कविता और ममता खिलखिलाकर हंस पड़ी, और अपनी चूचियों को दोनों हाथों से पकड़ उसके मुंह पर रगड़ने लगी। जय का चेहरा चार चूचियों के बीच चहक रहा था। वो उन दोनों की बुर को सहला रहा था। जय बुर को जैसे मुट्ठी में बंद कर भींच लेता। दोनों सिसक उठती और आहें भरती। जय कभी ममता की चुच्ची चूसता तो कभी कविता की। वो बड़े जोरों से चूस रहा था। उसके दांत चूचियों के आस पास अपने निशान छोड़ रहे थे। दर्द होते हुए भी ममता ने कुछ नहीं कहा और नाहीं कविता ने। दोनों बस इस कामोन्माद में बहकर खुदको और जय को सम्पूर्ण सुख देना चाहती थी। कुछ देर ऐसे अपनी चुच्चियाँ चुस्वाकर दोनों उत्तेजित हो गयी। दोनों जय से लण्ड की भीख मांगने लगी। कविता बोली,” जय अब अपनी दीदी की बुर को चोदो, अब बुर से बर्दाश्त नहीं हो रहा। तुम्हारे लौड़े के लिए, देखो कितना पानी चुआ रही है। ये तुम्हारे लण्ड का स्वागत करने को बेताब है।”
ममता,” हाँ, बेटा सैयांजी अपनी मैय्या की बुर को ज़रा देखो, कैसे तड़प रही है, तुम्हारे जवान लण्ड के लिए। तुम्हारे जैसे मन चाहे वैसे पेलो। लिटाके, कुत्ती बना के, खड़ा करके, गोदी में लेकर।
जय- अभी नहीं, तुम दोनों का बुर अभी कहां चाटे हैं। इतना बढ़िया बुर का रस निकलता है। पहले तुम दोनों का बुर का रस पीकर, अपनी प्यास और बढ़ाएंगे, फिर तुम दोनों की ठुकाई शुरू करेंगे।
जय ने दोनों को एक दूसरे के ऊपर लेटने को कहा। ममता नीचे पीठ के बल लेट गयी और कविता उसके ऊपर लेट गयी। दोनों एक दूसरे की ओर देख रही थी।उनकी चुच्चियाँ आपस में दबी हुई थी। दोनों अपनी टांगे फैलाये थी ताकि बुर बाहर की ओर निकली हो। ममता और कविता की बुर बाहर की ओर निकल देख, जय उनकी टांगों के बीच आ गया। और जैसे कोई कुत्ता जूठा पत्तल चाटता है ठीक वैसे ही बुर को चाटने लगा। कविता की गाँड़, भी पहाड़ की तरह उठी हुई थी। जय उसको मसलते हुए बुर से रिसते हुए रस को चाटे जा रहा था। ममता और कविता उधर आपस में चुच्चियाँ रगड़ते हुए, एक दूसरे के मुँह में जीभ घुसाके उसका स्वाद चख रही थी। अपनी बुर में कभी जय के जीभ का एहसास होता, तो कमर खुद ही हिलने लगती थी। जय, ममता और कविता दोनों के बुर में दो दो उंगलियां घुसाके अंदर बाहर कर रहा था। उस घर की हर दीवार और छत से माँ और बेटी की आवाज़ गूंज कर वापिस लौट रही थी। दोनों की काम वासना, अद्भुत कामुक आहें और सीत्कारों के माध्यम से बाहर आ रही थी। कभी जय उनकी बुर की फांकों को अलग कर बुर का रसास्वादन करता, कभी बुर के ऊपरी हिस्से जहां क्लाइटोरिस होता है उसको चाभता। ऐसा बहुत देर तक चला। जब जय ने मन भर उनके बुर का रस पी लिया, तब उसने सबसे पहले, कविता को ममता से अलग किया, और ममता की बुर पर थूक दिया। अपने तगड़े लण्ड से उसे बुर पर मलने लगा। ममता की बुर से छेड़खानी कर रहा था। ममता अब लण्ड के लिए लगभग तड़प रही थी। उसने जय की ओर कामुक नज़रों से देखते हुए कहा,” इस अभागन को और मत तड़पा, हम चुदाई के आग में जल रहे हैं, जिसका केंद्र ये बुर है। अपना लण्ड घुसा दो और पापिन को अपने लण्ड के एहसास से पवित्र होने दो।
जय- क्या बोलती हो कविता?
