Incest क्या…….ये गलत है?

जय ममता के मस्त चूतड़ों पर थपथपाते हुए उसके होंठों को चूम रहा था। ममता के खुले बाल, गोरा दपदपाता मुखड़ा, भवों के बीच लाल बिंदी, आंखों में काजल, पलकों पर हल्के गहरे रंग का ऑय शैडो, गालों पर रूज़, होंठों पर लाल लिपस्टिक, उसका मेक अप परफेक्ट था, जो आसानी से नही निकलने वाला था।जय उसके हुस्न के हर एक हिस्से को चूमना चाहता था। दूसरी तरफ कविता भी उतनी ही खूबसूरत लग रही थी। माथे पर भाई के नाम का सिंदूर, हाथों में उसके नाम की मेहन्दी, पूरा श्रृंगार जय के नाम का था। दोनों कपड़े का एक टुकड़ा भी बदन पर नहीं रखे थी। पर गहने और जेवर वैसे ही बंधे हुए थे। कानों में झुमका, माथे पर टीका, नाकों में नथिया, गले में मंगलसूत्र और हार, हाथों में खनकती चूड़ियां जो उनके मेहन्दी लगे हाथों को और खूबसूरत बना रही थी, उंगली की अंगूठियां वो बस खोली थी, ताकि लण्ड पकड़ने में हिलाने में कोई दिक्कत ना हो, कमर में कमरबन्द, पैरों में पायल और पैर की कोमल उंगलियों में बिछियां, जो रंगे हुए पाऊं को और खूबसूरत बना रही थी। सर से लेकर पाँव तक दोनों ही बहुत आकर्षक और कामुक लग रही थी। जहां, ममता की कमर चौड़ी थी, वहीं कविता की थोड़ी कम थी। ममता की जाँघे चर्बीदार और थुलथुली सी थी, कविता की जाँघे फिट थी। ममता के गाल और जबड़े के नीचे की चर्बी उम्र के साथ साथ थोड़ी बढ़ गयी थी, तो कविता की भी चर्बी थी, पर हल्की। कविता की गाँड़ जो सुडौल थी, वहीं ममता की गाँड़ बड़ी, भारी, और वसा से भरी हुई थी। हालांकि दोनों ने फिटनेस सेन्टर जॉइन तो किया था, पर 10 दिन में ममता में बदलाव आया तो था,पहले से वो काफी फिट थी, पर अभी भी वो भारी थी।mom son story
जय इन दोनों औरतों को अब तक तीन तीन बार झरवा चुका था। पर उसके लण्ड ने अब तक उनकी गाँड़ की खबर नहीं ली थी। कविता के चूतड़ पर लाल होंठों का टैटू और उस पर जय का नाम उसको और आकर्षक बना रहा था। जय ममता के होंठों को चूसते हुए, उसके खूबसूरत लाल लाल होंठों को थूक से भिगोते हुए, रह रहकर अपना लार उसके मुंह में दे रहा था। और ममता भी किसी पोर्न हीरोइन के जैसे जीभ निकाल निकालकर उसके थूक का भरपूर स्वाद लेकर घोंट रही थी। उसके चेहरे पर काम की ज्वाला साफ दिख रही थी। वो एक दम बेचैन हो उठी थी।
ममता- बेटा सैयांजी, अब आप क्या करेंगे हमारे साथ?
जय- तुम बताओ माँ, तुम क्या चाहती हो, तुम्हारा मन क्या चाहता है? तुम्हारे चेहरे पर इतने सुंदर कामुक भाव उभरे हैं, वो दरअसल क्या कहना चाहते हैं?
ममता उसकी आंखों में प्यासी नज़रों से देखते हुए बोल पड़ी,” तुम तो चेहरे के भाव पढ़ने में माहिर हो, पढ़ लो हमारी आंखों को। तुम तो हमारे मन का बात समझ जाते हो।
जय ममता के बालों को भींचते हुए बोला- हम तुमसे पहले भी बोले हैं, बिस्तर पर अपनी शर्म कपड़ों के साथ फेंक दिया करो। हम चाहते हैं कि तुम अपने मुंह से बोलो कि तुम क्या करना चाहती हो?
