जय के पास वो जैसे ही पहुंची, जय ने उसके साड़ी का पल्लू उसके सीने से अलग कर दिया, और उसके कमर में हाथ डालने के बाद दूसरे हाथ से उसके बाल खींचकर चेहरा झुका लिया अपने सामने। उसके रसीले होंठ कांप रहे थे,बाल खींचे जाने की वजह से उसकी भंवे हल्की तनी हुई थी। पल्लू गिरने की वजह से उसके छोटे ब्लाउज में कैद अधनंगी चुच्चियाँ भी ऊपर नीचे हो रही थी। जय ने सबसे पहले उसके होंठों को चूमा, उसके रसभरे होंठों को अपने मुंह में ले लिया। अपनी जीभ से उसके होंठों को रगड़ रहा था। फिर उसके होंठों को जीभ के ही दबाव से खोलते हुए, अपनी जीभ उसके मुंह के अंदर घुसा दिया। कविता ने उसे सहर्ष स्वीकारते हुए, उसका साथ दिया।
इस तरह कभी होंठों की चुसाई तो जीभों का लड़ना चलता रहा, कोई 5 मिनट तक। फिर जय ने कविता के कंठ पर चूमा, फिर उसके सीने पर, और कविता के ब्रानुमा ब्लाउज, को उसके कंधों से अलग कर दिया। कविता के चुच्चियों के ऊपरी अर्धगोलाईयाँ पर उसने चुम्बनों की बौछार कर दी। ये करते हुए कविता की ब्लाउज के धागे, भी खुल चुके थे। कविता की चुच्चियाँ बाहर पके आम की तरह लटक रही थी। उसकी चुच्चियाँ इस वक़्त, बहुत सुंदर और आकर्षक लग रहे थे। वो पूरी गोलाई, उस पर हल्के भूरे रंग के चूचक बिल्कुल मटर के दाने की तरह तने हुए थे। वो जय को अपने चूचक चूसने के लिए उसके सर को पकड़के, चूचियों की तरफ धकेलना चाही। पर जय ने उसे झटक दिया और उसकी दोनों चुच्चियों पर थप्पड़ लगा दिया। फिर उनको पकड़के खूब कस कसके मसलने लगा। जय कविता के चेहरे पर दर्द और कामुकता के मिश्रण को देख खुश हो रहा था। कविता की आँहें पूरे कमरे में गूंज रही थी। जय ने फिर उसको दीवार की ओर मुंह करके दीवार से चिपका दिया, और कविता की साड़ी कमर तक उठा दिया। अंदर उसने कत्थई रंग की कच्छी पहनी हुई थी। जो उसकी गाँड़ की आकार पर बिल्कुल चिपकी हुई थी। जय घुटनो पर बैठ गया, और उसके कच्छी के ऊपर से ही गाँड़ को सूंघा। वो लंबी लंबी सांसे ले रहा था। कविता सहमी सी दीवार से चिपकी, लगातार आँहें भर रही थी। उसे जय का वहशीपन और मस्त कर रहा था। तभी उसने महसूस किया, की जैसे जय के दांत उसकी पैंटी के ऊपरी हिस्से को पकड़े हुए नीचे खींच रहे हैं। धीरे धीरे उसकी कच्छी उसके सुंदर सुडौल गाँड़ को नंगी करते हुए पीछे से पूरी उतर गई और चूतड़ों के निचली दरारों में फंस गई थी। जय ने कविता के चूतड़ों को पहले तो पकड़कर खूब भींचा। उसके भींचते ही, कविता के मुंह से लंबी आआहह निकलती थी।
कविता अपनी साड़ी उठाये खड़ी थी। तभी जय ने उसके नरम चूतड़ों के बीच अपना चेहरा घुसा दिया। कविता की गाँड़ की दरार के बीच जय के होंठ और उसका नाक फंस गया था। कविता उसकी गर्म सांसें अपने चूतड़ों की दरारों से टकराती महसूस कर रही थी। और फिर जिस तरह हवा के चलने के बाद बारिश धरती को गीला करती है, ठीक उसी तरह जय के मुंह की लार उसके गाँड़ के अंदरूनी हिस्सों पर बरसने लगी। उन अंदरूनी हिस्सों पर जय की जीभ जैसे कबड्डी खेल रही