आश्रम के एक कक्ष में, महारानी पद्मिनी एक बड़े से पत्थर पर लेटी हुई थी। ऊपर लटके हुए कलश के छेद से तेल की धारा रानी के सर पर ऊपर गिरकर उन्हे एक अनोखी शांति अर्पित कर रही थी। महारानी को गजब का स्वर्गीय सुख मिल रहा था। योगी के आश्रम में इन जड़ीबूटी युक्त तेल से चल रहा उपचार महारानी के रोमरोम को जागृत कर रहा था। kambikuttan
ऐसी सुविधाएं तो उनके महल में भी मौजूद थी। पर यहाँ के शुद्ध वातावरण और परिवेश में बदलाव ने उन्हे अनोखी ऊर्जा प्रदान की थी।
पिछले कुछ दिनों से शक्तिसिंह द्वारा मिल रही सेवा ने उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बड़ा ही सकारात्मक बदलाव किया था। दोनों के बीच रोज बड़ी ही दमदार चुदाई होती थी और महारानी को बड़े ऊर्जावान अंदाज में चोदा गया था। लगातार चुदाई के कारण उनकी जांघों का अंदरूनी हिस्सा छील गया था और उनकी चुत भी काफी फैल गई थी। अंग अंग दर्द कर रहा था पर उस दर्द में ऐसी मिठास थी की दिल चाहता था की उसमे ओर इजाफा हो।
आश्रम मे मालिश करने वाली स्त्री बड़ी ही काबिल थी। उसने महारानी के जिस्म के कोने कोने पर जड़ीबूटी वाला तेल रगड़ कर पूरे जिस्म को शिथिल कर दिया था। शरीर में नवचेतन का प्रसार होते ही महारानी पद्मिनी की चुत फिर से अपने जीवन में आए नए मर्द के लंड को तरसने लगी थी। हवस ऐसे सर पर सवार हो रही थी की वह चाहती थी की अभी वह मालिश वाली औरत को ही दबोच ले। पर अब शक्तिसिंह के वापिस लौटने का समय या चुका था और वह उसके संग एक आखिरी रात बिताना चाहती थी।
पिछले कुछ दिनों में राजमाता ने महारानी और शक्तिसिंह जिस कदर चुदाई करते देखा था उसके बाद उन्हे महारानी के गर्भवती हो जाने पर जरा सा भी संशय नहीं बचा था। उस तगड़े सैनिक ने कई बार महारणी की चुत में वीर्य की धार की थी। यहाँ तक की उन दोनों की चुदाई देख देख कर राजमाता की भूख भड़क चुकी थी।
लेकिन अपनी जिम्मेदारियों को संभालते हुए, योजना के तहत उन्होंने शक्तिसिंह को अपने दल के साथ सूरजगढ़ वापिस लौट जाने का हुकूम दे दिया था। अब कुछ गिने चुने सैनिक और दासियाँ आश्रम में महारानी के साथ तब तक रहेंगे जब तक गर्भाधान की पुष्टि ना हो जाए। जब वापिस जाने का समय आएगा तब उन्हे संदेश देकर बुलाया जाएगा पर अभी के लिए उनकी कोई आवश्यकता नहीं थी।
उस रात, शक्तिसिंह और महारानी ने फर्श पर सोते हुए घंटों चुदाई की। एक बार स्खलित हो जाने के बाद महारानी तुरंत उसका लंड मुंह में लेकर चूसने लगती और फिर से चुदने के लिए तैयार हो जाती। कामशास्त्र के हर आसन में वह दोनों चोद चुके थे। महरानी ने सिसकते कराहते हुए तब तक चुदवाया जब तक उनकी चुत छील ना गई। पूरी रात इन दोनों की आवाज के कारण राजमाता भी ठीक से सो नहीं पाई।
दूसरी सुबह, शक्तिसिंह अपना सामान बांध रहा था जब महारानी की सबसे विश्वसनीय दासी ने आकार उसे यह संदेश दिया
“तुम जाओ उससे पहले महारानी साहेब तुम से मिलना चाहती है”
“वो कहाँ है अभी?” शक्तिसिंह को सुबह से महारानी कहीं दिख नहीं रही थी और राजमाता से पूछने पर उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया था
“वहाँ आश्रम के कोने में बनी घास की कुटिया में वह मालिश करवा रही है” दासी ने शरमाते हुए कहा। उसे महारानी और शक्तिसिंह के रात्री-खेल के बारे में पता लग चुका था “शक्तिसिंह सही में गजब की ठुकाई करता होगा तभी तो महारानी ने उसके लिए अपना घाघरा उठाया होगा” वह सोच रही थी
पद्मिनी वहाँ कुटिया में नंगी होकर लैटी हुई थी। मालिश करने वाली ने उसके अंग अंग को मलकर इतना हल्का कर दिया था की उनका पूरा शरीर नवपल्लवित हो गया था। हालांकि शरीर का एक हिस्सा ऐसा था जिसे मालिश के बाद भी चैन नहीं थी। महारानी की जांघों के बीच बसी चुत अब भी फड़फड़ा रही थी। शक्तिसिंह ने महारानी की संभोग तृष्णा इस कदर बढ़ा दी थी की महारानी तय नहीं कर पा रही थी की उसका क्या किया जाए!! वह बेहद व्यथित थी की शक्तिसिंह वापिस सूरजगढ़ लौट रहा था।
शायद उन्हे ज्यादा सावधानी बरत कर राजमाता से छुपकर इस काम को अंजाम देना चाहिए था। अब जब राजमाता को इस बारे में पता चल गया था तो वह अपने नियम और अंकुश लादकर उन्हे एक दूसरे से दूर कर रही थी।
