एक खामोशी थी कमरे में, ठीक वैसे जैसे तूफान के आने से पहले होती है। ये तूफान या तो सब उजाड़ देगा या फिर इनकी ज़िंदगी और रिश्ते हमेशा के लिए बदल जाएंगे। ममता अपनी साड़ी से चुच्चियाँ ढक अपनी ब्लाउज और ब्रा फर्श से उठाने लगी। कविता बुत बनी खड़ी थी अपने मुंह को छुपाए। जय ने खुदको छोड़ पहले कविता को तौलिये से ढकने बढ़ चला। वो खुद पूरा नंगा था। जय ने कविता को ढक दिया और कविता ने फौरन उस तौलिये को लपेट लिया। ममता अभी अपनी ब्रा छोड़ ब्लाउज पहनने की कोशिश कर रही थी। पर वो जल्दबाज़ी में ठीक से पहन ही नही पा रही थी। कविता और ममता एक दूसरे की ओर नहीं देख रहीं थी। जय ने अपनी बॉक्सर जल्दी से पहन ली। ममता ने जल्दबाज़ी में अपनी ब्लाउज फाड़ ली। वो फिर कमरे से निकलकर अपने कमरे में ब्लाउज पहनने चली गयी। ममता जैसे गयी कविता भी निकलना चाहती थी, पर जय ने उसके हाथ को पकड़ लिया। कविता जय की ओर देखकर बोली,” जय अभी हमको जाने दो, प्लीज।“ वो लगभग भीख मांगते हुए बोली। जय,” क्या हुआ दीदी डर गयी? बस हो गया,कल तक तो बोल रही थी कि माँ से हम तुमको मांग ले। कविता की आंखों में आंसू आ गए थे,” हां, हम डर गए हैं। पता नहीं अब क्या होगा? कहीं हम तुमको खो ना बैठे?
जय- अभी तो शुरुवात हुई है ज़माने से लड़ने की, तुम्हारा प्यार इतना कमजोर नहीं हो सकता कि, अभी से डगमगाने लगे। अरे दीदी तुम साथ रहोगी तभी तो इस ज़माने से हम दोनों के लिए लड़ेंगे। ये रास्ता आसान नहीं होगा, ये तो तुमको भी पता था।
कविता- पर…
जय- पर वर कुछ नहीं तुम हमारे साथ निडर होकर रहो।”
जय उसे अपनी ओर खींच लिया और गले से लगा लिया। कविता उसके गाल सहलाते हुए बोली,” पर जय कैसे होगा? तुम खुद सोचो एक बहन अपनी माँ से खुद के सगे भाई से शादी की बात कैसे करेगी? इसके लिए बहुत हिम्मत चाहिए।
जय- अरे कविता दीदी, तुम वो बहादुर लड़की हो,जिसने हमको और माँ को तब संभाला जब पिताजी नहीं थे। तुमसे ज्यादा बहादुर लड़की हम नहीं देखे हैं। अगर ये हिम्मत तुममें नहीं हो सकती, तो इस दुनिया में कोई लड़की ऐसा नहीं कर सकती।” जय के इन शब्दों से कविता का भरोसा बढ़ा, और उसकी आँखों में देख दृढ़ निश्चय के साथ बोली,”हम थोड़ा देर के लिए घबरा गए थे। हमको माफ कर दो। भगवान जानते हैं कि हम तुम्हारे लिए अपनी जान दे सकते हैं जानू भैया। खुद खत्म हो जाएंगे, पर तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेंगे।” mom son story
“लेकिन अभी हमको कपड़े बदलने दो। क्योंकि अब हमको लड़ाई के साथ साथ माँ को इस रिश्ते के लिए मनाना भी है और उनको भी इसमें शामिल करना होगा।” कविता ये बोलते हुए दरवाज़े से निकल गयी। वो अपने कमरे में पहुंची और शलवार सूट पहनने लगी। उसने जैसे ही कपड़े पहने,की हॉल से ममता ने कविता को आवाज़ लगाई।
कविता….कविता… बाहर आओ।”कविता बाल खुले, पीला सूट पहनकर बाहर आई। जय अपने कमरे से सब देख रहा था। ममता नाइटी पहनी थी, मैरून रंग का। कविता बाहर आकर, सीधा ममता के पास गई,” बोलो माँ।”
ममता- क्या कर रही थी, तुम नंगी होकर जय के कमरे में। कबसे चल रहा है ये सब? हम घर पर नहीं रहते तो तुम दोनों आपस में ही….। अरे भाई बहन हो तुम दोनों, और ये घिनौना काम करते हो। अरे निर्लज… कहीं की।
