सैटरडे को डोरबेल बजी। दरवजा खोला तो देखा निरु थी। उसके चेहरे पर एक टेंशन थी। निरु ने आज साड़ी पहन रखी थी। वो हलकी नीली साड़ी जो उसके जीजाजी की फेवरेट थी। मैंने उसको बैठाया। उसके ब्लाउज के पीछे की खिड़की से उसकी नंगी गोरी पीठ दिख रही थी। उसके होंठों पर लाल लिपस्टिक लगी थी। काफी समय बाद उसको साड़ी में देख रहा था। बच्चा होने के बाद भी उसने अपना फिगर मेन्टेन कर रखा था और साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थी।
एक ही फ़र्क़ था छाती मे। माँ बनने के बाद वैसे ही उसके बोओब्स काफी बड़े हो गए थे, जिससे उसका वो पुराना ब्लाउज उसके बूब्स को पूरी तरह छुपा नहीं पा रहा था। ब्लाउज छाती से काफी फुल हुआ था। हम दोनों इन्तेजार करने लगे। कुछ समय बाद फिर डोरबेल बजी। निरु डर के मारे या फिर नर्वस होकर एकदम से हील गयी।
प्रशांत: “मैं देखता हूँ, शायद जीजाजी आये होंगे”
मैने दरवाजा खोला, सामने जीजाजी खड़े थे। उन्होंने आँखों के ईशारे से पूछा और मैंने सर हिलाकर उनको संकेत दिया की निरु अन्दर ही है। जीजा के चेहरे पर एक बड़ी कुटिल मुस्कान आ गयी। वो अन्दर आये और हमेशा की तरह जोर से “निरु” की आवाज लगायी। निरु जो अब तक चुपचाप टेंशन में बैठ थी वो एक झटके में अचानक सोफ़े से उठ गयी और उसके चेहरे पर एक चौड़ी स्माइल आ गयी। नीरु लगभग दौड़ते हुए जीजाजी की तरफ लपकि और जीजाजी ने भी अपनी बाहें फैला दि। निरु जीजाजी के पास आकर लगभग उनकी बाँहों में कूद गयी थी। वो दोनों गले लग कर आपस में चिपक गए थे।
निरु अपनी बाहें जीजाजी के गले में डाल लटक गयी थी। जीजाजी ने निरु को गले लगाए हुए चारो तरफ घुमा दिया। निरु के बड़े से बूब्स जीजाजी की छाती से चिपक कर दब चुके थे। मुझे बहुत बुरा लग रहा था। वो दोनों घुमना रुके तो अब निरु की पीठ मेरी तरफ थी। जीजाजी ने दोनों हाथों से निरु के पतले बदन को जकड़ रखा था। एक हाथ की उंगलिया जीजाजी ने निरु के पीठ पर ब्लाउज की खिड़की में डाल दी थी और निरु का नंगी पीठ को छु लिया। फिर जीजाजी ने मेरी तरफ देखा और आँखों से इशारा किया की कैसे वो निरु को छु रहे हैं और मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूँ। मेरे तन बदन में आग लग रही थी।
कुछ सेकण्ड्स के बाद निरु खुद जीजाजी से गले लग कर अलग हुयी। पर जीजाजी के दोनों हाथ अब निरु की पतली नंगी कमर को पकडे हुए थे।
नीरु: “जीजाजी, आई ऍम सोर्री, आप आ गए और मुझे माफ़ कर दिया, मेरे लिए यही काफी हैं”
जीजाजी: “कैसे नहीं आता? मैं अपनी निरु से ज्यादा दिन दूर थोड़े ही रह सकता हूँ। मेरी याद आई तुम्हे?”
नीरु: “बहुत याद आयी”
जीजाजी: “क्यों प्रशांत, अब तो तुम्हे कोई शक़ नहीं हैं न?”
जीजाजी कुटिल मुस्कान से मुझे पुछ रहे थे। निरु भी मेरी तरफ पलट कर देखने लगी। उसके चेहरे पर स्माइल अभी भी चिपकी हुयी थी और मोतियो से दांत झिलमिला रहे थे और लिपस्टिक से रंगे होंठ फ़ैल कर स्माइल से चौड़े थे।
प्रशांत: “नहीं, मुझे अब कोई भी शक़ नहीं हैं”
(जीजाजी और निरु अब थोड़ा सा हंस पड़े।)
जीजाजी: “प्रशांत का एक छोटा सा टेस्ट लेकर देखते हैं निरु, की इसको शक़ हैं या नहीं?”
नीरु: “कैसा टेस्ट?”
