Thanksवहां से करीब 1000 कि मी दूर दिल्ली में कविता और जय एक दूसरे में खोए हुए थे। कविता जय की बाहों में बैठी थी, जय उसके गर्दन पर किस कर रहा था। जिससे कविता को गुदगुदी हो रही थी, वो बीच बीच मे खिलखिला कर हंस रही थी। कविता ने डीडी को संभाल के रख दिया था। जय- दीदी आज तो खूब मजा करेंगे। एक ही झटके में सारी गरीबी दूर हो गयी। अब देखना की हम तुमको कितना खुश रखेंगे। तुमको और माँ को कोई तकलीफ नहीं होने देंगे। अब हमलोगों की सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी।
कविता हंसकर बोली,” हाँ, जय अब तो तुम करोड़पति हो गए। ये तो हमारे बाबूजी की देन है। आज हमको खुशी मिली उस कुत्ते शशिकांत ने जिसने हमे घर से बेघर कर दिया था, अब उसको पता चलायेंगे। वो दिन हम भूल नही सकते हैं, जब उसने हमको बाहर निकाल दिया था। हम चाहते हैं कि अब तुम उसका बदला लो। पर माँ अभी भी गाँव जाती रहती है, पता नहीं क्यों, कुछ समझ नहीं आता।
जय जो ये सब सुनते हुए कविता के चेहरे और गले पर चूम रहा था बोला,” हाँ, पता नहीं माँ क्यों बार बार हर साल किसी ना किसी वजह से गांव चली जाती है। तुम तो शायद कभी नहीं जाती। खैर छोड़ो, करोड़पति तो बन गए, अब तुम अपना पति बना लो दीदी।
कविता हँस के बोली,” हम तो तुमको पति मान लिए हैं। तन मन और धन से। पर……
जय- पर क्या कविता दीदी?
कविता उसकी आँखों में झांकते हुए बोली- क्या हम दोनों शादी के बंधन में बंध पाएंगे। क्या ऐसा कभी हो पायेगा? अब माँ को डीडी के बारे में पता चलेगा, तो कहीं मेरी शादी ना कर दे? शादी हो जाएगी तो हम तुमसे दूर हो जाएंगे। तुमसे दूर अब हम रह नहीं सकते।
जय उसके होंठो को चूम के बोला- ससससस…….. हम तुमको कभी खुद से दूर नही होने देंगे। तुम हमारी हो, तुमको हम कहीं नहीं जाने देंगे। तुम हमारे लिए जन्मी हो। इस घर मे अब तक तुम हमारी दीदी बनके थी, आगे भी रहोगी, बस एक जिम्मेदारी बढ़ेगी की अब दीदी के साथ तुम बीवी की ज़िम्मेदारी भी निभाओगी। तुम्हारी शादी हमसे होगी, नहीं तो नहीं होगी।
और कविता को चूमने लगता है। कविता अपने भाई के बातों से छलकते आत्मविश्वास से प्रभावित हो चुकी थी। उसने भी जय के सर को पकड़ लिया और चूमने लगी। जय कविता के ऊपर लेटा था। कविता ने एक हाथ से जय के लण्ड को पकड़ लिया और सहलाने लगी।
जय ने कविता की आंखों में देखा, वो मदहोश हो चुकी थी। जय ने कविता को खड़े होने को कहा, और खुद उठके बैठ गया। उसने कविता के नाभि को चूमा, और उसमें जीभ घुसाके चाटने लगा। कविता खड़ी खड़ी आहें भर रही थी। वो अपने दोनों हाथ जय के कंधों पर रखी हुई थी। उसकी आंखें बंद थी, और भौएँ कामुकता से तनी हुई थी। जय ने कविता के बुर में उंगलिया घुसा रखी थी। वो कविता के बुर में तेजी से उंगलियां अंदर बाहर कर रहा था। कविता की आवाज़ें, कमरे में दीवारों को तोड़ना चाहती थी, ऊफ़्फ़फ़, आआहहहहहहहहहह…….।
जय- दीदी, इस समय क्या मस्त लग रही हो, तुम। मन कर रहा है, तुमको हमेशा ऐसे ही देखें, रुको कैमरा लेके आते हैं।
कविता जय को रोकते हुए बोली, ” जय, नहीं अभी नहीं,प्लीज बाद में इस वक़्त तो हमको तुम्हारा लौड़ा चाहिए। हम बहुत चुदासी हो गए हैं। उफ़्फ़फ़फ़फ़फ़, कितना अच्छा लग रहा है, लौड़ा डालोगे तो और मज़ा आएगा। हाय……..
