Adultery Chudasi (चुदासी ) – Part 2

हेलो निशु…” दीदी ने आकर चाय बनाई और हम चाय पी ही रहे थे कि नीरव का काल आया। उसकी आवाज में साफ घबराहट झलक रही थी।

मैं- “हाँ, बोलो तुम इतने घबराए हुये क्यों हो?” मैं भी चिंतित हो उठी थी।

नीरव- “आंटी की मौत हो गई, मैंने कल रात को फोन करके केयूर को कहा था की मैं मुंबई में ही हूँ, और आज जाने वाला भी था, तभी उसका फोन आया…” नीरव ने कहा।

मैं- “बहुत बुरा हुवा नीरव…” मेरी आवाज भारी हो गई थी।

नीरव- “उससे भी बुरा हुवा है निशु, आंटी की मौत के बारे में सुनकर अंकल को हार्ट अटैक आ गया और वो भी…” नीरव आगे बोल नहीं सका।

मैं- “क्या अंकल की भी मौत हो गई?” मैं रोने लगी।

नीरव- “हाँ निशु, जब से सुना है तब से मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है। लगता तो नहीं था की अंकल आंटी को इतना ज्यादा प्यार करते हैं…” नीरव की आवाज में भी भिनस थी।

मैं- “हाँ नीरव, मैं भी नहीं जानती थी, मैं तो उन्हें नाटकबाज समझती थी..” मैंने कहा।

नीरव- “क्यों नाटकबाज क्यों?”

नीरव की बात सुनकर मुझे समझ में आया की मैं क्या बोल बैठी हूँ। मैंने बात को टालते हुये कहा- “बस ऐसे ही, तुम जाने वाले होगे ना हास्पिटल?”

नीरव- “हाँ मुझे देरी हो रही है…”

नीरव के फोन काटने के बाद, मैं दिल हल्का हुवा तब तक रोई और फिर मुँह धोने के लिए किचन में गई।

तब दीदी ने पूछा- “किसकी मौत हो गई?”

मैं- “हमारे पड़ोसी थे, वाइफ हास्पिटल में थी जिसकी आज मौत हो गई और ये सुनकर उनके पति की भी मौत हो गई…” मैंने कहा।

दीदी- “क्या उमर थी?” दीदी ने पूछा।

मैं- “60 साल के ऊपर तो होगी ही…” मैंने कहा।

दीदी- “ओह्ह.. तो दोनों बूढ़े थे। बूढ़ा आदमी बहुत ही प्यार करता होगा अपनी वाइफ को, बहुत स्वीट होगा बूढ़ा आदमी..” दीदी ने कहा।

दीदी की बात सुनकर मैं मन ही मन बड़बड़ाई- “स्वीट हरामी था बूढा, नहीं नहीं प्यारा था बूढा, प्यारा बूढ़ा…”

अंकल और आंटी का चेहरा बार-बार मेरी आँखों के सामने आ जाता था, मुझे घड़ी-घड़ी अंकल की परेशान करने वाली आदतें याद आ रही थीं। पहले तो बहुत परेशान किया था अंकल ने मुझे, पर बाद में मैं उनसे जो भी गिले सिकने थे, वो मैं भूल गई थी।

दीदी- “निशा अंदर आओ, बाहर अकेली क्यों बैठी हो?” किचन से दीदी की आवाज आई।

मैं किचन में गई तो दीदी केले की सब्जी बना रही थी।

दीदी- “यहां बैठो, अकेली बाहर बैठोगी तो बोर हो जाओगी…” दीदी ने मुझे बैठने के लिए स्टूल देते हुये कहा।

मैं- “दीदी, पवन पढ़ाई कब करता है? घर में तो एक मिनट के लिए भी नहीं टिकता…”

स्कूल से आते ही पवन स्कूल बैग बाहर से ही घर के अंदर फेंककर भागा था, वो बात याद करते हुये मैं बोली।

दीदी- “वो अपने बाप के ऊपर गया है, घर में टिकता ही नहीं.”

