तेरे कूल्हे कितने बड़े हो गए है.. और अब बात करने में शर्म आ रही है तुझे!!”
“क्या महारानी जी, आप भी!! अरे वो दोनों जब बाहर निकले तब में उस घने पेड़ के पीछे से देख रही थी… शक्तिसिंह तो ठीकठाक दिख रहा था पर राजमाता का घाघरा सिलवटों से भरा हुआ था.. चोली भी ठीक से नही बांधी थी.. और बाल बिखरे हुए थे। चलते चलते वह लड़खड़ा रही थी। ही..ही.. ही.. लग रहा था की बड़ी ही दमदार चुदाई हुई होगी राजमाता की” हँसते हँसते दासी ने विवरण दिया
“और उसके बाद क्या हुआ?”
“उसके बाद तो शक्तिसिंह अपने तंबू में चला गया और राजमाता अपने तंबू में… कब से खर्राटे मारकर सो रही है.. सभी दासियों को आदेश दिया गया है की जब तक वह सामने से न बुलाए, कोई उनके तंबू में नही जाएगा…”
“हम्ममम… ” रानी ने अपनी टांगों को मोडकर अपने घाघरे को थोड़ा सा ऊपर तक उठा दिया..
“तू ठीक से मालिश कर.. तेरे हाथों में अब पहले वाला जोश नही रहा”
“क्या बात कर रही हो रानी जी… मेरा जोर तो पहले जैसा ही है… शायद आज भारी परिश्रम के कारण दर्द कुछ ज्यादा ही हो रहा है आपको.. ही..ही..ही..”
“बड़ी हंसी आ रही है तुझे… लगता है राजमहल पहुँच कर तेरा तबादला रसोईघर में करना पड़ेगा…”
“क्षमा कीजिए महारानी जी, अगर कोई गुस्ताखी हो गई हो तो… पर कृपया मुझे रसोईघर में ना भेजे… वह खानसामा पूरा दिन इतना काम करवाता है और रात को भी चैन नही लेने देता…”
“क्या बात कर रही है!! वो बूढ़ा बावर्ची भी चढ़ता है क्या तुझ पर?”
“अरे बात ही जाने दीजिए.. कमीना सिर्फ चेहरे से ही बूढ़ा है… पर उसका हथियार एकदम सख्त और हिंसक है… एक बार चढ़ाई करता है तो दो दिन तक में ठीक से चल नही पाती… “
“ठीक है, ठीक है… अब बातें कम कर और हाथ तेजी से चला… ऊपर जांघों तक मालिश कर.. और फिर कमर पर जरा तेल लगा दे… पूरा जिस्म दर्द कर रहा है आज तो.. “
महारानी पद्मिनी अब करवट लेकर उल्टा लेट गई। दासी उनके ऊपर सवार होकर दोनों हाथों से कमर पर तेल मलने लगी।
“जरा घाघरा नीचे सरका दीजिए ताकि में आपके पिछवाड़े पर ठीक से मालिश कर सकूँ”
महारानी ने अपना नाड़ा खोला और घाघरे को नीचे की तरफ सरका दिया
“हाय… कैसे गोरे गोरे चूतड़ है आपके महारानी जी… ऐसा लग रहा है जैसे मक्खन के दो पिंड हो.. “
“तू ज़बान कम चला अपनी… “महारानी थोड़ी शर्मा गई
दोनों कूल्हों पर गुनगुना तेल घिसते हुए दासी ने दोनों चूतड़ों को हल्का सा फैलाया… महारानी का बादामी रंग का छेद नजर आते ही वह मुस्कुरा दी… तेल की कुछ धाराएँ उस छेद तक जाने दी… और उंगली से उसके इर्दगिर्द मलने लगी…
“हाय… क्या कर रही है रे तू?” गांड के छेद पर स्पर्श होते ही महारानी सिहर उठी…
“अरे मालिश कर रही हूँ… कोई भी कोना छूटना नही चाहिए.. नही तो फिर आप ही वापिस रसोईघर में भेजने की बात कहेगी”
“पर देख तो सही तू कहाँ उंगली कर रही है!!”
“आप कहे तो ना करू”
“अमम करती जा.. पर जरा संभाल कर”
“जी महारानी”
दासी ने कुछ देर तक गांड के छिद्र पर गोल गोल उंगली घुमाई… महारानी को इतना मज़ा आने लगा… कभी सोचा नही थी उन्होंने की इस जगह से भी मज़ा लिया जा सकता था… हालांकि उन्होंने काम-शास्त्र के पठन के वक्त, गुदा-मैथुन के बारे में सुना जरूर था… पर दासियों के मुंह से भी यह बातें भी सुनी थी की यह कितना दर्दनाक होता है॥
दासी ने छिद्र को तेल से लसलसित कर अपनी उंगली को धीरे से अंदर घुसा दिया।
“ऊईई माँ… क्या कर रही है तू… ” रानी थरथरा गई
“थोड़ा सा तेल अंदर डाल रही हूँ… इससे आपको अच्छा भी लगेगा और सुबह मलत्याग में भी सरलता रहेगी”
महारानी कुछ भी बोले बगैर उस अनोखे एहसास को महसूस करते हुए लैटी रही… इतना आनंद आ रहा था की वह चाहती थी यह मालिश चलती ही रहे। कुछ देर अंदर बाहर करने के बाद दासी ने उंगली बाहर निकाल ली और चूतड़ों पर मालिश करने लगी।
“तूने उंगली डालना बंद क्यों कर दिया?”
