Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन – Part 1 – Hindi Sex Story

सुनील और कर्नल साहब पता लगाने की कोशिश कर रहे थे की रिजल्ट कब आएगा, पर जवाब एकदम वही रटा रटाया मिलता, “जैसे ही तारीख तय होगी तो आपको बता दिया जाएगा।” काफी दिनों के बीत जाने के बाद भी रिजल्ट के कोई आसार नहीं थे। करीब बिस दिन बीत गए इस बात को। एक दिन सुनील सुबह करीब साढ़े आठ बजे ऑफिस जाने की तैयारी में थे। वह डाइनिंग टेबल पर बैठ नाश्ता कर रहे थे की अचानक घर की घंटी बजी।

सुनीता ने जैसे ही दरवाजा खोला की कर्नल साहब को हाथ में एक अखबार थामे सामने खड़े हुए पाया। उनका मुंह एकदम दुखी और कुम्हलाया हुआ था। सुनीता ने जब देखा की कर्नल साहब एकदम हतोत्साहित, उदास और हाथ में अखबार लिए हुए देखा तो सुनीता की जान हथेली में आगयी। जरूर कोई बहुत दुःख भरा समाचार होगा। सुनील भी टेबल के पास खड़े हो गए और बोले, “कर्नल साहब, क्या हुआ? आप इतने उदास क्यों लग रहे हो? क्या कोई दुःख भरा समाचार है?”

यह सुनकर कर्नल साहब बड़े दुखी दिखाई दिए। वह सुनीता की और देख कर बोले, मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा था। यह क्या हो गया?”

सुनीता की सांस रुक गयी। वह बोली, “पर जस्सूजी बताओ ना आखिर बात क्या है?”

कर्नल साहब ने दुःख भरी आवाज में कहा, “रिजल्ट आ गया है। पर सुनीता का नाम पासिंग लिस्ट में नहीं है।” ऐसा कह कर वह पास में रखे हुए सोफे पर बड़ी मुश्किल से बैठ गए। समाचार सुनकर कमरे में सन्नाटा छा गया। सुनील ने कहा, “पर ऐसा कैसे हो सकता है? सुनीता ने तो कहा था उसका पेपर बहुत अच्छा गया है?”

कर्नल साहब ने सुनील की और दुःख भरी नज़रों से देखा और कहा, “मेरी सारी महेनत पानी में गयी। अफ़सोस मैं सुनीता को गणित में पास नहीं करवा पाया।”

सुनीता एकदम कर्नल साहब के पास आयी और उनका हाथ थामा और बोली, “कोई बात नहीं कर्नल साहब। दुखी मत होइए। इस बात से जिंदगी ख़तम नहीं हो गयी। हम दूसरी बार कोशिश करेंगे।”

सुनील ने कर्नल साहब के हाथसे अखबार लिया और बोले, “ऐसा हो नहीं सकता। कहीं ना कहीं अखबार की छपाई में भी गलती हो सकती है। ऐसा कर जब सुनील ने अखबार खोला तो पाया की पहले ही पेज पर सुनीता की बड़ी फोटो छपी थी और उसके निचे लिखा था, “गणित में सबसे सर्वोत्तम अंक दिल्ली की एक शादी शुदा महिला सुनीता मडगाँव कर को।”

यह देख कर सुनील की आँखें फटी की फटी ही रह गयी। सुनील ने कर्नल साहब की और आश्चर्य से देखा तो कर्नल साहब एकदम हँस पड़े। उन्होंने आगे झुक कर सुनीता के घुटनों को दोनों हाथों में पकड़ कर ऊपर उठा लिया और बोले, “अरे पागल, तुम पास नहीं हुई, तुम पुरे देश में टॉप आयी हो!”

