कविता बोल रही थी, और ज़ोर से आआहह………. और ज़ोर से……ऊईई माँ….. आईई
जय कुछ बोले बिना ही उसकी इन बातों से उत्तेजित होने लगा । उसने कविता की आंखों में आंखे डालकर उसे चोदना शुरू किया। कविता ने भी अपने भाई को बाहों में भड़ लिया और आहें भर रही थी। उसने अपनी टांगो को जय के कमर के इर्द गिर्द कैंची बना ली। और उसे चुम्मा देने लगी। दोनों के नंगे जिस्म अब वासना के खेल की चरम सीमा पर पहुंचने ही वाले थे। कविता के होंठ अभी जय के होंठो को चूस रहे थे, की जय को महसूस हुआ कि कविता की बुर उसके लण्ड को अंदर की ओर खींच रही है। कविता ने इस वक़्त चुम्बन तोड़ दिया और ज़ोर ज़ोर से आहें भरने लगी , जय ने महसूस किया कि उसका माल भी झड़ने वाला है। कविता ने अपने नाखून जय की पीठ में गड़ा दिए। जय ने बोला कि दीदी मेरा माल गिरने वाले है। कविता अब तक झड़ चुकी थी। उसने बोला जब एक दम निकलने वाला हो तब बाहर निकल लेना भाई। जय ने बोला जानता हूं कि बाहर ही निकालना चाहिए, कविता दीदी।
तभी जय बोला कि निकलने वाला है, और लण्ड बाहर निकाला, कविता ने झट से उसके लण्ड को अपने मुंह मे भर ली। जय के लिए ये बिल्कुल अचंभा था कि कविता ने उसका लण्ड मुंह मे ले लिया, पर वो कुछ सोच समझ पाने की स्थिति में नहीं था। और कविता के मुंह मे अपना पूरा मूठ निकाल दिया। कविता अपने बुर के रास से सने लौड़े को मुंह मे लेके उसके मूठ को मुंह मे इकठ्ठा कर ली। जय के लौड़े से करीब 7 8 झटको में सारा मूठ कविता के मुंह मे समा गया। जय आआहह… आआहह करता रहा और बिस्तर पर निढाल हो गया। उसकी जाँघे कांप रही थी। कविता ने उसके लौड़े को अभी तक नहीं छोड़ा था, वो चूसे जा रही थी। जब तक उसका आखरी बूंद ना निकल गया। जय ने कविता की ओर देखा तो उसने एक झटके में पूरा लौड़े के रस को निगल गयी।
जय ने कविता को अपने ऊपर खींच लिया और उसे बाहों में जकड़ लिया। दोनों की नज़रे मिली। कविता ने अपना मुंह उसके सीने में ढक लिया। दोनों वहीं उसी हालत में सो गए।कहानी जारी रहेगी।
mom son story – Read Incest Sex Stories here
कविता अपने छोटे भाई के ऊपर अपनी सुध बुध खोकर नंगी ही सोई हुई थी। जय ने उसे अपनी बाहों में पकड़ रखा था। ये एक अद्भुत नजारा था, कहने को दोनों भाई बहन थे पर इस समय दोनों ब्लू फ़िल्म के हीरो हीरोइन लग रहे थे। जय की आंखों में नींद कहाँ थी इतनी खूबसूरत बला उसकी बाहों में थी। जय ने कविता की ज़ुल्फ़ों को एक किनारे किया। कविता ने एक आंख खोली तो सामने जय को खुद को घूरते हुए पाया। कविता का चेहरा भावविहीन था, खुदको अपने छोटे भाई की बाहों में नंगा पाकर भी उसके चेहरे पर ना खुशी, ना दुख था। शायद उसके मन में कोई कशमकश चल रही थी, सही और गलत की पर , उसमे इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने भाई को कुछ मना कर सके। उसके आंखों में हल्की ग्लानि उतर आई थी। भाई बहन की सारी मर्यादा टूट चुकी थी। जिस भाई को उसने अपने कभी अपने गोद मे उठाया था, आज उसके लण्ड को अपने बुर में समाकर उसे शायद खुद से दूर कर दिया था।