मैं- “वो तो दीदी आप पर है, आप जीजू को इतना प्यार करो की वो कहीं जाने का नाम ही ना लें…” मुझे मोका मिल गया दीदी को फिर से समझाने का।

दीदी- “सच कहूँ ना निशा तो मुझे सेक्स में अब रूचि ही नहीं रही। ऐसा लगता है की जब भी करती हूँ, एक ही किश्म का कर रही हूँ…” दीदी ने कहा।

मैं- “तो फिर दीदी कोई अलग स्टाइल से करो, अलग मुद्रा में, अलग आसन के साथ..” मैंने कहा।

दीदी- “निशा, सेक्स की भूख भी पेट की भूख जैसी ही है, जायकेदार, मसालेदार खाना भूख मिटाता नहीं बढ़ता है, उसी तरह सेक्स की नई-नई स्टाइल हमारी हवस बढ़ाता है और मैं हवस की पुजारन नहीं बनना चाहती…”

दीदी की बात सुनकर मैं कुछ बोली नहीं, सही भी थी दीदी। चाहे कुछ भी कर लो सेक्स की भूख कभी नहीं मिटती।

जीजू- “वो खिड़की देख रही हो ना?” जीजू ने मुझसे ड्राइंग रूम में दिख रही खिड़की दिखाकर पूछा।

मैं- “हाँ, क्यों?” मैंने कहा।

जीजू- “वो बेडरूम में पड़ती है.”

मैं- “मुझे मालूम है, उसका क्या काम है?”

जीजू- “वो खिड़की मैं खुली रखेंगा, आज तू वहां से मेरा और तेरी दीदी का शो देखेगी…” जीजू धीरे से बोलते हुये इधर-उधर देख रहे थे की कहीं दीदी आ न जायें।

मैं- “मुझे नहीं देखना आपका शो…” मैंने कहा।

जीजू- “देखना जान, देखेगी तो ही मालूम पड़ेगा ना की तेरी दीदी के बारे में मैं जो बोल रहा हूँ वो सच है की नहीं?”

मैं कोई जवाब दें उसके पहले दीदी पवन को नहलाकर बाहर आई।

दीदी- “पवन को भी तेरी तरह रात को नहाए बिना नींद नहीं आती…”

दीदी पवन को नाइट ड्रेस पहनाते हुये बोली।

थोड़ी देर हम लोग ऐसे ही गप्पें लड़ाते रहे, तब तक पवन सो गया। दीदी ने मेरा और पवन का बिस्तर ड्राइंग रूम में लगा रखा था।

जीजू- “चलो अब सो जाते हैं…” कहते हुये जीजू उठे और बेडरूम में गये। दीदी भी उनके पीछे-पीछे बेडरूम में गईं।

मैं थोड़ी देर ऐसे ही लेटने के बाद उठी और खिड़की के पास गई। मैंने खिड़की को जरा सा धक्का दिया तो वो खुल गई। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था की कहीं दीदी मुझे देख न लें, पर अंदर नजर डालते ही मुझे कुछ। शांति हुई, दीदी का सिर खिड़की की तरफ था, इसलिए वो मुझे देखने वाली नहीं थी। दीदी ने गाउन पहन लिया था, और जीजू ने भी अपना नाइट ड्रेस पहन लिया था।

दीदी- “ट्यूब लाइट बंद कर दो ना..” दीदी ने जीजू से कहा।

जीजू- “कभी तो देखने दो ना जान तुम्हारा नंगा बदन…” मैं देख सकें उसके लिए शायद जीजू ट्यूब लाइट चालू रखवाना चाहते थे।

दीदी- “मुझे शर्म आती है…”

जीजू- “कब तक शर्माओगी यार?” कहते हुये जीजू ने दीदी के उरोजों को कपड़े के साथ सहलाना चालू कर दिया।

मैंने पवन की तरफ नजर की की, वो कहीं जाग तो नहीं गया है ना?