कविता- माँ, हम आराम से बात करते हैं, आओ कमरे में चले। हम सब समझाते हैं तुमको।तुम गुस्सा मत हो।
ममता- क्या समझाएगी हमको। अरे हमारी आधी उम्र निकल गयी, समझ तो तेरी गंदगी से भरी पड़ी है। ऐसी कुलक्षिणी बेटी हुई है, की अपने सगे भाई से चुदवाती है। ज्यादे आग लगी थी, जवानी में शादी तक बर्दाश्त नहीं कर सकती थी।
कविता – माँ, यहां नहीं, प्लीज कमरे में चलो वहां बात करते हैं। यहां ठीक नहीं है।
ममता- आये हाये भाई के सामने नंगी घूम रही थी, तो ठीक था अब बात करना भी ठीक नहीं लग रहा। बेशर्म कहीं की राखी लण्ड पर नहीं कलाई पर बांधी जाती है। सारे जहां में भाई ही मिल था, रंगरेलियाँ मनाने। भाई बहन के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिए हो दोनों। जो भाई तुम्हारे मंडप को सजता तुम, उसके साथ बिस्तर सजा ली। तुम दोनों को अंदाजा भी है, की क्या किया है तुम लोगों ने। सच कहते हैं, लड़की की जल्दी शादी कर देनी चाहिए, काम से कम मुंह तो काला नहीं करवाएगी। ठहर जा तेरी शादी इसी महीने कर दूंगी। अबसे तुम, अपने मामा के पास जाकर रहोगी, जब तक तुम्हारी शादी नही हो जाए। कम से कम अपने भाई के साथ ये काम तो नहीं करोगी, बेशर्म लड़की।
कविता- खुद तुमको शर्म आता है। जो हमको बेशर्म बोल रही हो।
ममता,” क्या कहा?
कविता- वही जो तुम सुनी हो। हमको शर्म मत सिखाओ। खुद तो अपने बेटे का लण्ड चूस रही थी। माँ होकर बेटे के साथ ऐसा रिश्ता तुम बना सकती हो, तो भाई बहन के बीच रिश्ता बन गया तो तुमको मिर्ची काहे लग गया। हम जय को बहुत चाहते हैं। और उससे ही शादी करेंगे। रही बात शादी की तुम को अंदाज़ नहीं था, कि हमारा उम्र कितना हो गया है। हमारी उम्र की लड़कियों के दो दो बच्चे हो गए हैं। और हमारे नसीब में ये सब तो दूर, ज़िंदगी की परेशानियां, ही लिखी थी। हर लड़की चाहती है समय से उसकी शादी हो, बच्चे हो। उसके कुछ अरमान होते हैं। पर हम तो घर की खातिर अपने अरमान भुला बैठे। ये भूल ही गए थे कि हम एक लड़की भी हैं। ना किसी से मिलना, ना किसी से बात करना। पिछले कितने सालों से यही कर रही थे हम। तुम भी स्वार्थी निकली, घर चलाने के चक्कर मे भूल गयी कि लड़की की शादी समय पर की जाती है। नहीं तो जवानी में कदम बहक जाते हैं। फिर जय ने हमको आखिर ये एहसास दिलाया कि हम एक लड़की भी हैं। जो खुद को जिम्मेदारियों में खो चुकी है। तुम खुद तो शादी 18 साल मे की थी, पर यहां तो 26 हो गया है। कब तक खुद को संभालते। बाहर किसी और के साथ ये सब करते तो तुम्हारा नाम होता क्या? अरे और बेइज़्ज़ती होता। और मुंह मत खुलवाओ हमारा। तुम क्या क्या गुल खिलाई हो, हमको सब पता है।ममता अवाक थी,” तुम पगला गयी हो क्या? तुमको तो …. ये बोलकर वो कविता को मारने के लिए आगे बढ़ी। और दो थप्पड़ मारा। कविता के गाल लाल हो गए।
ममता- तुझ जैसी बेटी से अच्छा होता कि बांझन होती। ये दिन तो नहीं देखना पड़ता। तू तो एक नंबर की रंडी निकली, छिनाल कहीं की।