कविता- जय ये सच कह रही है, अपना लण्ड घुसाकर, तुम मादरचोदों के इतिहास को गौरव प्रदान करोगे। तुम्हारा लण्ड उस जगह घुस रहा है जहां से तुम इस दुनिया मे पैदा हुए हो। माँ को चोदो, और अब अपना बच्चा इसके पेट मे आने दो।” कविता ममता का पेट सहलाते हुए बोली।ममता और कविता बहुत कामुक स्वर में ये बात बोली। जय कविता के गाल सहलाते हुए बोला,” तुम दोनों को चोदकर माँ बनाएँगे। दोनों के गोद में बच्चे खेलेंगे। पर हम इतनी जल्दी बच्चा नहीं चाहते। तुमलोगों को पहले ठीक से भोगेंगे। वैसे इस रंडी को जल्द ही बच्चा देना होगा, क्योंकि इसके पास टाइम कम है।”
जय अपना लण्ड ये बोलते हुए ममता की बुर की गहराइयों में उतार दिया। कविता ममता के पास जाकर उसको किस कर रही थी। कविता इस समय अपने घुटनों पर थी और ममता नंगी लेटी थी। ये ममता की तीसरी सुहागरात थी, जिसमे तीसरा दूल्हा उसकी बुर की चुदाई शुरू कर चुका था। जय एक हाथ से ममता की दांयी चुच्ची, और कविता की गाँड़ सहला रहा था। कविता अपनी गाँड़ के छेद पर, जय की उंगलियां महसूस कर मुस्कुराई और उसकी ओर देखकर बोली,” गाँड़ तो तुम्हारा सबसे पसंदीदा हिस्सा है, इसलिए हमने, अपनी गाँड़ की सफाई और ट्रेनिंग की है। आज की रात हर छेद तुम्हारे लण्ड को स्वीकार करेगी।”
ममता उधर खूब चुच्चियाँ दबाकर, चुदवाने में मशगूल थी। लण्ड का एहसास बड़े दिनों बाद मिला था। उसके होंठ दांतो तले आ गए। वो पूरी तरह सेक्स की चाह में, चुदवा रही थी। जय उसे चोदे जा रहा था।जय की कमर लगातार ममता की बुर में धक्कों के साथ, हिल रही थी। ममता की भी कमर हिल रही थी। कविता उससे लिपटी हुई थी। कविता ममता के बाल सहलाते हुए पूछी,” माँ, बेटे का लण्ड लेकर कैसा लग रहा है। बेटा ठीक से चोद रहा है ना?
ममता जय के धक्कों की वजह से ऊपर नीचे हो रही थी, कविता के गाल सहलाते हुए कांपती आवाज़ में बोली,” बहुत अच्छा लग रहा है, जब बेटे का लण्ड माँ की बुर में घुसा हुआ है। जो बागबान फल उगाता है, उसे तो उसे चखना चाहिए।”
जय- माँ ये बात तो शाहजहाँ ने अपनी सगी बेटी के लिए कहा था। और तुम अपने बेटे के लिए कह रही हो।”mom son story
कविता- तुम्हारा इतिहास का रिवीजन हो रहा है। IAS बनोगे ना।
तीनों हंसे और फिर चुदाई के खेल में लग गए। एक माँ अपने बेटे से अपनी बेटी के सामने निश्चिन्त और निश्फिकर हो चुदवा रही थी। जय को ममता के चेहरे का भाव, उसकी हिलती चूचियाँ बार बार और जोर लगाने को प्रेरित कर रही थी। ममता के कांख के बाल साफ थे, जो हाथ उठाने की वजह से साफ दिख रहे थे। चूचियों पर निप्पल के आसपास गोलाकार डिज़ाइन में लगी मेहन्दी, मस्त लग रही थी। ममता की चुच्चियों को हाथों में दबाकर, पकड़ बनाये हुए थे। ममता, किसी नवयुवती की तरह चुदवाते हुए, जय के लण्ड के एहसास को महसूस कर रही थी। वो उस एहसास से मचल रही थी।