कविता- हां, जय माँ को हम बोले भी थे, कि तुम बिस्तर पर कोई मान मर्यादा नहीं चाहते, हमको बोलने में कोई हिचक नहीं है कि हम तुमसे अपनी गाँड़ चुदवायेंगे। माँ तुम भी सस्ती छिनाल बनो, ताकि आज हम दोनों जय के और करीब पहुंच जाएं।
ममता- सही बोलती हो तुम, कविता अब ऐसे ही होगा।” फिर जय की ओर देखकर बोली,” जय, अपनी माँ की गाँड़ चोदो, आज इसी सुहागरात को यादगार बनाओ। हमारे मन की प्यास बुझा दो।
जय- ये हुई ना बात माँ। कुतिया की तरह हाथों और पैरों से चौपाया हो जाओ। ममता तुरंत चौपाया हो गयी। जय उसके भारी चूतड़ पर थप्पड़ मारते हुए बोला,” अरे हमरी रंडी! अपना चूतड़ उठाओ। ममता मुस्कुराते हुए पीछे मुड़कर गाँड़ उठा ली और जय के नाक के पास ले गयी। जय ने कविता को इशारा किया और बोला,” कविता दीदी, इन पहाड़ जैसे चूतड़ों को अलग करो, और हमारी आंखों के सामने सूंदर नज़ारा पेश करो।”
कविता मुस्कुराते हुए बोली,” ये लीजिए अपनी माँ की गाँड़ का खूबसूरत नज़ारा देखिए।” और चूतड़ों को अपने हथेलियों से अलग कर दी। सामने जय के वो खूबसूरत नजारा था, जो मर्दों को शायद ही पहली रात में देखने को मिलता है। ममता के चूतड़ जैसे ही अलग हुए वैसे ही उसके सामने ममता के चूतड़ों के गहरे रंग के अंदरूनी हिस्से साफ साफ नजर आ रहे थे। ममता की गाँड़ की दरार जो कि ठीक उसके कमर के नीचे से शुरू हुई थी। बड़े ही खूबसूरत ढंग से कामुक प्रतीत होती थी। वो गली पूरे गाँड़ को दो खूबसूरत तरबूजों में बांटते हुए, उसकी बुर को पीछे से ढकते थे, जब वो अपनी वास्तविक स्थिति में होते थे। पर बुर से ठीक पहले वो खज़ाना था, जिसे जय लूटना चाहता था। ऊपर से आती, चूतड़ की अंदरूनी दीवारें थोड़ी ज़्यादा गहरी भूरे रंग की थी, और उसी बीच में एक सिंकुडा हुआ, भूरा छेद था। जो कि कविता के चूतड़ फैलाने से साफ साफ दिख रहा था। लगातार हुई चुदाई से उस हिस्से में जो पसीना आया था, एक अजीब कामुक गंध दे रहा था।बुर से चूते हुए पानी की वजह से भी वो गंध और अधिक उत्तेजक हो गयी थी। जय ने ममता के गाँड़ के छेद को पहले उंगलियों से छुवा। ममता की गाँड़ उसके छुवन से स्वतः टाइट हो गयी। उस जगह सिंकुड़े हुई चमरी, और अधिक साँवली होकर, एक छेद में कहीं गुम हुई जाती थी। जोकि दरअसल वहीं खत्म हो रही थी। जय उसकी गाँड़ के छेद को अच्छे से महसूस कर सहलाया। जय ने फिर एक उंगली उस कसी हुई छेद के ऊपर रखकर अंदर की ओर धकेला, पर उंगली घुस नहीं पाई। कविता ने ये देख थूक का बड़ा लौंदा, ममता की गाँड़ पर उगल दिया। जोकि ममता की चूतड़ों के बीच की दरार से लुढ़कते हुए गाँड़ की छेद पर टपक गए। जय ने उसको पूरा उस छेद पर मल दिया। कविता ने दो तीन बार थूक से गाँड़ के छेद को गीला कर रही थी। आखिरकार जय ने थूक से सनी अपनी उंगली, और ममता के गाँड़ का छेद जो कि थूक से काफी गीली हो चुकी थी, उसके अंदर प्रवेश कर दिया। उंगली पर अब ज़्यादा ज़ोर नहीं लगा था, पर फिर भी वो ममता की कसी हुई गाँड़ में रास्ता बना, घुस गई। ममता ने हालांकि, ये एहसास पहले तो किया था, पर गाँड़ की यही खासियत होती है कि जब भी कुछ घुसता है लगता है, जैसे पहली बार ही जा रहा है। ममता के मुंह से कामुक दर्दभरी उफ़्फ़फ़ निकली। जय ने ये सुना तो, दूसरी उंगली भी गाँड़ में उताड़ दी, फिर तीसरी। हर उंगली घुसने से ममता, का दर्द का एहसास बढ़ता जा रहा था। पर अगले ही पल वो पीछे से हुए हमले को शरीर के अंदर कामुक तरंगे, उत्पन्न करने में व्यस्त कर रही थी। जय ने उसकी गाँड़ में उंगलियां आगे पीछे करनी शुरू कर दी थी। कविता, चूतड़ों को और फैलाकर जय को उत्साहित कर रही थी। mom son story

