Incest क्या…….ये गलत है?

उधर दिल्ली के दूसरे ओर प्रीत विहार में ममता अपने छोटे भाई सत्यप्रकाश के साथ रक्षाबंधन मना चुकी थी। सत्यप्रकाश और ममता दोनों बातें कर रहे थे, और पुराने दिन याद कर रहे थे। हालांकि ममता और सत्यप्रकाश भाई बहन थे, पर वो ममता से उम्र में काफी छोटा था।कविता से सिर्फ 1 साल बड़ा था। ममता ने सत्य एक माँ की तरह ही प्यार करती थी और उसका ध्यान रखती थी। सत्यप्रकाश की शादी अभी तक नहीं हुई थी। ममता और माया दोनों इस बात पर उसको बहुत समझाती थी, पर वो अभी शादी के मूड में नहीं था। आज भी वो यही कोशिश कर रही थी।
ममता- तुमको इतना बार बोले हैं, शादी कर लो ना। घर पर पत्नी रहेगी तो सब संवारेगी। तुम्हारा ख्याल रखेगी। अब तुम ये मत कह देना कि, औरत ही ये सब कर सकती है, तुम अपना ख्याल खुद रख सकते हो। ये सुनके हमारे कान पक गए हैं। अब कब शादी करोगे। उम्र निकल जायेगी तब। हहम्मम्म।
सत्य- दीदी तुमको तो सब पता ही है। हम अभी शादी के मूड में नहीं है। क्यों ये सवाल करती हो। तुम तो जानती हो फुलवरिया( ममता का मायका) में अपना घर बनाने है। यहां भी अभी एकदम से सेटल नहीं हुए हैं। ये सब कर लेंगे तभी अपना घर बसायेंगे। और हम सबकुछ तो कर ही लेते हैं।कोई दिक्कत नहीं हमको। माया दीदी भी जब फोन करती है, तब यही बात सब बोलते रहती है।
ममता- हमारा मन है कि तुम्हारे बच्चों को भी गोदी में खिलाऊँ रे। हमको बुआ बना दो ना। कोई पसंद है तो बता दो। उसको ही तुम्हारी दुल्हन बना देंगे।
सत्य शर्माते हुए- नहीं दीदी ऐसी कोई बात नहीं है।
तभी उसका फोन बजता है। कॉल उसके आफिस से था। वहां कुछ जरूरी काम आ गया था। और छुट्टी होने के बावजूद उसको बुला लिया गया। सत्य बोलके निकल गया कि वो 2 3 घंटे में आ जायेगा। वो बोला कि दीदी तुमको शाम में हम ही छोड़ देंगे। तुम यहीं रहना।
ममता किचन में जाकर बर्तन साफ करने लगी। साफ करने के बाद घर को थोड़ा व्यवस्थित करने लगी। वो सत्य के कमरे में गयी तो वहां उसे एक पुरानी अटैची मिली। उसने उस अटैची खोली। उसमे कुछ पुराने कागज़ वैगरह रखे हुए थे। उसमे एक एल्बम था जिसमे उसकी माँ कावेरी की पुरानी ब्लैक वाइट तस्वीर थी।कावेरी की मंगलसूत्र और कमरबंद था। गांव के ज़मीन के कागजात। सब देखने के बाद ममता सब वापिस रखने लगी। तभी उसकी नज़र एक पुराने डायरी पर पड़ी। उसके अंदर एक पुरानी चिट्ठी परी हुई थी। वो उसे जैसे ही पढ़ने वाली थी, की तभी उसका फोन बज उठा। ममता ने वो चिट्ठी वैसे ही मोड़ दी, और फोन उठायी। वो फोन में व्यस्त हो गयी। तभी सत्य भी वापिस आ गया। ममता बाहर बालकनी में बाते कर रही थी। वो अंदर अपने कमरे में गया और देखा सब कुछ खुला। उसने झट उठा के सब बंद कर दिया। उसे डर था कि ममता ने कहीं वो चिट्ठी ना पढ़ ली हो।पर फोन काटने के बाद ममता का कोई सवाल उस चिट्ठी के बारे में नहीं था, तो वो रिलैक्स हो गया।mom son story

