दोनों माँ बेटी पूरी तरह नग्न थे। फिर दोनों उसी अवस्था में जय से चिपककर बाथरूम से बाहर आई। जय उनके चूतड़ों को सहलाते मसलते हुए मज़े ले रहा था। दोनों जय को सोफे पर बिठा कमरे में चली गयी। वहां उन दोनों ने फिर से श्रृंगार किया और अपनी नग्नता को सिर्फ टॉवल से ढके थी। जय ने तभी सत्यप्रकाश को फ़ोन किया यानी उसका मामा जो अब साला था। उधर से माया की हंसी ठिठोली की आवाज़ आ रही थी। जय बोला,” सुनो बे साले एक कार्टून बियर की बोतल भेजवा दो।” सत्य बोला,” जी जीजाजी 10 मिनट में पहुंच जाएगा।”
उसने फिर फोन काट दिया। 10 मिनट के भीतर एक लड़का पूरा कार्टून लेकर आ गया। जय ने वो ले लिया और बियर को फ्रिज में डाल दिया। उसकी दोनों पत्नियों ने सिर्फ साया और ब्रा पहनी हुई थी। जय ने उनको अपनी तरफ बुलाया। ममता उसके पास पहुंची बोली,” कुछ खाओगे नहीं ताक़त कैसे आएगी? दो दो बीवियां चोदना है तुमको। हम खाना लगाते हैं। कविता बोली,” उसके पहले बियर पियेंगे हमलोग। क्यों जय?
जय- बिल्कुल, खाने से पहले बियर पियेंगे, फिर खाएंगे।”
कविता- माँ हम बियर लेकर आते हैं, तुम चखना लेकर आओ।” दोनों काम पर लग गयी और थोड़े ही देर में बियर और चखने से टेबल सज गयी। ममता ने कभी पी नही थी, इसलिए वो चियर्स का मतलब समझ नहीं पाई। तीनों ने एक एक सिप लिया। कविता और ममता का मुंह पीने के साथ ही वैसे बन गया जैसे, मूत पीने से हो गया था। दोनों ने एक साथ चखना उठाकर मुंह में डाला।
ममता- इससे अच्छा तो मूत पीना है।”
जय- धीरे धीरे पियो अच्छा लगेगा।” थोड़ी देर बाद तीनों आधी आधी बोतल पी चुके थे। और अब उनपर मस्ती चढ़ रही थी। ममता और कविता को तो अब हल्का नशा भी हो गया था।mom son story
कविता- माँ, हम तीनों एक साथ हनीमून मनाने चले। हम तो गोआ जाएंगे। तुम्हारा कहां मन है, और तुम भी बताओ जय।
जय- ठीक है, कविता दीदी। बहुत मस्त जगह है।
ममता- हमको क्या पता? हम कहां जाएंगे। तुम दोनों सोच लो और हो आयो। तुम दोनों जवान हो जाकर मजा करो।जय- माँ तुमको तो साथ चलना ही पड़ेगा, नहीं तो मज़ा नहीं आएगा।
कविता- माँ, तुमको जाने की इच्छा नहीं है क्या?
ममता- नहीं कविता, तुमलोग हो आओ।
जय- पर तुम नहीं जाओगी, तो हम भी नहीं जाएंगे।
कविता- अरे झगड़ो मत, इसका फैसला हो जाएगा। पहले खाना खाते हैं। ममता जाओ खाना लगाओ।
ममता हंसते हुए बोली- जी ठीक है दीदी। अभी लाते हैं।
कहकर वो चली गयी। उसके जाते ही कविता नशे में उठकर जय के पास आ गयी और बोली,” जय क्यों ना हम दोनों ही चलें। मां को यहीं छोड़ देते हैं। ताकि हम तुमको अच्छे से प्यार कर सकें। तुम जो बोलोगे हम सब करेंगे। तुम्हारा हर गंदा से गंदा फरमाइश पूरा करेंगे। वो रहेगी तो हम पर ध्यान ठीक से नहीं दे पाओगे।”
जय कविता की ओर देखा और बोला,” साली आ गयी ना औकात पर। यही करना था, तो क्यों मां को अपनी सौतन बनाई। हम तुमको उतना ही चाहते हैं जितना मां को। तुमदोनो हमारे लिए बराबर हो। तुमने सिर्फ हमारे साथ कसमें खाई हैं, पर हम तो तुम दोनों के साथ सात फेरे लिए हैं। चलोगी तो दोनों हमारे साथ। हमको तुमदोनों के साथ हनीमून मनाना है।”
कविता हंस पड़ी,” अरे भैया हम तो मज़ाक कर रहे थे। हमदोनों ही तुम्हारे साथ चलेंगी। तुम्हारा पूरा मनोरंजन करेंगे। तुम्हारा प्यार हम दोनों माँ बेटी के लिए कितना गहरा है, ये आज पता चल गया। मां हमारी सौतन बाद में बनी, उससे पहले तुम्हारी छोटी पत्नी है।”
