शीतल आहह … उऊहह … करने लगी। वसीम के धक्के में शीतल का पूरा जिस्म हिल रहा था। शीतल की मुलायम चूचियां पूरी तरह से उछल रही थी, और वसीम अपने अरमान पूरे कर रहा था। तुरंत ही शीतल की चूत में अपना पानी छोड़ दिया। लेकिन तुरंत ही वो फिर से गरमा गई थी।
लण्ड डाले डाले ही उसे ऊपर कर दिया और अब शीतल वसीम के लण्ड पे उछल रही थी। शीतल की चूचियां ऊपर-नीचे हो रही थी और साथ में वो मंगलसूत्र भी। शीतल पूरा ऊपर आ रही थी और फिर पूरा नीचे जा रही थी। थोड़ी देर बाद वसीम ने शीतल को कुतिया की तरह चार पैरों पे कर दिया और उसकी गाण्ड पे कम के एक हाथ मारा। शीतल इस तरह हो गई की उसकी गाण्ड बाहर की तरफ निकल गई और कमर नीचे हो गई। वसीम शीतल के पीछे आया और उसकी चूत में अपना लण्ड घुसेड़ दिया।
शीतल की चूत में फिर पानी बह निकला और वसीम के हर धक्के से शीतल की चूत से वो पानी बाहर आ रहा था। फिर से वसीम ने शीतल को सीधा लिटाया और और उसके ऊपर आकर चोदने लगा। शीतल पस्त हो चुकी थी। बहुत देर हो चुका था। शीतल आधे घंटे में इतने विशाल लण्ड को अपनी नाजुक सी चूत में झेल रही थी।
वसीम शीतल से पूरी तरह चिपक गया और लण्ड चूत के आखिरी छोर में जा सटा और वसीम के लण्ड में पानी गिरा दिया। अंदर वीर्य की गर्मी पाते ही शीतल की चूत तीसरी बार पानी छोड़ दी। जब बीर्य की आखिरी बंद भी शीतल की चूत में गिर गई तो वसीम ने अपने लण्ड को बाहर निकाल लिया और शीतल के बगल में टेर हो गया। लण्ड के बाहर आते ही शीतल की चूत में वीर्य का और चूत के पानी का मिक्स्च र बाहर बेड पे बहनें लगा। दोनों पीने से लथपथ हो चुके थे। इस महयुद्ध में एक बार फिर से चूत की ही जीत हुई और इतना विशाल लण्ड भी अब थक हार कर मुर्दे की तरह पड़ा हुआ था। बेड के सारे फूल रौदे मसले जा चुके थे।
आखिरकार, शीतल आज वसीम से चुद ही गई। इतनी मजेदार चुदाई उसकी आज तक नहीं हुई थी। वो पशीने से लथपथ थी। वसीम भी इस 23 साल की अप्सरा को अपने मन मुताबिक चोदकर निटाल पड़ा था।
शीतल ऐसे ही नंगी लेटी रही। उसकी चूत में अभी भी वसीम का वीर्य और खुद उसकी चूत का पानी मिलकर बाहर बह रहा था और बेंड को गीला कर रहा था। शीतल के जिस्म में तो जैसे जान ही नहीं थी। 6:00 बजे से अभी 10:00 बजे तक में 4 बार उसकी चूत से पानी निकला था। एक बार तो वो खुद नहाते वक़्त निकाली थी
और तीन बार वसीम ने चोदते हुए निकाल दिया।
शीतल मन में- “उफफ्फ… ऐसे भी कहीं चदाई होती है। 8:00 बजे से लेकर 10:00 बजे तक। एक तो इतना बड़ा घोड़े का लण्ड है और उसमें इतनी देर तक चोदते रहे। मेरी तो चूत छिल गई है। पूरा बदन दर्द कर रहा है। लेकिन एक बात की खुशी है की में इनका साथ दे पाई। उन्हें मजा तो आया होगा ना? संतुष्ट तो हए होंगे ला वा? पता नहीं, लेकिन इतने में भी अगर कोई संतुष्ट ना हो तो अब क्या जान निकल के मानेगा?
