अनाड़ी पति और ससुर रामलाल


अजय को भी अब बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था। उसने अपने लंड की सुपारी सुनीता की चूत के मुंह पर रखकर एक जोर का धक्का मारा। उसका समूंचा लंड सुनीता की चूत में जा समाया। आनंदानुभूति से किलकारियां भरने वह और जोरों से चिल्ला-चिल्लाकर अपने दोनों चूतड़ उछाल-उछाल कर अजय के मोटे लंड को अपनी चूत में गपकने की चेष्टा करने लगी। अजय को भी लगा कि उसका लंड किसी गर्म सुलगती भट्टी में जा समाया है। गर्म भट्टी में होने के बावजूद उसे आनंद की अनुभूति हो रही थी। वह जोरों के धक्के सुनीता की बुर में लगाए जा रहा था। इधर सुनीता का हाल तो काबिले-बयाँ था। वह तो इतनी गरमा गई थी की मुंह से अनेक गंदे-गंदे शब्दों का प्रयोग कर रही थी। जैसे – आह: फाड़ डालो मेरी चूत को …भैया, आज मेरी चूत को चोद -चोदकर निहाल कर दो मुझे … आज अपने लंड के सारे जौहर मेरी चूत के ऊपर ही दिखादो …जरा जोरों से चोदो न, अगर तुमने मुझे आज तृप्त कर दिया तो मैं अपनी सारी सहेलियों को तुमसे चुदवा डालूंगी …” लगभग एक घंटे की काम-क्रीडा के बाद अजय ने सुनीता को पूरी तरह से छका दिया और खुद ने भी छक कर उसकी चूत का मज़ा लिया। आधी रात के बाद सुनीता की योनि फिर गरम होने लगी। उसने अजय का लंड पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया। काफी देर तक वह अजय का लंड पकडे उसे चूमती-चाटती रही। अंतत: अजय की आँखें खुल ही गईं। वह बोला, “सुन्नो, अब हम-लोग काफी थक गए हैं, अभी सो जाओ, कल की रात भी तो आएगी ही। बाकी अगर आज कोई कमी रह गई है तो कल पूरी कर लेंगे। अब हम-तुम एक दूसरे के इतने करीब आ गए हैं कि हमारा ये साथ छुटाए नहीं छूटेगा। जाओ आराम कर लो।” सुनीता अब एक ऐसी औरत बन चुकी थी कि उसे तृप्त करना कोई आसान काम नहीं रह गया था। उसकी तो ख्वाहिश इतनी बढ़ चुकी थी कि एक साथ अगर उसपर दस-बारह लोग भी उतर जाएँ तो भी वह थकने वाली न थी।


सुबह नाश्ते की टेबल पर अजय ने उससे पूंछा, “सुन्नो, रात मैंने एक बात नोटिस की कि तूने मेरा आठ इंच का लंड आसानी से झेल लिया और न तो तेरी चूत फटी और न ही उससे खून ही निकला।” “सच-सच बताऊँ ..तो सुनो। जब मैं दीदी के यहाँ गई तो उस समय तक मैं बिलकुल अछूती, अनछुई या ये कहिये बिलकुल कच्ची कली थी। दोपहर को दीदी ने मुझे एक ब्लू-फिल्म दिखाई जिसे देख कर मेरा दिल मेरे काबू से बाहर हो गया और मैं किसी मर्द का लंड अपनी चूत में डलवाने को तड़प उठी। मेरी तड़प देखकर दीदी बोली, “घवरा मत, आज तेरी इच्छा पूरी करवा दूँगी। मैंने चौक कर पूछा कि कौन है जो मेरी इच्छा पूरी कर सकता है तो दीदी ने बताया कि उसके ससुर (रामलाल) हैं। मैंने आश्चर्य से पूछा कि वह क्या कह रहीं हैं, तो ज्ञात हुआ कि वह स्वयं भी उन्हीं से अपनी आग ठंडी करवाती है। दीदी ने बताया कि जीजू तो किसी काम के हैं नहीं। वे तो एकदम नपुंशक हैं। दीदी ने बहुत कोशिश की पर जीजू का लंड खड़ा होने का नाम ही नहीं लेता। अंत में हार-थक कर दीदी को ससुर की बात ही माननी पड़ी और आज उनके पेट में जो बच्चा पल रहा है वो भी उनके ससुर का ही है। जिस रात में ब्लू-फिल्म देख कर बेकाबू हो रही थी उसी रात को दीदी ने मुझे भी उन्ही से चुदवाने की राय दी और मैं मान गई। लेकिन भैया, एक बात तो माननी पड़ेगी। मौसा जी का लंड है बड़े गजब का। पट्ठे ने एक साथ हम दोनों बहिनो की रात में तीन वार ली परन्तु मज़ाल क्या जो जरा भी कमजोर पड़ जाता हमारे आगे। सारी बात सुनकर अजय बोला, “सुन्नो, मुझे दीदी के ससुर पर क्रोध भी आ रहा है और उसे धन्यवाद देने का मन भी कर रहा है।” सुनीता ने पूछा, “ऐसा क्यों भैया?” अजय बोला, “गुस्सा इसलिए कि वह अपनी बेटी समान बहु और उसकी बहिन की लेने से नहीं चूका। और धन्यवाद इसलिए देता हूँ की अगर वह तुझे न चोदता तो तू मुझसे कैसे चुदवाती। अच्छा चल, दीदी के यहाँ चलने का प्रोग्राम बनाते हैं किसी दिन।” “मैंने पूछा, “भैया, अचानक आपको दीदी के यहाँ जाने की क्या सूझी?” अजय ने मुस्कुराकर कहा, “पगली, जब दीदी अपने ससुर से चुदवा सकती है तो मैं क्यों उसे नहीं चोद सकता?” अजय ने सुनीता को समझाया – देख सुनीता, हम-तुम तो जीवन भर एक-दूजे के रहेंगे। पर अगर दीदी की चूत मिल जाए तो क्या बुरी बात है। तू अपनी मर्ज़ी बता, अगर मैं कुछ गलत सोच रहा होऊं तो। और फिर मैंने तुझसे ये वादा भी तो किया है कि मैं अपने सारे दोस्तों से तुझे चुदवाने की खुली छूट दे दूंगा और तू अपनी सहेलियों की मुझे दिलाएगी। इस बात पर दोनों ही सहमत हो चुके थे।

सुनीता और अजय दोनों भाई-बहिन अपनी दीदी अनीता के यहाँ आगये थे। अनीता ने भाई बहिन की खूब खातिरदारी की। सुनीता ने पूछा, “दीदी, कहीं मौसा जी दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। अनीता ने मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या बात है सुनीता, मौसा जी को देखे बिना चैन नहीं पड़ रहा? ठीक है, अभी दुकान तक ही गए हैं आते ही होंगे। ” सुनीता बोली, “दीदी, जीजू कैसे हैं? उनमे कोई बदलाब आया है क्या?” अनीता जीजू के नाम पर झुझलाकर बोली, “अब उनमे कोई बदलाब नहीं आने वाला। एक दिन तो उन्होंने साफ़-साफ़ कह दिया कि अगर रहना है तो रह मेरे पास वर्ना किसे से भी अपने यौन-सम्बन्ध बना ले, मुझे कोई एतराज नहीं। अब तुझे मैं उनके वारे में क्या खाक बताऊँ?” अनीता ने पूछा – तू बता इतनी जल्दी कैसे वापस आगयी? क्या मौसा जी की याद खीच लाई। सुनीता ने सर हिलाकर हामी भरी और बोली, “दीदी, तुमने वह सीडी दिखाकर मेरे तन-बदन में जो आग लगाईं है न, वो अब बुझाये नहीं बुझ रही है। मन में आया कि चलकर मौसा जी से ही मज़े लिए जाएँ। वैसे दीदी बुरा न मानना, मैंने अजय भैया को भी अपनी दे डाली है। क्या करती, हम-दोनों खिड़की की ओट से बड़े भैया और मझली भाभी की ब्लू-फिल्म देख रहे थे कि अजय भैया ने मेरी चूचियां सहलानी शुरू कर दीं और मैं उनके बढ़ते हुए हाथो को कतई रोक न पाई।