महारानी पद्मिनी का शरीर, शक्तिसिंह के खुरदरे हाथों से ठीक उन्हीं स्थानों पर मालिश करवाने के लिए धड़क रहा था, जहां मालिश करने वाली सेविका के नरम लेकिन दृढ़ हाथ घूम रहे थे।शक्तिसिंह ने उस कुटिया में प्रवेश किया। महारानी को वहाँ नंगा लैटे हुए देख वह एक पल के लिए चोंक गया। मालिश से तर होकर उनकी दोनों गोरी चूचियाँ चमक रही थी। शारीरिक घर्षण के कारण उनकी निप्पल सख्त हो गई थी। वह सेविका अब महारानी की जांघे चौड़ी कर अंदरूनी हिस्सों में तेल मले जा रही थी। शक्तिसिंह के लंड ने महारानी के नंगे जिस्म को धोती के अंदर से ही सलामी ठोक दी।
पिछले कुछ दिनों से शक्तिसिंह का लंड ज्यादातर खड़ा ही रहता था। उसे राहत तब मिलती थी जब उसे महारानी की चुत के गरम होंठों के बीच घुसने का मौका मिले। शक्तिसिंह के आने का ज्ञान होते ही महारानी ने अपनी खुली जांघों के बीच के चुत को उभार कर ऊपर कर लिया, जैसे वह शक्तिसिंह के सामने उसे पेश कर रही हो। चुत के बाल तेल से लिप्त थे और चुत के होंठों पर तेल लगा हुआ था। गरम तो वह पहले से ही थी। छोटी सी कुटिया में उनकी गरम चुत की भांप ने एक अलग तरह की गंध छोड़ रखी थी।
शक्तिसिंह को अपने करीब बुलाते हुए महारानी ने कहा
“शक्तिसिंह, यह मालिश वाली अपना काम ठीक से कर नहीं पा रही है” आँखें नचाते हुए बड़े ही गहरे स्वर में वह फुसफुसाई। यह कहते हुए उन्होंने अपनी एक चुची को पकड़कर मसला और अपना निचला होंठ दांतों तले दबा दिया।
“महारानी साहेबा… ” शक्तिसिंह धीरे से उनके कानों के पास बोला
“अममम… महारानी साहेब नहीं, मुझे पद्मिनी कहकर बुलाओ” शक्तिसिंह की धोती के अंदर वह लंड टटोलने लगी
धोती के ऊपर से ही लंड को पकड़कर वह गहरी आवाज में बोली “मेरी अच्छे से मालिश कर दो तुम” अपनी टांगों को पूरी तरह से फेला दिया उन्होंने
इस वासना से भरी स्त्री को शक्तिसिंह देखता ही रहा… उसके जाने का वक्त हो चला था… और अब वह दोनों कभी फिर इस तरह दोबारा मिल नहीं पाएंगे। शक्तिसिंह ने उसकी नरम मांसल जांघों पर अपना सख्त खुरदरा हाथ रख दिया।
जांघों के ऊपर उसे पनियाई चुत के होंठ, गहरी नाभि, और दो शानदार स्तनों के बीच से महारानी उसकी तरफ देखती नजर आई। उसकी नजर महारानी की चुत पर थी और वह चाहता था की अपनी लपलपाती जीभ उस गुलाबी छेद के अंदर डाल दे। kambikuttan
वह अब महारानी के पैरों के बीच आधा लेट गया। अपने मजबूत हाथों से उसने घुटनों से लेकर जंघा-मूल तक हाथ फेरकर मालिश करना शुरू किया। महारानी ने आँखें बंद कर इस स्वर्गीय आनंद का रसपान शुरू कर दिया। शक्तिसिंह अपना हाथ चुत तक ले जाता पर उसका स्पर्श न करता। इस कारण महारानी तड़प रही थी। वह जान बूझकर महारानी के धैर्य की परीक्षा ले रहा था। उसके हर स्पर्श के साथ चुत के होंठ सिकुड़ कर द्रवित हो जाते थे।
शक्तिसिंह ने ऐसे कुशलतापूर्वक उसकी जांघों के सभी संवेदनशील हिस्सों को रगड़ा की महारानी कांप उठी। उन्होंने अपने घुटनों को ऊपर की और उठाकर अपनी तड़प रही चुत के प्रति शक्तिसिंह का ध्यान आकर्षित करने का प्रयत्न किया।
शक्तिसिंह ने अपने दोनों अंगूठों से चुत के इर्दगिर्द मसाज किया। अंगूठे से दबाकर उसने चुत के होंठों को चौड़ा कर दिया। अंदर का गुलाबी हिस्सा काम-रस से भर चुका था। होंठों के खुलते ही अंदर से रस की धारा बाहर निकालकर महारानी के गाँड़ के छेद तक बह गई। महारानी की क्लिटोरिस फूलकर लाल हो गई थी। शक्तिसिंह बिना चुत का स्पर्श किए ऊपर ऊपर से ही उससे खेलता रहा।
“क्या कर रहे हो, शक्तिसिंह??” महारानी कराह उठी
शक्तिसिंह ने फिर से अपने दोनों अंगूठों की मदद से क्लिटोरिस के इर्दगिर्द दबाव बनाया और उसे उकसाने लगा। चुत ने एक डकार मारी और उसमे से काफी मात्र में द्रव्य निकलने लगा। वह महारानी की चुत को जिस स्थिति में लाना चाहता था वह अब प्राप्त हो चुकी थी। उसका लंड धोती में तंबू बनाए कब से अपने मालिक की हरकतों को महसूस कर रहा था।
शक्तिसिंह बारी बारी क्लिटोरिस को दोनों तरफ से बिना स्पर्श किए हुए फैलाता और दबाता। बड़ा ही अनोखा सुख मिल रहा था महारानी को पर उन्हे यह समझ में नहीं आ रहा था की वह क्लिटोरिस को सीधे सीधे क्यों नहीं रगड़ देता!!! बर्दाश्त की हद पार हो जाने पर महारानी ने शक्तिसिंह के हाथ को पकड़कर अपनी क्लिटोरिस पर दबा दिया।
शक्तिसिंह ने अपना हाथ वापिस खींच लिया और क्लिटोरिस से पूर्ववत छेड़खानी शुरू कर दी। महारानी की निप्पल अब इस खेल के कारण लाल लाल हो गई थी। वह खुद अपने स्तनों को इतनी निर्दयता से मसल और मरोड़ रही थी… !!
