विकास फिर चीखते हुए बोला- “तो कर ली ना… तो अब क्या जिंदगी भर चुदवाते रहना है?”
शीतल तुरंत उससे ज्यादा जोर से चीखते हुए जवाब दी- “हौं, अब अगर एक बार चुदवा चुकी हूँ तो और जरूरत पड़ी तो जिंदगी भर चुदवाऊँगी…”
विकास शीतल को बस देखता ही रह गया।
शीतल फिर बोली- “अगर एक बार सेक्स करने के बाद भी हालत बही रहे तो फिर फायदा क्या हुआ इतना बड़ा फैसला लेने का। अब जब इन्हें अपना जिश्म दें हो चुकी हैं तो जितनी बार जरवत होगी उत्तनी बार दूँगी…”
विकास को शीतल से इस तरह की उम्मीद नहीं थी। वो भी गस्से में बोल पड़ा- “तो फिर इन्हीं की मदद करती रहा, मुझे छोड़ दो..” वो सोफे पे गिरता हुआ सा बैठ रहा।
वसीम सोफा से उठ खड़ा हुआ और विकास और शीतल दोनों को कहा- “चुप हो जाओ, प्लीज चुप जो जाओ। उफफ्फ… मुझे माफ कर दो। ये मेरी गलती है। कल रात में जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाना और मुझे माफ कर देना। मैं बहुत ही बगैरत और बेकार इंसान हूँ। मुझे ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहिए था। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई..” बसौम रुआंसी आवाज में बोला। उसका चेहरा ऐसा था जैसे वो कितने दर्द में हो और अब रो देगा।
शीतल तुरंत बोली- “आप ऐसा क्यों कह रहे है? आपकी कोई गलती नहीं है। आप तो इंसान नहीं देवता हैं। आपनें तो खुद को पूरी तरह रोका हुआ था। कल जो कुछ भी हुआ वो हमारी मज़ी में हुआ और मेरे कहने पे आपने किया। अब कोई अगर अपने वाद से मुकर जाए तो इसमें आपकी कोई गलती नहीं?”
वसीम की आँखों में आँसू आ गये थे। वो सिर को नीचे झुकते हुए बोला- “नहीं, ये पूरी तरह मेरी गलती है। मुझे ये समझना चाहिए था की मैं किसी और की बीवी के साथ अपने अरमान पूरे कर रहा हूँ उफफ्फ… बेहद घटिया इंसान हूँ मैं। मेरी वजह से एक हँसता खेलता परिवार उजड़ रहा है। मैं बेहद शर्मसार हूँ। मैं खुद को सम्हाल नहीं पाया। कुछ भी हो, तुम लोगों के कहने के बाद भी अगर मैंने ऐसा कुछ किया तो बहुत नीचुकाम किया है मैंने…
कोई कुछ नहीं बोला।
वसीम- “नहीं ये गलत है, मैं अपनी हवस मिटाने के लिए किसी और की शादीशुदा जिंदगी में आग लगाने लगा। मुझे जिंदा रहने का कोई हक नहीं। मुझे यहां से जाना होगा। अगर मैं यहाँ रहा तो फिर ये घामला उजड़ जाएगा। मेरे जैसे बगैरत और नीच इंसान का यहाँ तो क्या इस धरती पें कहीं रहने का कोई हक नहीं है। जहाँ भी रहँगा किसी ना किसी का बसा बसाया आशियाना ही उजाग…’ बोलता हुआ क्सीम एक झटके में बाहर निकल गया।
शीतल और विकास हक्के-बक्के खड़े रह गये।
जब तक काई कुछ समझता वसीम बाहर निकलकर जा रहा था।
शीतल तुरंत दौड़कर बाहर गई लेकिन तब तक वसीम रोड पे उतरता हुआ दूर जा चुका था। शीतल एक पल के लिए भी कुछ नहीं सोची और उसी हालत में रोड में आ गई और दौड़ते हए वसीम के पीछे जाने लगी। शीतल भल गई की वो बस नाइटी में हैं और दौड़ने की वजह से उसकी चूचियां गोल-गोल हिल रही हैं। वो भूल गई की रोड पे मौजूद सभी लोग नाइटी के अंदर उसके जिश्म का मुआयना कर रहे हैं। वो उसी तरह अपनी चूचियों और गाण्ड को हिलाते हुये रोड प चलती रही। शीतल भले नाइटी पहने थी लेकिन लोगों की नजरों में वो नंगी ही थी।
शीतल ने चार-पाँच बार वसीम चाचा, वसीम चाचा बोलकर आवाज भी दी। लेकिन वसीम ने उसे सुना ही नहीं। जब शीतल को लगा की वो वसीम को नहीं पकड़ पाएगी तो वो वापस तेजी से चलते हए घर आ गई। रोड पे खड़े लोगों को पोर्न मूवी का टेलर देखने मिल गया और सबके लण्ड इस हश्न की देवी को देखकर टाइट हो गये
वसीम में शीतल की आवाज सुन ली थी। वो मन ही मन बहुत खुश हुआ की उसकी रंडी उसकी खातिर रोड में नंगी ही दौड़ पड़ी है।
शीतल को इस तरह वसीम के पीछे जाते देखकर विकास को हँसी आ गई की उसकी 23 साल की बीबी एक 55 साल के बूढ़े आदमी के लिए पागल हो गई है। उसका जी चाहा की घर का अंदर से लाक कर लें, लेकिन वो कोई तमाशा नहीं करना चाहता था।
शीतल घर आते ही अपने फोन से वसीम को काल करने लगी लेकिन उसका मोबाइल स्विच आफ हो चुका था। शीतल विकास को बोली- “जल्दी से जाकर वसीम चाचा को लेकर आओ, कहीं वो कुछ कर ना लें। अगर उन्हें कुछ हो गया तो जिंदगी भर ना मैं खुद को माफ कर पाऊँगी ना तुम्हें…”
विकास कुछ नहीं बोला और रूम में चला गया।
शीतल भी उसके पीछे-पीछे रूम में आ गई, और कहा- “प्लीज विकास ऐसा मत करो। तुम्हें जो भी कहना है मुझे कह लो, लेकिन वसीम चाचा को रोक लो। वो बहुत भले इंसान हैं। उन्होंने तो हर बार खुद को रोका था। इसमें भला उनकी क्या गलती है? मैंने तो सोचा की हम उनकी मदद कर रहे हैं। किसे पता था की तुम इस तंवर के साथ आओगे। प्लीज विकास उठा ना। वो इंसान अपनी जान दे देगा..” कहकर शीतल रोने लगी थी।
विकास भी वसीम के इस तरह चले जाने से चकित था। शीतल के आँसुओं में रही सही कसर भी पूरी कर दी। उसका गुस्सा अब उत्तर गया था और वो सोचने लगा “सच में वसीम चाचा की क्या गलती थी? वो तो खुद को रोक हए थे। मेरे और शीतल की मर्जी होने के बाद उन्होंने शीतल के साथ सेक्स किया। मैंने तो शीतल को उकसाया ही था चुदवाने के लिए। कल भी तो मैंने ही कहा था की वसीम चाचा का पूरा साथ देना। आह्ह… पता नहीं कल रात से मुझे क्या हो गया है? उफफ्फ… मैंने शीतल को भी क्या-क्या कह दिया? इसकी भी कोई गलती नहीं है। में बेचारी तो बस मदद कर रही थी वसीम चाचा की। दूसरे को ये दुखी देख ही नहीं पाती है। ये भी तो मुझसे पूछूकर ही सब कुछ की और मैंने अच्छा करते हुए भी सब कुछ बुरा कर दिया।
विकास उठा और रोती हुईशीतल को अपनी बाहों में लेकर उठाया, और कहा “आईआम सारी शीतल, मझे माफ कर दो। पता नहीं कल रात से मुझे क्या हो गया था। तुम्हें किसी और की बाहों में सोचकर मैं पागल हो गया था। आई आम सारी शीतल, प्लीज मुझे माफ कर दो…”
शीतल और जोर-जोर से रोने लगी और विकास के गले में लिपट गई। फिर तुरंत अलग हुई और बोली- “प्लीज जल्दी में जाकर वसीम चाचा को देखो। कहीं वो कुछ कर ना लें? प्लीज विकास जल्दी जाओ। प्लीज़..”
