Incest क्या…….ये गलत है?

कविता और जय यूँही लेटे हुए सो गए। तब शाम के करीब 5 बज रहे थे। जय कविता के चुच्चीयों पर सर रखके सोया था। कविता की चुच्चियाँ अभी भी तनी हुई थी। जय का सर दोनों चुच्चीयों के बीच में था। कविता का दाहिना हाथ उसके सर पर था। जय का दाहिना हाथ कविता के बुर पर रखा था। जय के मुंह और चेहरे पर कविता की बुर के रस चिपके हुए थे, उसके मुंह मे कविता के बुर की महक आ रही थी। कविता का मुंह खुला हुआ था। उसके बाल बिखरे हुए थे, जय ने उसके बालों को उसकी मुंह की चुदाई के लिए हैंडल की तरह इस्तेमाल जो किया था। जय का लण्ड अभी थोड़ा शांत था, हालांकि जय ने अभी तक अपने लण्ड का रस नहीं निकाला था। उसके आंड में वीर्य कुलबुला रहे थे। दोनों बिहारी भाई बहन हिंदुस्तान की राजधानी दिल्ली में एक नया इतिहास लिख रहे थे। एक दूसरे पर नंगे परे भाई बहन नींद की गहराइयों में सोए हुए थे, कि तभी कविता के मोबाइल की घंटी बजी जो कि बाहर हॉल में सोफे पर पड़ी थी। कविता की नींद खुली, लेकिन जय अभी भी सो रहा था। कविता ने जय की टेबल पर रखी उसकी रिस्ट वॉच में मिलमिलाती आंखों से टाइम देखा तो शाम के सात बजे चुके थे। उसने जय को देखा और उसके हाथ को अपने बुर से हटाया। फिर उसके सर को उसके आहिस्ते से हटाया, तो जय करवट मारके दूसरी साइड सो गया। कविता बिस्तर से उठी, उसके कोई भी कपड़े वहां नहीं थे। जय का तौलिया था, जो वो लपेट के बाहर आयी। उसने मोबाइल उठाया तब तक फ़ोन कट चुका था। उसने देखा कि उसकी माँ का फोन था। कविता अपने फोन से जब तक डायल करती, तब तक उधर से फिर फोन आ गया।
कविता- हेलो। माँ प्रणाम।
ममता- खुश रहो। कैसी हो?
कविता- ठीक हैं, माँ। तुम कहाँ पहुंची?
ममता- अरे ये ट्रेन बहुत लेट है। सुबह तक पहुंचाएगा। और जय कैसा है?
कविता- वो भी ठीक है। तुम खाना खाई?
ममता- हाँ, खाये थे। ट्रेन में ही खाना दे रहा था। तुमलोग खाना खाए कि नहीं?
कविता- हाँ, खाये हैं दोनों लोग।
कविता को ज़ोर से पेशाब लगी थी। वो अपने दोनों पैर को भींच रही थी। वो प्रतीक्षा कर रही थी कि कब ममता फोन काटे।
ममता- ख्याल रखना दोनों, हम पहुँचके फोन करेंगे।
कविता- अच्छा मां, प्रणाम रखते हैं।mom son story

कविता ने फोन काटा और भागके बाथरूम गयी। तौलिया कमर तक उठा लिया, जिससे कमर के नीचे का हिस्सा पूरा नंगा हो गया और उसकी गाँड़ फुदक कर बाहर आ गयी। उसने शीट पर बैठके अपने बुर से मूत की धार मारी। एक सीटी के जैसे हल्की आवाज़ गूँजी मूत की धार निकलने से पहले। कविता ने अपना मूतना खत्म किया और पानी से बुर को साफ करने लगी। बुर साफ करने के बाद उसने खुदको आईने में देखा। बाल बिखरे हुए थे, काजल निकल गया था, लिपस्टिक का पता ही नही चल रहा था। वो खुद को देख रही थी, तो उसे लगा कि उसका अक़्स उससे ये कहना चाह रहा है कि तुम कैसी लड़की हो कविता सारे ज़माने में तुमको अपना भाई ही मिला इश्क़ लड़ाने और चुदवाने के लिए?
