Incest क्या…….ये गलत है?

तभी एंट्री शुरू हो गयी। कविता और जय ने जाकर कार्नर की सीट ले ली। जय ने पूछा कि ये कार्नर की सीट कैसे मिली। कविता ने आंख मारी की मैंने माँग ली थी। जय ने कविता की ओर देखा और बोला , क्या बात है, जानू??
पिक्चर शुरू हो गयी, पर जय का ध्यान कविता के ऊपर था। उसने कविता के बाजू में अपना हाथ रख लिया। कविता खुद खिसक कर जय के करीब आ गयी। थोड़ी देर पिक्चर चलने के बाद फ़िल्म में एक सीन था जिसमे हीरो जॉन अब्राहम दरवाज़ा तोड़के हीरोइन बिपाशा बासु के पास आके उसे किस करने लगता है और फिर सेक्स सीन होता है।
जय ने कविता से पूछा कि दीदी, मुझे तुम से कुछ पूछना है?
कविता ने कहा- हाँ पूछो।
जय – कल की रात तुम जानती थी कि तुम नंगी हो फिर भी तुमने दरवाज़ा क्यों खोला, ये जानते हुए की हम तुम्हारे साथ क्या करेंगे? हाल के अंधेरे में जय ने हिम्मत जुटाकर ये सवाल किया, ये सोचकर कि शायद अंधेरे में कविता उसका चेहरा नहीं देख पाएगी।
कविता- उस वक़्त हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि हम क्या करें। तुम हमको नंगी देख चुके थे। और शायद हमको वासना की तलब थी। ब्लू फिल्म देखकर हम जोश में भी थे। कोई मर्द ही उस समय हमको शांत कर सकता था, दिमाग ने दिल से कहा। और उस समय तुम ही दिखे।
कविता ने जय को गाल पर चुम्मा दिया और उसका हाथ अपने सीने पर रख लिया।
जय- जब हम तुमको चोद…. सॉरी सेक्स कर रहे थे। तब तुम क्या सोच रही थी??
कविता- इसमें सॉरी की क्या बात है, हिंदी में सेक्स को चुदाई ही बोलते हैं। और तुम हमको चोद रहे थे। लड़कियां चुदती हैं और लड़के चोदते हैं। उस वक़्त हम बस ये सोच रहे थे, की कैसे अपनी प्यास बुझाए। तुम्हारा लण्ड जब हमारे बुर में था, तो बहुत मज़ा आ रहा था। जैसे आसमान में उड़ रहे हों। उस समय एक बार भी ग्लानि नहीं हुई। हाँ चुदाई के बाद हुई थी। कविता ने पूरा बेबाक होकर उत्तर दिया, शायद ये हॉल का अंधेरा उनके जीवन मे नया प्रकाश लेके आएगा।
जय – तुम कितनी मस्त हो कविता। कितने खुलेपन के साथ तुमने जवाब दिया है। तुमने लंड का रस कैसे पिया? हमको उम्मीद नहीं थी।
कविता उसकी आँखों मे देखकर बोली- सच कहें तो ये हम ब्लू फिल्मों में देखते थे। कि लड़कियां मूठ पी जाती हैं। हम भी पीकर देखना चाहते थे कि कैसा लगता है। तुम अगर मेरे बुर में निकालते तो माँ बनने का खतरा भी था। हम कहीं पढ़े भी थे कि लड़कियों को मर्दों का मूठ पीना चाहिए, उससे चेहरे में निखार आती है। हमको उसका स्वाद भी बहुत अच्छा लगा।
जय- तुम तो अलग निकली कविता, एक तो तुम हिंदुस्तानी और उसमें बिहारी उसकर ऊपर से ब्रह्मिन लड़की होकर ये सब कैसे कर पाई।
कविता- जब विदेशी लड़कियां ऐसा करती है , तब तुमलोग सोचते हो कि हिंदुस्तानी, लड़कियां ऐसा क्यों नही करती। कर दिया तो आश्चर्य। बिहार ने भारत को ही नहीं विश्व को पहला लोकतंत्र दिया है, तो बिहार की बाला मूठ नहीं पी सकती क्या। वर्ण व्यवस्था तो ढकोसला है, और एक सेकंड को मान भी लें तो सबसे ऊपर हम ब्राह्मिन ही हैं, हर चीज़ की शुरुवात तो हम ही करते हैं। कविता बोलके हसने लगी।
कविता के तर्कों को सुनकर जय चुप ही हो गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो उसकी दीदी है, जो इन विषयों की भी जानकार है।
कविता बोली- हम बाथरूम से आते हैं। जय ने बोला कि एक और बात पूछनी थी। कविता बोली आते हैं, फिर पूछना।
जय का लण्ड खड़ा हो चुका था, कविता की बातें सुनकर।जय उसका बेसब्री से इंतज़ार करने लगा।
कविता को 5 मिनट बाद आता देख उसको सुकून मिला। कविता आकर बैठी तो जय ने फौरन पूछा, की उस दिन पैंटी क्यों नहीं लाने दी अपने कमरे से?
