Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन – Part 1 – Hindi Sex Story

यह सुनकर कर्नल साहब की आँखों में आँसू भर आये। उन्होंने कभी सोचा नहीं था की वास्तव में कोई उनसे इतना प्रेम कर सकता है। उन्होंने सुनीता को अपनी बाँहों में कस के जकड़ा और बोले, “सुनीता, मैं तुम्हें कोई भी रूप में कैसे भी अपनी ही मानता हूँ।”

सुनीता ने अपनी दोनों बाँहें जस्सूजी के गले में डालीं और थोड़ा ऊपर की और खिसक कर सुनीता ने अपने होँठ जस्सूजी के होँठ पर चिपका दिए। जस्सूजी भी पागल की तरह सुनीता के होठों को चूसने और चूमने लगे। उन्होंने सुनीता की जीभ को अपने मुंह में चूस लिया और जीभ को वह प्यार से चूसने लगे और सुनीता के मुंह की सारी लार वह अपने मुंह में लेकर उसे गले के निचे उतारकर उसका रसास्वादन करने लगे। उन्हें ऐसा महसूस हुआ की सुनीता ने उनसे नहीं चुदवाया फिर भी जैसे उन्हें सुनीता का सब कुछ मिल गया हो।

जस्सूजी गदगद हो कर बोले, “मेरी प्यारी सुनीता, चाहे हमारे मिले हुए कुछ ही दिन हुए हैं, पर मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम मेरी कई जीवन की संगिनीं हो।”

सुनीता ने जस्सूजी की नाक अपनी उँगलियों में पकड़ी और हँसती हुई बोली, “मैं कहीं ज्योतिजी का हक़ तो नहीं छीन रही?”

जस्सूजी ने भी हंस कर कहा, “तुम बीबी नहीं साली हो। और साली आधी घरवाली तो होती ही है ना? ज्योति का हक़ छीनने का सवाल ही कहाँ है?”

सुनीता ने जस्सूजी की टाँगों के बिच हाथ डालते हुए कहा, “जस्सूजी, आप मुझे एक इजाजत दीजिये। एक तरीके से ना सही तो दूसरे तरीके से आप मुझे आपकी कुछ गर्मी कम करने की इजाजत तो दीजिये। भले मैं इसमें खुद वह आनंद ना ले पाऊं जो मैं लेना चाहती हूँ पर आपको तो कुछ सकून दे सकूँ।”

जस्सूजी कुछ समझे इसके पहले सुनीता ने जस्सूजी की दो जॉंघों के बिच में से उनका लण्ड पयजामे के ऊपर से पकड़ा। सुनीता ने अपने हाथ से पयजामा के बटन खोल दिए और उसके हाथ में जस्सूजी इतना मोटा और लम्बा लण्ड आ गया की जिसको देख कर और महसूस कर कर सुनीता की साँसे ही रुक गयीं। उसने फिल्मों में और सुनील जी का भी लंड देखा था। पर जस्सूजी का लण्ड वाकई उनके मुकाबले कहीं मोटा और लंबा था। उसके लण्ड के चारों और इर्दगिर्द उनके पूर्वश्राव पूरी चिकनाहट फैली हुई थी।

सुनीता की हथेली में भी वह पूरी तरहसे समा नहीं पाता था। सुनीता ने उसके इर्दगिर्द अपनी छोटी छोटी उंगलियां घुमाईं और उसकी चिकनाहट फैलाई। अगर उसकी चूतमें ऐसा लण्ड घुस गया तो उसका क्या हाल होगा यह सोच कर ही वह भय और रोमांच से कांपने लगी। उसे एक राहत थी की उसे उस समय वह लण्ड अपनी चूत में नहीं लेना था।

सुनीता सोचने लगी की ज्योतिजी जब जस्सूजी से चुदवाती होंगी तो उनका क्या हाल होता होगा? शायद उनकी चूत रोज इस लण्ड से चुद कर इतनी चौड़ी तो हो ही गयी होगी की उन्हें अब जस्सूजी के लण्ड को घुसाने में उतना कष्ट नहीं होता होगा जितना पहले होता होगा।

सुनीता ने जस्सूजी से कहा, “जस्सूजी, हमारे बिच की यह बात हमारे बिच ही रहनी चाहिए। हालांकि मैं किसीसे और ख़ास कर मेरे पति और आपकी पत्नी से यह बात छुपाना नहीं चाहती। पर मैं चाहती हूँ की यह बात मैं उनको सही वक्त आने पर कह सकूँ। इस वक्त मैं उनको इतना ही इशारा कर दूंगी की सुनीलजी ज्योतिजी के साथ अपना टाँका भिड़ा सकते हैं। डार्लिंग, आपको तो कोई एतराज नहीं ना?”

