Adultery ऋतू दीदी – Jija Sali Sex

निरु के मुँह से एक बार फिर रह रह कर आह आह निकलने लगी। मेरा लण्ड की नलि में जमा पानी अब शांत हो चुका था पर निरु की सिसकियों से मेरा लण्ड अभी भी कड़क था। मुझे निरु पर गुस्सा भी आ रहा था। वो मेरी उंगलियो से चुद कर सिसकिया भर मजे ले रही थी। मैने अपनी उंगलिया उसके दोनों छेद से बाहर निकली और निरु की गर्दन एक बार फिर झुक गयी और आहें बंद हुयी। मैंने फिर पोजीशन लेकर अपना लण्ड उसके दोनों छेद पर रगडा।

नीरु मुँह बंद किये हम्म्म हम्म्म कर रही थी। मैंने अपना लण्ड एक बार फिर निरु के चूत में उतार कर धक्के मारना शुरू किया और निरु फिर सर उठाये सिसकिया भरने लगी “जीजा जी…ओह नो” कहना शुरू कर दिया।थोड़ी देर चोदने के बाद ही मुझे लगा की निरु अब झड़ने वाली है। उसकी सिसकिया अब बहुत घरी और लगातार आ रही थी। बीच बीच में वो

“जीजाजी.. ओह…नो”

जरूर बोल रही थी।

नीरु का शरीर अब एकदम कड़ा हो चुका था। निरु के मुँह से जानी पहचानी

“हूउउउन… हुउउउउन… ऊऊह्ह्ह ह्हुउउ उउउ… ीीेहठ”

की आवाज आ रही थी। इसी तरह आवाजें निकालते हुए निरु अब झड़ चुकी थी और थोड़ा शांत हो गयी थी। नीरु को झड़ता देख मेरे लण्ड का पानी बाहर निकलने को उफ़नने लगा था। मन में इतना गुस्सा भर गया की निरु मुझे अपने जीजाजी समझ मुझसे पूरा मजा लेकर झड़ चुकी थी। एक तरह से वो मन से अपने जीजाजी से चुदवा चुकी थी। मै झड़ने के करीब था और निरु की चूत में नहीं झड़ सकता था।

मैंने गुस्से में वो किया जो आज तक नहीं किया था। मैंने हमेशा सुना था की गांड मार भी सकते हैं और इच्छा भी थी। शादी के इन एक साल में मैंने दो-तीन बार निरु को बोला था की हम गांड मारते हैं पर निरु ने मना कर दिया की दर्द होता है। मेरे सामने निरु की गांड का छेद था और अब झड़ने के लिए उसकी गांड से बेहतर जगह नहीं हो सकती थी। मैने अपना लण्ड निरु की चूत से निकाला और उसकी गांड के छेद को खोल उसमे डाल दिया।

निरु के मुँह से चिल्लाते हुए

“ओह्ह्ह्ह जिजाजीई” निकला।

मैने निरु की गांड में हलके हलके धक्के मारने शुरू किया और हर धक्के के साथ लण्ड गांड में जाते ही निरु

“ओह्ह्ह्ह जीजा” कहति

मुझे गांड मारने से निरु ने हमेशा मना किया पर आज वो मुझे जीजा समझ गांड भी मारने दे रही थी। मेरा गुस्सा अब सातवे आसमान पर था। मैंने एक जोर का झटका निरु की गांड में मारा और निरु की चख निकली

“आईईए”

मैं दूसरा झटका मारने के लिए लण्ड पीछे खीचा और उसके पहले ही निरु उच्छल कर आगे खिसक गयी और मेरा लण्ड निरु की गांड के बाहर आ गया। पीछे मुडते हुए निरु के मुँह से निकला

“जीजाजी नहीं, दर्द हो…”

और मुझे देखते ही उसने अपना एक हाथ अपने मुँह पर रख लिया। उसने अपना मुँह फिर आगे किया और चेहरा तकिये में घुसा कर सुबकना शुरू कर दिया।

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की यह रोना धोना किस कारण से था। जीजाजी से चुदने की शर्म की वजह से था या फिर राहत थी की उसने जीजाजी से नहीं चुदवाया बल्कि मुझसे चुदवाया था। मै घुटनों के बल चलते हुए उसके साइड में आया। उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए उसको दिलासा दिया। मुझे आखिर अच्छा लगा की देर से ही सही पर निरु ने चुदाई को रोकने को कहा था। मगर काफी देर भी कर दी थी।

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