कविता- उस दिन शर्म आ रही थी, घिन हो रही थी अपने आप से। पर आज नहीं और जय के हाथ मे कविता ने कुछ रख दिया। जय ने गौर से देखा तो कविता की पैंटी थी, जो वो पहन कर आई थी। उसमें उसकी बुर का पानी भी लगा था। कविता बाथरूम जाकर खोल आई थी।
जय- तुम्हें ….
कविता- पता था, की यही पूछोगे।और जय के लण्ड पर हाथ फेरने लगी। वो बिल्कुल कामुक हो चुकी थी।तब जय ने कविता से एक आखरी सवाल किया- कविता दीदी तुम कमाल हो। पर ये बात पूछनी है, की हमको रफ़ चुदाई अच्छी लगती है, तुमको कैसी पसंद है।
कविता जो कि कामुक हो चुकी थी, और अब पूरी तरह खुल चुकी थी, बोली- शायद हो सकता है कि तुम्हें हमारा जवाब सुनके आश्चर्य लगे पर खुश जरूर होंगे। हमको बिल्कुल ब्लू फिल्मों की हीरोइन की तरह चुदना पसंद है।
मर्द और औरत का जब चुदाई का समा बंधता है तो उसको एक सुखद एहसास सिर्फ औरत देती है। ये औरत पर निर्भर करता है कि वो अपने यार को किस हद तक कि खुशी देगी। मर्द तो हमेशा ही औरतों से कुछ ज़्यादा चाहते हैं, पर क्या वो चुदाई की गहराइयों में उतरकर खुद को भुलाकर अपने साथी को संतुष्टि की चरम सीमा पर पहुंचने में मदद कर सकती है? पहले तो चुदाई का मतलब सिर्फ बुर की चुदाई होती थी।दर असल ब्लू फिल्मों की वजह से आजकल चुदाई के मायने भी बदल गए हैं, अब हर कोई औरत को वैसे ही चोदना चाहता है, जैसे उस फिल्म में हीरोइन चुदती हैं। जिसमे उनकी बुर की चुसाई और चटाई के साथ साथ गाँड़ की चुदाई, गाँड़ से लौरा निकालके उनको चटवाना, उनके मुंह पर थूकना व माल निकालना, चुदाई के दौरान उनको गाल और गाँड़ दोनों पर थप्पड़ मारना, मर्द की गाँड़ चाटना और भी कई तरह से गंदी और घिनौनी चुदाई के जिसे KINKY कहते हैं, शामिल है। अगर कुल मिलाके देखा जाय तो औरतो को चुदाई का सामान समझ लिया गया है। कुछ लड़कियों को ऐसे चुदना पसंद है, हम उनमे से एक हैं।हमको ऐसे ही चुदना है खुलकर,क्या आज ऐसा दो भाई बहन के बीच देखने को मिलेगा? कविता की आंखों में ठरक साफ झलक रही थी।
जय ने अब एक पल भी बर्बाद करना ठीक नहीं समझा और कविता को चूमने लगा। कविता बोली, चलो भाई घर चलते हैं।
जय ने उसका हाथ पकड़ा और पिक्चर आधी छोड़ कविता को घर ले जाने के लिए ऑटो पकड़ ली। दोनों अब बर्दाश्त कर नहीं पा रहे थे।आधे घंटे का सफर मानो एक युग जैसा लग रहा था।आखिर में दोनों घर पहुंच ही गए।जय ने जबतक ऑटोवाले को पैसे दिए तब तक कविता ने दरवाज़ा खोला और अंदर चली गयी। जय दरवाज़े पर पहुंचा तो कविता उसकी तरफ देखके मुस्कुरा रही थी। जय उसके पीछे आया तब तक कविता बाथरूम में घुस चुकी थी, और दरवाज़ा बंद करने लगी। जय दरवाज़ा के पास दौड़ के पहुंचा पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जय ने कविता को आवाज़ लगाई, पर कविता कुछ नहीं बोली। जय कविता के जवाब की प्रतीक्षा कर रहा था। कविता ने फिर कहा, जय सब्र करो, सब्र का फल बहुत मीठा होता है।
जय बोला- अब सब्र नही हो रहा है दीदी।
कविता बोली – जाओ घर का सामान ले आओ लिस्ट किचन में टंगी है। पहले वो काम कर आओ। हम तुम्हारा और हमारा आज का दिन यादगार बना देंगे।जब तुम वापिस आओगे तो तुमको तुम्हारी दीदी नहीं , तुम्हारी कविता जानू मिलेगी। एक नए अवतार में।
