ममता जब घर आई तो कविता ने ममता के पैर छुए, पर इस बार वो बेटी बनके नहीं, खुद को ममता की बहु समझ रही थी। ममता ने कविता को अपने सीने से लगा लिया। जय ममता के बैग उठाके रूम में रख आया। कविता और ममता दोनों सोफे पर जाके बैठ गयी।
कविता अपनी माँ के पैर दबा रही थी। फिर जय ममता के लिए पानी लेके आया। ममता उससे गिलास लेकर पूरा पानी पी गयी। कविता ने जय के करोड़पति बनने की सारी बात ममता को बताई। ममता सब जानते हुए अनजान बनते हुए कहा,” अच्छा, लगता है वो केस हमलोग जीत गए। जय तुम्हारा इस बार अच्छा जन्मदिन रहा, क्यों? तुम्हारे बाबूजी ने इस विरासत के साथ तुम पर ज़िम्मेदारी भी छोड़ी है। अब तुम इस घर के मालिक बन गए हो। तुम्हें अब अपने पिता की जगह लेनी है। अपनी बहन की शादी करनी है। हम जानते हैं कि तुम अभी इन सब बातों के लिए काफी छोटे हो, पर ये सब चीज तुमको अभी से सीखनी है। तुम एक महान बाप के बेटे हो, वो जहां भी हैं तुम्हारे साथ साथ हम सबपर दया दृष्टि बनाये हुए हैं। अब उनका आशीर्वाद लेके तुम एक जिम्मेदार पुरुष बनो। अब तुम्हारा निर्णय सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि हम सबको ध्यान में रखके करोगे। तुम अब इस घर के सारे फैसले लोगे। तुम एक अच्छे आदमी बनोगे हमको तुम्हारी काबिलयत पर पूरा भरोसा है, और तुमको आशीर्वाद देते हैं। इधर आओ हमारे पास।”
जय ममता के करीब गया और ममता ने उसे अपने सीने से लगा लिया। जय ममता से पूरी तरह चिपक गया। और उसकी चुच्चियों में अपना चेहरा समा दिया।उसके होंठ ममता के चुचियों के ऊपरी हिस्से से टकड़ा रहे थे। वैसे तो वो अलग नहीं होना चाहता था, पर ममता ने उसके माथे पर चुम्मा लेके उसको खुद से अलग किया। जय लेकिन फिर से ममता को बाहों में भर लिया। ममता ने सोचा कि वो भावुक हो रहा है, पर शायद उसे ये पता नही था कि जय उसे माँ की तरह नहीं एक औरत की तरह गले लगा रहा था। ममता,” अरे जय हमारा बच्चा,आजा।” बोलके उसके माथे को सहला रही थी। जय ने ममता के कंधे पर सर रखके, कविता को आंख मारी। कविता उसको देखकर मुस्कुराई और, थम्प्स अप दिखाया। अगले एक हफ्ते जय की परीक्षा थी। तो जय ने जमकर पढ़ाई की, पर पढ़ाई से ज्यादा उसका ध्यान अपनी माँ बहन के मस्त बदन पर ज्यादा था। कविता को भी बिना लण्ड के शुरू में रहना मुश्किल हो रहा था। उसकी बुर भी जब तब जय के लण्ड के लिए पनियाती रहती थी। पर उसने जो कसम उठायी थी, उसे इमानदारी से निभा रही थी।
इस बार जय उतना ढंग से नहीं पढ़ पाया। फिर भी उसने लगभग 76 प्रतिशत के बराबर अंक पाने का अनुमान लगाया, जो कि तीनों वर्षों का औसत निकालने पर 82.5 प्रतिशत होता था। बहरहाल यहां अब उसे अंकों की नहीं बल्कि अपनी सगी माँ को चोदने की पड़ी थी। कविता भी अपनी ड्यूटी पर जा रही थी। कविता और जय एक दूसरे को मैसेंजर के जरिये, सेक्सटिंग किया करते थे। जय इस बीच उसको काम पर जाने से मना करता रहा। पर कविता बोली आप जब माँ को चोद लोगे, उस दिन खुद जॉब छोड़ देंगे और फिर आपकी सेवा करेंगे। ड्यूटी बंद तो होगी ही। रोज सुबह वो अपनी बुर की तस्वीर खींचकर जय को मैसेंजर पर भेजके गुड मॉर्निंग कहती थी। जय की परीक्षा खत्म हो चुकी थी, पर उसे अब अपनी माँ को पटाना था, जो अपने आप में ही एक कठिन परीक्षा थी।mom son story
अगले दिन खाते समय जय ने ममता से कहा,” माँ, क्यों ना कहीं घूमने चलें। हमारी परीक्षाएं भी खत्म हो गयी हैं और दिल्ली में रहकर हम काफी बोर हो रहे हैं।” ममता उस वक़्त पूजा कर रही थी और घर में धूप दिखा रही थी। वो एक कॉटन की पीली साड़ी में थी और भीगे बाल खुले हुए थे। उसकी पेट आगे से साफ नंगी थी और ढोड़ी झलक रही थी।
कविता निवाला खाते हुए,” ये अच्छा आईडिया है। मूड भी फ्रेश हो जाएगा, परीक्षा से थकान भी मिट जाएगी।
ममता,” ठीक है, सब साथ जाएंगे, जहां भी जाएंगे। लेकिन जाएंगे कहाँ?