सुनीता को कर्नल साहब की बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने तुरंत अपने पति सुनील के हाथों से अखबार छीन लिया और पहले ही पेज पर अपना फोटो देख कर स्तब्ध रह गयी। कर्नल साहब की बाहों में ही रहते हुए सुनील की पत्नी सुनीता ने कर्नल साहब को नकली गुस्से भरे घूंसे मारने शुरू किये और बोली, “जस्सूजी, आपने तो मेरा हार्ट फ़ैल ही कर दिया था।”

कर्नल साहब ने कहा, “हार्ट फ़ैल हो तुम्हारे दुश्मनों का। तुम ना सिर्फ फर्स्ट आयी हो, तुमने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। सुनीता डार्लिंग आज तुमने तो कमाल कर दिया।”

सुनीता ने जस्सूजी के सर पर चुम्मा करते हुए कहा, “यह कमाल मेरा नहीं आपका है। अगर आप मुझे पढ़ाने के लिए इतनी महेनत ना करते तो मैं टॉप करने की बात ही क्या, पास भी नहीं हो पाती।”

सुनील ने कहा, “कर्नल साहब, सुनीता ठीक कह रही है। उसे गणित विषय से ही नफरत थी लेकिन आप ने उस नफरत को मोहब्बत में बदल दिया।”

सुनीता ने गाउन पहन रखा था। उस का पेट और उसके निचे का हस्सा कर्नल साहब के मुंह के पास ही था। कर्नल साहब ने सुनीता के पेट पर गाउन के ऊपर से ही चुम्मी करते हुए कहा, “ठीक है, मैंने महेनत की, पर सुनीता ने पूरा मन लगा कर पढ़ाई की और नतीजा आपके सामने है। आज मैं बहुत खुश हूँ। भाई सुनील, आज तो पार्टी हो जाए।”

सुनीता ने अपने पति सुनील की और देख कर कहा, “पार्टी कर ने का काम आप दोनों का है। मुझे तो जब आप बुलाओगे तो मैं आ जाउंगी।”

सुनील ने कहा, “अरे भाई अब तो पार्टियों का दौर चलता ही रहेगा।”

उस पुरे दिन सुनील और सुनीता ने घर का फ़ोन पुरे दिन बजता रहा। कई अखबार और टीवी चैनल्स के प्रतिनिधि आये। उस दिन सुनील और कर्नल साहब ने एक दिन की छुट्टी ले ली। हर इंटरव्यू में सुनीता ने इस सफलता का श्रेय कर्नल साहब को दिया। अखबारों में सुनीता की फोटो कर्नल साहब के साथ छपी। एक अखबार ने तो कर्नल साहब की जीवनी भी प्रकाशित कर डाली।

उस दिन शाम को सब इतने थके हुए थे की आखिरी इंटरव्यू ख़तम होते ही सुनील सुनीता और जसवंत सिंघजी अपने घर में जाकर ढेर हो गए।

जब घर का सारा काम ख़तम कर ज्योति बैडरूम में आयी तो उनके पति जस्सूजी टीवी पर समाचार देख रहे थे। हर चैनल पर थोड़ा ही सही पर कहीं ना कहीं उनकी और सुनीता की तस्वीर या इंटरव्यू जरूर आया था। ज्योति ने बिस्तरे में आते हुए अपने पति जस्सूजी को कहा, “आज तो तुमने अपना कमाल दिखा ही दिया। हर जगह तुम्हारी चेली सुनीता तुम्हारे ही गुण गाया करती थी। मानना पड़ेगा। सुनीता तुम्हारी पक्की चेली है। वह तुम्हारे अहसानों के निचे इतनी दबी है की तुम जो चाहो उससे ले सकते हो।”जस्सूजी ने टेढ़ी नज़रों से अपनी बीबी की और देख कर पूछा, “तुम कहना क्या चाहती हो?”