खाना खाने के बाद जय और कविता, कविता के बिस्तर पर फिर चुदाई के खेल में भिरे हुए थे। कविता इस वक़्त जय के लण्ड को बुर में घुसाकर तेजी से उछल रही थी। उसकी चुच्चियाँ ऊपर नीचे होते हुए मस्त हिलोडे मार रही थी। कविता अपने बाल पकड़े हुए हाथ उठाये हुई थी। वो इस वक़्त तीसरी बार चुद रही थी।
जय- आआहहहहहहह….अरे बुरचोदी भोंसड़ी साली, लण्ड कौन चूसेगा तेरी माँ। चल बीच बीच में उतरकर लण्ड से अपने बुर का पानी चाटा करो। वैसे भी तेरे बाप बन गए हैं हम।
कविता- सही बोले, लेकिन एक बात बताओ। तुम हमारे भाई भी हो, अब पति हो और बाप भी बन गए हो। कैसी रिश्तों की उलझन है। हा… हा…. हा
कविता लण्ड बुर से निकालती है, और जय की ओर देखते हुए, लण्ड चूसने लगी। जय उसके माथे को सहलाने लगा।
” आह आज ना तुम और ना हम रिलैक्स करेंगे, आज ये लौड़ा तुम्हारे हर छेद की खबर ले रहा है।
जय- वाह क्या मज़ा दे रही हो, बहुत मन से चूस रही हो लण्ड को। अच्छा लगता है ना? कविता लण्ड मुंह मे लिए भोला सा चेहरा बनाके सर हिलाई।
जय कविता की गाँड़ को सहला रहा था।
जय- तुम्हारी पैंटी कहाँ गयी। बचा हुआ हलवा निकाल दिया क्या अपनी गाँड़ से?
कविता लण्ड चूसते हुए सर हिलाई। फिर बोली, उसको फ्रीज में रख दिये हैं। आराम से खाएंगे।
जय- ठीक है, कोई बात नही। लेकिन हम चाहते थे कि वो तुम्हारे गाँड़ के ओवन में ही रहे। मज़ा आ रहा था।
कविता- हम उससे भी मज़ेेदार चीज़ लेेंगे, तुमको और मज़ा आएगा।
जय- क्या?
कविता- अभी नहीं डार्लिंग भाई, बाद में बताएंगे। तुमको अगर गाँड़ चाटनी है तो चाट लो, बाद में ये तुम्हारे चाटने लायक नहीं बस हमारे लिए रहेगी।ये बोलना था कि जय ने कविता को घोड़ी बना दिया और उसकी चिकनी चूतड़ को फैला दिया। इसके बाद उसकी सावली भूरी गाँड़ की छेद जो हल्की खुली हुई थी, उसमे अपनी जीभ लगा दिया। कविता के होंठों पर कामुक मुस्कान थी। जय उसकी मस्त सुंदर चिकनी गाँड़ का स्वाद चख रहा था। कविता के चुत्तर मस्ती में हिल रहे थे। जय कभी कविता की गाँड़ तो कभी बुर चाट रहा था। कभी उसके बुर में उंगली डालता तो कभी उसकी गाँड़ में।थोड़ी देर बाद कविता झड़ गयी और जय के मुंह पर बुर का रस मूत की तरह बहा दी।जय उसे पागलों की तरह पी रहा था। पूरा बिस्तर गीला हो चुका था। जय उसकी आखरी बूंद तक चाट गया। कविता थकी सी मुस्कान दिये जय का सर पकड़ अपना बुर चटवा रही थी।
कविता- ऐसा लग रहा है कि हमारे शरीर को निचोड़ लिए हो, और सारा रस निकालकर पी गए हो। उफ़्फ़फ़
जय उसकी ओर लपका और कविता को बालों से पकड़ा और अपनी ओर खींचा। उसकी आँखों मे आंखें डालकर बोला,” अभी से थकना मत और ना ही रिलैक्स करने देंगे, कविता दीदी। तुमको अभी और पेलना है।