थोड़ी देर में वसीम बैंड से उठा। उसका लण्ड इतनी पुरजोर चुदाई के बाद ढीला था। लेकिन उसकी जांघों के बीच ऐसे लटक रहा था जैसे कोई काला नाग झल रहा हो। उस झूलते लण्ड को देखकर शीतल की चूत में फिर से आग भर गई। वसीम ने कैमरे को बंद कर दिया। ने लेटी हईशीतल को देखा।
शीतल शर्मा गईं। शीतल भी बेड से उठ गई। उसका पूरा मेकप बिगड़ा हुआ था। आँखों का काजल और लिपस्टिक फैल गया था और बाल बिखरे हुए थे। वो बहुत ही संडक्टिव लग रही थी। वो सीधे बाथरूम में जाकर पेशाब करने लगी। उसकी चूत में तेज जलन होने लगी और चूत से गाढ़ा सफेद पानी पेशाब के साथ निकलने लगा। वो बाथरूम में ही चूत को ठंडे पानी से अच्छे से धो ली और पोंछूकर बाहर आई। शीतल तौलिया लपेटकर बाथरूम से बाहर आई, तब तक वसीम प्लास्टिक बैंग में लगी निकालकर पहन चुका था और सोफे पे बैठा था।
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शीतल अदा से चलती हुई वसीम के सामने आई और बोली- “मैं खाना लगाती हूँ, चलिए कुछ खा लीजिए.”
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विकास अपनी मीटिंग खतम कर चुका था। उसके पास अब कोई काम नहीं था। लेकिन वो घर नहीं जाना चाहता
था। वा शीतल का बाल चुका था की वा कल आएगा। उसने एक हाटेल लिया और वहीं शिफ्ट हो गया। उसका बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। शादी के बाद ये पहली रात थी उसकी शीतल के बिना। जब वो इस शहर में आया था तो एक सप्ताह बड़ी मुश्किल से काट थे उसने। तब मजबी थी। लौकन आज वो यही है और उसकी बीवी किसी और के साथ सुहागरात मना रही है। उसे बहुत बुरा लग रहा था। बहुत गुस्सा आ रहा था की क्यों उसने शीतल को पमिशन दिया।
विकास को शीतल पे भी गुस्सा आ रहा था की कौन औरत ऐसा करती है। वसीम पे भी गुस्सा आ रहा था की उसने मेरी भोली भाली बीवी को फैंसा लिया। लेकिन सबसे ज्यादा नाराज बो खुद से था। मुझे शीतल को शुरू में ही डांटना चाहिए था। मैंने उसे पता नहीं क्यों किसी और से चुदवाने की पमिशन दे दी। अभी बा बढ़ा मेरी हसीन बीबी के जवान जिस्म से खेल रहा होगा। उसका मन हुआ की अभी तुरंत घर चला जाए लेकिन अब काफी देर हो चुकी थी। वो दूसरे शहर में था और अब उसके पहुँचते-पहुँचतें आधी रात हो जाती। इससे तो अच्छा है की अब जो जो रहा है होने दूं।
शीतल किचेन में चली गई खाना लानें। उसके चलने में चड़ियों और पायल की छन-छन और खन-खज हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे एक अप्सरा कमरे में चहल-कदमी कर रही है। शीतल खाना डाइनिंग टेबल पे लगा दी। वसीम आकर चयर में बैठ गया और शीतल वसीम की गोद में जा बैठी। वो अपना धर्म निभा रही थी। मदद करने का धर्म और पत्नी होने का धर्म। आज की रात वो वसीम को किसी तरह की कमी नहीं होने देना चाहती थी। उसे वो सब कुछ मिलना चाहिए जो वो सोचता है चाहता है।
शीतल वसीम से पूछना चाहती थी- “कैसा लगा मुझे चोदकर? अब तो आप खुश हैं ना? अब तो आप संतुष्ट हैं ना? अब तो आप रिलैक्स रहेंगे ना?” लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हई। वो अभी भी एक संस्कारी औरत थी जो सेक्स के बारे में ज्यादा बात नहीं कर सकती थी।
शीतल खाना हाथ में लेकर वसीम के मुँह में देने लगी। वसीम शीतल के बदन को सहला रहा था और खा रहा था। फिर वो भी शीतल को खिलाने लगा। बारे प्यार से दोनों खाना खा और खिला रहे थे।
कितनी बार शीतल अपने मुँह में पड़ी का टुकड़ा लेकर लिप-किस करते हुए वसीम को दी। वसीम भी ऐसा ही कर रहा था। शीतल वसीम के लूँगी को साइड में कर दी थी और उसके लण्ड को भी सहला रही थी। शीतल खीर को अपने चहरा पे लगा ली और वसीम चूमते चाटते हुए उसे साफ करने लगा। शीतल का तौलिया उसके बदन से गिर पड़ा और वो फिर से नंगी हो गई। शीतल खीर को अपनी चूचियों में लगा ली और वसीम के सामने कर दी।