विकास भी शीतल से अलग हुआ और कहा- “हॉ… हाँ, मैं तुरंत जा रहा है.” बोलता हुआ अपनी बाइक लेकर निकल पड़ा।
दो-तीन घंटे तक बो इधर से उधर घूमता रहा। वसीम के दुकान में, बस स्टैंड, स्टेशन, पानी टंकी हर तरफ। लकिन वसीम उसे कहीं नहीं मिला। वो बहुत परेशान हो गया था। उसकी बजह से कोई इंसान अपनी जान दे रहा था। उसके गुस्से की वजह से वसीम पता नहीं कहाँ चला गया था? विकास बहुत अपराधी महसूस कर रहा था। उसने कई बार वसीम का फोन ट्राई किया लेकिन हर बार स्विच आफ। उसने घर में भी शीतल को काल करके पूछा की वसीम चाचा आए हैं क्या?
शीतल लगातार रोती जा रही थी और विकास के काल के बाद में पता चलते ही की उनका कुछ पता नहीं चला है शीतल और रोने लगती थी। थक हार कर विकास घर आ गया। शीतल को भी सम्हालना बहुत जरूरी था। विकास घर आया तो शीतल गुमसुम सी बैठी हुई थी सोफा पे। वो अपने कपड़े चेंज करके साड़ी पहन ली थी और उसने पैटी और ब्रा भी पहन लिया था।
शीतल विकास को अर्कला आता देखकर उदास सी हो गई, और बोली- “ये तुमने क्या कर दिया विकास? इतना कुछ किए लेकिन सब बेकार हो गया। इससे तो अच्छा था की हम उन्हें इसी तरह छोड़ देते। बेचारा घुट-घुट के जीता लेकिन जीता तो। कहीं वा उन्होंने कुछ कर लिया होगा तो मैं कहीं भी सुकन से जी नहीं पाऊँगी…”
शीतल विकास को अर्कला आता देखकर उदास सी हो गई, और बोली- “ये तुमने क्या कर दिया विकास? इतना कुछ किए लेकिन सब बेकार हो गया। इससे तो अच्छा था की हम उन्हें इसी तरह छोड़ देते। बेचारा घुट-घुट के जीता लेकिन जीता तो। कहीं वा उन्होंने कुछ कर लिया होगा तो मैं कहीं भी सुकन से जी नहीं पाऊँगी…”
विकास बेचारा बहुत परेशान हो चुका था। उसने शीतल को बताया की वो कहाँ-कहाँ ढूँद चुका है। विकास के मन में बहुत कुछ चल रहा था। वो चाह रहा था की वसीम चाचा वापस घर आ जाएं। एक इंसान की मौत का कारण बो नहीं बन सकता था। ये बोझ वो अपने सिर पे नहीं रख सकता था। लेकिन उसे ये भी लग रहा था की अगर वसीम चाचा वापस आ गये तो क्या वो अपनी सुंदर बीवी को उनसे चुदवाने के लिए छोड़ देंगा। फिर उसने सोचा की ये सब बा बाद में सागा, अभी किसी तरह वसीम चाचा वापस आ जाएं बस।
अचानक शीतल को याद आया की मकसूद तो वसीम को काफी पहले से जानता है। वो दौड़कर विकास को बताई
और विकास काल लगाकर मकसद से पूछा।
मकसूद पूछने लगा- “क्या हुआ सर? वसीम के बारे में क्यों पूछ रहे हैं?”
विकास ने उसे बताया की- “वसीम चाचा घर से गये हैं लेकिन वापस आए नहीं हैं। उनका मोबाइल भी बंद है..”
मकसूद बताया- “उसके घर में कोई नहीं है और बो कभी कभार ही अपने गाँव जाता है। ये हमेशा अकेला ही रहता है। उसका दूसरा और कोई नम्बर भी नहीं बताया..”
शीतल और भी परेशान हो गईं।
शाम में शीतल और विकास दोनों वसीम के दुकान पे गये और वहाँ भी उन लोगों ने अगल-बगल के दुकान वालों से पूछताछ की। लेकिन सबका एक ही जवाब था की ये अकेला ही रहता है और कभी कहीं आता जाता नहीं है। अगर इसकी दुकान खुली नहीं है तो या तो ये कहीं बाहर गया होगा या फिर इसकी तबीयत खराब होगी। एक दुकानदार ने ये भी बताया की इसकी जायदाद के लालच में इसके दर के रितंदार इसके पास आना चाहते हैं। लेकिन क्सीम सबसे दूर ही रहता है।
रात में शीतल और विकास ने खाना बाहर से ही पैक करवा लिया और घर ले आए। शीतल सुबह से भूखी बैठी थी अपने वसीम के इंतजार में। किसी तरह विकास के समझाने के बाद वो थोड़ा सा खाई और सोने चली गई। विकास बाहर आकर सोफे पे बैंठकर सोचने लगा। अगर वसीम चाचा नहीं मिले तो क्या होगा? कोई ना कोई तो उन्हें टूटने आएगा ही ना। सही बात है की इस जगह पे इतना बड़ा मकान और मुख्य मार्केट में दुकान कोई मामूली चीज नहीं है। वसीम चाचा का कोई नहीं है तो इस संपत्ति के लालच में तो लोग पड़ेंगे ही। विकास के मन में भी लालच आ गया की कितना अच्छा हो की वसीम चाचा आए हो ना, और ये घर उसका हो जाए। लेकिन फिर उसे खयाल आया की वो अगर नहीं भी आए तो भी ये घर उसका तो नहीं ही हो सकता।
विकास का मोबाइल चार्ज में लगा हुआ था, और शीतल का मोबाइल वहीं सोफा पे रखा हुआ था तो वो शीतल के मोबाइल से ही वसीम का काल ट्राई किया, लेकिन मोबाइल अभी भी स्विचआफ ही था। विकास यूँ ही शीतल के मोबाइल में कुछ-कुछ करने लगा। वो गैलरी खोला तो उसमें वसीम की नंगी पिक्स थी, जो वो सुबह में तब ली थी जब वो तीसरी बार चोदकर गहरी नींद में सोया हुआ था। 8-10 पिक्स को देखकर विकास उदास हो गया। वसीम का लण्ड उसकी जांघों के बीच में सौंप की तरह लटक रहा था। उसका लण्ड टाइट नहीं था लेकिन फिर भी इतना बड़ा और माटे साइज का था, जिसका आधा भी विकास का फुल टाइट होने पे नहीं होता। वो मायूस हो गया और समझ गया की अब शीतल कभी उसकी नहीं हो पाएगी। जिस चूत को एक बार इस लण्ड का टेस्ट मिल गया है वो भला अब विकास का लण्ड क्यों लेंगी?