शक्तिसिंह महारानी के शरीर के ऊपर आ गया। उसकी गरम साँसे महारानी के उत्तेजित स्तनों को छु रही थी। उस दौरान उसके कड़े लंड का स्पर्श रानी को अपनी चुत के ऊपर महसूस हुआ।
क्लिटोरिस से लेकर निप्पल तक जैसे बिजली कौंध गई। उसने फिर से अपने स्तनों को दबोचना चाहा पर शक्तिसिंह ने उनके हाथों को दूर हटा दिया।
“यह दोनों अब मेरे है… ” गुर्राते हुए वह बोला।
महारानी तड़पती हुई अपने सिर को यहाँ से वहाँ हिला रही थी। वह अपने जिस्म के विविध हिस्सों को छुना और रगड़ना चाहती थी पर शक्तिसिंह उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था। वह जानबूझकर उन्हे तड़पा रहा था।
शक्तिसिंह फिर नीचे महारानी की टांगों के बीच चला गया। उसने अपनी जीभ को एक बार चुत की लकीर पर घुमाया और चुत के रस को अपनी जीभ पर लेकर महारानी की नाभि से लेकर स्तनों के बीच तक लगा दिया। महारानी सिहर उठी।
जितनी बार शक्तिसिंह उनके स्तनों के करीब आता था, महारानी को लगता था की वह अभी उनपर टूट पड़ेगा। पर हर बार शक्तिसिंह, स्तनों को बिना छूए वापिस नीचे चला जाता था। हर बार अपनी जीभ से चुत के रस लेकर आता और महारानी के विविध अंगों पर उस रस को अपनी जीभ से लेप करता गया।
लाचार होकर महारानी आँखें बंद कर इस एहसास को महसूस कर रही थी तभी…. शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से बड़ी ही निर्दयता से उनके स्तनों को पकड़ लिया। महरानी कराहने लगी, उन्होंने अपनी चुत और स्तनों को और ऊपर उभार लिया ताकि शक्तिसिंह के जिस्म से ज्यादा से ज्यादा संपर्क हो पाए। पास पड़े पात्र में से तेल लेकर उसने महारानी के दोनों स्तनों को गोल गोल घुमाते हुए मालिश करना शुरू कर दिया।
महारानी कराह रही थी। उनकी दोनों निप्पल कड़ी होकर शक्तिसिंह को अपनी और आकर्षित करने का प्रयास कर रही थी। शक्तिसिंह ने स्तनों से लेकर चुत तक तेल की धार गिरा दी और अपने हाथों को फैलाकर मालिश करने लगा। महारानी अब बेशर्मों की तरह चिल्ला रही थी। शक्तिसिंह मुसकुराते हुए महारानी की इस लाचारी का आनंद उठा रहा था।
शक्तिसिंह ने बड़ी ही सहजता से अपने सर को महारानी के जिस्म के नीचे के हिस्से तक ले गया… उनकी जांघों को अपने हाथों से चौड़ा किया… और अपनी गरम जीभ को महारानी की चुत के होंठों पर रगड़ना शुरू कर दिया।
महारानी की दोनों आँखें ऊपर चढ़ गई । शक्तिसिंह की खुरदरी जीभ ने उनकी चुत में ऐसा भूचाल मचाया की वह तुरंत अपने गांड के छिद्र को सिकुड़ते हुए झड़ गई..!!! उन्होंने अपने दोनों हाथों से बड़ी ही मजबूती से शक्तिसिंह के सर को अपनी चुत पर ऐसे दबा दिया था की शक्तिसिंह चाहकर भी उनकी चुत से दूर ना हट सके। वह अपनी कमर उठाकर शक्तिसिंह की जीभ से अपनी चुत को चुदवाने लगी। शक्तिसिंह की लार से अब उनकी चुत का अमृत मिश्रित होकर जंघामूल के रास्ते नीचे टपक रहा था।
शक्तिसिंह का ध्यान अब चुत के होंठों से हटकर, ऊपर की तरफ, मुनक्का जितनी बड़ी क्लिटोरिस पर जा टीका। उसने अपनी जीभ को क्लिटोरिस पर लपलपाई और फिर उसे हल्के से मरोड़ दिया। kambikuttan
महारानी ने आनंद मिश्रित चीख दे मारी… उनकी चीख की गूंज ने उस कुटिया को हिलाकर रख दिया। महारानी को अब किसी की भी परवाह नहीं थी.. अपने संवेदन और भावनाओ को ज्यों का त्यों व्यक्त करने से अब वह पीछे नहीं हटती थी। वह बार बार चीखती रही “आह्हहह शक्तिसिंह… क्या कर दिया तुमने!!” उनके स्वर से यह बड़ा ही स्पष्ट था की उन्हे कितना मज़ा आ रहा था।
शक्तिसिंह ने चुत के इर्दगिर्द, क्लिटोरिस पर और चुत के होंठों पर, सब जगह जीभ फेरते हुए अपनी नजर महारानी के चेहरे पर केंद्रित की। उसने यह ढूंढ निकाला की महारानी की चुत का कौन सा हिस्सा सब से ज्यादा संवेदनशील है… और फिर अपनी जीभ को उसी पर केंद्रित कर दिया।
“आह्हह… हाँ हाँ… वहीं पर… ऊईई माँ… मर गई में… ईशशश…” महारानी के पूरे जिस्म में तूफान सा उमड़ पड़ा था। वह आँखें बंद कर शक्तिसिंह के दोनों कानों को पकड़कर मरोड़ रही थी। उनकी टाँगे वह बार बार पटक रही थी। उनके चूतड़ बड़ी ही लय में ऊपर नीचे हो रहे थे।
महारानी की इन हलचलों की वजह से अब शक्तिसिंह किसी एक जगह पर अपनी जीभ को केंद्रित नहीं कर पा रहा था। हालांकि उससे अब कुछ ज्यादा फरक नहीं पड़ रहा था क्योंकी महारानी अपनी पराकाष्ठा की और दिव्य सफर पर निकल चुकी थी।
“आहहहहहहहहहहह…………………!!!!!!!!!” महारानी अब अपनी जांघों से शक्तिसिंह को जकड़कर ऐसे घुमाया रही थी जैसे मल्लयुद्ध के दांव आजमा रही हो। शक्तिसिंह ने अपने हाथों से उनकी चूचियों को पकड़कर निप्पलों की चुटकी काट ली। उसकी उंगलियों ने निप्पलों पर अपना अत्याचार जारी रखा। महारानी आनंद के समंदर में गोते लगा रही थी। शक्तिसिंह की गर्दन के अगलबगल में उन्होंने अपनी जांघों को ऐसे बंद कर दिया था की शक्तिसिंह को घुटन सी होने लगी थी।