कविता उसके लण्ड को पकड़ते हुए बोली- हम कब बोले कि रिलैक्स करो, बल्कि तुमको वियाग्रा खिलाये हैं। देखो लण्ड खड़ा ही है, और बुर भी फिर चुदने को तैयार है।काश आज माँ नहीं आये, और तुम सुबह तक हमको खूब पेलो।” कविता कामुकता से लबरेज़ थी।
जय ने फिर कविता को बिस्तर पर गिराया और खुद उसके ऊपर चढ़ गया। उसके बुर को चूमते हुए धीरे से उसकी नाभि,पेट और चुच्ची के रास्ते ऊपर चेहरे तक चुम्मा लिया। चुम्मा कम चाटा ज्यादे। फिर उसकी बुर में लण्ड घुसाकर पेलना शुरू कर दिया। कविता पीछे हटने वाली कहां थी। उसने जय के पीठ को कसके पकड़ा था, साथ ही अपनी टांगे जय के कमर के इर्द गिर्द फंसा रखी थी। जय उसकी बुर की रिंग देख और उत्साहित था। वो बार बार लण्ड निकालकर उसकी बुर की रिंग पर पटकता था, और जोश में आकर खूब कसके चोद रहा था। कमरे के अंदर सिर्फ चोदने और चुदने की थाप, आवाज़ें गूंज रही थी। आआहहहहहहह, ओऊऊऊच्च, ओह्ह हहहहहहह, आ आ आ आ , उफ़्फ़फ़फ़फ़ , ऊईई माँ, मर गई ईईईईई, हाये, ओऊऊऊ, हे भगवान, ईशशशशश ऐसी आवाज़ें आ रही थी। जय ने फिर उसको गोद मे बैठाकर चोदा, जिसमे कविता जय के लण्ड पर बैठी थी, और जय भी उसको अपनी बाहों में पकड़कर बैठा था। सोनो एक दूसरे में चिपके हुए थे। कविता उसके माथे को चूम रही थी। दोनों भाई बहन उछल उछल कर चुदाई कर रहे थे।उस तरह करीब 10 मिनट चोदने के बाद कविता को जय ने करवट लिए लिटाया। फिर वो उसकी टांगों के बीच आकर, उसकी एक टांग अपने कंधे पर रख लिया। और कविता की गाँड़ में लण्ड घुसा दिया। और कविता गाँड़ मरवाने लगी। कविता ने देखा कि जय उसे इस वक़्त सिर्फ चोदना चाहता था। उसे फर्क नहीं पड़ रहा था, की वो उसकी गाँड़ चोदे या बुर। वो भी बस चुदना चाहती थी। जय ने उसकी चुच्ची को एक हाथ से कसके पकड़ा था। जय थोड़ी गाँड़ मारने के बाद, कविता के बुर में लण्ड घुसाके चोदता। फिर लण्ड निकाल वापिस गाँड़ मारने लगता। कविता लगातार अपने मटर के दाने को मसल रही थी। और इस क्रम में दो बार अब तक झड़ भी चुकी थी। एकदम धुवांधार चुदाई चल रही थी। कविता की गाँड़ काफी खुल चुकी थी, लगातार हो रही चुदाई से। जब भी जय लण्ड निकालता तो 10 के सिक्के जितना बड़ा छेद खुला रह जाता था। जय पिछले आधे घंटे से ज्यादा से कविता को चोद रहा था, पर वो अभी तक झड़ने का नाम नहीं ले रहा था। कविता- आआहहहहहह, ओऊऊऊ जय ययय…ययय ओह्ह लगता है तुम आज रुकोगे नही क्या जानेमन भैया। बहन की बुर इतनी मस्त है क्या? हाये हमारा राजा भैय्य्या। अपना मूठ लेकिन हमारे मुंह मे ही देना, प्लीज।” कविता अपनी जीभ दिखाते हुए बोली।
जय ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि उसकी बेदर्दी से चुदाई चालू रखा। उसपर वियाग्रा सर चढ़ कर बोल रही थी। जय की कमर तेज़ी से हिल रही थी। और कविता उसके धक्कों को अपने ऊपर समाहित कर रही थी। कविता की मधुर आनंदमयी चीखें पूरे कमरे का माहौल और अधिक कामुक बना रही थी। उसने कविता को अलग अलग पोज़ में खूब चोदा। आखिरकार करीब एक घंटे चोदने के बाद जय का निकलने वाला था। जय- इधर आओ कविता दीदी, ये लो अब निकलने वाला है। आआहह