विकास और पिक्स देखने लगा। उसे छिपाई हुई बा पिक्स भी दिख गईं जो शीतल ने खुद ली थी और वसीम के
मोबाइल में भेजी थी।
उधर मकसूद परेशान हो गया की विकास सर वसीम के बारे में इतना परेशान होकर क्यों पूछ रहे हैं? वो शाम में वसीम के घर के पास आया। उसे यहाँ कई लोग पहचानते थे। वो उनसे बातों ही बातों में वसीम के बारे में पूछा तो उसे पता चल गया की दिन में वसीम यहाँ से गया है, और शीतल सिर्फ नाइटी में उसके पीछे दौड़ी है। लेकिन उसे पकड़ नहीं पाई तो फिर वापस आ गई है, और फिर थोड़ी देर बाद विकास बदहवास सा घर में बाइक में निकला है। सब हँसकर बता रहे थे की कैसे शीतल सिर्फ नाइटी में भी और बिना ब्रा पैंटी के कमाल की माल लग रही थी? कैसे उसकी चूचियां और गाण्ड मटक रही थी?
मकसूद उस दृश्य को कल्पना करके सोचने लगा और उसका लण्ड टाइट हो गया। उसे समझ में आने लगा की कुछ तो चक्कर चला रहा है? वो सोचने लगा की जब वसीम यहाँ नहीं है तो गया कहाँ होगा? उसने भी वसीम का काल लगाया तो लगा नहीं। उसने अपने एक-दोस्त को काल लगाया जो एक होटेल चलता था। उसने बताया की वसीम दिन से उसके ही होटेल में रुका हुआ है।
मकसूद हसता मुश्कुराता हुआ उस होटेल में जा पहुंचा। वो होटेल एक स्लम एरिया में था और बेहद सस्ता सा होटेल था। मकसूद वसीम के पास पहुँच गया और दरवाजा पे जोर का धक्का दिया। ये दरवाजा पूरा लाक नहीं होता था तो दरवाजा खुल गया।
मकसूद- “वन्या किए हो रे मादरचोद तुम, जो यहाँ छुप के बैठे हो? विकास की उस रंडी बीवी को चोद दिए हो क्या?” मकसूद रूम में घुसते ही वसीम से बोला।
वसीम अकेला साया हुआ होटेल के टीवी पे शीतल की चुदाई देख रहा था। उसने तुरंत ही टीवी बंद कर दिया। वो मकसूद को देखकर हँस दिया और बोला- “तुझे कैसे पता रे मादर चोद की मैं यहाँ हैं?”
मकसूद बोला- “तेरी रग-रग से वाकिफ हूँ। क्या किया है तूने?”
वसीम बोला. “कुछ नहीं, बाद में बताऊँगा…”
मकसूद भला चुप कहाँ रहने वाला था। और उसपे से शीतल की बात बीच में आ रही थी तो उसे ज्यादा ही बैचैनी हो रही थी।
वसीम ने उससे कहा “सबर रख सब बताऊँगा। त बस विकास को मेरे बारे में और यहीं के बारे में मत बता देना। और मेरा एक कम कर.” वसीम ने उसे बहुत कुछ समझाया और मकसूद चला गया।
मकसूद जानता था की भले उसे वसीम कुछ नहीं बता रहा लेकिन बताएगा जर सब।
इधर विकास बहुत कुछ सोचता हुआ अपने रूम में आया और शीतल को साते हए देखा। वो फिर से सोचने लगा की- इस गोरे और हसीन जिश्म के ऊपर चढ़ कर काले और मोटे वसीम ने अपने मोटे और काले लण्ड से इसकी चुदाई की होगी। इतने मोटे लण्ड के अंदर जाने में शीतल कैसे कर रही होगी? उसे लगा की अब अगर में शीतल की चुदाई करूगा तो या तो शीतल चुदाएगी नहीं और अगर चुदवाई भी तो उसे कुछ मजा नहीं आएगा. विकास शीतल के बगल में लेट गया। उसने देखा की शीतल साई नहीं थी बल्कि रो रही थी। विकास उसे चुप कराने लगा।
शीतल बोली- “वसीम चाचा बहुत अच्छे आदमी हैं विकास। उन्होंने खुद को बहुत काबू में करके रखा था। उस देवता समान आदमी के साथ बहुत गलत हुआ..”
विकास शीतल को बाहों में भरकर चुप कराने का प्रयास करने लगा।
शीतल फिर बोली- “वो तो पहले भी मुझसे दूर रहते थे। कल रात में भी उन्होंने कुछ करने से पहले मुझसे पूछ लिया था और जब मैं बोली तब ही उन्होंने आगे कुछ किया। फिर खाना खाने के बाद जब हम लोग सोने आए तो मुझे लगा की शायद वो कुछ करेंगे, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया और यूँ ही सो गये। लेकिन नींद में तो कोई अपनी दबी भावनाओं पे तो काबू नहीं पा सकता ना… तो नींद में वो पागलों की तरह मुझे नोचने खसाटने लगे। नींद में उन्होंने मुझें दो बार चोदा जिससे मुझे लगा की उनके अंदर कितना गुबार भरा है। तभी मैं सोच ली थी की इस तरह एक बार से उन्हें सुकून नहीं मिलेगा और में उनका साथ देती रहूंगी, जब तक बा ठीक नहीं हो जाते। लेकिन वो जब सुबह जागे तो बहुत परेशान थे की उन्होंने नौद में मेरे साथ क्या-क्या कर दिया? वो खुद कह रहे थे की मैं उन्हें एक रात के लिए मिली हैं, और अब वो मुझसे हमेशा के लिए दूर रहेंगे। लेकिन मेरे समझाने में उन्होंने ये वादा किया की वो मुझसे बातें करेंगे, हँसी मजाक करेंगे लेकिन चाटेंगे नहीं। फिर भी मैं ही उन्हें बोली की कोई बंधन मत रखिए। नहीं करना हो तो मत करिएगा, लेकिन ऐसा कोई सीमा नहीं है। अगर कभी भी आपके मन में ख्वाहिश जागी तो आप उसे पूरा कर सकते हैं और मैं आपके लिए हाजिर रहुंगी…”
विकास शीतल को बाहों में भरकर चुप कराता रहा और शीतल सुबक्ती रही। फिर इसी तरह वो सो गई।
सुबह शीतल चाय लेकर आई और विकास को जगाई। विकास तैयार होकर आफिस चला गया। आफिस जाते ही उसने मकसूद को बुला लिया। मकसद तो विकास का ही इतंजार कर रहा था। मकसद वसीम का सिखाया हुआ बताने लगा की वसीम बहुत शरीफ इमानदार और भावनाओं में बहने वाला आदमी है। अपनी बीवी की मौत के बाद वो बेहद ही चुप हो गया और निजी जिंदगी जीने लगा। शीतल के मन में वसीम के लिए और आदर सम्मान उम्रड़ पड़ा।
विकास के जाने के बाद शीतल वसीम के मोबाइल में फोन लगाने लगी, लेकिन मोबाइल स्विच-आफ आ रहा था। बहुत देर तक वो काल लगाती रही लेकिन फान नहीं लगा। शीतल दोपहर का इंतेजार करने लगी की हमेशा की तरह वसीम घर आएं। एक बज गये लेकिन वसीम आज भी घर नहीं आया। शीतल फिर से काल लगाने लगी, जब वसीम का काल नहीं लगा ता विकास को काल लगाई।
विकास ने भी कहा- “मैं बहुत दँदा लेकिन वसीम नहीं मिले…”
शाम में विकास जब वापस आया तो शीतल और विकास ने कई जगह फोन किया और पता किया। लेकिन वसीम का कोई पता नहीं चला। शीतल विकास से गुस्सा भी हो रही थी क्योंकी में पूरी तरह उसी की गलती थी।