ज्योति ने कहा, “अनजान मत बनो. मैं तुम्हारी बीबी हूँ। तुम्हारी नस नस पहचानती हूँ। क्या मैं नहीं जानती तुम्हारे मन में सुनीता के लिए क्या भाव हैं? अरे मुझसे मत छुपाओ। मैंने तुम्हें शादी के पहले वचन दिया था की अगर तुम्हें कोई सुन्दर औरत पसंद आ गयी तो मैं उसे तुम्हारे बिस्तर तक लाने में तुम्हारी पूरी मदद करुँगी। मैं आज भी मेरे उस वचन पर कायम हूँ। पर जस्सूजी मैं एक बात से हैरान हूँ।”

कर्नल साहब ने पूछा, “क्या?”

ज्योति ने कहा, “आजतक कई लड़कियों और औरतों को मैंने आप पर मरते हुए देखा है। इनमें से मैं भी एक हूँ। पर आज तक मैंने आपको कोई औरत के लिए इतना तड़पते हुए नहीं देखा। पर आज आपकी आँखों में सुनीता के लिए आपकी वह चाहत या यूँ कहिये कामुकता जो मैंने देखि है वैसी मैंने पहले कभी किसी औरत के लिए नहीं देखि। मैं जानती हूँ की अगर आपको मौक़ा मिलेगा तो आप उसे चोदना भी चाहेंगे। पतिदेव, सच बोलना। मेरी बात ठीक है ना? इस बात को ले कर मैं आप से कत्तई भी नाराज नहीं हूँ। जैसा की हमने एक दूसरे से वादा किया है, मैं आपकी ही बीबी रहूंगी। पर तुम्हारे मन में उस लड़की के लिए कुछ ना कुछ है ना? आखिर बात क्या है इस औरत में?”

जस्सूजी ने अपनी बीबी को अपनी बाहों में लिया और उसके बूब्स की निप्पलोँ पर अपना हाथ फिराते हुए बोले, “मैं जानता हूँ। मैं मानता हूँ की मैं सुनीता की और काफी आकर्षित हूँ। तुम्हारी बात गलत नहीं है की मैं कहीं ना कहीं मेरे मन में सुनीता के लिए सिर्फ गुरु शिष्या के ही भाव नहीं है। देखो मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा। पर मैं चाहता हूँ की वह मेरे पास अपनी मर्जी से आये। और दूसरी बात तुमने तो तुम्हारे सवाल का जवाब खुद ही दे दिया।”

ज्योति ने अपने पति की और आश्चर्य से देखा और पूछा, ” वह कैसे?”

जस्सूजी, “देखो डार्लिंग, तुम मेरी पत्नी हो। तुम अगर मेरी पसंद की औरत की इर्षा करो तो यह स्वाभाविक है, और इसी लिए मैं सुनीता की तारीफ़ तुम्हारे सामने करने में डरता हूँ। पर जब तुमने पूछ ही लिया है और जब तुम यह कह रही हो की तुम्हें इर्षा नहीं होगी तो सुनो। पहली बात यह की सुनीता बेतहाशा खूबसूरत है। उसके व्यक्तित्व में ही सुंदरता झलकती है। उसके अंग अंग में से अनंग टपकता है। पर आश्चर्य तो यह है की उसे यह पता ही नहीं वह कितनी खूबसूरत है।

तुम्हारे सवाल के जवाब में मैं यह कहता हूँ की तुम ने खुद कहा नहीं की हर जगह सुनीता मेरे ही गुणगान गा रही थी? इसका मतलब यह के जो इंसान दूसरे का एहसान कभी ना भूले और अपनी काबिलियत पर अहंकार ना करे ऐसे इंसान कम होते हैं और उनकी कदर करनी चाहिए। और आखिरी बात, सुनीता का मन काँच की तरह साफ़ है। इस चीज़ से मैं बहुत आकर्षित हुआ हूँ। मैं नहीं जानता की क्या सुनीता भी मेरी और आकर्षित हुई है या फिर मरे अहसान के निचे दबी होने के कारण मुझे बर्दाश्त कर रही है?”