जस्सूजी ने हँसते हुए कहा, “मुझे कोई एतराज नहीं। मैं तुम्हारा यानी मेरी पारो का देवदास ही सही पर मैं मेरी चंद्र मुखी को सुनीलजी की बाँहों में जाने से रोकूंगा नहीं। मेरी तो वह है ही।”

सुनीता को बुरा लगा की जस्सूजी ने बात ही बात में अपने आपकी तुलना देवदास से करदी। उसे बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की वह जस्सूजी की उसे चोदने की मन की चाह पूरी नहीं कर पायी और उसके मन की जस्सूजी से चुदवाने की चाह भी पूरी नहीं कर पायी पर उसने मन ही मन प्रभु से प्रार्थना की की “हे प्रभु, कुछ ऐसा करो की साँप भी मरे और लाठी भी ना टूटे। मतलब ऐसा कुछ हो की जस्सूजी सुनीता को चोद भी सके और माँ का वचन भंग भी ना हो।”

पर सुनीता यह जानती थी की यह सब तो मन का तरंग ही था। अगर माँ ज़िंदा होती तो शायद सुनीता उनसे यह वचन से उसे मुक्त करने के लिए कहती पर माँ का स्वर्ग वास हो चुका था। इस कारण अब इस जनम में तो ऐसा कुछ संभव नहीं था। रेल की दो पटरियों की तरह सुनीता को इस जनम में तो जस्सूजी का लण्ड देखते हुए और महसूस करते हुए भी अपनी चूत में डलवाने का मौक़ा नहीं मिल पायेगा। यह हकीकत थी।

सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड अपनी छोटी छोटी हथेलियों में लिया और उसे सहलाने और हिलाने लगी। वह चाहती थी की जस्सूजी का वीर्य स्खलन उसकी उँगलियों में हो और वह भले ही उस वीर्य को अपनी चूत में ना डाल सके पर जस्सूजी की ख़ुशी के लिए वह उस वीर्य काआस्वादन जरूर करेगी।

सुनीता ने जस्सूजी के लण्ड को पहले धीरे से और बाद में जैसे जैसे जस्सूजी का उन्माद बढ़ता गया, वैसे वैसे जोर से हिलाने लगी। साथ साथ में सुनीता और जस्सूजी मुस्काते हुए एक प्यार भरे प्रगाढ़ चुम्बन में खो गए। कुछ मिनटों की ही बात थी प्यार भरी बातें और साथ साथ में सुनीता की कोमल मुठी में मुश्किल से पकड़ा हुआ लम्बे घने सख्त छड़ जैसा जस्सूजी का लण्ड जोरसे हिलाते हिलाते सुनीता की बाहें भी थक रही थीं तब जस्सूजी का बदन एकदम अकड़ गया।

उन्होंने सुनीता के स्तनों को जोरसे दबाया और “ओह… सुनीता… तुम कमाल हो…” कहते हुए अचानक ही जस्सूजी के लण्ड के छिद्र से जैसे एक फव्वारा फूट पड़ा जो सुनीता के चेहरे पर ऐसे फ़ैल गया जैसे सुनीता का चेहरा कोई मलाई से बना हो। उस दिन सुबह ही सुबह सुनीता ने ब्रेकफास्ट में वह नाश्ता किया जो उसने पहले कभी नहीं किया था।

सुनीता ने जस्सूजी से एक वचन माँगते हुए कहा, “जस्सूजी मैं और आप दोनों, आपकी पत्नी ज्योतिजी को और मेरे पति सुनील को हमारे बिच हुई प्रेम क्रीड़ा के बारे में कुछ भी नहीं बताएँगे। वैसे तो उनसे छुपाने वाली ऐसी कोई बात तो हुई ही नहीं जिसे छिपाना पड़े पर जो कुछ भी हुआ है उसे भी हम जाहिर नहीं करेंगे। मैं हमारे बिच हुई प्रेम क्रीड़ा को मेरे पति सुनील और आप की पत्नी ज्योतिजी से छिपा के रखना चाहती हूँ ताकि सही समय पर उन्हें मैं इसे धमाके से पेश करुँगी की दोनों चौंक जाएंगे और तब बड़ा मजा आएगा।”

कर्नल साहब सुनीता की और विस्मय से जब देखने लगे तब सुनीता ने जस्सूजी का हाथ थाम कर कहा, “आप कैसे क्या करना है वह सब मुझ पर छोड़ दीजिये। मैं चाहती हूँ की आपकी पत्नी और मेरी दीदी ज्योतिजी से मेरे पति सुनीलजी का ऐसा धमाकेदार मिलन हो की बस मजा आ जाये!”

