एक और घरेलू चुदाई -antarvasna stories


सौरभ- मम्मी कैसा लग रहा है

विनीता-बेटा अच्छा महसूष हो रहा है मेरे मुन्ने मेरी वजह से तुझे कितनी

परेशानी उठानी पड़ रही है

सौरभि- मम्मी परेशानी कैसी आपकी सेवा करना तो मेरा फ़र्ज़ है

विनीता- ख़ुसी से भर गयी और बोली बेटे पर फिर भी तुम्हे कई ऐसे कम करने पड़ रहे

है जिसकी वजह से मुझे शर्मिंदगी होती है शरम आती है

सौरभ- क्या मम्मी आप भी आपने मुझे जनम दिया है आपका ही तो मैं अंग हूँ फिर

मुझ से कैसी शरम
विनीता ये बात सूकर पिघल गयी उसको लगा बेटा अब बड़ा हो गया है

तभी खाना लेकर सुधा आ गयी दोनो ताई-बेटे की नज़रे मिली तो सुधा शर्मा गयी

खाना खाते वक़्त सौरभ की नज़रे ताई जी के बोबो पर ही थी दो दो गरम औरतो

के हुस्न को ताड़ ते हुए उसने अपना खाना ख़तम किया विनीता बोली- बेटे तू भी

इधर ही सो जाया कर तेरी ताई जी भी नींद की गोली लेकर सोती है तो कई बार मुझे

पानी-पेशाब को परोब्लम होती है तुम और ताई जी बेड पर सो जाना मेरा बिस्तर बेड

पर लगा देना ये सुनकर सौरभ अंदर ही अंदर खुश हो गया ताइजी के साथ बेड

पर सोने को लेकर उसके मन मे गुद गुदि सी होने लगी थी

दूसरी तरफ सुधा के जाते ही प्रेम ने गेट को बंद किया और उषा को अपनी बाहों मे

दबोच लिया और पागलो की तरह उसको चूमने लगा उषा भी उसका भरपूर साथ

दे रही थी दोनो भाई बहन आज शरम की हर उस दीवार को तोड़ देना चाहते थे जो

उनके बीच आ रही थी प्रेम ने बहन को गोदी मे उठाया और अपनी दीदी के कमरे

मे आ गया उसने उषा को बिस्तर पर पटका और उसके उपर लेट गया और उसके रसीले

गालो को चूमने लगा उषा की गर्दन पर अपने दाँतों से काटने लगा

काफ़ी देर तक चूमा चाटी के बाद उसने उषा के सूट को उतार दिया और ब्रा मे

क़ैद चूचियों को देखने लगा उसने अपने काँपते हाथ दीदी के बोबो पर रखे और

उनको दबा दिया उषा ने एक आह भरी प्रेम उषा के उपर झुक गया और

चूचियो को दबाने लगा उषा के बदन मे वासना की आग अब भड़कने लगी थी

सलवार के अंदर उसकी छोटी सी चूत का तो और भी बुरा हाल हो रहा था पर आज

उसको अपना साथी मिल जाने वाला था प्रेम अपना हाथ उषा की पीठ पर ले गया और

उसकी ब्रा की हुक को खोल दिया अपनी बहन की गोल मटोल 34डी साइज़ के कसे हुए बोबो

को देख कर उसका लंड अब पाजामे से बाहर आने को तैयार था प्रेम ने अपनी उंगली

से उसकी चूची के निप्पल को दबाया तो उषा को तेज दर्द हुआ पर उसको भी पता

था कि दर्द मे ही मज़ा है प्रेम बारी बारी से उसके बोबो को भीचे जा रहा था

और उषा बिस्तर पर पड़ी पड़ी आने वाले अहसास को सोच कर गीली हुई जा रही थी

काफ़ी देर तक प्रेम बहन के बोबो से ही खेलता रहा उषा के बोबे अब फूल कर टाइट हो चुके थे उसकी घुंडिया बाहर को निकल आई थी जैसे कि किसी ने उनमे हवा भर दी हो अब प्रेम अपना हाथ उसके काँपते पेट पर फिराने लगा तो उषा मचलने लगी अपनी उंगली से दीदी की नाभि को छेड़ने लगा उषा के अन्छुए बदन पर पुरुष का स्पर्श उसकी उत्तेजना को बहुत तेज कर रहा था

अब प्रेम ने उसकी सलवार के नाडे को अपने हाथ मे लिया और धीरे से उसकी गाँठ को खोल दिया उषा ने देर ना करते हुवे अपने कुल्हो को उपर की ओर उठाया और सलवार उसके बदन से अलग हो गयी गुलाबी पैंटी ही उसके तन पर अंतिम वस्त्र बची थी शरम से उषा ने अपनी टाँगो को सेकोड लिया और थोड़ी सी साइड को हो गयी जिस से उसके कूल्हे प्रेम की साइड हो गये बड़े ही प्यार से प्रेम उनको सहलाने लगा उषा बहुत तेज गरम हो गयी थी उसने प्रेम को बेड पर पटका और उसके उपर चढ़ गयी

दूसरी तरफ सौरभ के घर पर सब लोग गहरी नींद मे सोए थे पर सौरभ की आँखो मे नींद की जगह हवस थी उसकी ताई जी उसके बाजू मे ही सो रही थी जिसे आज उसने नंगी अवस्था मे देखा था अब नींद आए भी तो कैसे पॅंट मे खड़ा लंड चीख चीख कर चूत की डिमॅंड जो कर रहा था तो उसने अपनी चैन खोली और लंड को बाहर निकाल लिया उसने विनीता से सुन लिया था कि सुधा नींद की गोली खाकर सोती है तो उसने चान्स लेने का सोचा

वो सरक कर सुधा के बिल्कुल करीब हो गया सुधा उसकी तरफ पीठ करके सो रही थी तो सोने पे सुहागा हो गया वो ताई जी से बिल्कुल चिपक सा गया था उसने अपना हाथ सुधा के पेट पर रख दिया और उसको सहलाने लगा कोमल थोड़ा फूला हुवा सा पेट उसके नरम नरम पेट पर हाथ फिरा के उसको बड़ा मज़ा आ रहा था अब उसने आगे बढ़ते हुए ताई जी की साड़ी को घुटनो तक उठा दिया और चिकनी जांघों और कुल्हो पर हाथ फिराने लगा

सौरभ के लिए ये बहुत ही मजेदार अनुभव हो रहा था उसने आज से पहले ऐसा कभी नही किया था उसका उत्तेजित लिंग सुधा की गान्ड मे घुसने को बेताब हो रहा था और उनके पैंटी मे क़ैद चुतड़ों पर रगड़ खा रहा था उसके हाथ बार बार जाँघो पर फिसल रहे थे सौरभ डर के मारे बुरी तरह से कांप रहा था पर जिस्म की आग उसे लगातार आगे बढ़ने को बोल रही थी

इधर उषा प्रेम के उपर चढ़ कर उसकी होटो को पी रही थी उषा ने अपनी गरम जीभ प्रेम के मुँह मे सरका दी थी जिसे बड़े मज़े से प्रेम चूस रहा था वो अपना हाथ नीचे ले गयी और प्रेम की पॅंट और कच्छे को सरका दिया और भाई के मजबूत लंड को अपने हाथ मे थाम लिया पहली बार उसने लंड को अपने हाथों मे फील किया था उसे अंदाज़ा नही था कि प्रेम का लंड इतना बड़ा है उसने कस कर उसको अपनी मुट्ठी मे दबाया तो प्रेम ने उसकी जीभ को दाँतों मे दबा लिया

थोड़ी देर चूमने के बाद उषा प्रेम के उपर से हटी और नीचे को सरक आई और अपने गुलाबी होटो से उसके लंड पर एक चुंबन जड़ दिया प्रेम की तो जैसे जान ही निकल गयी उसने बिना देर किए उषा के मुँह को अपने लंड पर झुका दिया उषा ने अपना मुँह खोला और प्रेम के लंड को जितना वो ले सकती थी अपने मुँह मे भर लिया मुँह की गर्मी पाकर लंड और भी शरारती होने लगा था

लंड पर अपनी गरम जीभ फिरा कर उषा अपने भाई को अपनी अदाओं से तडपा रही थी उसकी कच्छी चूत के रस से बहुत ज़्यादा गीली हो चुकी थी उसे देख कर कोई भी नही कह सकता था कि वो पहली बार लंड चूस रही है बड़ी ही कुशलता से वो लंड को पी रही थी प्रेम के लंड से निकलते नमकीन पानी का टेस्ट उसको बहुत ही अच्छा लग रहा था प्रेम बार बार उसके चेहरे को लंड पर दबा रहा था दोनो भाई बहन आज की रात को पूरी तरह से जी लेना चाहते थे

उधर सौरभ अब सुधा से चिपका हुआ उसके बोबो को दबा रहा था सुधा की चूचिया उसके हाथो मे समा ही नही रही थी सौरभ का बस चलता तो आज सुधा को चोद ही डालता वो बड़ी बेदर्दी से वो सुधा के बोबो को मसल रहा था अचानक से सुधा की आँख खुल गयी उसको अपने बदन पर किसी के हाथो का स्पर्श महसूस हो रहा था वो पल भर मे ही समझ गयी थी कि ये सौरभ ही है उसने अपने कुल्हो पर गरम लंड को महसूस किया तो उसकी चूत भी मचलने लगी दरअसल सुधा पिछले कई दिनो से नींद की गोली ले ही नही रही थी ये बात विनीता को पता नही थी बस सौरभ ही ऐसा समझ रहा था

जबकि वो अब जाग गयी थी अब वो सौराभको मना भी नही कर सकती थी पास ही विनीता सो रही थी अगर वो जाग जाती तो क्या सोचती यही सोचो कर वो चुप चाप लेटी रही बोबो को दबाने के कारण उसके जिस्म मे भी करंट दौड़ने लगा पिछले कुछ दिनो से जो हरकते हो रही थी तो उसकी चूत वैसे ही बेचैन हो रही थी और अब सौरभ उस से चिपका पड़ा था उसकी हरकतों से सुधा भी गरम होने लगी थी


अब सौरभ ने अपना हाथ सुधा की चूत पर रख दिया और कच्छी के उपर से ही उसको दबाने लगा सुधा के पूरे बदन मे बिजली ही दौड़ गयी थी वो ही जानती थी कि कैसे उसने अपनी सिसकारी को रोका था सौरभ ने पैंटी को थोड़ा सा साइड मे किया और अपना हाथ अंदर घुसा दिया कई सालो बाद अपनी चूत पर पुरुष का हाथ पाकर सुधा का बदन हिलने लगा उसकी टाँगे अपने आप खुल गयी ताकि सौरभ अच्छे से उसकी चूत को मसल सके

गहरे बालो से भरी चूत को सहला कर सौरब पूरी तरह से मस्त हो गया था पर उसमे अभी इतनी हिम्मत नही थी कि सीधा ताई को चोद दे तो उसने एक हाथ से अपना लंड हिलाना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ को सुधा की चूत की दरार पर फिराने लगा चूत से गाढ़ा पानी रिसने लगा था सौरभ की उंगली फिसल कर चूत मे घुस गयी थी सुधा ने अपनी टाँगो को भीच लिया तो सौरभ को लगा कि कहीं ताई जी जाग तो नही गयी है तो उसने जल्दी से अपनी उंगली को बाहर निकाल लिया और फॉरन ही उधर से दूर होकर सो गया सुधा सोचने लगी काश उसे ऐसा नही करना चाहिए था लेटी रहती चुपचाप पर उसकी चूत मे हलचल मची गयी थी

इधर उषा प्रेम के लंड पर अपने होटो का कहर ढाए हुए थी प्रेम को लगने लगा था कि बस थोड़ी देर मे वो ढेर होने ही वाला है तो उसने उषा को अपने लंड से हटा दिया और उषा को बिस्तर पर लिटा दिया उसकी कच्छी की इलास्टिक मे हाथ डाला और उस एकमात्र बचे हुए वस्त्र को भी उषा के जिस्म से आज़ाद कर दिया उषा बोली- लाइट तो बंद कर लो प्रेम बोला नही देखने दो मुझे इस जिस्म को आज इस को अपना बना लेना चाहता हूँ मैं उषा ने शरम से अपने चेहरे को अपने हाथो मे छिपा लिया पर ये रात कोई शरमो हया वाली रात तो थी नही

प्रेम ने अपनी बहन की टाँगो को खोला और अपने लंड को उसकी चूत के दरवाजे पर लगा दिया चूत बहुत ज़्यादा गीली हो रही थी और उपर से लंड की गर्मी तो उषा की बदन मे चींटिया रेंगने लगी थी , अब बस दो जिस्म एक होने मे कुछ ही देरी थी उषा ने कहा भाई अब डाल भी दे अंदर अब रहा नही जा रहा है बना दे मुझे लड़की से औरत प्रेम तो वैसे ही बेकरार हो रहा था उसने लंड पर थूक लगाया और उसको चूत के छेद पर लगा कर कर दिया कसकर प्रहार

चूत की नाज़ुक दीवार के कवच को तहस नहस करते हुए लंड का सुपाडा उषा की चूत मे घुस गया जहा उषा मस्ताई पड़ी थी, अब उसके जिस्म को दर्द की लहर ने अपनी गिरफ़्त मे ले लिया उसके होठ उसकी चीख को रोक ना पाए आँखो से आँसू बह चले उसकी आवाज़ गले मे अटक गयी लगा कि जैसे किसी ने चूत मे चाकू चला दिया हो वो कुछ बोल पाती उस से पहले ही प्रेम के अगले शॉट से उसका लंड और आगे को सरक गया उषा की आँखे बाहर ही निकल आई उस पल

दर्द से पागल हुई वो प्रेम के चेहरे को खुद से दूर हटा ने लगी पर प्रेम की मजबूत बाहों मे क़ैद थी वो चूत फट गयी थी उसकी खून की बूंदे टपकती हुई चादर पर अपने निशान छोड़ने लगी थी जितना वो प्रेम को खुद से दूर करना चाहती थी उतना ही वो उसके अंदर समाता जा रहा था उषा का दर्द बहुत ही बढ़ गया था पर प्रेम लगातार लंड को अंदर की तरफ सरकाए जा रहा था उषा अपने विरोध स्वरूप प्रेम के कंधो पर अपने लंबे नाखूनों से खरोचने लगी थी पर उसको कोई फ़र्क नही पड़ रहा था

और ऐसे थोड़ा थोड़ा करके उषा की चूत के अंदर पूरा का पूरा लंड सरका दिया गया था चूत मे बहुत तेज टीस मार रही थी अब प्रेम पूरी तरह से दीदी के उपर झुक गया और उषा के गालो पर लुढ़क आए आँसुओ को अपनी गरम जीभ से चाटने लगा दीदी को सुकून मिला वो अब दीदी को चूमता कभी गालो पर कभी होंठो पर धीरे धीरे उषा को भी आराम सा होने लगा अब प्रेम धीरे धीरे अपनी कमर को हिलाते हुए धक्के लगाने लगा था उषा का दर्द अब उसको मज़ा देने लगा था

अपने भाई की बाहों मे पिसते हुए उसको बड़ी शांति मिल रही थी आख़िर उसने अपना कुँवारा पन आज खो जो दिया था प्रेम ने लंड को सुपाडे तक बाहर निकाला और फिर तेज शॉट मारा तो उषा की सांस अटक सी ही गयी प्रेम के कंधे पर अपने दाँतों के काट ते हुए वो बोली अया जान ही निकाल डाली है कतल ही करो गे क्या मेरा पर अब वो कहाँ रुकने वाला था गरम खून उसकी नसों मे उबल रहा था बड़ी बेदर्दी से उसने अपनी बहन को रोंदना शुरू किया और धीरे धीरे उषा की चीखे मस्ती भरी आहों मे बदल ती चली गयी

उषा ने अपनी टाँगो को खोला और भाई की कमर पर उठा कर रख दिया और खुद भी नीचे से धक्के लगाने लगी उषा इतनी गरम और मदमस्त हो गयी थी कि वो किसी ख़ूँख़ार जंगली बिल्ली की तरह प्रेम के कंधो और उसकी पीठ पर अपने नाख़ून चला रही थी आज हर उस पर्दे की दीवार ढह गयी थी दोनो भाई बहन ने दुनिया के सबसे पवित्र रिश्ते की धज्जिया उड़ा डाली थी, उस बंद कमरे मे एक नये रिश्ते की इबारत लिखी जा रही थी जिसके गवाह बस ये दोनो ही थे भाई बहन ने आज एक दूजे को बिस्तर का साथी स्वीकार कर लिया था

प्रेम के धक्को की रफ़्तार अब बढ़ती ही जा रही थी और उसके साथ ही उषा भी अपने चरम सुख की ओर बढ़ने लगी थी उषा की आँखे अपने आप बंद होती जा रही थी ना जाने कैसा वो नशा था जिसने उसको अपनी गिरफ़्त मे ले लिया था उसकी बाहें भाई की पीठ पर कस्ति जा रही थी बस उसे इसी तरह पिसना था अपने भाई की बाहो मे उसकी छोटी सी चूत को तहस नहस करता हुआ लंड पूरी रफ़्तार से आगे पीछे होते हुए उसको जन्नत की सैर करवा रहा था उषा ने अपने मुँह को थोड़ा सा उपर की तरफ किया और प्रेम के होटो को फिर से अपने होटो से जोड़ लिया

उषा की चूत किसी गरम भट्टी की तरह दहक रही थी जिस से प्रेम के लंड की खाल थोड़ी सी छिल गयी थी पर अभी अगर कुछ था तो वो जोश वो भूख जिसे जितना भी मिटाओ उतनी ही वो भड़कती जाती है पर हर एक शुरुआत की तरह इस खेल का अंत भी होना था उषा को ऐसा एहसास पहले कभी नही हुआ था अचानक से लगा कि उसका बदन जैसे बहुत हल्का हो गया था उसकी टाँगो मे एक कसाव सा आ गया था और उसकी साँसे जैसे रुक ही गयी थी दो चार पलों के लिए उसका जिस्म अकडा और फिर चूत से रस बहकर बाहर को गिरने लगा उषा को फिर कुछ याद नही रहा बस हो इस सुखद पल को जी भर कर जीना चाहती थी और तभी उसे अपनी चूत मे कुछ गरम गरम सा पानी गिरता महसूस हुआ

प्रेम भी झड गया था एक के बाद एक कई पिचकारिया उषा की चूत मे गिरने लगी हांफता हुआ प्रेम उसके उपर गिर गया उषा ने उसको अपनी बाहों मे भर लिया दोनो भाई बहन अपनी अपनी उखड़ी हुई सांसो को संभालने लगे………

सुबह हुई, तो उषा की आँखे खुली उसने देखा प्रेम वहाँ नही था उसने उठने की कोशिश की पर उठ नही पाई,उसके बदन का हर एक हिस्सा दर्द से दुख रहा था पूरा शरीर जैसे तप रहा था उसने पास मे पड़े अपने कपड़ो की तरफ हाथ बढ़ाया और किसी तरह से उन्हे पहनकर जल्दी से बाथ रूम मे घुस गयी वहाँ पर जाकर उसने अपनी चूत को देखा तो बुरी तरह से सूजी हुई थी वो और खून के निशान उसकी जाँघो पर और योनि के बालो मे भी थे

कल रात की चुदाई ने उसके बदन को बुरी तरह से निचोड़ डाला था उसने कल की बात को याद करते हुए नहाना शुरू किया तो उसको अच्छा लगने लगा एक ही रात मे बस एक बार की चुदाई से ही जैसे वो खिल ही गयी थी पर चूत अभी भी दर्द से कराह रही थी, जब वो नहा कर आई तो सुधा घर आ चुकी थी तो उषा थोड़ी सावधान हो गयी पर उसे क्या पता था कि उसकी माँ तो खुद अपने ख़यालो मे खोई हुई थी

खाना खाकर उषा अपने कमरे मे आकर सो गयी पर प्रेम अभी तक घर नही आया था तो सुधा ने सोचा कि चल खेत पर ही उसको खाना दे आती हूँ, और चल पड़ी खेतो की ओर इधर घर पर विनीता अकेली थी सौरभ स्कूल मे गया हुआ था विनीता सोच रही थी कि कहाँ फँस गयी मैं अच्छा ख़ासा प्रेम के साथ मज़े पे मज़े ले रही थी ना ये चोट लगती ना इधर पड़े रहना पड़ता पर तकदीर का क्या कर सकते हैं

सुधा जब खेत पर पहुचि तो उसने देखा कि प्रेम कुँए पर नहा रहा हैं उसका कसरती बदन धूप मे चमक रहा था सुधा की नज़र उसके गीले कच्छे से ढके लंड पर पड़ी जो कि सोई हुई हालत मे भी काफ़ी मोटा लग रहा था सुधा के बदन मे लहर सी दौड़ गयी प्रेम ने भी अपनी माँ को आते हुए देख लिया था तो जल्दी से उसने तौलिया लपेटा और सुधा के पास आ गया
सुधा- कितना काम करता है मेरा बेटा खाना खाने का भी होश नही रहता
प्रेम- माँ मैं बस थोड़ी देर मे घर ही आ रहा था
सुधा- कोई बात नही बेटे वैसे भी काफ़ी दिन हो गये इधर आना हो ही नही पाया तो इसी बहाने से इधर भी आ गयी जल्दी से आजा और खाना खा ले ठंडा हो रहा हैं

प्रेम खाना खाने लगा सुधा नीम के पेड़ के नीचे पड़ी खाट पर लेट गयी और हवा के झोंको से उसकी नींद सी लग गयी , रोटी खाने के बाद प्रेम पानी पी रहा था तो उसकी निगाह सोती हुई माँ पर गयी उफफफफफफफफफफ्फ़ कितनी खूबसूरत लग रही थी प्रेम ने सोचा कि माँ बिना किसी शृंगार के ही इतनी सुंदर हैं तो अगर वो सजी सँवरी रहे तो ना जाने कितने लोगो पर बिजलिया ही गिरा देगी वो अपनी माँ के पास आया और उसको देखने लगा

सुधा के पतले पतले गुलाबी होठ और उनपर बना हुआ तिल किसी पर भी अपना जादू एक पल मे ही चला सकते थे, उसकी मोटी मोटी छातिया जो ब्लाउज से बाहर आने को हमेशा ही तैयार रहती थी सुधा की साड़ी उसके घुटनो तक सरक आई थी माँ की सुंदर सुडोल पिंडलियो को देख कर प्रेम का लंड बुरी तरह से उछलने लगा प्रेम का बस चलता तो सुधा को भी चोद चुका होता वो पर उसकी अभी इतनी हिम्मत नही थी पर खड़े लंड का भी कुछ तो करना ही था

तो वो भाग कर अपने कमरे मे गया और लंड को हिलने लगा तभी पास चर रहे पशुओ ने शोर मचाना शुरू कर दिया जिस से सुधा की आँख खुल गयी उसे प्रेम नही दिखा तो वो अंदर कमरे की तरफ चल पड़ी दरवाजा खुला पड़ा था जैसे ही वो थोड़ा सा आगे को बड़ी उसके कानों को कुछ ऐसा सुनाई दिया जिसे सुन कर उसकी झान्टे सुलग ही गयी

ऊऊऊहह माआआआआआआआआआआआआआ तुम कितनी सुंदर हो कितनी मस्त गान्ड हैं तुम्हारी कब चोद पाउन्गा तुम्हे ह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह माआआआआआआआआआआआआआआआआआअ प्रेम ऐसे बड़बड़ाते हुए अपने लंड को हिला रहा था सुधा के पाँव जैसे जम ही गये थे, उसका अपना बेटा उसको चोदने का सोच कर लंड हिला रहा था, सुधा जो पिछले कुछ दिनो से अपनी चूत की बढ़ती खुजली से परेशान थी पर सीधे सीधे जाके बेटे के लंड को अपनी चूत मे भी तो नही ले सकती थी ना तो दबे पाँव वो वापिस आकर बैठ गयी

थोड़ी देर बाद प्रेम भी अपना काम पूरा करके बाहर आ गया और सुधा को जागे हुए देख कर चौंक गया और बोला- माँ, तुम कब जागी

सुधा- बस अभी अभी , खाना खा लिया तो चल घर चलते हैं

और दोनो घर को चल दिए

सौरभ स्कूल से आ चुका था और विनीता के पास बैठा था,
सौरभ- मम्मी, आप कुछ परेशान सी लग रही हैं,
विनीता- हाँ बेटा वो दरअसल आज तेरी ताई जी सुबह से नही आई हैं और मैं आज नहाई नही हूँ तो पूरे बदन मे खुजली सी मची पड़ी हैं, चैन नही मिल रहा हैं

सोरभ- तो क्या हुआ, मैं आपकी मदद कर देता हूँ, वैसे भी ताई नही थी तो भी तो आप नहाती थी ना चलो फिर नहा लो आपको आराम मिलेगा

विनीता- अरे नही बेटा, कोई बात नही तुम परेशान ना होओ
सौरभ- नही आप एक मिनिट रूको मैं सब कर देता हूँ उसने अलमारी खोली और विनीता के लिए एक अच्छी सी साड़ी बाहर निकाल दी , और जब वो उसके ब्रा-पैंटी उठा रहा था तो विनीता शरम से लाल हो गयी पर उसकी भी मजबूरी थी सौरभ उसको सहारा देकर बाथरूम तक ले गया पर पिछली बार विनीता अकेले मे गिर गयी थी और सुधा होती तो अलग बात थी पर अब क्या करे

मम्मी की परेशानी समझ कर सौरभ बोला मम्मी मैं आपकी मदद करता हूँ और विनीता के साथ बाथरूम मे आ गया
विनीता संकोच से बोली- पर बेटा मैं तुम्हारे सामने कैसे………

सौरभ- मम्मी मुझे भी आपकी मजबूरी का पता है और फिर मुझ से क्या शरमाना वैसे भी मैं आपको ऐसी हालत मे पहले भी देख चुका हूँ तो फिर मुझसे कैसी शरम …
विनीता ने सोचा कोई पराया तो हैं नही मेरा अपना बेटा है और फिर सही हैं पहले भी तो ये मुझे नंगी देख चुका है अब कम से कब ब्रा पैंटी तो होंगे मेरे बदन पर वैसे भी प्रेम के सामने तो फटाक से नंगी हो जाती हूँ और अब अपने बेटे की मदद भी नही ले सकती क्या ये सोचकर विनीता कहती है- हाँ बेटे, तुमसे क्या शरमाना चलो तुम्ही नहला दो मुझे अब ये खुजली बर्दास्त नही होती हैं सौरभ की खुशी का ठिकाना नही रहा और वो सहारा देकर विनीता को अंदर बाथरूम मे लेके गया

और एक कुर्सी को फवारे के नीचे रख कर उसपर विनीता को बिठा दिया और उसको चला दिया पानी की बूंदे विनीता के बदन को भिगोने लगी और जल्दी ही वो कपड़ो समेत गीली हो गयी उसके बोबे गीले ब्लाउज मे बड़े ही मस्त लग रहे थे विनीता सौरभ की भूखी नज़रो को अपने बदन पर महसूस कर रही थी पर वो एक जवान होते हुए बेटे की भावनाओ को भी अच्छे समझ रही थी उसने मन ही मन सोच लिया कि जब और लोग भी उसको घूरते है तो फिर उसके बेटे का हक तो सबसे पहले है उस पर तो अगर वो मेरे बदन को निहार भी ले तो मुझे ख़ुसी होगी

विनीता ने खुद अपना ब्लाउज उतार कर साइड मे रख दिया गुलाबी ब्रा मे क़ैद बेहद ही गोरी गोरी चूचियो को देख कर सौरभ का लंड उसके पायजामे मे टॅंट हो गया विनीता ने भी उसके खड़े लंड को देख लिया था और मंद मंद मुस्कुरा पड़ी उसने कहा बेट- ज़रा साड़ी उतारने मे मेरी मदद तो करो सौरभ को यकीन ही नही हो रहा था कि आज वो इस नज़ारे का ऐसी हालत मे लुफ्त उठाएगा उसने बिना देर किए विनीता को खड़ी किया और उसकी साड़ी और पेटिकोट को उतार कर फेक दिया ब्रा और पैंटी मे विनीता अपने बेटे की बाहों मे झूल रही थी

सौरभ का एक हाथ उसकी मम्मी की पीठ पर था और दूसरा हाथ उसके नरम कुल्हो पर उसका खड़ा लंड विनीता की टाँगो के जोड़ की जगह पर चुभ रहा था सौरभ ने अपनी बाहों का दवाब मम्मी पर डाला और विनीता भी पिघलने लगी उसकी गरमा गरम साँसे सौरभ के चेहरे पर टकरा रही थी दोनो जने माँ बेटे से ज़्यादा एक औरत मर्द के रिश्ते को फील कर रहे थे पर विनीता इस तरह अपने बेटे को कोई मोका नही देना चाहती थी इसलिए उसने सोरभ को अपने से दूर करते हुए कहा बेटा अब कब तक ऐसे ही लिए खड़ी रखेगा

जल्दी से नहाने मे मेरी मदद कर हाँ माँ हकलाते हुवे सौरभ ने कहा और विनीता को सहारा देकर कुर्सी पर बिठा दिया गुलाबी ब्रा-पैंटी मे किसी प्यारी सी गुड़िया जैसे लग रही थी उसकी मम्मी पर उसके होश तो तब उड़े जब उसकी नज़र मम्मी की पैंटी पर पड़ी कितनी छोटी सी पैंटी थी बस नाम की ही कुल्हो पर से एक लाइन ही थी जो गान्ड की दरार मे घुसी हुवी थी सौरभ का खुद पर कंट्रोल करना बड़ा मुश्किल हो रहा था

खुद को भीगने से बचाने के लिए उसने फव्वारा बंद किया और फिर बाल्टी से ठंडा पानी अपनी मम्मी के उपर डाला वैसे तो विनीता गीली ही थी पर जैसे ही पानी उसकी त्वचा से छुआ उसकी सिसकी निकल गयी विनीता बोली ला साबुन दे उपर मैं खुद लगा लूँगी तू फिर पाँवो पर लगा देना दरअसल विनीता सौरभ को उसकी चूचियों को छूने का मोका नही देना चाहती थी , तो उसने अपने हाथो पर साबुन लगाई और फिर अपने गोरे पेट पर अब बारी आई बोबो की

वो ब्रा के उपर से ही साबुन लगाने लगी पर वो अपना हाथ पीठ पर ले गयी पर उधर साबुन तभी लगता जब वो ब्रा उतार देती अब विनीता फँसी कशमकश मे उतारे या ना उतारे, उसकी उलझन देख कर सौरभ बोला मम्मी मैं आपकी हालत समझ रहा हूँ आप ब्रा उतार दो बेशक मैं बड़ा हो गया हूँ पर बचपन मे इन चूचिओ का दूध पीकर ही बड़ा हुआ हूँ तो एक बार फिर से अगर मैं देख लूँगा तो कोई आफ़त थोड़ी ना आने वाली है

बेशक ये बात उसने अपनी मम्मी को सहज करने के लिए कही थी पर इधर उसके पयज़ामे मे झूलते लंड को देख कर विनीता की चूत मे जहाँ कुछ कुछ हो रहा था उसके मन मे भावनाओ का एक तूफान चल रहा था पर हाई रे ये जालिम मजबूरी अब करे भी तो क्या करे एक स्टॅंड लेते हुए सौरभ पीछे की ओर आया और ब्रा के हुको को खोल कर उसको उतार दिया उसने विनीता के हाथों से साबुन लिया और उसकी चिकनी पीठ पर लगाने लगा

विनीता के मन को मिले जुले भाव ने घेरा हुआ था आख़िर वो भी एक औरत थी और वो भी बहुत ही कामुक मिज़ाज की औरत ना जाने कितने लोग रात को उसका ही ख़याल करके अपने लंड को हिलाया करते थे साबुन लगाते लगाते सौरभ का हाथ उसके बोबो से भी टच होने लगा था तो विनीता के बदन मे चिंगारिया भरने लगी थी हर पल उसकी आँखे जैसे किसी नशे मे डूबती जा रही थी सौरभ अब बिना किसी संकोच के अपने दोनो हाथो को आगे लाया और उसके बोबो पर साबुन लगाने लगा

36 इंच की मस्त गोलाइयाँ उसके अपने बेटे के हाथ मे थी विनीता ये सोचकर पता नही क्यो रोमांचित होने लगी थी साबुन के झाग से उसकी चूचियाँ बड़ी चिकनी हो रही थी और उसका अपना बेटा हौले हौले उन्हे दबा रहा था विनीता अपना होश खोने लगी थी अपनी आँखे बंद किए अपने दाँतों से होटो को काट ते हुए वो अपने बॉब्बे दबवा रही थी

सौरभ की उंगलिया उसके निप्पल्स को रगड़ रही थी आनंद मे विनीता की आँखे डूबी जा रही थी पर उसे अपनी भावनाओ पर कंट्रोल करना था और साथ ही बेटे को भी बहकने से रोकना था तो उसने कहा- बस कर बेटा कितनी साबुन लगाएगा यहाँ पर अब ज़रा पैरो पर भी लगा दे ये सुनकर सौरभ जैसे नींद से जागा और उसने अपनी मम्मी के बोबो को हसरत भरी निगाओ से देखा और ठंडी सांस लेकर पाँवो की तरफ आ गया

धीरे धीरे मम्मी की पिंडलियो पर साबुन लगा ने लगा विनीता के बदन को उसके पति ने भी खूब रगड़ा था और प्रेम ने भी अपनी बाहों मे मसला था पर उसको अपने बदन पर बेटे के हाथो का स्पर्श बहुत ही अच्छा लग रहा था मस्ती धीरे धीरे उसके उपर छा रही थी पर एक माँ होने की शरम उसके बहकते कदमो को रोक रही थी सौरभ के हाथ उसकी जाँघो पर आ चुके थे विनीता की टाँगे थर थराने लगी पल पल सौरभ के हाथ उपर और उपर आते जा रहे थे आख़िर अब बेटे के हाथ माँ की पैंटी पर आ गये दोनो की आँखे मिली

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