ममता- बेटा, चोद और चोद अपनी,रंडी माँ को, जो अब तेरी दुल्हन भी है। इस दुल्हन का हर अरमान अपने बेटे से पति हुए, यानी तुझसे ही पूरा होगा। हम इस दुनिया का सबसे बड़ा सुख भोग रहे हैं। एक भूखी शेरनी, अपने बच्चे को खा जाती है और एक चुदाई की प्यासी औरत, अपने बेटे का लण्ड लेकर उस प्यास को बुझा सकती है। यही इस दुनिया की रीत है, आखिकार सही आदमी सही जगह पहुंच ही जाता है।
कविता- माँ, ये तुम्हारा बेटा, तुम्हारा खूब ख्याल रखेगा। तुम अब प्यासी नही रहोगी। तुमने जो इतने साल बगैर ठीक से चुदे गुजारे हैं, उसकी कमी पूरी कर लो। इस चुदाई का पूरा आनंद लो। ये तुम्हारा अधिकार है।”mom son story
ममता- हाँ बेटी, अब तो हमको कोई डर नहीं है। सब कुछ हमलोगों के सामने ही हो रहा है। आआहह…… लण्ड की प्यास तो अब तुम भी समझ गयी हो। एक औरत को अगर ठीक से चोदने वाला मिल जाये ऊऊईईईई….., तो वो आधी खुशी वैसे ही पा लेती है। ये अब तुम भी समझ जाओगी। ऊहहहहहह…..
कविता ममता की बुर के ऊपर हिस्से को मसल रही थी। दोनों बीच बीच में आपस मे किस भी कर रही थी। जय उन दोनों की कामुक बातें सुन रहा था, और माँ बेटी से सौतन बनी, दोनों औरतें, अपने पति के सामने आपस में प्यार भी कर रही थी। दोनों एक दूसरे को सहलाते हुए, ऐसी ही बातें कर रही थी। तभी ममता के अंदर का लावा फूट पड़ा। वो शायद पहली बार इस तरह इतनी जल्दी झड़ी थी। शायद ये अपनी बेटी के सामने, बेशर्मों की तरह बेटे से चुदने का असर था। वो लंबी चीख और आह भरते हुए, झड़ी। कविता उसे सहला रही थी। जय ने अपना लण्ड निकाला और कविता को कुत्ती बनाकर उसके बुर में लण्ड उतार दिया। कविता इस एहसास से अभिभूत हो उठी। पिछले 10 दिनों से बुर में बिना लण्ड लिए, वो जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी। जय का लण्ड घुसते ही वो पागल हो उठी। जैसे किसी प्यासे को रेगिस्तान में पानी का दरिया मिल गया होगा। जय उसके कमरबंद को पकड़े हुए, उसकी चुदाई कर रहा था। ममता जय के पास आकर उसे चूम रही थी। दोनों की जीभ आपस में टकड़ा रहे थे।
ममता- अब हम समझ गए हैं, तुम हम दोनों के लिए ही जन्मे हो। तुमको हम इसी लिए जन्म दिए, ताकि तुम बड़े होकर हमको और हमारी बेटी को अपनी रखैल बनाकर चोदोगे। ये तो विधि का विधान है, की सौभाग्य से तुम हमारे कोख से पैदा हुए, नहीं तो तुमको हम दोनों कहाँ खोजते।
जय- हाँ, माँ तेरी बुर से पैदा हुआ हैं, ताकि इसी बुर को एक दिन चोदे। अपनी सगी बहन को तुम्हारे ही सामने, चोदे और तुमको दादी और नानी एक साथ बनाये।कविता- आआहह, ओह्ह अपनी दीदी को अपनी रांड बना लो। छिनार हैं हम दोनों। हमारे घर की सब औरतें छिनार है। हम, माँ, मौसी, नानी सब वैसे ही हैं।
जय- तुम सबको हम अपने बिस्तर की रानी बनाएंगे। तुमलोगों को कभी भी सेक्स की भूख नहीं सताएगी।