जय- कविता ऐसा मज़ाक कभी मत करना।
तभी ममता खाना लेकर आई,” दीदी इनको छोड़ोगी। तभी तो खाओगी।”
तीनों बियर पी चुके थे, और खाना खाने लगे। कविता खाना परोस रही थी। तब ममता बोली,” जय को अच्छे से खिलाओ।”
जय- तुमभी अच्छे से खाओ।
खाने खाने के दौरान जय ममता और कविता को और खाने के लिए बोलता रहा।
थाली वाली वैसे ही छोड़कर सब उठ गए। तीनों फिर कमरे में चले आये। कमरे का दरवाजा बंद होने से पहले दोनों की ब्रा कमरे के बाहर फेंक दी गयी।
नशे में दोनों माँ बेटी मस्त हो रही थी। उनको तो पता भी नहीं चला कि कब जय ने उनकी ब्रा उतार दी और चुच्चियों को नंगा कर दिया। उनके बदन पर सिर्फ साया था। ममता का भरा पूरा शरीर, खुले बाल, चाल में उछाल, मस्ती से डोलता उसका पूरा बदन जय के लण्ड में तनाव लाने के लिए काफी था। दूसरी ओर उसकी माँ की जवान प्रतिबिम्ब उसकी सगी बड़ी बहन कविता बिल्कुल लापरवाह होकर जय को चूमती जा रही थी। अपनी नंगी चुच्चियों को खुद से निचोड़कर जय को पिलाने के लिए बेताब थी।
जय कविता के भूरे चुचकों को एक एक करके चूस रहा था। दूसरी ओर ममता के बड़े चुच्चियों को हाथों से मसल रहा था। कविता के चूचक खजूर के बीज की तरह तने हुए थे। कविता जय के सर को पकड़ अपने चुच्चियों में समा लेना चाहती थी। वो जय के माथे को चूम रही थी। जय की लार से चुच्चियाँ काफी गीली हो चुकी थी।
कविता- भैया, तुम जब हमारे चूचियों को चूसते हो, तो बदन में उमंग तैरने लगता है। हम औरतों को भगवान ने बच्चों को दूध पिलाने के लिए चुच्चियाँ दी है, पर जब मर्द सेक्स के दौरान इनको मसलकर दूध पीते हैं, तो बुर में चुदने की प्यास उठ जाती है। बुर से पानी अनायास बहने लगता है। तुम भी तो हमारे दूध को पियोगे ही, जब हम तुम्हारे बच्चे की माँ बनेंगे। इस्सस…. काटते क्यों हो….. आप…..
ममता- इसने हमारा दूध पिया है, और आज बियर पिलाकर, हमारा बुर का पानी पियेगा। क्यों है ना? तुम बड़े ही मादरचोद बेटा हो।
जय जोश में था, पर उनकी ओर देखकर हंसा, और ममता को अपने पास खींच लिया,” अब तो तुमदोनो और मस्त होकर चुदवाओगी। दोनों का सेक्स का प्यास चुच्चियों को मसलने से बढ़ता है। इधर आना रंडी कहीं की।”
जय भी थोड़ा नशे में था, उसने कविता और ममता के चेहरों को एक साथ चिपका दिया और उनके होंठों को एक साथ चूमने लगा। उनके होंठ जय के जबरदस्त चुम्बन से कांपने लगे। जय ने उनका साया उठाना चाहा, पर वो जल्दी से उठ नहीं रहा था। शायद नशे की वजह से वो ठीक से खींच नहीं पाया। उसने बगल से कैंची ली, और ममता के साये को घुटनों के पास से काटकर अलग कर दिया। अब ममता के घुटनों से ऊपर के हिस्से ही ढके थे। मतलब ममता की जाँघे, दूसरी ओर कविता ने अपना साया उतार दिया, और अपने भाई की तरह बिल्कुल नंगी हो गयी। जय ने कविता को उसके गाँड़ पर सहलाते हुए 3 4 थप्पड़ मारे। हर थप्पड़ के बाद कविता, आउच बोलती पर उसको रोकती नहीं थी।
जय उसकी ओर देख बोला- क्यों रे रंडी, क्या चाहती है तुम?
कविता- आपका मस्त लौड़ा, चुदवाने के लिए।
जय- क्या चुदवायेगी?
कविता- अपनी बुर और गाँड़ मरवाऊंगी जमके।
जय- और तू रे रंडी की माँ। तुमको भी गाँड़ मरवाने का मन है।
ममता मुस्कुराते हुए- हमसे पूछ रहे हो, की अपनी मर्ज़ी बता रहे हो?