कर्नल साहब की पत्नी ज्योति ने अपने हाथ की ऊँगली से चुटकी बजाते हुए कहा, “मेरे लिए तो यह चुटकी बजाने वाली बात है। तुम निश्चिन्त रहो, मैं ना सिर्फ तुम्हारी प्यारी सुनीता के मनका हाल जान कर तुम्हें बताउंगी, बल्कि मैं पूरी कोशिश करुँगी की एक ना एक दिन मैं उसे तुम्हारे बिस्तर पर लाकर तुमसे चुदवाउंगी बल्कि मैं तुम दोनों के सामने खड़ी होकर तुम दोनो को चोदते हुए देखूंगी।”

सारी बातचीत सुनकर कर्नल साहब का लण्ड एक एकदम लोहे के छड़ सामान खड़ा हो गया। उन्होंने ज्योति का गाउन हटा कर उसे नग्न कर दिया। फिर उसकी बिस्तर लेटी हुई नग्न काया देख कर बोले, “हनी, आज भी तुम शादी के इतने सालों के बाद भी वैसी ही कमसिन लग रही हो जैसी मैंने तुम्हें पहली बार चोदने के पहले नंगी देखा था। शादी के इतने सालों और एक मुन्ने के बाद भी तुम ज़रा भी बदली नहीं हो।”

ज्योति ने नाक सिकुड़ते हुए हँसते हुए कहा, “पर तुम्हें तो फिर भी दूसरे की थाली ही ज्यादा स्वादिष्ट लगती है। “

कर्नल साहब ने अपनी तरफ से एक गुब्बारा छोड़ते हुए कहा, “अच्छा? तो कहो तो तुम उस शाम को सिनेम हॉल में सुनील जी से चिपक चिपक कर क्या कर रही थी?”

ज्योति ने अपने पति की छाती में नकली घूंसा मारते हुए शर्मा ते हुए कहा, “चलो छोडो इन सब बातों को लगता है आज तुम्हें चोदने का बड़ा मूड है।”

कर्नल साहब अपनी बीबी की बात सुनकर ठहाका मार कर हँसकर बोले, “अरे, तुम अगर सुनीता को मेरे साथ बिस्तर पर सुलाओगी तो मैं क्या मैं तुम्हें छोडूंगा? मैं भी तुम्हारे प्यारे सुनीलजी को लाकर तुम्हारे साथ उसी बिस्तर पर ना सुलाकर तुम्हें अगर ना चुदवाया तो मेरा नाम कर्नल जसवंत सिंह नहीं।”

दोनों पति पत्नी एक लम्बी और धमाकेदार चुदाई में मग्न हो गए। जस्सूजी चोद तो ज्योति को रहे थे पर मन में सुनीता ही थी। ज्योति चुदवा तो अपने पति से रही थी पर लण्ड उसको सुनील का दिख रहा था।

दूसरे दिन सुबह कर्नल साहब की पत्नी ज्योति सुबह जब उठी तो उसे कुछ थकान सी लग रही थी। पिछली रात पति के साथ हुई धमासान चुदाई के कारण वह थोड़ी थकी हुई थी। कर्नल साहब को दफ्तर में कुछ अधिक और अर्जेंट काम था इस लिए वह जल्दी ही ऑफिस चले गए थे। ज्योतिजी अपने मन में सोच रही ही थी की वह कैसे सुनीता से बात करे की अचानक सुनीता का ही फ़ोन आया।

सुनीता ने ज्योति से कहा, “दीदी, मैं तुमसे मिलकर कुछ बात करना चाहती हूँ। आप कितने बजे फ्री होंगीं? मैं कितने बजे आऊं?”