ममता अपनी गाँड़ में अंदर बाहर होती उंगलियों के एहसास से मचल रही थी और पीछे घूमकर कामुक सीत्कारें मार रही थी। अब तक ममता की गाँड़ का छेद जय के उंगलियों की मोटी गोलाई पर अभ्यस्त हो चुकी थी। जय ने उंगलियां बाहर निकाली, तो वो छेद गहरा हो चुका था, और अंदर शुरू में तो कुछ नहीं दिखा, बाद में अंदर की लाल मांसल त्वचा दिख रही थी। इससे पहले की गाँड़ का छेद, वापस सिंकुड़कर पुरानी अवस्था में आता, जय ने वापिस अपनी उंगलियां घुसा दी। इस तरह जय ने कई बार उंगलियां अंदर बाहर की। ममता की कामुक चीख, उसे और गहराई में घुसाने का न्योता दे रही थी। जय का लण्ड एक दम लोहे जैसा सख्त हो चुका था। वो अपने घुटनों पर आकर, अपना तना हुआ लण्ड ममता के गाँड़ की दरार पर रगड़ने लगा। ममता पीछे मुड़कर उसे प्यासी नज़रों से देख रही थी। कविता ने जय के लण्ड को अपने चेहरे के इतने करीब देखा, तो उसे बर्दाश्त नहीं हुआ और लण्ड को मुंह में ले ली। वो जय की ओर लण्ड मुंह में लिए ही देखकर मुस्कुराई। जय ने उसके गालों को प्यार से सहलाया, उसका दाहिना गाल लण्ड के जोर से उभरा हुया था। जय ने भी कामुकता में आकर उसके मुंह में दो चार धक्के मारे। कविता ने लण्ड को गीला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, और लण्ड को अपने मुंह की लार से इतना गीला किया, की वो चूकर उसके आंड़ से लिपट गया। जय ने ममता की गाँड़ के छेद पर थूका, और गीला किया। फिर अपना लण्ड ममता के गाँड़ के छेद पर टिका दिया, जो कि अभी अधखुला था। और फिर जय ने जोर लगाया, गाँड़ अंदर की ओर सूखा था, और जय का कड़क लण्ड थोड़ा ही अंदर गया। पर इतने में ही ममता की चीख निकल गयी। जय उसके चूतड़ों पर थप्पड़ मारते हुए बोला,” चुप कर साली रंडी, अभी से क्यों चिल्ला रही है। अभी तो लण्ड घुसा भी नहीं है पूरा। तुम तो वैसे भी चुदी चुदाई खिलाड़ी हो, गाँड़ मरवा मवाक़े इतना बड़ा कर ली हो। आज तो खूब चोदना है तुम्हारी गाँड़ को, भोंसड़ीवाली। अभी से मिमया रही हो?
ममता लंबी लंबी सांस लेते हुए बोली,” अरे बेटा सैयांजी, वो बात नहीं है, उफ़्फ़फ़…. ऊऊई। गाँड़ चाहे कितना भी चुदवा लें, पर हर बार ऐसा लगता है, जैसे पहली बार घुसा हो। आआहह.. देखो ना थोड़ी देर में अभ्यस्त हो जायेगा, उफ़्फ़फ़फ़फ़ फिर हमको भी बहुत मज़ा आएगा।

कविता- हाँ, जय माँ सही कह रही है, यही तो खास बात है गाँड़ का। जब भी चुदवायो नया जैसा ही महसूस होता है, वैसे अभी गाँड़ के अंदर की त्वचा पूरी तरह गीला नही हुआ होगा, जहां तक तुम्हारा लण्ड जाएगा। लण्ड को निकालो और गाँड़ में थूकने दो हमको। ताकि अंदर भी पूरा तरह गीला हो जाये।