अचानक से स्खलन के आवेगों ने महारानी को अपने वश में कर लिया…!! वह बुरी तरह तड़पती हुई अस्पष्ट उदगार निकालनी लगी। अपने पंजों से शक्तिसिंह के बालों को नोचती हुई वह पैर पटकने लगी। उनकी योनि मार्ग ने एक आखिरी बार संकुचित होकर अपना मुंह खोला और अपना गरम गरम काम रस बहाने लगी। यह रस इतनी मात्रा में बह रहा था की शक्तिसिंह चाहकर भी उसे पूरा चाट नहीं पा रहा था।
“अब मुझे मन भर कर चोद… इतना चोद की मेरी आत्मा तृप्त हो जाए… की आज अगर मेरी मृत्यु भी हो जाए तो मुझे कोई आपत्ति ना हो!!” स्खलित होते ही उसकी चुत ने अब लंड को प्राप्त करने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया था।
उसने शक्तिसिंह को अपनी जांघों से मुक्त किया और खड़ी हो गई। धोती में से उसने अपने खिलाड़ी को ढूंढ निकाली। शक्तिसिंह का लंड फुँकारे मारता हुआ कब से तैयार बैठा था। पास पड़े पात्र से हाथों में तेल लेकर, पद्मिनी ने शक्तिसिंह के लंड पर मलना शुरू कर दिया।
“महारानी साहेब, अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो पाएगा… मुझे अंदर डालने दीजिए!!” शक्तिसिंह ने बड़ी ही भारी स्वर में कहा
महारानी ने पूरे सुपाड़े को तेल से चिपचिपा करते हुए मालिश की और फिर लंड को चूम लिया। उनकी चुत दोनों जांघों के बीच से भांप निकालते हुए चौड़ी होकर इस लंड को अपने अंदर लेने के लिए तड़प रही थी। उन दोनों के जिस्म पर इतनी मात्रा में तेल लगा हुआ था की शक्तिसिंह को यह संदेह था की इतनी चिपचिपी अवस्था में क्या वह पूर्ण नियंत्रण से महारानी को पकड़कर ठीक से चोद पाएगा भी या नहीं।
शक्तिसिंह को कामसूत्र में लिखे एक आसन की याद आई। उसने महारानी को निर्देश देते हुए घोड़ी की तरह चार पैरों पर हो जाने को कहा। महारानी ने तुरंत इसका पालन किया। जिस पत्थर पर लेटकर वह मालिश करवा रही थी, उस पत्थर को दोनों तरफ से मजबूती से पकड़कर उन्होंने अपने चूतड़ फैलाए और अपनी चुत को शक्तिसिंह के सामने पेश कर दी। kambikuttan
शक्तिसिंह ने अपने जिस्म को घुटने मोड कर थोड़ा सा झुका लिया ताकि उसका लंड, महारानी की चुत के बिल्कुल सामने हो। अपना सुपाड़ा उसने महारानी की गांड के छेद से लेकर चुत पर इस कदर रगड़ा की महारानी पागल हो गई। साथ साथ महारानी को यह डर भी सताने लगा की कहीं शक्तिसिंह का मूसल गलत छेद में घुस ना जाएँ!!
शक्तिसिंह अब सही छेद ढूँढने का अभ्यस्त हो चुका था। उसने अपनी हथेली पर लार लगाई, हाथ महारानी की जांघों के बीच डाला और उंगलियों से चुत के होंठों को फैलाकर अपना सुपाड़ा चुत के मुख पर टीका दिया।
“अब लगाओ धक्का… ” महारानी ने कराहते हुए शक्तिसिंह को विनती की।
शक्तिसिंह ने अपनी कमर हिलाकर एक जोरदार धक्का लगाया… पहले से गीली और गरम हो चुकी चुत में उसका लंड, मूल तक अंदर घुस गया…!! उसका पेट महारानी के चूतड़ों पर जा टकराया और उसके टट्टों ने महारानी की क्लिटोरिस पर चपत लगाई।
पूरा लंड निगलने के बाद महारानी के चेहरे पर एक अनोखे आनंद की रेखा प्रदीप्त हुई। शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से महारानी के चूतड़ों को मजबूती से पकड़ लिया और धमाधम धक्के लगाने लगा। पद्मिनी अपने घुटनों को ज्यादा से ज्यादा चौड़ा कर रही थी ताकि लंड पूरी गहराई तक चोट मारे। लंड और चुत का मिश्रित रस… शक्तिसिंह के चाटने से लगी लार… और मालिश का तेल… इन सब से लिप्त दोनों जिस्म ऐसे एक दूसरे में समय रहे थी जैसे गरम मक्खन में छुरी…!! kambikuttan
शक्तिसिंह का लंड अब महारानी की चुत के ऐसे स्थानों पर प्रहार कर रहा था की हर धक्के के साथ महारानी की जोरदार आह निकल जाती थी। एक हाथ पत्थर पर और दूसरे हाथ से अपने स्तन को मर्दन करते हुए महारानी अपनी चूतड़ों को आगे पीछे करते हुए शक्तिसिंह के ताल से ताल मिला रही थी।
जिस पत्थर पर यह दोनों संभोग कर रहे थे, वह पत्थर भी तेल से स्निग्ध था। इस कारण दोनों को अपना संतुलन बनाए रखने में काफी ध्यान रखना पड़ता था। इसका तोड़ शक्तिसिंह ने निकाल लिया। उसने तुरंत महरानी की दोनों चूचियों को पकड़कर अपना संतुलन बनाए रखा। महारानी ने अब अपनी दोनों हथेलिया पत्थर पर टीका दी थी।
“आह आह आह… देखो तुम्हारी महारानी… कैसे जानवरों की तरह चुद रही है… दबाओ उसके स्तनों को…आह और जोर से… मारो धक्के… मार धक्के… लगा.. आह.. लगा जोर से…” महारानी के सर पर चुदाई का पागलपन सवार हो चला था। शक्तिसिंह ने महारानी के स्तनों को ऐसा पकड़कर मरोड़ा मानो उनकी छाती से अलग ही कर देगा!! महारानी ने अब अपनी चुत का कोण बदलकर उतनी ही ताकत से उलटे झटके लगाने शुरू कर दिए। जब भी उनके कूल्हे और शक्तिसिंह का पेट टकराता तब “थपाक थपाक” की आवाज गूंज उठती। शक्तिसिंह का सुपाड़ा बेहद फूलकर महारानी की चुत के अंदरूनी हिस्सों को और फैला रहा था।