तभी अंदर से दीदी की आवाज आई- “धीरे दबाओ ना…”

मैंने फिर से अंदर नजर डाली।

जीजू- “मैंने कहां जोर से दबाया है…” जीजू ने कहा।

दीदी- “मेरा मासिक आने वाला है इसलिए तुम धीरे से दबाओगे तो भी दुखेगा…” दीदी ने कहा।

तब तक तो जीजू ने अपना हाथ गाउन के अंदर भी डालकर गाउन ऊपर भी कर दिया था। जीजू ने दीदी से कहा- “सिर ऊपर करो…”

दीदी ने अपना सिर ऊपर किया तो जीजू ने दीदी का गाउन निकाल दिया। दीदी अब सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी। एक औरत होने के नाते मुझे दीदी के बदन प्रति आकर्षण तो नहीं हो रहा था, पर वो मुझे अच्छी लग रही थी। जीजू ने दीदी की ब्रा को खींचकर ऊपर कर दिया और दाहिने स्तन को चूसने लगे। मुझे बाहर से ज्यादा साफ तो नहीं दिख रहा था, और देखने में खाश मजा भी नहीं आ रहा था। कुछ दिख रहा था और कुछ मैं अंदाजा लगा रही थी।

दीदी- “धीरे चूसो ना…” दीदी ने फिर से जीजू को टोका।

मैं इतनी देर से देख रही थी पर अभी तक दीदी ने अपनी तरफ से जीजू को उतेजित करने की कोई कोशिश नहीं की थी।

जीजू- “मैं कहां दांत गड़ाकर चूस रहा हूँ?” जीजू ने नाराज होकर कहा।
दीदी- “होंठों से दबाते हो ना तब भी दुखता है..”

दीदी की बात सुनकर मुझे हँसी आ गई। बेचारे जीजू सच कह रहे हैं की दीदी सच में सेक्स के वक़्त बोरिंग ही है। जीजू अब दीदी के उरोज चाट रहे थे और साथ में दीदी की पैंटी निकालकर चूत को बाहर से उंगली से सहला रहे थे। मुझे साफ दिखाई नहीं दे रहा था। फिर भी मैं गरम होने लगी थी।

दीदी- “तुमने निशा को बताया है ना की हम कभी-कभी ही सेक्स करते हैं…” दीदी ने जीजू को पूछा।

जीजू- “क्यों, क्या हुवा?” जीजू ने दीदी की जांघ को सहलाते हुये पूछा।

दीदी- “निशा सुबह से मुझसे सेक्स के बारे में बातें कर रही है, इसलिए पूछ रही हूँ…”

जीजू- “हाँ मैंने उससे कहा था…” जीजू ने अपना नाइट पैंट नीचे किया और दीदी की दो टांगों के बीच आकर उसके होंठ चूसते हुये बोले।

दीदी- “मुझे कभी-कभी अपने आप पर बहुत गुस्सा आता है। मैं तुम्हें पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर पा रही अया..” दीदी के मुँह से मैंने पहली बार सिसकारी सुनी, शायद उनकी चूत में जीजू ने लण्ड डाल दिया था।

दीदी- “तुम चाहो तो निशा से सेक्स कर सकते हो…”

दीदी की बात सुनकर मेरा दिल उछल पड़ा।

जीजू- “तुम्हें बुरा नहीं लगेगा?” जीजू ने धक्के लगाने चालू कर दिए थे।

दीदी- “तुम किसी लड़की के सामने देखते भी हो ना तो भी मुझे बुरा लगता है। पर कई बार मुझे ऐसा लगता है। की तुम आहह… मुझसे ज्यादा निशा से प्यार करते हो, और निशा भी तुम्हें पसंद करती है। तुम दोनों के शौक, आदतें भी एक जैसी ही हैं आह्ह…”दीदी की बात सुनकर मुझे निराशा हुई। वो अपनी मर्जी से जीजू को मुझे चोदने की छूट नहीं दे रही थी, वो । मजबूरी में कह रही थी। जीजू कुछ बोले बगैर दीदी को जोरों से चोदने लगे। मेरा दिमाग दीदी की बातों के बारे में सोच रहा था, जिससे मेरे बदन की तपिस गायब हो चुकी थी।

