Incest क्या…….ये गलत है?

आप अपनी कहानी में सलवार की मियानी की भी विस्तृत रूप से व्याख्या कर
जैसे कोई महिला पात्र अपनी सलवार की मियानी दिखा रही है या सलवार की म्यानी चूत के रस से गीली हो गई
सलवार चूसने लगा….सलवार की मियानी सूंघने लगा
सलवार की म्यानी के ऊपर से बुर को दबोच लिया जैसे सब्दो का प्रयोग करे और रोमांच आएगाकहानी के पात्रों जैसे कि माँ के लिए – विद्या बालन, श्री देवी, राम्या कृष्णन, रवीना tondon, रानी मुखर्जी, तब्बू, सुष्मिता सेन, माधुरी,
बहन के लिए- श्रद्धा कपूर, आलिया भट, कृति सैनन
आदि को अगर स्टोरी में व्याख्या कर दे कि इनके ऐसी दिखती है तो मजा आ जाये”तो ये बात थी दीदी। तुम ही बोलो हम कुच्छो गलत बोले थे। उसपर हमको दो थप्पड़ मारे काल रात में।” माया सुबकते हुए बोली।
ममता तुमने फिर क्या किया? शशीजी को पलट के कुछ कहा तो नहीं?
माया- नहीं दीदी, माँ के संस्कार हमको याद हैं, कैसे भी हैं पति हैं जो करेंगे ठीक ही।
ममता- चुप हो जा तूने बिल्कुल ठीक किया, रात को आने दो देवरजी को तब देखेंगे। पर उन्होंने ऐसा कुछ किया, ये हमको पता ही नहीं चला। खैर कंचन को बुला ले, साथ में खाना खाएंगे।
माया ने कंचन को आवाज़ लगाई- कंचन, अरे देखो ना कौन आया है? तेरी मौसी आयी है। आजा।
कंचन दरवाज़ा खोली और दौड़ के पास आई, ममता मौसी कैसी है तुम? कब आयी?
ममता ने उसे गले लगा लिया, और आंखों से उसके आंसू जाने लगे। मन ही मन बोली- अरे पगली, हम तुम्हारी मौसी नहीं माँ हैं।
ममता- सुबह आये हैं। तुम कहां गयी थी?
कंचन- ट्यूशन गए थे।
माया- पढाई में मन ही नही लगता है इसका तो, कब पास करेगी भगवान जाने। शादी की उम्र हो गयी है, फिर भी सहेलियों के साथ घूमती फिरती है।
ममता- चुप कर, पास हो जाएगी। हाँ पर सयानी हो गयी है। बेटी तुम्हारे लिए सलवार सूट लाये हैं।
कंचन- सच, जैसा हम बोले थे वैसा ना। दिखाओ ना मौसी।
ममता- अरे पहले खा लो।
कंचन- नहीं पहले देखेंगे।
ममता- बहुत ज़िद्दी है, जा सूटकेस में रखा है।
ममता और माया एक दूसरे को देखके मुस्कुराई, कंचन अपने कपड़े देखने चली गयी।दोनों इधर खाना खाने लगी।
कंचन ने सारे कपड़े उठाये और अपने कमरे में चली गयी। ममता और माया भी खाना खाकर आराम करने चली गयी।

कविता अपने भाई की बाहों में कोई आधा घंटा बैठी उसकी छाती पर सर रखके आराम कर रही थी। कविता की बारी थी अपना वादा निभाने की।उसने अपनी गाँड़ के छेद में उंगली घुसाई। बड़ी दिक्कत से उसकी गाँड़ में उंगली घुसी। उसने दूसरे हाथ से जय के फूले लण्ड को पकड़ा, और जय की ओर देखा। अपनी उंगली गाँड़ से निकालके उसको दिखाते हुए बोली,” जय, ये तो बहुत दिक्कत से इतना ही घुसा, तुम अपना लौड़ा कैसे घुसओगे?