सुनीता का आगे बोलते हुए मुंह खिन्नता और निराशा से मुरझा सा गया जब वह बोली, “मेरे कारण मैं आपको चरम पर ले जा कर उस उन्मादपूर्ण सम्भोग का आनंद नहीं दे पायी जहां मेरे साथ मैं आपको ले जाना चाहती थी। पर मैं चाहती हूँ की वह दोनों हमसे कहीं ज्यादा उस सम्भोग का आनंद लें, उनके सम्भोग का रोमांच और उत्तेजना इतनी बढ़े की मजा आ जाए। इस लिए जरुरी है की हम दोनों ऐसा वर्तन करेंगे जैसे हमारे बीच कुछ हुआ ही नहीं और हम दोनों एक दूसरे के प्रति वैसे ही व्यवहार करेंगे जैसे पहले करते थे। आप ज्योतिजी से हमेशा मेरे बारे में ऐसे बात करना जैसे मैं आपके चुंगुल में फँसी ही नहीं हूँ।”

जस्सूजी ने सुनीता अपनी बाहों में ले कर कहा, “बात गलत भी तो नहीं है। तुम इतनी मानिनी हो की मेरी लाख मिन्नतें करने पर भी तुम कहाँ मानी हो? आखिरकार तुमने अपनी माँ का नाम देकर मुझे अंगूठा दिखा ही दिया ना?”

जब सुनीता यह सुनकर रुआंसी सी हो गयी, तो जस्सूजी ने सुनीता को कस कर चुम्बन करते हुए कहा, “अरे पगली, मैं तो मजाक कर रहा था। पर अब जब तुमने हमारी प्रेम क्रीड़ा को एक रहस्य के परदे में रखने की ठानी ही है तो फिर मैं एक्टिंग करने में कमजोर हूँ।

मैं अब मेरे मन से ऐसे ही मान लूंगा की जैसे की तुमने वाकई में मुझे अंगूठा दिखा दिया है और मेरे मन में यह रंजिश हमेशा रखूँगा और हो सकता है की कभी कबार मेरे मुंहसे ऐसे कुछ जले कटे शब्द निकल भी जाए। तब तुम बुरा मत मानना क्यूंकि मैं अपने दिमाग को यह कन्विंस कर दूंगा की तुम कभी शारीरिक रूप से मेरे निकट आयी ही नहीं और आज जो हुआ वह हुआ ही नहीं। आज जो हुआ उसे मैं अपनी मेमोरी से इरेज कर दूंगा, मिटा दूंगा। ठीक है? तुम भी जब मैं ऐसा कुछ कहूं या ऐसा वर्तन करूँ तो यह मत समझना की मैं वाकई में ऐसा सोचता हूँ। पर ऐसा करना तो पडेगा ही। तो बुरा मत मानना, प्लीज?”

जस्सूजी ने फिर थम कर थोड़ी गंभीरता से सुनीता की और देख कर कहा, “पर जानूं, मैं भी आज तुमसे एक वादा करता हूँ। चाहे मुझे अपनी जान से ही क्यों ना खेलना पड़े, अपनी जान की बाजी क्यों ना लगानी पड़े, एक दिन ऐसा आएगा जब तुम सामने चल कर मेरे पास आओगी और मुझे अपना सर्वस्व समर्पण करोगी।

मैं अपनी जान हथेली में रख कर घूमता हूँ। मेरे देश के लिए इसे मैंने आज तक हमारी सेना में गिरवी रखा था। अब मैं तुम्हारे हाथ में भी इसे गिरवी रखता हूँ। अगर तुम राजपूतानी हो तो मैं भी हिंदुस्तानी फ़ौज का जाँबाज़ सिपाही हूँ। मैं तुम्हें वचन देता हूँ की जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक मैं तुम पर अपना वचन भंग करने का कोई मानसिक दबाव नहीं बनाऊंगा। इतना ही नहीं, मैं तुम्हें भी कमजोर नहीं होने दूंगा की तुम अपना वचन भंग करो।”

सुनीता ने जब जस्सूजी से यह वाक्य सुने तो वह गदगद हो गयी। सुनीता के हाथ में जस्सूजी का आधा तना हुआ लंड था जिसे वह प्यार से सेहला रही थी। अचानक ही सुनीता के मन में क्या उफान आया की वह जस्सूजी के लण्ड पर झुक गयी और उसे चूमने लगी। सुनीता की आँखों में आँसू छलक रहे थे।