जय कविता के आंखों में देखते ही समझ गया कि कविता के मन मे क्या चल रहा है। कविता उठकर बैठ गयी, और चादर जो नीचे गिरी हुई थी उसे उठाकर खुद को ढक लिया। जय ने उसे नहीं रोका, वो उठकर कविता के ठीक पीछे बैठ गया। कविता बिस्तर के किनारे अपने पैर फर्श पर रखके बैठी थी। जय ने कविता के कंधे पर सर रख दिया, कविता हटना चाहती थी पर जय ने उसे बाहों में पकड़ लिया। कविता के कानों के पास जाकर उसने कहा- कविता दीदी हम जानते हैं कि तुम क्या सोच रही हो। तुमको अभी खुद से बहुत घृणा हो रही होगी। तुम्हे लग रहा होगा कि तुम दुनिया की सबसे गिरी हुई लड़की हो। औऱ अगर तुम वैसा सोच रही हो तो तुम गिरी हुई नही बल्कि अच्छी शरीफ लड़की हो। कोई भी लड़की अपने सगे भाई से ये सब नहीं करना चाहती है। पर वो पल ऐसा था कि हम दोनों अपने आप में ना रहे। उस वक़्त हम भाई बहन से मर्द और औरत बन गए थे। ये ही तो संसार मे होता है, मर्द औरत ही संसार को बनाते हैं। ये रिश्ते नाते कोई मायने नही रखते हैं, अगर ऐसा होता तो ना तुम्हें नंगी देखकर हमारा लण्ड खड़ा होता, ना तुम ये जानते हुए की में तुम्हारा भाई हूँ, नंगी होते हुए दरवाज़ा खोलती, और ना तुम्हारी बुर मुझे देखकर पनियाती। कविता बोली- बस करो भाई, जय ने कविता के चेहरे को अपनी ओर घुमाया, उसकी आंखों से आंसू गिर रहे थे ।जय- दीदी इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं है। हमने कुछ गलत नहीं किया, हां ये समझने में हो सकता है कि तुम्हे कुछ वक्त लगे, पर तुम कुछ कर मत बैठना।
तभी बाहर से ममता की आवाज़ गूँजी , कविता ….. कविता………….. उठ ज़रा । कविता और जय दोनों चौकन्ने हो गए। कविता झट से उठी। दोनों की नज़र घड़ी पर पड़ी इस वक़्त 5:30 हो रहे थे। कविता ने उसे कहा कि तुम जल्दी जाओ यहां से। पर कोई जगह नहीं थी, इसलिए जय नंगा ही पलंग के नीचे घुस गया। कविता ने कहा, हाँ माँ बस खोल रहे हैं दरवाज़ा। ज़रा एक मिनट । कविता ने जय के बॉक्सर और अपनी पैंटी को पलंग के नीचे खिसका दिया, और खुद नाइटी पहन ली। जल्दी में बस वही पहन सकती थी। उसने दरवाज़ा खोला तो ममता कमरे में घुस गई। और हड़बड़ाते हुुए बोली देखो हमको गांव जाना होगा। वहां तुम्हारे चाचाजी की तबियत बहुत खराब है। भले ही उन्होंने कुछ सही गलत जो भी किया हमारे साथ, लेकिन वो हमारे रिश्तेदार भी हैं। हम नहीं जाएंगे तो कौन जाएगा?
कविता पहले से डरी हुई थी उसे लग रहा था कि माँ सब जान ना जाये पर ये सुनके उसका मूड खराब हो गया उसने अपनी माँ को गुस्से में कहा वो आदमी जिसने हमे सड़क पर छोड़ दिया, जिसने हमे सुई के बराबर ज़मीन नहीं दी। आप उसके पास जाओगी, मरता है तो मरे वो कमीना आदमी।
ममता बिस्तर पर बैठते हुए बोली , देखो कविता तुम बड़ी हो गयी हो, तुम्हे क्या हमने यही सिखाया था। बड़ों का सम्मान किया करो।
नीचे रवि भी ये सुन रहा था, डर से उसके पसीने छूट रहे थे । वो क्या करता बस सोच रहा था कि कब माँ यहां से जाए और वो अपने कमरे में भागे।
कविता बोली क्यों माँ क्यों करे उस आदमी का सम्मान जो सम्मान के योग्य ही नही है। तुम बहुत भोली हो। तभी कविता की नज़र रवि की गंजी पर गयी जो फर्श पर पड़ी हुई थी। उसे काटो तो खून नहीं, दिल जोरों से धक धक करने लगा।
कविता के माथे से पसीना बहने लगा। ममता की नज़र उस पर नहीं पड़ी थी। कविता ने सोचा कि माँ को किसी तरह भगाना होगा । ममता तब तक बोलती ही जा रही थी, पर कविता के कानों से वो बाते लौट गई।
ममता ने आखिर में पूछा, क्या बोलती हो कविता??
