कुछ दिनों से रोहन की आंखें बहुत कुछ देख रही थी ऐसा लग रहा था कि उसका नसीब बहुत जोरों पर है क्योंकि पहले तो वह अपने आवारा दोस्तों के मुंह से गंदी गंदी बातें और उनके अंगों के बारे में सिर्फ सुना करता था लेकिन कुछ दिनों से तो उसे औरतों के अंगों का नजारा भी देखने को मिल रहा था पहले बेला कि आज नंगे बदन को देखकर वह अपनी मस्ती में खो रहा था की उसकी खूबसूरत और बेहद हसीन मां की नंगी गांड और उसकी रस से भरी हुई बुर देखने को मिल गई थी और अब बची कुची कसर… उसके दोस्त ने उसे भाभी की जबरदस्त चुदाई दिखाकर पूरी कर दिया था यही रोहन के लिए रह गया था और वह भी पूरा हो चुका था भाभी की जबरदस्ती चुदाई देखकर उसका दिमाग एकदम से व्याकुल होने लगा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें…. जिस तरह से शराबी को शराब का नशा होता है और समय पर शराब ना मिलने पर उनका दिमाग व्यग्र होने लगता है उसी तरह से रोहन के साथ भी हो रहा था… रोहन को औरतों की खूबसूरत अंगों को देखने का नशा हो चुका था और वह हमेशा इसी ताक में रहता था कि कब उसे उसकी मां की या बेला के खूबसूरत अंगो को देखने का मौका मिल जाए.. लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था क्योंकि बेला जानबूझकर रोहन से दूरी रखने लगी थी क्योंकि वह रोहन को और ज्यादा तड़पाना चाहती थी और वह अच्छी तरह से जानती थी कि यही तड़प उसके लिए फायदे कारक है और दूसरी तरफ सुगंधा को बिल्कुल भी वक्त नहीं मिलता था… क्योंकि गेहूं की कटाई हो चुकी थी और उन्हें साफ करके समय पर बाजार में उतार ना था इसलिए वह मजदूरों के साथ दिनभर खड़ी रह कर उनसे काम करवाती थी ताकि गेहूं समय पर बाजार में उतर जाए और उनके अच्छे से दाम मिल सके समय पर गेहूं बाजार में ना उतरने की वजह से सुगंधाको पहले बहुत घाटा सहना पड़ा था और वह नहीं चाहती थी कि इस बार ऐसा हो इसलिए वह अपने समय घर पर कम और खेतों में ज्यादा बिता रही थी….
कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए रोहन की आंखों को ठंडक और बदन को गर्माहट मिल सके ऐसा नजारा देखने को नहीं मिला और दूसरी तरफ सुगंधा गेहूं को समय पर बाजार में उतार कर एकदम निश्चिंत हो गई थी. … रोहन की तड़प और उसकी उत्सुकता को बेला अच्छी तरह से भाप गई थी मैं समझ गई थी कि रोहन आते जाते जिस तरह से उसकी तरफ नजरें दौड़ाता है… वह अपनी नजरों से उसके गुप्त अंगो को टटोलना चाहता था और वह अपनी मंशा पूरी नहीं कर पा रहा था जिस की प्यास उसकी आंखों में बेला को साफ नजर आती थी अब समय आ गया था गर्म लोहे लोहे पर हथोड़ा मारने का……
दोपहर का समय था आसमान में सूरज तप रहा था तपती धूप की वजह से गांव में सन्नाटा फैला हुआ था लोग अपने अपने घरों में धूप से बचने के लिए आराम कर रहे थे…..
और ऐसी तपती हुई दोपहर में बेला जानबूझकर घर के पीछे बने हेडपंप के पास बैठकर कपड़े धो रही थी बेला को इस बात का पता था कि इस समय रोहन इसी रास्ते से होकर अपने दोस्तों के पास जाएगा क्योंकि यह उसका रोज का काम था….
देना आज उसे अपने अंगों का प्रदर्शन दिखा कर रोहन को एकदम अपने बस में कर लेना चाहती थी…. इसलिए तो वह अपने ब्लाउज के ऊपर के दो बटन खोल चुकी थी जिसकी वजह से उसकी आधे से ज्यादा चूचियां बाहर नजर आ रही थी…
और तो और_ बेला आज रोहन को एकदम कामा तुर बना देने के उद्देश्य से अपनी दोनों टांगों को थोड़ा सा फैला कर अपने घुटने को मोड़कर बेठी थी और अपनी पेटीकोट को घुटनों से नीचे सरका दी थी…. जिसकी वजह से उसकी मोटी मोटी मांसल जांगे साफ नजर आ रही थी…..
बेला जानबूझकर कपड़ों को धोते-धोते अपने ऊपर भी पानी डाल दे रही थी…..
भेनचोद कितनी बार झड़ गया कहानी पढ़ते पढ़ते