थी। कभी ऊपर जाती तो कभी नीचे। और फिर उसकी भूरी गाँड़ की छेद पर जीभ से भंवर बनाने लगता। कविता के गाँड़ की छेद पर अब तक इतना थूक जमा हो गया था, की जय की उंगली अब अंदर प्रवेश कर सकती थी। और अगले ही पल उसे कुछ प्रवेश करता महसूस हुआ। जय ने अब तक उसकी गाँड़ को जी भरकर चूस लिया था। कविता ने महसूस किया कि वो उंगली नहीं है, उसने पीछे मुड़कर देखा तो वो एक एनल बट प्लग था, जो कोई 5 इंच लंबा रहा होगा। अब तक वो आधा घुस चुका था, और देखते ही देखते जय ने पूरा उसकी गाँड़ में घुसा दिया। फिर धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगा। बट प्लग जब बाहर आता तो गाँड़ की छेद बहुत चौड़ी हो जाती थी, बिल्कुल उसकी चौड़ाई के बराबर। फिर अंदर घुसते ही, गाँड़ की छेद वापिस अपनी स्थिति में आ जाती थी क्योंकि नीचे वो बेहद पतली थी। उसका पूरा आकार किसी वाइन ग्लास की तरह था। कुछ देर इस तरह करने के बाद जय ने कविता की गाँड़ में उसे अच्छी तरह घुसा दिया।
कविता अब तक बहुत उत्तेजित हो चुकी थी, उसकी बुर से लगातार पानी चू रहा था। उसकी कच्छी आगे की ओर अभी भी बुर से चिपकी हुई थी, जो कि पूरी तरह गीली हो चुकी थी। वो अपने बुर को छूना चाहती थी, और जैसे ही उसने ऐसा करना चाहा तो जय ने उसके हाथों को पकड़ लिया, और अपनी तरफ घुमा लिया। कविता की आंखों में वासना तैर रही थी। जय ने कविता की पैंटी आगे से भी उताड़ दी और अब वो उसकी घुटनो के ठीक ऊपर जांघों में फंसी थी। कविता की बुर से उसके रस की चिरपरिचित नमकीन पानी की महक आ रही थी। बुर से इतना पानी चू चुका था, की बुर के आसपास जांघों के जुड़ाव भी भीग चुके थे। कविता की बुर के ठीक ऊपर हल्की झांठे थी, जो कि जय की पसंद के हिसाब से थी, बाकी हर जगह चिकनी थी। बुर की लकीर के बीच गुलाब की पंखुड़ियों के समान बुर की पत्तियां झलक रही थी।बुर इस वक़्त एक ताले सी लग रही थी, जिसकी चाभी जय के पास थी। जय उस हसीन नज़ारे को देख, मन में बोला,” ये नज़ारा इतना खूबसूरत है, की चाहे जितनी बार देखो, हर बार नया लगता है। इससे कभी मन ही नहीं भरता।”
तभी कविता बोली,” ऐसे क्या देख रहे हो ?
जय ने जवाब नहीं दिया और, बुर की लकीर के बीच अपनी मझली उंगली डालकर ऊपर से नीचे तक रगड़ने लगा। कविता को अपने बुर पर हुए एहसास से ऐसा लगा जैसे किसीने उसे पहली बार छेड़ा हो। उसके होंठ अनायास ही दांतों तले दब गए। वो अपने साड़ी को उठाये ही खड़ी थी, की तभी जय ने साड़ी के पल्लू को पकड़कर खींचने लगा।
कविता ने कुछ नहीं कहा। जय उसकी साड़ी उतारने लगा। कविता साड़ी खीचे जाने की वजह से अपनी ही जगह पर गोल गोल घूम रही थी। दो से तीन बार में साड़ी पूरी खुल गयी और अब कविता सिर्फ अपने साये (पेटीकोट) और पैंटी में थी। जय ने उसकी साड़ी को कोने में फेंक दिया। कविता उसकी बांहों में आने के लिए उसके करीब आई और बोली,” जय हम बहुत तड़प रहे हैं, प्लीज अब हमको बिस्तर पर ले चलो।”, पर जय ने उसको गले नहीं लगाया।
जय- क्यों कविता दीदी?