शीतल का बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। वसीम यहाँ अकेला रहता था, इसलिए शीतल के अलावा और कोई परेशान नहीं था। लेकिन भला शीतल का दर्द कौन जाने, जो तन और मन से वसीम की रांड बन चुकी थी। उसे पहला तो ये दुख था की वसीम जैसे भले इनसेन के साथ गलत हुआ, और दूसरा में दुख था की अब उसकी चूत हमेशा के लिए प्यासी रह जाएगी। लेकिन उसकी चूत प्यासी रहने के लिए नहीं बनी थी। उसकी चूत में तो लण्डों का मेला लगना था।
वसीम का अगले दिन भी कोई पता नहीं चला। उसकी दुकान भी बंद थी और फोन भी नहीं लग रहा था। शीतल की तो जैसे दुनियां ही उजड़ गईथी। वो ना ता खा पा रही थी, ना ही सो पा रही थी। उसे यही डर सता रहा था
की कहीं वसीम में कुछ कर ना लिया हो। ये सब उसी की गलती थी। उसे यहाँ आना ही नहीं चाहिए था। : इस दनियां में ही नहीं आना चाहिए था। उसकी वजह से एक सीधे साधे इंसान की जिंदगी बर्बाद हो गई। उसका मन हुआ की वो भी खुद को मार लें।
विकास ने उसे बहुत समझाया था की वसीम चाचा को कुछ नहीं हुआ है और वो जरूर आएंगे। शीतल की हालत और वसीम के बारे में जानकार विकास बहुत कुछ सोच चुका था।
विकास का प्रमोशन हो चुका था और उसे सोमवार से दूसरी जगह जाटन भी करना था। ये बड़ी बात थी उसके लिए लेकिन शीतल इतनी परेशान थी की उसने ये बात शीतल को बताया ही नहीं था। विकास ने आफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले लिया था और अगले सोमवार से जोयिन करने वाला था। उसने सोचा था की बीच में मौका पाते ही वो शीतल को बता देगा, और फिर हम लोग इस शहर को छोड़कर चले जाएंगे।
आज सट. था। विकास ने मकसूद को काल लगाया और अपने घर बुला लिया। मकसूद उछलता कूदता हुआ विकास के घर आया की शीतल को देखने का मौका मिलेगा। शीतल बहुत बदहवास सी हालत में थी। विकास मकसूद को लेकर वसीम के गाँव जाने लगा, जो लगभग 200 किलोमीलीटर दूर था।
शीतल जब वो लोग जाने लगे तो मकसूद का बोली- “प्लीज… मकसद जी, उन्हें कहीं से भी टूट लाइए। कहीं से भी उनका पता लगाइए। फिर आप जो माँगेंगें मैं सब दूँगी । जितना पैसा कहेंगे सब दूँगी…”
मकसूद बोला- “घबराइए मत मेडम, उसे कुछ नहीं होगा। मैं जानता हूँ वो बहुत शख्त जान है, उसे कुछ नहीं होगा। कहाँ बैठा होगा, दो-चार दिन होंगे सही सलामत लौट आएगा। जब वो छोटा था तब भी इसी तरह करता था। माँ बाप से झगड़ा किया या भाई से झगड़ा किया और घर से भाग गया और फिर चार-पाँच दिन बाद वापस आ गया। आप बिल्कुल भी मत घबराईए। हम लाग उसे ढूँट लेंगे..”
शीतल मकसूद की बात सुनकर थोड़ी खुश हुई, और बोली- “आपके मुँह में घी शक्कर मकसूद। अगर आपकी बात सच निकली और वो सही सलामत घर आ गये तो आपका मुँह में मिठाई और पैसे से भर दूँगी…”
वसीम को गये तीन दिन बीत गये थे, और उसका कोई पता नहीं था। इन तीन दिनों में विकास बहुत परेशान हो चुका था। वो हर जगह टूट चुका था वसीम को। यहाँ तक की उसके गाँव भी जा चुका था, और उसमें उसका साथ दे रहा था मकसद जो विकास को हर जगह ले जा रहा था लेकिन उस होटेल में नहीं ले जा रहा था। विकास को ये डर भी सता रहा था की अगर वसीम नहीं मिला और उसे कुछ हो गया तो कहीं ऐसा ना हो की लोग उसी में शक करने लगे।
विकास ने अब फैसला ले लिया था की कल तक अगर वसीम का कुछ पता नहीं चला तो वो पोलिस में कंप्लेन करा देगा।
मकसद विकास के साथ की सारी रिपोर्टिंग वसीम को करता था। विकास के ट्रांसफर की बात मकसद को पता नहीं थी। लेकिन उसने पोलिस कंप्लेंट वाली बात वसीम को बता दिया।
वहस्पतिवार को 12:00 बजे से वसीम गायब था। आज सनडे आ गया था। विकास इस हफ्ते बहुत परेशान रहा था। उसने सोचा की इन सब परेशानियों से मुक्ति पाने का सबसे आसान तरीका है यहाँ से चलें जाना। फिर ना वसीम होगा और ना उसका दर्द। शीतल भी नई जगह जाकर फेश हो जाएगी। उसने इसी सोमवार को नये शहर में जोयिन करने का निर्णय किया।
सुबह नाश्ता करने के बाद शीतल मायूस सी बैठी हुई थी।
विकास उसके बगल में गया और उसके कंधे पे हाथ रखता हुआ उसे प्यार से बोला- “तुम्हें एक बड़ी खबर देनी है, लेकिन तुम्हारी उदासी देख कर मैं तुम्हें बता नहीं पा रहा है.”
शीतल जबरदस्ती की हँसी हँसते हुए बोली- “बोलो ना..”
विकास ने उसे सब कुछ बताया और समझाया।
शीतल बोली- “ये तो बहुत अच्छी बात है.”
उन दोनों के बीच में निर्णय हुआ की विकास कल ही जोयिन कर लेगा और फिर जल्दी से रगम ट्रॅटकर फिर शीतल भी वहीं शिफ्ट हो जाएगी। विकास में उससे कहा भी वो चाहे तो तब तक विकास के घर या अपने मायके जा सकती है। लेकिन शीतल ने मना कर दिया। उसे पूरी उम्मीद थी की वसीम जरूर आएगा और इसलिए वो ना तो किसी को यहाँ बुलाने के लिए राजी हुई और ना ही कहीं जाने के लिए। विकास को कल जोयिन करना था तो उसे आज ही शाम में निकलना पड़ता, क्योंकी वा जगह लगभग 250 किलोमीटर दर थी।
विकास अपनी पैकिंग करने लगा और शीतल उसकी हेल्प करने लगी। वसीम का आज भी कुछ पता नहीं चला। विकास ने एक बार मकसूद का काल किया।
लेकिन मकसूद का वही जवाब था- “सर वो बहुत हरामी है। आप बिल्कुल परेशान मत हो। वो किसी जगह पे छिपा बैठा हुआ होगा और जब उसका मूड ठीक होगा तो वो अपने आप आ जाएगा। आप उसके लिए परेशान मत होइए और पोलिस बालिस के पास जाने की कोई ज़रूरत नहीं है। वो बचपन से इसी तरह करता आ रहा है।
आप लोग बिंदास रहिए.”
शाम में शीतल भी विकास को बस स्टैंड पहुँचाने चल दी। सट. तक शीतल को अकेले रहना था। विकास को ऐसी हालत में शीतल को छोड़कर जाने का बिल्कुल मन नहीं था, लेकिन उसका जाना भी बेहद जरूरी था।
वापस लौटते वक्त शीतल वसीम की दुकान की तरफ चली गई। दुकान बंद थी। शीतल ने कार रोक दी और इधर-उधर देखने लगी। वो पहले भी विकास के साथ यहाँ वसीम के बारे में पूछने आ चुकी थी और शीतल जैसी अप्सरा को भला कौन भूल सकता है।
एक 15 साल का लड़का शीतल के पास आया और बोला- “आप वसीम खान को टूट रही हैं ना?”