“मुझे लगा की आपको तकलीफ हो रही होगी… इसलिए… ” दासी ने सकपकाकर कहा
“थोड़ी देर और कर… ठीक से तेल जाने दे अंदर”
“ठीक है महारानी साहिबा” दासी ने आश्चर्यसह वापिस अपनी उंगली अंदर डाल दी।
दासी ने देखा की जब भी वह उंगली गांड के अंदर डालती तब महारानी के चुत के होंठ भी सिकुड़ जाते… उंगली बाहर निकालते ही वह पूर्ववत हो जाते। कुछ देर ऐसा करने पर उनकी चुत के होंठ और झांटों पर गीलापन नजर आने लगा। दासी समझ गई की क्यों महारानी ने वापिस उंगली करने को कहा। वह मन ही मन मुस्कुराने लगी।
“जरा तेजी से आगे पीछे कर” भारी आवाज में महारानी ने कहा।
दासी ने आदेश का पालन किया। उसने देखा की महारानी ने अपने एक हाथ से स्तन को धर दबोचा था और वह चोली के ऊपर से ही अपनी निप्पल को मरोड़ रही थी। पता चल गया की क्यों दोबारा उन्होंने गांड में उंगली करने को कहा!! महरानी को इसमे बेहद मज़ा आ रहा था। दासी भी इस नई खोज पर खुश हो गई… महारानी को खुश रखने पर… आए दिन वह तोहफे दिया करती थी। किस्मत अच्छी रहे तो कभी कभार एकाद सुवर्ण मुद्रा भी मिल जाती थी।
दासी ने अपनी उंगली तेजी से अंदर बाहर करना शुरू कर दिया… साथ ही साथ वह थोड़ा थोड़ा तेल भी डालती रहती ताकि महारानी के गांड के छेद को जरा सी भी तकलीफ ना हो। महारानी पद्मिनी अब आँखें बंद कर आहें भर रही थी। उनकी चुत भी अच्छी खासी मात्रा में द्रवित हो चुकी थी। साथ साथ वह अपने घुटनों के सहारे चूतड़ों को ऊपर नीचे करते हुए, दासी की उंगली के साथ ताल मिला रही थी। महारानी के पूरे जिस्म में खून तेजी से दौड़ रहा था… पूरा जिस्म पसीने और तेल से तरबतर हो चुका था। महारानी को इस स्थिति में देखकर दासी की जांघों के बीच भी चुनचुनी होने लगी। वह अपने घाघरे के ऊपर से ही अपनी चुत को बारी बारी दबा कर उसे चुप बैठने के लिए कह रही थी… kambikuttan
महारानी की चुत का सब्र का बांध अब टूटने ही वाला था। इस नए अनुभव को उनका शरीर बड़े ही चाव से महसूस कर रहा था… उनकी निप्पल कड़ी होकर चोली के भीतर बगावत कर रही थी। उनकी चुत सिकुड़ सिकुड़ कर किसी भी वक्त अपना इस्तीफा देने की धमकी दे रही थी। शरीर तेजी से कांप रहा था… उलटे मुंह लेटी महारानी हर सांस के साथ कराह रही थी। स्खलन बेहद नजदीक दिखाई पड़ रहा था…
तभी अचानक पीछे से आवाज आई…
“क्या हो रहा हैं यहाँ?” राजमाता की सत्तावाही आवाज ने दोनों को चोंका दिया
दासी ने तुरंत पास पड़ी चादर से महारानी के खुले चूतड़ ढँक दिए, पलंग से उठ खड़ी हुई और गर्दन झुकाकर खड़ी हो गई… राजमाता चलते चलते पलंग के करीब आई… उनके इस खलल से महारानी थोड़ी सी क्रोधित जरूर हुई पर गुस्से को व्यक्त करने की हिम्मत नही थी। उन्होंने अपने ऊपर पड़ी चद्दर को पकड़े रखा और करवट लेकर सीधी हो गई।
“वो जरा मालिश करवा रही थी में… !!” बड़ी सहजता से महारानी ने कहा
“तुम अब जा सकती हो” राजमाता ने दासी से कहा। दासी सलाम कर वहाँ से चली गई।
राजमाता का मन यह सोच रहा था की अगर मालिश ही हो रही थी तो महारानी इतनी बुरी तरह कराह क्यों रही थी!!
“महारानी, में तुम्हें यह पूछने आई हूँ की क्या तुम शक्तिसिंह द्वारा किए हुए कार्य से संसतुष्ट हो?”
रानी का मन द्विधा में यह सोच रहा था की राजमाता किस तरह की संतुष्टि की बात कर रही थी
कोई उत्तर ना मिलने पर राजमाता ने खुद ही स्पष्टीकरण किया
“क्या तुम्हें विश्वास है की तुम गर्भवती हो जाओगी?”