कविता ने अपने मन में ही उत्तर दिया, तो क्या हुआ कि वो हमारा भाई है। प्यार रिश्ते देखकर थोड़े ही होता है। तुम क्या चाहती हो कि हम उस आरिफ के साथ प्यार करें या उस बैंक मैनेजर से जो सिर्फ हमसे अपनी हवस मिटाना चाहते हैं। बाहर ये सब करेंगे तो घर की बदनामी होगी, और दुनियावाले ना जाने क्या क्या बोलेंगे। यहां तो घर की बात घर में ही रहेगी। वैसे भी हम छब्बीस साल के हो चुके हैं, और इस शरीर को चुदाई की भूख तो लगती है ना। कबतक हम बैगन और गाजर से काम चलाएंगे। एक मर्द का एहसास तुमको क्या पता, शरीर की तड़प क्या होती है। हमारे भाई की आंखों में हमने सच्चा प्रेम देखा है अपने लिए। और ये बात तुम भी जानती होकि हम भी तीन साल से उसको चाहते हैं, ये और बात है कि हमने कभी उसको पता नहीं लगने दिया। जानती रहती थी कि उसने हमारी कच्छी में मूठ मारी है, और वही कच्छी हम खोजके पहनते थे।अब हम दोनों के बीच में रिश्ते अलग मोड़ ले चुके हैं। समाज भले ही हमे भाई बहन बुलाये पर अब हम दोनों प्रेमी प्रेमिका हैं। कविता ने अपने अक़्स को मुंहतोड़ जवाब दिया।
कविता ने फिर झुककर अपना चेहरा पानी से धोया, और बाहर आ गयी। बाहर आके उसने लाइट जलाई। और अपने कमरे में जाकर उसने शलवार और कमीज पहनी। अभी ब्रा पैंटी कुछ नहीं पहनी। बाल बनाये, चेहरे पर क्रीम और पाउडर, आंखों में काजल लगाया। फिर खुदको आईने में देखा, संतुष्ट होकर उठ गई। माथे पर दुप्पट्टा रखके पूजा घर में पहुंच गई। उसने दिया जलाया और अगरबत्ती जलाई। फिर घर मे सांझ दी,जैसा कि बिहार के घर की लड़कियां करती हैं। फिर बालकनी में रखे तुलसी को भी दिया दिखाया। इसके बाद पूरे घर मे दिया को घुमाया। कविता जब दिया लेके जय के कमरे में गयी तो जय अभी भी सो ही रहा था। कविता उसे देखके मुस्कुरा उठी, क्योंकि उसका लण्ड तना हुआ था। कविता ने उसे उठाया नहीं। सांझ देने के बाद कविता सीधे रसोई में घुस गई। वो सोच रही थी, की जय के उठने से पहले खाना बना ले। कविता ने फौरन पनीर की सब्जी बनाई और रोटियां। उसे तकरीबन 45 मिनट लगे खाने बनाने में।वो अपने माथे का पसीना पोंछते हुए बाहर आई, और पंखे के नीचे बैठ गयी। दुप्पट्टा निकाल दिया और अपने कमीज को ऊपर की ओर से फैलाया, ताकि अंदर तक हवा जाए। कविता थोड़ी देर ऐसे ही बैठी रही। तभी कविता की आंखों को पीछे से दो हाथों ने ढक लिया। कविता मुस्कुरा उठी। जय जाग चुका था। जय उसके कानों के पास आया और बोला, आई लव यू । कविता उसके हाथों को हटाके उसके हाथों को चूमते हुए बोली, लव यू टू ।
जय उसके बाजू में आके बैठ गया और टी वी ऑन कर दिया। इस वक़्त वो अपने गंजी और हाफ पैंट में था जो उसने कमरे से निकलने से पहले पहन लिया था। जय ने कविता के कंधों पर हाथ रख दिया, कविता खुद उसके पास खिसक के चिपक गयी। कविता ने अपने भाई के गठीले बदन को गौर से देखा। कोई 38 का सीना होगा उसका, उसके बाइसेप्स भी काफी टाइट थे। जय के चेहरे पर हल्की दाढ़ी थी, पर फिर भी वो चॉकलेटी बॉय लग रहा था। टी वी पर इस वक़्त वही ब्लू फिल्म शुरू हुई जो जय देखने बैठा था, जब आरिफ एसोसिएट्स से फोन आया था। वो वैसे ही छोड़ के चला गया था। उसमें हीरो हीरोइन को ज़मीन पर लिटाके चोद रहा था। लड़की के ठीक पीछे लड़का लेटा हुआ था। दोनों करवट लिए हुए थे। लड़की , जोश में फ़क मी, फ़क मी चिल्ला रही थी। हीरो उसको पीछे से पकड़े हुए था, और खूब ज़ोरों से चोदे जा रहा था। लड़की खूब मस्ती से चुदवा रही थी। तभी लड़का बोला, आई एम गोंना कम….. बेबी….आआहह। और खड़ा हो गया, लड़की फुर्ती से उठकर घुटनों पर बैठ गयी।