जय चुच्ची पर एक थप्पड़ मारा, जिससे ममता कराह उठी।” जितना पूछे उतना बोल कुत्ती की बच्ची, बुरमरानी गदही, हरामखोर की पिल्ली।
ममता- हहम्म, हां गाँड़ मरवाने को बेताब हैं। मारो ना।
जय- लौड़ा चाहिए, तो तुमदोनों को अब हमको खुश करना पड़ेगा। कविता चल हमारा गाँड़ चाटो, ममता तुम हमारा लौडा चुसो।”
दोनों बिना देर किये घुटनों पर बैठ गयी। और ममता सीधा लंड के पीछे पड़ गयी। उससे भी फुर्ती दिखाई, कविता ने उसने जय के पीछे जाकर, उसके चूतड़ अलग किये। वहां जय के गाँड़ के छेद के पास काफी बाल थे। कविता ने बिना देर किए, उसके गाँड़ के छेद को, अपनी जीभ से चाटा। वहां से बदबू आ रही थी, पसीने की पर नशे में वो सब सूंघ रही थी। आगे उसकी मां, जय के लण्ड को प्यार करने में मशगूल थी।mom son story
दोनों जय को अपने स्तर से खुश करने में लगी थी। जय का ये सपना था, की दो औरतें उसको ऐसे प्यार करें। जय तो सातवें आसमान पर था। उसने दोनों के माथे को दाएं और बाएं हाथ से पकड़ रखा था। कविता धीरे धीरे और आक्रामक तरीके से चूसने लगी। जय के चूतड़ों को बीच की दरार को जीभ से साफ कर रही थी। जय की गाँड़ में ज़ुबान भी घुसाना चाह रही थी। उधर ममता अपने कौशल का परिचय दे रही थी। वो जय का पूरा लण्ड समेत आंड़ भी मुंह में भर ली थी। और जय के झाँटों तक होंठ चिपकाए हुए थी।
इस तरह की माँ और बहन पाकर, किसको मज़ा ना आये। दोनों, एक से बढ़कर एक सेक्स की प्यासी, रंडियों की तरह चुदनी की तड़प शायद ही जय ने ब्लू फिल्म की हीरोइनों में भी देखी हो। जय खुद को किसी जन्नत में महसूस कर रहा था। उसने ममता को देखा और इनाम के तौर पर मुंह से थूक फेंका, जो सीधा ममता के माथे पर गिरा।
जय- तुम दोनों से हम कितना खुश हो रहे हैं, ये तय ऐसे होगा, की जब हमको अच्छा लगेगा, हम उसके मुंह पर थूकेंगे। और जिसके ऊपर जितना बार थूकेंगे, इसका मतलब वो हमको खूब खुश कर रही है। ये सुनकर दोनों के कान खड़े हो गए। कविता अपने भाई के गाँड़ को चाट चाटके साफ कर रही थी। उसकी जीभ जय के गाँड़ के छेद के अंदरूनी हिस्से को छू गयी। जिससे उसकी जीभ पर बदबूदार महक फैल गयी। पर बेचारी ने उसको सुगंध समझ चाट लिया। जय को ये पसंद आया, उसने कविता के ऊपर भी गर्दन घुमाकर थूका, कविता जैसे इसी इंतज़ार में थी। वो उसके थूक को सीधे मुंह खोलकर ले ली और पी गयी।
जय उन दोनों का समर्पण देख बहुत खुश था। उसकी थूक को अपना मैडल समझ रही उसकी माँ बेक़रार थी, की कब जय और थूके। इस तरह कुछ ही देर बाद दोनों का चेहरा जय की थूक से तर हो चुका था। जय ममता के चेहरे पर लौडे से पिटाई कर रहा था। कभी गालों पर, तो कभी होंठों पर, कभी माथे पर तो कभी ठुड्ढी पर। जय ने आखिर ममता और कविता को कुत्ती की तरह चौपाया कर दिया और दोनों के बाल पकड़ उनको बिस्तर की ओर ले चला। दोनों के बदन में मस्ती चढ़ चुकी थी। दोनों बिस्तर में चढ़ गई, और अपने अपने चूतड़ों को मसल रही थी। दोनों लण्ड की प्यासी हो गई थी। उनके बुर से पानी लगातार चू रहा था। उनदोनों के पिछवाड़े को आपस में चिपका दिया। और उनके बुर और गाँड़ एक साथ चाटने लगा। इस चटाई के दौरान उनका मुंह कभी बन्द ही नहीं हुआ, दोनों कराह रही थी और मौका मिलने पर किस कर लेती थी। जय की जीभ ने अपना जादू कर दिया आखिर ममता बोल उठी,” अब देर ना करो, चोदो ना।जय- आज तो तुम्हारा खाली गाँड़ चोदेंगे।
ममता- तो मारो ना हमारी गाँड़, ये तो मरवाने के लिए ही बनी है।