जय ने लण्ड बाहर निकाल लिया, और कविता को थूकने के लिए इशारा किया। कविता ने चार पांच बार खूब लार चुवाई। फिर जय ने लण्ड को अंदर घुसा दिया। अबकी लण्ड पूरी तरह अंदर घुस गया। कविता जैसे अपनी लण्ड घुसाने की युक्ति पर इतराते हुए मुस्कुराई। उधर ममता जय के लण्ड की गोलाई पर अपनी गाँड़ की गिरफ्त ढीली छोड़, लण्ड को पूरी तरह प्रवेश करने के लिए मुक्त की हुई थी। जय ने धीरे धीरे सारा लण्ड अंदर बाहर करना शुरू किया। लण्ड के अंदर बाहर होने से अब ममता की गाँड़ अभ्यस्त हो चुकी थी। अब ममता की चीखें, कामुक आहों में बदल चुकी थी। अपने पिछले छिद्र में प्रवेश किये घुसपैठिये का ममता अब स्वागत कर रही थी। जय का तना हुआ लण्ड भी ममता की गाँड़ की अंदर की त्वचा से रगड़ खाकर, और अधिक वेग से चुदाई करने लगा। ममता अब लण्ड को और अंदर लेने के लिए, अपना पिछवाड़ा जय के उदर पर मार रही थी। कविता ममता के चूतड़ों को अलग किये हुए वहीं अपना चेहरा टिकाए हुए लण्ड को अंदर बाहर होते देख रही थी। जय ममता के खुले बाल अपने बांए हाथ से पकड़कर हमला किये जा रहा था। तीनों उमंग में थे।
कविता- ओह्ह, आआहह, वाह कितना मस्त नज़ारा है, लण्ड गाँड़ की गहराइयों में उतरकर एक दम अद्भुत लग रहा है।
ममता लण्ड के धक्कों से अपने खुलते सिंकुड़ते गाँड़ के छेद से हो रहे एहसास से अलग ही उमंग में थी।
जय के लण्ड ने तो ममता की गाँड़ में कहर लाया हुआ था। लण्ड पूरा बाहर निकलकर फिरसे पूरा अंदर घुस जा रहा था। जय को ममता की गाँड़ मारने में एक अजीब सा सुख औ सुकून मिल रहा था।
जय- आह… ओह्ह हहम्मम्म हहम्ममम्म क्या मस्ती है तुम्हारे गाँड़ में माँ, जितना चोद रहे हैं, उतना और मन हो रहा है। सच में औरतों की गाँड़ चोदने में बहुत ज़्यादा मज़ा आता है। हमको तो औरतों की चाल उनकी गाँड़ हिलने की वजह से ही मस्त लगती हैं। खजुराहो में भी तुम्हारी गाँड़ मारे थे, पर आज जो सुख दे रही हो वो लाजवाब है। एक तो इतने मस्त बड़े बड़े भारी चूतड़ है, तुम्हारे। मन तो करता है, इन चूतड़ों के बीच ही अपना मुंह फंसाये रखें। इन मस्त चूतड़ों को साड़ी के ऊपर से भी मटकते देखते थे, तो लगता था कि वहीं तुमको नंगी करके गाँड़ मारे तुम्हारी। आज तुम्हारी गाँड़ चोदने में सचमुच स्वर्ग जैसा अनुभव हो रहा है।”
ममता पीछे घूमकर, लगातार होते धक्कों की वजह से कांपते हुए कामुक स्वर में बोली,” बेटा सैयांजी, आआहह… ओहह… पहले ही हमको काबू में कर लेते, और आआह…. अपने लण्ड से हमारी खूब गाँड़ मारते। एक औरत तभी काबू में आती है, जब मर्द उसकी गाँड़ मार लेता है। औरत का ये सम्पूर्ण आत्मसमर्पण होता है। उसका बचा खुचा आत्मसम्मान और गरिमा दोनों मर्द के लण्ड के साथ, गाँड़ में घुस जाते हैं। औरत तभी एक मर्द का सच्चा साथ निभाती है। और इस तरीके से हम औरतें आप मर्दों के दिलों में घर कर जाती हैं।