जय- खजुराहो। जय का ये बोलना था कि कविता सरक उठी क्योंकि वो जानती थी कि खजुराहो क्यों प्रसिद्ध है और खांसने लगी। ममता ने उसे पानी का गिलास दिया,” आराम से खाओ कविता।”ममता- अच्छा खजुराहो में क्या क्या है घूमने लायक ?
जय- माँ वहाँ भव्य मंदिर हैं और पर्यटन स्थल भी है। वो विश्व धरोहरों में से एक है।
ममता मंदिरों के बारे में सुनकर उत्साहित हो गयी और बोली, अच्छा है, फिर तो चलना चाहिए। अगले सप्ताह चलते हैं। आज तुम टिकट करा लो, तीनों की।
कविता- हम नहीं आ पाएंगे, क्योंकि हम पहले ही एक हफ्ता छुट्टी ले चुके हैं और बहुत काम बाकी है। आप दोनों जाइये।
जय- कविता दीदी तुम भी चलो ना और मज़ा आएगा। छुट्टी ले लो ना, मिलेगी नहीं क्या?
कविता- बोले ना कि बहुत काम बाकी है, और आरिफ सर अगले हफ़्ते हमको बहुत बिजी रखने वाले हैं, क्योंकि रिटर्न फ़ाइल होने शुरू हो गए हैं, और काम हद से ज्यादा है।
ममता- फिर ठीक है, बाद में जाएंगे। जब तुम खाली रहोगी तब।
कविता- अरे नहीं माँजई, जय और आप दोनों चले जाइये। अभी जय की परीक्षा खत्म हुई है, अच्छा रहेगा।
ममता- फिर ठीक है, जय हम और तुम चलेंगे।
फिर सब खाना खाके, उठ गए और ममता अपने रूम में चली गयी। जय ने कविता को कमर से पकड़ लिया और गुस्से में बोला,” तुम साथ क्यों नहीं चल रही हो? तुम नही रहोगी तो मज़ा नहीं आएगा?
उसपर कविता उसके माथे पर हाथ से हल्का धक्का मारके बोली,” अरे बुद्धूराम ले जाओ ना माँ को अकेले तब ना तुमको उसको पटाने का मौका मिलेगा। अकेले तुम दोनों रहोगे तभी कुछ होगा ना। UPSC कैसे करेगा रे तुम। औरत को कैसे पटाते हैं पता नहीं क्या? जब तुम माँ को वापिस लेके आना, तो ममता हमारी माँ और सासू माँ से सौतन बन जानी चाहिए।
जय उसको देखके हसने लगा।
जय ने टिकट्स बुक कर लिए ममता और उसका। और फिर वो दिन आ गया जब ममता और जय खजुराहो के लिए निकल पड़े। उनकी टिकट ऐसी थर्ड में आर ए सी में थी। उनको अगले दिन शाम तक पहुंचना था। दिन तो माँ बेटे ने काट लिया, फिर वो समय आया जिसका जय को इंतज़ार था, जब वो अपनी सपनों की रानी अपनी माँ ममता के साथ चिपक के सोएगा। ममता और जय खाना खाने के बाद एक दूसरे की ओर पैर करके सो गए। ममता तो तुरंत सो गई पर जय को नींद कहाँ आ रही थी। रात के करीब 11 बज चुके थे। और पूरे बोगी की रोशनी बंद थी।जय ने ममता की ओर देखा वो बेहद हल्के खर्राटे लेकर चैन से सो रही थी। उसने कंबल के अंदर अपना सर घुसा लिया और मोबाइल की टोर्च जला ली।