थोड़ी सी हिचक के साथ महारानी ने कहा “जी, लगता तो है… पर ओर तसल्ली के लिए एक-दो बार ओर अगर… ” वह आगे बोल न पाई
राजमाता ने क्रोधित नजर से महारानी की ओर देखा। वह समज गई की इस चुदैल को अब शक्तिसिंह का लंड भा गया था। और उसे किसी भी सूरत में राजमहल लौटकर शक्तिसिंह से दूर ही रखना था।
“मुझे लगता है की जितना भी हुआ है वह पर्याप्त है.. आखिर बीज को फलित होने के लिए और कितनी मात्रा में द्रव्य चाहिए?”
“जी, जैसा आप ठीक समझे” महारानी ने नजर झुका ली
शक्तिसिंह से संभोग किए हुए बस एक ही दिन गुजरा था पर महारानी के जिस्म का हर कतरा शक्तिसिंह के स्पर्श को याद कर रहा था।
“हम्म… तो फिर हम २ दिन और आराम कर, सूरजगढ़ वापिस लौटने की यात्रा करेंगे। में सिपाहियों को तैयारी करने के आदेश दे रही हूँ, तुम भी तैयार रहना.. “
“जी राजमाता..” महारानी ने उत्तर दिया।
राजमाता सख्त मुंह बनाए वहाँ से चली गई… महारानी को यह पता न चला की वह किस बात पर क्रोधित थी…!! कहीं उन्हे उसके और दासी के गांड-उंगली के खेल के बारे में पता तो नही चल गया? वैसे ऐसी गुंजाइश तो नहीं थी चूंकि तंबू के दरवाजे से इतनी बारीकी से नजर आना असंभव था… फिर भी…!!
दो दिनों के बाद, राजमाता और महारानी अपने दस्ते के साथ सूरजगढ़ लौटे। राजमहल में उनका भव्य स्वागत किया गया। सब को यही मालूम था की वह दोनों धार्मिक यात्रा कर वापिस लौटे थे। उनके अलावा महाराज कमलसिंह को यह बात ज्ञात थी और वह बड़ी बेसब्री से उनके लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। वह इस यात्रा के परिणाम को जानने के लिए बेहद उत्सुक थे।
राजमाता अपने कक्ष में पहुंचकर बिस्तर पर लेट गई। वह आँखें बंद कर पिछले एक हफ्ते के घटनाक्रम का मन में ही विश्लेषण कर रही थी। उन्होंने जिस तरह से सोचा था उसी हिसाब से सब हुआ। हालांकि एक डर उन्हे सताये जा रहा था और वह था महारानी पद्मिनी और शक्तिसिंह के बीच उत्पन्न हो चुकी नजदीकी का। उनका आदेश बड़ा स्पष्ट था की महारानी और शक्तिसिंह को किसी भी तरह की भावनाओ में बहने की अनुमति नही थी। पर जिस तरह से दो बार रानी और सैनिक, उनकी बगैर जानकारी के, संभोग करते हुए पकड़े गए थे, उन्हे यह डर था की कहीं वह दोनों छिप-छिपाके वापिस चोदने ना लग जाए। उन दोनों को रोकने के लिए राजमाता का शातिर दिमाग योजना बनाने लगा। कुछ देर पश्चात उन्होंने महाराज कमलसिंह को बुलावा भेजा। kambikuttan
महाराज के आते ही राजमाता सक्रिय हो गई और बिस्तर पर बैठ गई। पास पड़े आसन पर महाराज बिराजमान होकर यात्रा की जानकारी प्राप्त करने बेसब्र हो उठे।
“कैसी रही आपकी यात्रा, माँ”
“हम्म ठीक ही रही… में आश्वस्त हूँ की हमारा लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा”
महाराज के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। वह जानते थे की उनके वारिस का होना राज्य के लिए कितना महत्वपूर्ण था।
“हमे बड़ी ही प्रसन्नता हुई यह जानकर… वह योगी से इस कार्य के लिए पूर्ण सहयोग मिला होगा… उस जगह से हमारे परिवार का दशकों से संबंध रहा है… मुझे यकीन था की वह इस कार्य में हमारी सहायता जरूर करेंगे”
राजमाता ने कोई उत्तर ना दिया… मंजिल को कैसे हासिल किया गया था वह केवल राजमाता, महारानी और शक्तिसिंह ही जानते थे।
“क्या हुआ माँ? आप कुछ बोल नही रही..!!”