कविता- उफ़्फ़फ़, माँ ये ज्ञान सिर्फ तुमसे ही मिल सकता था। तुमने सच्ची मायनों में औरत की गाँड़ का महत्व खोल कर रख दिया है। और आज तो जय को हम दोनों का गाँड़, मारना है। हम भी बहुत बेचैन हो रहे हैं, अपने नन्हे मुन्हें गाँड़ की छेद की ठुकाई के लिए।पहले माँ तुम मरवा लो, फिर तुम्हारी बेटी मरवायेगी। आघघ… उसके खुले मुंह में लण्ड जा टकराया, और गले तक पहुंच गया। जय ने जबरदस्ती, उसके मुंह में लण्ड पेल दिया था। जय ने ममता के गाँड़ से ताज़ा निकला लण्ड जिसमें उसकी गाँड़, से निकला चिकना, चिपचिपा पदार्थ लगा था। उसका स्वाद कविता उसकी बेटी के मुंह में समा रहा था।जय- ले चाट दीदी, अच्छे से चाटो, माँ की गाँड़ का स्वाद चखो। इसी लण्ड पर तुमको, और माँ को खूब नचवाएँगे। तुम और माँ अब एक दूसरे के अंग अंग से वाकिफ हो जाओ। माँ की गाँड़ और तुम्हारा मुंह में अब कोई फर्क नहीं है। और वैसे ही तुम्हारी गाँड़ और इसका मुंह सब बराबर हैं। तुम दोनों के बीच, कोई भी मतभेद नहीं होना चाहिए। खूब गाँड़ मरवाओ समझी।
कविता लण्ड को बहुत अच्छे से चूस रही थी। लण्ड के हर एक हिस्से को सुपाडे से लेकर आंड़ तक अपनी जीभ फिरा रही थी।
जय उसे देख मुस्कुराया और बोला,” हाय रे कितनी प्यासी हो तुम दीदी, अच्छा लगा तुमको ऐसे देख कर।”
ममता पे चुदाई का नशा सा था,वो बोली,” उफ़्फ़फ़, अरे छिनाल की बेटी लण्ड वापिस गाँड़ में डाल दे, कितना चूसेगी। तुम भी मरवाओगी ना, पहले हमारा होगा तभी ना मरवाओगी। ज्यादा लेट मत करो, डाल दो।
कविता- हां, तुम भी तो छिनाल ही हो, साली रंडी कहीं की, बेटे से चुदवा रही हो, मादरचोद, तो तुम्हारी बेटी भी ऐसी ही होगी ना। लण्ड की भूखी, गाँड़ मरवा रही हो, मज़े से। घबराओ मत आज भैया, तुम्हारी गाँड़ फाड़ डालेगा। और हम जय का पूरा मदद करेंगे।
ममता- तो चोदने दो ना अपने भाई को, अपनी इस रखैल माँ की गाँड़। घुसा दे ना…… आहहहहहह
जय ने ममता की कांपती गाँड़ के छेद पर लण्ड का सुपाड़ा सेट करने के लिए, कविता के मुंह से लण्ड निकाल लिया। और छेद के आस पास की मोटी चमरी को लण्ड के सुपाड़े से दबाते हुए, ममता की गाँड़ की गहराइयों में उतार दिया। फिर लण्ड को जोरों से गाँड़ में अंदर बाहर करने लगा। इस धका धक हो रही चुदाई से गाँड़ का छेद फैलता चला गया। जय लण्ड पूरा बाहर निकालता और फिर उसकी गाँड़ में उतार देता। कविता जय की बेरहम चुदाई देख सहम सी गयी। जय ने कविता से कहा,” क्यों दीदी, तुमको गाँड़ नहीं चुदवाना है क्या? अपनी गाँड़ मरवाने की पूरी तैयारी करो। तुम्हारे गाँड़ में हलवा डाले थे याद है ना? तुम तो एक दम मस्त पेलवाओगी, हम जानते हैं।
कविता- जय तुम आज बहुत बेरहम होकर चोद रहे हो। ऐसे चोदोगे तो हम दोनों की गाँड़ फाड़ ही डालोगे। हम अपने गाँड़ में आज हलवा नहीं दिलवाएंगे, बल्कि गाजर ही दैल लेते हैं। ताकि जब तक माँ को चोदोगे तब तक हमारी गाँड़ तैयार रहे।” ये बोल वो उठकर गाँड़ मटकाते हुए,किचन गयी। उसके चलने से उसके गहनों की खनक साफ सुनाई दे रही थी। जय उसके उछलते चूतड़ों को देख, और तेजी से गाँड़ मारने लगा। ममता की कामुक चीखें, पूरे कमरे में गूंज रही थी। जय ने ममता की गाँड़ से फिर लण्ड निकाला और ममता के सामने आ गया। उसने ममता के चेहरे को पकड़के, उसके ऊपर लण्ड मलने लगा। ममता हंस रही थी। उसके पूरे चेहरे पर लण्ड पर लगी चिकनाई फैल गयी। जय ने फिर अपना लण्ड ममता के खुले मुंह में घुसेड़ दिया। ममता एक दम से लण्ड गले से टकराने से चोक कर गयी। और खांस उठी। पर जय ने उसे लण्ड मुंह से निकालने नहीं दिया। ममता के सर को पकड़के, और कमर से जोर लगाके लण्ड उसके मुंह में घुसा रहा था।