हीरो अपना लण्ड हिला रहा था और हीरोइन, उसके आंड सहलाते हुए कह रही थी, गिम्मी योर कम प्लीज……प्लीज……आई एम थ्रस्टी। और अपना मुंह खोलके जीभ से होंठों को चाट रही थी। हीरो उसके बाल पकड़े हुए उसके मुंह के पास लण्ड हिला रहा था। तभी उसके लण्ड से मूठ की धार निकली और हीरोइन के मुंह और चेहरे पर गिरी। इस तरह करीब 4 5 बड़ी धार निकली और उसके पूरे चेहरे को भिगो दिया। हीरोइन ने पहले पूरे मूठ को मुंह पे लगाया और फिर इकट्ठा कर पी गयी। वो उंगलिया चाट ही रही थी, की स्क्रीन धुंधली हो गयी और वो सीन खत्म हुआ। दोनों भाई बहन ये सीन देखके गरम हो गए थे। पूरे कमरे का माहौल कामुक हो चला था। तभी दूसरा सीन शुरू हुआ कि कविता की हल्की हंसी छूट गयी, बोली, खाना नहीं खाओगे कि यही देखने का इरादा है।
जय, बोला कि, खाना भी है और खिलाना भी है।कविता- सिर्फ खाओगे, पियोगे नहीं क्या?
जय- पियूँगा लेकिन तू क्या पीयेगी?
कविता- तुम जो पिलाओगे, पियेंगे।
जय वासना में लीन होकर पूछा- कितना पियोगी?
कविता कामुकता से कांपते हुए बोली- जितना पिलाओगे।
जय- क्या पियोगी? कविता- वही जो अभी उसने पिया।
जय- बोल ना साली उसने क्या पिया, शर्म आ रही है क्या?
कविता ने पूरी बेशर्मी से उसके लंड को छूकर आंखों में आंखे डालकर बोली- तुम्हारा मूठ पियूंगी। आखरी बूंद तक चूस जाऊंगी।
जय और कविता एक दूसरे की आंखों में देखकर ये सारी बातें कर रहे थे। जय ने कविता के होंठो को छुआ तो कविता ने उसकी उंगली मुंह में रख ली। और उसको चूसने लगी। टी वी से लड़की की चुदाई के दौरान मुंह से निकली सीत्कारे पूरे कमरे में गूंज रही थी। कविता अपने भाई की गंजी उतार दी, और उसकी मज़बूत छाती को अपने हाथों से सहलाने लगी। जय ने कविता के कमीज की डोरियां खोल दी। उसकी कमीज को उठाके निकालने लगा। कविता ने अपने दोनों हाथ ऊपर करके उसका सहयोग किया। चुकी उसने अंदर अंडरगारमेंट्स नहीं पहने थे, तो उसकी गोरी चुच्चियाँ एक दम नंगी हो गयी। जय ने दोनों चुच्चियों को दोनों हाथों से पकड़ लिया। और कसके दबाने लगा। कविता सीत्कार उठी………… आआहह ह ह ह ह ह ह …….. जय ने उसके दोनों चुच्चियों का मर्दन चालू ही रखा। कविता की आंखे बंद होके, चेहरा छत की ओर ऊपर हो गया था। जय को चुच्चियों को मसलने में बड़ा मजा आ रहा था। जय ने उसकी चुच्चियों को लाल कर दिया। पर कविता कोई शिकायत नहीं कर रही थी। कविता की चुच्चियाँ कड़क हो चुकी थी और निप्पल्स भी। कविता के मुंह से कामुक सीत्कारों के अलावा और कुछ नहीं निकल रहा था। तब जय ने अपनी बहन को अपने गोद मे बैठने को कहा। कविता उछल कर उसकी ओर मुंह करके उसके गोद मे बैठ गयी। कविता ठीक उसके लण्ड पर बैठ गयी, जोकि सीधा उसके गाँड़ के दरार में सेट हो गयी। कविता ने अपने भाई के हाथों को थाम लिया और उसे अपनी चुच्चियों पर ज़ोर से दबाने लगी।
कविता- भाई….. आआहह…… और मसलो आईईईईईईईईई, ऊऊह। बहुत अच्छा लग रहा है। तभी जय ने उसकी चुच्चियों पर एक थप्पड़ मारा, और पूछा- अब कैसा लगा?