शीतल खुश हो गई, और बोली- “हाँ, तुम्हें पता है वो कहाँ है? तुमने देखा है उन्हें?”
–
बो लड़का कुछ बोलता उससे पहले ही शीतल बोल पड़ी. “मुझे बताओ उनके बारे में। मैं तुम्हें पैसे दूँगी…” बोलती हुई शीतल अपने पर्स से 500 रूपये का नोट निकाल ली।
वो लड़का ₹500 का नोट देखकर खुश हो गया और शीतल को उस होटेल का नाम और अड्रेस बता दिया।
शीतल उसे 500 का वो नोट दे दी और बोली- “मेरे साथ चलोगे वहाँ तक? मैं और पैसे दूंगी। बहुत पैसे…”
लड़के के मन में लालच आ गया लेकिन फिर भी उसने मना कर दिया। और बोला- “नहीं नहीं, अब बात हो गई है। रात में उधर कोई नहीं जाता। आप कल सुबह आना मैं आपको ले चलेगा…”
शीतल उसे समझाई और लालच भी दी लेकिन उसने मना कर दिया और बताया- “शाम होने के बाद वहाँ जाना ठीक नहीं रहता। अमीर और लड़की लोगों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। सुबह आना तब मैं आपको ले चलूँगा…”
शीतल पेपर पे होटेल का नाम, अइंस और लड़के का नाम लिख ली और वहाँ से चल दी। अब भला उसे चैन कहाँ था? वो सुबह तक का इंतेजार कैसे कर सकती थी? उसने मकसूद को काल लगाया लेकिन उसे फोन लगा ही नहीं। शीतल अकेली जाने का फैसला की, लेकिन एक तो उसे इस शहर के बारे में कुछ पता नहीं था और दूसरी बात ये की ऐमें रात में वो कहीं अंजान गास्तों पे इधर-उधर भटकेगी। उसे वसीम में तो गुस्सा भी आ रहा
था और मकसूद पे भी गुस्सा आ रहा था। वो खीझ गई थी और फिर मन मसोस कर घर आ गई।
आज शीतल को अकेली रहना था। खाना बनाकर गई थी वो तो टीवी देखते-देखते खाना खाने लगी। लेकिन जा तो उसे टीवी देखने में मन लग रहा था और ना ही खाने में। वो फिर से मकसद को काल करने के लिए फोन उठाई तो देखी की विकास का मेसेंज़ था। वो मेसेज़ पढ़ने लगी।
विकाह- “आई आम मारी शीतल। कोशिश करना की मुझे माफ कर सको। ये मेरी गलती थी। तुमनें वसीम चाचा को अपना सब कुछ दिया, लेकिन मेरी वजह से सब बर्बाद हो गया। तुमने इतनी मेहनत की की उन्हें खुशी मिले, लेकिन मैंने उन्हें और ज्यादा गम में धकेल दिया। उस दिन जो कुछ भी हुआ शीतल मरे बहक जाने की बजह से हुआ। मैं ना जानें क्या-क्या सोच रहा था। लेकिन मैं अब अपने फैसले में कायम हैं। तुम अभी भी वसीम चाचा को अपना जिश्म पेश कर सकती हो, और तुम्हें मेरी तरफ से इसकी इजाजत है। एक बार की नहीं सौ बार की इजाजत है। मैंने तुम्हारे मोबाइल में एक मेसेज़ काई कर दिया है। तुम्हें अपना निर्णय लेने में कोई परेशानी ना हो इसलिए मैंने तुम्हें अपने मन की बात बता दिया। मेरी वजह से वसीम चाचा पता नहीं कहाँ चलें गये हैं। लेकिन यकीन है की वो आएंगे जरूर..”
शीतल कार्डिंग ट्रॅदने लगी और सुनने लगी। शीतल को मन नहीं लग रहा था। बो रूम में सोने आ गई। वो अपने सारे कपड़े उतार दी। शीतल ने आज वही पैटी पहनी हुई थी जिसमें उसने पहली बार वसीम को अपना बीर्य गिराते देखा था। वो उसी पैंटी को पहनें बेड पे लेटी हुई वसीम को याद करती रही। शीतल मायूस सी लेटी हुई थी और वसीम के साथ बिताए पलों को याद कर रही थी। वो बहुत परेशान थी की पता नहीं वसीम उस होटल में हैं या नहीं?
फिर वो अपने मोबाइल में वसीम की पिक देखने लगी और सोचने लगी- “आहह… वसीम आप क्यों चले गये?
अभी आप होते तो आपका ये मोटा लण्ड फिर से मेरी चूत के अंदर होता। आ जाइए ना वसीम प्लीज… अपनी चंडी के लिए आ जाइए। आपको अगर जाना ही था तो मुझे भी साथ ले चलतें। कम से कम रोज चार-पौंच बार आपसे चुदवाती तो। अब ये चूत आपके लण्ड के लिए ही है। अब अगर इसे आपका लण्ड नहीं मिला तो किसी का नहीं मिलेगा। विकास को भी नहीं। उसी की वजह से आप मुझसे दूर हुए हैं, तो उसे भी मुझसे दूर ही रहना होगा…”
शीतल अब अपनी चूत में उंगली करने लगी थी- “आहह… वसीम बस उस लड़के ने सच कहा हो मुझसे। कल सुबह मैं आपके सामने हाऊँगी। आप मुझसे भाग नहीं सकते। फिर आपकी मर्जी हो या ना हो, आपको मुझे चोदना ही होगा। मेरी चूत को अपने बीर्य से भरना ही होगा आहह..” फिर शीतल अपनी चूत में पानी निकालकर नंगी ही सो गई।
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सुबह शीतल निश्चिंत होकर साई हुई थी। रात में उसके साथ ना विकास था ना वसीम। लेकिन फिर भी अपनी चूत से पानी निकालकर वो सुकून से सोई थी। उसे उम्मीद थी की सुबह उसे वसीम मिल जाना था। वो अपने बत पे जागी। आज काफी दिनों के बाद उसके होंठों पे मुश्कान थी। वो जल्दी-जल्दी घर में झाड़ पोछा लगाई और फ्रेश होकर नहाने चली गई।
उसने फिर से अपने जिश्म को साफ किया। आज उसका जिश्म चमकना चाहिए वसीम के लिए। उसने एक अच्छी सी साड़ी निकाली थी पहनने के लिए। लेकिन उसे पहनने में वक़्त लगता तो वो पहले सिर्फ नाइटी पहन ली थी। वो पूजा करने गई तो भगवान से मनाई की उसे वसीम सही सलामत उस होटल में मिल जाए। फिर चाहे कुछ भी हो जाए, मैं उन्हें कहीं जाने नहीं दूँगी । शीतल पूजा करके आई तो मकसूद का काल आ रहा था। बो रात में काल की धी मकसद को तो बा अभी मेसेज़ देखकर काल बैंक कर रहा था।
मकसद बहुत उदास हो गया था की रात में शीतल ने उसे काल किया था, लेकिन उसकी खराब किश्मत की रात में उसका फोन बंद था इसलिए काल नहीं लगा था। अभी मेसेज़ में मिस्ड काल अलर्ट देखकर उसने शीतल का काल किया था। उसे बहुत अफसोस हुआ की रात में शीतल अकेली थी और वो नहीं गया। किसी भी वजह से बुला रही हो, लेकिन जाने पै तो बिना किसी डर के वो शीतल को घर सकता था। शायद ऊपर वाला मौका देता तो बहुत कुछ हो सकता था। हो सकता है वो इसी के लिए बुला रही हो। शीतल पहली बार में काल रिसीव नहीं की थी, तो वो तैयार होकर शीतल के घर के लिए निकल पड़ा था।
शीतल पूजा करके आई फिर मकसूद को काल बैंक की। वो खुश होकर उसे बता दी- “वसीम का पता चल गया हैं, मैं अभी एक लड़के के साथ वहीं जाने वाली हैं…” शीतल बहुत खुश थी।
मकसूद के पूछने पे बो होटल का नाम भी बता दी। मकसूद चकित हो गया की इसे कैसे पता चला। वो सोचने लगा की अब तो वसीम को टूट लेगी और फिर मेरा पत्ता कट जाएगा।
मकसद बोला- “वो एरिया ठीक नहीं है मेंडम, वहाँ ऐसे किसी अंजान आदमी के साथ मत जाइए…”
शीतल बोली- “इसलिए तो रात में नहीं गई थी। लेकिन अब भला दिन में क्या प्राब्लम हो सकती है?”