“कुछ नही.. बस थोड़ी सी थकान है… मैंने तुम्हें एक महत्वपूर्ण बात करने बुलाया है”
“जी बताइए माँ”
“पहली बात तो, में यह चाहती हूँ की महारानी के गर्भवती होने की बात को गोपनीय रखा जाए। रानी महल में सुरक्षा भी सख्त करनी है। हमारे दुश्मन तक अगर यह बात पहुंची तो महारानी की जान को खतरा हो सकता है।” राजमाता ने गंभीरता से कहा
“जी जरूर… में तुरंत आदेश देकर सुरक्षा के कड़े इंतेजाम करवाता हूँ… जनाना महल में सिर्फ विश्वसनीय दासियों को ही नियुक्त किया जाएगा…किसी भी अनजान व्यक्ति के प्रवेश को प्रतिबंधित किया जाएगा”
“हम्म… पर इतना पर्याप्त ना होगा.. में चाहती हूँ की तुम जनाना महल में शक्तिसिंह को नियुक्त करो। वह वफादार और बहादुर है और उसके नेतृत्व में कुछ सैनिक रानी महल का ध्यान रखेंगे।”
महाराज को यह सुन आश्चर्य हुआ
“माँ, शक्तिसिंह तो सैन्य का हिस्सा है… यहाँ महल में और काफी सैनिक है जो इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा सकते है”
“नहीं, में चाहती हूँ की महारानी और रानी महल के लिए शक्तिसिंह को ही नियुक्त किया जाए। मुझे उसकी बहादुरी और वफादारी पर पूर्ण विश्वास है… सैन्य के कार्यों के लिए किसी और सैनिक को नियुक्त कर सकते है।” राजमाता ने आदेशात्मक स्वर में कहा
महाराज के पास राजमाता की बात को स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प न था। उन्होंने जरूरी निर्देश दिए और दूसरे ही दिन शक्तिसिंह को रानीमहल की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई।
शक्तिसिंह को इस बात का अंदेशा था ही..!! जिस तरह से रानी और राजमाता उसके लंड के कायल हो गए थे वह जानता था की उसे करीब लाने के लिए ऐसी प्रयुक्ति, राजमाता जरूर आजमाएगी। फिलहाल उसे राजमाता से ज्यादा, महारानी पद्मिनी के करीब जाने में ज्यादा दिलचस्पी थी। महारानी के गोल गुंबज जैसे स्तन और गोरे गोरे भारी चूतड़, शक्तिसिंह के दिमाग से निकलने का नाम ही नही ले रहे थे। उनकी याद आते ही शक्तिसिंह का लंड इतना सख्त हो जाता था की धोती में छुपाना मुश्किल हो जाता।
महारानी को जैसे ही शक्तिसिंह के महल में नियुक्त होने के समाचार मिले… वह चहकने लगी। उनकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा… शक्तिसिंह के दमदार लौड़े से ठुकने के बाद उनकी चुत की प्यास और बढ़ चुकी थी। यात्रा से लौटते वक्त वह अमूमन यह सोच रही थी की वापिस फिर महाराज के ढीले लंड से चुदवाना पड़ेगा… शक्तिसिंह के मूसल के मुकाबले महाराज का लंड को तो नून्नी ही कहा जा सकता था। अब शक्तिसिंह के महल में आ जाने से फिर से वह उसके शक्तिशाली लिंग से खेल सकती थी… और चुदाई का पूर्ण आनंद ले सकती थी।
अपने खंड से बाहर निकलकर वह बरामदे के और चलती हुई उस स्थान पर जा पहुंची जहां शक्तिसिंह अपने दो सैनिकों के साथ पहरा दे रहा था। महारानी को देखकर उसकी आँखें चमक उठी। महारानी का इशारा पाते ही शक्तिसिंह ने दोनों सैनिकों को महल का चारों और से मुआयना करने जाने का निर्देश दिया। दोनों सैनिक अलग अलग दिशा में चल दिए। उनके नजर से ओजल होते ही महारानी ने शक्तिसिंह को अपनी बाहों में भर लिया!! शक्तिसिंह भयभीत हो उठा… अगर इस स्थिति में कोई उसे देख ले तो तुरंत ही उसका सर कलम दिया जाता। उसने महारानी को रोकना चाहा पर महारानी ने उसे कसकर जकड़ रखा था। वह बेतहाशा शक्तिसिंह को चूमे जा रही थी। उनके हाथ अब धोती के ऊपर से लंड को सहलाने लगे थे। वास्तविकता से अनजान उसका लंड हरकत में आकार महारानी की हथेलियों संग खेलने लगा। kambikuttan
महारानी ने अपना हाथ धोती में सरका दिया और शक्तिसिंह के मूसल को पकड़कर उसकी चमड़ी ऊपर नीचे करने लगी। शक्तिसिंह के आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया। वह चाहते हुए भी महारानी को सहयोग नही दे पा रहा था। वह इतना डरा हुआ था फिर भी उसका लंड पूर्णतः सख्त हो गया था। महारानी ने एक ही पल में उसका लंड धोती से बाहर निकाल दिया।
“यह क्या कर रही है महारानी जी!!! कोई आ गया तो आफत आ जाएगी…” सकपकाते हुए शक्तिसिंह ने कहा