कर्नल साहब की पत्नी ज्योति सोचने लगी आखिर सुनीता उनसे क्या बात करना चाहती होगी? वाकई में तो ज्योति को ही सुनीलजी की पत्नी सुनीता से बात करनी थी। ज्योति ने सुनीता से कहा, “सुनीता, आप जब जी चाहे आओ, पर आप जब आओ तो मेरे साथ बैठने के लिए आना। आने के बाद जाने की जल्दी मत करना। आज मेरा भी मन तुमसे बहोत बात करने को कर रहा है। मैं अभी ही उठी हूँ और थोड़ासा थकी हुई हूँ। अक्सर जब मैं थकी होती हूँ तो जस्सूजी मुझे सुबह की चाय बना के पिलाते हैं। तुम अभी ही आ जाओ ना? तुम जैसी हो वैसी ही आ जाओ। तुम्हें चेंज करने की भी जरुरत नहीं है। हम आमने सामने ही तो रहते हैं। कौनसा तुम्हें बाहर जाना है? अगर तुम्हें एतराज ना हो तो आज मैं मेरे घरमें ही तुम्हारी बनायी हुई चाय पीना चाहती हूँ।”ज्योति जी की बात सुनकर सुनीता का चेहरा खिल उठा। इतना बढ़िया परीक्षा का परिणाम आने के बावजूद सुनीता को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। जस्सूजी के साथ हुई शारीरिक हरकतों के कारण सुनीता ज्योतिजी के बारेमें सोचकर थोड़ा अपने आप को दोषी महसूस कर रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था की वह कैसे ज्योति जी का सामना कर पाएगी। जब सामने चल कर ज्योतिजी ने ही इतना अपनापन दिखाया तो सुनीता की हिम्मत बढ़ गयी और वह थोड़ी ठीकठाक होकर बिना कपडे बदले तुरंत जाने के लिए निकल पड़ी।

वह गाउन पहने हुए थी। सो वह ऐसे ही कर्नल साहब की पत्नी ज्योति को मिलने के लिए चल पड़ी। सुबह के दस बजे होंगे। सब मर्द लोग अपने दफ्तर जा चुके थे। स्कूल में छुट्टियां चल रही थीं।

ज्योति उठ कर बाथरूम नहाने गयी और नहाकर बाहर निकल एक तौलिये में लिपटे हुए अपने बालों को कंघीं कर रही थी की घरकी घंटी बजी। घंटी बजने पर उन्होंने दरवाजा खोले बिना ही पूछा, “कौन है?”

जब सुनीता की आवाज सुनी तब उन्होंने दरवाजा धीरे से थोड़ा खोला और सुनीता को अंदर ले कर दरवाजा फ़टाफ़ट बंद किया।

सुनीता ने नमस्ते किया तो ज्योतिजी ने सुनीता को अपनी बाँहों में लपेट लिया और बोली, “अरे हम बहने हैं। आओ गले लग जाओ।” फिर सुनीता का हाथ पकड़ ज्योतिजी उसे अपने बैडरूम में ले गयी और खुद पलंग के एक छोर पर अपने कूल्हे टिका कर बैठी और सुनील की पत्नी सुनीता को अपने पास बैठने के लिए इशारा किया।

सुनीता तो ज्योतिजी को देखती ही रह गयी। तौलिये में लिपटी अर्धनग्न अवस्था में ज्योतिजी गजब का कमाल ढा रही थीं।

पलंग की और इशारा कर के ज्योतिजी बोली, “बैठो न? ऐसे मुझे क्या देख रही हो? तुम आयी तो मैं बस नहा कर निकली ही हूँ। सुबह सुबह दरवाजे पर कबाड़ी, सब्जी वाले, सफाई करने वाले इत्यादि मर्द लोग आ जाते हैं। तुम थी तो मैंने दरवाजा खोला वरना इस हाल मैं किसी मर्द के सामने जाकर मुझे हार्ट अटैक थोड़े ही दिलवाना है? आज ज़रा मैं थकी हुई हूँ। कल रात देर रात हो गयी थी। आज मेरा बदन थोड़ा दर्द कर रहा है।”