पसीने और तेल से लथबथ दोनों योद्धा, अपने कौशल का पूर्ण इशतेमाल करते हुए, यह यत्न कर रहे थे की अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकें। हालांकि यह स्पष्ट था की महारानी का पलड़ा इस युद्ध में काफी भारी था और वह उलटे धक्के लगाते हुए शक्तिसिंह को परास्त कर रही थी।
“रुक जाइए महारानी… ” अपना स्खलन बेहद निकट प्रतीत होते हुए शक्तिसिंह ने आवाज लगाई। वह अभी इस खेल को समाप्त नहीं करना चाहता था। जिस क्रूरता से महारानी धक्के लगा रही थी उस तेजी से शक्तिसिंह के लंड को झड़ जाने में कोई कष्ट ना होता।
यह सुनने के बाद जैसे महारानी को कोई फरक नहीं पड़ा.. वह अपनी चुत की आग के सामने लाचार थी… स्वयं को चरमसीमा को इतना करीब पाकर वह शक्तिसिंह की सुनकर रुकना नहीं चाहती थी। उन्होंने धक्के लगाना जारा रखा… शक्तिसिंह पीछे हट गया ताकि उसका लंड महारानी की चुत से निकल जाए। पर महारानी खुद भी पीछे हो गई और यह सुनिश्चित किया की इस नाजुक घड़ी में लंड बाहर ना निकल आए।
जिसका डर था वहीं हुआ… शक्तिसिंह गुर्राते हुए झड़ने लगा… बड़ी मात्र में गाढ़ा वीर्य महारानी की चुत में बरसने लगा.. इस गर्माहट का एहसास होते ही महारानी भी कांपने लगी। भेड़िये की भांति अपना चेहरा छत की तरफ करते हुए उन्होंने भी अपनी चुत बहा दी। शक्तिसिंह अब भी धक्के लगा रहा था और उसके हर झटके के साथ वीर्य की धराएं महारानी की चुत से नीचे गिर रही थी।
दोनों अभी भी चरमसीमा का सुख अनुभावित करते हुए कांप रहे थे। शक्तिसिंह ने अपना हथियार महारानी की चुत से बाहर निकाल और उनके बगल में ही ढेर हो गया। महारानी भी शक्तिसिंह की छाती पर सर रखकर लेट गई। इस अवस्था में उनकी भारी चूचियों को शक्तिसिंह की हथेलिया मसल रही थी।
इस अनोखे हसीन अनुभव का पूरा स्वाद अभी दोनों ले ही रहे थे की तभी कुटिया में राजमाता दामिनीदेवी ने प्रवेश किया!!!
राजमाता ने देखा तो रानी की चुत से वीर्य बहता जा रहा था। निश्चित रूप से इन दोनों को यह स्थिति में देखकर वह प्रसन्न नहीं हुई थी। उन्होंने जो भी किया था उससे एक बार के लिए ध्यान हटा भी लेती… पर चुत से जिस तरह से कीमती वीर्य बाहर निकल रहा था वह उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ। अंतिम मकसद से हर कोई भलीभाँति ज्ञात था फिर वीर्य को ऐसे जाया करने की गुस्ताखी क्यों???
राजमाता ने बड़े ही क्रोध के साथ महारानी को वहाँ से बाहर चले जाने का इशारा किया। मन में ही मन वह खुश थी की शक्तिसिंह आज वापिस जा रहा था। नहीं तो इन दोनों खून चख चुके जानवारों को चोदने से रोक पाना असंभव सा था। पिछले ४८ घंटों में काफी बार चुदाई हो चुकी थी और पर्याप्त मात्रा में वीर्य महारानी के गर्भाशय को पुष्ट कर चुका था। राजमाता को यह ज्ञात था की शक्तिसिंह हर बार कितनी मात्रा में वीर्य स्खलित करता था। महारानी का गर्भवती होना अब तय था। kambikuttan
अब इस खेल का प्रेक्षक बनने की या इसे जारी रहने देने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
काफी कोशिशों के बावजूद, राजमाता की नजर शक्तिसिंह के लंड से हट ही नहीं रही थी। अपने कपड़े उठाकर जैसे ही महारानी पद्मिनी कुटिया से बाहर निकली, राजमाता का समग्र ध्यान पत्थर पर लैटे शक्तिसिंह के चिपचिपे दैत्य पर केंद्रित हो गई।
पिछले दो दिनों के दौरान हुई भरसक चुदाई के बावजूद उन्होंने एक पल के लिए भी शक्तिसिंह के लंड को सुषुप्तवस्था में नहीं देखा था। जब भी देखा यह जानवर तनकर हमला करने के लिए तैयार ही रहता!! महारानी पद्मिनी के चुत के रस और वीर्य से सना हुआ लंड, खिड़की से आते हुए प्रकाश में चमक रहा था। लंड का कड़ापन देखते ही बनता था।
“यह मेरे लिए आखिरी मौका है कुछ करने का” राजमाता ने मन में सोचा… एक बार राजमहल में वापिस लौट गए तो इस तरह के किसी भी खेल को अंजाम देना नामुमकिन था।
वह इतने प्यार से आँखें भरकर शक्तिसिंह के लंड को देखे ही जा रही थी… पूरे जिस्म में झुरझुरी सी हो रही थी.. उनक्का अनुभवी भोंसड़ा भी कपकपा रहा था… चूचियाँ सख्त हो रही थी… इस नौजवान के नंगे जिस्म और उसके तंग हथियार को देखकर… वह अपने तजुर्बेदार जिस्म को शक्तिसिंह के ऊर्जावान शरीर के लिए ज्यादा योग्य समझती थी… देखते ही देखते उनके चूतड़ ऐसे आगे पीछे होने लगे जैसे शक्तिसिंह के समग्र लंड को अपने भीतर समाने के लिए तरस रहे हो!!
वह शक्तिसिंह के करीब आई… और उसका तेल, वीर्य और योनिरस से लिप्त लंड को अपने हाथों से सहलाने लगी। उस मिश्रित गिलेपन का स्पर्श होते ही राजमाता सिहर उठी।
“आज में इस जवान घोड़े को सिखाऊँगी की असली चुदाई कैसे होती है!!” अपने भूखे भोंसड़े को तृप्त करने के लिए तैयार करते हुए वह सोच रही थी
अपनी चोली की गांठ खोलकर, एक ही पल में उन्होंने अपने दोनों स्तन आजाद कर दिए!!!