महारानी ने उसकी बातों को अनसुना करते हुए घुटनों को मोड़ा और नीचे की और गई। अब शक्तिसिंह का लंड महारानी के मुख के बिल्कुल सामने तोप की तरह तना हुआ था। महारानी के हाथ लंड पर तेजी से आगे पीछे हो रहे थे। अपनी मुठ्ठी में लंड को भरकर जब वह अंदर की तरफ दबाती तब शक्तिसिंह का लाल सुर्ख सुपाड़ा अपने दर्शन देकर महारानी को प्रफुल्लित कर देता…
बिना वक्त जाया किए महारानी ने शक्तिसिंह के सुपाड़े को अपनी मुंह में ले लिया। शक्तिसिंह की आँखें बंद हो गई। अति-आनंद और घबराहट के बीच शक्तिसिंह झूल रहा था। वह हर दूसरे क्षण दोनों दिशाओं में देखता रहता था… महारानी पागलों की तरह उसका लंड चूसे जा रही थी। उसके लंड का जादू इस कदर सर पर सवार था की उनका दिमाग और कुछ सोच ही नही पा रहा था। शक्तिसिंह का फनफनाता लंड इस उत्तेजना को झेल पाने के लिए असमर्थ था और किसी भी वक्त अपना इस्तीफा दे सकता था। बड़ी ही मुश्किल से शक्तिसिंह ने उसे रोके रखा था।
लंड चूसते हुए महारानी अब शक्तिसिंह के टट्टों को भी सहला रही थी…. शक्तिसिंह की बर्दाश्त की सारी सीमा पार हो गई थी… महारानी के मुंह की गरम गलियों में गश्त लगाते हुए लंड पूरे उफान पर था। तीन चार बार और जोर से चूसने पर लंड ने हथियार रख दिए… फुले हुए सुपाड़े ने महारानी के मुख में वीर्य की बौछार कर दी। तीन चार जबरदस्त पिचकारियाँ लगते ही महारानी का दम घुटने लगा… पर वह फिर भी चूसे जा रही थी… लंड के अनूठे शक्ति-रस का पान कर वह धन्य हो गई थी!! शक्तिसिंह का लंड अब अपनी सख्ती छोड़ रहा था… यह महसूस होते ही महारानी ने लंड मुंह से निकाला और खड़ी हो गई। उसने शक्तिसिंह के चेहरे को पकड़ा और उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए। शक्तिसिंह अपने वीर्य की गंध को महसूस कर रहा था… एक गहरा चुंबन देकर महारानी ने फुसफुसाते हुए शक्तिसिंह के कानों में कहा
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“रात को चुपके से मेरे कक्ष में आ जाना… ध्यान रहे किसी को इस बात का अंदेशा नही लगना चाहिए”
उन्होंने अपने वस्त्र को ठीक किया और एक शरारती मुस्कान देते हुए वहाँ से चल दी… शक्तिसिंह ने भी अपने लंड को तुरंत धोती के अंदर डाल दिया और पूर्ववत हो कर पहरा देने लगा। अभी जो कुछ भी हुआ था उसका विश्वास उसे अभी भी नही हो रहा था। महारानी की इस हिम्मत को देख वह दंग रह गया था!!
कुछ ही देर में दोनों सैनिक गश्त लगाकर लौट आए। उन में से एक ने शक्तिसिंह को बताया की राजमाता ने उसे हाजिर होने का हुकूम दिया है। आश्चर्य सह शक्तिसिंह राजमाता के कक्ष की और चल दिया। रानी महल के दूसरे हिस्से में उनका निवास था। उनके कक्ष में प्रवेश करते ही उसने देखा की वह बिस्तर पर टाँगे फैलाए बैठी थी और दो दासियाँ उनके पैर दबा रही थी। kambikuttan
शक्तिसिंह को देखते ही राजमाता ने आँखों से इशारा किया और दोनों दासियाँ उठकर कक्ष से बाहर चली गई।
शक्तिसिंह नतमस्तक होकर खड़ा रहा।
“हम्म तो कैसे हो तुम शक्तिसिंह?”
“आपकी कृपा है राजमाता” शक्तिसिंह ने हाथ जोड़कर कहा
“तुम्हें रानी महल की सुरक्षा की जिम्मेदारी मिलने पर हैरानी तो जरूर हुई होगी… है ना!!”
“में तो इस राज्य का सेवक हूँ राजमाता… मेरा परिवार पीढ़ियों से राजमहल की सुरक्षा करता आया है… यह तो मेरा सौभाग्य है की मुझे इस जिम्मेदारी के लिए काबिल समझा गया… में किसी भी प्रकार की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहूँगा” सिर झुकाकर शक्तिसिंह ने कहा। उसके मुरझाए लंड से वीर्य की बचीकूची बूंदें उसकी जांघों को गीला कर रही थी।
राजमाता के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कान दौड़ गई। सारी स्थिति पर अपना पूर्ण नियंत्रण का एहसास होने पर वह मन ही मन बहुत खुश थी। शक्तिसिंह की सेवा के लिए उनका शाही भोंसड़ा पिछले कई दिनों से तड़प रहा था। शक्तिसिंह को अपने करीब लाने के लिए जो व्यवस्था उन्होंने आयोजित की थी वह सफल होती नजर आई..