जय- तुम्हारा यही एक्सप्रेशन तो चाहिए, कविता रानी। बस तुरंत आ जाऊंगा और जितना चाहोगी उतना पेलूँगा तुमको। जय ने उसकी बुर से उंगली निकाली और चाट गया। कविता चुदासी थी, वो अपने अंग अंग को खुद ही सहला रही थी। जय फौरन अपने माँ के कमरे में गया, और अलमीरा से कैमरा ले आया। कविता खड़ी खड़ी अपने बुर को मल रही थी। जय ने उसको बिना बताए कुछ फ़ोटो ली उसी अवस्था में। फिर उसने कविता को सोफे पर छत की ओर देखते हुए लेटने को कहा।
कविता सोफे पर लेट गयी, जय ने उसे सर सोफे के हैंडल पर रखने को बोला, बालों को समेटकर बाहर लटका दिए। फिर, कविता एक हाथ से अपने बुर को फैलाई और दूसरा हाथ की पहली उंगली मुंह मे दबा ली ।
परफेक्ट, जय बोला।
कविता – जय तुम अभी लण्ड दो ना हमको, प्लीज बाद में तुम अलग से फोटोज ले लेना। जैसा तुम कहोगे वैसे करेंगे।
जय- इसमें कोई शक नही है, कविता डार्लिंग पर तुम्हारे चेहरे पर अभी जो चुदने की प्राकृतिक लालसा है, तुम जितनी चुदासी हो रही है, लण्ड लेने के लिए जो तुम्हारे मन की प्यास है, ये बहुमूल्य भाव तुम्हारे चेहरे पर किसी गहने की तरह तुम्हारी अंदर की औरत को निखार रही है।
कहते हुए जय ने 4 5 तस्वीरें क्लिक की। कविता अपनी बुर को रगड़ते हुए भिन्न मुद्राओं में तस्वीर खिंचवा रही थी। जय उसकी नग्नता को तस्वीरों में कैद कर रहा था।
उसने कविता को करवट लेकर लिटाया जिससे उसकी गाँड़ जय के सामने आ गए।कविता ने जय का इशारा पाकर चूतड़ों को फैलाया। उसने कुछ और तस्वीरें ली।
फिर कविता फर्श पर घुटनो के बल बैठ गयी, और दोनों हाथों से अपनी चुच्चियों को पकड़के, जीभ बाहर निकाल ली। जय खुश होकर फोटो लेता रहा। जय ने फिर बोला,” दीदी अपने बालों को हाथों से पकड़के ऊपर उठा लो, और कैमरे की तरफ देखो, हाँ …. थोड़ा सर को झुकाओ और हाँ और चुदासी लाओ चेहरा पर, हहम्मम्म सही।
कविता ने वैसे करके पूछा – ठीक है, ये।
जय ने कविता को फिर फर्श पर कुतिया की तरह दोनों हाथ और घुटनों पर आने को कहा,” हहम्म, वाह क्या लग रही हो। अपनी पीठ झुकाओ और पीछे चूतड़ को और उठाओ।
कविता ने वैसा ही किया, इन सब के दौरान दोनों बहुत उत्तेजना में आ चुके थे। कविता करीब 15 मिनट तक जय जैसे बताता गया वैसे पोज़ देती रही। फिर कविता को ये बर्दाश्त के बाहर होने लगा।
कविता ने जय से कहा,” जय, प्लीज अब ना तड़पाओ, हमारे बुर से देखो कितना पानी चू रहा है। अपनी दीदी को इतना चुदासी कर दिए हो। हमारे अंदर लण्ड की प्यास बढ़ती जा रही है। अगर तुम नही डालोगे ना अब तो जबरदस्ती उठके बैठ जाएंगे तुम्हारे लण्ड पर। कविता मदहोश आंखों और कामुक स्वर में बोली।
जय- अच्छा, आ जाओ ये काम अभी पूरा नहीं हुआ है। तुम्हारी और तस्वीरें लेनी है। बाद में लेंगे और भी मज़ेदार तरीके से। अभी प्यास बुझा लो।
कविता कुतिया की हालत में थी, उसने जय की ओर घूमके अपने चूतड़ों पर एक कसके थप्पड़ मारा, और बोली,” दे दो अपना लौड़ा बुर में, भाई रे।
जय भी घुटनो पर आके कविता के चुतरो के पीछे आ गया, जिससे उसका लण्ड कविता के बुर से टकरा रहा था। जय ने अपने लण्ड पर थूका, और पूरा मल दिया। फिर उसने कविता के बुर पर थूका, जिसकी जरूरत नही थी क्योंकि वो पहले से ही काफी चिकनी हो चुकी थी। कविता के बुर का रंग शरीर के रंग से गहरा साँवला था, बेहद हल्के बाल होने की वजह से और भी मस्त लग रहा था। उसकी बुर चमचमा रही थी। जय ने उसकी बुर की फांकों को अलग किया, तो अंदर से गुलाबी दिखने लगा। जय ने बुर पर अपने लौड़े का शिश्न छुआ दिया। कविता की सिसकी निकल गयी। जय ने फिर उसे हटा लिया, और आगे करके फिर से छुवाया। कविता पीछे मुड़के बोली, ” हटा क्यों लिया ? जय हँसके बोला- दो ही दिन में लण्ड की आदत लग गयी है, क्या बात है?
