सत्यप्रकाश- इन्हें इस बात की जानकारी नहीं है पंडितजी।
जय- किस बात की जानकारी? mom son story
पंडितजी- इस बात की। और एक तरफ हाथों से इशारा किया। वो वही कमरा था, जिस कमरे से कविता आई थी। जय ने पलट कर देखा, तो माया ममता को पकड़े आ रही थी। ममता भी शादी के जोड़े में थी। जय की आंखें खुली की खुली रह गयी।
जिस तरह सुबह होने पर धरती दुल्हन की तरह सजती है, जिस तरह रात होने पर चांद और सितारे धरती का चांदनी से श्रृंगार करते हैं ठीक उसी तरह ममता का श्रृंगार और आवरण उसको धरती की ही तरह सुंदर बना रहा था। उस अधेड़ उम्र में भी वो, किसी नवयौवना सी लग रही थी। आंखें बिल्कुल हिरणी सी काजल से सजी थी। होंठ गुलाब की पंखुड़ियों से थे। उसने भी पूरा ब्राइडल मेक अप किया था। दोनों माँ बेटी ने एक सा जोड़ा पहना था। वही आभूषण कानों, नाक, हाथ, पैर, सब वही था। कमर में दोनों माँ बेटी ने कमरबंद पहना हुआ था। गले में सोने का हार भी था, जो कि बेहद खूबसूरत लग रहा था। ममता धीरे धीरे अपने मोतियों से दांत मुस्कुराते हुए बिखेड़ रही थी। जय उसमे इतना खो गया था कि, उसे होश ही नहीं था।
पंडितजी- जजमान, कहाँ खो गए? आपकी ही होनेवाली है ये भी। बहुत कम लोग हैं, जो आप जितने भाग्यशाली होते हैं। एक साथ दो लड़कियों से शादी सबकी नहीं होती।
जय और ममता अब मंडप में बैठ गए और एक दूसरे का हाथ थामे हुए थे। कविता भी वहीं बैठ रश्मो रिवाज़ में मदद कर रही थी। सत्यप्रकाश ने फिर ममता का कन्यादान किया। ममता की मांग भरी और फिर उसके साथ सात फेरे लिए। जय और ममता के आंखों में खजुराहो का दृश्य जाग उठा। दोनों अपनी पहली शादी, के तर्ज पर एक दूसरे का हाथ थाम, फेरे ले रहे थे। आखिरकार विवाह संपन्न हुआ। जय की आज दो दो शादी थी। पंडितजी को लेट हो रहा था, वो बोले,” जजमान, बहुत विलंभ हो रहा है, मुझे रवाना करें। भोजन हम करेंगे नहीं, हमारी दक्षिणा दे दे।”
तीनों जय, ममता और कविता ने एक साथ पंडितजी के पैर छुवे। पंडितजी ने आशीर्वाद दिया,” अखण्ड सौभाग्यवती भव:। पुत्र रत्न प्राप्ति भव:। आप दोनों जल्द से जल्द इनके बच्चों की माँ बने और कुशल गृहणी का कर्तव्य निभाये।” पति के पैर छुइये और खुदको समर्पित कीजिये।”
ममता और कविता ने जय के क़दमों में बैठकर उसके पैर छुए, और होंठों से चूम लिया। जय ने दोनों को उठाया और गले से लगा लिया।”उधर सत्यप्रकाश ने पंडितजी, को दक्षिणा दी और विदा किया। फिर माया ममता और कविता को अलग की और जय को देख बोली,” जीजाजी, कैसे पटा लिया, हमारी दीदी और उनकी बेटी को। आप तो कमाल कर दिये। एक औरत और उसकी बेटी दोनों को अपना लिए। और ज़रा देखिए ना, इन दोनों के चेहरे की खुशी। आज से पहले कोई भी औरत, सौतन बनने पर खुश नही होती थी। आपने दोनों पर जादू कर दिया है। वैसे इतनी आसानी से नहीं मिलेगी दोनों, क्योंकि हम आपकी साली हैं, कुछ लेंगे तभी इनको आपसे मिलवाएंगे।”
जय- क्या मौसी, आपको यहां देख हम पहले ही चौंके हुए हैं। आप हमारी टांग खिंचाई कर रही हैं। अब जब सब आपको पता ही है, तो ये लीजिए 10000 रु।
माया- ये हुई ना बात, पर अभी हम मौसी नहीं, आपकी साली हैं। और हम इतने में एक बीवी देंगे। चलेगा आपको?