“तुम आज से मेरे कक्ष की रखवाली करोगे… ” राजमाता ने आदेश दिया
“क्षमा कीजिए राजमाता… पर मुझे तो महारानी पद्मिनी के कक्ष की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है!!” शक्तिसिंह राजमाता के इस खेल को अभी समझ नही पा रहा था
“अब तुम मुझे बताओगे की कैसे और क्या करना है?” राजमाता ने क्रोधित स्वर में कहा
“माफ कीजिए राजमाता जी, में तो केवल वही बता रहा था जिसका मुझे आदेश दिया गया था”
“अब से जो में कहूँगी, वही तुम्हारे लिए आदेश होगा, समझे!!” राजमाता ने बड़ी ही कड़ी आवाज में कहा। शक्तिसिंह का लाभ उठाने के लिए उसे वश में करना अत्यंत आवश्यक था।
“जी राजमाता, जैसी आपकी आज्ञा” गर्दन झुककर शक्तिसिंह ने स्वीकार किया
“दूसरी बात… रात के वक्त मेरे कक्ष के बाहर केवल तुम ही पहरा दोगे… बाकी सारे सैनिकों को महारानी की सुरक्षा के लिए भेज दिया जाए”
शक्तिसिंह को अब बात धीरे धीरे समझ में आने लगी थी। पहले तो राजमाता ने अधिक सुरक्षा का प्रश्न उठाकर शक्तिसिंह को महल में तैनात करवा दिया और अब महारानी की सुरक्षा का बहाना बनाकर सारे सैनिकों को वहाँ भेजने की बात कही। उनका उद्देश्य स्पष्ट था।
“मेरे हुकूम की आज से… बल्कि अभी से ही पालन हो… अब तुम जा सकते हो… में रात्री के प्रहार पूरी सुरक्षा का मुआयना करने आऊँगी। अगर जरा सी भी कोताही बरती गई तो में किसी को भी जिंदा नही छोड़ूँगी” आदेशात्मक स्वर में बोलकर राजमाता बिस्तर पर लेट गई और अपने दोनों घुटनों को मोड लिया। उनका घाघरा घुटनों तक ऊपर चढ़ गया और शक्तिसिंह को उनकी मांसल गोरी जांघें नजर आने लगी। हालांकि अभी कुछ देर पहले ही स्खलन हुआ था पर फिर भी शक्तिसिंह के लंड ने हरकत करना शुरू कर दिया। वह आँखें फाड़कर उनकी मलाई जैसी गोरी पिंडियों को देख रहा था।
“क्या देख रहे हो ?” राजमाता ने उसकी तरफ देखकर कहा
शक्तिसिंह ने अपनी आँखें झुका ली। अपनी चोरी पकड़ी जाने पर वह शर्मा गया।
“अब तुम जा सकते हो” राजमाता ने आँखें बंद करते हुए कहा
शक्तिसिंह उलटे पैर वापिस लौट गया। उसने अपने दल को महारानी के कमरे के बाहर पहरा देने का निर्देश दिया। कुछ देर बाद वह महारानी के कमरे में जा पहुंचा… महारानी उस वक्त अपने खंड में अकेली थी। शक्तिसिंह को देखते ही उनकी आँखें चमक उठी।
“अरे, तुम तो बड़ी जल्दी आ गए… भूल गए क्या, मैंने तुम्हें रात को आने के लिए कहा था” बड़े ही धीमे स्वर में महारानी ने कहा
शक्तिसिंह तय नही कर पा रहा था की बात की शुरुआत कैसे करें
“जी में… वो आपको… ” शक्तिसिंह के गले में शब्द अटक गए थे
“साफ साफ बोलो, क्या कहना चाहते हो… “
“जी में यह सूचित करने आया था की आपसे मिलने आज रात में नही आ पाऊँगा”
“वह क्यों भला… एक ही बार में तुम्हारा हथियार थक गया क्या? यात्रा के दौरान तो जब देखो तब वह खड़ा ही दिखता था!! पर चिंता मत करो, रात होने में अभी वक्त है… तब तक तुम जरूर तैयार हो जाओगे इसका मुझे पूर्ण विश्वास है.. ” महारानी पद्मिनी ने मुसकुराते हुए कहा
“जी बात वो नही है… ” शक्तिसिंह ठीक से समझा नही पा रहा था
“दरअसल मुझे राजमाता के कक्ष की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है इसलिए…. ” सकपकाते हुए शक्तिसिंह ने कहा
“क्या? किसने कहा तुमसे? महाराज का आदेश स्पष्ट था… इन अतिरिक्त सैनिकों को मेरी सुरक्षा के लिए ही भेजा गया है… और मेरा उद्देश्य तो यह है की जब तक गर्भधारण का समाचार ना मिले तब तक ज्यादा से ज्यादा संभोग कर में उसे सुनिश्चित कर सकूँ। इस बात को तुम हम दोनों के बीच तक ही सीमित रखना। तुम चिंता मत करो, में महाराज से बात करती हूँ”
“जी मुझे इस बात का आदेश राजमाता ने दिया है” डरते डरते शक्तिसिंह ने कहा