जय- हहहह हहम्ममम्म, ऊफ़्फ़फ़ मादरचोद, चूस साली, हरामज़्यादी, माँ होकर भी, तुझमे अभी बहुत जवानी बाकी है।
ममता के मुंह से लण्ड के चारो तरफ लेर चू रहा था। थोड़ी देर चुसवाने के बाद, जय ममता के माथे पर लण्ड रकहा दिया, जहां सिंदूर लगा रखी थी।
ममता उसकी हरकत देख, मुस्कुराई और बोली,” तुम्हारे लण्ड से जब मूठ हमारी मांग में गिरेगा, तब हमारा श्रृंगार पूरा होगा।”जय- सब तो तुम माँ बेटी पी लेती हो, इसके लिए अलग से कैसे व्यवस्था करें।
तभी कविता, कमरे में अंदर आ गयी, उसके हाथ में गाजर था और वो कूद कर बिस्तर पर चढ़ गई। उसने दूसरे हाथ में एनल लुब्रीकेंट रखा था। उसने सबसे पहले तो जय के आगे अपनी गाँड़ फैला दी। फिर अपनी गाँड़ पर काफी लुब्रीकेंट लगा ली। और गाजर को अपनी सिंकुड़ी, भूरी, छेद में दबाकर उतारने लगी। उस तरल की वजह से गाजर आराम से गाँड़ में उताड़ गया। धीरे धीरे कर पूरा गाजर गाँड़ में घुस चुका था। बाहर सिर्फ पत्ते दिख रहे थे। जय ने कविता के चूतड़ों पर कस कसके तीन चार थप्पड़ जड़ दिए। कविता फिर जय की ओर घूम गयी। ममता और कविता दोनों कुतिया बानी हुई थी। दोनों माँ बेटी लण्ड चूसने लगी। जय दोनों के सर सहलाते हुए, अपना लण्ड चुसवा रहा था। दोनों बड़े ही भक्तिमय अंदाज़ से लण्ड को भगवान समझ, अपने थूक से उसका अभिषेक कर रही थी। थोड़ी देर बाद जय लण्ड निकालकर दोनों से बोला,” कविता दीदी अब हम तुम्हारी गाँड़ चोदेंगे। तबसे गाजर गाँड़ में डाले हुए हो, अब अपने भाई का लण्ड लो। माँ को भी थोड़ा, आराम करने दो। माँ तुम दीदी के आगे लेट जाओ, दीदी तुम्हारा बुर चुसेगी और ये गाजर तुम्हारे गाँड़ में डालेगी। तुम दोनों की गाँड़ अब खाली नहीं रहेगी।”
जय कविता के पीछे आ गया और ममता उसके आगे दोनों टांग उठाकर पीठ के बल लेट गयी। जय ने पहले उसकी गाँड़ से गाजर निकाल लिया और कविता के हाथों में थमा दिया। कविता की गाँड़ थोड़ी सी खुली थी, जय ने लण्ड को कविता के अधखुले छेद में घुसा दिया। उधर कविता इस हमले से चिहुंक उठी। हालांकि उसने गाँड़ में गाजर डाल रखा था, पर लण्ड से उसकी गाँड़ बुरी तरह फैल गयी। ममता अपनी बुर पर कविता का सर पकड़के रगड़ रही थी। कविता अब दोनों तरफ से व्यस्त हो गयी। फिर उसने ममता से बोला,” माँ, ये गाजर तुम्हारे गाँड़ में ठूसना है। उठाओ मादरचोद।
ममता- घुसा दो ना, गाँड़ मारकर तुम्हारे भाई ने वैसे ही फैला दिया है। ले घुसा ले।
कविता ने घुसा दिया फिर ममता खुद से ही उसे आगे पीछे करने लगी। कविता गाँड़ मरवाते हुए, अब अपनी माँ की पवित्र बुर चूस रही थी। बुर का नमकीन पानी, उसके पूरे चेहरे पर लगा हुआ था। पीछे उसकी गाँड़ का भुर्ता बन रहा था। कविता की गाँड़ का छेद कोक के ढक्कन के निचले हिस्से की तरह, उबर खाबर थी। पर मांसल होने से उसमे रगड़ खाने से और मज़ा आ रहा था। ये इस तरह बहुत देर तक चुदाई का आनंद लेते रहे। जय ने तब ममता और कविता को इकट्ठा एक साथ बिस्टेर पर करवट कर लिटा दिया। जिससे उन दोनों की पीठ एक दूसरे को सहारा दे रही थी। जय ने ममता की गाँड़ से गाजर निकाल कर, दोनों से चटवाया। फिर