ममता के कोमल तलवे बहुत सुंदर लग रहे थे। जय ने उसके तलवों को हल्के से छुवा और धड़कते दिल से अपने होंठों से चूम लिया। ममता की गुलाबी रंग की साड़ी उसके घुटनो से हल्के ऊपर तक उठ गई थी। जिससे उसकी चिकनी जांघों का पिछला हिस्सा बाहर झांक रहा था। जय उन दृश्यों को बड़े कामुक नज़रों से देख रहा था, वो दृश्य थे भी कामुक। तभी ममता ने एडजस्ट करते हुए करवट ले ली, जिससे उसकी साड़ी और ऊपर उठ गई और उसकी जांघो के बीच फंसी पैंटी का निचला हिस्सा दिखने लगा। जय ने लाइट को थोड़ा करीब लाया, ममता ने सफेद रंग की पैंटी पहनी हुई थी। जय ने उस हिस्से को गौड़ से देखा जहां पैंटी उसकी बुर से चिपकी हुई थी। जय का मन तो हो रहा था कि ममता की पैंटी उतार दे और उस जगह के दर्शन कर ले जहां से उसने इस दुनिया में क़दम रखा था, ममता की बुर से। जय ने अपने पर काबू रखा और बस उसकी नंगी जांघों का दर्शन करता रहा। वो अपना लण्ड मसलने के अलावे कुछ कर भी नहीं सकता था। जब उससे बर्दाश्त नहीं हुआ तब वो उठके बाथरूम चला गया और वहां जाकर ममता को खयालों में नंगी कर दिया, जहाँ ममता उसको अपने खूबसूरत नंगी चुचियों पर मूठ गिराने को बोल रही थी। थोड़ी ही देर में वो अपना मूठ गिराके वापिस आकर सो गया। दोनों अगले दिन दोपहर तीन बजे तक खजुराहो पहुंच गए। दोनों ने होटल ले लिया, और कमरे में चले गए। ममता सीधे नहाने चली गयी। दोनों बारी बारी फ्रेश हो गए और उस दिन आराम करने की सोच ली। अगले दिन ममता सुबह जल्दी उठी और तैयार हो गयी। वो जय को उठाने गयी तो जय उठ ही नही रहा था, वो करीब 10 मिनट बाद उठा और अपनी माँ को देखता ही रह गया। ममता ने सफेद रंग की साड़ी पहन रखी थी, जिसमे लाल रंग का चौड़ा बॉर्डर था। उसकी सफेद ब्लाउज बिना बाहों वाली थी, जिसमें उसकी काँखें और कामुक लग रही थी। उसकी कमर और पेट पूरी खुली थी। लंबी और गहरी ढोंडी बहुत उत्तेजक लग रही थी। जय को लगा क्यों ना ममता के कमर पर चूमते हुए उसकी ढोंडी को छेड़े। ममता की नज़र पहली बार जय की नज़रों पर पड़ी जो उसकी हुस्न की डकैती कर रही थी। ममता ने ये देखा तो, उसे अजीब लगा कि उसका बेटा उसकी कमर ऐसे देख रहा है।
ममता- क्या हुआ, कुछ लगा है क्या? उसने अपने आँचल को हटा दिया। और अपने पेट को हाथ से साफ करने लगी।
जय- हाँ, इधर आओ हमारे पास हम देखते हैं।
ममता उसके पास आ गयी, जय ये मौका कैसे जाने देता। जय उसके पेट के करीब आया और ममता को हाथ अपने कंधों पर रखने को कहा। ममता ने वैसे ही किया। जय ममता के पेट को हल्के हाथों से सहलाने लगा। ममता की ढोड़ी ठीक उसके सामने थी। उसका मन तो उसे चाटने, का हो गया। उसके कमर को और पेट को वो मज़े लेके सहला रहा था। ममता की गोरी चिकनी हल्की चर्बीदार नंगी कमर उसकी उत्तेजना दुगनी कर रही थी। पेट पर हल्की चर्बी साड़ी के कसके बांधने से हल्की लटकी थी। क्या मस्त लग रही थी दिखने में।
जय मस्ती ममता की आवाज़ के साथ टूटी,” साफ हो गया क्या था बेटा?