सुनीता जस्सूजी के लण्ड को चूमते हुए और उनके लण्ड को सम्बोधित करते हुए बोली, “मेरे प्यारे जस्सूजी के प्यारे सिपाही! मुझे माफ़ करना की मैं तुम्हें तुम्हारी सहेली, जो मेरी दो जॉंघों के बिच है, उसके घर में घुस ने की इजाजत नहीं दे सकती। तुम मुझे बड़े प्यारे हो। मैं तुम्हें तुम्हारी सहेली से भले ही ना मिला पाऊँ पर मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ।”

सुनीता ने जस्सूजी के पॉंव सीधे किये और फिर से सख्त हुए उनके लण्ड के ऊपर अपना मुंह झुका कर लण्ड को अपने मुंह में लेकर उसे चूमने और चूसने लगी। हर बार जब भी वह जस्सूजी के लण्ड को अपने मुंह से बाहर निकालती तो आँखों में आँसूं लिए हुए बोलती, “मुझे माफ़ करना मेरे जस्सूजी के दूत, मुझे माफ़ करना। मैं तुम्हें तुम्हारी सखी से मिला नहीं सकती।”

सुनीता ने फिर से जस्सूजी के लण्ड को कभी हाथों से तो कभी मुंह में चूस कर और हिला कर इतना उन्माद पूर्ण और उत्तेजित किया की एक बार फिर जस्सूजी का बदन ऐसे अकड़ गया और एक बार फिर जस्सूजी के लण्ड के छिद्र में से एक पिचकारी के सामान फव्वारा छूटा और उस समय सुनीता ने उसे पूरी तरह से अपने मुंह में लिया और उसे गटक गटक कर पी गयी। उस दिन तक सुनीता ने कभी कभार अपने पति का लंड जरूर चूमा था और एक बार हल्का सा चूसा भी था, पर उनका वीर्य अपने मुंह में नहीं लिया था। सुनीता को ऐसा करना अच्छा नहीं लगता था। पर आज बिना आग्रह किये सुनीता ने अपनी मर्जी से जस्सूजी का पूरा वीर्य पी लिया। सुनीता को उस समय जरासी भी घिन नहीं हुई और शायद उसे जस्सूजी के वीर्य का स्वाद अच्छा भी लगा।

कहते हैं ना की अप्रिय का सुन्दर चेहरा भी अच्छा नहीं लगता पर अपने प्रिय की तो गाँड़ भी अच्छी लगती है।

काफी देर तक सुनीता आधे नंगे जस्सूजी की बाँहों में ही पड़ी रही। अब उसे यह डर नहीं था की कहीं जस्सूजी उसे चुदने के लिए मजबूर ना करे।जस्सूजी के बदन की और उनके लण्ड की गर्मी सुनीता ने ठंडी कर दी थी। जस्सूजी अब काफी अच्छा महसूस कर रहे थे। सुनीता उठ खड़ी हुई और अपनी साडी ठीक ठाक कर उसने जस्सूजी को चूमा और बोली, “जस्सूजी, मैं एक बात आपसे पूछना भूल ही गयी। मैं आपसे यह पूछना चाहती थी की आप कुछ वास्तव में छुपा रहे हो ना, उस पीछा करने वाले व्यक्ति के बारे में? सच सच बताना प्लीज?”

कर्नल साहब ने सुनीता की और ध्यान से देखा और थोड़ी देर मौन हो गए, फिर गंभीरता से बोले, “देखो सुनीता, मुझे लगता है शायद यह सब हमारे मन का वहम था। जैसा की आपके पति सुनीलजी ने कहा, हमें उसे भूल जाना चाहिए।”

सुनीता को फिर भी लगा की जस्सूजी सारी बात खुलकर बोलना उस समय ठीक नहीं समझते और इस लिए सुनीता ने भी उस बात को वहीँ छोड़ देना ही ठीक समझा।

उस सुबह के बाद कर्नल साहब और सुनीता एक दूसरे से ऐसे वर्तन करने लगे जैसे उस सुबह उनके बिच कुछ हुआ ही नहीं और उनके बिच अभी दूरियां वैसे ही बनी हुई थीं जैसे पहले थीं।

पहाड़ों में छुट्टियां मनाने जाने का दिन करीब आ रहा था। सुनीता अपने पति सुनीलजी के साथ पैकिंग करने और सफर की तैयारी करने में जुट गयी। दोनों जोड़ियों का मिलना उन दिनों हुआ नहीं। फ़ोन पर एक दूसरे से वह जरूर सलाह मशवरा करते थे की तैयारी ठीक हो रही है या नहीं।