हम लोग कमरे में आ गए और उन्होंने मेरी सलवार उतार कर मेरी चूत में उंगली डालकर अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया। मैंने तो फिर उनके आगे हथियार डाल दिए और अपने को उनके हाल पर छोड़ दिया। फिर क्या था, उन्होंने मेरी ब्रा खोली और खूब जमकर उन्होंने मेरी चूचियों को रगडा, चूंसा और सहलाया। मुझे विरोध न करते देख उनकी हिम्मत इतनी बढ़ गयी कि उन्होंने मेरी सलवार भी उतार फैंकी और खुद भी नंगे होकर मुझ पर चढ़ गए और फिर उन्होंने मेरी चूत पर अपना मोटा लंड टिकाकर मुझे जोरों से चोदना शुरू कर दिया। सारी रात उन्होंने मेरी ली। मेरा भी मन नहीं भर रहा था इसलिए मेरे कहने पर उन्होंने मेरी बुर चार-पांच वार चोदी। फिर मैं उन्हें पटाकर तुमसे मिलने का बहाना बना कर अजय भैया को यहाँ ले आई। सुनीता की जुबानी सारी सच्चाई सुनकर अनीता ने पूछा – कहीं अजय अब मेरी तो नहीं लेगा। देख सुनीता, तूने तो मेरे इतना मना करने के बावजूद भी उससे अपनी चुदवा ली, पर याद रखना मैं ऐसा हरगिज़ नहीं करवा सकती। चाहे वह बुरा माने या भला। बहराल मुझे किसी कीमत पर उसे अपनी नहीं देनी है। सुनीता बोली – दीदी, ये तुम्हारी अपनी मर्ज़ी है। पर एक बात तो है कि मैं मौसा जी से आज रात जरूर चुदवाउंगी।


अनीता ने पूंछा – अच्छा सुनीता एक बात बता, अजय का लिंग भी तेरे मौसा जी के लिंग के बराबर ही है? सुनीता बोली – दीदी, है तो करीबन उतना ही लम्बा और मोटा किन्तु सख्त बहुत है। सच मानना दीदी, तीन दिन तक तो मेरी बुर सूजी रही थी। पूरे एक घंटे तक ली थी भैया ने मेरी। आह: दीदी, सच पूंछो तो अजय भैया का लंड भी न, बड़ा ही मज़े देता है। मेरी बात मानकर अपनी चूत में एक वार उनका लंड ले जाकर तो देखो, अगर न अपने तन की सुध-बुध भूल जाओ तो कहना। देख अजय के लंड की इतनी तारीफें कर-करके मेरे मुंह में पानी मत भरवा। तू कितनी ही कोशिश कर मैं खूंटे पर रख कर फाड़ दूँगी अपनी परन्तु अजय को नहीं दूँगी। सुनीता बोली – जैसा तुम ठीक समझो दीदी, मैं तो रात में अपने बिस्तर से उठ कर मौसा जी के कमरे में चली जाउंगी। आज रात तुम्हारे कमरे में अजय भैया और तुम ही सोओगी सिर्फ।
सुनीता की बात पर अनीता अजय की वारे में बहुत देर तक सोचती रही। वह सोच रही थी की जब सुनीता उसके लंड की इतनी तारीफ़ कर रही है तो उसका स्वाद भी चख लिया जाए। जब मैं पिता समान ससुर से चुदवा सकती हूँ तो वह तो फिर भी मेरा भाई ही है। इसी उधेड़-बुन में कब रात हो गयी। उसे तो तब पता चला जब रामलाल दुकान से समान लेकर भी लौट आया और उसने ढेरों बातें सुनीता से भी कर डालीं। अनीता ने पास आकर रामलाल से कहा – जानू आज मेरा छोटा भाई आया है। उसके सामने अपनी पोल न खुल जाए इसलिए सुनीता मौका पाकर तुम्हारे कमरे में खुद ही आ जायेगी, ज्यादा द्वन्द मत काटना। काटना, खूब लेना मज़े लेकिन सुनीता के साथ। मुझे बिलकुल भी आवाज न देना। रामलाल एक समझदार ससुर की भांति बहू की बात मान गया। खाना खाकर सब लोग अपने-अपने कमरे में चले गए। अजय ने प पूछा – मौसा जी, जीजू कहाँ गए हैं? रामलाल ने बताया की आज उसे अनाज लेकर अनाज मंडी भेजा है। अजय की तो मन की बात हो गयी। उसके दिल में अन्दर ही अन्दर लड्डू फूटने लगे थे। अब वह आसानी से दीदी की चूत ले सकेगा।
क्रमशः….अनाड़ी पति और ससुर रामलाल–5

गतान्क से आगे…………. ….
रात के करीब 11 बजे का बक्त होगा, सुनीता चुपचाप अनीता के पास से उठकर रामलाल के कमरे में जा घुसी। अनीता और अजय अपने-अपने बिस्तर पर लेटे नीद आने का इन्तजार कर रहे थे। अनीता के मन में धक्-धक् हो रही थी कि कहीं अजय उसके साथ कुछ करने लगे तो उसे कैसे रोकेगी वह। सुनीता की तो ले ही चुका है, अब उसका अगला निशाना कहीं वह न हो। इसी बीच अजय ने अनीता को आवाज दी – दीदी, क्या सो गयीं? अनीता ने कहा – नहीं तो, क्या बात है? अजय बोला, दीदी, तुम्हें भी नीद नहीं आ रही क्या? अनीता बोली – ऐसी बात नहीं, पर मेरे सिर में कुछ दर्द सा है, इसी लिए नीद नहीं आ रही है। अजय बोला – दीदी आपका सिर दबा दूं? मेरे हाथो में जादू है। हलके हाथ से दबाने पर ही सर दर्द गायव हो जाएगा। अनीता कुछ न बोली और अजय उसकी मौन स्वीकृति को भांप कर अनीता के सिरहाने जा बैठा और हलके-हलके उसका सर दबाने लगा। अजय के हाथ अनीता के सर पर इसप्रकार से फिर रहे थे कि उसे स्वयं भी अच्छा लगने लगा था। दीदी, कन्धों में भी दर्द हो रहा है न, ऐसा कहकर उसने अनीता की हाँ, ना का इंतजार न करते हुए उसके कन्धों पर भी धीरे-धीरे हाथ फिराने शुरू कर दिए थे। अनीता ने सोने का अभिनय करते हुए खर्राटे भरने शुरू कर दिए थे। अजय ने अवसर पाकर उसके कन्धों से नीचे की ओर अपने हाथ फिसलाने शुरू कर दिए और उसकी चूचियों को भी हलके से सहलाना आरम्भ कर दिया। अनीता तो जगी ही पड़ी थी किन्तु फिर भी वह अनजान बनी चुपचाप लेटी रही। उसने नीद में होने का अभिनय करते हुए अपने बदन को बिलकुल सीधा कर दिया।