वसीम- “आहह… मेरी जान, तुमने मुझे खुश कर दिया उम्म्म… उमान…” बोलता हुआ शीतल की चूचियों में लगी खीर को खाने लगा।
फिर शीतल नीचे बैठकर लण्ड पंखीर लगाकर चूसने लगी। थोड़ी देर में वसीम ने उसे मना कर दिया। वो अभी लण्ड का पानी नहीं गिराना चाहता था।
शीतल सारा बर्तन समेटी और छन-छन करती हई नंगी ही किचेन में चली गई। दो मिनट में बर्तन धोकर वो बाथरूम में घुस गई। पशीने से ऐसे ही उसका बदन भीग चुका था और खीर लगने से चिपचिप कर रहा था। वो नंगी ही बाथरूम में गई और दो मिनट में ही जल्दी से नहाकर बदन पोकर बाहर आ गई। वो वसीम को अकेला नहीं छोड़ना चाह रही थी। वो नहीं चाहती थी की वसीम को लगे की शीतल उससे दूर है। वो उसके लिए हमेशा उपलब्ध रहना चाहती थी।
शीतल रूम में आ गई और अपना मेकप ठीक करने लगी। वो चेहरे में कीम लगा ली और काजल, बिंदी लगाने के बाद माँग में सिंदूर भरने लगी। उसे विकास का ख्याल आया। शीतल सच में आज विकास को भूल गई थी। सबह बात करने के बाद वो विकास से बस एक बार शाम में बात कर पाई थी, बो भी बस एक मिनट।
शीतल का वसीम से चुदवाने की हड़बड़ी थी और उसकी तैयारियों के बीच वो विकास से बात ही नहीं की। विकास ने दिन में भी दो बार काल किया था लेकिन पार्लर में होने की वजह से वो काल लें नहीं पाई थी। शाम का काल भी विकास ने ही किया था, जिसमें शीतल ने ठीक से बात नहीं की थी। शीतल अपराधी महसूस करने लगी। शादी के बाद वा विकास से कभी अलग नहीं रही थी। एक हफ्ते के लिए जब विकास यहाँ आए थे पहली बार
और रूम नहीं मिला था तब और फिर आज। बाकी हर रात दोनों ने एक साथ गजारी थी।
विकास भी उस एक हफ्ते में परेशान हो गया था और शीतल भी पिया बिना ‘जल बिन मछली की तरह तड़प उठी थी। लेकिन आज तो उसे विकास का ख्याल भी नहीं आया था। वो साची की मैं तो यहाँ हैं, लेकिन वो तो अकेले होंगे। वो तो परेशान होंगे। वो साची की बात कर लेती हूँ विकास से और उसे बता देती हैं। लेकिन फिर उसे लगा की अभी बात करेंगी तो वसीम को पता चल जाएगा और हो सकता है की उसे बुरा लगे। नहीं, कहीं ऐसा ना हो की मेरी कोई छोटी सी बात से इतना सारा कुछ किया हुआ बेकर हो जाए। वो सोच रही थी लेकिन फिर उसे लगा की नहीं, आज वो वसीम की है। ये वसीम के नाम का सिदर है। और विकास भी तो यही चाहता
था की वो पूरी तरह वसीम को संतुष्ट करें।
शीतल अपना मेकप भी जल्दी परा कर ली थी। उसे नंगी बाहर जाने में शर्म आ रही थी, लेकिन वो कोई कपड़ा भी नहीं पहनना चाहती थी। हो सकता है की कपड़ा पहन लेने में वसीम कुछ आइ महसूस करें। वो तौलिया उठाकर लपेटने लगी फिर उसे खुद पे हँसी आ गई की अभी थोड़ी देर पहले भी वो तौलिया पहनी थी और ओड़ी देर भी उसके बदन पे रह नहीं पाया था। और वैसे भी अभी तुरंत तो चुदवाकर उठी हैं और इस तौलिया से मैं क्या टक पाऊँगी भला।
फिर शीतल नंगी ही बाहर आ गई और वसीम के पास पहुँची। वसीम तब तक सोफे पे बैठकर आज की वीडियो कार्डिंग देख रहा था, और अपने लण्ड को अपने हाथ से हल्का-हल्का सहला रहा था। शीतल भी वसीम के पीछे खड़ी होकर देखने लगी। बहुत अच्छे से कार्डिंग की थी वसीम ने।
शीतल अपना नंगापन देखकर शर्माने लगी। वो आह्ह.. अहह… करती हई अपना बदन ऐंठ रही थी और चुदवाने के लिए पागल हो रही थी। उसे बहुत शर्म आ रही थी की वो कैसी थी और क्या हो गई? उसने कभी सपने में भी खुद को इस तरह नहीं देखा था और यहाँ बो पोर्न फिल्मो की इंग्लीश हीरोइनों को भी मात दे रही थी।
शीतल का शमांना देखकर वसीम हँस दिया और कैमरा बंद कर दिया। शीतल वसीम की गोद में बैठने आ रही थी, ताकी वसीम से पूछ सके की अब वो कैसा महसूस कर रहा है? तब तक वसीम खड़ा हो गया।
शीतल चकित हो गई- “क्या हुआ?”