जय उसकी उंगली को मुंह मे रख के चूसने लगा। कविता ने अपनी उंगली निकालनी चाही, पर जय उसकी कलाई पकड़के उसे हटाने नहीं दिया।
जय जब पूरा चूस चुका, तब बोला- क्या स्वाद है तुम्हारी गाँड़ का, बिल्कुल मीठी और स्वादिष्ट है।
कविता- छी, तुम कैसे चूस लिए। वहां से हम हगते हैं। गन्दी जगह है ना वो तो।
जय- अरे मेरी भोली दीदी, तुम्हारी कोई भी चीज़ हमको गंदी नहीं लगती। हम तो तुम्हारी पाद को भी खुसबू समझते हैं।
कविता – तुम ना पागल हो। कोई किसी की पाद का कैसे दीवाना हो सकता है।
जय कविता की गाँड़ को टटोलते हुए बोला,” तुम हो ही इस पागलपन और दीवानगी के लायक। हम तुमको अब बताएंगे, जाओ तेल लेके आओ।
कविता- तुमको जो अच्छा लगे वो करो, हम तुमको कभी नहीं रोकेंगे। आज हमारे पिछले दरवाज़े में घुसा के ही मानोगे ना। कहकर हंसते हुए उसकी गोद से उठ गई। थोड़ी देर में वो नारियल तेल लेके वापिस आयी। वो बैठने लगी तो जय ने उसे खड़े रहने को बोला।
जय- अपनी गाँड़ हमारे चेहरे के सामने लाओ, और अपने चूतड़ों को फैलाओ।
कविता जय के कहने पर वैसे ही खड़ी हो गयी। उसने कविता के चुतरो पर तीन चार थप्पड़ मारे। कविता हर थप्पड़ पर – ईशशशश कर उठती।
जय ने कविता की गाँड़ की दरार में ढेर सारा थूक डाला। वो थूक उसकी गाँड़ की दरार को गीली करते हुए में किसी नदी की तरह चूते हुए उसकी गाँड़ की छेद को गीला करने लगी। कविता उसको अपने हाथों से वहां थूक मलने लगी। जय ने उसके हाथ को वहां से हटा दिया, और अपना मुंह उसकी गाँड़ की घाटी में घुसा दिया। उसका पूरा चेहरा कविता की गाँड़ की दरार में खो गया। कविता अपने भाई के चेहरे पर गाँड़ का दबाव बढ़ाने लगी। जय के चेहरे पर गाँड़ को रगड़ने लगी। जय के मुंह से आआहह निकल रही थी, पर गाँड़ की वादियों में उसकी आहें, गूँ.. गूँ में बदल गयी थी। कविता की चुच्चियाँ कड़क हो चुकी थी, बुर से पानी निकल रहा था।
जय ने उसकी गाँड़ की छेद को अपनी जीभ से छेड़ने लगा।गाँड़ की सिंकुड़ी हुई छेद उसके मुंह मे समा जा रही थी। उसकी गाँड़ के छेद को अपनी जीभ से खोलने की कोशिश कर रहा था। धीरे धीरे गीला होने की वजह से जीभ ने थोड़ी जगह बना ली, और कविता के गाँड़ में आधा इंच प्रवेश पा लिया। जय उस जगह को चाटने लगा। चाटने क्या लगा मानो उसकी सफाई करने लगा। कविता को अपनी गाँड़ में अजीब सा आनंद महसूस हो रहा था।
कविता सिर्फ उफ़्फ़फ़फ़फ़फ़, आह आह कर रही थी। गाँड़ चटवाने में इतना आनंद मिलता है ये उसे पता नहीं था। जय तो मानो जैसे कविता की गाँड़ खा जाना चाहता था। जय ने उसे इसी तरह खड़ा रखा, और दस मिनट तक यूँही चूसता रहा। कविता ने फिर मस्ती में अपनी गाँड़ को जय के चेहरे पर दांये बायें हिलाकर रगड़ा।
फिर उसने कविता को कहा- दीदी, हम लेटते हैं। तुम हमारे मुंह पर बैठके अपनी गाँड़ को रगड़ना।जय लेट गया, और कविता उसके चेहरे के दोनों तरफ टांगे रखके, उसके मुंह पर अपनी पहाड़ जैसे गाँड़ टिका दिया। जय की नाक कविता के गाँड़ के छेद और मुंह उसकी बुर पर टिक गए। जय ने कविता को अपने चूत्तर हल्के ऊपर उठाने का इशारा किया। कविता जैसे उठी, जय ने बोला अब अपनी