कविता ने कहा- तुमको जो ठीक लगता है, करो में क्या बोलू।
ममता ने कहा- ये मत भूलो की वो तुम्हारे चाचा ही नही मौसाजी भी हैं। में अपनी बहन से भी मिल लूंगी।
उधर बिस्तर के नीचे घुसे हुए रवि अपनी माँ और कविता के पैर ही देख पा रहा था। तभी कविता के पैर ने उसकी गंजी को धक्का मारा और वो सीधा उसके मुंह पर लगा। उसने गंजी को तुरंत अपने पेट के नीचे छुपा लिया।ममता उठी और बोली की जाते हैं जय को उठा देते हैं, टिकेट कटाकर मुझे अगली गाड़ी में बिठा देगा।
कविता – माँ जय तो अभी अभी सोया होगा, IAS की तैयारी जो कर रहा है, थोड़ी देर बाद उठाना , तब तक तुम समान पैक कर लो। टिकेट हम ऑनलाइन काट देते हैं।
ममता- कितना ख़याल है छोटे भाई का, ठीक है जल्दी काट दो।
कविता – हाँ माँ, तुम जाओ।
ममता चली गयी। कविता दरवाज़ा लगाके पीछे मुड़ी तो जय बाहर आ चुका था। उसने बॉक्सर और गंजी हाथ मे रखी थी। कविता बोली, जल्दी पहन लो और जाओ यहां से। जय ने अपने बॉक्सर और गंजी पहनी और जाने लगा। तभी उसने कविता को चुम्मा लेना चाहा पर कविता ने उसे रोक दिया। जय ने कुछ नही बोला और जाने लगा। तभी कविता ने कहा- रुको, और अपना हाथ बढ़ाकर उंगलिया हिलाई, जैसे कुछ मांग रही हो।
जय ने फिर अपनी जेब से कविता की पैंटी निकालकर उसके हाथ मे रख दी।
अब जाओ, कविता बोली।
जय भागकर अपने कमरे में घुस गया।
सुबह के आठ बजे चुके थे, कविता ने तत्काल में स्वर्णजयंती एक्सप्रेस का टिकट काट दिया था, जो साढ़े नौ बजे नई दिल्ली से खुलती थी। ममता और जय ऑटो से स्टेशन की ओर निकल रहे थे। ममता ने कविता को कहा कि अपना और जय का ध्यान रखना। और ऑटो में बैठ गयी।
ममता को ट्रेन की सीट पर जय ने बैठने का इशारा किया और बोला, माँ ये 49 नंबर है तुम्हारी सीट। गाड़ी खुलने वाली है , मैं निकलता हूँ। और ममता के पैर छूकर उतर गया। ममता ने उसे खिड़की से ही गालों पे चुम्मा लिया और बोली ध्यान रखना, और दीदी को परेशान मत करना ज़्यादा। ट्रेन चल पड़ी।
ममता हाथ हिलाते हुए जय की नज़रों से ओझल हो गयी।
जय वापिस ऑटो पकड़के घर पहुंच गया। रास्ते भर कल रात की बाते उसके दिमाग मे चल रही थी। जब घर पहुंचा तो 10:35 हो रहे थे, घर पर ताला लगा था, शायद कविता आफिस जा चुकी थी। उसने बगल की आंटी से चाभी ली जैसे हर बार चाभी उनके पास ही छोड़ के जाते थे। दरवाज़ा खोलकर वो अंदर अपने कमरे में पहुंच गया।