वसीम- “कुछ नहीं। थोड़ा छत पे टहल कर आता है..”
शीतल- “में भी चलती हैं आपके साथ में…”
वसीम. “चलो, ऐसे ही चलोगी…”
शीतल कुछ पल रुककर सोचने लगी।
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तब तक वसीम खुद ही बोला- “चलो ऐसे ही, वैसे भी अंधेरी रात है…”
शीतल बोली तो कुछ नहीं लेकिन वो सोच रही थी की क्या करे? वो समझ नहीं पा रही थी की क्या रिएक्ट करें? अंधेरी रात तो हैं लेकिन फिर भी किसी ने देख लिया तो? ऐसे नंगी जाना क्या ठीक है? लेकिन वो वसीम को मना भी नहीं करना चाहती थी।
वसीम शीतल का सीरियसली साचता देखकर हँस दिया और बोला- “साड़ी पहन लो…”
शीतल इतना सुनते ही रिलैक्स हो गई। शीतल दौड़कर बेडरूम में गई और जल्दी से एक साड़ी पहनने लगी। वो पेटीकोट और ब्लाउज़ टूट रही थी, लेकिन फिर उसके दिमाग में ख्याल आया की- “अंधेरी रात तो है, साड़ी से तो बद्धन ढका ही रहेगा और अगर कोई होगा ता नीचे आ जाऊँगी…
शीतल ने सिर्फ साड़ी पहन ली और परे जिएम को उसमें छिपाकर बाहर आ गई। वसीम शीतल को देखता रह गया। यही फर्क था जंगे जिस्म में और अधनंगे जिस्म में। नंगी शीतल ने वसीम के लण्ड में हलचल नहीं मचाई थी, लेकिन साड़ी में लिपटी शीतल को देखकर वसीम का लण्ड टाइट होने लगा। पूरे बदन पे सिर्फ साड़ी थी और लाइट में साड़ी के अंदर से शीतल का गोरा बदन चमक रहा था। दोनों छत पे आ गये। पहले वसीम और उसके पीछे इरती छुपति झौंकती शीतल।
छत पे पूरा अंधेरा था। किसी की आहट ना पाकर शीतल भी छत पे आ गई। वैसे भी स्टोररूम के सामने में वो किसी को भी नहीं दिखती तो शीतल वहीं खड़ी हो गई। वसीम धीरे-धीरे छत पे टहलने लगा तो शीतल भी उसके साथ टहलने लगी। भले ही शीतल किसी को दिख नहीं रही हो लेकिन उसके चलने से छन-छन की आवाज तो हो ही नहीं थी। अगर किसी को भी पं अंदाजा होता की शीतल जैसी हसीना सिर्फ साड़ी में छत पें टहल रही है और ये उसकी चड़ी और पायल की आवाज है तो उसका लण्ड उसी वक़्त टाइट हो जाना था। ये वही छत थी जहाँ वसीम शीतल की पटी ब्रा में अपना वीर्य गिराता था और आज बहुत सारी बाधाओं के बाद शीतल बिना पेंटी ब्रा के सिर्फ साड़ी में उसके साथ टहल रही थी और अभी थोड़ी देर पहले वसीम उसकी चूत में अपना वीर्य भरा था।
वसीम छत के कोने की तरफ जाकर नीचें रोड की तरफ देखने लगा। शीतल भी हिम्मत करती हुई उसके बगल में आकर खड़ी हो गई। वहीं हल्की-हल्की लाइट आ रही थी और उस हल्की लाइट में शीतल का सुनहला बदन चमक रहा था। वसीम को भी लगा की कहीं कोई देख ना लें। वा पीछे आ गया और फिर अपने गम को खोलने लगा। शीतल भी उसके पीछे आने लगी तो उसने मना कर दिया। उसने अपने रूम को खोला और लाइट औज कर दिया। लाइट वसीम के रूम के अंदर ओन हई थी लेकिन उसकी चमक में शीतल अपने जिश्म को चमकता हुआ देख रही थी।
वसीम अंदर से दो चंपर बाहर निकाल लिया और लाइट आफ करके रूम को बंद कर दिया। उसने चंगर को छत के बीच में लगा लिया और बैठ गया। उसने शीतल को अपने पास बुलाया तो शीतल उसके पास आकर गोद में बैठ गईं। एक चंपर खाली ही रहा और शीतल वसीम की गोद में बैठी हुई थी। शीतल वसीम के कंधे पे सिर रख दी थी और वसीम से चिपक गई थी। वसीम का हाथ शीतल की कमर पे था।
शीतल ने वसीम के गर्दन पे किस की और मादक आवाज में बोली- “अब तो आप खुश हैं ना वसीम, अब तो
आपको कोई तकलीफ नहीं है ना?”