जय- बिल्कुल सही, और तुमको पता है, औरतों के बाल लंबे क्यों होते हैं, ताकि हम चुदाई के दौरान इनको हैंडल की तरह इस्तेमाल कर सकें।” कहकर उसने ममता के बाल कसके खींच लिए, जिससे उसका सर ऊपर की ओर तन गया। जय ने उसके गाँड़ पर थूक दिया और लण्ड से फैला दिया। कविता ने अपने मुंह से थूक निकालकर ममता की गाँड़ के छेद पर मल दिया। उसने अपनी दो उंगलियां भी गाँड़ में घुसा दी, ताकि थोड़ा ढीला हो जाये। कुछ ही देर में ममता की गाँड़ की भूरी छेद, तैयार हो चुकी थी। जय ने अपना लण्ड उसकी गाँड़ में घुसाने लगा। ममता के मुंह से आँहें निकल रही थी, आखिर लण्ड को गाँड़ में एडजस्ट करने तक हर औरत कराहती है। जय इससे परिचित था, इसलिए कुछ देर रुका। जब ममता की कराह, मस्ती भरी आहों में तब्दील हो गयी, तो उसकी कमर में भी चाल आ गयी। चोदते हुए उसने कविता से कहा,” कविता दीदी अपना बट्ट प्लग गाँड़ में डाल के रखो। हम चाहते हैं, की तुम अपना गाँड़ लण्ड के लिए तैयार रखो।” कविता प्यासी नज़रों से देख कर बोली,” जय, बट्ट प्लग बाहर है।
जय- तो चली जाओ, और लगाके आओ।” कविता बोली,” हम बाहर नहीं जाएंगे अभी।” ये बोलकर उसने अपनी गाँड़ में थूक लगाकर सीधे तीन उंगलियों को घुसा लिया। जय की ओर देखते हुए अंदर बाहर करने लगी। जय को ये बहुत उत्तेजक लग रहा था।जय उसकी बुर पर थप्पड़ मारते हुए बोला,” क्या मस्त गाँड़ और बुर पाई हो तुम, बिल्कुल चिकने चूतड़, और रसेदार बुर। तुम दोनों बिल्कुल पोर्नस्टार जैसी हरक़तें कर रही हो। दीदी तुमको तो मॉडलिंग करनी चाहिए। माँ भी थोड़ी फिट हो जाये, तो हम तुम दोनों को न्यूड मॉडलिंग करवाएंगे।”
कविता- तुम जो चाहे करवाओ, अब तो हम बीवी है तुम्हारे, हमको बीच बाजार नंगी करवाओगे, तो भी होना पड़ेगा। अब तो तुम्हारी इच्छा को पूरा करना, हमारी मान मर्यादा से कहीं ऊपर है।
जय- सच।
कविता- आजमा के देख लो।
जय- तो फिर तुम अपनी गाँड़ में अब मुट्ठी बनाके घुसा लो। तुम्हारी गाँड़ देखते हैं, कितना सह पाती है।
कविता मुस्कुराते हुए,” बड़े, गंदे हो भैया। गाँड़ में मुट्ठी से गाँड़ का तो छेद पूरा फैल जाएगा और दर्द भी होगा।”
जय- तो क्या हुआ तुम्हारा हाथ और हमारा लण्ड एक ही साइज तो है। घुसाओ ना।
कविता ने और थूक मला, और बची हुई दोनों उंगली, गाँड़ की कसी हुई छेद में किसी तरह घुसानी चाही। उसका दर्द से बुरा हाल हो गया। पर उस बेचारी का समर्पण, था कि वो हिली नहीं। दर्द को सहते हुए, पांचों उंगली गाँड़ में घुसा ली। ममता चुदते, हुए अपनी बेटी से बनी सौतन का हौसला बढ़ा रही थी। ममता,”बेटी, तुम बहुत, लायक बीवी हो, जो अपने पति, के लिए हर हद पार कर रही हो।”इसके तुरंत बाद ही कविता ने देखते देखते, पूरा मुट्ठी गाँड़ में घुसा ली। फिर आगे पीछे करने लगी। उसकी गाँड़ का लचीलापन अद्भुत था। पूरी की पूरी मुट्ठी घुस गई थी। उसको ऐसा महसूस हुआ, की जैसे उसका हाथ किसी गद्देदार रुई में फंसा है। उसका हाथ उसके मलाशय की गहराई नाप रहा था। जय ने उसका हाथ पकड़के पहले धीरे धीरे आगे पीछे किया, फिर तेजी से। कविता को मज़ा आ रहा था। दर्द काफूर था। तीनों नशे में थी। उधर ममता की गाँड़ भी जय भका भक मारे जा रहा था। उसके अंदर भी एक अजीब सी मस्ती चढ़ी थी। तभी जय ने लण्ड निकाला और कविता की ओर दे दिया। कविता समझ गयी उसे क्या करना है। उसने जय का लण्ड पकड़ा, और चाटने लगी। कविता ने देखा, की जय के लण्ड पर पीलापन था। कविता समझ गयी, पर भोली बनकर पूूूछ बैठी,” भैया ये पीला पीला क्या लगा हैै ?