एक बार जब सुनीता ने जस्सूजी को फ़ोन कर पूछा की क्या जस्सूजी ज्योतिजी छुट्टियों में जाने के लिए पूरी तरह से तैयार थे, तो जस्सूजी ने सुनीता को फ़ोन पर ही एक लंबा चौड़ा भाषण दे दिया।

कर्नल साहब ने कहा, “सुनीता मैं आप और सुनीलजी से यह कहना चाहता हूँ की यह कोई छुट्टियां मनाने हम नहीं जा रहे। यह भारतीय सेना का भारत के युवा नागरिकों के लिए आतंकवाद से निपटने में सक्षम बनाने के लिए आयोजित एक ट्रेनिंग प्रोग्राम है। इस में सेना के कर्मचारियों के रिश्तेदार और मित्रगण ही शामिल हो सकते हैं। इस प्रोग्राम में शामिल होने के किये जरुरी राशि देने के अलावा सेना के कोई भी आला अधिकारी की सिफारिश भी आवश्यक है। सब शामिल होने वालों का सिक्योरिटी चेक भी होता है।

इस में रोज सुबह छे बजे कसरत, पहाड़ों में ट्रेक्किंग (यानी पहाड़ चढ़ना या पहाड़ी रास्तों पर लंबा चलना), दोपहर आराम, शाम को आतंकवाद और आतंक वादियों पर लेक्चर और देर शाम को ड्रिंक्स, डान्स बगैरह का कार्यक्रम है। हम छुट्टियां तो मनाएंगे ही पर साथ साथ आम नागरिक आतंकवाद से कैसे लड़ सकते हैं या लड़ने में सेना की मदद कैसे कर सकते हैं उसकी ट्रेनिंग दी जायेगी। मैं भी उन ट्रैनिंग के प्रशिक्षकों में से एक हूँ। आपको मेरा लेक्चर भी सुनना पडेगा।”

सुनीलजी को यह छुट्टियां ज्योतिजी के करीब जानेका सुनहरा मौक़ा लगा। साथ साथ वह इस उधेड़बुन में भी थे की इन छुट्टियों में कैसे सुनीता और जस्सूजी को एक साथ किया जाए की जिससे उन दोनों में भी एक दूसरे के प्रति जबरदस्त शारीरिक आकर्षण हो और मौक़ा मिलते ही दोनों जोड़ियों का आपस में एक दूसरे के जोड़ीदार से शारीरिक सम्भोग हो।

वह इस ब्रेक को एक सुनहरी मौक़ा मान रहे थे। जिस दिन सुबह ट्रैन पकड़नी थी उसके अगले दिन रात को बिस्तर में सुनीलजी और सुनीता के बिच में कुछ इस तरह बात हुई।

सुनीलजी सुनीता को अपनी बाहों में लेकर बोले, “डार्लिंग, कल सुबह हम एक बहुत ही रोमांचक और साहसिक यात्रा पर निकल रहे हैं और मैं चाहता हूँ की इसे और भी उत्तेजक और रोमांचक बनाया जाए।” यह कह कर सुनीलजी ने अपनी बीबी के गाउन के ऊपर से अंदर अपना हाथ डालकर सुनीता के बूब्स को सहलाना और दबाना शुरू किया।

सुनीता मचलती हुई बोली, “क्या मतलब?”

सुनीलजी ने सुनीता की निप्पलों को अपनी उँगलियों में लिया और उन्हें दबाते हुए बोले, “हनी, हमने जस्सूजी को आपको पढ़ाने के लिए जो योगदान दिया है उसके बदले में कुछ भी तो नहीं दिया। हाँ यह सच है की उन्होंने भी कुछ नहीं माँगा। ना ही उन्होंने कुछ माँगा और नाही हम उन्हें कुछ दे पाए हैं। तुम भी अच्छी तरह जानती हो की जस्सूजी से हम गलती से भी पैसों की बात नहीं कर सकते। अगर उन्हें पता लगा की हमने ऐसा कुछ सोचा भी था तो वह बहुत बुरा मान जाएंगे।

फिर हम करें तो क्या करें? तो मैंने एक बात सोची है। पता नहीं तुम मेरा समर्थन करोगी या नहीं।

हम दोनों यह जानते हैं की जस्सूजी वाकई तुम पर फ़िदा हैं। यह हकीकत है और इसे छिपाने की कोई जरुरत नहीं है। मुझे इस बात पर कोई एतराज नहीं है। हम जवान हैं और एक दूसरे की बीबी या शौहर के प्रति कुछ थोड़ा बहोत शारीरिक आकर्षण होता है तो मुझे उसमें कोई बुराई नहीं लगती।