पत्थर पर लैटे हुए शक्तिसिंह की छाती को सहलाते हुए राजमाता योग्य काम आसन के बारे में सोचने लगी। वह इस चुदाई को यादगार बनाना चाहती थी।
शक्तिसिंह की छाती पर दोनों हथेलियों को टीकाकर, उन्होंने अपनी जांघें फैलाई। उस सैनिक के शरीर के दोनों तरफ अपने पैर जमाकर वह धीरे धीरे नीचे की ओर आई। शक्तिसिंह के लंड के मुख का स्पर्श अपनी चुत के होंठों पर होते ही वह कपकपा उठी। अपनी उंगलियों से चुत के होंठों को फैलाकर, गरम भांप छोड़ते उस छेद मे उन्होंने सुपाड़े को अनुकूलित किया, और एक ही झटके में जिस्म का सारा वज़न डालकर वह शक्तिसिंह के ऊपर बैठ गई… इस क्रिया से शक्तिसिंह को तो तकलीफ नहीं हुई.. किन्तु सालों बाद उनके भोंसड़े को अचानक मिले इस विकराल मूसल को अपने में समाने में उनकी चीख निकल गई… दो पल के लिए राजमाता की आँखों के सामने अंधेरा छा गया…!! kambikuttan
अपने पति के देहांत के बाद कई सालों के पश्चात, उन्होंने अपनी योनी में एक पूर्ण तंदूरस्त और तगड़ा, धड़कता हुआ लंड, अपनी चुत में महसूस किया था।
राजमाता का सिर पीछे की और झुका हुआ था और वह एकदम स्थिर रहकर अपनी चुत में शक्तिसिंह के बड़े लंड के साथ अनुकूलन प्राप्त करने का प्रयत्न कर रही थी। उनके खुले स्तन शक्तिसिंह को न्योता दे रहे थे.. उनकी चोली अभी भी कंधे पर लटक रही थी।
राजमाता ने अपनी तर्जनी और अंगूठे से निप्पलों को कुरेदना शुरू कर दिया। उनकी चुत अब स्निग्धता का रिसाव करने लगी थी और उस गिलेपन के कारण अब शक्तिसिंह का लंड अब आसानी से उनकी चुत के अंदर हलचल कर सकता था।
राजमाता के चेहरे की त्वचा एक नई ऊर्जा के साथ बहते रक्त के प्रवाह से दीप्तिमान थी।।
कुटिया में चारों ओर शांति फैली थी… पर वह तूफान से पहले की शांति जैसी प्रतीत हो रही थी। राजमाता की चुत आकुंचन और संकुचन कर शक्तिसिंह के लंड के घेरे का जायजा लेने में व्यस्त थी। खिड़की से आती हुई ठंडी हवा, राजमाता की निप्पलों को अनोखा सुकून प्रदान कर रही थी। बड़े अंगूर जैसी उनकी निप्पल, दिखने में ऐसी रसीली थी की चूसते हुए मन ना भरे।
राजमाता के पेट का निचला हिस्सा, भीतर से निकलने वाले स्पंदनों से धीरे-धीरे फड़फड़ा रहा था।
जाँघें तनाव से तनी हुई थीं और वहाँ की मांसपेशियाँ हिलने-डुलने में दर्द के कारण खिंच गई थीं। वह उस पत्ते के सिरे पर जमी ओस की बूंद की तरह थी, जो गिरने के लिए बिल्कुल ही तैयार थी।
राजमाता अब शक्तिसिंह के लंड पर आरामदायक आसन में विराजमान हो गई थी और अपने संभोग प्रवास पर निकलने के लिए उत्सुक और तैयार थी। उन्होंने उसी स्थिति में रहकर, अपने घुटनों को पत्थर पर रख दिया और चूतड़ों को थोड़ा सा ऊपर नीचे कर यह सुनिश्चित किया की वह चुदाई के झटके आसानी से लगा सके।
शक्तिसिंह का सुपाड़ा अंदर फूलकर और गहराई तक जा घुसा। लंड की इस प्रतिक्रिया से राजमाता की आह निकल गई। उन्होंने सहसा अपने कूल्हों को उठाया और पटक दिया… आनंद की एक लहर उनके पूरे जिस्म में व्याप्त हो गई। योनिमार्ग भी अब स्निग्ध और विस्तारित होकर, लंड के आवागमन के लिए तैयार हो गया।
एक के बाद एक झटके लगाते हुए राजमाता की किलकारियाँ निकलने लगी।
“हाँ.. हाँ.. ऐसे ही…आहह… अंदर कैसा चुभ रहा है.. आह..” उनके चेहरे की मुस्कान को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था की उन्हे कितना मज़ा आ रहा था। अपनी आँखें बंद कर वह बेतहाशा लंड पर कूदे जा रही थी।
राजमाता अब पूर्ण नियंत्रण से शक्तिसिंह के लंड पर धक्के लगाते हुए अपनी भूखी चुत में उसे समाते हुए, भीतर के झलझले को शांत करने का भरसक प्रयत्न कर रही थी। चुत के अंदर ऐसी ऐसी जगह पर लंड जाकर टकराया की राजमाता के आनंद की कोई सीमा ना रही।
अंदर घुसा हुआ वह खंभे जैसे लंड, सालों से अतृप्त उनकी चुत को अनोखा सुख प्रदान कर रहा था। पिछले एक दसक से उन्हों ने लंड के आकार की भिन्न भिन्न वस्तुए अपने अंदर डालकर हस्तमैथुन का प्रयत्न कर लिया था पर इस असली जननेन्द्रिय जैसा आनंद किसी में नहीं मिला था।
शक्तिसिंह के लंड में जीवंतता, गर्माहट और एक कंपन युक्त स्पंदन था जिसे वह उस पर सवार होकर बहुत स्पष्ट रूप से महसूस कर सकती थी। उन्हों ने अपनी चूत मे लंड के पूर्ण आकार का अधिक बारीकी से अनुभव करने के लिए अपने कूल्हों को आक्रामक तरीके से हिलाया।