कविता गाल सहलाते हुए- जैसी माँ वैसी बेटी। तुम हमसे बड़ी रांड हो जो तीन तीन मर्दों से चुदवाई हो। पहले बाबूजी से फिर, उस हरामी चाचा से और अब अपने बेटे से। तुम तो एक मिशाल हो रंडीपन के इतिहास में।
ममता- चुप कर छिनाल, तुझे कुछ पता नहीं है। उसकी वजह कुछ और थी।
कविता- तुम जैसी औरत वजहें ढूंढती है। देखो हमको सब पता है। हमने ही तुमको और जय को खजुराहो भेजा था। क्योंकि वो तुमको पसंद करता था। तुम भी एक प्यासी विधवा थी। जय ने वहां तुम्हारे अंदर की दबी प्यास उजागर कर दी। तुम दोनों ने वहाँ मंदिर कम घूमे, और हनीमून ज्यादा मनाया है। तुम उसके साथ शादी कर चुकी हो, ये हमको पता है। हमको इससे कोई एतराज़ नहीं। लेकिन फिर हमें पता चला कि हर साल तुम गांव बहाने से क्यों जाती थी। उस हरामी शशिकांत चाचा से चुदवाने। कंचन ने तुम दोनों को देख लिया था, जिसकी खबर उसने हमको दी और हम जय को बता दिए। पर उसने तुमको ये बात तुमको चोदने के बाद बताई। क्योंकि वो तुमको हासिल नहीं पाना चाहता था। इतना अच्छा लड़का है वो।
ममता चुपचाप खड़ी थी। उसने अपनी ज़िंदगी में किसीके मुँह से इतने कड़े शब्द नहीं सुने थे। और आज अपनी ही बेटी उसको सब सुना रही थी, और ये सारी बातें, सच थी।
कविता- क्यों माँ, हम सच बोल रहे है ना? जब तुम ऐसी हो तो अपनी बेटी से क्या उम्मीद करती हो। हम तो स्वीकारते हैं, की जय के साथ हम चुदाई किये है। पर तुम तो पता नहीं किस किस का बिस्तर गरम की हो। हम इस घर का इज़्ज़त बाहर नहीं उछाले हैं। और तुम ही तो कहती हो कि बाहर, की बिरयानी खाने से अच्छा घर की दाल खाओ। और यहां तो शाही बिरयानी घर मे थी। किसी चीज़ का डर भी नहीं था। घर की चीज़ घर मे ही रहेगी।
ममता नज़रें चुरा रही थी। कविता उसके करीब आयी और बोली,” क्या हुआ शर्म आ रही है। शर्माओ मत, क्योंकि हम दोनों की किस्मत इस घर के मर्द के साथ जुड़ी हुई है। हम तुम्हारे और जय के रिश्ते को स्वीकारते हैं, बदले में तुमको भी इस रिश्ते को स्वीकारना होगा।
ममता – चुप हो जा बेशर्म लड़की, अपनी माँ से ऐसी बात करती हो। सौ रंडियाँ मरी होगी, तो तू पैदा हुई होगी। भोंसड़ीवाली शर्म को अपने भाई के लण्ड पर राखी पर छोड़ दी हो क्या। और उसे मारने के लिए फिर हाथ उठायी। इस बार कविता ने उसका हाथ रोक लिया।
कविता- बस बहुत हो गया। तबसे तुमको माँ बोल रहे हैं, इसलिए चढ़ रही हो। साली कुतिया, बेटे को मादरचोद बनाई हो। खुद को तो शर्म आती नही। और एक बात ज्यादा आग है ना तो तुम सड़क पर जाकर धंधा कर लो, क्योंकि हम तो जय के साथ ही रहेंगे उसके कमरे में।
ममता के अंदर आग लग गयी और वो चिल्ला कर बोली,” हम जय को बहुत प्यार करते हैं। हम दोनों शादी कर चुके हैं।
कविता- वो हमको प्यार करता है समझी। और उसने हमारी मांग भी भड़ी है। हम दोनों ही उसकी बीवियां हैं।
ममता- झूठ बोलती है हरामज़्यादी, बुरचोदी छिनरी कहीं की।
कविता- तुम तो सब अपना आंख से देखी हो, चुद्दक्कड़ बुढ़िया।
ममता- अरे भाईचोदी, बुर में आग लगी थी, तो भाई का लण्ड ही ले ली।
कविता- भाई का ही लिए हैं, ना कि तुम्हारे जैसे बेटे का। मादरचोद बना दी हो बेटे को। खूब पसंद है उसका लौड़ा। बुर तो पहले से ही भोंसड़ा होगा, कुआँ बनवाएगी क्या?