अपने पति की ऐसे बहकाने वाली बात सुनकर सुनीता की साँसे तेज हो गयीं। उसे डर लगा की कहीं उसके पति को सुनीता की जस्सूजी के साथ बितायी हुई उस सुबह का कुछ अंदाज तो नहीं हो गया था? शायद वह बातों ही बातों में इस तरह उसे इशारा कर रहे थे। सुनीलजी ने शायद सुनीता की हालत देखि नहीं।

अपनी बात चालु रखते हुए वह बोले, “मैं ऐसे कई कपल्स को जानता हूँ जो कभी कभार आपसी सहमति से या जानबूझ कर अनजान बनते हुए अपनी बीबी या शौहर को दूसरे की बीबी या शौहर से शारीरिक सम्बन्ध रखने देते हैं। फिरभी उनका घरसंसार बढ़िया चलता है, क्यूंकि वह अपने पति या पत्नी को बहोत प्यार करते हैं। उन्हें अपने पति या पत्नी में पूरा विश्वास है की जो हो रहा है वह एक जोश और शारीरिक उफान का नतीजा है। वक्त चलते वह उफान शांत हो जाएगा। इस कारण जो हो रहा है उसे सहमति देते हैं या फिर जानते हुए भी अपने शोहर या बीबी की कामना पूर्ति को ध्यान में रखे हुए ऑंखें मूँद कर उसे नजरअंदाज करते हैं।

जस्सूजी तुम्हारी कंपनी एन्जॉय करते हैं यह तो तुम भी जानती हो। में चाहता हूँ की इस टूर में तुम जस्सूजी के करीब रहो और उन्हें कंपनी दे कर कुछ हद तक उनके मन में तुम्हारी कंपनी की जो इच्छा है उसे पूरी करो। अगर तुम्हें जस्सूजी के प्रति शारीरिक आकर्षण ना भी हो तो यह समझो की तुम कुछ हद तक उनका ऋण चुका रही हो।”

पति की बात सुनकर सुनीता गरम होने लगी। सुनीता के पति सुनीता को वह पाठ पढ़ा रहे थे जिसमें सुनीता ने पहले ही डिग्री हासिल कर ली थी। उसके बदन में जस्सूजी के साथ बितायी सुबह का रोमांच कायम था। वह उसे भूल नहीं पा रही थी। अपने पति की यह बात सुन कर सुनीता की चूत गीली हो गयी। उसमें से रस रिसने लगा। सुनीता ने पति सुनील के पायजामे का नाड़ा खोला और उसमें हाथ डाल कर वह अपने पति का लण्ड सहलाने लगी। तब उसे जस्सूजी का मोटा और लंबा लण्ड जैसे अपनी आँखों के सामने दिखने लगा।

अनायास ही सुनीता अपने पति के लण्ड के साथ जस्सूजी के लण्ड की तुलना करने लगी। सुनीलजी का लण्ड काफी लंबा और मोटा था और जब तक सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड नहीं महसुस किया था तब तक तो वह यही समझ रही थी की अपने पति सुनीलजी के लण्ड जितना लंबा और मोटा शायद ही किसी मर्द का लण्ड होगा। पर जस्सूजी का लण्ड देखने के बाद उसकी गलतफहमी दूर हो गयी थी। हो सकता है की जस्सूजी के लण्ड से भी लंबा और मोटा किसी और मर्द का लण्ड हो। पर सुनीता यह समझ गयी थी की किसी भी औरत की पूर्णतयः कामुक संतुष्टि के लिए के लिए जस्सूजी का लण्ड ना सिर्फ काफी होगा बल्कि शुरू शुरू में काफी कष्टसम भी हो सकता है। यही बात ज्योतिजी ने भी तो सुनीता को कही थी।

अपनी कामुकता को छिपाते हुए स्त्री सुलभ लज्जा के नखरे दिखाते हुए सुनीता ने अपने पति के लण्ड को हिलाना शुरू किया और बोली, “देखो जानू! मुझसे यह सब मत करवाओ। मुझे तुम अपनी ही रहने दो। तुम जो सोच रहे या कह रहे हो ऐसा सोचने से या करने से गड़बड़ हो सकती है। तुम जस्सूजी को तो भली भांति जानते हो ना? तुम्हें तो पता है, उस दिन सिनेमा हॉल में क्या हुआ था?