जय- ये माँ की गाँड़, में लण्ड से कुटाई की वजह से तैयार हलवा है।
कविता- वाओ, हमको हलवा पसंद है, हम तो पूरा सफाचट कर जाएंगे। और वो चाटने लगी। पहले उसने थोड़ा सा जीभ निकाल कर चाटा। फिर बोली,” ह्हम्म, ये तो बहुत मीठा है।” और जोर से ठहाका मारते हुए हंसी। फिर जय की ओर देख पूरा लण्ड अपने जीभ से चाटने लगी, और साफ कर दिया। फिर कविता जय की ओर देखकर बोली,” ह्हम्म, हम बहुत गंदी लड़की हैं। बहुत….. बहुत …… गंदी।” फिर मुस्कुराई और लण्ड चूसने लगी। जय को ये देख बड़ा अच्छा लगा कि कविता को बिल्कुल घिन्न नहीं आया, ये जानते हुए भी की वो क्या था। जय फिर से ममता की अधखुली गाँड़ के छेद में लण्ड घुसा दिया, और थप्पड़ मारते हुए ममता की गाँड़ चोदने लगा। कविता ममता के चूतड़ों को चाट रही थी।
जय के लण्ड का दबाव बहुत था, इस बार ममता को अपने पेट मे एहसास हुआ कि प्रेशर बन रहा था। जय की ताबड़तोड़ चुदाई से उसका मलाशय कब भर गया, पता ही नहीं चला। उसकी गाँड़ में जय का लण्ड कहर बरपा रहा था। जय ने ममता की परवाह नहीं, किया और उसकी आहों को दरकिनार करते हुए पेलम पेलाई चालू रखा। हालात ये हो गयी कि ममता की गाँड़ के छेद के चारों तरफ हल्का पीला पीला पदार्थ लग गया। लण्ड बार बार अंदर बाहर होने की वजह से गाँड़ का छेद पूरी तरह खुल गया था, बिल्कुल किसी सांप की बिल की तरह। जय का लण्ड सांप ही तो था, और ममता की गाँड़ बिल। जय ने फिर लण्ड निकाल ममता, को चूसने का इशारा किया।
ममता ने लण्ड की ओर देखा पर नशे की हालत में लण्ड को सीधे मुंह में ले ली और अपने गाँड़ का स्वाद चख ली। जय ने लण्ड को ममता के गालों पर भी रगड़ दिया। ममता के पूरे चेहरे पर गाँड़ का रस लग गया। वो बेचारी तो उसकी हरकतों से हंस रही थी। कविता भी पास में आ गयी और जय के हाथ से लण्ड निकाल खुद चूसने लगी। जय ने फिर कविता से कहा,” अरे हमारी रंडी दीदी, तुमको चुदवाने के लिए निमंत्रण देंगे क्या? चलो कुतिया बन जाओ और अपनी गाँड़ हमारे लण्ड के लिए परोस दो। ही ही
कविता बिना देर किए, कुत्ती बन गयी और, बोली,” अपनी दीदी को रंडियों की तरह चोदो, हमारे राजा भैया। हमारी गाँड़, तुम्हारे लण्ड के स्वागत के लिए बेताब है। तुम गाँड़ बहुत अच्छे से चोदते हो।जय उसके गाँड़ पर लण्ड सेट करके बोला,” और तुम बहुत अच्छे से गाँड़ मरवाती हो, गांडू दीदी।”
जय का लण्ड, कविता की फैली, गाँड़ में पहले की अपेक्षा आराम से घुस गया। जय उसके चूतड़ों को पकड़ चोद रहा था। तभी कविता बोली,” भैया तुम कुछ भूल रहे हो, अपनी घोड़ी की लगाम तो पकड़ो।” जय ने उसके बाल पकड़ लिए, कविता के बाल खिंच गए, उसके चेहरे पर दर्द की हल्की शिकन आ गयी। पर बियर की मस्ती में वो सब जाती रही। जय ने उसको इसी तरह आधे घंटे तक चोदा, कविता की गाँड़ की भी वही हालात हुई, जो ममता की हुई थी। उसके पेट में भी प्रेशर से मलाशय भर गया और जय का लण्ड उसमें तर हो गया। जय ने लण्ड निकाल फिर ममता को चटवाया। दोनों ने ऐसे एक दूसरे की गाँड़ का स्वाद चखा। इसी तरह उन दोनों को बारी बारी वो पूरी रात चोदता रहा। और वो दोनों भी, सुध बुध खोकर चुदवाती रही। आखिर उसके अलावे उनके पास कोई चारा नहीं था। पूरी रात हुई इस गंदी और घमासान चुदाई से तीनों आखिर थक चुके थे, जय ने उन दोनों को उनका हक दिया जो उसके आंड़ से उबलकर लण्ड के माध्यम से उनके पेट में समा गया। सुबह के चार बजे तक, उन दोनों की इतनी पेलाई हुई कि कब दोनों नंग धरंग हो सो गई, उनको पता ही नहीं चला। दोनों के बाल पूरी तरह अस्त व्यस्त थे, और चेहरे से दोनों सस्ती कोठे की रंडियां लग रही थी।
वो दोनों जय के दोनों जांघों पर सर रखे सोई थी। जय का लण्ड उनके चेहरे के करीब ही था, कविता के होंठों से थूक के धागे जय के लण्ड से चिपके हुए थे। उनके चेहरे पर कहीं कहीं मूठ सूख चुका था, और फेविकॉल की तरह कड़क हो चुका था। जय भी सोया हुआ था।
इस तरह खूब चुदाई के बीच तीन दिन बाद उनके गोवा जाने का समय, आ गया था। वो तीनों काफी उत्साहित थे। तभी, उनके यहां एक फोन आया।जय कमरे से बाहर आया, तो देखा ममता फोन पर बात कर चुकी थी और ठीक है, बोलकर फोन काट दी। जय ने उसकी ओर देखा, और पूछा,” कौन था?”