कविता फुर्ती से उठकर उसके लण्ड को चाटने लगी और हिलाने लगी। तभी मूठ की तेज और गहरी धार उसके गले से टकराई। कोई 7 8 लंबी धार निकली जय के लण्ड से। उसकी कमर हर झटके के साथ कविता के मुंह मे लण्ड पेल देती थी। सुपाड़ा लगातार हिल रहा था। कविता ने सारा मूठ मुंह मे ले लिया, उसने एक बूंद भी बाहर गिरने नहीं दिया। जय उसके बालों को पकड़कर अपने लण्ड पर दबा भी रहा था। जय पूरा गिराने के बाद लण्ड को बाहर निकाल कविता के गालों पर रगड़ दिया। कविता हसने लगी।उसने अपने गालों से उसके लण्ड को सहलाया और उसपर राखी के धागे को चूमा।
जय और वो दोनों हसने लगे।जय- लण्ड पर बंधी तुम्हारी राखी आज तुम्हारी इज़्ज़त की धज्जियां उड़ा रही है। जिस राखी को भाई हाथ पर पहन कर बहनों की रक्षा करते हैं, आज एक बहन ने उसी राखी को भाई के लण्ड पर बांध, रिश्तों की मर्यादा ताक पर रख, उस लण्ड से खूब चुद रही है। हा… हा हा…..हा…
कविता- उम्म्ममम्ममम्म… जय तुमको मज़ा नहीं आया क्या? अपनी सगी बड़ी बहन को राखी के दिन इतनी बुरी तरह चोदे हो तो।हम तो तुम्हारे लिए घर की इज़्ज़त, मान मर्यादा, रिश्तों की परवाह किये बगैर खुदको तुम्हारे हवाले कर दिए जान।
जय- तुम तो आज हमारा दिल जीत ली हो कविता रानी। आज तो मन कर रहा है, माँ से तुम्हारा हाथ मांग ले और तुमको हमेशा के लिए इस समाज की रिवाज़ के खिलाफ बीवी बना ले।
कविता – मांग लो ना माँ से हमको, किसने रोका है। माँ अब मना नहीं कर पायेगी। वो फिर से सुहागन बनकर घूमना चाहती है। तुम उसके सुहाग हो और हमारे भी। हम दोनों माँ बेटी को अपना लो, और इस घर में दोनों को पत्नी बनाकर रखो। हमको कोई एतराज़ नहीं है।
जय- तुम ठीक कह रही हो। वक़्त आ गया है, कि अब हम इस घर के मुखिया बने और तुम दोनों की जिम्मेदारी पति बनके उठाये। तुमको पता है, ममता को बच्चा चाहिए। और उसकी उम्र भी हो गयी है। जल्द ही उसकी कोख भरनी होगी, और उसके लिए हम तीनों के बीच शर्म की दीवार गिरानी होगी।
कविता जय को चुम्मा लिए जा रही थी। इस वक़्त शाम के 7 बज रहे थे। तभी आसमान में काले घने बादल आ गए। बिल्कुल अंधेरा सा हो गया। कविता जय के जिस्म से चिपकी हुई थी। बाहर आंधी तूफान जोर से चलने लगे। जय और कविता दोनों उठ बैठे। बिजली ज़ोर से कड़क उठी, तो कविता सहम कर जय के सीने से चिपक गयी। जय उसके चेहरे को उठाके चूमने वाला था, कि ममता का फोन आ गया। ममता ,” जय हम अभी नहीं आ पाएंगे। बहुत जोर की बारिश हो रही है। तुम दोनों ठीक से रहना। सत्य हमको सुबह आफिस के समय ले आएगा।”
जय- ठीक है, तुम अपना ध्यान रखना।”

mom son story – उफफफफ्फ़ ये जवानी -Complete

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply