एक और घरेलू चुदाई -antarvasna stories

प्रेम के लिए एक नया रास्ता खुल गया था इधर विनीता भी मन ही मन बहुत खुश थी कि वो प्रेम से संबंध बना के अपने जिस्म की हसरतों को पूरा कर पाएगी , इधर सौरभ जब सहर से मछली बेच कर वापिस आ रहा था तो उसे याद आया कि कुछ समान खरीदना है तो वो बाजार मे गया तो फूटपाथ पर कुछ पत्रिकाए बिक रही थी उसे फिल्मी हीरो-हेरोयिन्स की फोटो देखने का बहुत ही शौक था तो वो भी कुछ पत्रिकाओं को देखने लगा

तभी उसके हाथ कुछ ऐसी किताबें लगी जो किसी के भी होश उड़ा सकती थी, जी हां, ये वही सेक्स कहानियो वाली किताबें थी, सौरभ ने भी ऐसे ही दो किताबें खरीद ली और शाम होते होते घर आ गया ,मोसम आज भी बड़ा गुलजार था आज बारिश तो नही हुई थी पर थोड़ी ठंडक सी थी, प्रेम जब रात का खाना खाने सौरभ के घर गया तो विनीता की तीखी नज़रें बार बार उस से ही लड़ रही थी, जब किसी बहाने से विनीता उसे अपनी भारी भरकम चूचियो का नज़ारा दिखाती तो प्रेम के गले से रोटी का टुकड़ा निगलना मुश्किल हो जाता था

सौरभ का पिता अपनी ड्यूटी पर जा चुका था, विनीता जल्दी जल्दी रसोई का बचा हुआ काम समेट रही थी घाघरे के अंदर उसकी गुलाबी चूत इतनी बुरी तरह से पानी छोड़ रही थी कि उसकी जांघे तक गीली हो गयी थी, प्रेम अपने चौबारे मे लेटा हुआ अपने लंड को सहलाते हुए विनीता के बारे मे ही सोच रहा था जबकि सौरभ अपने कमरे मे आकर पढ़ाई कर रहा था, करीब घंटे भर बाद विनीता ने जब अच्छी तरह से चेक कर लिया कि सौरभ सो चुका है

तो वो दीवार कूद कर प्रेम के चॉबारे मे पहुच गयी, दरवाजा खुला पड़ा था,और सामने चारपाई पर प्रेम नंगा पड़ा हुआ था विनीता ने एक कातिल अदा के साथ उसकी तरफ देखा और बोली बड़े बेशरम हो गये हो कम से कम दरवाजा तो बंद कर लेते तो प्रेम बोला- चाची मुझे पता था आप आने वाली हो इसीलिए खुला रखा था, विनीता प्रेम के पास बैठते हुए बोली अब तुम मुझे चाची ना कहा करो मैं तो तन मन से अब तुम्हारी लुगाई बन चुकी हूँ

प्रेम – उसकी पीठ को सहलाते हुवे बोला तो आप ही बता दो अब मैं क्या कहूँ आपको

विनीता अपने बोबो को उसके सीने से टच करते हुए बोली मैं तो तेरी रांड़ बन गयी हूँ जो चाहे बुला ले और प्रेम के होंठो को चूम ने लगी अगले कुछ मिनिट तक बस वो दोनो एक दूसरे के होंठो से ही खेलते रहे विनीता पूरी तरह से प्रेम के उपर आ गयी थी प्रेम उसके मस्ताने कुल्हो को अपने हाथों से दबा रहा था

उसने धीरे से घाघरे को उपर किया तो पता चला कि विनीता ने कच्छि तो डाली ही नही है प्रेम उसके नरम नरम कुल्हो को भीचने लगा तो विनीता उसके स्पर्श से जैसे पिघलने लगी थी,विनीता ने फटाफट अपने ब्लाउज के बटन खोले और अपने बोबे को प्रेम के मुँह मे दे दिया और गरम गरम आहे भरने लगी नीचे की तरफ उसने प्रेम के लोड्‍े को अपनी रस से भरी कटोरी पर रगड़ना शुरू कर दिया तो चूत की गर्मी से लंड का सुपाडा और भी फूलने लगा

कुछ देर तक उसको गरम करने के बाद विनीता प्रेम के लंड पर बैठ ती चली गयी और उसको अपनी मस्ती मे समा लिया अब वो पूरी तरह प्रेम पर छा गयी थी उसने धीरे धीरे अपनी गान्ड हिलानी शुरू की जबकि प्रेम उसकी जीभ को अपने मुँह मे लेकर चूस रहा था, विनीता अपने कुल्हो को इतना उपर कर लेती कि बस सुपाडा ही चूत मे फसा रहता और फिर जब वो झटके से वापिस नीचे आती तो दोनो को बहुत मज़ा आता था करीब दस बारह मिनिट तक विनीता ऐसी ही कूदती रही

अब प्रेम ने उसको घोड़ी बनाया और पीछे से उसकी ठुकाई करने लगा विनीता के चूचे बुरी तरह से हिल रहे थे प्रेम मस्ती के स्वर मे बोला चाची आप बहुत ही गरम हो आप की चूत बहुत ही गरम और टाइट है अपनी तारीफ सुनकर विनीता और भी खुश हो गयी और आहे भरते हुए बोली बेटा तेरे चाचा भी मस्त चोदते है पर जो मज़ा तू दे रहा है वैसा मज़ा उन्होने कभी नही दिया शाबाश मेरे शेर लगा रह ऐसे ही अपनी चाची को सुख देता रह वाह मेरे शेर हिला डाल अपनी इस रंडी की चूत को फाड़ डाल

चाची की गरमा गरम बातें सुनकर प्रेम की नसों मे बहता खून और भी उबाल मारने लगा और वो ताबड तोड़ विनीता की चुदाई करने लगा विनीता के लिए तो ये पल जैसे ठहर ही गये थे अब अगर यमराज भी आकर उस से कहते तो वो यूँ ही कहती कि चुदते चुदते ही मेरे प्राण निकल जाए, उसकी टाइट चूत को जब प्रेम का लंड अपनी गोलाई की अनुपात मे फैलाता तो जो दर्द भरा मज़ा उसे मिलता था उसके आगे वो बड़ा से बड़ा सुख भी त्याग सकती थी

करीब आधे घंटे की जोरदार चुदाई के बाद अब दोनो ही झड़ने को आ गये थे और कुछ और तेज तेज धक्को के बाद विनीता ने अपनी चूत को भीच लिया और उधर प्रेम ने अभी अपना लावा उसकी चूत मे छोड़ दिया दोनो हान्फते हुए बिस्तर पर गिर गये कुछ देर तक विनीता उसके सीने से ही लगी रही फिर उसने अपने कपड़ो को सही किया और प्रेम को एक जोरदार चुंबन देकर अपने कमरे मे जाकर सो गयी

दूसरी तरफ अपने खड़े लंड को हाथ मे लिए सौरभ वो सेक्सी कहानियो वाली किताब को पढ़ रहा था, आधी से ज़्यादा वो पढ़ चुका था कि तभी एक ऐसी कहानी आई जो आने वाले वक़्त मे उसके जीवन मे एक अलग ही परिवर्तन लाने वाली थी…

जैसे जैसे सौरभ उस कहानी को पढ़ता जा रहा था उसका गला सूखता जा रहा था उसकी आँखो मे सुरखी बढ़ती जा रही थी उसके लंड की नसें और भी ज़्यादा फूलने लगी थी दरअसल वो जो कहानी पढ़ रहा था वो इस बारे मे थी कि कैसे एक माँ अपनी प्यास अपने बेटे से चुदकर बुझवाती है, सौरभ को वो कहानी पढ़ कर बहुत मज़ा आया अब उसके लिए अपने आप पर काबू करना बड़ा ही मुश्किल था हो अपने लंड को जोरो से हिलाने लगा

और जब उसका पानी गिरने को हुआ तो उसने अपनी आँखे बंद कर ली और तभी उसकी आँखो के सामने उसकी मम्मी विनीता का चेहरा आ गया और लंड से वीर्य की धार बह चली आज से पहले उसका कभी इतना पानी नही गिरा था जब वो शांत हुआ तो वो सोचने लगा कि मम्मी भी तो बहुत सुंदर है बिल्कुल किसी परी की तरह लगती है और उनके चूतड़ भी कितने मस्त है काश उस कहानी की तरह मैं भी कभी मम्मी को चोद पाता तो मज़ा ही आ जाता

ऐसे ही सोचते सोचते उसने एक बार और अपना लंड हिलाया और फिर सो गया.अगले दिन जब वो जगा तो उसने देखा कि विनीता बाहर आँगन मे बैठ कर बर्तन धो रही है और उसकी पीठ सौरभ की तरफ थी तो उसके कुल्हो का कटाव देख कर सौरभ के होश फाकता हो गये थे उसने पहले कभी भी अपनी मम्मी को उस नज़र से नही देखा था तो ये जानते हुए भी कि ये ग़लत है सौरभ रोमांचित सा होने लगा

अब उसके दिमाग़ मे बस एक ही बात थी कि क्या वो अपनी मम्मी को पटा कर चोद सकता है या नही तो उसने चान्स लेने की सोची पर कैसे ये उसे मालूम नही था दूसरी तरफ उषा सुधा के साथ मामा के घर आ तो गयी थी पर उसकी चूत की बढ़ती प्यास ने उसका जीना हराम कर रखा था वो हर हाल मे अपने भाई के लंड को अपनी चूत मे लेना चाहती थी पर वो इधर फँसी पड़ी थी तो बस चूत को उंगली का ही सहारा था वो जल्दी से जल्दी गाँव जाने को उतावली पड़ी थी

इधर प्रेम के मुँह जो खून लग गया था वो तो बस विनीता को चोदने के मोके की तलाश मे ही रहता था और कुछ ऐसा ही हाल विनीता का भी था पर दिन मे मोका लगने का कोई चान्स था ही नही तो बस रात का ही सहारा था , पर वो इस बात से अंजान थी कि अब उसके मादक जिस्म का रस्पान करने के लिए उसका अपना बेटा भी तैयार हो चुका है और मोके की तलाश मे है पर गरम चूत कहाँ किसी लाज शरम की बात करती है

इधर रात को सुधा सोने की कोशिश कर रही थी पर ना जाने क्यो उसको नींद नही आ रही थी उसका ध्यान अपने बेटे के बड़े तने हुवे लंड पर बार बार जा रहा था दरअसल उसे सपना आया था कि वो अपने बेटे के लंड पर कूद रही है सपना तो टूट गया था पर उसकी आँखो मे वो सीन जैसे जम गया था तो उसे अपनी सोच पर हैरानी हो रही थी कि कैसे वो अपने बेटे के बारे मे ऐसा सोच सकती है अंजाने मे उसने अपनी चूत पर हाथ लगाया तो देखा कि वो बुरी तरह से टपकी पड़ी थी

सुधा को खुद पर शरम सी आई पर उसने फिर सोचा कि वो भी तो एक औरत थी उसकी भी कुछ जिस्मानी इच्छाये थी जो पति के मरने के बाद उसने जैसे तैसे करके दबा ली थी पर अब चिंगारी फिर से भड़क ने लगी थी और फिर सुधा भी टंच माल थी गाँव के कई आदमी उसकी पीछे लट्टू थे बस उसके एक इशारे भर की देर थी पर सुधा ने किसी को घास नही डाली थी तो दोस्तो हर कोई अपनी अपनी उलझनों मे उलझा पड़ा था पर सबकी मंज़िल एक ही थी जिस्मो की प्यास को बुझाना

तो उस रात को भी प्रेम और विनीता ने जम कर अपने जिस्मो की आग को बुझाया पूरी रात विनीता प्रेम के लंड के झूले पर झूलती रही प्रेम ने रगड़ रगड़ कर उसकी मुनिया को कूटा था, पर यहाँ पर एक दिक्कत हो गयी थी जब सुबह अंधेरे विनीता वापिस अपनी दीवार को कूद रही थी तो उसका बॅलेन्स बिगड़ गया और वो गिर गयी उसके घुटने पर चोट लग गयी जैसे तैसे करके वो अपने कमरे मे पहुचि दर्द के आलम मे पता नही कब उसकी आँख लग गयी

सूरज चढ़ चुका था सौरभ भी उठ गया उसने मम्मी को आवाज़ लगाई पर कोई जवाब नही आया तो वो उपर चला गया तो देखा की विनीता अभी भी सोई पड़ी थी कुछ तो रात को चुदाई की थकान थी और कुछ चोट का असर सांस लेने के कारण उसका सीना उपर नीचे हो रहा था तो सौरभ उस नज़ारे को देख ने लगा उसका लंड हरकत मे आने लगा कुछ देर तक नज़रें को देखने के बाद उसने हिला कर विनीता को जगाया तो वो हड़बड़ाते हुवे उठी पर अगले ही पल उसके जिस्म मे दर्द की लहर दौड़ ती चली गयी

सौरभ ने पूछा तो उसने झूठ बोलते हुए कहा कि बेटा रात को बाथरूम जाते टाइम फिसल गयी जिस से घुटने मे चोट लग गयी तो दर्द हो रहा है वो बिस्तर से उठना चाहती थी पर उठ ना पा रही थी तो सौरभ ने उसको सहारा देकर उठाया इसी बीच सौरभ का हाथ उसकी माँ की कमर को टच कर गया तो उसके जिस्म के तार झन झना गये चूँकि पैर मे बहुत दर्द था तो डॉक्टर को बुलाया गया उसने चेक करके बतया कि शूकर है घुटना टूटा नही पर करीब 10-15 दिन तक देखभाल करनी होगी और उसने घुटने पर एक बॅंड बाँध दिया और कुछ दवाइयाँ देकर चला गया

चोट के कारण प्रेम और विनीता दोनो के लिए ही मुश्किल खड़ी हो गयी थी दोनो के बदन मे जलती हुई चुदाई की आग उन्हे बड़ा ही परेशान कर रही थी पर दोनो मजबूर थे जबकि मम्मी की चोट सौरभ के लिए किसी वरदान से कम नही थी उसके बापू की तरक्की कर दी गयी थी तो वो अब कई कई दिन मे घर आने लगा था जबकि विनीता के कई काम सौरभ को ही करने पड़ते थे जैसे कि जब वो कहीं जाती तो सौरभ उसको सहारा देता जब वो मूतने जाती तो सौरभ बाथरूम के दरवाजे पर ही खड़ा रहता

अंदर से आती मूत की सुर्र्र्र्र्र्र्ररर सुर्र्र्र्र्र्र्ररर की आवाज़ उसे बड़ा ही रोमांचित करती थी पर वो चाह कर भी आगे नही बढ़ पा रहा था था पर किस्मत ने उस पर भी मेहरबानी करनी ही थी, उस दिन विनीता बाथरूम मे नहा रही थी और सौरभ बाहर खड़ा था विनीता घुटने मे बॅंड बँधा होने के कारण दीवार का सहारा लेकर खड़ी खड़ी ही नहा रही थी कि तभी उसके हाथ से साबुन फिसल कर नीचे फर्श पर गिर गया अब चूँकि वो नंगी नहा रही थी तो सौरभ को भी नही बोल सकती थी तो उसने खुद ही सोचा कि जैसे तैसे करके साबुन उठा ती हूँ पर इसी चक्कर मे उसका पैर साबुन पर टिक गया और वो फिसल गयी और सामने रखी बाल्टी से टकरा गयी एक तो पहले से ही घुटने मे चोट लगी पड़ी थी दूसरी ओर अब उसका कुल्हा बाल्टी से टकरा गया तो उसके गले से तेज चीख निकल गयी और वो तो रोने ही लगी उसको बहुत तेज दर्द हो रहा था उसकी चीख सुनकर बाहर से सौरभ ने तुरंत ही दरवाजे को हड़काया और जो अंदर का नज़ारा उसने देखा तो उसके होश फाकता हो गये

फर्श पर विनीता नंगी पड़ी थी साबुन कहीं लगा था कही नही लगा था उसकी टाँगे खुली हुई थी जिस से सौरभ की नज़रे सीधी उसकी रेशमी झान्टो से भरी चूत पर ठहर गयी उस गुलाबी रंग की पंखुड़ियो से सजी काले रंग की चूत के छेद को देख कर सौरभ का काबू खुद से खोने लगा उसकी सुध्बुध खोने लगी थी जबकि विनीता सौरभ के इस तरह से बाथरूम मे आ जाने से शरम से गढ़ गयी थी उसने अपने हाथो से अपने बोबो को ढकते हुए और जैस तैसे करके चूत को टाँगो मे छुपाने की असफल कोशिश करते हुए दर्द भरी आवाज़ मे कहा देख क्या रहा है उठा मुझे तो सौरभ का ध्यान टूटा उसने सूखे गले से कहा हम उठा ता हूँ और फिर उसने आगे बढ़ कर विनीता को उठाया तो उसने उसकी गान्ड को भीच दिया तो विनीता चिहुन्क गयी उसके अपने बेटे ने उसकी गान्ड को दबाया था नही नही उसने सोचा ग़लती से उसका हाथ लग गया होगा हाँ ऐसा ही हुआ होगा सौरभ ने उसके शरीर पर पास रखी साड़ी लपेटी और उसको कमरे मे ले आया

अब ये हालत कुछ ऐसे ही थे कि जहाँ सौरभ को अपनी मम्मी के जिस्म को देख कर आँखे सेकने का मोका मिल गया था दूसरी ओर विनीता शरम से अपनी नज़रे नही उठा पर रही थी उसको बहुत ही लज़्ज़ा आ रही थी कि उसके बेटे ने उसे नंगी अवस्था मे देख लिया था और वो गान्ड को दबाने वाली बात अभी भी उसके जहाँ से हटी नही थी सौरभ ने सोच लिया था कि मम्मी के बदन को देखने का यही बेस्ट मोका है तो उसने आगे बढ़ते हुए कहा

मम्मी आपको ध्यान से नहाना चाहिए था ना , देखो अभी कितनी चोट लग गयी है ये तो शूकर है मैं घर पर था पापा भी नही है अगर घर पर कोई नही आता तो कैसे संभालती आप, विनीता चुप ही रही,सौरभ ने तौलिया लिया और कहा लाओ मैं आपके गीले बालो को पोंछ देता हूँ तो विनीता बोली नही मैं बाद में कर लूँगी पर सौरभ को तो अपने प्लान को अंजाम देना था और ये उसकी पहली सीढ़ी थी तो उसने कहा क्या कर लोगि आप मैं कर देता हूँ

इधर विनीता के गोरे गाल शरम से लाल हो गये थे बेशक उसके बदन पर साड़ी थी पर वो पूरी तरह से पहनी हुई नही थी वो बस ऐसे ही थी कि उसके चुतड़ों वाले हिस्से और बोबो को ढक ले बस सौरभ मम्मी को चिकनी चुपड़ी बातों की चाशनी मे घोलता हुआ बोला मम्मी मैं जानता हूँ आप क्या सोच रही है पर सिचुयेशन ही कुछ ऐसी थी तो मुझे बाथरूम मे आना पड़ा पर मैं क्या करता मजबूरी है वरना …….. ये कह कर उसने बात को अधूरा छोड़ दिया और विनीता को उठा कर जैसे ही बाल सुखाने के लिए बेड के सिरहाने की ओर बिठाया तो कूल्हे पर बाल्टी से लगी चोट के कारण विनीता दर्द से कराह उठी तो सौरभ ने कहा बस बाल पोंछने के बाद दवाई लगा दूँगा और उसके बालो को पोंछने लगा जबकि विनीता ये सोचकर परेशान हो ने लगी कि अब फिर से सौरभ उसके चूतड़ को दवाई लगाएगा तो देखे गा

वो नही चाहती थी कि उसका बेटा उसके शरीर को देखे पर वो हालत के आगे मजबूर थी सौरभ ही कुछ दिनो के लिए उसका सहारा था उसका आँचल थोड़ा सा सरक गया था तो गोरी चूचियो के गुलाबी निप्पल्स देख कर सौरभ का ध्यान भटकने लगा पॅंट मे लोड्‍े ने तो पहले से ही टॅंट बनाया हुआ था वो अलग उसने मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया और अपना काम करता रहा बालों को सुखाने के बाद उसने मम्मी को लिटाया और फिर मालिश वाला तेल लेकर बेड पर आ गया और कहा मम्मी पहले मैं घुटने की मालिश कर दूं

उसने पैर को अपनी गोद मे रखा क्योंकि वो जानता था कि अंदर से मम्मी पूरी तरह से नंगी है , और उस तरह से पैर रखने पर वो बिना किसी परेशानी के विनीता की चूत के नज़ारे को देख सकता था तो वो ये अनमोल मोका अपने हाथ से क्यों जाने देता जबकि विनीता भी जानती थी पर वो चुप ही रही बस अपनी आँखो को बंद कर लिया तो अब सौरभ ने घुटने की मालिश शुरू की

तेल से चेकने हाथ विनीता के घुटनो पर फिर रहे थे जो कभी कभी उसकी मांसल जाँघ को भी टच कर रहे थे उपर से विनीता तो एक चुदासी औरत थी जो पिछले कुछ दिनो मे गपगाप लंड ले रही थी और उपर से ये जिस्म कहाँ किसी रिश्ते नाते को समझता है तो विनीता बस अपनी आँखे बंद किए सौरभ के हाथो को अपने जिस्म पर महसूस कर रही थी इधर सौरभ का दिल कर रहा था कि सबकुछ छोड़ कर अभी मम्मी की टाँगो को खोलू और अपना लंड अंदर घुसा दूं

उस वक़्त उस कमरे के माहौल मे इतनी गर्मी भर गयी थी कि बस पूछो ही मत,विनीता अपनी भावनाओ पर पूरा काबू रखना चाह रही थी पर उसका शरीर उसका साथ नही दे रहा था उधर घुटना तो कब का नीचे रह गया था सौरभ के हाथ उसकी नंगी जाँघो पर चल रहे थे विनीता की चूत से रस बहने लगा पर वो बस आँखे बंद करके पड़ी हुई थी पर जल्दी ही सौरभ ने अपने हाथ उसकी जांघों से हटा लिए और कहा कि मम्मी अब मैं आपको पलट देता हूँ और पीछे दवाई लगा देता हूँ

ये सुनकर विनीता असहज होने लगी पर कोई और चारा भी तो नही था उसका चोट वाला कुल्हा दुख रहा था तो उसने हार कर हाँ कह दी सौरभ को तो जैसे मन माँगी मुराद मिल गयी थी बड़े ही प्यार से उसने विनीता को पलटा और फिर धीरे से साड़ी को उपर उठाया तो अपनी मम्मी के गोरे गोरे चूतड़ देख कर सौरभ के लंड से पानी की कुछ बूँद गिर ही गयी उसे यकीन नही हो रहा था कि वो अपनी मम्मी की गान्ड को निहार रहा था उधर विनीता बस इतना ही बोली कि बेटा जल्दी से दवाई लगा दो

आख़िर वो भी अब अपने बेटे के सामने इस सिचुयेशन को और नही झेल सकती थी काँपते हाथो से सौरभ ने मम्मी की गान्ड को टच किया तो ऐसा अहसास हुआ रूई से भी मुलायम चुतड़ों पर अंजाने मे ही हाथ फेर दिया उसने अब विनीता समझ गयी थी कि सौरभ उसके जिस्म के मादक नज़ारे को देख कर उत्तेजित हो रहा है जो कि बिल्कुल ठीक नही था तो वो थोड़े से कड़क स्वर मे बोली कितनी देर लगा रहा है जल्दी से दवा लगा

तो सौरभ फिर बिना कोई शरारत किए दवाई लगाने लगा दवाई से विनता को बहुत आराम मिला फिर सौरभ ने कहा की मम्मी आप दूसरे कपड़े पहन लो और अलमारी से एक घाघरा चोली उसको दे दी और वही बैठ गया तो विनीता बोली क्या अब जा भी तो वो बोला जी मैं सोच रहा था कि मदद करू कपड़े पहन ने मे तो विनीता ने कहा नही मैं पहन लूँगी तू जा तो सौरभ उठ कर चल पड़ा पर उसके पयज़ामे के अंदर छुपे लंड के तनाव को विनीता ने देख लिया था

क्या उसका बेटा उसको देख कर उत्तेजित हो गया था , कैसे कर सकता है वो ऐसा फिर उसे खुद परही शरम आई कि ऐसे हालत मे तो किसी का भी लंड तनेगा ही पर हालत ही ऐसे थे उसने अपनी चूत को दबाया और फिर थोड़ी मेहनत करके कपड़े पहने और सो गयी जबकि अपने कमरे मे आते ही सौरभ ने सबसे पहले दो बार मम्मी को सोच कर मूठ मारी तब जाके उसको कुछ चैन मिला
शाम को प्रेम जब विनीता के घर गया तो सौरभ कुछ काम से बाहर गया था वो लेटी हुई थी प्रेम को देख कर उसे अच्छा लगा प्रेम उसके पास बैठ गया और बाते करते हुए उसकी टाँगो को सहलाने लगा विनीता तो प्रेम पर पूरी तरह से फिदा थी ही उसके स्पर्श से उसकी चूत गीली होने लगी वो बोली ओह प्रेम कैसा जादू सा कर दिया है तूने मुझ पर पल पल तड़प रही हूँ तेरे बिना पर मैं करूँ भी तो क्या उपर से ये निगोडी चूत जीने नही दे रही है

प्रेम ने कहा चाची अब ऐसी हालत मे चुदाई कैसे होगी कहीं जोश जोश मे घुटने की मुसीबत और ना बढ़ जाए वो बात कर ही रहे थे कि सौरभ भी आ गया फिर प्रेम और सौरभ नदी की तरफ घूमने चल दिए चलते चलते सौरभ ने पूछा कि यार प्रेम चूत मारने का बड़ा दिल करता है पर क्या करूँ कि अपना काम बन जाए अब प्रेम उसको क्या बता ता कि उसका काम तो बन ही गया है तो प्रेम ने कहा कि यार दिल तो मेरा भी बहुत करता है पर कोई जुगाड़ हो तभी ना

तो सौरभ बोला यार मैं थोड़े दिन पहले जब शहर गया था तो एक किताब लाया था उसमे माँ और बहन को चोदने की कहानिया थी क्या ऐसा सच्ची मे हो सकता है अब प्रेम ने उषा के साथ जो कुछ महसूस किया था तो वो ही सीन उसकी आँखो के सामने आ गये और बेध्यानी मे उसके मुँह से निकल गया कि यार ऐसा होता है मैं भी उषा दीदी को चोदना चाहता हूँ

पर अगले ही पल उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ पर अब बात को संभाला नही जा सकता था तो सौरभ बोला यार तू तो छुपा रुस्तम निकला दीदी को चोदना चाहता है औ मुझे नही बताया तो प्रेम बोला यार वो बस ऐसे ही हो गया तो फिर सौरभ बोला यार मैं भी तुझसे एक बात बताना चाहता हूँ कि मैं भी अपनी मम्मी को चोदना चाहता हूँ पर कैसे ये नही पता

तो प्रेम ने कहा कि वाह मेरे शेर तू भी कम नही है तो यार हम आज से ही अपनी इन हसरतों को पूरा करने की कोशिश करेंगे और एक दूसरे की मदद भी करेंगे इधर सौरभ खुश था और प्रेम ये सोच रहा था कि अब जब सौरभ भी विनीता की ले लेगा तो उसके और विनीता के रिश्ते पर वो कुछ बोल भी ना पाएगा उधर सौरभ सोच रहा था कि मम्मी की चुदाई के बाद वो उषा दीदी को भी पेल देगा जल्दी ही उनकी ये हसरतें क्या गुल खिलाने वाली थी

उस रात प्रेम अकेला बिस्तर पर करवटें बदल रहा था सौरभ विनीता के बेड के साइड मे ही खाट डाले हुए था नींद तीनो की आँखो मे ही नही थी सब कुछ ना कुछ सोच रहे थे हसरतों की आग धीरे धीरे भड़क रही थी सबको इंतज़ार था चिंगारी को शोलो मे बदल जाने का उधर उषा ने चुपके से अपनी सलवार को घुटनो तक सरका दिया था और कच्छि के उपर से ही अपनी अन्छुइ फूली हुई चूत को रगड़ते हुए प्रेम के ख़यालो मे ही डूबी हुई थी कभी कभी वो सोचती थी कि अपने भाई के बारे मे ऐसा सोचना बड़ा ही ग़लत है पर भाई से चुदने के ख़याल से ही उसके तन बदन मे एक जोश की लहर दौड़ जाती थी

अपनी चूत की दरार मे उंगली रगड़ते हुए उषा सोच रही थी कि कब वो अपने भाई का मस्त लोड्‍ा चूत मे लेगी ना जाने कब माँ वापिस घर जाएगी और वो जुगाड़ करके भाई से चुदेगि दूसरी तरफ जब से प्रेम ने उषा दीदी का जिकर किया था तो वो मस्त मंज़र उसकी आँखो से हट ही नही रहा था जब उसने अपनी दीदी को पूरी तरह से नंगी अवस्था मे देखा था तो बस दीदी को चोदने की कल्पना करते हुए वो अपने लंड को हिलाने लगा और कर भी क्या सकता था बेचारा

दोनो भाई बहन अपना अपना पानी गिरा कर सो गये रात के करीब दो बज रहे थे विनीता को पेशाब लगी थी उसने देखा कि सौरभ नींद मे है तो वो दीवार का सहारा लेकर उठी और दरवाजे के पास ही पेशाब करने को गयी उसे पता नही था कि सौरभ जाग गया है बाहर जलते बल्ब से सौरभ बाहर का नज़ारा देख रहा था विनीता अब बैठ तो सकती नही थी उसने सोचा कि बेटा तो सो रहा है खड़ी खड़ी ही मूत ले उसने साड़ी को कमर तक उठाया अंदर कच्छि तो पहनी नही थी

अब दरवाजे की तरफ उसकी जो पीठ थी तो मस्त गोरे गोरे चूतड़ सौरभ की आँखो को चुन्धियाने लगे उफफफफफफफफफ्फ़ कितने बड़े बड़े गोल मटोल कूल्हे थे सौरभ की लार टपक पड़ी विनीता ने अपनी टाँगो को खोला और सुर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर सुर्र्र्ररर करते हुए टाँगो के जोड़ से पेशाब की धार बह निकली कुछ पेशाब नीचे गिरने लगा कुछ उसकी टाँगो पर रिसने लगा सौरभ के लिए बड़ा ही सेक्सी नज़ारा था वो अब उसको अपने तने हुए लंड को जल्दी ही ढीला करना था नसें इतनी फूल गयी थी कि कहीं फट ही ना जाए

अपनी मम्मी के अन्द्रुनि अंगो को देख कर सौरभ बहुत मुश्किल से खुद पर काबू कर पा रहा था अगर वो उसकी मम्मी ना होती तो पक्का अब तक वो उसको ज़बरदस्ती चोद चुका होता पर अभी भी उनके बीच मे मर्यादा की डोरी थी जिसे टूट ने मे थोड़ा वक़्त लग ना था अगले दिन सौरभ का बापू जल्दी ही घर आ गया तो फिर सौरभ को कुछ ज़्यादा मोका नही मिला विनीता के करीब रहने का , जबकि उषा ने तो वापिस घर जाने की रट लगा दी तो हार कर सुधा को तैयार ही होना पड़ा वापिस आने को

जब माँ बेटी वापिस आ रही थी तो बस मे बहुत ही भीड़ थी सुधा ने जवान बेटी को तो किसी तरह सीट पर बिठा दिया पर उसे खड़ा ही होना पड़ा उसके पीछे एक प्रेम की ही उमर का लड़का खड़ा था बस झटके ले ले कर चल रही थी सुधा को परेशानी तो बहुत हो रही थी पर मजबूरी थी सफ़र भी तो करना था, और वो लड़का भी बेशरम उस से बिल्कुल चिपक ही रहा था सुधा को जल्दी ही अपनी मस्तानी गान्ड पर कुछ चुभता सा महसूस हुआ तो वो समझ गयी कि वो क्या है पर बस में वो कोई तमाशा नही खड़ा करनी चाहती थी


Adultery दिव्या का सफ़र

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