ममता- तेरी मौसी बोलें या साली। वो लोग भी हमारे साथ गोआ चलेंगे और वहीं हनीमून मनाएंगे।
कविता- अच्छा, लेकिन ऐसा हुआ तो हमलोग एन्जॉय कैसे करेंगे। उनलोगों को कोई और जगह जाना चाहिए था। वो लोग भी खुलके मज़ा कर पाते।
जय- कोई बात नहीं, तुम दोनों तो हमारे साथ रहोगी और दिन में साथ घूमेंगे रात को तो हम तीनों अलग और वो अलग। कोई टेंशन नहीं है।
कविता- हां ये भी ठीक है। चलो मौसी भी साथ में रहेगी, तो इतना बुरा भी नहीं है।
फिर सब तैयार हुए। थोड़ी देर बाद घर के बाहर हॉर्न सुनाई दी। सब बाहर आये सामान के साथ, तो देखा सत्य और माया कैब में थे। सब सामान रख तीनों कार में सवार हुए। बैठने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी। पर सब किसी तरह एयरपोर्ट पहुँच गए। फिर अगले तीन घंटों में सब पणजी एयरपोर्ट पर थे। जहां उनके रिसोर्ट की गाड़ी उनका इंतजार कर रही थी। सब उसमें सवार होकर रिसोर्ट पहुंचे।
तीनों औरतें आपस में हंसी मजाक कर रही थी। उनके खिलखिलाने की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी। जय और सत्य उनको देख सुकून महसूस कर रहे थे। जय ने ममता को होटल के रजिस्टर में बहन लिखा। और कविता को अपनी बीवी बताया। सत्य और माया तो खुद को पति पत्नी ही बताया। सबने निर्णय लिया कि पहले नहाया जाय और फिर इकट्ठे लंच करेंगे। सब अपने अपने कमरों में चल दिये। सत्य और माया दोनों एक साथ बाथरूम में घुस गए। पलभर के अंदर माया और सत्य नग्न होकर बाथ टब में घुस गए। माया सत्य के ऊपर लेटी थी। दोनों एक दूसरे में खोए हुए थे। माया के तन बदन पर सत्य के हाथ रेंग रहे थे, और उसकी छाती पर माया उंगलियों से जलेबियाँ बना रही थी।
माया- सत्य, हम कोई बुरी औरत तो नहीं है। कल तक तुम्हारा हमारा भाई बहन का रिश्ता था, पर अब दोनों प्रेमी प्रेमिका हो चुके हैं। क्या ये सही है?
सत्य- तुम्हारा दिल क्या कहता है? क्या हमारे प्यार में तुमको कोई खोट नज़र आता है दीदी? क्या पिछले कुछ दिनों से तुम्हारे हमारे बीच जो रिश्ता उभरा है, वो एक धोखा या छलावा है? क्या प्रेमी प्रेमिका का रिश्ता पवित्र नहीं? तुम्हारे मन मंदिर में ना जाने किसकी तस्वीर लगी है, पर हमारे अंदर शुरू से तुम्हारी प्रतिमा रखी है। अपने दिल से पूछो दीदी, क्या तुम पहले खुश थी, या अब हो? इस पल को महसूस करो, इसमें तुम्हारे और हमारे सिवा बस हमारा प्यार है। और तुम्हारी ये बढ़ती दिल की धड़कन हमारे प्यार की दस्तक है। दरवाज़े खोल दो, देखो कौन आया है, दिल में। झांको अपने मन में देखो कौन है। एक बार देखो अगर हम दिखें तो समझना तुम्हारा प्यार हमारे लिए है।
माया ने आंखें बंद की, फिर थोड़ी देर बाद मुस्कुराते हुए, आंखें खोली। वो भले ही मुस्कुराई पर आंखों में आंसू छलक उठे थे।
सत्य- कोई दिखा??