कविता- अरे एक पत्नी बिस्तर पर अपने पति के साथ क्या करवाती है। चुदवाती है और क्या?
ममता अब तक चुप चाप बैठी सब देख रही थी। जय ने उसकी ओर देखा और फिर उसको देखकर बोला,” देखो माँ, अपनी बेटी का रंडीपन कैसे अपने भाई से चुदवाने के लिए तड़प रही है। आज रात तुम दोनों को इसी तरह तड़पाएंगे जैसे हम दोपहर से तड़प रहे हैं।
कविता- जय हमसे बर्दाश्त नहीं होगा।
जय- दीदी, देखो ना सामने तुम्हारी लेस्बियन माँ है। तुम दोनों पहले भी एक साथ शारीरिक सुख भोग चुकी है। और आज तुम दोनों वही सब हमारे सामने करोगी। हम अपनी माँ बहन को ऐसे ही आज पहले देखेंगे, फिर चोदेंगे। कहते हैं कि माँ बेटी सहेलियां बन जाती हैं, पर तुम दोनों तो एक कदम आगे जा चुकी है। जाओ कविता दीदी पहले माँ के पास जाओ और उसे नंगी कर दो। एक मिनट रुको, माँ तुम यहाँ आओ और हमको बिस्तर पर बैठकर मज़े लेने दो।
ममता ने जब ये सुना तो ना जाने क्यों आज उसे हल्की शर्म आने लगी। अपनी ही बेटी के साथ अपने बेटे के सामने शारीरिक संबंध बनाने के विचार से।
ममता अब तक सारी हरक़तें देख गर्म हो चुकी थी। उसकी बुर से पानी रिसते हुए बाहर टपक रहा था। जय की बात सुन वो बिस्तर से उठकर धीरे धीरे छम छम की आवाज़ करते हुए अपनी अधनंगी बेटी कविता के पास गई। इससे पहले की ममता कुछ करती, कविता ने उसे अपनी बांहों में खींच लिया और उसकी साड़ी का पल्लू लुढ़क कर जमीन पर गिर गया। ममता की चुच्चियाँ काफी बड़ी और तनी हुई महसूस हो रही थी। कविता ने उसकी चुच्चियाँ ब्लाउज के ऊपर से ही हल्के से सहलाया। ममता की भारी चुच्चियाँ उसके हथेली में समा नहीं रही थी। ब्लाउज के उपर से उभरे चूचक ममता की कामुकता की गवाही दे रहे थे।
कविता ने ममता के चुच्चियों के ऊपरी हिस्से जहां दोनों चुच्चियों की घाटी बनती है, वहां पर चूमा। ममता की आंखें इस एहसास से अनायास बंद हो गयी। कविता उसकी चुच्चियाँ सहलाते हुए उसके गले, सीने, चुच्चियों की ऊपरी हिस्से की गोलाइयों पर चुम्बन की लड़ी लगा दी। ममता की लंबी साँसों से उसकी चुच्चियाँ बहुत तेज़ी से ऊपर नीचे हो रही थी। उसकी पेट कमर सब नंगे थे। और कब कविता के हाथों ने ममता की साड़ी धीरे धीरे उतारने लगे ये किसीको पता नहीं चला। उसकी साड़ी जो साये में फंसी थी, वो धीरे धीरे उतर गई। और ममता का बदन साया और ब्लाउज में कैद था। वैसे तो जय ये सब पहले देख चुका था, पर ममता और कविता को एक दूसरे में उलझा देखना उसके लिए अभूतपूर्व था। ममता की साड़ी फर्श पर उतरकर बिखरी थी।उसका साया उसकी गाँड़ की दरार में फंसा था। आखिर में कविता ने उसकी ब्लाउज के धागे खोल उसके कंधों से अलग किया और उन कंधों पर चुम्मा दिया। ब्लाउज से सेंट की खुशबू आ रही थी। कविता ब्लाउज को पूरी तरह निकाल दी।