अजय को उससे अनीता के सारे बदन को टटोलने में काफी सुबिधा हो गयी। वह अंपने हाथ धीरे-धीरे फिसलाता हुआ उसकी जाँघों तक ले आया। धीरे से उसने अनिता की साड़ी उठाकर उसके पेट पर रख दी और उसकी चिकनी मासल जाँघों पर हाथ फिराने लगा। अनीता के मुंह से एक हलकी सी सिसकारी फूटी जिसका अजय ने तुरंत लाभ उठाकर अपनी एक उंगली उसकी चूत में घुसेड़ कर उसे अन्दर-बाहर करने लगा। अनीता ने मस्ती में आकर अपना एक हाथ अजय के लिंग को टटोल कर उसे पकड़ लिया और बोली – अजय तू मुझसे कितना छोटा है, तुझे चोदने को सिर्फ मैं ही मिली थी। अजय बोला – नहीं दीदी, आपसे पहले मैं सुनीता को भी चोद चुका हूँ चुदवाते वक्त सुनीता ने मुझे सब-कुछ बता दिया कि सबसे पहले उसने तुम्हारे ससुर से अपनी चूत फटवाई है। उसने यह भी बताया क़ि जीजू तो नामर्द हैं। इसी लिए दीदी भी अपने ससुर से अपनी आग शांत करवाती हैं। अब दीदी, एक बात बताओ, अगर तुम्हारा छोटा भाई भी बहती गंगा में हाथ धो लेगा तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा। ऐसा कहकर अजय ने अपनी उंगलिओं से अनीता की चूत सहलानी शुरू कर दी और दोनों छातियों को कस-कस कर दबाने और चूंसने लगा।
अनीता के बदन के सारे तार झनझना उठे। उसने कस कर अजय को अपनी बांहों में जकड़ लिया और बोली – अच्छा चल तू भी लेले मेरी, डाल दे अपना पूरा लंड मेरी चूत में। पर तुझे मेरी कसम, इस बात का ज़िक्र किसी से भूल कर भी न करना। अजय बोल – दीदी, क्या मैं पागल हूँ जो किसी से ऐसी बातें कहूँगा। लोग मुझे ‘बहनचोद’ कहकर नहीं पुकारेंगे। तो ठीक है, आ जा सारे कपडे उतार कर मेरे ऊपर। और फिर अजय ने एक ही धक्के में अनिता की चूत में अपना पूरा लंड घुसेड़ दिया। अजयबोला – दीदी, आपको तो जरा भी दर्द नहीं हुआ और मेरा समूंचा लंड तुम्हारी बुर में समां गया। सुनीता ने कुछ दर्द महसूस तो किया था। देख अजय, मैं कब से अपने ससुर से चुदवा रही हूँ। अनीता ने सिर्फ एक सप्ताह ही अपने मौसा जी से चुदवाई है। उसकी मुझसे ज्यादा चुस्त तो होगी ही। अच्छा, अब देर मत कर, मेरी चूत को जितनी तेजी से फाड़ सके, फाड़ डाल इसे। अजय ने एक जोरदार धक्का फिर अनीता की चूत में दे मारा और अनीता ख़ुशी से उछल पड़ी और उसकी सिसकियाँ उस बड़े कमरे में गूंजने लगीं … आह: अजय ….मेरे भाई …..आज पूरी ताकत से मेरी बुर को फाड़ डाल मेरे भैया, अगर तूने मुझे खुश कर दिया तो फिर तेरे लिए अपनी चूत के द्वार हमेशा-हमेशा के लिए खोल दूँगी …आज मेरी चूत का चित्तोड़-गढ़ बना डाल। तेरा जीजू तो न मर्द है साला ….अनीता चूतड़ उछाल -उछाल कर अजय के लंड को अन्दर ले जाने का भरसक प्रयास कर रही थी। और अंत में दोनों ही एक साथ झड़ गए।


काफी देर तक दोनों एक दूसरे से नंगे बदन लिपटे रहे। सुबह सुनीता ने आकर दोनों के ऊपर से कम्बल उठाया तो दोनों को नंगा लिपटे देखकर खिलखिलाकर हंस पड़ी तो उनकी नीद टूटी। अनीता की बात बन आई, वह बोली – क्यों दीदी, याद है तुमने क्या कहा था ‘खूंटे पे रखकर फाड़ दूँगी पर भाई को नहीं दूँगी।’ अनीता झेंप सी गई और बोली – चुप हरामजादी, तूने ही तो इसके लंड की तारीफों के पुल बाँध कर मुझे इससे चुदने को मजबूर कर दिया। दीदी, सुनीता बोली -अब तो में अजय भैया से रोज रात को चुदवा सकती हूँ? सच बताओ तुम्हें भैया का लंड कैसा लगा। अनीता मुस्कुरा भर दी। अगले दिन सुनीता और अजय ने बिदा ली और अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते भर दोनों लोग अपने अगले प्लान के वारे में सोचते रहे। अंत में उन्होंने तय किया कि वह किस प्रकार अपने बड़े भैया जो मझली भाभी को चोदते हैं, को ब्लैकमेल करके पहले उनसे खुद चुदवायेगी और फिर वह मझली भाभी को डरा-धमका कर अजय भैया से चुदवाने को मजबूर कर देगी।

सुनीता और अजय दोनों अब पूरी योजना बना चुके थे कि उन्हें बड़े भैया रविशंकर को और मझली भाभी को अपने शिकंजे में कैसे फांसना है। सुनीता का मकसद था बड़े भैया के साथ मजे लेना और अजय का इरादा था अपनी मझली भाभी की योनि लेना। अत: एक दिन मौका पाकर सुनीता बड़े भैया के कमरे में जा पहुंची और बोली, “बड़े भैया, मेरे सीने में एक गाँठ उभर आई है। इसमें सुबह से हल्का सा दर्द हो रहा है।” ऐसा कहते हुए सुनीता ने रवि का हाथ पकड़ अपनी दाहिनी चूची पर रख दिया। रवि के तन-बदन में एक झुरझुरी सी आ गयी। सुनीता बोली-“भैया अन्दर से पकड़ कर देखो, ऊपर से गाँठ दिखाई नहीं देगी।” रवि को सकुचाते देख सुनीता ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी कुर्ती के अन्दर डाल दिया। अन्दर ब्रा न पहने होने के कारण सुनीता की समूची नंगी चूची रवि के हाथ में आ गई। रवि ने हिम्मत करके उसे धीरे-धीरे सहलाना शुरू कर दिया। सुनीता पर मदहोशी सी छाने लगी। बोली, “भैया, आप ऐसे ही धीरे-धीरे सहलाते रहो, इससे दर्द कुछ कम सा होता जा रहा है।” रवि भी अत्तेजित हो उठा था। उसने धीरे-धीरे अपना हाथ दोनों चूचियों पर फिराना शुरू कर दिया। सुनीता के सारे शरीर में करंट सा दौड़ गया। उसके मुंह से सिसकारियाँ फूटने लगीं। रवि ने हाथ पेट से होते हुए नीचे नाभि तक सरकाना शुरू कर दिया। उसका लिंग तन कर खड़ा होने लगा था जो सुनीता की जाँघों से रगड़ खा रहा था।


रवि ने कहा, “सुन्नो, अपनी कुर्ती उतार दे। में अभी दरबाजा बंद करके आता हूँ।” और जब रवि लौटा तो उसने सुनीता को अपनी बांहों में भर कर चूम और बोला, “सुन्नो, तू सीधी होकर लेट जा, मैं इस गाँठ को अभी ठीक करता हूँ।” तब रवि ने अर्ध-नग्न सुनीता की दोनों चूचियों को खुलकर सहलाना शुरू कर दिया और घुंडियों को मुंह में लेकर चूंसना भी आरम्भ कर दिया था। सुनीता मस्ती में भर कर सिस्कारियां भरने लगी थी। रवि ने अपना एक हाथ सुनीता की सलवार के अन्दर सरका कर उसकी जाँघों को सहलाना शुरू कर दिया था। सुनीता सिंहर उठी और उसने रवि के सीने में अपना मुंह छुपा लिया। वह बोली, “भैया, यह क्या कर रहे हो?” “तुझे जी भर के प्यार कर रहा हूँ पगली, आज में तुझे इतना प्यार करूंगा जितना तुझे कभी किसी ने नहीं किया होगा। बोल चाहती है कि मैं तुझे इसी तरह प्यार करूँ …या तुझे अच्छा नहीं लग रहा यह सब करना?” “नहीं भैया, ऐसी बात नहीं है। मगर मुझे गुदगुदी सी हो रही है।” “कहाँ हो रही है गुदगुदी सी, जरा मैं भी तो देखूं …” “दोनों जाँघों के बीच में भैया … आह: … उंगली अन्दर न डालो भैया …” “क्यों, क्या दर्द हो रहा है? अच्छा, एक काम कर ….” “क्या भैया?” “अपनी सलवार भी उतार दे। आज तुझे पूरा मज़ा दे ही डालूँ …” “नहीं भैया, मुझे डर लगता है। आप वैसे ही करोगे, जैसा मझली भाभी के संग करते हो। ..”


“क्या करता हूँ मैं मझली भाभी की संग?” “आप उन्हें नंगा करके उनकी पेशाव की जगह में अपना मोटा वो डालते हो।” ” तुझे किसने बताया? ….” “मैंने खुद अपनी आँखों से यह सब देखा है भैया ….. आपने पहले भाभी को नंगा किया फिर आप खुद भी नंगे हो गए, फिर आपने भाभी की पेशाव वाली जगह को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया …तभी आपने अपना मोटा सा डंडा भाभी की पेशाव वाली जगह में घुसेड़ दिया। अगर आप मेरी पेशाव वाली जगह में ऐसा करॊगे तो मेरी फट जायेगी भैया …” “चल तेरी नहीं फाडूंगा, पर उसे चाटने तो देगी।” “हाँ भैया, चाट लेना।” “तो जल्दी से उतार दे अपनी सलवार और बिलकुल नंगी हो जा, मेरी अच्छी सुन्नो।” “नहीं भैया, मुझे शर्म आती है।” “क्यों शर्माती है …मैंने तुझे नहलाते वक्त कभी नंगा नहीं देखा क्या, तू छोटी सी थी तबसे तुझे नंगा देखा है मैंने ….चल उतार दे सलवार …आज एक-एक परत उठाकर देखूँगा तेरी।” “नहीं भैया, आप फाड़ डालोगे मेरी …” “नहीं रे सुन्नो …तेरी कसम, जरा भी तखलीफ़ नहीं होने दूंगा तुझे …” “भैया, आप ही नंगा करदो मुझे …. मुझे शर्म आती है।” “अच्छा, नहीं मानती तो चल मैं ही तुझे नंगा किये देता हूँ, चल चूतड़ उठा।” रवि ने अपने हाथों से उसकी सलवार उतार फेंकी और उसकी दोनों जाँघों को फैला कर उसकी चिकनी दूधिया योनि पर हाथ फेरता हुआ बुदबुदाया, “मेरी सुन्नो, मुझे क्या पता था तेरी इतनी चिकनी और सुन्दर है रे …. चल पूरी ताक़त के साथ अपनी जाँघों को चौड़ा करके फैला दे। आज मैं जी भर के चखूंगा तेरी योनि का रस।”


और फिर उसने पूरे जोशो-खरोश के साथ सुनीता की योनि चाटना शुरू कर दी। सुनीता अपने दोनों कुल्हे हिला-हिला कर किलकारियां भरने लगी। “आह: बड़ा मज़ा आ रहा है भैया, और जोर से चाटो इसे …उईईईईई …मार डाला भैया आपने तो ..” “सुन्नो, मेरी रानी बहिना …अभी तो मैंने डाला ही नहीं है तेरे अन्दर, तू पहले से ही इतना शोर क्यों मचा रही है।” “…तो अब डाल दो भैया, मेरे अन्दर कर दो …अब तो बिलकुल ही सहन नहीं हो रहा।” रवि ने उचित मौका जान कर अपना मोटा लिंग उसके हाथ में थमा दिया और बोला, “देख सुन्नो, इतना मोटा झेल जाएगी? …बोल डालूँ अन्दर?” सुनीता ने आँखें बंद कर रखीं थीं, लिंग को हाथ में लेकर उसे सहलाते हुए उसने सिर हिलाकर स्वीकृति दे दी। रवि ने अपने लिंग का अग्र भाग उसकी योनि के मुख पर टिका कर एक जोर का झटका मारा कि समूचा मोटा लिंग फनफनाता हुआ उसकी योनि के अन्दर समां गया और फिर उसने जोरों की धकापेल शुरू कर दी। मारे आनंद के चिंहुक उठी सुनीता। उसके मुंह से निकल पड़ा, “वाह भैया, आज तो मज़ा आ गया। फाड़ डालो मेरी …इतनी फाड़ो कि इसके चिथड़े उड़ जाएँ ….. उनसे रवि के चूतडों पर अपनी टांगें जकड़ रखीं थीं और चूतड़ उछाल-उछाल कर उसका साथ दे रही थी। रवि भी अपना मोटा इंजन गुफा के अन्दर तेजी से दौडाए जा रहा था। लगभग आधे घंटे तक लिंग-योनि की लड़ाई में दोनों को काफी मज़ा आ गया। इसके बाद रवि के लिंग से वीर्य की एक तेज धार फुट निकली जिससे सुनीता की योनि भर गयी। फिर दोनों एक-दूसरे से लिपट कर निढाल होकर पड़ गए।