माया सर हिलाके बोली,” ह्हम्म”।
सत्य- कौन??
माया मुस्कुराई और उसके होंठों पर अपने होंठ जमा दिए। दोनों का चुम्बन बेहद गहरा और लंबा था। फिर बाथरूम के अंदर माया की आँहें जोर पकड़ने लगी।
करीब एक घंटे बाद सब लंच पर मिले। कविता ने टॉप और डेनिम शॉर्ट्स पहना हुआ था। जबकि माया और ममता साड़ी में थी। तीनों मस्त लग रही थी। जय और सत्य बस अपनी किस्मत पर खुश थे। सबने खाना खाया और उस दिन कहीं बाहर का ट्रिप नहीं था, तो सब वापिस कमरों में चले गए। कमरे में आकर सब सो गए, क्योंकि रात में सब बहुत व्यस्त होने वाले थे।
एक ओर जहां माया और सत्य एक दूसरे की बांहों में सोए थे, वहीं दूसरी ओर ममता और कविता जय को अपने बीच लेकर सोईं हुई थी। शाम के तकरीबन सात बजे उनकी नींद खुली। अब सब फ्रेश हुए और आपस में बातें करने लगे। ममता बाथरूम में थी। जय और कविता बाहर कॉफ़ी पी रहे थे। कविता उसे देख बोली,” जय तुमको कॉफ़ी अच्छी लग रही है?
जय- हां, क्यों अच्छी तो है??
कविता- तुम चाहो तो और अच्छी बन सकती है??
जय- कैसे??
कविता उसके सामने आ गयी और हंसते हुए, अपनी टॉप उतार दी और अपनी नंगी चुच्चियाँ दिखाते हुए बोली,” अपनी दीदी की चुच्चियों की चुस्कियां लोगे तो और मज़ा आएगा।”
जय ने उसके शॉर्ट्स पैंटी के साथ जांघों तक कर दिया और बोला,” कॉफी के साथ, दीदी के रसीली बुर का नमकीन पानी मिलेगा तो और मज़ा आएगा।” और बुर को उंगलियों से टटोलकर, उसके बुर का पानी चख लिया। कविता तो यही चाहती थी, वो तो बेशर्मों की तरह खुलकर चुदवाने आई थी। उसने खुदको पूरा नंगा कर लिया, फिर जय को अपना बुर फैलाकर दिखाते हुए बोली,” बहन की बुर हाज़िर है, अपने चोदू भाई के लिए। यहीं चूसोगे, की हमको उठाके बिस्तर तक ले जाओगे।” जय ने कविता की ओर देखा, कविता की मांग में उसका सिंदूर था, बाल खुले हुए थे और उसके कमर तक लहरा रहे थे। आंखों में चुदने की प्यास, कांपते होंठ उसके छलकते जाम की तरह होंठों का सहारा ढूंढ रहे थे। गले में चुच्ची की गलियों में लटकता चमकता मंगलसूत्र। सुहागन होकर उसका ये रूप जय को पागल कर गया। उसने कविता को अपनी गोद में उठाया, कविता ने उसके चेहरे को पकड़ चूम लिया। जय के हाथ कविता के चूतड़ों पर टिके थे। जय ने बिस्तर पर कविता को पटक दिया और कविता मचलकर उसके गले में बांहे डाले थी। दोनों इस स्थिति में एक दूसरे को देख रहे थे। तभी ममता ने दरवाजा खोला, उसने सामने उन दोनों को देखा, तो देखती रह गयी। दोनों युवा नवविवाहित युगल को देख उसको सुकून मिला। आखिर हनीमून युवा लोगों के लिए है। उसने देखा, कविता बेहद खुश थी। और हो भी क्यों ना, उसके जीवन में शादी का पहला अनुभव था।अब तक तो, वो भी अधेड़ होकर, उनके साथ, खूब मज़े कर रही थी। पर उसे लगा कि ये वक़्त उन दोनों का है। उसने दरवाजा वापिस बंद कर दिया। उसने मन ही मन सोचा, कविता कितनी महान है, अपने भाई के लिए पहले शादी नहीं की, फिर जब शादी कर ली तो अपना सुहाग भी बांट लिया। यहां तक कि सुहागरात की सेज पर, जहां हर लड़की, अकेले ही पति के साथ विवाहित जीवन की पहली रात, गुजारती है, उसपर भी ममता अपनी बेटी के साथ थी। वो तो ये सब पहले भी कर चुकी थी, पर कविता को ये मौका, कभी नहीं मिला, की वो अकेले,जय के साथ वक़्त गुजारे। शादी को पूरे 15 दिन हो चुके थे। ममता की आंखों में आंसू आ गए, उसके मुंह से बस इतना निकला,” हमरी बच्ची…….जुग जुग जियो।”
उधर, माया अपना साया उठाके, सत्य से बुर के बाल साफ करवा रही थी। सत्य, उसकी झांठों को बिल्कुल साफ कर दिया। माया की बुर सालों बाद झांठों कि कैद से आज़ाद हुई थी।
सत्य- अब तुमको बिकिनी पहनना चाहिए। अब तुम्हारी बुर पर बालों का गुच्छेदार पहरा नहीं है।
माया लजाते हुए बोली,” हम बिकिनी पहनेंगे। सत्य तुम क्या बोल रहे हो?