गाँड़ को हमारे मुंह पर रगड़ो। कविता बोली,” ठीक है, पर वजन तो ज़्यादा नही है। तुम जब गाँड़ में जीभ घसाके चूस रहे थे, तब बड़ा मजा आ रहा था।
जय ने उसकी गाँड़ में उंगली घुसा दी, ” अभी और मज़ा आएगा तुमको, जब गाँड़ हिला हिलाके रगड़ोगी। तुम्हारे बुर और गाँड़ को एक साथ मज़ा आएगा।
कविता ने फिर गाँड़ आगे पीछे हिला हिलाके जय के चेहरे में रगड़ने लगी। कविता को इसमें सच में बड़ा आनंद आ रहा था। जय के मुंह पर रिसती हुई बुर और भूरी गाँड़ भी टकड़ा रही थी। कविता के आनंद का ठिकाना ना था।
वो जोर ज़ोर से सीत्कारे मार रही थी। बुर की लंबी चिराई जब जय के नाक को रगड़ खाती हुई, उसके मुंह से टकराती तो जय उसे चूसने लगता। फिर गाँड़ की बारी आ जाती। जिसमे जय की उंगली पहले से घुसी थी, और जय उसके सामने आते ही उंगली निकाल देता और गाँड़ चूसने लगता। फिर जैसे ही गाँड़ पीछे होती तो उसमें उंगली घुसा देता। फिर बुर की चुसाई होती। कविता ये बड़े आराम से कर रही थी। उसे इसमें बहुत मज़ा जो आ रहा था। ऐसे ही दोनों आहें और सीत्कारें भरते हुए इस आसन में आनंद के गोतें लगा रहे थे। थोड़ी देर इस तरह चुसाई के बाद जय का लौड़ा कड़क हो उठा था, और कविता भी बेहद कामुक हो उठी थी।
जय ने कविता को उठने का इशारा किया, कविता अपने बालों को दोनों हाथों से उठाते हुए खड़ी हुई । उसकी आंखों में चुदने की प्यास साफ झलक रही थी।
जय – कविता दीदी, तुम सोफे पर झुक जाओ। हम तुम्हारे गाँड़ पर तेल लगाते हैं।
कविता- जो हुकुम मेरे आका। और अपनी गाँड़ को उठाके बाहर निकाली। उसने सोफे का किनारा पकड़ रखा था। जय ने फौरन तेल की बोतल लेकर उसकी गाँड़ और अपने लण्ड पर आधी बोतल खाली कर दी। जय ने खूब सारा तेल कविता की गाँड़ के छेद और बोतल के आगे का हिस्सा संकडा होने की वजह से उसमें घुसाके उसके अंदर डाल दिया। उसने लण्ड पर भी ढेर सारा तेल लगाया था। फिर उसने कविता की गाँड़ में एक साथ दो उंगलिया घुसा दी, ताकि तेल अंदर की त्वचा पर भी अच्छे से लग जाये। अंदर तेल लगने की वजह से जय की उंगलियां आराम से अंदर बाहर कर रही थी।
जय- तुमको दर्द तो नहीं हो रहा है?
कविता- नहीं, अभी नहीं हो रहा है।
जय ने तीसरी फिर चौथी उंगली घुसा दी। कविता को दर्द महसूस हुआ,” ऊईईईई माआआआ दर्द हो रहा है।
जय ने और तेल डाला, फिर धीरे से आगे पीछे करके तेल को गाँड़ के अंदर तक पहुंचाया। कविता की गाँड़ तब रिलैक्स हुई।
जय – अब तुम अपनी गाँड़ मरवाने के लिए तैयार हो, दीदी।
कविता- हां भाई, गाँड़ में तुम्हारी चारो उंगलियां हमको महसूस हो रही है। और दर्द भी ना के बराबर है। लगता है तुम्हारा लौड़ा अब गाँड़ में घुस जाएगा।
जय- तो तैयार रहो, दीदी, अब तक बुर की सवारी की थी लण्ड ने अब तुम्हारी गाँड़ की सवारी करेगा।
जय ने उंगलियां निकाल ली, तो कविता ने जय की ओर देखके बोला,” तुमने कहा था कि हमारी गाँड़ का टेस्ट तुमको बड़ा अच्छा लगता है। हम भी टेस्ट करे ले क्या?