कविता- आआहह……. अच्छा लग रहा है।
कविता की चुच्चियाँ लाल हो गयी थी। पर जय ने उसकी चुच्चियों पर 5 6 थप्पड़ मारे। कविता को इसमें एक अजीब आनंद मिल रहा था।
जय ने फिर कविता की एक चुच्ची को मुंह मे भर लिया, और उसे ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा। कविता को तो बस यही चाहिए था। अपने भाई को अपनी चुच्ची पकड़के पिलाने लगी। कविता- आआहहहहहहहहहह भैया चूस लो, अपनी दीदी की चुच्चियों को। जितना मन चाहे पियो।
जय कविता के निप्पल को छेड़ रहा था जीभ से, हलका दांत भी गदा रहा था, बीच बीच में। कविता की दूसरी चुच्ची का मर्दन जारी था। कविता उसके सीने को सहला रही थी। उसकी बुर से पानी बहने लगा था। जो उसकी सलवार को भिगा रहा था। कविता ने तभी अपने हाथ ऊपर किये और अपने बालों को खोलने के लिए क्लचर निकालकर टेबल पर रख दिया। जब उसने हाथ उठाये तो जय की नज़र उसकी काँखों पर परी। उसकी काँखों का रंग उसके बाहों के रंग से हल्का गहरा और सांवला था। कांख में बाल एक दम हल्के थे।उसमें से हल्का पसीना चू रहा था। वो बहुत ही सेक्सी लग रहा था। जय ने चुच्ची को अब तक खूब चूस लिया था। उसने कविता की काँखों में जीभ से चाटा। स्वाद हल्का नमकीन था पसीने की वजह से। जय को उसकी कांखे बहुत उत्तेजक लग रही थी। जय ने वहाँ पर फिर चुम्मा किया। कविता को गुदगुदी हो रही थी, वो हंस भी रही थी। पर अपनी काँखों को पीछे नहीं किया। जय ने कविता को हाथ ऊपर उठाएं रखने के लिए कहा। कविता बोली- ऊउईईई…… ऊफ़्फ़फ़फ़….. अपनी बड़ी बहन की कांख को चाटने में मज़ा आ रहा है, ये तो हम कभी सोचे नहीं थे।
जय- बहुत आआहह हहहहहहहह,,….. मस्त लग रहा है चाटने में।कविता अपनी कमर धीरे धीरे हिला रही थी। जय ने एक हाथ से कविता के सलवार का नारा खोल दिया। और उसके बड़े मस्त चूतड़ों को सहलाने लगा। जय ने कविता के काँखों में थूक दिया, और कविता ने उसे पूरे कांख में मल दिया। कविता ये सब खुलकर हंसते हुए कर रही थी। कविता की ये हरकत बहुत ही कामुक थी। उसने अपने दोनों काँखों पर जब उसका थूक रगड़ लिया। जय ने कविता के मुंह के पास अपना हाथ लाया।कविता उसका इशारा समझ गयी। उसने ढेर सारा थूक उसकी हथेली पर मुंह से गिरा दिया। फिर खुद भी उसमे थूका। जय ने उसे कविता की गाँड़ की दरार में मल दिया। कविता अब बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। उसकी गाँड़ जय के लण्ड को तेजी से रगड़ रही थी। उसकी कमर की हरकत तेज़ हो चली थी। आखिर में उसने जय के आंखों में देखा और, लगभग भीख मांगते हुए बोली- अब बर्दाश्त नही हो रहा है। आआहह हहहहहहहह भाई प्लीज अब अपनी बहन को चोद दो।
जय- चल पहले अपनी सलवार उतार। mom son story
कविता उसकी गोद से झट से उतर गयी। और अपनी सलवार उतार दी। कविता पूरी नंगी हो चुकी थी। उसके बाल खुले हुए थे। चेहरे पर कामुकता के भाव साफ दिख रहे थे। जय ने अपना अंडरवियर उतार के फेंक दिया। दोनों भाई बहन अपने घर के हॉल में नंगे हो चुके थे। कौन जान सकता था कि उस फ्लैट के अंदर दो भाई बबहन एक दूसरे की जवानी का आनंद उठा रहे हैं। कविता अपनी बुर को हाथ से रगड़ रही थी। जय ने कहा- थूक लगा तू अपनी बुर पर। कविता ने अपनी हाथों से मुंह से थूक निकालके अपने बुर और जय के लण्ड पर लगाया। और जय के गोद मे वापिस चढ़ गई। उसकी बुर से तो कोई नदी खुल चुकी थी। कविता ने उसके लण्ड को बुर में घुसा लिया। जय कविता को कमर से कसके पकड़े हुआ था।