सुबह आठ बजे तक दोनों उसी प्रकार एक-दूजे की बांहों में लिपटे पड़े रहे। किसी बात की परवाह तो थी नहीं दोनों को। मझले भाई को दो दिन के बाद आना था। वह अपनी पत्नी के साथ ससुराल गया था। छोटा भाई अजय भी परीक्षा देने के लिए बाहर गया हुआ था। आठ बजे दोनों की आँखे खुलीं। सुनीता चौंक कर उठी और उसने झट अपने कपड़े पहने। रवि अभी भी सो रहा था। वह एक -टक उसे यों ही निहारती रही। ऊपर से नीचे तक रवि भैया का नंगा बदन देख कर उसकी योनि में एक वार को फिर से खुजली होने लगी। उसने हौले से उसके लिंग पर हाथ फिराया और हाथ में लेकर सहलाने लगी। इसी बीच रवि की आँखें खुल गयीं। उसने मुस्कुराते हुए सुनीता से कहा, “क्यों सुन्नो, फिर से डलवाने की इच्छा हो रही है क्या?” “आपकी मर्ज़ी है बड़े भैया, आपकी भी इच्छा है तो मुझे कोई इनकार नहीं है।” सुनीता की इसबात पर रवि ने उसे खींच कर अपनी बांहों में जकड़ लिया और उसके ओठों से अपने हॉट सटा दिए। दोनों के हाथ एक बार फिर से एक दूसरे के अंगों से खेलने लगे। रवि ने सुनीता की चूचियों को रगड़ना शुरू कर दिया। सुनीता भी उसके मोटे लिंग से खुलकर खेल रही थी। “एक बात बताओ बड़े भैया, क्या भाभी को आपका यह मोटा-ताज़ा हथियार पसंद नहीं था।” सुनीता ने रवि के लिंग पर प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा। रवि बोला, “उसका यार जो बैठा है उसके मायके में। उसे छोड़ कर साली आना ही नहीं चाहती तो कोई क्या करे।” “भैया, चलो अब तो दो-दो हैं, आपकी प्यास बुझाने वाली आपके पास।” “दो कौन हैं?” “क्यों? एक मैं और एक मझली भाभी।” “भैया, एक बात बताऊँ आपको, अजय भैया ने भी आपका और भाभी का खेल देख लिया है। जब मैं छुपकर आपको भाभी के साथ वो सब करते हुए देख रही थी तो अजय भैया भी आ गए और उन्होंने भी आपको भाभी की लेते हुए देख लिया था।” “तो अब क्या करना चाहिए? तू ही बता।” “आप मझली भाभी को समझा देना कि वह अजय भैया से भी करवा लें, नहीं तो वह आप दोनों की पोल खोल देंगे।” “तू ही कुछ कर, उसे समझा-बुझा कर चुप करा दे।” “भैया, मैं क्या कर सकती हूँ। उस दिन जब मैं आपको मझली भाभी की लेते हुए देख रही थी तो वह भी आकर देखने लगे। वह इतने उत्तेजित हो गए कि उन्होंने मुझ पर ही हाथ फेरना शुरू कर दिया। एक वार तो मैं उनसे बचकर चली आई पर आखिर मैं कब तक बचती। उन्होंने मुझे हथियार डालने पर मजबूर कर दिया। और एक दिन मैं एक सेक्सी-मैगजीन पढ़ रही थी की उन्होंने देख लिया। मैंने उनसे पूछ लिया कि भैया, ये मास्टरवेशन क्या होता है तो उन्होंने मेरी सलवार खोल कर मुझे नंगा कर दिया और मेरी योनि में उंगली घुसेड़ कर बोले, ‘इसे कहते हैं मास्टरवेशन’ इतने पर ही उन्होंने मुझे नहीं छोड़ा और मेरे साथ वो सब कर डाला जो आज रात को आपने मेरे साथ किया।” “बड़ा हरामी निकला बहिनचोद, अपनी छोटी बहिन को ही चोद डाला साले ने !” “भैया, आपने भी तो अपनी सगी छोटी बहिन को ही चोदा है। आप उनपर क्यों नाराज हो रहे हैं?” सुनीता की बात पर रवि बुरी तरह से झेंप गया। वह बोला, “चल जो हो गया सो हो गया, अब आगे की सोच …अब क्या किया जाये।” “भैया, मेरी बात मानो तो मझली भाभी को अजय भैया से चुदवा ही डालो। आप क्यों चिंता करते हो, मैं हूँ तो आपके पास, आपकी हर इच्छा पूरी करने के लिए। आप मेरी जिस तरह से चाहें लीजिये, मुझे कोई एतराज नहीं है। पर भैया, मझली भाभी को अजय भैया से चुदने लिए राज़ी कर लीजिये।” “ठीक है, मैं कल उससे बात करूंगा। अब आ, एक वार तेरी और ले लूं। उतार अपने कपड़े और आ बैठ मेरे मोटे से लिंग पर।” सुनीता ने झटपट अपने सारे कपड़े उतार फेंके और कतई नंगी होकर अपने बड़े भैया के वक्ष से आ लिपटी।

आज सुनीता अपनी एक सहेली को अपने घर लेकर आई थी अपने छोटे भैया को दिए गए वादे के अनुसार। उसे अपने भैया के लिए एक अछूती और क्वांरी कन्या चाहिए थी जिसकी सील सबसे पहले उसके भैया को ही तोड़नी थी। रमा बिलकुल ऐसी ही लड़की थी, एक दम अछूती कच्ची कली! सुनीता की क्लास में वह नयी-नयी आई थी एक दो-दिन में ही रमा की दोस्ती सुनीता से हो गयी। सुनीता ने शीघ्र ही परख लिया कि रमा के शारीरिक सम्बन्ध अभी तक किसी भी लड़के से नहीं बन पाए थे। लेकिन उम्र के हिसाब से वह सुनीता की बातों में दिलचस्पी खूब लेती थी। सुनीता ने जब भलीभांति जान लिया कि रमा सुनीता के जाल में आसानी से फंस जायेगी तो वह आज उसे अपने घर ले आई। रात का डिनर दोनों ने एक साथ ही लिया और फिर रात के समय दोनों बातों में मशगूल हो गयीं। रमा ने बातों ही बातों में सुनीता से पूछा, “सुनीता तुम्हारी शादी होने वाली है?” “हाँ रमा, यार मुझे तो बहुत डर लग रहा है।” “क्यों?” रमा के पूछने पर सुनीता बोली, “यार, सुहागरातके वारे में तो मुझे कोई जानकारी है ही नहीं, इस वारे में किससे राय लूं …मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।” रमा बोली, “इसमें डरने की क्या बात है? मैं तुझे ‘सुहागरात’ नामक एक किताब लाकर दूँगी जिसे पढ़ कर तू सब कुछ समझ जायेगी।” सुनीता बोली, “यार रमा, ये बात नहीं है। मैंने भी सेक्स की कितनी ही मैगज़ीन पढ़ीं हैं। सुहागरात को पति-पत्नी की बीच क्या होता है, यह भी मैं अच्छी तरह से जानती हूँ। डर तो इस बात का है कि पति के मोटे-तगड़े लिंग को मैं झेलूंगी कैसे? मैंने अपनी कई सहेलियों के मुंह सुना है पति का लिंग बहुत मोटा और लम्बा होता है। जब पति पत्नी की योनि में अपना लिंग डालता है तो पत्नी की योनि फट जाती है और किसी-किसी पत्नी को तो बहुत ही तखलीफ़ झेलनी पड़ती है।” “पागल है तू, ऐसा भी कहीं होता होगा कि पत्नी अपने पति का लिंग न झेल पाए। पति-पत्नी बने ही एक-दूसरे के लिए हैं।” सुनीता बोली, “अच्छा तू बता, तूने कभी किसी लड़के से अपनी योनि में लिंग डलवाया है?” “चल पागल, शादी से पहले मैं क्यों डलवाने लगी।” “वैसे तेरी इच्छा कभी हुयी है किसी से डलवाने की?” रमा कुछ देर की चुप्पी के बाद बोली, “हुई तो कई वार है, वह भी जब मैं सेक्स की मैगज़ीन पढ़ती हूँ।” सुनीता ने पूछा,”तूने कभी ब्लू-फिल्म देखी है?” रमा बोली, “नहीं तो …पर कहते हैं कि उसमे लड़की-लड़के सेक्स का खुलकर आनंद लेते हैं।” सुनीता ने रमा के कान में कहा , “मुझे अपने भैया की किताबों के बीच रखी हुयी एक ब्लू-फिल्म की सीडी मिली है। जब भैया सो जायेंगे तो हम-लोग देखेंगे। शायद वह सीडी ब्लू-फिल्म की ही है, वर्ना वे इसे इतना छुपाकर क्यों रखते।” “यार कल का पेपर खराब हो जाएगा। मैं तो घर पर कहकर आई थी कि सुनीता के घर पढ़ने जा रही हूं।” रमा ने ब्लू-फिल्म कभी देखी नहीं थी अत: वह सुनीता के अधिक जिद करने पर राज़ी हो गई। इसी बीच सुनीता जाकर अजय से कह आई कि वह रमा को ब्लू-फिल्म दिखाने जा रही है, दरवाज़ा भेड़ देगी। वह वह ठीक बारह बजे उनके कमरे में पहुँच जाए। 10 बजे के करीब दोनों सहेलियां टेबल पर अपनी-अपनी किताबें खोल कर बैठ गयीं और सुनीता ने सीडी प्लेयर में डाल कर टीवी ऑन कर दिया। टीवी की आवाज बंद कर दी गयी थी। सीडी शुरू हुई और उसने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। पहले ही सीन में रमा का दिल जोरों से धड़कने लगा। एक अंग्रेज युवक अपनी गर्ल-फ्रेंड की ब्रा खोल कर इसके स्तनों को मसल रहा था। फिर उसने उन्हें चूंसना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे युवक के हाथ लड़की की पेन्टी खोलने लगे और उसे उतार कर उसने एक ओर फैंक दिया और फिर युवक ने झटपट अपने भी सारे कपड़े उतार डाले और एक दम नंगा होकर अपना लिंग सहलाने लगा। लडकी पहले से ही उसके आगे नंगी पसरी पड़ी थी। युवक ने लड़की की दोनों जाँघों को फैला कर उसकी योनि चाटनी शुरू कर दी। और कुछ ही देर में उसने अपना मोटा सा लिंग योनि के छिद्र पर टिका कर एक जोरदार धक्का मारा जिससे समूंचा लिंग लड़की की योनि में जा घुसा। रमा हैरत भरी नजरों से देखे जा रही थी। सुनीता बोली, “छि: कितना गन्दा है ये आदमी, कैसे उसकी योनि को चाट रहा था। रमा ने ओठों पर उँगली रख कर उसे खामोश रहने का संकेत किया और अगले सीन को ध्यान से देखने लगी। रमा बीच-बीच में बड़-बड़ किये जा रही थी। रमा बोली, “यार सुनीता तू बोल मत, चुपचाप देखती रह। मुझे तो डर लग रहा है कि कोई हमें यह सब देखते हुए पकड़ न ले।” अगला सीन आया जिसमे एक नंगी लड़की घोड़े का लिंग सहला-सहला कर उसे खड़ा करने का प्रयास कर रही थी। कुछ ही देर में घोड़े का पूरा लिंग तन कर बाहर लिकल आया। लड़की ने धेरे-धीरे उसके लिंग को अपनी योनि में डलवाना शुरू किया। एक ही वार में घोड़े का आधा लिंग उस लड़की की योनि में जा घुसा। यह देखकर रमा चकित रह गयी और बोली, “यार सुनीता, तू तो पति का लिंग झेलने में डर रही थी, ये लड़की तो घोड़े का झेल गयी।” सुनीता भी खेली-खाई लड़की थी। वह तो रमा को हिला कर देखना चाहती थी कि वह कितने पानी में है। रमा बोली, “यार सुनीता, मुझे तो तेरे भैया का डर लग रहा है क़ि वह कहीं आ न जाएँ। तू टीवी बंद कर दे, चल वैसे ही बात हैं।” सुनीता बोली, “चल टीवी बंद कर देते हैं। अच्छा एक बात बता, तेरी चड्डी गीली हुयी या नहीं?” रमा बोली, “हाँ यार, कुछ गीली तो हुई है।” “देखूं तो, सुनीता ने ऊपर से ही हाथ लगा कर टटोला और बोली हाँ यार सच में तेरी गीली हो गयी है। अन्दर देखूं …” ऐसा कहते के साथ ही सुनीता ने रमा की चड्डी के भीतर हाथ डालकर उसकी योनि पर हाथ फिराया और एक उँगली रमा की योनि के अन्दर भी डाल दी। रमा उछल पड़ी। सुनीता बोली, “चल यार, सुहागरात का खेल खेलते हैं। आज की ये रात भी बार-बार नहीं आएगी।” रमा की इच्छा भी जागृत हो चुकी थी, बोली, “दूल्हा कौन बनेगा?” सुनीता बोली, “चल दूल्हा मैं बन जाऊंगी, तू दुल्हन बन जा।” सुनीता ने झपट कर रमा को अपनी बाहों में भर लिया और उसके होटों पर अपने होंट टिका दिए। उसकी ब्रा के हुक खोल कर रमा की छातियों को नंगा कर दिया और धीरे-धीरे उन्हें मसलने लगी ठीक एक अनुभवी पति की भांति। धीरे-धीरे छातियों से वह नीचे की ओर उतरती हुई रमा की सलवार के नाड़े को खोलने लगी और बोली, “मेरी रानी, असली माल तो इसमें छिपा हुआ है। इसे भी तो देंखें, क्या है। ऐसा कह कर सुनीता ने रमा की सलवार भी खोल डाली और उसे उतार कर एक तरफ रख दी। अब सुनीता के हाथ रमा की योनि से खेलने लगे जो काफी गीली हो चुकी थी।
क्रमशः….
अनाड़ी पति और ससुर रामलाल–6

गतान्क से आगे…………. ….
सुनीता ने उसकी योनि में एक उँगली डाल कर उसे अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया। रमा की सिसकारियां फूट पड़ी। वह बोली, “सुनीता यार जोर-जोर से अन्दर-बाहर कर, बड़ा अच्छा लग रहा है। ” “अभी करती हूँ, पहले मैं भी तो अपने कपड़े उतात दूं। अब कोई खतरा नहीं है, भैया कबके सो गए होंगे। तू भी अपनी कुर्ती उतार दे।” फिर दोनों ने अपने सभी कपड़े उतार दिए और एक-दूजे से बुरी तरह चिपट गयीं। तेज रौशनी का बल्व बुझाकर नाईट-बल्व जला दिया गया था मगर फिर भी दोनों के नंगे बदन का एक-एक पुर्जा स्पष्ट दिखाई दे रहा था। सुनीता बोली, “यार मेरी भी योनि को जरा सहला दे। चल ऐसा करते हैं कि एक-दूसरे की योनि को चाटते है।” रमा तुरंत मान गयी और उसने सुनीता की छातियों को रगड़ना और उसकी योनि को चाटना शुरू कर दिया। सुनीता ने रमा के योनि के बालों से खेलते हुए कहा, “यार रमा, तेरी योनि पर तो काफी घने बाल हैं। इन्हें काटती क्यों नहीं है?” रमा बोली, कई बार तो कैंची से काट चुकी हूँ, ये फिर से बड़े हो जाते हैं।” काफी देर की चूमाचाटी के बाद रमा और सुनीता दोनों ही बुरी तरह से गर्म हो गईं। सुनीता बोली, “यार, मेरा तो बहुत बुरा हाल है, पूरा बदन जल रहा है वासना की आग में। हाय कोई हमारा भी बॉय-फ्रेंड होता पास तो जमकर अन्दर करवा लेते।” रमा बोली, “बात तो तू सच ही कह रही है। इस वक्त मेरा भी बुरा हाल है। मेरी योनि तो लिंग डलवाने को फड़-फड़ा रही है।” सुनीता बोली, “रमा एक बात बता, जरा सोच अगर भैया आ जाएँ और कहें आज मैं तुम दोनों की लूँगा। तो तू क्या करे?” “क्या करूंगी, चुपचाप दे दूँगी उन्हें। और तू क्या करेगी?” रमा ने पूछा। सुनीता बोली, “जब तू दे देगी तो मुझे भी देनी ही पड़ेगी।” रमा हंसी, बोली, “चल पगली, भैया को दे देगी?” सुनीता बोली, “तो क्या हुआ, मेरे भैया ही तो हैं कोई गैर थोड़े ही हैं।” रमा ने हैरत से पूछा, “तू अपने सगे भाई का लिंग ले जायेगी अपनी योनि में? राम-राम ….” सुनीता बोली, “इसमें तुझे आश्चर्य क्यों हो रहा है? मेरी कितनी ही सहेलियां ऐसी हैं जो अपने सगे भाइयों से डलवाती हैं। चल तुझे मैं अपनी सहेली ‘कम्मो’ की कहानी सुनाती हूँ। तीन साल पहले मेरी उससे दोस्ती हुयी थी। एक दिन की बात है, कम्मो का बड़ा भाई अपने कमरे में पढ़ रहा था। इस समय घर पर कोई नहीं था। सब लोग किसी रिश्तेदार की शादी में गए हुए थे। कम्मो अपने भाई के कमरे में गयी और पूछने लगी, “भैया, ये अनचाहे बाल क्या होते हैं? इस पेपर में लिखा है-अनचाहे बालों से छुटकारा पायें।” उसका भैया बोला, “अनचाहे बाल वह होते हैं जो गुप्त स्थानों पर उग आते हैं।” “भैया, गुप्त-स्थान क्या होते हैं?” भैया झुंझलाते हुए बोला, “अब तुझे यह भी बताऊँ …” “हां, बताओ भैया ये गुप्त-स्थान क्या होते हैं?” “देख कम्मो, मुझे पढने दे। मेरा मूड खराब मत कर।” “बता दो न भैया …” कम्मो का भाई खीज उठा और बोला, “इधर आ, बताता हूँ।” कम्मो जब पास आई तो भैया बोला, “जब लड़के-लड़की जवान हो जाते हैं, तो उनके गुप्तांगों पर बाल उग आते हैं। अब ये न कहना कि गुप्तांग क्या होता है भैया।” कम्मो बोली, “भैया, मुझे सच में नहीं पता कि गुप्तांग क्या होता है।” भैया क्रोध से भर कर बोला, “पास आ तुझे बताता हूं कि गुप्तांग क्या होता है।” कम्मो जब पास आई तो भैया ने बताया कि जिन-जिन अंगों से आदमी टट्टी-पेशाब करता है उसे गुप्ताँग कहते हैं। जैसे तेरी पेशाब की जगह तेरा गुप्तांग है, और मेरी पेशाब की जगह मेरा गुप्तांग है। इनके अलाबा भी ये बाल बगलों में भी उग आते हैं। भैया ने कम्मो से कहा, “तेरी बगलों में बाल होंगे, आ इधर आ देखूं।” भैया ने बगल में हाथ डाल कर देखा और बोला, “हाँ हैं तो, इसी तरह से तेरी पेशाब की जगह पर भी बाल होने चाहिए …” ऐसा कहकर भैया ने कम्मो की सलवार में हाथ डाल दिया और बोला, “वहां भी बहुत बड़े-बड़े बाल हैं, चल इन्हें साफ़ कर दूं। तू ऐसा कर पलंग पर जा कर लेट जा, मैं दरवाज़ा बंद करके आता हूँ।”