कविता- माँ अपने हाथ ऊपर करो।” और पकड़कर ऊपर कर दिया। ममता की साफ सुथरी कांख उसके सामने थी। कांख का रंग शरीर के अन्य हिस्सों से साँवला था। बालों के साफ होने से गहरी साँवली चमरी के ऊपर एकदम महीन बिंदियों की तरह उभरी थी, जहां से बाल उगते हैं। कविता ने उसे बड़े गौर से देखा और अनायास ही उसकी जीभ उस जगह को चाटने लगी। ममता अपने दोनों हाथ उठाये थी, पर गुदगुदी से उसके हाथ झुक गए।जय- अपने हाथ उठाकर रखो ममता और कविता दीदी को चाटने दो।”
ममता – बेटा सैयांजी गुदगुदी हो रही है और शर्म भी आ रही है। तुम्हारे सामने हम अपनी बेटी के साथ ये कर रहे हैं।
जय- अच्छा, हमारे सामने कर रही हो, तो गलत लगता है अकेले में दोनों करती हो तो ठीक है, हहम्ममम्म??
ममता- बेटा सैयांजी, हाय क्या कहते हो?
तभी कविता ने ममता के पेट को चूमते हुए, नीचे घुटनो पर बैठ गयी। वो ममता के ढोढ़ी, को उंगलियों से छेड़ते हुए, चूम रही थी।ममता की कमर पर सिहरन उठती और पेट गुदगुदी के साथ अंदर बाहर हो रहा था। जय को ये देख बड़ा मजा आ रहा था। कविता उसकी ढोढ़ी के चारो ओर जीभ से गोलाई बना रही थी, और अपनी लार से पेट के हर हिस्से को भिगो रही थी।
ममता की गर्दन पीछे की ओर झुकी थी और सर अनायास ही छत की ओर था। उसकी महीन सीत्कारें कमरे की दीवारों से टकड़ा कर मधुर संगीत में बदल रही थी। कविता ने ममता के साये की डोरी को पकड़कर खींचना चाहा कि तभी, जय बोला,” नहीं, साया मत उतारो, साया वैसे ही बंधे रहने दो। माँ की पैंटी उतारो और वो हमको देना। “
कविता ने वैसे ही किया ममता के साये में हाथ घुसाया, और ममता की ओर देखते हुए, उसकी पैंटी के दोनों छोड़ को पकड़ कच्छी को उसके एड़ी तक ले आया। कविता- माँ, पैर उठाओ।”
ममता ने एक एक करके पैर उठाये और कविता ने उसकी गुलाबी पैंटी जो कि बुर के पानी से गीली थी, उसे जय को देने के लिए बढ़ी।
जय- कविता दीदी, चारों पैरों पर आयो, कुत्ती बनके। अपने मुंह में पैंटी रखो। हमारी कुत्ती दीदी हो।
कविता वैसे ही चलते हुए आई, और जय के पास आई और मुंह मे रखी पैंटी, उसके हाथों में दे दी। वो अभी भी चौपाया थी, जय उसके बाल सहलाते हुए पैंटी सूंघ रहा था। कविता एक कामुक कुतिया की तरह, बुर चुदवाने के लिए बेकरार थी। उधर ममता भी, वैसे ही मूरत की तरह खड़ी थी। वो जय को अपनी अभी उतारी पैंटी सूंघते, देख रही थी। शर्म से उसकी नज़रें झुक गयी। जय ने फिर ममता से कहा,” ममता अब तुम भी कुतिया बन जाओ और चौपाया होकर इधर आओ।”
ममता- क्या, जय हमसे कविता के सामने ये सब ना करवाओ?
जय- अरे हमारी रंडी माँ, जब तुम इसके साथ और हमारे साथ सब के चुकी हो, फिर क्यों ऐसे बोल रही हो?