वसीम शीतल के नंगी कमर और पीठ का सहलाता हुआ बोला- “तुम्हें पाकर कौन खुश नहीं होगा। तुम तो ऊपर बाले की नियामत हो जो मुझे मिली। मैं ऊपर वाले का, विकास का और तुम्हारा बहुत-बहुत शुकरगुजार हैं.”
शीतल वसीम के जिश्म में और चिपकने की कोशिश करने लगी, और बोली- “मैं तो बहुत डर रही थी की पता नहीं मैं कर पाऊँगी या नहीं ठीक से? मैं आपका साथ तो दे पाई जा वसीम? आपका संतुष्ट कर पाई ना?”
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वसीम भी शीतल को अपने जिश्म पे दबाता हुआ बोला- “तुमनें तो मुझे खुश कर दिया। तुमने बहुत बड़ा काम किया है मेरे लिए। मैं बहुत खुश हैं। आज का दिन मेरी जिंदगी का सबसे हसीन दिन है। लेकिन मैं डर भी रहा हूँ की वक़्त धीरे-धीरे फिसलता जा रहा है। चंद घंटे हैं मेरे पास, फिर तुम मेरी बाहों से गायब हो जाओंगी। फिर तुम मेरे लिए सपना हो जाओगी। फिर आज के बिताए इस हसीन लम्हों को याद करते हुए मुझे बाकी दिन गज….. होंगे…’ बोलते हये वसीम शीतल के होठों को चूमने लगा और कस के उसे अपने में चिपकाने लगा, जैसे कोशिश कर रहा हो की उसे खुद में समा लें, कोशिश कर रहा हो की ये लम्हा यहीं रुक जाए।
शीतल की चूचियों वसीम के सीने में दब गई थीं। शीतल भी उसका भरपूर साथ दे रही थी। वो क्या कहती भला। उसे कुछ समझ में नहीं आया।
वसीम फिर बोलना स्टार्ट किया- “तुम लोगों ने मेरे लिए इतना किया, ये बहुत है। सबसे बड़ी बात है की तुम लोग मेरी फीलिंग को, मेरे दर्द को समझ पाये। नहीं तो अभी तक या तो मैं जेल में या फिर पागलखाने में होता। तुमने मेरा पूरा साथ दिया। खुद को पूरी तरह समर्पित कर दी मुझे। मैं खुश किश्मत हूँ की तुम जैसी हूर
का पा सका…
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शीतल वसीम के जिस्म को सहला रही थी। उसे लगा की उसकी साड़ी उसके और वसीम के बीच में आ रही है। शीतल अपनी नजर उठाई और इधर-उधर देखी। पूरा घना अंधेरा था और ऐसा कोई नहीं था जो उन्हें देख सकें। शीतल अपनी साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा दी और फिर से वसीम के जिस्म से चिपक गई। उसकी नंगी चूचियां वसीम के जिश्म से दब रही थी। वो वसीम के होंठ चूमने लगी।
शीतल बोली- “मुझे खुशी है की मेरी मेहनत कम आई। मैं आपको पसंद आई और खुद को पूरी तरह आपको साँप पाई। आप खुश हुए संतुष्ट हए यही बड़ी बात है मेरे लिए की मेरा जिश्म किसी के काम आ सका..”
वसीम बोला- “मैं तो ऊपर वाले का शुकर गुजार हैं की उन्होंने मुझे तुम्हें दिया। लेकिन एक अफसोस है की मैं विकास नहीं। अफसोस है की मेरे पास बस एक ही रात है। अफसोस है की बस इसी एक रात के सहारे मुझे सारी जिंदगी गुजारनी है। तुम तो दरिया का वो मीठा पानी हो जिसे इंसान जितना पिता जाए प्यास उतनी बढ़ती जाती है। लेकिन ये भी कम नहीं जो तुमने मुझे दिया..’ वसीम गहरी सांस लेता हुआ ये बात बोला था।
शीतल ने वसीम की ओर देखा। वसीम का चेहरा शांत और उदास हो गया था। शीतल उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में पकड़ी और होंठ को चूमते हुए बोली- “आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? आपको को और तरसने की जरूरत नहीं है। आपको उदास रहने की जरुरत नहीं है। आप जब चाहे मुझे पा सकते हैं। मैं आपकी है पूरी तरह। सिर्फ आज की रात के लिए नहीं बल्कि हर रात के लिए…”
वसीम ऐसे हँसा जैसे किसी बच्चे में उसे कोई पुराजा चुटकुला सुनकर हँसाने की कोशिश की हो। बोला- “नहीं शीतल, तुम्हारी रात विकास के लिए है, तुम उसकी हो। वो तो बहुत भला इसाज है की अपनी इतनी हसीन बीवी का मुझे सौंप दिया…”
शीतल बोली- “हाँ, लेकिन इसका मतलब ये नहीं की आपको तरसने की जरूरत है। आप जब चाहेंगे में आपके लिए हाजिर हैं। अगर आप तरसते ही रहे, उदास हो रहे तो फिर मेरे और विकास के इतना करने का क्या फायदा?”
