जय ने ममता को होंठों पर चूमा फिर कविता को भी वैसे ही चूमा। फिर ममता ने उसके गाल पर चुम्मा लिया और फिर कविता ने।
जय- आज तुम दोनों ने हमको बहुत बड़ी खुशी दी है। ममता और कविता तुम दोनों हमारी बीवी हो। ममता हमको तुम्हारे बीते हुए कल में कोई दिलचस्पी नहीं है, तुमने जो भी किया वो सब बीत गया। अबसे तुम एक नई शुरुवात करोगी। इस घर की जिम्मेदारी तुम्हारी होगी। कविता, तुमको तो शुरू से ही, ममता और हमारे रिश्ते से कोई दिक्कत नहीं है। कल हमलोग नए घर देखने जाएंगे और घर फाइनल करने के बाद, हम तुमसे मंदिर में शादी करेंगे। और वहाँ, पर हम तीनों सुख से रहेंगे।”
कविता- हमको तो विश्वास ही नहीं हो रहा है कि तुम मान गयी हो माँ।
ममता- माँ नहीं, अबसे दीदी बुलाओ। अब हम दोनों माँ बेटी नहीं, बहनें हैं। वैसे भी जब बेटी जवान हो जाती है तो वो सहेली बन जाती है।
कविता- सच कहा दीदी। लेकिन जिस दिन शादी होगी उस दिन हमारी सासू माँ बनेंगी या माँ।
ममता- अपनी फूल सी बच्ची को विदाकर माँ का फर्ज पूरा करेंगे। फिर तुम्हारा स्वागत कर सासू माँ। और उसके बाद दोनों इसी घर की बहुएं बन कर रहेगी।
कविता- जय कहीं ये सपना तो नहीं ?
ममता- ये क्या कर रही हो? चलो शादी तक नाम से बुला लो, फिर इनका नाम कभी मत लेना। औरतों को अपने पति का नाम नहीं लेना चाहिए।
जय ने ठीक उसी वक़्त कविता के गाँड़ पर चिकोटी काट ली। कविता- इससशशश, बिट्ठु काहे काट लिए? आहह। कविता चूतड़ सहलाते हुए बोली।
जय- तुमको सपने से जगाने के लिए कविता दीदी।” फिर ममता की ओर मुड़ा और बोला,” दीदी की माँ और सासु माँ दोनों बनोगी, हमको दामाद नहीं बनाओगी।हमको भी ससुराल का मज़ा चाहिए ना।” जय मज़ाक में मुंह बनाकर बोला।
ममता हंसते हुए बोली,” अरे बेटाजी, आप तो सैयांजी और दामादजी दोनों हैं। लेकिन ससुराल का मज़ा तो साली हो तभी आता है।
जय- तुम हो ना। वैसे भी तुम दोनों माँ बेटी कम, और बहनें ज्यादा लगती हो।”
ममता- बातें खूब बनाते हैं, आप भी ना।आप कुछ घर लेने की बात कर रहे थे।
जय- हां हम और कविता वही देख रहे थे, लैपटॉप पर। हमदोनों ने एक घर देखा है। यहाँ से 12 कि मी दूर है। मेट्रो, हॉस्पिटल, मार्किट सब पास में हैं। पचासी लाख में मिल रहा है। कल हम तीनों देखने जाएंगे। वहां फिर कोई अच्छा दिन देख चले जायेंगे।
जय ने उन दोनों को अपने आस पास बिठाया। दोनों उससे चिपकी हुई थी। फिर उसने ममता को लैपटॉप पर वो घर दिखाया। ममता को भी घर पसंद आया।
ममता- पर आप सत्यप्रकाश से सलाह ले लेना। ये घर की बात है। और सत्य यहां बहुत दिनों से है।
जय- ठीक है।ममता ने फिर घड़ी देखी तो शाम के 7 बज चुके थे। वो उठकर खाना पकाने जाने लेगी। तो जय ने पूछा,” कहां चली?