मकसूद बोला- “आप घर पे ही रूकिये, मैं उसे देखकर लेकर आता हूँ.”
शीतल को लगने लगा की कही मकसूद के जाने पर ऐसा ना हो की वसीम यहाँ ता नहीं ही आए, और कहीं और ना चला जाए। बहुत मुश्किल से उनका पता चला है और अब में उन्हें खोना नहीं चाहती। वो बोली- “नहीं कुछ नहीं होगा। मैं ही चली जाती हैं वहाँ…”
मकसूद बोला- “ठीक हैं आप रुकिये में आ रहा है…
शीतल जल्दी-जल्दी बेड बटर गरम करके खा ली और एक ग्लास दूध पी ली। फिर वा तैयार होने लगी। वो अच्छी सी डिजाइनर ब्रा और पैंटी पहनी। वो स्लीवलेश ब्लाउज़ पहन रही थी फिर उसे लगा की जब सब कह रहे हैं की एरिया सही नहीं है तो कपड़े चेंज कर लेती हैं। वो दूसरी साड़ी निकाल ली। यं ब्लाउज़ नार्मल था फिर भी क्लीवेज तो दिखता ही है ब्लाउज़ में।
शीतल साड़ी पहनने लगी तो उसने देखा की साड़ी तो छोटी है और इसे तो नीचे से पहनने होगा। वो सोची की फिर से साड़ी चेंज कर लेती हैं। तब तक उस लड़के के पास जाने का टाइम भी हो रहा था, और मकसूद भी किसी बढ़त आने वाला होगा। बो उसी साड़ी को पहन ली।
शीतल तैयार हो ही रही थी की मकद्द दरवाजे पे आ गया। वा जल्दी में साड़ी पहनी और फिर आकर दरवाजा खाली। मकसूद के लिए शीतल अब एक चिड़िया थी जिसे उसे दबाचना और खाना था बसा वा शीतल को देखता रह गया। आज उसके मन में कोई डर नहीं था। शीतल हड़बड़ी में दरवाजा खोली और रूम में जाकर मेकप करने लगी।
मकसद सोफा में बैठ चुका था। उसने बैठे बैठे ही वसीम के बारे में पूछा तो शीतल राम से ही उसे कल हुई बात बताने लगी। मकसूद को ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था तो वो बेडरूम के दरवाजे पे आ गया। शीतल अपने आँचल को ठीक से अइजस्ट करती हुई पिज लगा रही थी। मकसूद को कोई डर नहीं था और बा आराम से दरवाजे में अपने बाडी को टिकाकर शीतल को देखने लगा।
शीतल की चमकती हई पीठ और फिर आँचल अइजस्ट करने के चक्कर में उसकी क्लीज देखकर उसका लण्ड टाइट हो गया। उसका मन हुआ की दबोच ले शीतल को और उसके कपड़े फाड़कर उसे चोद दे। अकेली है क्या करेंगी? लेकिन उसने अपने आपको रोक लिया। शीतल इन सबमें अंजान मकसूद में बात करती हुई तैयार होती रही। उधर मकसूद आराम से उसके पूरे बदन को निहार रहा था।
मकसद मन ही मन सोच रहा था की- “ये हर वसीम के लिए इतनी मरी जा रही है, और वो बदकिश्मत इंसान इस पूरी से दूर होकर छिपा हुआ बैठा है। अगर ये थोड़ी भी मेरे लिए परेशान होती तो मैं तो इसे कब का चोद चुका होता। शीतल तैयार होकर बाहर आ गई।
शीतल चलने लगी तो मकसूद बोला- “मैं भी चलता हैं आपके साथ…”
शीतल कार निकालने लगी तो मकसूद इस दिया और बोला- “मैडम, जहाँ आपका जा रही हैं, वहाँ कार नहीं जाती। वो इतनी संकरी गलिया है की वहाँ कार तो क्या रिक्शा जाने में भी परेशानी होती है…”
शीतल असमंजस में पड़ गई। वो सोचने लगी की क्या करें? क्योंकी घर में स्कूटी नहीं थी।
मकसद बोला- “उस लड़के को बहने दीजिए और आप मेरे साथ चलिए। वो जगह मुझे भी मालम है…”
शीतल सोचने लगी “ठीक ही तो है। कल रात इसी के लिए तो काल की थी मकसूद को। मुझे वसीम को ट्रॅटने से मतलब है, उस होटल में जाने से मतलब है, अब चाहे किसी के साथ जाऊँ। मकसूद के साथ ही चली जाती हैं। फिर वो उस लड़के के बारे में सोचने लगी। लेकिन वो मेरा इंतजार करता रहेगा। कोई बात नहीं, बाद में वसीम की दुकान पे जाकर उसे ₹500 क्या ₹1000 दे दूँगी.”