सुनीता समझ गयी की पिछली रात जस्सूजी ने जरूर अपनी पत्नी ज्योतिजी की जम कर चुदाई की होगी। यह सोच कर सुनीता के बदन में सिहरन फ़ैल गयी। उसने जस्सूजी का मोटा लण्ड अपनी उँगलियों में उनकी पतलून के उपरसे ही महसूस किया था। जब जस्सूजी उस लण्ड से अपनी बीबी को चोदते होंगे तो बेचारी बीबी का क्या हाल होता होगा यह सोच कर सुनील की पत्नी सुनीता काँप उठी। अरे बापरे! अगर कहीं ऐसी नौबत आयी की सुनीता को ज्योति जी के पति जस्सूजी से चुदवाना पड़े तो उसका अपना क्या हाल होगा यह सोच मात्र से ही सुनीता के रोंगटे खड़े हो गए और उसकी की चूत में से पानी रिसने लगा।

सुनीता ने पहली बार ज्योतिजी को अपने इतने करीब और वह भी ऐसे अर्ध नग्न हालत में देखा था। सुनीता ज्योतिजी को देखती ही रह गयी। शादी के इतने सालों के बाद भी ज्योतिजी जैसे ही बिन शादी शुदा नवयुवती की तरह लग रहीं थीं। वह सुनीता से करीब चार या पांच साल बड़ी होंगीं। पर क्या बदन! और क्या बदन का अनूठा लावण्य! सुनीता को ज़रा भी हैरानगी नहीं हुई की उसके अपने पति सुनील जस्सूजी की पत्नी ज्योतिजी के पीछे पागल थे।

ज्योतिजी के गीले केश उनके कंधे पर खुले फैले हुए थे। एक हाथ में कंघी ले कर घने बादलों से उनके केश को वह सँवार रहीं थीं। तौलिया ज्यादा चौड़ा नहीं था इस कारण ना सिर्फ ज्योति के उन्मत्त उरोजों का उद्दंड उभार, बल्कि उन गुम्बजोँ के शिखर के रूप में फूली हुई निप्पलोँ की भी कुछ कुछ झाँकी हो रही थीं। ज्योतिजी ने सुनीता को उनका बदन ताड़ते हुए देखा तो सुनीता को अपने करीब खींचा। एक पुतले की तरह मंत्रमुग्ध सुनीता ज्योतिजी के खींचने से उनके इतने निकट पहुंची की दोनों एक दूसरे की धमन सी आवाज करती हुई तेज साँसे महसूस कर रहे थे।

सुनीता का तो उसी समय मन किया की वह आगे बढ़कर ज्योतिजी की छाती के ऊपर स्थित फैले हुए उन दो मस्त टीलों पर अपनी हथेलियां रखदे और उनकी मुलायमता, सख्ती या लचक अपनी हाथों में महसूस करे। पर स्त्री सुलभ मर्यादा और इस डर से की कहीं ज्योतिजी सुनीता की इस हरकत को गलत ना समझले इस लिए रुक गयी।

सुनीता को ज्योतिजी के पति जस्सूजी से इर्षा हुई जो ज्योतिजी के उन उरोजों पर अपना अधिकार रखते थे की उन्हें जब चाहे थाम ले, दबाले या मसल ले। जब ज्योति जी ने सुनीता की निगाहें अपने उरोजों पर टिकी हुई पायी तो मुस्करा दीं। सुनीता ने अपनी नजर उन चूँचियों से हटा कर निचे की और देखा तो उसकी नजर ज्योति के तौलिये के दूसरे निचले छोर पर गयी।