तुम्हारे जस्सूजी कितने उत्तेजित हो गए थे और मेरे साथ क्या क्या करने की कोशिश कर रहे थे और मैं भी उन्हें रोक नहीं पा रही थी? वह तो अच्छा था की हम सब इतने बड़े हॉल में सब की नज़रों में थे। वरना पता नहीं क्या हो जाता? हाँ मैं यह जानती हूँ की तुम ज्योतिजी पर बड़ी लाइन मार रहे हो और उन्हें अपने चंगुल में फाँसने की कोशिश कर रहे हो। तो मैं तुम्हें पूरी छूट देती हूँ की यदि उन दोनों को इसमें कोई आपत्ति नहीं है तो तुम खूब उनके साथ घूमो फिरो और जो चाहे करो। मुझे उसमें कोई आपत्ति नहीं है।”

सुनीता की धड़कन तेज हो गयी थीं। वह अपने पति के ऊपर चढ़ गयी। उनके होँठों पर अपने होँठ रख कर सुनीता उनको गहरा चुम्बन करने लगी। सुनीता का अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही थी।

पर सुनीता को आखिर अपने आप पर नियत्रण तो रखना ही पडेगा। उसने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, “जहां तक जस्सूजी का ऋण चुकाने का सवाल है तो जैसे आप कहते हो अगर ज्योतिजी को एतराज नहीं हो तो मैं जस्सूजी का पूरा साथ दूंगी, पर तुम मुझसे यह उम्मीद मत रखना की मैं उससे कुछ ज्यादा आगे बढ़ पाउंगी। तुम मेरी मँशा और मज़बूरी भली भाँती जानते हो।”

सुनील ने निराशा भरे स्वर में कहा, “हाँ मैं जानता हूँ की तुम अपनी माँ से वचनबद्ध हो की तुम सिर्फ उसीको अपना सर्वस्व अर्पण करोगी जो तुम पर जान न्योछावर करता है। खैर तुम उन्हें कंपनी तो दे ही सकती हो ना?”

सुनीता ने अपने पति की नाक, कपाल और बालों को चुम्बन करते हुए कहा, अरे भाई कंपनी क्या होती है? हम सब साथ में ही तो होंगे ना? तो फिर मैं उन्हें कैसे कंपनी दूंगी? कंपनी देने का तो सवाल तब होता है ना अगर वह अकेले हों?”

सुनील ने अपनी पत्नी के मदमस्त कूल्हों पर अपनी हथेली फेरते हुए और उसकी गाँड़ के गालोँ को अपनी उँगलियों से दबाते हुए कहा, “अरे मेरी बुद्धू बीबी, मेरे कहने का मतलब है दिन में या इधर उधर घूमते हुए, जब हम सब अलग हों या साथ में भी हों तब भी तुम जस्सूजी के साथ रहना , मैं ज्योतिजी के साथ रहूंगा। हम हमारा क्रम बदल देंगे। रात में तो फिर हम पति पत्नी रोज की तरह एक साथ हो ही जाएंगे ना? इसमें तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं?”

सुनीता ने टेढ़ी नजरों से अपने पति की और देखा और शरारत भरी आँखें नचाते हुए पूछा, “क्यों मियाँ? रात को क्या जरुरत है अपनी बीबी के पास आने की? रात को भी अपनी ज्योति के साथ ही रहना ना?”

सुनीलजी ने भी उसी लहजे में जवाब देते हुए कहा, “अच्छा, मेरी प्यारी बीबी? रात में तुम मुझे ज्योतिजी के साथ रहने के लिए कह कर कहीं तुम अपने जस्सूजी के साथ रात गुजारने का प्लान तो नहीं बना रही हो?”अपने पति की वही शरारत भरी मुस्कान और करारा जवाब मिलने पर सुनीता कुछ झेंप सी गयी। उसके गाल शर्म से लाल हो गए। अपनी उलझन और शर्मिंदगी छिपाते हुए सुनील की कमर में एक हल्काफुल्का नकली घूँसा मारती हुई अपनी आँखें निचीं करते हुए सुनीता बोली, “क्या बकते हो? मेरा कहने का मतलब ऐसा नहीं था। खैर, मजाक अपनी जगह है। मुझे जस्सूजी को कंपनी देने में क्या आपत्ति हो सकती है? मुझे भी उनके साथ रहना, घूमना फिरना, बातें करना अच्छा लगता है। आप जैसा कहें। मैं जरूर जस्सूजी को कंपनी दूंगी। पर रात में मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी हाँ!”