ममता- खाना पकाने।
जय- आज खाना बाहर से मंगवा लेते हैं। आज तो मस्ती की रात होगी। हम तीनों साथ रहेंगे और मज़े करेंगे।
ममता- हम एक बात बोलना चाहते हैं। भले ही हम दोनों माँ बेटी के बीच रिश्ते बदल गए हैं, पर अभी हम कविता के सामने नंगी होकर चुदाई नहीं कर पाएंगे। इसमें थोड़ा समय लगेगा। आखिर है तो वो हमारी बेटी ना। हम आपको निराश नहीं करना चाहते, आप हमारी स्थिति को समझिए। प्लीज हमको थोड़ा समय दीजिये।
जय- ये क्या कह रही हो तुम? अब तो सब साफ हो गया है। फिर तुमको क्या तकलीफ है।
कविता- जय माँ ठीक कह रही है। हम जानते हैं ये इतना आसान नहीं होगा, की एक माँ अपनी बेटी के सामने अपने ही बेटे से चुदवाए। ये रिश्ता बना ये तो ठीक है, पर अभी तीनों का एक साथ सामूहिक चुदाई में संलग्न होने में समय लगेगा। हम माँ की बात से सहमत हैं।
जय- ठीक है। तो तुम दोनों में से आज की रात हमारे साथ सोएगी। क्योंकि शादी तो तुम दोनों से किये हैं।
ममता ने कविता को उठाया और बोली,” आज की रात तो आपको अकेले सोना होगा क्योंकि, कविता की अभी ठीक से शादी नहीं हुई है आपके साथ। और हमको माहवारी आई है। आज की रात और कविता से शादी के दिन तक अब आपको अकेले रहना होगा।”
जय- ये क्या ज़ुल्म कर रही हो? दो दो बीवियां होते हुए अकेले सोना पड़ेगा।
ममता- कविता से दूर रहोगे कुछ दिन, तब तो आपको सुहागरात के दिन मज़ा आएगा।” कहकर ममता हंसी।
जय- लेकिन जब तुम नहीं रहोगी, तब तो हम इसको चोद लेंगे।
ममता- वो नहीं कर पाओगे, क्योंकि कविता कल से अपने मामा के पास रहेगी और अब शादी के दिन ही यहां आएगी। हम दोनों कुछ दिन वहां रहेंगी।
जय- पर मामा से क्या कहोगी? की तुम दोनों वहां क्यों रहने गयी हो? और शादी के बारे में तो उनको बताना ही पड़ेगा ना?
ममता- इसमें क्या बात है, क्या कोई बहन कुछ दिनों के लिए अपने भाई के यहां नहीं रह सकती? रही बात शादी की तो हम उसको समझ देंगे। और फिर कविता का कन्यादान भी उसीको करना पड़ेगा।
कविता- मामा कैसे मानेंगे माँ, इस रिश्ते के लिए। उनको भनक पड़ेगी तो पूरा भूकंप आया जाएगा। हमको नहीं लगता कि वो मंजूरी देंगे। और तुम तो कह रही हो कि उनसे हमारा कन्यादान करवाओगी। ये असंभव है।”ममता- सब होगा। तुम दोनों का रिश्ता हम स्वीकार किये ना। ये भी तो असंभव था। लेकिन हुआ ना! तुम दोनों के बीच भी बहन का रिश्ता प्रेमी प्रेमिका का हो गया। हुआ ना! और हम दोनों माँ बेटे से पति पत्नी हो गए। हुआ ना! तुम दोनों वो सब हमपर छोड़ दो। “
कविता और जय आश्चर्य में थे।
उस रात जय अकेले ही सोया। और अगले दिन तीनों घर देखने गए। वो किसी सरदार का घर था। जय ने कविता को अपनी बीवी और ममता को कविता की बड़ी बहन बताया। उसे जल्द ही पैसों की जरूरत थी। वो तीन बी एच के था, आगे और पीछे दोनों तरफ लॉन था। टेरेस भी काफी बड़ा था। वो घर सड़क से लगभग 100 मी अंदर था। चारो तरफ लंबे लंबे पेड़ लगे हुए था। घर के आसपास अभी कोई दूसरा घर नहीं था। छत से सड़क दिखती थी। तीनों की अय्याशी के लिए ये घर एक दम परफेक्ट था। जय ने तो मन मे सोच लिया था कि किसको कहां कैसे कैसे चोदेगा। ममता और कविता भी मुस्कुरा रही थी, शायद वो दोनों भी नटखटी बातें सोच रही थी। फिर वो लोग वहां से चले आये, रजिस्ट्री का दिन तय हो गया आठवें दिन। जय फिर उन दोनों को मंदिर ले गया, वहां उन्होंने ने दर्शन किये। फिर मंदिर के अंदर पुजारी जी से शादी का दिन निकलवाया। पुजारीजी ने पूर्णिमा का दिन शुभ बताया, जो कि रजिस्ट्री के दो दिन बाद कि थी। वहां पंडितजी को एडवांस पैसे देकर शादी वाले दिन आने को कहा गया। पंडितजी ने हामी भर दी।
शाम के तीन बजे उन दोनों को जय सत्यप्रकाश के यहां छोड़ने गया। पर उसका चेहरा उदास था, क्योंकि अब उसको दसवें दिन ही, अपनी बीवियां नसीब होंगी।
जय वहां कुछ देर रुका और फिर निकल गया। सत्यप्रकाश को पता थी कि दोनों आ रहे हैं, इसलिए उसने चाभी पड़ोस में दे रखी थी।
उधर जय घर पहुंचा, तो उसे घर काटने को दौड़ा। उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। जय ने कविता को फोन लगाया, पर वो फोन नहीं उठाई शायद काम मे बिजी रही होगी। उसकी आंख कब लगी उसको पता ही नहीं चला।
शाम सात बजे, कविता ने फोन किया, तो उसकी आंख खुली।
कविता- हेलो जानू।
जय- अरे दीदी, कहां थी तुम? कितना फ़ोन किये, तुमको।
कविता- काम कर रही थी। नाराज़ हो?