ममता- पसंद है तो, डायन कहीं की। और हम बुर का भोंसड़ा बनवाये या गाँड़ का गड्ढा। ये जय और हमारा मामला है।
कविता- डायन हम नहीं तुम हो। बेटे से पेलवती हो और खुद को सती सावित्री समझती है। हरामी कुत्ती साली।
ममता- अरे हराम की जनी तुम हो, हम नहीं।हम तो अपने बाप की पैदाइश हैं। तुम दोनों को तो पता भी नहीं है कि तुम्हारा बाप कौन है?
कविता- जा जा कुछ भी बक रही है।
ममता- जानना चाहती है, तुम दोनों शशिकांत की औलाद हो। तेरे बाप का तो खड़ा भी नहीं होता था। शशिकांत के साथ तेरी दादी ने हमको बच्चा पैदा करवाया। वो कंचन भी हमारी बेटी ही है। हम दोनों के तीन बच्चे हुए। माया ने कंचन को हमसे बचपन मे ही मांग लिया था। जिस शशिकांत को गाली देती है ना, उसीकी बेटी हो तुम। क्या हुआ? सांप सूंघ गया क्या? तुमलोगों ने साबित कर दिया कि हराम की औलाद, आखिर हरामी ही निकलती है। हो भले ही एक बाप के, पर हो तो हरामी ही ना। अब जिन बच्चों की नींव ही नाजायज रिश्ते पर पड़ी हो, वे तो ऐसी हरक़तें करेंगे ही।
कविता- कुछ भी मत बोल, अनाप शनाप बकती जा रही हो। वो हमारा बाप नहीं हो सकता। हमारा बाप अमरकांत झा हैं।
ममता को तब समझ आया कि वो क्या बोल गई, उसने सोचा कि उसे ये बात कविता को नहीं बतानी चाहिए थी। पर अब वो शब्द मुंह से निकल निकल चुके थे, और वापिस आ नहीं सकते थे।तभी जय आ गया और बोला,” ये सब क्या चल रहा है? आपस मे लड़ाई बंद करो। चुपचाप होकर दोनों बैठ जाओ। ये बिल्लियों की तरह लड़ना बंद करो।”
कविता के मुंह से निकला,” देखो ना ये क्या बोल रही है?”
जय खुद शॉक में था,” माँ, सच बताओ। कह दो की ये सब झूठ है। तुम हमारी माँ हो और अमरकांत हमारे बाबूजी।”
ममता- हम तुम्हारी माँ हैं, पर अमरकांत नही शशीजी तुम दोनों के पिता हैं।
कविता- नहीं, उसने तो हमको, वहां से निकाल दिया था। कोई बाप ऐसा नहीं कर सकता।
ममता- 2.55 करोड़ का चेक भेज सकता है ना। तुम दोनों को वो बहुत याद करते हैं। गांव में लोगों को शक हो गया था, कि तुम दोनों उनके बच्चे हो। तुम दोनों को यहां भेजने के बाद भी, अपनी वसीयत में तुमलोगों को ही उत्तराधिकारी बनाये हैं।
कविता- अच्छा मतलब वो सब एक ड्रामा था। फिर भी हम अमरकांत झा को ही बाप मानेंगे। उस आदमी के प्रति अब हमारे दिल मे कोई इज़्ज़त नहीं।
जय- हम दोनों उसकी औलाद हैं। पर उससे ये सच्चाई नहीं बदलती की हम और कविता एक दूसरे से प्यार करते हैं। हमारे भूतकाल से हमारे वर्तमान पर कोई प्रभाव नहीं पर सकता। हम तुमको भी बहुत प्यार करते हैं ममता। तुम दोनों ही हमारे जीवन की सच्चाई हो।
जय दोनों के बीच बैठते हुए बोला,” ममता, तुम अब शशिकांत का चैप्टर यहीं बंद करो। तुम अब हमारी हो और कविता तुम भी। अबसे उस आदमी को कोई जिक्र नहीं होगा। हम तुम दोनों का बात सुनें हैं। माँ, कविता सब सच बोल रही है। इसको सजा मत दो, जो कुछ किया है, हम दोनों ने साथ मे किया है। हम ही इसकी जवानी को लूटे हैं। ये बेचारी तो, सोच सोचकर मरी जा रही थी। बाद में हम इसको बताए कि, प्यार तो अंधा होता है। जैसे तुम्हारा और हमारा है। हम तुम दोनों को बेहद चाहते हैं और तुम दोनों को हमेशा के लिए अपनी बनाकर रखना चाहते हैं।
ममता- कैसे होगा माँ बेटी, एक ही मर्द के साथ। ये अजीब है।
कविता- इन्हीं अजीब बातों में तो मज़ा है।mom son story