दोनों अपने अपने चूतड़ फैलाकर, अपनी खुली हुई गाँड़ जय को परोस रही थी। दोनों अपने अपने गाँड़ की छेद पर अपना अपना थूक मल रही थी। जय के सामने, दो दो मस्त औरतें, लेटकर गाँड़ मरवाने को तैयार थी। जय ने अपना लण्ड पहले ममता की गाँड़ में घुसा दिया। कविता अपने हाथ से अपना बुर सहला रही थी। दोनों की बुर नीचे तरफ से साफ दिख रही थी। जो कि उनकी चिपकी जांघों के बीच गायब हो जा रही थी। जय अब ममता की गाँड़ फिरसे चोदने लगा। उधर ममता भी कमर नीचे की ओर हिलाकर उसका लण्ड ले रही थी। वो भी अपना बुर सहला रही थी। चारों तरफ कमरे में तीनों की सिसकारियां, आहें फैली हुई थी।तीनो दुनिया से बेखबर काम के सागर में डूबे हुए थे। तभी कविता बोली,” जय अब हमारी गाँड़ चोदो ना, माँ का तो बहुत चोदे हो।”जय,” दीदी, हमको अफसोश है कि हमारे पास एक ही लण्ड है, अगर दो होते तो तुम दोनों को एक साथ चोदते। खैर ये लो।” और लण्ड निकाल लिया। प्लूप कि आवाज़ से लण्ड ममता की गाँड़ से निकल गया। ममता की गाँड़ अब तक चुद चुदकर, पूरी तरह खुल गयी थी। जिस वजह से गाँड़ के अंदर की गुलाबी मांसल त्वचा साफ दिख रही थी। ममता गाँड़ में उंगली डालकर हिला रही थी। जय ने अपना लण्ड अब कविता की गाँड़ में घुसा दिया। अब तक कविता की गाँड़ भी अभ्यस्त हो चुकी थी। जय के लण्ड की गोलाई कविता के गाँड़ को अपने जितना चौड़ा कर चुकी थी। हालांकि उसकी गाँड़ ममता जितनी नहीं चुदी थी। पर क्षमता उसमें भी बहुत थी। अपनी बुर को मसलते हुए, कविता बेहद कामुक आहें भर रही थी। जय बड़ी ही बेरहमी से गाँड़ को ढीला कर रहा था। ममता अपने गाँड़ से उंगली निकालकर खुद चाट रही थी। और बुर भी रगड़ रही थी। थोड़ी देर कविता की गाँड़ चोदने के बाद जय ने लण्ड निकाला, कविता की गाँड़ भी चुदकर बहुत ढीली हो गयी थी। वहां भी अंदर से उसकी मांसल त्वचा साफ दिख रही थी। जय ममता की गाँड़ में लण्ड घुसा दिया, फिर तुरंत निकालजेर कविता की गाँड़ में घुसा दिया। इस तरह वो एक बार ममता की गाँड़ और दूसरी बार कविता की गाँड़ में लण्ड घुसा देता था। ममता और कविता की हंसी छूट गयी। दोनों के चूतड़ आपस में चिपके हुए थे। दोनों आपस में अब एक दूसरे के बुर को मस्लरहि थी। तब जय ने कविता की गाँड़ में फिरसे लण्ड घुसा दिया और कसके चुदाई शुरू कर दी। अबकी बार बुर की मसलन और गाँड़ में लण्ड का एहसास कविता के लिए भारी था, और वो जोर से दहाड़ कर झड़ गयी। उसकी बुर से काफी पानी चू रहा था। जय अपने लण्ड के चारों ओर कविता की गाँड़ की सिकुरन महसूस कर रहा था। फिर आखिर में 2 मिनट बाद जब वो नार्मल हुई तब लण्ड को निकाला। गाँड़ का छेद बुरी तरह फैल चुका था, अंदर काफी तबाही मची थी। उसकी गाँड़ से बहुत सारा, गीला पदार्थ बाहर चू रहा था। इतनी चुदाई की वजह से, फैली गाँड़ के अंदर लाल त्वचा स्पष्ट दिख रही थी। कविता पसीना पसीना हो चुकी थी। उधर ममता ने बिना देर किए लण्ड को अपनी गाँड़ में डालने को कहा। जय ने उसकी गाँड़ में लण्ड घुसा दिया। ममता भी अपनी बुर मसल रही थी। जय अब बहुत ही तेजी से उसकी गाँड़ मारने लगा।
ममता- ऊफ़्फ़फ़, क्या मस्त चोदते हो हमारी गाँड़ को तुम। मन खुश कर दिए हो आहहहह….