कविता- शैतान कहीं के, दीदी को तड़पा रहे हो। अरे डालो ना ।
जय- जैसी तुम्हारी मर्ज़ी, डार्लिंग दीदी। और लण्ड को धीरे से कविता की बुर में घुसाने लगा। कविता को अपने बुर में प्रवेश करते लण्ड का एहसास बड़ा ही आनंददायक लगने लगा। उसकी मुंह से लंबी आह निकली,” आआहहहह।
जय ने लण्ड को अभी आधा ही घुसाया था, उसे अपनी बहन की बुर में लण्ड घुसाने में स्वर्ग से आनंद लग रहा था। बुर अंदर से गर्म थी, जैसे लण्ड के स्वागत के लिए बुर ने तैयारी कर रखी हो। बुर को लण्ड का पूरा पूरा एहसास हो रहा था, जय ने जैसे ही लण्ड को पूरा उतारा, की कविता उन्माद में बोली,” ऊफ़्फ़फ़फ़, कितना भरा भरा महसूस हो रहा है, आआहह। ये लण्ड आज थोड़ा बड़ा लग रहा है।
जय- लण्ड तो वही है, पर आज जो तुमने मॉडल की तरह फोटोज़ खिंचवाई है ना, उससे और कड़क हो गया है।
कविता- पता नहीं, जो भी हो लण्ड से बुर पूरा भर चुका है।जय ने कविता के बालों का गुच्छा कसके पकड़ लिया, और धक्के मारने लगा। कविता भी अपनी कमर से पीछे धक्के लगा रही थी। जय कविता को अभी प्यार से धक्के लगा रहा था। जय की नज़र कविता के गाँड़ की छेद पर गयी। उसने कविता से बिना बताए अपनी एक उंगली उसकी गाँड़ में घुसा दिया।
जय- ऊफ़्फ़फ़ ये गाँड़ कितनी टाइट है, काश हम इसमें लौड़ा घुसा पाते।
कविता की आवाज़ में धक्कों की वजह से कंपन थी,” हमको पता था कि तुम इसकी डिमांड करोगे, आजकल मर्द औरतों की बुर के साथ गाँड़ जरूर चोदते हैं। ये आजकल चुदाई का नया स्वरूप है। बुर के साथ गाँड़ कंप्लीमेंट्री चाहिए सबको। तुम भी लेना, हम मना नहीं करेंगे, पर पहले बुर की चुदाई हो जाये।
जय- ये तुमने ठीक कहा, बुर का लण्ड पर पहला हक़ है। हम भी पहले इसकी खूब चुदाई करेंगे, फिर तुम्हारी गाँड़ मारेंगे।
कविता- हमारे राजा भैया कितना मज़ा आ रहा है, खूब चोदो ऊउईईई आहहहहहह ज़ोर से चोदो ना। आह और ज़ोर से। और ज़ोर से
जय कविता के कहने पर अपनी स्पीड बढ़ाते जा रहा था। कविता मस्ती में चुदवा रही थी। इस तरह जय कविता की गाँड़ में भी उंगली तेज़ी से कर रहा था। दोनों एक दूसरे को खुश करने में लगे थे। जय ने कविता की गाँड़ से उंगली निकालके सूंघने लगा। जय ने जैसे ही उसे सूँघा मानो पागल हो उठा और खूब ज़ोरों से धक्के मारने लगा। कविता की गाँड़ की खुसबू उसे दीवाना कर गयी थी। कविता जय के बढ़े तेज धक्कों से अति कामुक हो उठी, और अपने बुर पर उसका बस ना चला। बुर धीरे से कविता को चरम सुख की ओर ले जा रही थी। जय के धक्कों से बुर के अंदर का लावा फूटने लगा। और कविता चीखते हुए झड़ गयी। जय ने महसूस किया कि बुर जैसे लण्ड को निचोड़ रही हो। उसके लण्ड पर बुर का सारा रस निकल गया, पर जय ने किसी तरह लण्ड को झड़ने से रोक ही लिया।
कविता फर्श पर ढेर हो गयी, जैसे उसके शरीर मे कुछ बाकी ही ना रहा हो। जय भी कविता के ऊपर लेट कर थोड़ी देर शांत होकर लेट गया। वो जानता था कि कविता की गाँड़ मारने में जल्दी करेगा तो ज्यादा देर तजीक नही पायेगा। कविता मुस्कुराते हुए लेटी हुई थी। जय उसके बालों को सहला रहा था। कुछ देर तक ऐसे लेटने के बाद जय उठा और फर्श पर ही बैठ गया। कविता में उठने की हिम्मत ही नही थी। जय ने उसे उठाया और अपने सीने से लगा लिया। कविता ने आंखे आधी खोली और जय को देखा, हल्का मुस्कुराई। जय – क्या बात है थक गई क्या?
कविता- उम्म्म्ममम्म…. थोड़ा सा, पर तुम्हारी इच्छा पूरी करेंगे, टेंशन ना लो।
जय- हमको कोई हड़बड़ी नहीं है, कविता दीदी।
कविता- कितने प्यारे हो तुम जय, अपनी बहन का कितना ध्यान है।
दोनों किस करने लगे।कहानी जारी रहेगी। mom son story
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