जय- आँ…. आ कुछ नहीं माँ, ये तो पाउडर है, जो कि लग गयी है।
ममता- अच्छा… वो है। ओह्ह हम लगाए थे, लग गया होगा। जाओ तुम नहा लो। ममता की नज़र उसके पैंट में बनी तंबू पर थी। जय ने उसे देखते हुए देखा तो उसने नज़र हटा ली और, वहां से चली गयी।
जय के मन में उम्मीद की किरण जागी, शायद ममता भी वैसे सोच रही हो। पर फिर उसने सोचा कि, ममता उसकी माँ है वो ऐसा क्यों सोचेगी? क्या वो भी सेक्स की प्यासी है, हाँ हो भी सकता है, क्योंकि उसे भी तो लण्ड नहीं मिलता। अगर ऐसा होगा तो ये काम आसान हो सकता है। ये सब सोचते हुए, वो नहाके बाहर आ गया। उसने देखा उसकी मां तैयार थी। वो उसको जल्दी चलने के लिए बोली। जब जय बाहर आया तो ममता उसे ही देख रही थी। जय का गठीला बदन उसको अपने बेटे की ही ओर आकर्षित कर रहा था। उसने सिर्फ एक तौलिया लपेटा हुआ था।जय ने सफेद कुर्ता पायजामा पहना और ममता की ओर मुस्कुराके बोला कि,” माँ, चलें क्या?
ममता- हाँ, बेटा चल ना।दोनों वहां से सीधे होटल रिसेप्शन में पहुंचे, और चाबी जमा की। फिर जय ने बाहर निकलकर, ऑटो ले ली। ममता और जय दोनों मंदिर की ओर निकल पड़े। मंदिर वहां से कोई 6 कि मी दूर था। ऑटो दोनों को वहाँ पहुंचाकर, चला गया। वहां बाहर में उन्होंने फूल और प्रसाद लिए और मंदिर की ओर चल दिये। थोड़ी दूर चलने पर उन्हें लोगों की एक कतार दिखाई दी। वो दोनों लाइन में खड़े हो गए। थोड़ी देर बाद लाइन में बढ़ते हुए, वो उस द्वार के पार पहुंच गए जहां मंदिर के ऊपर बनी अश्लील और कामुक मूर्तियां तराशी हुई थी। वहां बेहद नंगी कामोत्तेजक चुदाई के आसनों में महिला और पुरुषों की कामवर्धक मूर्तियां थी। पुरुषों का लण्ड चूसते हुए, उनके साथ खड़े होक, गोद में चढ़कर चुदते हुए, एक साथ दो पुरुषों के साथ महिलाओं की यौन क्रियाएं इत्यादि सबकी तस्वीरें साफ थी। जय यही सब दिखाने लाया था, ममता को। उसने ममता की ओर देखा, तो ममता का मुंह खुला था और सर उठाये हुए वो उन सजीव प्रतिमाओं को निहार रही थी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि किसी मंदिरों के बाहर, ऐसी तस्वीरें और प्रतिमाएं भी हो सकती है। जय और ममता धीरे धीरे आगे बढ़ते गए, और कोई डेढ़ घंटे बाद उनकी बारी आई, फिर वहां पूजा करके, वो दोनों बाहर आ गए। ममता ने जय के माथे पर तिलक लगा दिया। तो जय ने ममता के पैर छू लिए। ममता ने उसे आशीर्वाद दिया, तुम्हारी हर इच्छा पूरी हो। खुश रहो।
फिर वो दोनों आसपास के और मंदिर घूमे। वहां कुछ और मंदिरों में भी वैसे ही कारीगिरी की गई थी। ममता उनको खूब गौर से देख रही थी। जय को गाइड ने बताया कि चंदेल राजाओं ने इन मंदिरों का निर्माण करवाया था, जब लोगों में ब्रह्मचर्य बढ़ने लगा, तब गृहस्थ जीवन से भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है, ये बताने के लिए। ये मंदिर इसीलिए प्रसिद्ध हैं। दोनों मा बेटे ने सारी बातें चाव से सुनी। अब चुकी दोपहर के डेढ़ बजे चुके थे, ममता ने जय से कहा कि बेटा, हमको भूख लग रही है। चलो कुछ खा लेते हैं।
जय- ठीक है, चलो हमको भी भूख लगी है। वहां सामने वाली रेस्टोरेंट में चलते हैं।