जय- सही बोल रही है, कविता। ममता तुम शुरू में भी झिझकी थी, हम दोनों के बीच जब खजुराहो में संबंध बने थे। अब इसको भी स्वीकार करो। देखो कविता में तुमको एक अच्छी बेटी के साथ साथ बहु भी मिलेगी। और हम तुम्हारे बेटे भी और जमाई भी। तुम्हारी नज़र में कविता से अछि लड़की नहीं हो सकती और हमसे अच्छा लड़का नहीं। क्यों ना हम इसी घर मे अपनी छोटी सी दुनिया बसा लें। जहां तुमको नाती पोते एक साथ मिले।ममता- हमको अभी कुछ समझ नहीं आ रहा। हम अभी कुछ नहीं कह सकते। अब हमारा सर दर्द कर रहा है। हम आराम करने जा रहे हैं।
जय- कविता जाओ, अपनी सासू माँ का सर दबा दो।
ममता- उसकी कोई जरूरत नहीं है। और अभी हमने इसको अपनी बहू नहीं स्वीकार किया है। तो ये अभी हमारी बेटी ही है।
जय- ठीक है जैसा तुमको सही लगे। लेकिन उम्मीद है कि तुम हमारे प्यार को समझोगी।
ममता अपने कमरे में चली गयी। जय और कविता एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले, जय के कमरे में चले गए। अब शायद इस घर मे पहले से कुछ नहीं था। कम से कम घर के सारे राज़ पर्दे से बाहर आ चुके थे।
ममता अपने कमरे में लेटी थी, तभी उसे एक चिर परिचित आवाज़ सुनाई दी। सामने उसका अक्स फिर खड़ा था। इस बार वो एक सुहागन की तरह सजी थी।
ममता- तुम फिर आ गयी?
” हाँ, ममता हम तो ऐसे ही आते हैं। जब भी तुम्हारे मन मे कोई द्वंद्व होगा, तुम हमको अपने सामने पाओगी। कैसी लग रही हूँ, इस लाल जोड़े में? अच्छी है ना। तुम खुद को भी तो ऐसे ही देखना चाहती हो। जय की सुहागन बन इस घर को नया चिराग देना चाहती हो।”
ममता- हां, सही कहा। पर कविता हमारी बेटी भी जय को प्यार करती है। ये अजीब लग रहा है हमको। हम माँ बेटी कैसे घर के एकलौते मर्द को अपना पति बना ले?
” हहम्मम्म, लेकिन इसमें हर्ज क्या है? जय तो तुमको दिलो जान से प्यार करता है। वो कविता को प्यार करता भी है, तो इसमें तुम्हारा कोई नुकसान नही है। क्योंकि कविता तुम्हारी इज़्ज़त करती है। वो तुम्हारे और जय के बीच कभी कोई दीवार नहीं बनेगी। ज़रा सोचो उसीने जय और तुमको खजुराहो भेजा और तुम दोनों करीब आये। कौन लड़की ऐसा करती है? याद है तुमको उस रात जब हम मिले थे, तो हजम सफेद कपड़ों में थे। पर आज इस लाल जोड़े में सिर्फ कविता की वजह से है। तुम सुहागन होकर भी सूनी मांग लेकर घूम रही हो। जय के नाम की सिंदूर क्यों नहीं लगाती हो? तुमको डर लगता था। पर अब इस घर में तुम ये कर पाओगी अगर तुम उन दोनों के रिश्ते को मंजूरी दे दो। दोनों तुमको बहुत खुश रखेंगे। और ये देखो।”
ममता के अक्स ने अपनी साड़ी पेट से उठायी तो, उसका पेट फूला हुआ था, जैसे सात आठ महीने का बच्चा हो। ममता वो देखी और पूछ उठी,” ये जय का बच्चा है।”ममता तुमने ठीक समझा। ये जय का बच्चा है, जो तुम्हारे पेट मे होगा। तुम दोनों के प्यार की निशानी। जय तुमको बहुत जल्दी फिर से माँ बना देगा, पर इस बार अपनी नहीं, बल्कि अपने बच्चे की। तुम भी तो यही चाहती हो। लेकिन इसके लिए तुमको कविता को समझाना होगा। और अगर तुम उनके रिश्ते को स्वीकार लोगों, तो फिर कविता इन दिनों में बहुत खयाल भी रखेगी। ये बच्चा तुम तीनों के रिश्ते के लिए अहम होगा। तुमने अगर ज़्यादा वक़्त लगाया तो, शायद तुम माँ ना बन पाओ। क्योंकि तुम्हारी उम्र भी ढल रही है। तुम चाहो तो, इसको इस साल हक़ीक़त में बदल सकती हो।”
ममता- पर…..
” पर वर क्या? तुम खुद सोचो कि इससे हसीन मौका अब नही आएगा। हा… हा.. हा”
और वो गायब हो गयी। ममता सोच में पड़ गयी। ” आखिर अगर बच्चे खुश हैं, तो इसीमें हम भी खुश हैं। वो दोनों हमेशा हमारे पास ही रहेंगे। अगर कविता की शादी दूसरे से हो जाएगी, और हम जय के साथ रहेंगे शुरू में तो ठीक रहेगा। पर हमारे मरने के बाद जय अकेला हो जाएगा। हम अपना सुख तो भोग लेंगे, पर जय की जवानी की प्यास अधूरी रह जायेगी। उधर कविता की भी चिंता लगी रहेगी। ये ठीक रहेगा अगर कविता जय की बीवी बैंकर इसी घर मे रहे, वो उसका खूब ख्याल रखेगी। दोनों के बीच प्यार भी गहरा है। हम माँ होकर उन दोनों के बीच की दीवार नहीं बन सकते। उन दोनों नहीं हजम तीनों को एक होकर इस घर में रहना होगा।”
ये सोच ममता की नज़र घड़ी पर गयी, इस वक़्त शाम के सात बजे रहे थे। वो करीब 6 घंटो से सो रही थी। तभी उसको बुर से कुछ रिसता हुआ प्रतीत हुआ। उसने छुवा तो देखा कि खून लगा था। उसकी माहवारी शुरू हो गयी थी। वो बाथरूम गयी, और पैंटी बदली। फिर पैड लगाया और साफ सुथरी पैंटी पहन ली। मन मे खुश थी कि उसकी माहवारी चल रही है, क्योंकि बहुत जल्द नौ महीनों के लिए बंद हो जाएगी।
वो बेधड़क जय के कमरे की ओर बढ़ रही थी।
जय और कविता कमरे में बैठे एक दूसरे से बातें कर रहे थे। कविता बोल रही थी,” तुम बहुत भाग्यशाली हो जो ममता दीदी का प्यार तुमको मिला। वो तुम्हारा बहुत ध्यान रखेगी। ऐसी औरतें बहुत कम होती हैं।”
ममता घुसते ही बोली,” तुम्हारे जैसी लड़की भी तो कम होती हैं, जो अपने होने वाले पति को एक अधेड़ महिला के साथ बाटने को तैयार हो। आजकल ऐसी लड़कियां कहाँ करती है!जय और कविता खड़े हो गए,” माँ आओ ना। बैठो।”
ममता कविता के गाल पर हाथ फेरती हुई बोलती है,” अरे हमारी बच्ची, हमारा बात का बुरा मत मानना। हमने जो कहा था, गुस्से में। तुम दोनों अगर आपस में खुश हो तो एक माँ होने के नाते उसी में हमारी भी खुशी है।”
और आप जय साहब हम दोनों को संभाल लेंगे ना। दो बीवी में परेशान तो नहीं होंगे।”
कविता- मतलब?
जय- ममता मान गयी है, कविता। याहू…….. चाहे कोई मुझे जंगली कहे, केहनो दो जी कहता रहे…
ममता और कविता- हम प्यार के तूफानों में घिरे हैं हम क्या करें। जय ने दोनों माँ बेटी को दांये बाएं गले से लगा लिया। तीनों फिर ज़ोर से बोले,” याहू……”
तीनो खूब हँस रहे थे। जय के एक बगल उसकी माँ और दूसरी तरफ उसकी दीदी थी, जो कि अब उसकी प्रेमिकाएं बन चुकी थी।
mom son story – वासना का भंवर