9:00 बजे नीरव आया, खाना खाकर हम हास्पिटल गये। अंकल आंटी का हाथ पकड़कर स्टूल पर बैठे हुये थे। हमें देखकर उनके चेहरे पे थोड़ी सी मुश्कान आई। आंटी की हालत तो वैसी की वैसी थी। उनको देखकर ऐसा लग रहा था की न जाने कितने सालों से थककर वो आराम कर रही हैं।
केयूर (अंकल का बेटा) का भेजा हुवा आदमी बैठा हुवा था। हमारे जाते ही अंकल ने उससे कहा- “तुम तुम्हारी बहन को मिल आओ, एकाध घंटा हैं ये लोग, तब तक वापस आ जाना..” और फिर हमारी तरफ होते हुये बोले
ये आदमी आया तब से यहां से बाहर नहीं निकाला था, उसकी बहन यहीं पर रहती है पर मिलने नहीं गया। बहुत अच्छा इंसान है…”
अंकल की बात पूरी होते ही वो खड़ा हुवा और बाथरूम में जाकर फ्रेश होकर बाहर निकल गया।
नीरव- “डाक्टर क्या कह रहे हैं?” नीरव ने पूछा।
अंकल- “वही पुराने आलाप बजा रहे हैं की उमर की वजह से ठीक होने में समय लगेगा ही…” अंकल ने कहा।
नीरव- “अंकल दूसरे डाक्टरों को दिखाना चाहिए मेरे खयाल से…” नीरव ने कहा।
अंकल- “इस उमर में मैं कितना दौडू बेटा? परसों तक केयूर आ जाएगा, फिर वो जहां-जहां दिखाना है वहां-वहां दिखाएगा…” अंकल ने कहा और फिर पलंग पर से खड़े हुये जैसे की अचानक उन्हें कुछ याद आया हो। फिर कहा- “तुम दोनों बैठो बेटा, मैं दवाई लेकर आता हूँ..”
अंकल दरवाजा खोलकर बाहर निकल ही रहे थे की नीरव ने कहा- “लाइए अंकल मैं ला देता हूँ…”
अंकल ने तुरंत अपने पाकेट में से दवाई का कागज निकाला और नीरव को थमाकर फिर से पलंग पर बैठ गये।
कागज लेकर नीरव खड़ा हुवा और दरवाजे पर जाकर दरवाजा खोलकर बाहर निकल ही रहा था कि अंकल फिर से बोले- “बेटा सिविल हास्पिटल जाकर लाना, वो लोग 10% लेस देते हैं। बहुत ही महँगी दवाइयां हैं, कम से कम 1500 का फायदा होगा…”
अंकल की बात सुनकर मेरे चेहरे पर मुश्कुराहट आ गई और मैं मन ही मन बोली- “हरामी बूढ़ा…”
नीरव- “ओके अंकल…” इतना कहकर नीरव निकल गया।
नीरव के जाने के बाद अंकल पलंग पर से उठे और किसी फिल्मी हीरो की अदा से दोनों हाथों को चौड़ा करके खड़े हो गये। मैं उनकी इस अदा पर मर मिटी और उनको सामने देखकर जोरों से हँसने लगी और फिर खड़ी होकर उनसे लिपट गई।
थोड़ी देर तक हम दोनों लिपटकर ऐसे ही खड़े रहे फिर मैंने अंकल को कहा- “दरवाजे का लाक खुला है अंकल…”
अंकल मुझसे अलग होकर दरवाजे पर लाक लगाकर आए और मेरे पास जमीन पर बैठ गये और मेरा हाथ पकड़कर मुझे खींचा तो मैं भी बैठ गई।
अंकल- “सो जाओ बिटिया..” अंकल ने कहा तो मैं जमीन पर लेट गई।
अंकल ने झुक के मेरे पेट पर चुंबन लिया और फिर थोड़ा और झुक के नाभि पर भी चुंबन लिया और बोलेएक तुम और दूसरी तुम्हारी आंटी, नाभि के नीचे से साड़ी पहनती हो, बाकी ज्यादातर गुज्जू लड़कियां तो नाभि को साड़ी में ही छुपा देती हैं, जैसे नाभि नहीं चूत हो…”
अंकल की बातें हमेशा मजेदार ही होती हैं। अंकल ने मेरी साड़ी जांघ तक ऊपर उठाई और फिर उसे सहलाने लगे और फिर वो भी मेरे बाजू में लेट गये और मेरे होंठों पर होंठ रखकर किस करने लगे।
मैंने भी अंकल को बाहों में भींच लिया। अंकल मेरे उरोजों को दबाते हुये मेरे ब्लाउज के बटन खोलने लगे, तो मैंने उन्हें रोका- “अंकल, नीरव कभी भी आ सकता है…”
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