वसीम- “नहीं, विकास ने मुझे एक रात के लिए तुम्हें दिया है। मैं उसके साथ गलत नहीं करना चाहता..”
शीतल- “वो मेरा कम है। मैं उसे समझा लेंगी। लेकिन आपको तड़पने तरसने की जरूरत नहीं है। मैं आपको अपने जिश्म पै पूरा अधिकार दे चुकी हूँ। आप जब चाहे मुझं पा सकते हैं…”
वसीम फिर हल्का सा मुस्करा दिया, और बोला- “अच्छा। मेरे लिए इतना सब करोगी…”
शीतल- “हाँ… करूँगी। आपकी उदासी दूर करने के लिए कुछ भी करूँगी। तभी यहाँ बीच छत पे ऐसे अधनंगी बैठी हूँ आपकी गोद में…”
वसीम- “इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। यहाँ तो अंधेरा है। यहाँ किसी के देखने के रिस्क नहीं है…”
शीतल- “अगर उजाला होता और आप बैठने बोलते तो भी बैठती। अब मैं आपको तड़पने नहीं दगी..”
वसीम- “अच्छा, जरा उस कोने में जाकर दिखाओ तो..”
शीतल एक पल का भी देर नहीं लगाई और वसीम की गोद से उठ गईं। वो अपने आँचल को ठीक करते हए अपने जिएम को टकी और छत्त के उस कोने में पहुँच गई जहाँ लाइट आ रही थी। शीतल इसलिए कान्फिडेंट थी की छत पे सीधी लाइट नहीं थी और कोई बाहर नहीं था। अगर कोई देखता भी तो उसे यही पता चलता की कोई छत में है, ये पता नहीं चलता की वो सिर्फ साड़ी में है या नंगी है।
शीतल बौड़ी के किनारे खड़े होकर बिंदास नीचे गोड पे और दूसरी तरफ देखने लगी। लाइट में उसका जिस्म साड़ी के अंदर से चमक रहा था। वा वसीम की तरफ वापस पलटी और फिर अपने आँचल का लहराती हुई इधर-उधर करने लगी। कभी वो आँचल को पूरा टक लेती तो कभी पूरा नीचे कर देती। फिर वो अपने आँचल को नीचे गिरा दी और नंगी चचियों को सहलाने दबाने लगी।
वसीम अपनी रंडी की रडी वाली हरकतें देख रहा था और मुश्कुरा रहा था। शीतल उसी तरह इशारे से वसीम को अपने पास बुलाई। जब तक वसीम उसके पास आया वो अपनी साड़ी की गौंठ खोल दी। साड़ी नीचे गिर पड़ी और शीतल छत पे नंगी खड़ी थी। क्तीम शीतल के नजदीक आया और उसका हाथ पकड़कर पीछे खींचने लगा। लेकिन शीतल वसीम से हाथ छुड़ाई और उसके सीने से लगती हुई उसके होंठ चूमने लगी। वसीम कुछ कहता या करता, शीतल वसीम के जिश्म से पूरी तरह चिपक गई थी और उसकी लगी को भी नीचे गिरा दी थी।
वसीम भी जज्बात में बहता हुआ शीतल को चूमने लगा, लेकिन तुरंत ही वो अलग हो गया। वसीम में शीतल को अंदर की तरफ खींचा और बोला- “हो गया, मैं समझ गया। अब चलो नीचे..”
शीतल ने अपनी साड़ी और लुंगी उठाई। वसीम अपनी लुंगी माँगने लगा की दो, चेपर अंदर करना है तो शीतल ने नहीं दी। वसीम ने बिना लाइट ओन किए दरवाजा खोला और चैयर अंदर रखकर दरवाजा बंद कर दिया। शीतल हँसने लगी की आप तो डरपोक हैं। वसीम नीचे चलने लगा और शीतल भी वसीम के साथ नंगी नीचे आ गई।
वसीम बेडरूम में आ गया और बैंड में लेट गया। शीतल भी आकर उसके बगल में लेट गई। वसीम सीधा लेंटा हुआ था और शीतल अपना एक पैर उसके पैर में रख दी, और उसकी तरफ करवट लेकर वसीम से सटकर सो गई और अपना हाथ उसकी छाती पे रख दी। शीतल की मुलायम चूचियां वसीम के जिश्म से चिपक रही थी। फिर शीतल हाथ नीचे लेजाकर वसीम के लण्ड को सहलाने लगी। लेकिन वसीम के लण्ड में जरा सी हरकत नहीं हुई। लण्ड अभी टाइट नहीं था तो पूरी तरह से ढीला भी नहीं था। शीतल उसमें चुदने की आस लगाये थी, लेकिन वसीम शीतल की प्यास एक ही रात में नहीं मिटाना चाहता था। वसीम शीतल को इस हालत में ला देना चाहता था जहाँ वो बीच बाजार में नंगी होने से भी मना ना करें और इसके लिए जरूरी था की उसकी प्यास बनी रहें। हालौकी शीतल इस हालत में आ चुकी थी लेकिन फिर भी अभी खेल पूरी तरह नहीं जीता था वसीम।
शीतल वसीम की छाती को सहलाते हुये बोली- “क्या हुआ, आप उदास बन्यों हैं? अब भी आप उदास ही रहेंगे क्या ?”