जय- नेकी और पूछ पूछ, ये लो दीदी चखो अपनी गाँड़ का स्वाद। ताज़ी ताज़ी उंगलियाँ, तुम्हारी गाँड़ की भट्टी से।
कविता ने जय की एक उंगली चाटी, और जीभ पर उस टेस्ट को महसूस किया। कविता ने फिर दूसरी चखी, और इस तरह सब चाट गयी। कविता फिर बोली- गाँड़ का स्वाद इतना बुरा भी नही है। इसे चूसने में मज़ा आ रहा है।
जय- ये कुछ भी नहीं है, तुमको और मज़ा आएगा, जब तुमको इसकी आदत लग जायेगी। तुम बस किसी भी चीज़ में हिचकिचाना नहीं। जो भी करने का मन हो बोल देना।
फिर जय उसके गाँड़ पर लौड़ा को सेट कर दिया। ” तुम तैयार हो दीदी, पेल दूं लौड़ा। जय बोला।
कविता- तैयार हूं पेल दो अब।जय ने लौड़ा उसकी गाँड़ के प्रवेश द्वार पर रखके ज़ोर लगाया, तो सुपाडे का आधा हिस्सा ही घुसा। अभी सब ठीक था, कविता की गाँड़ की छेद जय के सुपाडे की आकार में चिपक कर खुल रही थी। जय ने फिर ज़ोर लगाया तो कविता की चीख इस बार दर्द के मारे फूट पड़ी। उसकी गाँड़ में जय का सुपाड़ा प्रवेश कर चुका था। पर वो चिल्लाए जा रही थी। ऊउईईई, ऊऊईईईईईईईई मा माआआआ हआईईईईई रे गाँड़ फट गईईईईई, उ उ ऊऊ हहदहम्ममम्म
जय उसकी पीठ को सहला रहा था, और उसे सांत्वना दी रहा था, ” घबराओ मत दीदी थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा, बस थोड़ा बर्दाश्त करो।
कविता- बहुत दर्द हो रहा है, ऐसा लगता है गाँड़ फट गईईईईई है।
जय- अपनी गाँड़ को रिलैक्स करो, कसो मत, ढीला छोरो और सांस लो। कविता वैसा करने लगी जैसा जय बोल रहा था। थोड़ी देर बाद कविता को आराम मिला। जय ने पूछा- ठीक लग रहा है। कविता- हाँ, पहले से बेहतर अब ठीक है।
जय- देखो हम धीरे से पूरा लण्ड उतारेंगे, अब तुम्हारी गाँड़ में।
कविता- ठीक है, घुसाओ ना।
जय धीरे से प्रेशर बढ़ाता है, और धीरे से इंच भर उसकी गाँड़ में ठेलता है। कविता की गाँड़ की छेद, उसकी लण्ड की गोलाई के अनुसार ढल रही थी। इस बार उसे उतना दर्द नहीं महसूस हुआ। धीरे धीरे इंच दर इंच जय ने अपना लंड आखिरकार कविता की गाँड़ में उतार ही दिया। अब उसके आंड कविता की बुर से टकड़ा रहे थे। उसने कविता की गाँड़ में लगभग आठ इंच लंबी और तीन इंच मोटी जगह कब्ज़ा कर ली। जय अभी भी स्थिर था, वो हड़बड़ा नहीं रहा था। वो कविता के मूड में आने का वेट कर रहा था। कविता थोड़ी देर बाद पूरी तरीके से दर्दरहित होक मस्ती में आ गयी। उसने जय की ओर मुड़के बोला- जय अब तुम्हारा लण्ड गाँड़ से तालमेल बिठा चुका है। हमारे गाँड़ ने लण्ड को जगह दे दी है। तुम अब गाँड़ मारना शुरू करो।
जय- बिल्कुल दीदी, हम इसका वेट कर रहे थे कि कब तुम बोलोगी। आजके बाद देखना तुमको गाँड़ चुदाई में ही खूब मन लगेगा। तुम खुद गाँड़ मरवाने आओगी।
कविता- तो ठीक है, पर पहले गाँड़ मरवाने तो दो।
जय- ये लो। जय ने गलके हल्के धक्के लगाने शुरू किए। कविता आगे को भागी तो जय ने उसे पकड़ लिया, और खींच लिया। और फिर धक्के मारने लगा। कविता की गाँड़ जय के लण्ड को पूरा अंदर ले रही थी। कविता बीच बीच में, ऊफ़्फ़फ़, हाय ऊउईईई जैसी आवाज़ें निकाल रही थी। कविता को अब मस्ती पूरी तरह चढ़ गई थी। वो अब अपनी कमर पीछे करके धक्के ले रही थी। उसके चूत्तर भी खूब मटक रहे थे, जय के धक्कों से।
जय- अब बोलो दीदी खूब मजा आ रहा है ना, कैसा लग रहा है गाँड़ में अपने भाई का लौड़ा?