सुनीलजी ने अपनी बीबी सुनीता को अपनी बाँहों में भरते हुए सुनीता का गाउन दोनों हाथों में पकड़ा और कहा, “अरे भाई, वह तो तुम रहोगी ही। मैं भी तो तुम्हारे बगैर अपनी रातें उन वादियों में कैसे गुजारूंगा? मुझसे तो तुम्हारे बगैर एक रात भी गुजर नहीं सकती।”

सुनीता ने अपने पति को उलाहना देते हुए कहा, “अरे छोडो भी! तुम्हें मेरी फ़िक्र कहाँ? तुम्हें तो दिन और रात ज्योतिजी ही नजर आ रही है। भला उस सुंदरी के सामने तुम्हारी सीधी सादी बीबी कहाँ तुम्हें आकर्षक लगेगी?”

सुनील ने शरारत भरे लहजे में अपने पति के लण्ड की और इशारा करते हुए कहा, “अच्छा? तो यह जनाब वैसे ही थोड़े अटेंशन में खड़े हैं?”

सुनीता ने अपने पति की नाक पकड़ी और कहा, “क्या पता? यह जनाब मुझे देख कर या फिर कोई दूसरी प्यारी सखी की याद को ताजा कर अल्लड मस्त हो कर उछल रहे हैं।”

सुनीता की शरारत भरी और सेक्सी बातें और अदा के साथ अपनी बीबी की कोमल उँगलियों से सेहलवाने के कारण सुनील का लण्ड खड़ा हो गया था। उसके छिद्र में से उसका पूर्वरस स्राव करने लगा। सुनील ने दोनों हाथोँ से सुनीता का गाउन ऊपर उठाया।

सुनीता ने अपने हाथ ऊपर उठा कर अपना गाउन अपने पति सुनील को निकाल फेंकने दिया। सुनीता ने उस रात गाउन के निचे कुछ भी नहीं पहना था। उसे पता था की उस रात उसकी अच्छी खासी चुदाई होने वाली थी। अपने पति का कड़क लण्ड अपने हाथों में हिलाते हुए पति के कुर्ता पयजामे की और ऊँगली दिखाते हुए कहा, “तुम भी तो अपना यह परिवेश उतारो ना? मैं गरम हो रही हूँ।”

सुनील अपनी कमसिन बीबी के करारे फुले हुए स्तनों को, उसके ऊपर बिखरे हुए दाने सामान उभरी हुई फुंसियों से मण्डित चॉकलेटी रंगकी एरोला के बीचो बिच गुलाबी रंग की फूली हुई निप्पलोँ को दबाने और मसलने का अद्भुत आनंद ले रहे थे। अपना दुसरा हाथ सुनील ने अपनी बीबी की चूत पर हलके हलके फिराते हुए कहा, “गरम तो तुम हो रही हो। यह मेरी उँगलियाँ महसूस कर रहीं हैं। यह गर्मी किसके कारण और किसके लिए है?”

सुनीता बेचारी कुछ समझी नहीं या फिर ना समझने का दिखावा करती हुई बोली, “मैं भी तो यही कह रही हूँ, तुम अब बातें ना करो, चलो चढ़ जाओ और जल्दी चोदो। हमारे पास पूरी रात नहीं है। कल सुबह जल्दी उठना है और निकलना है।” सुनीता पति का लण्ड फुर्ती से हिलाने लगी। उसकी जरुरत ही नहीं थी। क्यूंकि सुनील का लण्ड पहले ही फूल कर खड़ा हो चुका था।

जैसे ही सुनील ने अपनी दो उंगलियां अपनी बीबी सुनीता की चूत में डालीं तो सुनीता का पूरा बदन मचल उठा। सुनील अपनी बीबी की चूत की सबसे ज्यादा संवेदनशील त्वचा को अपनी उँगलियों से इतने प्यार और दक्षता से दबा और मसला रहे थे की सुनीता बिन चाहे ही अपनी गाँड़ बिस्तरे पर रगड़ ने लगी। सुनीता ने मुंह से कामुक सिसकारियां निकलने लगीं।

सुबह जस्सूजी से हुआ शारीरिक आधा अधूरा प्यार भी सुनीता को याद आनेसे पागल करने के लिए काफी था। उस पर अपने पति से सतत जस्सूजी की बातें सुन कर उसकी उत्तेजना रुकने का नाम नहीं ले रही थी। सुनीता अब सारी लज्जा की मर्यादा लाँघ चुकी थी। सुनीता ने अपने पति का चेहरा अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उसे अपने स्तनों पर रगड़ते हुए बोली, “सुनील, मुझे ज्यादा परेशान मत करो। प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड जल्दी ही डालो और उसे मेरी चूत में खूब रगड़ो। प्लीज जल्दी करो।”

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