शीतल मकसूद को ही बोली और दरवाजा बंद करती हई बाहर आ गई। मकसूद आसमान में उड़ता हुआ बाइक पे जा बैठा। आज शीतल उसके बाइक में बैठने वाली थी। ये सोचकर ही उसकी आकार बढ़ गई थी की एक हसीना उसके साथ बाइक में घूमने वाली थी। मकसद की बाइक बहुत पानी थी। शीतल जब बाइक पे बैठने लगी तो उसने आस-पास देखा तो सब उसे ही देख रहे थे। वो शर्मा गई की वो अपने पति के चपरासी के साथ बाइक में बैठकर जा रही हैं। लेकिन अभी उसके पास कोई रास्ता नहीं था। वो बाइक में बैठ गई। वो मकसद से थोड़ा अलग हटकर बैठी थी। उसका जिस्म मकसद से दर था।
मकसूद ने बाइक स्टार्ट किया और जैसे ही आगे बढ़ने लगा उसकी बाइक बंद हो गई। उसे बड़ी शर्मिंदगी हुई की इस खटारा बाइक की वजह से उसकी बेइज्जती हो रही है। वो फिर से स्टार्ट किया और आगे बढ़ाया तो बाइक एक झटके से आगे बढ़ गई।
शीतल हड़बड़ा गई और आ करती हुई मकसूद के कंधे को पकड़कर उसके बदन से सट गई। बाइक चलने लगी तो वो खुद को अइजस्ट की। अब शीतल को बड़ी शमिंदगी महसूस हई की बो मकसूद के बदन से ऐसे सट गई थी। सब उसे ही देख रहे थे।
मकसूद तो खुश हो गया था। उसके जिस्म में करेंट दौड़ पड़ा। शीतल की चूचियों की नौहट को वो अपनी पीठ में अभी भी महसूस कर रहा था, हालाँकी शीतल उससे अलग हो चुकी थी। बाइक चलने लगी और कुछ ही देर में शीतल की कमर और जांधे मकसद से सट गई थीं। शीतल चाहकर भी मकसद से अलग नहीं हो पा रही थी। वो अलग होने की कोशिश करती की फिर से उससे सट जा रही थी। उसे बहुत अजीब लग रहा था की मकसद क्या सोच रहा होगा मेरे बारे में की मैं उससे चिपकी जा रही हैं। लेकिन वो अलग होती और फिर सट जाती थी। फाइनली वो अपने जिश्म को ढीला छोड़ दी। अब उसके कंधे भी मकसद से सटने लगे थे।
मकसूद थोड़ा और पीछे होकर बैठ गया था अब। उसे बहुत मजा आ रहा था। लेकिन उसकी चाहत और बढ़ रही थी। सामने एक गइटा आया और मकसद ने झटके से ब्रेक मारा। शीतल पूरी तरह मकसद के बदन पे गिर पड़ी और उसकी चूचियां मकसद की पीठ पे दब गई। मकसद तो जैसे जन्नत में था। उसे बहुत मजा आ रहा था और बा चाहता था की ये रास्ता खत्म हो ना हो।
थोड़ी देर चलने के बाद उस बस्ती में वो लोग आ गये थे। सच में एकदम संकरी गालियां थी। मकसूद किसी तरह से धीरे-धीरे करके बाइक चला रहा था। धीरे बाइक चलाने से बाइक झटके ज्यादा ले रही थी तो शीतल मकसद के बदन से सट गई थी। वो जैसे ही अलग होती थी की फिर से झटका लगता था और वो मकसद से टकरा जाती थी। इसलिए वो पर्मानेंटली ही मकसूद के जिस्म में सट गई थी। मकसूद होटेल की तरफ ना घूमकर के बस्ती में सीधा आगे बढ़ गया। वो आगे से मुड़कर होटेल जाना चाह रहा था ताकी शीतल अपनी चूचियां सटाए थोड़ी देर और बाइक में बैठी रहे।
सब लोग इन दोनों को ही देख रहे थे। शीतल जैसी हसीना इस झुग्गी झोपड़ी में क्या कर रही थी? बहुत सारे लोग यहाँ भी मकसूद को पहचानते थे। वो सब मकसूद को देखकर रश्क कर रहे थे की साले ने ऐसी माल को कहाँ से बाइक के पीछे बिठा लिया। मकसूद शान से बाइक चलता हुआ चला जा रहा था, और शीतल उससे ऐसे चिपकी हुई थी जैसे उसकी ही माल हो। शीतल को बहुत शर्म आ रही थी लकिन बेचारी क्या करती? वो अपनी चूत के चक्कर में पड़ी हुई थी।
मकसूद में उस होटल के पास बाइक रोक दिया। शीतल तुरत उत्तरी और होटल के रिसेप्शन पे चली गईं। शीतल जैसी गरम माल को देखकर होटेल स्टाफ का मुंह खुला का खुला रह गया।
सीतल काउंटर पे जाकर पूरी- “वसीम खान किस रूम में हैं, मुझे उनसे मिलना है…”
सबको आश्चर्य हुआ। लेकिज स्टाफ ने बताया की वसीम खान तो यहाँ है ही नहीं। इस नाम का तो कोई आदमी यही रूका ही नहीं है 8-10 दिन में। शीतल उदास हो गईं। लेकिन फिर उसे लगा की हो सकता है की किसी और नाम से रुके होंगे तो वो अपनी मोबाइल निकाली और उसकी एक पिक को काप करके सिर्फ चेहरा दिखाई होटेल में। लेकिन फिर भी सबका वही जवाब था।
शीतल मायूस होकर बाहर आई की उसकी इन्फर्मेशन गलत निकली। उसे बहुत गुस्सा आया उस बच्चे पे जो झूठ बोलकर उससे 500 रूपये भी ले गया और सबसे बड़ी बात उसका दिल तोड़ दिया। वो कितनी खुश थी लेकिन यहाँ आकर उसके सारे अरमान टूट गये।
मकसूद बाहर ही खड़ा था। उसने पूछा- “क्या हुआ?”
शीतल मायूस होकर उसे बताई की. “यहाँ नहीं है…” और दोनों वापस लौटने लगे।
फिर से शीतल किसी तरह थोड़ी दूर तो रही मकसद से लेकिन थोड़ी ही देर में उससे चिपक गई। फिर से उसने सोच लिया की जो होता है हाने दो और अपने जिश्म का ढीला छोड़ दी। मकसद अपने पीठ में शीतल की नर्म मुलायम चूचियों को महसूस करता हुआ बाइक चलाने लगा। वापस लौटते वक़्त दोनों वसीम की दुकान की तरफ भी गये लेकिन वो लड़का अब वहाँ नहीं था। मायूस होकर शीतल घर आ गई।
शीतल का मूड खराब हो चुका था। शीतल घर आ गई। मकसूद भी अंदर आना चाहता था। वो तो हमेशा शीतल के पास ही रहना चाहता था, लेकिन शीतल उसे मना कर दी।
शीतल बोली- “आप जाइए, आपको आफिस जाना होगा। मैं फिर बताती ह आपको जैसा होता है…” बोलती हई शीतल अंदर आ गई और मुख्य दरवाजा बंद करते हुए अपने घर चली गई।
मकसूद को बहुत बुरा लगा। फिर भी वो हँसता हुआ चल दिया की आज के लिए इतना कोटा काफी था। मकसूद ने होटेल में काल किया और वसीम से बात किया। मकसूद ने पहले ही वसीम को बता दिया था और वसीम ने होटल वालों को समझा दिया था। वसीम ने उससे पूछा और मकसूद उसे सब कुछ बताता गया।
मकसूद ने ये भी बताया की- “शीतल को बाइक पे बिठाकर मुझे बहुत मजा आया। तेरा शुक्रिया दोस्त की तरी बजह से वो हर आज मेरे बदन से सटी और हाय क्या मस्त चूचियां हैं साली की… अभी तक पीठ नरम लग रही
वसीम हँसने लगा।
मकसद ने उससे फिर पूछा- “त ये कर क्या रहा है? क्यों त बाहर है अपने ही घर से? क्यों वो तुझे इतनी बेकरारी से ट्रॅट रही है? तूने पक्का कुछ किया है उसके साथ..”