ममता- वो छोड़ो ना, पर हम दोनों माँ बेटी हैं। हम इससे बड़े हैं, अगर इसके सामने ये सब करेंगे, तो अजीब लगेगा।
जय- कुछ नहीं सुनेंगे हम, तुम अपने पति का कहना मानोगी की नहीं?
ममता- हाये, हमारे बेटा बालम अपनी माँ को इतना भी मत गिराओ।
जय जोर से- ममता, इधर आओ।” उसे आवाज़ में गरज के साथ शाशनात्मक आदेश था, जिसे ममता नजरअंदाज नहीं कर सकती थी। वो वहीं घुटनो पर बैठ गयी और दोनों हाथ ज़मीन पर रखे।जय- अपना साया पीछे से कमर तक उठाओ और फिर चलो, हमारी माँ सजनी।” ममता ने हाथ पीछे कर साया अपनी कमर पर रखा, जिससे उसके पैर, जाँघे, बुर, चूतड़ सब नंगे हो गए। पर वो जय को नहीं दिख रहे थे। उसकी चुच्ची सामने से ब्रा में अधनंगी थी। जो कि किसीका लण्ड खड़ा करने के लिए, काफी थी। ममता को पीछे काफी खुला खुला महसूस हो रहा था। कमरे की ठंडी हवा उसके बुर से टकरा रही थी। गाँड़ पर सिहरन की वजह से दाने दाने से उग गए थे। ममता अब धीरे धीरे जय के पास आ रही थी, और जय उसके सामने उसकी पैंटी लगातार सूंघ रहा था।
कविता उसके पैर चूम रही थी। ममता धीरे धीरे मटकते हुए उसके पास पहुंची। कविता और ममता एक दूसरे के सामने थी। जय ने हुक्म किया,” चलो, दोनों एक दूसरे को किस करो”। उसके बोलते ही दोनों किस करने लगी। वो दोनों कुतिया बने हुए एक दूसरे को किस कर रही थी। दोनों के होंठ और जीभ जैसे आपस में कुश्ती लड़ रहे थे। जय को ये देख बड़ा मजा आ रहा था। उसने इसी क्रम में ममता की ब्रा की हुक खोल दी। उसकी ब्रा छटककर उसके चुच्चियों को नंगी कर, कोहनियों तक आ लटकी। ममता चौंक उठी। फिर अपनी लटकती चुच्चियों का नंगापन महसूस कर उसने ब्रा को उतार दिया।
तीनों मुस्कुरा रहे थे। कविता फिर धीरे से ममता के पीछे गयी और उसके नंगे चूतड़ों पर अपना चेहरा रगड़ने लगी। ममता की गाँड़ के दरार के बीच अपनी नाक लगा सूंघ रही थी। वहां गीली बुर की खुश्बू आ रही थी। कविता की जुबान काबू नहीं रख पाए और ममता की भीगी बुर पर को चाटने लगी। ममता सिहर उठी। कविता के जुबान के एहसास से वो कामोन्माद में बहने लगी। गाँड़ के छेद पर टकराती उसकी सांसें, और बुर पर गीली जीभ का अनमोल एहसास से उसकी आंखें अनायास बंद हो गयी। इस वक़्त ममता का चेहरा बेहद उत्तेजना वर्धक लग रहा था। वो खुद भी उत्तेजना में आ रही थी।
जय ने दोनों को बिस्तर पर आने को कहा। दोनों सिर्फ साये में बिस्तर पर आ गयी। एक तरफ खेली खिलाई पकी बुर और दूसरी तरफ कम चुदी कमसिन कच्ची बुर। जय की तो लॉटरी लगी थी। जय उन दोनों को बिस्तर पर ऐसे महसूस किया जैसे दो शेरनी हो। दोनों एक दूसरे पर टूटी थी। एक दूसरे की चुच्ची लगातार सहला और दबा रही थी। दोनों की सांसें एक दूसरे से टकड़ा रही थी।
कविता- हहम्ममम्म, आआहह उमम्म ऊई । फिर कविता ने ममता को लिटा दिया और उसको किस करने लगी। ममता भी उसे मना नहीं कर रही थी। तभी उसकी नज़र जय से टकराई और वो झेंप गयी।
जय- ममता क्यों शर्मा रही हो? अपने पति के सामने अपनी सौतन के साथ सेक्स कर रही हो इसलिए?