जय- ये लीजिए और 10000 रु अब तो ये दोनों हमारी हुई।
माया- हाँ, अब हुई ना बात। अब आप चाहे तो मौसी के आशीर्वाद ले सकते हैं।
जय ने उसके पैर छुवे और कविता ने भी। माया ने दोनों का माथा चूमा और आशीर्वाद दिया। फिर सत्यप्रकाश ने भी उनको आशीर्वाद दिया। रात के 11 बज चुके थे। सत्यप्रकाश ने कहा,” चलिए विदाई का समय हो गया है। आइए”
सत्यप्रकाश गाड़ी ले आया और जय भी पीछे गाड़ी में बैठ गया। माया दोनों को लेकर पीछे से आ रही थी। जय उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। इतिहास में शायद पहली बार हो रहा था कि माँ और बेटी एक साथ एक ही पति की बीवियाँ बनकर उसके साथ खुशी खुशी जा रही थी, और वो उनका अपना सगा बेटा और भाई था। माया और ममता की आंखों में आंसू थे, ठीक वैसे ही जब अमरकांत उसको दुल्हन बनाके ले जा रहा था, और आज उसी का बेटा फिर से उसे दुल्हन बनाके ले जा रहा था। कविता भी ये देख रो रही थी। तीनों एक दूसरे से लिपटी थी। फिर आखिकार कविता और ममता कार में जय के अगल बगल बैठ गयी। फिर सत्यप्रकाश उनको वहां से नए घर की ओर ले चला। तीनों पीछे की सीट पर बैठे थे। कोई 1 घंटे में वे नए घर पर पहुंच गए। घर तो जैसे दीवाली की रात जैसे सजा था। सत्यप्रकाश कार से उतरा और घर का दरवाजा खोला। अंदर जाकर उसने, रीति रिवाज की तैयारी जो कि पूरी थी, उसका समान ले आया। वहां पर दोनों ममता और कविता ने घर के बाहर हाथों के छाप लगाए। फिर वैसा ही बैडरूम और किचन में भी किया। दोनों फिर बैडरूम में चली गयी। और जय के हाथों में चाभी देकर सत्यप्रकाश बोला,” ये लीजिए घर की चाबी। आपलोग अब यहां निश्चिन्त होकर रहिए। हम रोज़ 5 बजे शाम में आएंगे और रात का खाना पहुंचाएंगे। सुबह और दोपहर का खाना आपलोगों के पास पहुंच जाया करेगा। हमने पास से ही बोल दिया है। और किसी चीज़ की जरूरत पड़े तो हमको जरूर बताइएगा।”
जय- मामाजी, ये सब क्या हुआ कैसे हुआ हमको कुछ समझ मे नहीं आया?सत्य- अब अपनी बीवियों से पूछिए, जाइये आपका इंतजार कर रही हैं। इन दोनों का ख्याल रखियेगा। हमको इज़ाज़त दीजिये। काफी लेट हो गया है। हम कल आते हैं।” और वो पलटकर जाने लगा।
जय- आप हमको आप आप क्यों बोल रहे हैं?
सत्य- साला हैं हम, आप हमारी बड़ी दीदी के पति। तो फिर आपको आप ही बोलेंगे ना।” मुस्कुराके बोला ” ये दरवाज़ा बंद कर लीजिए।” और वो दरवाज़ा सटाकर चला गया। बाहर गाड़ी चालू होने की आवाज़ हुई और वो डोर होती चली गई।
जय अचंभित था, की आखिर ये सब कौसे हुआ? उसने दरवाज़ा बंद किया। और अपने सवालों के जवाब ढूंढने, अपनी सुहागरात की सेज की ओर जाने लगा। इस सवाल का जवाब उसकी दो नई नवेली दुल्हन के पास था। उसके कदम दरवाज़े के पास पहुंचे। और उसने दरवाज़ा खोला। उसकी आँखों के सामने एक दिलकश नज़ारा था।
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