सत्य- सच कह रहे हैं, ये देखो तुम्हारे लिए लाए हैं। उसने अलमारी से निकाल दिखाया। पीले रंग की, बेहद छोटी बिकिनी थी। ” कल तुमको समुद्र किनारे, इसीमें चलना है।”
माया उसको देख बोली,” ये तो बहुत छोटी है, इसमें तो सब दिख जाएगा। गाँड़ तो पूरा नंगा ही रहेगा, और चुच्ची का निप्पल ही किसी तरह ढकेगा। और बुर तो, बड़ी मुश्किल से ढकेगा। इससे अच्छा तो हम नंगी होकर चले जायेंगे।”
सत्य- तो वैसे ही चलो, क्या दिक्कत है।
माया उसके सीने पर हाथ मारते हुए बोली,” क्या बोलते हो भैया? अपनी दीदी को गोआ में नंगे घुमाओगे।”
सत्य- अरे दीदी, यहां आएं हैं तो लहँगा चोली, साड़ी साया सब छोड़ो। जैसा देश वैसा भेष। यहां हर दूसरी लड़की, ऐसे ही बीच पर घूमती है। सब अपने में मस्त रहते हैं। कोई तुम पर ध्यान भी नहीं देगा, सिवाय हमारे।
माया- अच्छा, ज़रा देखे तो, कैसे ध्यान दोगे।
और सत्य माया के साये को उठा उसकी जांघों के बीच बुर को जीभ से चाटने लगा। माया सिसकारियां मारने लगी। दूसरी ओर जय, कविता की बुर चुसाई, करते हुए उठा, जहां उसकी सांसें उखड़ने लगी थी। कविता की गुलाबी बुर जय के थूक, लार से भीग चुकी थी। कविता अपने भाई को देख बोली,” हमारे पास आओ, जय। जय उसके पास गया तो कविता ने उसका पैंट खोल, उसका लौड़ा, बाहर निकाला और उसपर अपने थूक का लौंदा गिराया। फिर हाथों से मिलाई, और लण्ड के फूले सुपाड़े को पुच पुच कर चूमने लगी। फिर जय की ओर देख, बोली,” भाई, ये मस्त लौड़ा, जिस लड़की को मिलता वो, खुश रहती। हम खुशनसीब हैं, की ये हमारे नसीब आया है।” ये बोल वो लण्ड चूसने लगी। जय की आंखें उसके लण्ड पर महसूस होते, कविता की मुंह की गर्मी से अनायास बंद हो गयी। कविता उसके सुपाड़े, के आगे और निचले हिस्से पर अपनी जीभ रगड़ती हुई, लण्ड को चूसने में व्यस्त थी। जय कविता के खुले, बाल को सहला रहा था। कविता उसकी आंड़ भी सहला रही थी। जय अब धीरे धीरे कविता के मुंह में धक्के मारने लगा। कविता, मुंह थोड़ा और फैला, उसका स्वागत करने लगी। इस क्रम में उसके मुंह से लार भी धागों की तरह होंठों से लटकने लगी।
बिस्तर गीला हो रहा था। पर इससे किसको फर्क पड़ता था। जय के धक्के, बढ़ते ही जा रहे थे। कविता की आंखों में अब पानी आना शुरू हो चुका था। जय का लण्ड फिसलकर उसके गालों से टकड़ा जाता था। ऐसा एक दो बार हुआ, तो दोनों हसने लगे। जय ने कविता के खुले मुंह में थूक दिया, जो सीधे उसके जीभ पर गिरा। कविता उसे पी गयी।
जय- यू आर माय व्होर, माय स्लट। ओह्ह दीदी, हमारे लण्ड को तुम्हारा, ये रंडीपना, एक दम मस्त कर देता है।
कविता बिल्कुल चुदास स्वर में बोली,” तुम्हारी रंडी ही तो है हम, बस तुम्हारी। हमको तुम्हारे, लिए ही तो भगवान ने बनाया है, तुम्हारी बहन बनाकर, तुम्हारे पास रखा और अब बहन से बीवी हो गए।”
जय- तो फिर, हमको भी तो पति बना लिया, भाई से। और पति को पत्नी का सबकुछ चाहिए।
कविता मचलते हुए,” ले लो, सब ले लो जो चाहिए। बीवी हैं, पति की हर इच्छा पूरा करेंगे।
जय- अरे, इस लण्ड को बुर चाहिए। अपना बुर में इसको जाने दो।”
कविता- बुर तो इसको लेने के लिए पहले से पागल है। घुसा दो।”
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