जय कविता की बात मानकर, लिस्ट लेके बाजार से सामान लाने चला गया। उसने दरवाज़ा बाहर की ओर से बंद कर दिया। जय बाजार की ओर निकल तो रास्ते में उसे एक तरकीब सूझी। उसने सारा सामान बढ़ा के लेने की सोची। ताकि बाद में फिर उसे एक हफ्ते तक बाहर जाने की जरूरत ना पड़े। रास्ते मे उसे एक मेडिकल स्टोर दिख तो उसने 2 पैकेट कंडोम और वियाग्रा की गोलियां ले ली। जब वो लौट के आया तो कविता अभी तक बाथरूम में ही थी। कविता तभी बाहर निकली, वो इस वक़्त गज़ब ढा रही थी। उसके बदन पे कपड़े के नाम पर एक सफेद तौलिया लिपटा हुआ था। कविता के बाल भीगे हुए थे, आंखों में अपने छोटे भाई में एक मर्द मिल जाने की वजह से एक अजीब कामुकता बसी थी। वो तौलिया उसकी चुचियों को आधा ढके हुए था, यानी ऊपर से आधे खुले थे। चुचियों की ऊपरी अर्ध गोलाइयों उसके यौवन की परिपक्वता की गवाही दे रहे थे।उसकी जांघों का जोर जहां खत्म होता था, वहीं तक तौलिया उसको ढके था। उसकी जाँघे बिल्कुल चिकनी थी।कविता की नज़र जय की ओर गयी, तो देखी की जय पूरे एक हफ्ते का राशन और सब्जी ले आया था। कविता उसके पास आई, वो जय के हाथों से सामान लेकर किचन की ओर जाने लगी। जय अवाक होक उसे देखे ही जा रहा था।जय ने फौरन दरवाज़ा बंद कर दिया। तौलिया भीगकर कविता के चूतड़ों से चिपक गया था, इस वजह से उसकी चूतड़ों का का दिलनुमा आकार साफ पता चल रहा था। उसकी चाल उसके चूतड़ों के हिलने से बहुत ही सेक्सी लग रही थी। ऐसा लग रहा था कि कविता के बदन पर तौलिया बस उसके चुचियों और गाँड़ की वजह से टिका हुआ था।जय ने कहा – अबसे एक हफ्ते तक हम घर से बाहर नहीं जाएंगे। और पूरी मस्ती करेंगे। कविता मुस्कुराई, बोली, अच्छा जी!
जय ने अपनी जीन्स और टी शर्ट उतारकर सोफे पर फेंक दी। और कविता के पास किचन में घुस गया। उसने कविता को पीछे से पकड़ना चाहा तो कविता मुड़ गयी। उसने कंडोम के पैकेट को निकाल जो जय लाया था। उसने बोला इसे क्यों लाये हो?? जय- ताकि सेफ रहे हम। तुम कहीं ……. अआ…..वो…. जाओ।
कविता- वो .. वो क्या? कि कहीं तुम्हारा बच्चा हमारे पेट में ना आ जाये।
जय- हाँ, वही .. वही। कविता जय के करीब गयी उसके आंखों में आंखे डालकर बोली, जब तक तुम अपने लण्ड का पानी हमारे बुर में नहीं गिराओगे तब तक इसका कोई डर नहीं, तुम्हारे लण्ड का सारा मूठ तो हम पी जाएंगे। और रही इस कंडोम की बात तो हमारे बीच कोई परत नहीं होनी चाहिए और उस पैकेट को फेंक दी। कविता ने हंसकर कहा।
जय ने कविता के गीले बालों पर हाथ फेरा, शैम्पू की खुसबू आ रही थी। जय ने कविता को कमर से पकड़कर अपनी बाहों में ले लिया। कविता के गुलाबी गालों पर वो हाथ फेरने लगा। कविता ने अपने मुलायम गाल से जय के हाथों पर दबाव बनाकर ये जताया कि वो उसके साथ है। जय ने फिर कविता के होंठो को अपनी उंगलियों से छुआ,उसके होंठ कांप रहे थे एक मर्द के एहसास से। कविता की आंखें अनायास बन्द हो गयी। जय ने कविता के आंखों को चूमा और कहा – आंखें खोलो। कविता ने धीरे से अपनी आंखें खोली। फिर जय कविता के होंठों के करीब अपने होंठ लाया और वो कब मिल गए दोनों को पता ही नहीं चला। दोनों इस चुम्मे में खो गए थे। जय कविता के होंठों को कुल्फी की तरह चूस रहा था। कविता उसके होंठो को ठीक वैसे ही चूस रही थी, जैसे कोई बच्चा चॉक्लेट चूसता रहता है। दोनों एक दूसरे के मुंह