भैया जब दरवाज़ा बंद करके लौटा तो कम्मो ख़ुशी-ख़ुशी पलंग पर लेती हुई थी। भैया ने आकर उसकी सलवार खोली और काफी देर तक उसकी कुआंरी योनि को एक-टक निहारता रहा। बोला, “कम्मो, तेरी इस पर तो काफी बड़े-बड़े बाल उग आये हैं। आज इन्हें साफ़ करके ही दम लूँगा।” भैया दौड़ कर अपना शेविंग रेज़र ले आया और उसने थोड़ी ही देर में सारे बाल साफ़ कर दिए। योनि की सफाई करने के बाद वह बोला, “चल अपनी कुर्ती भी उतर दे आज तेरी बगलों के बाल भी साफ़ कर दूं।” कम्मो ने झट-पट कुर्ती भी उतार दी। अब कम्मो का गोरा, चिकना संगमरमर का सा नंगा बदन उसके भैया के सामने था। ऐसे में तो बड़े-बड़े ऋषि-मुनि तक का मन डोल जाता है भला इंसान बेचारे की तो औकात ही क्या है। कम्मो के निर्वसन शरीर पर उसके भैया का दिल भी डोल गया। वह बोल, “कम्मो, तू मेरे गुप्तांग के बाल नहीं देखना चाहेगी?” कम्मो बोली, “हाँ-हाँ, भैया दिखाओ अपने बाल भी ….” तभी उसके भैया ने अपना पायजामा खोल कर अपना लिंग बाहर निकाला और बोला, “देख मेरे गुप्तांग पर भी कितने बाल हैं।” कम्मो ने सलाह दी की वे उन्हें भी साफ़ कर दें। भैया ने झट-पट अपने लिंग के ऊपर के बाल भी साफ़ कर दिए। और बोला, “कम्मो, एक काम करते हैं, तू मेरा लिंग सहला और मैं तेरी ये जगह सहलाता हूँ। इससे हम-दोनों को ही अच्छा लगेगा।” कम्मो, भैया की बात पर राज़ी हो गयी। उसने भैया के लिंग को मुट्ठी में भर कर सहलाना शुरु कर दिया और भैया कभी कम्मो की योनि पर हाथ फेरता तो कभी उसकी चूचियों को सहलाता और उन्हें मुंह में डाल कर चूंसता। कम्मो को इसमें बड़ा ही मज़ा आ रहा था। उसकी योनि भैया की उँगली की रगड़ से बुरी तरह से फड़कने लगी थी। भैया ने उँगली की रफ़्तार तेज कर दी तो कम्मो मारे मज़े के सीत्कार कर उठी। बोली, “भैया, एक बार को उँगली से मोटी कोई चीज़ मेरी पेशाब वाली जगह में घुसाकर देखो। मुझे बड़ा मज़ा आ रहा है।” “भैया ने कहा, “सीधा-सीधा यह क्यों नहीं कहती कि अपना ये मोटा लिंग डाल दूं तेरी इस जगह में। मगर, मेरी प्यारी कम्मो, अगर तेरी ये जगह फट गयी तो मेरे लिए परेशानी बढ़ जायेगी।” भैया जानता था कि कम्मो अभी पूरे सोलह वर्ष की भी नहीं हुई थी। अगर वह उसके लिंग की चोट बर्दाश्त न कर पाई तो उसकी योनि फट भी सकती है। इसलिए बहुत सोच-समझ कर उसने कम्मो की योनि में अपना लिंग डालने की हिम्मत जुटाई। इधर कम्मो लिंग अन्दर ले जाने को तड़प रही थी। इसके शरीर से आग की चिंगारियां सी फुट रहीं थीं। भैया ने डरते-डरते कम्मो की योनि पर लिंग का अग्र-भाग ही टिकाया और उसे धीरे-धीरे अन्दर सरकाने लगा। योनि बहुत चुस्त थी। लिंग का अन्दर घुस पाना असंभव सा प्रतीत हो रहा था। इस वार हिम्मत करके भैया ने आधे से ज्यादा लिंग कम्मो की योनि के अन्दर सरका दिया और कुछ देर यों ही कम्मो के ऊपर टिका रहा। सारा वज़न उसने अपनी हथेलियों पर उठा रखा था। इससे कम्मो को कोई खास तखलीफ़ भी नहीं हुई। भैया ने कम्मो से कहा, “कम्मो, अब मैं अपना पूरा लिंग तेरी योनि में घुसेड़ने जा रहा हूँ, देख अगर न झेल पाए तो बता दे।” “कम्मो बोली, “झेल लूंगी भैया, डालदो पूरा अन्दर …” भैया ने उसकी स्वीकृति पाकर एक जोर का धक्का योनि में मारा और धचाक से समूंचा लिंग कम्मो की योनि में समां गया। दर्द के मारे कम्मो की चीख निकल पडी, योनि फट गयी और उसकी योनि से खून बह चला। इसके बाद तो भैया पूरी रफ़्तार पर आ गया। धक्के पे धक्का, फिर जो उसकी पिराई हुई तो कम्मो को भी मजा आने लगा और वह चिल्लाने लगी, “भैया, जोर-जोर से धक्के मारो …आह: मुझे तो आज बड़ा ही मज़ा आ रहा है ….भैया …आज मुझे पूरा निचोड़ कर रख दो भैया ..प्लीज़ …मारो …धक्के जोरों से मारो ….” भैया ने भी गाड़ी फुल स्पीड पर छोड़ दी जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। लगभग पूरे एक घंटे तक कम्मो की योनि में घर्षण चलता रहा और दोनों लोग जम कर जवानी के मज़े लेते रहे। बहुत देर की पेलापेली के बाद भैया झड़ गया और कम्मो के ऊपर ही लुढ़क गया। उस रात कम्मो बताती है कि भैया ने उसकी योनि तीन-चार वार मारी और उस दिन से आज तक कम्मो की लेता ही चला आ रहा है। कम्मो बताती है कि वह अपने भैया के अलाबा अन्य कई लड़कों से भी डलवा चुकी है पर जो मज़ा उसे भैया के साथ आता है वो मज़ा किसी के साथ नहीं आता।
सारी कहानी सुनकर रमा बोली, “इसका मतलब ये हुआ कि तू भी अपने भाई से अपनी योनि में उसका लिंग डलवा सकती है?” “हाँ, अगर जरूरत पड़ी तो ” इधर कम्मो की बातों को सुनकर तो रमा और भी उतावली हो उठी और बोली, “सुनीता, अब मुझसे कतई बर्दाश्त नहीं हो रहा। प्लीज़ अब कुछ भी कर, पर मेरी आग को ठंडी कर दे। में कामोन्माद से भुनी जा रही हूँ। ऐसा करते हैं, अजय भैया को बुला लाती हूँ। तेरा इलाज़ तो सिर्फ उन्हीं के पास है।” इसी बीच कमरे का दरवाज़ा एक ही झटके से खुल गया। अजय ने अन्दर आकर उन दोनों से कहा, “कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है। मैं अब आ गया हूँ ..अब सब ठीक कर दूंगा। सुन्नो तुझे भी और तेरी सहेली को भी … आओ दोनों अब मुझे देने के लिए तैयार हो जाओ। बताओ, पहले किसकी आग ठंडी करूँ? सुन्नो तेरी या तेरी इस सहेली की?” सुनीता बोली, “भैया, पहले आप रमा की आग ठंडी कर दो। मेरी तो बाद में भी हो जायेगी। “क्या नाम है इसका? ” “रमा।” “ओह रमा, आओ रमा रानी तुमसे ही शुरुआत करें।”


रमा डरी-डरी सी अजय की ओर बढ़ने लगी। अजय ने लपक कर उसकी बांह पकड़ कर अपनी ओर खीच लिया और उसे बांहों में कस कर अनेक चुम्बन उसके सारे बदन पर जड़ दिए। फिर अजय ने उसे गोद में उठाकर पलंग पर ला पटका और सुनीता से बोला, “सुन्नो, तू भी आजा मेरी वांयी तरफ …..आज तुम दोनों की मैं एक साथ लूँगा। सुन्नो, तू मेरा लिंग मुंह में लेकर चूंस तब तक मैं इसकी चूंसता हूँ।” रमा बोली, “भैया, अब ये चूंसा-चांसी बंद करके अपना ये मोटा लिंग मेरी योनि में डालकर इसे फाड़ डालो ….मुझ पर कामोन्माद बुरी तरह से छाया हुआ है ….भैया ..प्लीज़ … डाल दो इसे मेरी सुलगती हुई इस भट्टी में …” अजय ने अपना तन-तनाया लिंग रमा की योनि पर टिका कर एक हल्का सा धक्का लगाया जिससे उसका लिंग रास्ते की सारी बाधाओं को चीरता हुआ योनि की जड़ तक पूरा का पूरा समा गया। रमा की एक दबी-दबी सी चीख़ कमरे में गूँज कर रह गई। कुछ देर की तखलीफ़ के बाद रमा को भी आनंद आने लगा और वह कुल्हे हिला-हिला कर उसका पूरा साथ देने लगी। उसके मुंह से विचित्र सी आवाजें निकलने लगीं थी। इसका अर्थ सुनीता और अजय दोनों ही भली भांति जानते थे। अजय ने आज रमा की इस तरफ से मारी थी की वह निहाल हो गयी। इसके बाद बची-खुची मौज-मस्ती आई बेचारी सुनीता के हिस्से में। उसके साथ कुछ देर तक ही अजय टिक पाया और फिर तीनो थके-मांदे एक-दूसरे के साथ ही नंगे पड़ कर सो गए।

क्रमशः….

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