हायरे दैया!! जिस ढंग से ज्योतिजी अपने कूल्हे पलंग के कोने पर टिका कर पलंग के निचे अपने पॉंव लटका कर बैठी थी और उसके कारण उनका तौलिया ज्योतिजी की कड़क और करारी जाँघें दोनों टाँगें जहां मिलती थीं, वहा तक चढ़ गया था और उनकी चूत अगर थोड़ा अन्धेरा सा ना होता तो जरूर साफ़ दिख जाती। फिर भी उनकी चूत की कुछ कुछ झांकी जरूर हो रही थी।

ज्योतिजी की जाँघें देखकर सुनीता से रहा नहीं गया और वह अनायास ही बोल पड़ी, “ज्योतिजी आप कितनी अद्भुत सुन्दर हो? मुझे आज आपके पति जस्सूजी की कितनी इर्षा हो रही है की आप जैसी खूबसूरत सुंदरी देवीके वह पति हैं।”

ज्योति ने थोड़ा सा आगे बढ़ कर सुनीता, जो की उनसे बिलकुल सटकर खड़ी थी, अपनी बाहों में प्रगाढ़ आलिंगन में ले लिया। सुनीता भौंचक्का सी ज्योतिजी को देखती ही रही और वह ज्योतिजी की बाहों में उनसे जुड़ गयी। सुनीता को स्वाभाविक ही कुछ हिचकिचाहट हुई तब ज्योति ने कहा, “देखो बहन, तुम मुझसे छोटी हो और शायद अनुभव में भी कम हो। हालांकि बुद्धिमत्ता में तुम मुझसे कहीं आगे हो। मैं बेबाक और खुला बोलती हूँ।ज्योति जी ने अपना हाथ सुनीता के बदन पर सरकाते हुए सुनीता के कँधों को सहलाना शुरू किया। ज्योति ने कहा, “देखो मैं तुमसे कुछ बातें खुल्लमखुल्ला बात करना चाहती हूँ। हो सकता है की तुम्हें मेरी भाषा अश्लील लगे। मुझे लपेड़ चपेड़ कर चिकनी चुपड़ी बातें करना नहीं आता। क्या मैं तुम्हारे साथ खुल्लमखुल्ला बात कर सकती हूँ?”

सुनीता क्या बोलती? उसने अपना सर हिला कर हामी भरी। सुनीता ने भी ऐसी बेबाक और निर्भीक लेडी को पहले कभी नहीं देखा था। वह उनको देखती ही रही। तब ज्योति बोली, “तुमने आज तक मेरे जैसी बेबाक और खुली औरत नहीं देखि होगी। मैं जो मनमें होता है वह बोल देती हूँ। मैं मानती हूँ यह मुझमें कमी है। पर मैं जो हूँ सो हूँ।”

सुनीता के हाथ में हाथ ले कर सुनीता के हाथ को सहलाते हुए पूछा, “पर पहले तो तुम यह बताओ की तुम क्या कहना चाहती थी? बताओ क्या बात है?”

सुनीता ने ज्योति के हाथ अपने हाथोँमें लेते हुए कहा, “दीदी, मेरी सफलता में कर्नल साहब का जितना योगदान है उतना ही आपका भी योगदान है। कल हम मिल नहीं पाए थे तो मैं उसके लिए आज आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करने आयी हूँ।”

ज्योति को यह सुनने की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। ज्योति ने पूछा, “मेरा योगदान? मैंने क्या किया है?”

सुनीता तुरंत सोफे से निचे उतर गयी और ज्योति के पॉंव से हाथ लगाती हुई बोली, “दीदी, अगर आप ने मुझे अपने पति से टूशन लेने का सुझाव ना दिया होता और यदि आपने अपने पति यानी की जस्सूजी को मेरे लिए इतना समय देनेके लिए प्रोत्साहित ना किया होता तो मैं जानती हूँ, वह मुझे इतना समय ना दे पाते। और तब मैं ऐसे नंबर ना ला पाती।