ममता कुछ नहीं बोली।
जय- आज तुम दोनों के लिए सरप्राइज है, ये देखो। जय ने उन दोनों को एक बट प्लग दिखाया।
ममता- ये क्या है?
कविता- उम्म्म्म्म ममता के चुच्चियों को चूस रही थी, वो चूसना छोड़कर बोली,” आआहहहह …. वाओ ये तो बट प्लग है, इसको गाँड़ में घुसाके रखते हैं। चुदाई के दौरान और ऐसे भी। बहुत सी महिलाएं इसको घुसाना बहुत पसंद करती हैं। नार्मल काम करते हुए, बाजार घूमते हुए, सब घुसाके करती हैं।
जय- समझ गयी माँ, तुम दोनों भी अबसे इसको इस्तेमाल करोगी। तुम दोनों की गाँड़ में अबसे हमेशा ये घुसा रहेगा। सिर्फ हगते समय और गाँड़ मरवाने के टाइम पर ये निकलेगा।
ममता- हाय राम, मतलब बाहर भी जाएंगे तब भी लगाके जाएंगे।mom son story
कविता- ये तो हमको घर मे भी हमेशा लगाके रखना होगा। बहुत ही गंदी सोचवाला बेटा है तुम्हारा।
जय- ये भी एक जेवर ही है तुमलोगों के लिए। चलो दोनों अपनी गाँड़ हमारे तरफ घुमाओ और आगे करो। कविता दीदी पहले तुम आओ।
कविता अपनी गाँड़ उठाके उसकी तरफ कर दी। अपने चूतड़ों को अपने हाथों से अलग किया और अपनी भूरी सिंकुड़ी छेद जय के सुपुर्द कर दी। जय ने ढेर सारा थूक उसकी छेद पर लगाया जिससे वो पूरी तरह गीला हो गया। फिर बट प्लग के निचले हिस्से को अपनी गाँड़ की छेद पर महसूस करने लगी।
जय उसको छेद पर नचा रहा था। कविता आनेवाले हमले के लिए तैयार थी, जिसे जय उसकी गाँड़ में घुसपैठ कराना चाहता था। अचानक जय ने दबाव बनाकर निचले हिस्से को घुसाना शुरू किया। कविता की गाँड़ के छेद जो आस पास की चमड़ी सिंकुड़ कर उस छेद में कहीं विलीन हो रहे थे, धीरे से फैलने लगे। वो छेद खुल गया। और वो अंदर घुस गया।कविता जैसे मचल उठी। ममता ये सब देख रही थी, उसकी आंखें खुली की खुली थी।
जय ने फिर कविता के चूतड़ों को चूमा और ममता को अपनी ओर गाँड़ घुमाने को कहा। ममता धीरे धीरे मुड़ रही थी। जय ने बट प्लग में लुब्रीकेंट लगाया और ममता के चूतड़ों से साया हटा दिया। ममता के पूरे बदन पर बस वो एक साया उसकी कमर से चिपका था। बाकी वो पूरी तरह नंगी थी। जय ने ममता के चूतड़ों को फैलाकर गाँड़ की छेद को सहलाने लगा। ममता गाँड़ के नन्हे से छेद पर उसकी हथेली का एहसास पाते ही,मदहोश होने लगी। जय ने वैसे ही गाँड़ की छेद को अपने होंठों में पकड़ लिया। और 2 मिनट तक चूसता रहा, फिर ढेर सारा थूक वहां डालकर गाँड़ में वो बट प्लग घुसा दिया।
अब दोनों के गाँड़ में बट प्लग लग चुका था। जय ने फिर दोनों को अपने करीब लाया। ममता और कविता दोनों को अबसे गाँड़ में भी एक गहना पहनना था। तभी जय ने ममता को बगल में सुलाकर उसकी आँखों में आंखें डालकर पूछा,” ममता क्यों तड़पाया जानेमन हमको? ममता उसके सर को अपने चुच्ची पर टिकाते हुए बोली,” तुमको तभी इसलिए तड़पाये थे, ताकि पूरी रात को तुम बेरोकटोक अपनी नई बीवियों के साथ खुलकर चोदम चोदी करो।”mom son story