चुत के अंदर बह रहा योनिरस का झरना इसलिए बाहर नहीं आ रहा था क्योंकी शक्तिसिंह का लंड, राजमाता की चुत पर डट्टे की तरह फंसा हुआ था। जब राजमाता ने अपने कूल्हों को झटकों के दौरान इधर उधर घुमाया तब वह रस तेजी से नीचे बह कर शक्तिसिंह के टट्टों को गीला करने लगा।
ऊपर नीचे झटके लगाने के साथ वह अब आगे पीछे भी होने लगी। उनके चेहरे पर संतृप्ति और आनंद दोनों की रेखाएं थी। अपनी योनि की मांसपेशियों को संकुचित करते हुए उन्हों ने लंड को ऐसा दबोचा की शक्तिसिंह की आह निकल गई।
स्वबचाव में शक्तिसिंह ने राजमाता की जांघों को अपने हाथों से जकड़ लिया। तुरंत ही उसका ध्यान स्तनों पर गया। महारानी पद्मिनी के मुकाबले राजमाता के स्तन थोड़े से भारी, झुके हुए और बड़े थे। निप्पलों की लंबाई भी ज्यादा थी।
राजमाता अब हिंसक रूप से ऐसे धक्के लगा रही थी की शक्तिसिंह के सुपाड़े की चमड़ी एकदम से खींच गई। शक्तिसिंह को बेहद दर्द का अनुभव हुआ।
“राजमाता जी, मत कीजिए… !!” उसके चेहरे पर दर्द की शिकन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी
राजमाता ने अपने झटके जारी रखे। दर्द के कारण शक्तिसिंह के सख्त लंड में थोड़ी सी नरमी जरूर आ गई थी पर वह इतनी आगे बढ़ चुकी थी की रुकने का कोई प्रश्न नहीं था। लेकिन वह चाहती थी की लंड की सख्ती बरकरार रहे।
अपने जिस्म पर चढ़कर कूदती हुई, कराहती हुई राजमाता को देखकर शक्तिसिंह स्तब्ध सा रह गया। उनके हर झटके के साथ उनके विराट स्तन ऊपर नीचे उछलते नजर आते थे। उनकी रेशमी गोरी त्वचा का स्पर्श उसे काफी आह्लादक महसूस हो रहा था। बादामी रंग की उनकी बड़ी बड़ी निप्पल काफी आकर्षक लग रही थी।
“आह” और “ऊँहह” कर उछल रही उस स्त्री को शक्तिसिंह देखता ही रहा!! अपना समग्र ध्यान चुदाई पर केंद्रित कर रही राजमाता को उसका फल मिल रहा था। सालों बाद उनकी चुत को ढंग का स्खलन प्राप्त हो रहा था।
राजमाता का मन यह भी सोच रहा था की राजमहल में लौटकर किसी भी तरह इस नौजवान का आनंद लिया जा सके। पद्मिनी को गर्भवती बनाने की व्यवस्था जिस तरह उन्होंने सुगठित की थी, बस उसी व्यवस्था को थोड़ा सा अधिक विस्तारित ही तो करना था!!
“ईशशश… आहह…. अममम… “वह झटके लगाते हुए अस्पष्ट आवाज़े निकाल रही थी। उन्होंने सोच रखा था की शक्तिसिंह को वह सिर्फ अपने तक ही आरक्षित रखेगी। महारानी को इस पर कोई अधिकार नहीं मिलेगा। बहुत सह ली तनहाई… अब इस नए खिलौने से केवल वही खेलेगी!!
राजमाता ने अपनी आँखें खोली। शक्तिसिंह के उनके उरोजों को देखते हुए पाकर वह मुस्कुरा उठी। उन्होंने अपना जिस्म थोड़ा सा नीचे की तरफ झुकाकर स्तनों को उसके चेहरे के सामने पेश कर दिया। शक्तिसिंह आश्चर्यसह उन्हे देखता ही रहा।
“लो, यह तुम्हारे लिए ही है..” शक्तिसिंह को आमंत्रित करते हुए वह बोली। भारी और थोड़े से झुके हुए वह स्तनों को गुरुत्वाकर्षण ने शक्तिसिंह के चेहरे के बिल्कुल करीब ला दिया।
“में ये नहीं कर सकता राजमाता जी” शक्तिसिंह ने कहा
“करना ही होगा… वरना में महाराज से शिकायत कर दूँगी की तुमने उनकी महारानी को टाँगे चौड़ी कर हद से ज्यादा चोदा है” अभी भी झटके लगाते हुए वह यह कहते हुए हांफ रही थी ।
शक्तिसिंह के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कुराहट छा गई। उसका लंड अब दोबारा पूर्ण रूप से सख्त होकर राजमाता के भोंसड़े में नई मंज़िलें हासिल कर रहा था। महारानी को चोदने में मज़ा आया था पर राजमाता के अनुभव का मुकाबला करने में वह सक्षम नहीं थी।
राजमाता ने अपनी चुत के स्नायु को भींच कर अपनी पकड़ को लंड पर और मजबूत कर लिया।
“यह उचित नहीं होगा राजमाता” सहम कर शक्तिसिंह ने कहा। अपने ऊपर सवार वह स्त्री, उसकी राजमाता होने के साथ साथ, उसके बचपन के दोस्त की माँ भी थी। हालांकि उसकी इस हिचकिचाहट को राजमाता के स्तन, ठुमक ठुमक कर तोड़ रहे थे।
“उचित तो यह भी नहीं है की ऐसी गरमाई औरत को तुम आनंद से वंचित रखो” अपने स्तनों को मसलते हुए और निप्पल को खींचते हुए कराहते हुए राजमाता ने कहा
“आप अतिसुंदर और कामुक है, इस बात में कोई दो राय नहीं है” राजमाता के हाथों का स्पर्श करते हुए शक्तिसिंह ने कहा “लेकिन….”!!!