जीजाजी: “एक काम करो, तुम मेरे गालो पर एक किश करो। देखते हैं प्रशांत को कैसा लगता हैं”
(नीरु फिर हंस पड़ी और मेरा चेहरा देखने लगी। मैंने चेहरे पर नकली स्माइल लाने की कोशिश की। मन में गुस्सा था और अपने दांत पीस रहा था उस कमीने जीजाजी की चालाकी पर।)
जीजाजी: “चलो कम ओन निरु, किश करो”
(नीरु ने मेरी तरफ देख, जैसे परमिशन ले रही थी।)
जीजाजी: “क्यों प्रशांत, तुम्हे कोई दिक्कत तो नहीं हैं न?”
(मन मार कर मुझे उस वक़्त ना बोलना पड़ा।)
प्रशांत: “नहीं, मुझे कोई दिक्कत नहीं हैं”जीजाजी ने निरु का चेहरा अपनी तरफ घुमाया और निरु ने एक किश जीजाजी के गाल पर कर दिया। जीजाजी के गोरे गाल पर निरु के होंठों के निशान लिपस्टिक से बन गए।
जीजाजी: “निरु, देखो जरा, प्रशांत को बुरा तो नहीं लगा न?”
(दोनो मेरी तरफ देखने लगे और मैं अपना गुस्सा छीपाने लगा और स्माइल करता रहा।)
नीरु: “जीजाजी, आपके गाल पर लिपस्टिक लग गायी, मैं हटा देती हूँ”
जीजाजी: “रहने दो, यह प्यार की निशानी है। अभी मेरे दूसरे गाल पर भी ऐसी ही निशानी दो जल्दी से”
(नीरु ने फिर जीजाजी के दूसरे गाल पर भी ऐसे ही किश किया, मगर मैंने मुँह फेर लिया। मैं यह देख नहीं पाया। मगर जीजाजी की कमीनपन यहीं ख़त्म नहीं हुआ।)
जीजाजी: “मुझे तो निशानी मिल गयी, मगर अब मैं तुम्हे एक निशानी दूंगा। चलो अपना गाल आगे करो”
(नीरु फिर स्माइल करने लगी और मेरी तरफ देखते हुए उसका गाल जीजाजी की तरफ था। जीजाजी ने निरु के गोरे गाल को अपने होंठ में भर कर थोड़ा खींचते हुए जोर का किश कर लिया। मेरा दिल तेजी से धडकने लगा था। मैं बेबस था। जीजाजी ने निरु के दूसरे गाल पर भी किश कर दिया और निरु के गाल को गीला कर दिया। निरु ने जल्दी से अपने हाथ से अपने गाल पोंछ कर साफ़ किया।)
नीरु: “क्या जीजाजी, गाल गीले कर दिए। याद हैं जब मैं छोटी थी तब भी आप यही करते थे!”
जीजाजी: “हॉ, मगर तब हम पर कोई बेवजह शक़ नहीं करता था। अब शक़ करने वाला आ गया हैं”
(वो दोनों फिर मेरी तरफ देखने लगे और स्माइल करने लगे।)

जीजाजी: “मुझे लग रहा हैं की प्रशांत को मन ही मन शक़ हो रहा हैं और जलन हो रही हैं”
(वो दोनों मेरा चेहरा ध्यान से पढने लगे और हंस रहे थे। सच पूछो तो काफी समय बाद निरु को इतना खुश चहकता देखकर मुझे अच्छा लग रहा था। परन्तु निरु की यह ख़ुशी जिस इंसान से मिलने की वजह से थी वो सोच कर गुस्सा ज्यादा आ रहा था।)
नीरु: “नहीं, मुझे लगता हैं प्रशांत अब शक़ नहीं करेगा”
जीजाजी: “हाथ कंगन को अरसी क्या? अभी इसका एक छोटा सा टेस्ट ले लेते हैं”
(यह कहते हुए जीजाजी ने तुरन्त निरु को घुमा कर अपने आगे खड़ा किया और उसकी पीठ के पीछे आ गए। फिर अपने दोनों हाथ आगे लाकर निरु के नंगे पतले पेट से पकड़ लिया। निरु पीछे से जीजाजी से चिपकी हुयी थी। नीरु तो हंस रही थी पर जीजाजी की कुटील मुस्कान जारी थी। जीजाजी के लण्ड का हिस्सा अभी निरु की गांड से चिपका हुआ था। मगर मैंने कोशिश करते हुए अपने चेहरे पर शिकन नहीं आने दि। कुछ सेकण्ड्स निरु को इस तरह पकडे रहने के बाद निरु ने खुद अपने आप को जीजाजी से छुड़ाया और कहा की प्रशांत अब खुश है। पर जीजाजी कहा मानने वाले थे।)
जीजाजी : “लगे हाथों एक और टेस्ट ले लेते हैं”
अगले एपिसोड में पढ़िए कैसे जीजाजी ने अपनी अगली चाल को अन्जाम दिया।