मैंने अपनी खिड़की से कई बार देखा था की जब जस्सूजी रात रात भर जागते थे तो आप उन्हें आधी रात को चाय बना कर पीलाती थीं। आप भी पूरी तरह नहीं सोती थीं। दूसरा जब जस्सूजी काफी समय तक मेरे साथ अकेले होते थे तब कभी भी आपने उन्हें टोका नहीं या रोका नहीं। यह आपका बहुत बड़ा बड़प्पन है।”

ज्योति ने सुनीता को ऊपर की और उठाया और अपनी बाहों में लिया और बोली, “सुनीता, जितना तुम्हारा तन सुन्दर है, उतना तुम्हारा मन भी सुन्दर है। तुम जो नंबर लायी हो वह तुम्हारी महेनत का नतीजा है। हम ने तो बस तुम्हें रास्ता दिखाया है। देखो तुम्हारी गुरु निष्ठा और लगन ने ही तुम्हें यहाँ पहुंचाया है। अक्सर जस्सूजी तुम्हारे बारे में बोलने से थकते नहीं। तुम कितनी महेनति, कितनी बुद्धि में तेज और निष्ठावान हो यह वह हमेशा मुझे बताते रहते थे। जहां तक तुम्हारी और मेरे पति के अकेले होने की बात है तो मुझे अपने पति पर पूरा विश्वास है।”

ज्योति जी ने सुनीता को अपने और करीब खींचा और बोली, “सुनीता, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो। आजसे मैं तुम्हें अपनी छोटी बहन ही मानूंगी। क्या तुम्हें इसमें कोई एतराज तो नहीं?”

सुनीता ने कहा, “दीदी , मैं तो कभी से आपको मेरी दीदी ही मानती हूँ। आप कुछ कह रहे थे?”

ज्योति ने सुनीता की गोद में अपना हाथ रख कर कहा, ” मैं जो कहने जा रही हूँ उसे सुनकर तुम्हें बहुत आश्चर्य हो सकता है। हो सकता है तुम्हें धक्का भी लगे। पर मैं बेबाक सच बोलने में मानती हूँ। देखो मेरी छोटी बहन सुनीता, मैं जानती हूँ की मेरे पति और तुम्हारे गुरु जस्सूजी तुम पर कुछ ज्यादा ही नरम हैं। तुम एक औरत हो और औरत मर्द की लोलुप नजर फ़ौरन पहचान लेती है। वह तुम्हें ना सिर्फ घूर घूर कर नज़ारे चुराकर देखते हैं और ना सिर्फ उन्होने कई बार तुमसे कुछ हरकतें भी की हैं, पर वह तुम्हें पाना चाहते हैं। तुम कुछ समझी?” सुनीता ने अपनी मुंडी हिलाकर ना कहा, वह कुछ नहीं समझी।

सुनीता के हाथ अपने हाथ में लेकर ज्योति बोली, “बहन एक बात कहूं? पहले तुम कसम लो की मेरी बात का बुरा नहीं मानोगी और मेरी बात पर कोई भी बखेड़ा नहीं खड़ा करोगी?”

सुनीता ने ज्योति जी की और देखा और बोली, “दीदी मैं कसम लेती हूँ। मैं ना तो बुरा मानूंगी और ना ही कुछ भी करुँगी, पर दीदी तुम क्या कहना चाहती हो?”

तब ज्योति ने सुनीता की नाक पकड़ कर कहा, “देखो बहन, मैं जस्सूजी की बीबी हूँ। और हमेशा रहूंगी। लेकिन मैंने उस दिन सिनेमा हॉल में तुम्हारे और मेरे पति के बिच हुई अठखेलियां देखीं थीं। मैं उसके लिए तुम्हें या मेरे पति को ज़रा सी भी जिम्मेवार नहीं मानती। ऐसे माहौल में ऐसी वैसी बातें हो ही जाती हैं। मैं झूठ नहीं बोलूंगी। मेरी और तुम्हारे पति के बिच उससे भी कहीं ज्यादा अठखेलियाँ हुई थीं।”

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