“लेकिन वेकीन कुछ नहीं… उस पद्मिनी के साथ तो तुम्हें कोई संकोच नहीं हो रहा था… तो अब किस बात की झिझक है तुम्हें… अगर तुम मेरा स्वीकार नहीं करोगे तो में इसे अपना अपमान मानूँगी” मध्यम आक्रोश के साथ राजमाता ने कहा। वह उसे एक साथ धमका भी रही थी, मना भी रही थी, विनती भी कर रही थी और उत्तेजित भी कर रही थी।
शक्तिसिंह ने अपने हथियार डाल दिए… उसने अपने दोनों हाथों से उनके स्तनों को पकड़ा और निप्पलों से खेलने लगा।
“यही चाहती है न आप?” उसने नीचे से एक धक्का देते हुए कहा। हालांकि राजमाता के शरीर के वज़न के कारण वह ठीक से धक्का लगा न पाया।
उसने राजमाता के मांस के दोनों विशाल ढेरों को अपने हाथों में मजबूती से पकड़कर ऊपर की ओर धकेला। अपनी बाहें फैलाकर उन्हे अपने ऊपर उठाते हुए धक्का दिया। ऐसा करते वक्त उनके स्तनों को दबाने में उसे अत्यधिक आनंद आया।
राजमाता मुस्कुरा दी और कुछ क्षणों के लिए धक्के लगाने बंद किए ताकि शक्तिसिंह ठीक से उनके स्तनों का मुआयना कर सके।
राजमाता को रुका हुआ देख, शक्तिसिंह ने मौका ताड़कर नीचे से जोरदार धक्का लगा दिया। महारानी की सिसकी निकल गई… “आह… ” करते हुए उन्होंने वापिस धक्के लगाना शुरू किया और नियंत्रण प्राप्त किया।
लकड़े में चल रही आरी की तरह शक्तिसिंह का लंड राजमाता की चुत के अंदर बाहर हो रहा था। उनका चिपचिपा स्निग्ध योनिमार्ग, लंड के इस आवागमन का योग्य जवाब दे रहा था। शक्तिसिंह के मजबूत हाथों ने अभी भी उनके स्तनों को जकड़ रखा था।
शक्तिसिंह ने बड़ी ही मजबूती से राजमाता के जिस्म को पकड़े रखा था… उनका पूरा जिस्म ऊपर उठ गया था और शरीर का निचला हिस्सा पत्थर पर टीके घुटनों के कारण संतुलित था। राजमाता ऐसे पिघल रही थी जैसे गर्मियों में बर्फ।
उनकी चुत अब काफी मात्रा में रस का रिसाव करने लगी थी। अंदर से कई धाराएँ बहती हुई दोनों की जांघों को आद्र कर रही थी। आँखें बंद कर अपना सारा ध्यान झटके लगाने पर केंद्रित कर वह अपनी निश्चित मंजिल की ओर यात्रा कर रही थी।
वह चाह रही थी की लंड को बाहर निकालकर वह अपना मन भरने तक उसे चूसे… पर कुछ ही समय पहले यह लंड महारानी की चुत के रस से सना हुआ था और वह अपनी पुत्रवधू के चुत के रस को अपने मुंह में भरना नहीं चाहती थी उस वजह से उन्होंने उस प्रलोभन को ज्यादा महत्व न दिया।
पर अब वह जिस पड़ाव पर पहुँच चुकी थी, उस तरह के विचार ज्यादा मायने नहीं रखते थे। चुदाई के नशे ने उन्हे बदहवास बना दिया था। वह कई बार स्खलन के करीब पहुंची पर स्खलित हो नहीं पा रही थी।
उनकी गर्दन अब पीछे की तरफ झुक गई… आँखें ऊपर चढ़ गई… वह अब कैसे भी कर चरमसीमा के उस महासुख को प्राप्त करने के लिए बेचैन हो उठी थी।
अपने गर्भाशय की मांसपेशियों को सिकुड़कर छोड़ते हुए उन्हे कई तरह के रस चुत में बहते हुए महसूस किए। स्खलन अभी भी करीब नजर नहीं आ रहा था। उनका चेहरा हिंसक और विकृत हो चला था और उसे देखकर शक्तिसिंह एक पल के लिए डर गया। उसे लगा शायद स्तनों पर ज्यादा जोर देने की वजह से ऐसा हुआ है। यह सोचकर उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी।
राजमाता ने अपना सिर आगे की ओर झुकाकर अपने बालों को शक्तिसिंह के चेहरे पर गिरा दिया। बालों में डाले सुगंधित तेल की खुशबू से उसके नथुने भर गए।
राजमाता अभी भी गुर्रा रही थी… वह स्खलित होना चाहती थी… अपना सारा आवेश पिघला कर चुत से बाहर निकालना चाहती थी…
वह अब अपनी हथेलियों को पत्थर पर रखकर और नीचे झुक गई…
“शक्ति बेटा… जल्दी से चोदो मुझे… ” उन्होंने शक्तिसिंह के कानों में कहा
अपने लंड की भावनाओ को नजर अंदाज किए शक्तिसिंह, राजमाता की इस विकराल, भूखी अवस्था को देखने में व्यस्त था। जिस कदर वह चरमसीमा को पहुँचने के लिए तड़प रही थी, वह देखकर शक्तिसिंह अभिभूत हो गया।
उसने कमर उठाकर नीचे से झटके लगाना शुरू किया। हर झटके के साथ उसकी कमर नीचे पत्थर से टकराकर आवाज करती… उसी पत्थर पर राजमाता और महारानी के भोग का काफी रस जमा हो गया था।
राजमाता के दोनों स्तन उसकी छातियों से दब गए थे। कंधे पर अभी भी लटक रही चोली का कपड़ा, बार बार उनके बीच में आकार विक्षेप कर रहा था। शक्तिसिंह ने राजमाता की पीठ के पीछे से चोली को निकालना चाहा पर कर ना पाया। वह बिना किसी चीज की दखलंदाज़ी के, राजमाता के भरे हुए उरोजों का आनंद लेना चाहता था।
राजमाता की बस अब एक ही चाह थी… की शक्तिसिंह तीव्र गति से उन्हे चोदे और जल्द से जल्द स्खलित कर दे।
“हाँ बेटा… ऐसे ही.. अपनी राजमाता को चोदो… सुख दो उन्हे… उनके बिस्तर का सूनापन खतम कर दो.. ” राजमाता भारी आवाज में बोली
शक्तिसिंह को मज़ा बहुत आ रहा था पर राजमाता ने “बेटा” शब्द का उल्लेख कर उसे थोड़ा चोंका दिया।
“यह जो कुछ भी कर रहे है हम, उसे आज तक ही सीमित रहने दीजिएगा” शक्तिसिंह ने राजमाता की आंखो में देखकर कहा
“नहीं.. में अब बिना चुदे नहीं रह सकती… ” राजमाता ने शक्तिसिंह की गर्दन पर चुंबनों की वर्षा कर दी।
“आज से तुम रोज चोदोगे मुझे.. “
“लेकिन आप तो मुझे वापिस भेज रही है आज” शक्तिसिंह ने असमंजस में पूछा। उसके हाथ राजमाता के स्तनों को मसल रहे थे।
“वह इसलिए की बहु का साथ तुम्हारा काम अब समाप्त हो गया है। अब में तुम्हें अपने लिए रखना चाहती हूँ” राजमाता ने धक्के लगाते लगाते हांफते हुए कहा
इस बातचीत के कारण विचलित होने की वजह से राजमाता का स्खलन तक पहुंचना और कठिन होता जा रहा था।
“सास को बहु से जलन हो रही है… है ना!!” शक्तिसिंह ने राजमाता की चुटकी लेते हुए कहा
राजमाता ने क्रोधित होकर शक्तिसिंह के सामने देखा… उनका चेहरा गुस्से से तमतमा गया था। पर हवस उनपर इस कदर सवार हो चुकी थी की वह अब कुछ भी अतिरिक्त बोल कर अपने सफर को रोकना नहीं चाहती थी।
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