जय- नाराज़ नहीं, उदास हैं। तुम्हारी याद आ रही है।
कविता- हमारा हाल भी, वैसा ही है। मन कर रहा है कि कब तुम्हारे पास आ जाये। लेकिन इतने दिन दूर रहेंगे तो, शादी वाले दिन का मज़ा डबल हो जाएगा।
जय- ये दस दिन, कैसे काटेंगे। तुमलोगों के बगैर।
कविता- काटने तो पड़ेंगे। आज के बाद शायद हम फोन नहीं कर पाएंगे। माँ ने हमारा और अपना फोन शादी तक स्विच ऑफ करने बोला है। आई लव यू जान। उम्म्म्म्मममः
और फोन कट गया।जय खुद को बिजी रखने लगा। सत्यप्रकाश भी अगले दिन जय के साथ घर घूम और उसने अपनी मुहर लगा दी। जय घर की खरीददारी, और अपने लिए शादी की मार्केटिंग करने लगा। ममता और कविता उधर अपनी मार्केटिंग खुद कर रहे थे। किसी तरह दिन निकले और रजिस्ट्री का दिन आ गया। चुकी रजिस्ट्री, कविता और ममता के नाम थी तो सत्य के साथ, वो दोनों सीधे रजिस्ट्री ऑफिस पहुंचे। जय और सरदारजी पहले से इंतज़ार कर रहे थे। जय ने जब दोनों को देखा तो मुँह से निकला,” उफ़्फ़फ़”।
कविता और ममता की फिटनेस काफी इम्प्रूव हो गयी थी। ममता ने भी वजन कम किया था। कविता जीन्स और टॉप में थी, उसके उभार बहुत सही लग रहे थे। ममता ने रेड कलर की सारी पहनी थी। उसे समझ नही आ रहा था, की किसको देखे। उसने पहले ममता को निहारा, ममता के पेट की चर्बी में कमी आयी थी। चेहरे पर भी सुधार था। वो गोगल लगाए हुए थी। उसके चेहरा देखने से साफ पता चल रहा था, की ब्यूटी पार्लर से आ रही है। एक दम ग्लोइंग चेहरा शायद उसने फेसिअल वगैरह कराया था। बाल भी डिज़ाइनर स्टाइल में कटे हुए थे। भौएँ भी बनी हुई थी। होंठों पर लाल लिपस्टिक, पैरों में सैंडल। उसने कभी ममता को इस रूप में नहीं देखा था। उसकी माँ शायद ही उसके सामने ब्यूटी पार्लर गयी थी। उसे उम्मीद नहीं थी कि ममता एक हफ्ते में इतनी खूबसूरत लगने लगेगी। दूसरी तरफ उसकी बहन कविता थी, जिसको शायद ही उसने कभी जीन्स में देखा था। वो तो हमेशा शलवार सूट में रहती थी। उसने अपने गॉगल्स सर पर टिकाए थे। होंठों पर पिंक लिपस्टिक, आंखों में गहरा काला काजल। वो भी ब्यूटी पार्लर से सीधे रैंप पर मॉडल की तरह आ रही थी। पैरों में काली सैंडल थी। कानो में बड़े मैटेलिक रंग के गोल झुमके। दोनों की केमिस्ट्री भी पहले से अलग थी। ऐसा लग रहा था जैसे दोनों सहेलियां हो। दोनों बिल्कुल मस्त लग रही थी।
“भाईसाहब, चले। सरदारजी ने जय को कंधे से हिलाकर कहा। मुझे और भी काम हैगा।”
दोनों मुस्कुराई और फिर सब अंदर चले गए। रजिस्ट्री होते होते चार घंटे लग गए। फिर भी अभी एक अंतिम प्रक्रिया बाकी थी। दोनों मा बेटी एक दूसरे से बात कर रहे थे। जय उनको देख रहा था। तभी सत्य उसके पास आया और बोला,” क्या बात है, जीजाजी सब चीज़ ठीक जा रहा है, आपके लिए तो, दो बीवियां ये घर। क्या किस्मत है आपकी।”
जय- अरे नहीं ये सब तो…. एक..एक मिनट आपने हमको जीजाजी बोला। आप क्या बोल रहे हैं?
सत्य- अरे जीजाजी, आपका साला हैं हम, हमको सब पता है, कविता के साथ ममता दीदी को खजुराहो में … ऐं… ऐं. ऐं। और हसने लगा।
तभी उन लोगों को अंदर बुलाने लगे।
सत्य- शादी वाले दिन सब पता चल जाएगा।जय और वो अंदर गए। सारी प्रक्रिया पूरी हुई। जय के दिमाग मे सत्यप्रकाश की बातें कौंध रही थी। दोनों माँ बेटी ने जय से नार्मल बातें ही की। फिर वो सब वहां से चली गयी।
फिर शादी का दिन आ गया। और जय को उसके घर से लेने सत्यप्रकाश नई गाड़ी लेकर आये। गाड़ी फूलों से सजी थी। ये जय का इस घर मे आखरी दिन था। सत्य ने जय को फूलों का गुलदस्ता दिया और बोला,” आइए दामादजी, चलिए।” जय गाड़ी में बैठा और उत्सुकता से अपनी बारात जो वो खुद ही था लेकर निकल गया। कुछ 45 मिनट लगे वहां पहुंचने में। जय को तो ये सदियों सा लग रहा था। जब गाड़ी गेट पर खड़ी हुई तो, सत्य गाड़ी से निकला। जय ने देखा कि वहां माया खड़ी थी। माया भी सजी धजी थी। उसने जय की आरती उतारी। उसको तिलक लगाया। फिर सत्यप्रकाश उसको गोद मे उठाकर अंदर घर में ले गया। वहां बस माया और सत्यप्रकाश नज़र आ रहे थे। ममता कहीं दिख नहीं रही थी। जय आश्चर्यचकित था, की माया मौसी को भी सब पता चल गया है। तभी पंडितजी आ गए। जय और सबने उनके पैर छुए। शादी शुरू हुई। जय अब तक मंडप में अकेला बैठा था। तब पंडितजी ने बोला,” कन्या को बुलाइए।
तब जय की नज़र दरवाज़े पर गयी तो, कविता दुल्हन के जोड़े में बिल्कुल गुड़िया सी लग रही थी। लाल रंग का लहंगा, और बैकलेस चोली थी। माथे, में टीका, नाक में नथिया, कानों में झुमके, हाथों में कंगन, पैरों में पायल, हाथों में मेहन्दी, पैरों में भी मेहन्दी लगी थी, चेहरे पर पूरा ब्राइडल मेक अप था। मुस्कुराते हुए, वो मंडप में पहुंची तो, जय ने अपना हाथ बढ़ाया, कविता उसकी ओर देख मुस्कुराई और उसका हाथ थाम लिया। जय ने उसे अपने बगल में बिठा लिया। mom son story
पंडितजी सत्यप्रकाश की ओर देख कर बोले,” उनको भी साथ में बुला लीजिए। एक साथ हो जाएगा।”
सत्य- पंडितजी, पहले ये वाला कीजिये, फिर वो होगा। आपको पैसे तो दे ही रहे हैं। है कि नहीं।”
पंडितजी मुस्कुराए बोले ठीक है, जैसा आप कहे।”
जय को उनकी बातें समझ नहीं आ रही थी। पता नही कोई और शादी कर रहा है क्या?
पंडितजी, फिर मंत्र पढ़ने लगे। और शादी आगे बढ़ने लगी। इसी क्रम में जय ने कविता की मांग भड़ी, उसके साथ फेरे लिए। सत्यप्रकाश ने कविता का कन्यादान भी किया। जाय आश्चर्य में था कि आखिर ममता है, कहाँ?
और शादी भी सम्पन्न हो गयी। जय और कविता उठकर मंडप से जाने लगे, तो पंडित ने जय को रोक लिया,” अरे आप कहाँ चले। आपको तो अभी 2 घंटे और बैठना है। “
जय को कुछ समझ नहीं आया। उसका शून्य चेहरा देख पंडितजी, बोले,” अरे ऐसे क्यों देख रहे हैं। सत्यप्रकाशजी ने बताया था कि, आप दोनों बहनों से शादी कर रहे हैं।”
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