कविता लण्ड घुसते ही पागल हो उठी- उम्म्म्म्ममम्ममम्म…… ऊऊईईईईईईईई…… ऊफ़्फ़फ़फ़ ककक्याआ एहसास हहहहै। ओह्ह। भाई तुमको मज़ा आ रहा है ना। कविता धीरे धीरे उसके लण्ड को बुर में घुसाए हुए अपनी गाँड़ हिला रही थी।जय को कविता के चेहरे पर वासना की परत साफ दिख रही थी, वो खुद भी उसके गिरफ्त में था। जय कविता के चुचियों को मसल रहा था। कविता से बोला- तुम इस वक़्त कितनी मस्त लग रही हो, जैसे कोई सांप चंदन से लिपट रहता है, ठीक वैसे ही हमसे चिपकी हुई हो। तुम हमेशा ऐसी ही रहो। कितना मज़ा आ रहा है तुम्हारे बुर का एहसास पाकर। तुम कमाल हो दीदी।
कविता अब उसके लण्ड पर खूब कूद रही थी। उसके लैंड को अपनी बुर की गहराइयों में उतार रही थी।
कविता- तुम्हारा लण्ड……. हमारे बुर के पूरे अंदर है। हम मस्त हो रहे हैं तुम्हारे लण्ड से। हम कैसे हैं, हाई अपने ही भाई के लण्ड से चुदवा रहे हैं। हमको तो कहीं जगह नहीं मिलेगी। कविता हांफते हुए बोल रही थी। वो लण्ड पर लगातार उछल रही थी, जिससे उसके बुर में लण्ड अंदर बाहर हो रहा था।
जय अपनी बहन के चूतड़ पर एक चाटा मारा। कविता और जय दोनों इस उत्तेजना में बह रहे थे।
जय ने कविता की चुच्चियाँ पकड़े हुए कहा- हां तुम को कहीं और जगह नहीं मिलेगी, सिर्फ हमारे लण्ड पर मिलेगी। तुम तो एक नंबर की छिनार निकली। साली कुत्ती कहीं की। बुर में छब्बीस साल की आग को आज हम मिटा देंगे। जितना चुदना है चुदो, कोई रोकने वाला नहीं है।
कविता- ऊफ़्फ़फ़फ़, हाय हमारा भाई ही हमको गालियां देके चोद रहा है। आआहह हहहहहहहह…..हहदहम्ममम्म लेकिन हमको शर्म नही आ रही है। बल्कि बुर और पानी छोड़ रही है। कैसी लड़की हैं हम, बहुत गंदी, आआहह हहहहहहहह
जय- गंदी नहीं तुम रंडी हो। अपने भाई की रांड बन बैठी हो। अपने भाई की रखैल बनोगी कविता।
कविता- बनूँगी?? बन चुकी। आजसे हम तुम्हारी रखैल। अपने ही भाई की रखैल बनने का मज़ा ही कुछ और है। कविता अपने चूतड़ों को रगड़ते हुए बोली। जय ने कविता को कहा- सुनो, अब तुम उतरो । कविता बोली- क्यों भाई इतना मज़ा तो आ रहा है।
जय ने उसके बाल पकड़ लिए और बोला- अरे साली, खुद ही चुदति रहेगी या हमको भी चोदने देगी। कविता के बाल पकड़े हुए ही जय खड़ा हुआ, और कविता को सोफे पर बैठने का इशारा किया।
जय- चल चूस ये अपनी बुर के रस से सना हुआ लौड़ा। कविता ने लण्ड को पकड़ना चाहा तो जय ने उसको एक थप्पड़ मारा और बोला- तुम इसको अपनी जीभ से साफ करो, अपने हाथ से लण्ड पकड़ेगी तो पूरा चाट कहाँ पाओगी। कविता ने लपलपाती जीभ से उसके पूरे लण्ड को चाट लिया। सारा रस पी गयी। जय ने फिर कविता को बोला चल कुतिया बन जा।
कविता सोफे पर ही पीछे मुड़ गयी। घुटनो के बल बैठी सोफे की पीठ पकड़के। कविता इस पोजीशन में कमाल लग रही थी। उसकी गाँड़ ऊपर की ओर उठी थी। जय ने उसकी गाँड़ पर सटासट 8 10 थप्पड़ मारे। कविता से बोला- गाँड़ और बाहर निकाल छिनार साली।

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