जय ममता को लेकर होटल में घुस गया। वहां दोनों एक टेबल पर बैठ गए। और खाना भी आर्डर कर दिया। ममता पानी पी रही थी, की जय के पीछे देखकर उसके मुंह से पानी निकाल गया और खांसने लगी। जय ने पीछे मुड़के देखा तो होटल की दीवारों पर वही मंदिरों पर बनी काम क्रीड़ा वाली मूर्तियों की बड़ी तस्वीरें लगी हुई थी। जय और ममता ने एक दूसरे से चुराके चारों ओर देखा तो वहां उनको हर तरफ वैसी ही तस्वीरें थी। पर ना तो जय ने कुछ कहा ना ही ममता ने। दोनों वैसे ही बैठे रहे और खाना का इंतज़ार कर रहे थे। थोड़ी देर में, खाना आया। दोनों ने जमकर पेट पूजा की और वापिस होटल आ गए।
होटल जाकर सीधा रूम गए, क्योंकि दोनों थक चुके थे। तो रेस्ट करने लगे। करीब 2 घंटे बाद ममता की आँखे खुली तो, देखा जय अभी भी सो रहा है। वो उठके बाथरूम गयी। वहां उसने साड़ी उठाके मूतने लगी। सीटी की आवाज़ के साथ मूत की धार निकलने लगी। मूतने के बाद उसने अपनी बुर को धोया, उसे एहसास हुआ कि बुर उसकी पनिया गयी थी, उन मूर्तियों को देखके। वो बुर को पकड़े हुए ही, उन प्रतिमाओं को याद करने लगी। उन नग्न नर्तकियों के काम क्रीड़ाओं और काया को याद कर, उसकी बुर पनिया गयी थी। वहीं जय का अंडरवियर रखा था, इस कामाग्नि की जलन ऐसी चढ़ी की वो अपने बेटे के अंडरवियर को अपनी बुर पर रगड़ने लगी। उसे एक लण्ड की ज़रूरत महसूस हो रही थी, पर बेचारी प्यासी औरत क्या करती? उसके नसीब में फिलहाल लण्ड नही था। थोड़ी देर में वो झड़ गयी और जय के अंडरवियर को पानी में, खंगालकर लटका दी। उसे अंदर से ग्लानि होने लगी।जब वो बाहर आई तो जय सोया हुआ था, पर उसके बरमूडा में तंबू बना हुआ था। ममता ने बहुत कोशिश की कि उसकी नज़र उसपर से हट जाए। शायद ये पहली बार था कि वो जय को एक पूर्ण पुरुष के रूप में देख रही थी।
पर तभी, रूम की घंटी बजी। ममता हड़बड़ा गयी, उसने देखा कि 5 बज चुके थे।उसने दरवाज़ा खोल तो सामने रूम सर्विस वाला था, वो चाय लेकर आया था। ममता ने उससे चाय ले ली, और दरवाज़ा बंद कर दिया। ममता ने चाय बनाई और जय को उठाया। जय उठा तो ममता ने उसे चाय दी। जय फ्रेश होकर आया तो, उसने ममता को अपने साथ बाहर चलने को कहा। मार्केट घूमने और शॉपिंग करने। जय ने हमेशा की तरह, टी शर्ट और जीन्स डाली और ममता ने नीली रंग की साड़ी। उस ब्लाउज में पीछे से पूरी पीठ नंगी थी और सिर्फ दो धागों से बंधी थी साथ ही ममता की चुच्चियाँ ऊपर से काफी हक़द तक दिख रही थी। ममता को कविता ने ही ऐसी ब्लाउज सिलवाने को कहा था, ताकि ममता देहाती बनकर ना रह जाये। ममता ने साड़ी भी काफी नीचे बांधी थी, और गाँड़ की शेप भी काफी मस्त निकलके आ रही थी। जय उसको अपनी माँ कम और बीवी की तरह ज़्यादा घुमा रहा था। ममता ने कपड़े लिए और जय कविता दोनों के लिए कपड़े लिया। अब तो पैसों की तंगी भी नही थी। ममता और जय ने लगभग बीस हज़ार की शॉपिंग की। रात के नौ बजे चुके थे। और दोनों काफी थक चुके थे। वापिस होटल किसी तरह पहुंचकर दोनों ने कमरे में ही खाना मंगा लिया।
दोनों ने खाना खाया। फिर ममता बोली- जय कल कहां जाना है?