कविता- हमको पता नहीं था कि गाँड़ मरवाने में इतना मज़ा आता है, हमारे राजा भैया। क्या बात है, ऊफ़्फ़फ़?
जय- दरअसल गाँड़ में नर्व एन्डिंग्स होती है जिस वजह से गाँड़ बहुत सेंसिटिव होती है। इसलिए इसमें बुर चुदाई से भी ज़्यादा मज़ा आता है। तुमको इसीलिए अच्छा लग रहा है, हमारी रानी दीदी।
कविता- ओह्ह, अच्छा तुमको तो सब पता है। अपनी बहन की गाँड़ मारने का भी तो मज़ा दुगना होता है ना। कविता खिलखिलाकर बोली।
जय धक्के लगाते हुए बोला- वो तो है ही, तुमको भी तो मज़ा आ रहा है ना अपने छोटे भाई से गाँड़ मरवाने में।” उसकी आवाज़ में धक्के मारने की वजह से कंपन थी।
जय अब कविता के गाँड़ को पूरी रफ्तार से चोद रहा था। वो उसके चुतरो को कसके दोनों हाथों से भींच रहा था। कविता की चुच्चियाँ भी धक्कों के साथ ज़ोर से हिल रही थी।
जय- क्या मस्त चीज़ होती है, औरत की गाँड़ चलती है तो मर्दों को लुभाने का काम करती है और चुदती है तो बुर से भी ज्यादा मज़ा देती है। लण्ड को पूरे गिरफ्त में ले लेती है ये गाँड़ महारानी। हमको औरत का यही हिस्सा मस्त लगता है।
कविता- इसका मज़ा तो हर औरत को लेना चाहिए, आखिर इसमें इतना मजा जो आ रहा है।
जय- सही कहा कविता रानी, तुमको भी ये बहुत अच्छा लग रहा है। मर्दों को औरतों की गाँड़ मारने में मजा आता है और औरतों को मरवाने में।
कविता- ऊफ़्फ़फ़फ़, आआहह सही कह रहे हो भैया, उम्म्म्म्ममम्ममम्म हम लगता है झड़ने वाले हैं, कितना मज़ा आ रहा है, हाय 10 मिनट में ही झड़ जाऊंगी। आआहह ऊउईईई झाड़ गई रे ओह्ह।
जय- हां दीदी तुम्हारी गाँड़ भी बहुत कसी हुई है। हम भी ज़्यादा देर नही टिक पाएंगे। पर तुम्हारी गाँड़ को अच्छे से चोद के फैला देंगे। आज के बाद तुम अपनी गाँड़ की साइज बढ़ते हुए महसूस करोगी। दीदीssss हम झड़ने वाले हैं, आआहह…. मुंह इधर करो अपना, तुमको मूठ पीना है ना।
कवीता- हाँ, भाई हमको मूठ पिलाओ अपना, तुम्हारा ताज़ा ताज़ा मूठ। हमको वही पीना है। अपनी प्यासी बहन को पिला दो ना।” कहते हुए कविता घुटनो पर बैठ गयी।और अपना मुंह खोलके बैठ गयी, जैसे कोई कुतिया खाने के लिए मुंह खोलके जीभ बाहर लटकाती है। जय ने कविता के खुले मुंह मे उसकी गाँड़ से निकला लण्ड दे दिया। कविता को जैसे इसीकी प्रतीक्षा थी।

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