जय ने ममता को खींचकर एक थप्पड़ मारा। फिर बोला,” साली आज रात देखो तुम मां बेटी को कैसे कैसे चोदेंगे। कविता के सामने तुमको बहुत बेइज़्ज़त कर करके चोदेंगे।” तभी कविता बोली,” जय यही तो हमलोग चाहते हैं, की हम दोनों का शिकार कर लो। आज की रात हम हिरणियां हैं और तुम शेर हो।”
जय- आज की रात बहुत लंबी होगी तुम दोनों के लिए।” जय ने कविता के चूतड़ पर थप्पड़ बजाते हुए कहा।
ममता- बेटा सैयांजी हमको मूत लगा हुआ है, हम मूत के आते हैं।जय- नहीं जब तक हमको खुश नहीं करती, तब तक तुम दोनों इस कमरे से निकलोगी नहीं। और जय ने ममता की बुर पर मुँह लगा दिया। जय के होंठ ममता की हल्की झाँटों से भरे बुर से चिपके थे। वो लपालप अपनी जीभ से ममता की सावँली बुर को किसी गंदी फर्श की तरह साफ कर रहा था।
ममता मचल उठी। एक तो बुर के दाने पर जीभ का एहसास आए दूसरी ओर गाँड़ में बट प्लग। ममता की बुर पानी का झरना बहा रही थी। उसकी छितराई हुई बुर जय के जीभ की गर्माहट पाकर माँ की तरह पिघल रही थी। उधर कविता अपनी बुर फैलाये ममता के मुंह के करीब बैठी थी। तभी ममता के मुंह के सामने कविता अपनी बुर ले गयी और उसके होंठों से बुर चिपका दिया। ममता बिना एक पल देरी कियर समझ गयी, और बुर को चाटने लगी। अब कविता की बुर ममता चाट रही थी और ममता की बुर जय। तभी जय ने अपना लण्ड कविता के मुंह के पास ले आया। तीनो त्रिभुज आकार में लेटे थे।
अब कविता जय के लण्ड को चूस रही थी। इस तरह तीनो एक दूसरे के यौनांगों से मुख मैथुन कर रहे थे। तीनों दुनिया से बेखबर अपने में ही लगे हुए थे। फिर जय ने थोड़ी देर बाद पोजीशन बदली और इस बार ममता जय के लण्ड को चूसने लगी और जय कविता के बुर को। उधार कविता ममता की बुर को चूसने लगी। कोई आधे घंटे तक तीनों ऐसे ही कर रहे थे। कुछ देर बाद तीनों अलग हुए। कविता ने जय को लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई। वो अपना बुर जय को दिखाते हुए बोली,” अपनी जवान बीवी की बुर को चूसोगे, बहुत रस है इसमें।
जय- अरे हमारी रानी, तुम्हारे बुर को निचोड़कर पी जाएंगे पहले पास तो आ। अपना साया उठा, रंडी की बच्ची।
कविता कामुक हंसी भरकर बोली,” रंडी की बच्ची रंडी ही तो होगी। देखो हमारी रंडी माँ को इसी बिस्तर पर अपनी बेटी के साथ सौतन का रिश्ता जोड़ ली है, वो भी अपने बेटे के लिए ही। हाँ, हम दोनों माँ बेटी रंडी ही तो है। इस घर की रंडी, तुम्हारी रंडी। अब अपनी रंडियों की जमकर ठुकाई करो जय।”
जय ने देख ममता भी मुस्कुरा रही थी। जय ने ममता और कविता को एक दूसरे पर लिटा दिया। दोनों का बुर चिपका हुआ था। जय दोनों के बुर को चूसने लगा। उधर वो दोनों आपस मे चूम रही थी।mom son story