जय- कल हम शहर से दूर वॉटरफॉल है वहां जाएंगे। और भी कई ऐतिहासिक क़िले और जगहें है। वहाँ जाएंगे।
ममता- अच्छा है।
जय- आज तुमको कैसा लगा माँ, अच्छा लगा मंदिर?
ममता- हाँ, बेटा बड़ा अच्छा था, भगवान के दर्शन हो गए। हम तो धन्य हो गए।
जय- हम जानते थे कि तुमको बहुत मज़ा आएगा। तुम आज कितना खुश लग रही हो?
ममता- हाँ, हमको आजतक कोई ऐसे घुमाने कोई नहीं लाया है। तुम पहले हो जो लेके आये हो। सच आज बड़ा अच्छा लगा।
जय- माँ अब देखना, तुमको कहाँ कहाँ घुमाते हैं। अब हम करोड़पति हैं। तुमको हमेशा ऐसे ही खुश देखना चाहते हैं।
ममता- चल अच्छा सो जाओ। रात बहुत हो गयी है और सुबह छः बजे ही निकलना है।
जय- हहम्मम्म, सही कह रही हो। तुम भी सो जाओ।
ममता- हाँ, हम कपड़ा बदल लेते हैं।
ममता ने नाइटी पहन ली और जय ने बॉक्सर।जय सिर्फ बॉक्सर में ही था। ऊपर गंजी भी नहीं पहनता था। जानबूझकर अपना लण्ड खड़ा करके, बॉक्सर में तंबू बनाके घूमता था। ताकि ममता की नज़र उसपर बराबर बनी रहे और उसके चेहरे के भाव देख पाए।
फिर दोनों अपनी अपनी साइड पकड़के सोने की कोशिश करने लगे। ममता ने गुलाबी नाइटी पहनी हुई थी। ममता की आदत थी कि सोते समय वो अपनी टांगे हाथें इधर उधर फेंकती थी।
ममता सो चुकी थी, पर जय की आँखों में नींद नहीं थी। वो करवट लेकर ममता की ओर मुड़ा। ममता की पीठ और भारी गाँड़ जय की ओर थी। जय ममता के बदन को पकड़ना चाहता था। उसका हाथ, ममता की कमर पर जाना चाहता था, पर दिमाग ने उसे रोक लिया।
ममता, तभी नींद में उसकी ओर मुड़ी, उसकी जुल्फ़े, खुल गयी थी। साथ ही उसके नाइटी के ऊपर के बटन, खुल गए थे। उसकी दांयी चुच्ची के निप्पल बस ढके थे। साथ ही उसकी बांयी टांग खड़ी थी, जिससे नाइटी बिल्कुल चिकनी और कोमल जांघों की जड़ों में लग गया था। जय को समझ नही आ रहा था कि वो अपनी माँ ममता के कपड़े संभाल दे या, ममता एक औरत को नग्न करके अपनी बना ले। तभी उसे, ममता कामोत्तेजक, अर्धनग्न नृत्यांगना सी लगने लगी, जो मंदिर की मूर्तियों पर बनी थी। उसे अब खुद को रोक पाना मुश्किल था। पता नहीं कहां से उसमे हिम्मत आयी, वो पहले थोड़ा खिसकके ममता के करीब आया। और ममता के उलझे बालों को उसके बांये कान के पीछे, लगा दिया। उसने फिर उसकी सूनी मांग को हल्के से चूम लिया। और मन ही मन निश्चय किया, की ममता की मांग, अगर कोई भरेगा तो वो ही भरेगा।
इससे पहले की वो और कुछ करता, ममता ने दूसरी ओर फिर करवट ले ली। वो मन मसोस रहा था, कि तभी उसका फोन बजा। फोन साइलेंट मोड पर था, उसने देखा कि कविता का फोन है। उसने फोन उठाया तो कविता बोली,
कविता- क्यों कुछ मामला बढ़ा कि नहीं?
जय- नहीं, अभी तक कुछ नहीं। वो धीरे से बोला।
कविता- हम तुमको कुछ बताना चाहते हैं। माँ को पटाने में तुमको मदद मिलेगा।
जय- वो क्या?
फिर दोनों के बीच करीब आधे घंटे बात हुई। जय सब सुनने के बाद अचंभित था।
Incest विधवा माँ के अनौखे लाल – maa bete ki chudai