वसीम हँसता हुआ ही बोला- “बताऊँगा, साले सब बताऊँगा…”
मकसूद अपने काम पे चला गया और शीतल झल्लाती हुई घर पे थी। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था वसीम पे।
शीतल कपड़े चेंज करके खाना बनाने लगी और तभी विकास का काल आ गया। विकास ने वहाँ जोयिन कर लिया था। शीतल विकास को कुछ भी नहीं बताई वसीम और मकसूद के बारे में। कहीं विकास फिर गुस्सा ना करने लगे। थोड़ी देर बात करने के बाद वो फोन रख दी और फिर अपने काम में लग गई। वैसे उसके पास अब काई काम नहीं था। वो बस वसीम को याद करने लगी। वो वसीम को बहुत मिस कर रही थी की इतने दिन वो अकेली है और अगर वसीम रहता तो कितनी मस्ती करती उनके साथ। इतनी बार उनसे चुदवाती की उनके सारे अरमान पूरे हो जाते। दिन रात उनसे चुदवाते रहती।
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शीतल की सहेली दीप्ति का आगमन शीतल लेंटी थी की उसके घर पे नाक हुआ। वो घड़ी देखी तो 11:00 बज रहा था। वो खुशी से झूम उठी की
अभी कौन होगा? जरूर वसीम ही आए होंगे। लेकिन जब वो दरवाजा खोली तो उसकी एक पुरानी सहेली थी। दीप्ति। शीतल पहले तो वसीम को ना देखकर मायूस हो गई। लेकिन फिर दीप्ति को देखकर चकित हो गई। बो खुशी से उछल पड़ी और उसके गले लग गई।
दीप्ति शीतल की कालेज की दोस्त थी और उसी के उम्र की थी। पढ़ाई करते वक़्त ही दीप्ति की शादी हो गई थी। दीप्ति को एक बरचा भी था 6 महीने का और वो अब थोड़ी मोटी हो गई थी। लेकिन वो भी बहुत खूबसूरत थी। शीतल और दीप्ति कालेज के लड़कों की हाट लिस्ट में थी।
दीप्ति की शादी के बाद दोनों आज ही मिल रहे थे। दीप्ति को पता चला की शीतल यही है तो वो उसका अईस लेकर यहाँ चली आई थी। उसने शीतल का नम्बर लिया था लेकिन वो गलत नम्बर लिख ली थी। इसलिए फोन नहीं कर पाई और किसी तरह पूछते हए अपनी सहेली के पास आ गई थी। दीप्ति का पति भी इसी शहर में काम करता था।
दोनों सहेलियां लंबे समय बाद मिली थी तो दोनों गप्पे लड़ाने लगी। शीतल को बहुत अच्छा लग रहा था और कछ देर के लिए वो वसीम को भी भल गई थी। दोनों में बहुत सारी पुरानी बातें होती रही और थोड़ी देर के बाद दीप्ति शीतल को चिढ़ाते हुए बोली- “तू यहाँ इस मुस्लिम मुहल्ले में क्यों रहने आ गई। तुझ जैसी गरम माल को तो ये लोग आँखों में ही खा जाते होंगे…”
शीतल हँस दी और बोली- “अरे… इसमें नया क्या है? हर काई तो इसी तरह हम लोगों को देखता था। कालेज के दिन भूल गई क्या? याद है फेशार है पार्टी के दिन जब हम लोगों ने पहली बार साड़ी पहनी थी तो सब कैसे घर
रहे थे। वो तो अच्छा है की नजरों से चोदने से हम लोग प्रेगनेंट नहीं होती नहीं तो इंडिया की जनसंख्या 4 गुना
और होती… फिर दोनों सहेलियां ठहाके लगाने लगी।
दीप्ति फिर बोली- “फिर भी ये लोग कुछ ज्यादा ही घूरते हैं। कोई लाइन मरता है की नहीं?”
शीतल ऐसे मैंह बनाई की- “घूरते हैं तो घूरने दो, हम क्या?” फिर वो अपनी मौंग में लगे सिंदूर को दिखती हुई बोली- “ये देखती नहीं क्या, अब कौन लाइन मरेगा?”
दीप्ति हँसने लगी और बोली- “ता त किसी को पटा ले…”
शीतल हँसतं हए बोली- “तू कितनी को पटाकर रखी है जो मुझें पटाने बोल रही है साली?”
दीप्ति का बेटा रोने लगा तो वो अपनी ब्लाउज़ को ऊपर की और उसे दूध पिलाने लगी।
उसकी चूचियों को देखकर शीतल हँस दी और बोली- “कालेज टाइम में तो तेरे बड़े छोटे-छोटे थे। लगता हैं जीजाजी बहुत मेहनत कर रहे हैं, या तू और भी बहुत सारे मजदूर लगा रखी है इसे बढ़ाने के लिए.”
दोनों फिर से हँसने लगे। दीप्ति कोई जवाब नहीं दी इसका।
दीप्ति शीतल के चूचियां की तरफ इशारा की, और कहा- “तेरे भी तो बहुत बड़े-बड़े हो गये हैं.”
शीतल जबाब दी- “कहाँ, मेरे तो इतने ही बड़े हैं। तेरे जीजाजी मेहनत ही नहीं करते। मैं भी सोच रही हैं दो-चार मजदूर रख ही ल…”
बातें चलती जा रही थी। दोनों खाना खाने लगे। 2:30 बज रहा था। शीतल के घर का मुख्य दरवाजा खुला और फिर कोई सादियों में चढ़ता चला गया। शीतल का कलेजा धक्क से कर गया। वसीम चाचा आ गये क्या?
शीतल खाना छोड़कर उठी और दरवाजा खोलकर सीटी पे देखी- “हौं… ये तो वसीम चाचा हैं। ओहह … शुक है भगवान का की ये सही सलामत वापस आ गये हैं। उसका मन हुआ की अभी दौड़ कर जाए और उनसे लिपट जाए लेकिन दीप्ति घर पे ही थी। अगर इसे जरा भी शक हुआ तो खबर उसके घर और शहर तक आग की तरह फैल जाएगी…”
शीतल वापस आकर जल्दी-जल्दी खाना खाने लगी। खाना खाने के बाद भी दीप्ति सोफा में बैठकर बातें करने लगी, लेकिन शीतल को बैचैनी हो रही थी।
दीप्ति वसीम के बारे में पूछी।
लेकिन शीतल- “मकान मालिक है.’ बोलकर बात को टाल गई।
दीप्ति 15 मिनट होते-होते बस एक बार फार्मेलिटी के लिये बोली. “अब चलना चाहिए मुझे..”
शीतल तुरंत बोल दी- “हीं, ठीक है अब जा त। फिर आना। अपना नम्बर दे दें, मैं भी आऊँगी तेरे घर। फोन करेंगी तुझे… इसके बाद 10 मिनट होते-होते शीतल दीप्ति को भेज चुकी थी।
शीतल की सांसें भारी हो गई थी। उसे बैचैनी होने लगी थी। 5 दिन बाद वसीम आया था और वो उसके पास जा भी नहीं पा रही थी। पता नहीं इन 5 दिनों में वो कहीं रहें, क्या किया? बो अब तक उनके पास नहीं गई हैं, पता नहीं क्या सोच रहे होंगे? दीप्ति के जाते ही वो मुख्य दरवाजा लाक की और ऊपर भागी।
वसीम आते ही ऊपर अपने घर में चला गया था। शीतल दौड़ती हई ऊपर पहुँची। वसीम का सामान फैला हुआ था। वो शायद अपने जरी सामान समेट रहा था।
शीतल उसे पीछे से पकड़ ली और उससे चिपक गई और सवालों की झड़ी लगा दी- “आप कहाँ थे? कहाँ चले गये थे मुझे छोड़कर? कोई अपने ही घर में जाता है क्या? मोबाइल क्यों नहीं लग रहा था? कम से कम मुझसे तो बात करतें, मुझे कितनी चिंता हो रही थी एट्सेंटरा.”
वसीम अंदर ही अंदर तो बहुत खुश था लेकिन वो बस सीधा खड़ा था। थोड़ी देर में शीतल उससे अलग हुई और उसे अपनी तरफ घुमाईं। वसीम की दादी बिल्कुल बदी हुई थी, बाल बिखरे थे, आँखें लाल थी। शीतल को उसकी हालत में तरस आ रहा था की इस सबकी जिम्मेदार बो है। वो फिर से वसीम से लिपट गई। वसीम इन 5 दिनों में नहाया भी नहीं था तो उसके जिस्म से बदबू आ रही थी। लेकिन ये बदबू भी शीतल को मैंहगे लेवेंडर की खुश्बू दे रही थी। वो रोने लगी थी और फिर से वहीं सारे सवाल दुहरा रही थी।
थोड़ी देर बाद जब शीतल उससे अलग हुई तो वसीम बिलकुल उदास, मागश, थका हारा सा दिख रहा था।
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