जय- अरे तुझ जैसी रंडी को ऐसे ही चोदा जाता है। अपनी कोख से एक मादरचोद पैदा किया है तुमने और एक बेहद छिनाल बेटी जो अब तुम्हारी सौतन भी है। तुम दोनों हमारी रखैल बनकर रहोगी। तुम दोनों को जब मर्ज़ी तब चोदेंगे, आठहठहद ऊफ़्फ़फ़ तुम दोनों की ब्लू फिल्म बननी चाहिए।
ममता- वो तो बन ही रही है। चारो तरफ कविता ने कैमरे लगवाए हैं। इस रात की हर हरकत रिकॉर्ड हो रही है। ये हम तीनों के बेहद निजी और कामुक पल हैं। mom son story
जय- अरे क्या बात है कविता रंडी दीदी, तुम तो लाखों में एक हो।
ममता- जय अब हमारा झरने वाला है। बुर से पानी का फवारा छूटने ही वाला है।
जय- माँ, हमारा भी होने ही वाला है, तुम दोनों की गाँड़ इतनी देर से मार रहे हैं, अब बर्दाश्त नहीं हो रहा।
ये सुन्ना था कि कविता उठ बैठी, और अपना मुंह ममता की गाँड़ में अंदर बाहर होते लण्ड के पास खोलकर टिका दी। कविता- आआहह, हां, भाई, अपना मूठ माँ की गाँड़ में ही चुआ दो। दोनों माँ बेटे अब कीड़ी भी पल छूटने वाले थे। जय और ममता आखिरकार एक साथ झड़े। ममता की बुर से खूब बड़ा फव्वारा छूटा। और जय ने 7 8 झटकों में ममता की गाँड़ में अपना मूठ गिरा दिया। ममता की गाँड़ की अंदरूनी दीवारें, उस गरम सफेद रस से भीगकर सन गयी। जय का लण्ड अभी भी ममता की गाँड़ में ही था। कविता अपनी जीभ निकाले, इंतज़ार कर रही थी कि कब लण्ड गाँड़ से निकले और ममता की गाँड़ से चूता गरम मूठ पिये। थोड़ी देर में लण्ड, गाँड़ से निकल गया, और कविता ने पहले ममता की चुदी चुदाई फैली गाँड़ पर हाथ रख दिया और जय के लण्ड को चूसने लगी। लण्ड पर ममता की गाँड़, कविता की गाँड़ और जय के लण्ड का रस अछि तरह लिपा पुता था। कविता बिल्कुल आइस क्रीम की तरह सब साफ कर गयी। जय को ये देख बहुत सुकून मिल रहा था। ममता तभी बोली,” अरे मादरचोद खुद ही सब साफ कर जाएगी या अपनी माँ को भी चाटने देगी। लाओ इधर लाओ जय का लण्ड।जय घुटनो के बल चलकर, ममता के चेहरे के पास लण्ड ले आया। ममता मुस्कुरा रही थी। जय भी थकी सी मुस्कान दे रहा था। ममता बेहिचक उसके लण्ड को चूसने लगी। उसने भी अपनी गाँड़ का स्वाद चखा। और बोली,” कविता, हम दोनों की गाँड़ बहुत मीठी है। और ज़ोर से हंसी। कविता भी हंसी रोक नही पाई। जय बोला,” अब तो तुम दोनों बराबर एक दूसरे की गाँड़ को टेस्ट करोगी।”
कविता ने फिर अपने हाथ ममता की थरथराती गाँड़ के छेद से हटाया, जैसे ही हाथ हटा, अंदर से ढेर सारा मूठ चूने लगा। कविता ने बिना देर किए, अपना मुंह ममता की गाँड़ के छेद पर लगा दिया और तब तक लगाए रखी जब तक मूठ चूता रहा। ममता की गाँड़ का छेद काफी खुल चुका था, और अंदर से सफेद लुवादार मूठ सरकते हुए, चूतड़ों से होते हुए कविता के मुंह में समा रहा था। ममता की गाँड़ से अजीब सी गंध आ रही थी। एक बहुत ही मादक गंध, वो गंध उतनी ही मादक थी जितनी पहली बारिश के बाद, मिट्टी के भीगने से आती है। वहां, जय के मूठ, ममता और कविता की गाँड़, पसीने की खुश्बू व्याप्त थी। ममता चूतड़ हिलाकर, गाँड़ से मूठ निकाल रही थी। आखिर में जब सब निकल गया, तो ममता खुद उंगली घुसाकर, अंदर से बचा खुचा, गाँड़ की अंदरूनी दीवार से चिपका, रस निकाल रही थी। फिर वो उसे उंगली निकाली और जीभ से चाटने लगी। और अपनी उंगली चूस कर सूखा दी। इसके बाद, कविता ममता के ऊपर चढ़ गयी। और दोनों एक दूसरे को चूमने लगी।और उसी क्रम में मूठ ममता के मुंह में भी गिर रहा था। दोनों बिल्कुल प्यासों की तरह चटखारे लेते हुए सब पी गयी। जय उन दोनों को देख बहुत खुश था। उसकी नज़र घड़ी पर गयी सुबह के 4:30 बज रहे थे। वो लेटा हुआ था, और उसकी दो नई बीवियां आपस में उलझी हुई थी।

अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति complete

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