वसीम. “नहीं नहीं। उदास कहाँ हैं? जिसकी बाहों में तुम जैसी हसीना हो वो भला क्यों उदास रहेगा..”
शीतल- “मैं बोली ना… जब भी आपका मन करेंगा मैं आपके लिए हाजिर रहूंगी। अब आप इतना मत सोचिए। अगर अब भी आप इतने उदास रहेंगे तो फिर मेरे होने का क्या फायदा? मेरा ये जिश्म आपका है, सिर्फ आज की रात के लिए नहीं, हर रात के लिए जब भी आपका मन हो उस वक़्त के लिए.” कहकर शीतल वसीम से
और चिपक गई और उसकी छाती सहलाती हई गर्दन पे किस करने लगी।
वसीम व्यंग करने के अंदाज ने इस दिया।
शीतल को ये बात बहत नागवार लगी। वो उठकर बैठ गई और बोली- “वसीम में सच कह रही हैं। मैंने आपसे शादी की है। आपसे अपनी माँग में सिंदूर भरवाई हैं। आपने मुझे मंगलसूत्र पहनाया है। मैं कसम खाकर कहती हैं की में पूरी तरह से आपकी हैं। जैसे किसी का अपनी बीवी पे हक होता है उतना ही हक हैं आपका मेरे ऊपर, मेरे जिएम के ऊपर…”
वसीम फिर व्यंग से हँसता हुआ बोला- “और विकास क्या है? कल जब वो आ जाएगा तब?”
शीतल जवाब देने में एक पल भी नहीं लगाई. “विकास ने मुझे पमिशन दी है आपके साथ कुछ भी करने की।
और ये पमिशन एक रात की नहीं है। और फिर भी अगर विकास मना करता है तो ये मेरा टेंशन है। जो बादा में आपसे की हैं वो पक्का है। मेरा जिश्म आपको समर्पित है वसीम। आप उदास मत रहिए प्लीज..”
वसीम कुछ बोला नहीं और अपनी बाहों को फैला दिया। वो जानता था की शीतल सच कह रही है, पं तो पूरी तरह अब मेरी है. अब बस विकास शर्मा को पूरी तरह लाइन में लाना है। शीतल वसीम की बाहों में जाती हुई उसके जिस्म से चिपक कर लेट गई। उसे लगा की अब वसीम उसे चोदेगा अपने मसल लण्ड से। लेकिन वसीम बस उसकी बौह और पीठ को सहलाता रहा।
शीतल की चूत गीली हो रही थी। वो एक बार और चुदवाना चाहती थी वसीम से। वसीम की एक चुदाई में उसकी सारी प्यास मिटा दी थी। सेक्स में इतना मजा उसे आज तक नहीं आया था। वो एक और बार उस विशाल लण्ड को अपनी चूत की गहराइयों की मैंच कराना चाहती थी। सही बात है की पता नहीं कल क्या हो? आज की रात तो उसकी है।
शीतल वसीम की गर्दन में किस करने लगी और अपनी चचियों को वसीम के सीने पे रगड़ने लगी। वसीम शीतल की हालत देखकर खुद में गर्व कर रहा था।
शीतल बोलना चाह रही थी की- “क्सीम चोदिए मुझे, मेरी चूत आपके लण्ड के लिए तरस रही है… लेकिन बैचारी शर्म और संस्कार की बजह से नहीं बोल पाई और वसीम से चिपककर लेटी रही। दिन भर की भाग-दौड़ और ऐसी कमरतोड़ चदाईकी वजह से शीतल जल्द ही सो गई।
वसीम जागी हालत में तो खुद पे काबू पा लिया था। लेकिन उसे सोए एक घंटा भी नहीं हुआ था की वो शीतल की तरफ करवट लेकर घूम गया और शीतल को अपनी बाहों में भरता हुआ उसके जिस्म को चूमने लगा, सहलाने लगा।
शीतल भी नींद में ही थी, लेकिन वो भी वसीम का साथ देने लगी। वसीम शीतल के ऊपर आ गया और उसके होंठ को पागलों की तरह चूस रहा था और पूरी ताकत से दोनों चूचियों को मसल रहा था। शीतल को दर्द होने लगा और उसकी नींद खुल गई। वो वसीम को रोकने के लिए उसका हाथ पकड़ी, लेकिन वो भला क्या रोक पाती वसीम को। वो फिर से पूरी ताकत लगाकर वसीम को रोकना चाह रही थी।
लेकिन फिर उसे ख्याल आया की- “नहीं। मुझं वसीम को रोकना नहीं चाहिए। मुझे वसीम को संतुष्ट करना है, तो मुझे दर्द तो सहना ही होगा। आहह… वसीम, करिए जो करना चाहते हैं आप, मैं आपके लिए कुछ भी करेंगगी, हर दर्द महंगी। मसल डालिए मेरे जिस्म को, पूरी तरह हासिल कर लीजिए मुझे, मान लीजिए की ये जिश्म पूरी तरह आपको समर्पित है वसीम। वो अपने जिश्म को दीला छोड़ दी और दर्द सहने लगी। वो तो चाहती ही थी की वसीम उसके कोमल मुलायम जिस्म का राउंड डाले, मसल डालें। वसीम के दिए दर्द का सहकर ही तो वो वसीम को रिलैंक्स कर सकती थी।
वसीम शीतल के होंठ पे, गाल पे, गर्दन में दाँत से काटने लगा और निपलों, चूचियों को तो वो बेरहमी से मसल रहा था। निपल को दो उंगली में पकड़कर मसल रहा था वो। होठ को चूमते हए वो दाँत से काट रहा था।
शीतल अपने तकिया को मदही में भरकर भींच रही थी और दर्द सहकर अपने वसीम का साथ दे रही थी। जब दर्द सहने की सीमा से ज्यादा जा रहा था तो उसके मुँह से आह्ह… उहह… की आवाज जोर से निकल रही थी। शीतल का बदन कांप रहा था।
वसीम शीतल के जिस्म को चूमता हुआ श्रोड़ा नीचे आया और निपल को चूसने लगा और पेट, गाण्ड, जांघों को महलाता हुआ चूत में उंगली करने लगा। चूत गीली तो थी ही फिर भी एक झटके में दो उंगली चूत में घुसते ही शीतल चिहक उठी। उसका जिस्म अपने आप थोड़ा ऊपर आने लगा, लेकिन वो वसीम के पंजे में थी। उंगली सरसरती हुई चूत में घुस गई और वसीम चूचियों को पूरी तरह मुँह में भरकर चूसने लगा। अब उंगली आसानी से अंदर-बाहर हो रही थी। वसीम पूरी चूचियों और निपलों को भी दाँत से काट रहा था।
शीतल की गर्दन, छाती, चूचियों, निपलों सब जगह वसीम के दौत काटने का निशान बन रहा था। शीतल वसीम के दिए हर दर्द को सहती जा रही थी। उसे बहुत मजा आ रहा था वसीम का साथ देने में।
वसीम अपनी हवस में पागल हो रहा था तो शीतल अपने वसीम के दिए दर्द को सहकर। शीतल को मजा आ रहा था दर्द सहकर। वसीम शीतल को नोच रहा था, खा रहा था। उसका खुद पे कोई काबू नहीं था। हालौकी इसमें उसकी कोई गलती थी भी नहीं। जब उसके बाज़ में शीतल नंगी सोएगी तो भला वो क्या करता?
वसीम फिर से ऊपर होकर शीतल के होंठ चूसने लगा। उसने अपने लण्ड को शीतल की चूत पे सटाया और इससे पहले की शीतल पूरी तरह पैर भी फैला पाती, एक झटके में उसका लण्ड शीतल की चूत की दीवारों को फैलाता हुआ अंदर आ गया।
शीतल इतनी जल्दी इसके लिए तैयार नहीं थी। उसे लगा था की पहली बार की तरह वसीम रास्ता बनाएगा। लेकिन वो भूल गई की उस वक़्त वसीम जगा हुआ था और अभी वो नींद में अपनी हवस पूरी कर रहा था। लण्ड ने खुद रास्ता टूट लिया था और अंदर जा चुका था। कप्तीम धक्का लगाता गया और लण्ड पूी गहराई तक पहुँचकर चाट करने लगा। वसीम फिर से शीतल के जिश्म पे पूरा लेट गया था और बेरहमी से चोदता हुआ उसके जिश्म को नोचने खसोटने लगा। शीतल भी गरमा गई थी। उसने अपने पैरों को पा मार कर फैला लिया था तो लण्ड पूरा अंदर जा रहा था।
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