यह सुनते ही महारानी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। पर वह कुछ बोल नही पाई। उसे मालूम था की कमलसिंह नाम मात्र के राजा थे, असली राज तो राजमाता ही चलाती थी। पूरे राजमहल में किसी की हिम्मत नही थी की वह राजमाता के आदेश को अनसुना करे।
“शक्तिसिंह तुम अभी आ ही गए तो कक्ष का दरवाजा बंद कर लो… रात होने में अभी वक्त है.. तब तक हम थोड़ी देर… ” शैतानी मुस्कान के साथ आँखें नचाते हुए महरानी ने कहा
“पर महारानी जी, बाहर खड़े सैनिकों ने मुझे अंदर आते देखा है… यहाँ ज्यादा समय व्यतीत करना अयोग्य होगा और उनको शंका हो जाएगी”
“तुम उनके सरदार हो… उन्हे कैसे संभालना वह तुम जानो… अभी फिलहाल में जैसा कह रही हूँ वैसा करो ” महारानी के सर पर हवस का भूत सवार था। वह कैसे भी कर अपनी मखमली चुत में शक्तिसिंह का साबुत डंडा लेना चाहती थी।
“राजमाता ने कहा है की वह सुरक्षा व्यवस्था का मुआयना करने कभी भी आ सकती है… ऐसी सूरत में इतना बड़ा जोखिम उठाना उचित नही होगा महारानी जी” शक्तिसिंह ने डरते हुए कहा
राजमाता का नाम सुनते ही महारानी का दिमाग कलुषित हो गया… उनकी इस दखलंदाज़ी के कारण वह शक्तिसिंह को प्राप्त नही कर पा रही थी। उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर शक्तिसिंह की बात भी सही थी। ऐसा जोखिम उठाना ठीक नही था। उन्होंने आँखों से इशारा कर शक्तिसिंह को जाने के लिए कहा। शक्तिसिंह के जाते ही उन्होंने अपनी खास दासी को बुलाया
“जी महारानी जी… आपने याद किया?”
“उस दिन जैसे फिर से मालिश कर दे मेरी कमर की” महारानी ने चोली खोलकर उलटे लेटते हुए कहा। उनको दोनों उरोज सफेद कबूतरों की तरह बाहर झूलने लगे। दासी की आँखें उनपर चिपक सी गई। तभी उन्होंने अपने घाघरे को थोड़ा सा नीचे सरकाते हुए लगभग घुटनों तक ला दिया। उनके दोनों चूतड़ उजागर हो गए। दासी समझ गई की महारानी क्या चाहती थी। उसने तेल की शीशी लेकर मालिश करना शुरू कर दिया।
इस तरफ राजमाता अपने कक्ष से बाहर चलते हुए महल के उस हिस्से की तरफ चलते हुए आ रही थी जहां महारानी का खंड था। बीच रास्ते में उन्हे शक्तिसिंह अपनी ओर आता दिखा… पास से गुजरने पर भी शक्तिसिंह ने आँखें उठाकर राजमाता की तरफ नही देखा और चलता गया। राजमाता ने विजयी मुस्कान के साथ उसकी तरफ एक नजर देखा और आगे चल दी।
महारानी के कक्ष के बाहर तीन सैनिक खुली तलवार लिए पहरा दे रहे थे। शक्तिसिंह की इस व्यवस्था से संतुष्ट होकर राजमाता ने महारानी के कक्ष में प्रवेश किया। महारानी का कक्ष दो हिस्सों में बंटा हुआ था। कमरे के आगे के हिस्से में शाही साज सजावट थी और आगे चलते ही परदे के पीछे दूसरे हिस्से में महारानी का बिस्तर था। शाम होने को थी और कक्ष में काफी अंधेरा हो रहा था। महारानी के बिस्तर के इर्दगिर्द जल रहे दीयों से चारों ओर प्रकाश फैला था। हालांकि कमरे का आगे का हिस्सा अंधेरे में डूबा हुआ था। दबे पाँव चली आ रही राजमाता की भनक दासी या महारानी किसी को ना हुई। राजमाता एक स्तम्भ के पीछे खुद को छुपाकर, परदे के पीछे बिस्तर पर चल रही गतिविधियों को देखने लगी। यात्रा के दौरान जब वह महारानी के तंबू में आई थी तब उन्हे यकीन था की उन्होंने महरानी की सिसकियाँ साफ सुनी थी। उन्हे संदेह था की दासी के साथ वह कुछ तो गुल खिला रही थी। kambikuttan
“आह… वैसे ही करती जा… थोड़ा सा और तेल लेकर उंगली डाल” महारानी कराहते हुए बोली
राजमाता को अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था…!! महारानी अपने बड़े बड़े कूल्हे फैलाए लेटी थी और उनकी दासी अपनी उंगली महारानी की गांड के छेद में डालकर आगे पीछे कर रही थी…!! यह देख राजमाता का जबड़ा लटक गया… हालांकि गुदा मैथुन के बारे में वह विस्तार से जानती थी पर ना तो कभी उन्होंने वास्तविकता में उसे देखा था और ना ही कभी महसूस किया था। वास्तव में वह मानती थी की गाँड़ के सिकुड़े छेद में लंड डलवाना काफी दर्दनाक होता होगा। पर महारानी को उंगली डलवाते हुए देख वह अचंभित थी क्योंकी रानी के चेहरे पर दर्द का कोई निशान दिख नही रहा था। वह तो बड़े चाव से इस उंगली-चोदन का आनंद ले रही थी।