ममता- जिस घर में तुम जैसा मर्द हो, उस घर में औरतें कभी प्यासी नहीं रह सकती। ये तो हमारा नसीब है कि, तुम हमको मिले हो।अब तो इस घर में माँ बेटी तुम्हारी दासी बनके रहेंगी। तुम जैसे चाहोगे, जब चाहोगे हम हाज़िर हो जाएंगी।
जय- माँ, तेरी बेटी और तुम हमेशा खुद को तैयार रखना। ये सेक्स की जो आंधी शुरू हुई है, ये कब रुकेगी ये अभी कहना मुश्किल है।
ममता जय के लण्ड पर थूक लगाकर कविता के बुर से अंदर बाहर होते लण्ड को जीभ लगाकर चाटने लगती है। वो जय के आंड़ को भी चाट रही थी। कविता लगातार हो रही चुदाई से खुद को संभाल ना पाई और कांपते हुए झड़ गयी। वो करीब दो बार झड़ी। पर जय का लण्ड अभी भी खड़ा था, और अभी तक गिरने का नाम भी नहीं ले रहा था। दोनों माँ बेटी ने एक दूसरे को खूब किस कर रही थी। जय बिस्तर पर लेट गया और ममता, उसके ऊपर चढ़ गई। वो जय के लण्ड को अपने बुर में घुसा ली, और खुद उछल उछल कर चुदवाने लगी। ममता अपने खुले बाल अपने हाथों से पकड़े हुए, जय की ओर घूमकर चुदवा रही थी। जय उसकी कमर पकडे हुए था। तब कविता उसके मुंह पर आकर अपना बुर उसके होंठों से छुवाने लगी। जय अपनी लपलपाती जीभ से उसकी बुर चाटने लगा। कविता की कमरबंद के आगे का छोटा झूमर उसके बुर तक लटका था, ठीक वैसे ही ममता के बुर पर भी एक झूमर लटका था। उसके हिलने से हल्की रुनझुन जैसी आवाज़ें आ रही थी। कविता के बुर का एहसास होते ही जय ने कविता को अपने मुंह पर बैठा लिया। कविता अपना बुर उसके मुंह पर रगड़ने लगी। दोनों माँ बेटी आमने सामने बेटे के लण्ड और भाई के मुंह से चुदाई का अनोखा आनंद उठा रहे थे। कविता की भी कमर हिलने लगी थी। और ममता तो अब आहें भर भरकर उछल रही थी। धीरे धीरे उत्तेजना फिर बढ़ रही थी। ममता के चूतड़ों पर जय ने कसके सात आठ चाटें मारे। पर ये उसके लिए और उत्साहवर्धक थे।ममता खुद ही, अपने चुच्चियों को मसल रही थी। कविता अपने चूतड़ों पर खुद ही थप्पड़ मार रही थी। वो ममता के कंधों पर हाथ रखे हुए थी। और फिर अचानक दोनों आपस मे किस करने लगी कामोन्माद में आकर। दोनों जैसे एक दूसरे को नोचना चाहती हो। दोनों खूब उछल उछल रही थी। तभी दोनों एक साथ झड़ी। जय के मुंह में कविता का बुर का रस बह गया। और उसका लण्ड ममता के बुर के रस से। पर जय इस बात से हैरान था कि वो अब तक कैसे नहीं झड़ा। दोनों माँ बेटी, जय के आजु बाजू लेट गए। जय कविता से कुछ पूछने ही वाला था, की तभी कविता बोली,” हम बाथरूम से आते हैं। हमको पेसाब लगा हुआ है।”
जय ममता की ओर घुमा,और पूछा,” हम अभी तक नहीं झड़े हैं।और सेक्स की भूख बढ़ ही रही है, ऐसा क्यों?
ममता- दूध में हमने कुछ आयुर्वेदिक औषधि मिलाई थी। इसलिए आज तुम्हारा बहुत देर बाद निकलेगा। आज पूरी रात कोई नहीं सोएगा। ना तुम ना हम और ना कविता।”
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