में जीभ घुसाके चूस रहे थे। जब सांस उखड़ जाती तो कुछ पल थमते फिर होंठों का रसपान करने लगते। कविता की बांहे जय के गर्दन पर जमी हुई थी। दोनों में से कोई दूसरे को छोड़ने को तैयार ही नहीं था। जय ने आखिर इस सिलसिले को तोड़ा और कविता के गर्दन पर चुम्मों की बौछार कर दी। कविता की चुचियाँ तन गयी थी, जो जय के सीने से रगड़ खा रही थी। जय का दाहिना हाथ कविता के दोनों चूतड़ों को बारी बारी से मसल रहा था। जैसे ही जय का हाथ उसके चूतड़ों पर गयाकविता ने सहयोग के तौर पर उसके हाथों पर अपने हाथ रख दिया था। जय ये महसूस करके जोश में आ गया। और कविता का तौलिया निकाल दिया।पलक झपकते कविता नंगी हो गयी। कविता ने अपना चेहरा जय के सीने में छुपा लिया। जय ने कविता के चेहरे को सीने से अलग किया, उसके माथे पर एक किस करके बोला, तुमने ही कहा था कि हमारे बीच कोई परत नहीं होनी चाहिए। कविता कुछ नहीं बोली सिर्फ कामुक होकर अपने दोनों हाथ अपने सर के पीछे रख लिया और खुद एक कदम पीछे हटके खड़ी हो गयी। फिर बोली- सही कहा था, अब देखो हमको।
ऊफ़्फ़फ़फ़ ………………. क्या दृश्य था वो। कविता एक नर्तकी की मुद्रा में थी। कविता की उन्नत चुचियाँ एक दम कड़ी हो चुकी थी, जो कामुकता की वजह से तनी हुई थी। उसने जान बूझकर अपनी चुचियाँ और बाहर निकल थी। चुचियों पर हल्के भूरे रंग के निप्पल अंगूर के जैसे लग रहे थे। चुचियों की गोलाइयां एक दम पके बड़े आमों की तरह थी, जो अपने चूसे जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस आमंत्रण को जय ठीक से स्वीकार भी नही कर पाया था कि उसकी नज़र कविता के समतल पेट पर गयी। हल्की चर्बी थी, पर वो उसके कमर और पेट को कामुक बना रहा था। जय ने कविता की नाभि की गहराई अपनी आंखों से नापी, जो कि कविता के पेट का मुख्य आकर्षण था।कविता की नाभि अंडाकार और गहरी थी।
जय ये सब देख ही रहा था कि कविता घूम गयी, दूसरी ओर। ये तो बिल्कुल जय के सपने जैसा था, जिसमे एक औरत पीछे मुड़के खड़ी होती थी। पर वो कभी उसका चेहरा नहीं देख पाया था। उसे अब महसूस हुआ कि वो और कोई नही उसकी बहन ही थी। कविता ने अपने बाल आगे कर लिया।और अपनी नंगी पीठ अपने छोटे भाई को दिखाने लगी। कविता के गोरी होने की वजह से उसकी पीठ में कंधे के पास बड़ा सा तिल साफ दिख रहा था। उसके बाद कविता ने अपनी गाँड़ लहराई। कविता के चूतड़ों की थिरकन बहुत सेक्सी लग रही थी। कविता के चूतड़ों का आकार दिलनुमा था। गाँड़ की दरार बहुत सटीक थी। गाँड़ पर भी दो तिल थे। चूतड़ बिल्कुल तरबूज़ जितने बड़े थे। कविता ने अपने चूतड़ों को अलग किया और फिर छोड़ दिया। वो ऐसा चार पांच बार की। फिर अपने चूतड़ों को पकड़के हिलाने लगी। उसे दबाया और हल्के थप्पड़ मारे। जय ये सब देखते हुए अपना लण्ड रगड़ रहा था। कविता पीछे , मुड़ी और बोली, भाई क्या हुआ तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे। अच्छा नहीं लग रहा है क्या तुमको? अपनी चूतड़ को सहलाते हुए बोली।
जय- कोई पागल ही होगा जिसको ये अच्छा ना लगे। दीदी तुम एक दम बढ़िया कर रही हो। क्या शरीर है तुम्हारा। तुमको तो फिल्मों की हीरोइन बनना चाहिए। हम तुम्हारे अंग अंग को पहले जी भरके मन में बसाना चाहते हैं।

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