महारानी अपनी चूचियाँ खुद ही मसल रही थी। राजमाता क्रोधित होकर हस्तक्षेप करने ही वाली थी पर कुछ सोचकर वह रुक गई और यह पूरा तमाशा देखने लगी।
दासी महारानी की गाँड़ में उंगली डालते हुए अपने अंगूठे से उनकी चुत के होंठों को भी ऊपर से रगड़ रही थी। महारानी सातवे आसमान पर पहुँच चुकी थी… वह हर दूसरे पल अपने चूतड़ को उछाल रही थी… अस्पष्ट शब्दों की बकवास किए जा रही थी… और साथ ही साथ अपनी निपलों को मरोड़े जा रही थी।
“और तेजी से अंदर बाहर कर… आह आह… ऊई…!!!” चूतड़ उछाल उछालकर वह दासी की उंगली का पूर्ण आनंद ले रही थी। महारानी की चुत बेतहाशा पानी छोड़ रही थी। उनका पूरा जिस्म पसीने से तर हो चुका था। साँसे भी तेज चल रही थी।
महारानी की इस अवस्था को देख राजमाता के पूरे जिस्म में झुरझुरी सी होने लगी। उनकी साँसे फूलने लगी। उन्हे पता ही नही चला की कब उनका एक हाथ घाघरे के ऊपर से उनके भोंसड़े को मलने लगा था। वस्त्र के ऊपर से ही अपनी चुत को पकड़कर वह दबाने लगी और दूसरे हाथ से अपने स्तनों को सहलाने लगी। अगर वह स्तम्भ का सहारा लेकर ना खड़ी होती तो उत्तेजना के मारे वही गिर जाती।
“अब तू दो उंगली एक साथ डाल दे… ” हांफते हुए महरानी ने कहा
“जी महारानी, ऐसा करूंगी तो आपको दर्द होगा” दासी इस आदेश से थोड़ा हिचकिचाई
“जैसा कह रही हूँ वैसा कर… डाल दे दो उंगली”
दासी ने दूसरी उंगली को तेल से लिप्त किया और एक साथ दोनों उंगली अंदर डाल दी…
“ऊईई माँ… मर गई… ” महारानी के कंठ से हल्की चीख निकल गई…
घबराकर दासी ने दोनों उंगली बाहर निकाल ली
“क्या कर रही है तू? बाहर क्यों निकाल ली तूने… ” महारानी ने बेचैन होते हुए पूछा
“जी वो आपको दर्द हुआ इसलिए ” दासी ने डरते डरते उत्तर दिया
“डाल दे वापिस… पर जरा धीरे धीरे… तूने झटके से अंदर डाल दी इसलिए दर्द हुआ”
दासी ने तुरंत अमल किया… थोड़ा सा और तेल लेकर उसने पहले तो महारानी के गांड के छेद में डाल और फिर उंगलियों को तेल से द्रवित कर धीरे धीरे दोनों उंगलियों को उनके बादामी रंग के छेद में डाल दिया।
“कुछ देर ऐसे ही डाले रख… जब में कहूँ तब आगे पीछे करना” महारानी दो उंगलियों की चौड़ाई से गांड के छेद को अभ्यस्त करवाना चाहती थी। कुछ समय तक यूँही पड़े रहने के बाद उनका छेद अब उंगलियों के आसपास सहज हो गया।
“अब धीरे धीरे आगे पीछे कर… और हाँ… तेरे अंगूठे से नीचे घिसती रहना” वह अपनी प्यासी चुत को भी अनदेखा करना नही चाहती थी
दासी की उँगलियाँ अब किसी यंत्र की तरह महारानी की गांड के छेद में अंदर बाहर हो रहा था और साथ थी साथ उसका अंगूठा चुत के होंठों को सहला रहा था। दोनों होंठ चुत के द्रवित होते रस से चिपचिपे बन गए थे। दासी की उँगलियाँ ऐसे चल रही थी जैसे मक्खन के अंदर गरम छुरी।
इस अंगुली-चोदन को देखते हुए राजमाता काफी उत्तेजित हो रही थी… उनका अनुभवी भोंसड़ा अब भांप छोड़ रहा था… एक हाथ से अपना घाघरा ऊपर कर उन्होंने दूसरे हाथ की उंगली से अपने अंगूर जैसे दाने को रगड़ा… उंगली की रगड़ खाते ही उनकी क्लिटोरिस सिहर उठी… पूरा शरीर झुंजहाने लगा.. दाने को रगड़कर उन्होंने उंगली को चुत के होंठों के बीच घुसा दिया…
यहाँ दासी ने महारानी की गांड में उंगली करते करते अपना अंगूठा उनकी चुत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। दोनों छिद्रों में एक साथ हुए हमले से महारानी उछलने लग गई। उनकी चुत का शहद अब बहकर बिस्तर को गीला कर रहा था। महारानी को इस अवस्था में देखकर दासी की चुत में भी चुनचुनी होने लगी थी। उसने अपना दूसरा हाथ चोली में डालकर अपने स्तनों को मसलना शुरू कर दिया।
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