वो कमरे में पहुंच कर पढ़ाई करने लगा। दरअसल वो पढ़ने की कोशिश कर रहा था, पर रात की बातें उसके दिमाग में घूम रही थी। कविता के नंगेपन और जवानी की चासनी में डूबी उसकी चुचियाँ, उसका बुर, उसकी गाँड़, उसकी नाभि, उसकी जाँघे, उसका पूरा बदन उसकी आँखों के सामने आ रहा था। उसकी पढ़ने की नाकाम कोशिश कोई एक घंटे चली।अंत मे उसने किताब बंद कर दी और लेट गया। उसका लौड़ा अनायास ही खड़ा हो गया था।जय कविता के कमरे में घुस गया। वहाँ उसने कविता की अलमारी खोली। वो कविता की कच्छीयाँ ढूँढने लगा। उसे वहाँ कविता की 3 4 कच्छीयाँ मिली। तभी उसको ध्यान आया की आज उसकी माँ ममता भी नही है। कविता की कच्छीयाँ लेकर वो ममता के कमरे में गया वहाँ उसको अपनी माँ की ब्रा और पैंटी मिल गयी। उन दोनों की ब्रा और पैंटी लेकर वो हॉल में आ गया, और खुद पूरा नंगा हो गया। उसके बाद उसने वहीँ इन्सेस्ट ब्लू फिल्म लगाई। और अपनी माँ बहन की ब्रा पैंटी के साथ खेलने लगा। वो सोच रहा था कि मैं कहाँ इन ब्लू फिल्मों में सुकून ढूंढता रहता था, जो मज़ा मेरी घर की औरतों की अंडरगारमेंट्स में हैं वो कहीं और कहां मिलेगी। मेरी माँ ममता क्या माल है, एयर मेरी बहन वो तो माँ की परछाई है। कल रात मुझे अपने जन्मदिन का बेहतरीन गिफ्ट मिला, अपनी सगी बड़ी बहन को चोदना सबको नसीब नहीं होता। अगर खुद की माँ और बहन के बारे में सोचके मेरा इतना बुरा हाल हो जाता है, तो बाहर के मर्द तो उनके बारे में क्या क्या घिनौनी बातें सोचते होंगे।
तभी उसका मोबाइल बजने लगा। उसने इग्नोर कर दिया क्योंकि कोई अनजान नंबर था। वो फिर ममता और कविता के खयालों में खोने लगा, की मोबाइल फिर से बजने लगा।
उसने मोबाइल उठाया- हेलो?
दूसरी तरफ से- जय बोल रहे हो?
जय- हाँ जी, आप कौन?
मैं आरिफ एसोसिएट्स से बोल रहा हूँ, तुम्हारी बहन यहाँ बेहोश हो गयी है, मैन डॉक्टर को दिखा दिया है, घबराने की कोई बात नहीं है, इसे यहां से ले जाओ।
जय- जी मैं अभी आया, तुरंत।
जय ने फुर्ती से उठकर कपड़े पहने और भागता हुआ बाहर पहुंचा। वहां उसने ऑटो ली और करीब 15 मिनट में वो वहां पहुंच गया।
जय- क्या हुआ दीदी को?
आरिफ़- अरे कुछ नहीं ज़रा सा चक्कर आया है, डॉक्टर ने बताया कि स्ट्रेस की वजह से ऐसा हुआ है। बैठ जाओ। मैंने इसे एक हफ़्ते की छुट्टी दे दी है। कविता को आराम की ज़रूरत है।
जय- कोई डरने वाली बात नहीं है ना?
आरिफ- अरे नहीं यार, रिलैक्स डॉक्टर ने कहा है कि कुछ भी घबराने की ज़रूरत नहीं है, बस थोड़ा आराम चाहिए, वैसे तो मैं किसीको इतनी छुट्टी नहीं देता, बट कविता ने कभी भी इन 8 सालों में इतनी लंबी छुट्टी नहीं ली है। इसलिए छुट्टी पर भेज रहा हूँ। ये लो प्रेस्क्रिप्शन, और दवाइयां। मैंने एक हफ्ते की ले दी हैं।
जय- थैंक यू सर।
आरिफ- ठीक है, इसे ले जाओ। mom son story