दीदी के मुँह से धीरे-धीरे सिसकारी न निकल रही होती तो वो एक लाश ही लगती, न उन्होंने अपने पैरों को। ज्यादा चौड़ा किया था, ना उन्होंने जीजू का टी-शर्ट निकलवाया था, एक बार भी उन्होंने जीजू को सामने से किस नहीं किया था। वो दोनों हाथों को फैलाए चुदवा रही थी। थोड़ी ही देर में दोनों झड़ गये और मैं बिस्तर पे जाकर लेट गई। सुबह मैं और दीदी किचन में काम कर रहे थे। मैं सब्जी बना रही थी और दीदी आंटा गूंध रही थी।

तभी जीजू की आवाज आई- “मीना अंदर आना, मेरे शर्ट का बटन टूटा हुवा है…”

दीदी- “निशा, जाओ तुम लगा आओ…” दीदी ने मेरी तरफ देखकर कहा।

मैं- “आप जाओ…” मैंने कंधे उचकाते हुये कहा।

दीदी- “मेरे हाथ अच्छे नहीं है, अनिल को देरी हो रही होगी, तुम जाओ…” दीदी ने उनके हाथ को थोड़ा ऊपर करके कहा।

मैं- “सूई और धागा?”

दीदी- “अनिल, सूई और धागे का डिब्बा निकालकर रखना, निशा जा रही है…”

मैं बेडरूम में गई, जीजू ने मेरे हाथों में शर्ट और डिब्बा थमा दिया, और पैंट पहनने लगे। मैं सूई में धागा पिरोकर बटन लगाने लगी। बार-बार मेरा ध्यान जीजू के चौड़े सीने पे जा रहा था, मन करता था की मैं वहां सिर रखकर सो जाऊँ।

जीजू- “कल रात देखा था?” जीजू पैंट पहनकर मेरे बाजू में बैठते हुये फुसफुसाए।

मैं- “क्यों आपने मुझे नहीं देखा था?” तबत क बटन लग गया था तो मैंने शर्ट जीजू को दिया।

जीजू- “मैंने खिड़की की तरफ देखा ही नहीं था, डर रहा था की कहीं तेरी दीदी को मालूम पड़ गया तो हंगामा करेगी। लेकिन अब कोई टेन्शन नहीं। अब तो वो खुद चाहती है की मैं तुझे चोदूं…” दबी आवाज में बात करतेकरते जीजू शर्ट पहनकर कह रहे थे।

मैं- “दीदी मन से नहीं, मजबूरी से कह रही हैं..” मैंने कहा।

जीजू- “जैसे भी कहा, पर हाँ तो कहा ना… और तुमने भी तो उस दिन कहा था…” जीजू शायद ये समझ रहे थे। की मेरी भी इच्छा नहीं है।

जीजू- “जैसे भी कहा, पर हाँ तो कहा ना… और तुमने भी तो उस दिन कहा था…” जीजू शायद ये समझ रहे थे। की मेरी भी इच्छा नहीं है।

मैं- “मैं कहां ना बोल रही हूँ? पर दीदी का दिल दुखाकर करना नहीं चाहती…”

जीजू- “चाहे कोई भी औरत हो या मर्द सामने से अपने जीवनसाथी को दूसरों से सेक्स करने की अनुमति दे दे, इतना तो हमारा देश अभी मार्डन नहीं हुवा है। तुम्हारी दीदी आज तो क्या कभी भी अपनी मर्जी से मुझे तुम्हें चोदने के लिये हाँ नहीं बोलेगी..” जीजू ने कहा।

मैं- “पर जीजू वो मेरी दीदी है, उसे दर्द होगा तो मुझे बुरा तो लगेगा ना..” मैंने कहा।

जीजू- “और अपने जीजू के दर्द की कोई कीमत नहीं?”

मैं- “अच्छा, आप कहते हैं तो ठीक है पर अंतिम बार..” मेरे मन में तो जीजू से चुदने की बात से ही लड्डू फूटने लगे थे।

जीजू, अंतिम बार… साथ में मेरी भी एक शर्त है…”

मैं- कहिए…”

जीजू- “पहले मंजूर करो तो ही कहूंगा…”

मैं- “ओके बाबा मंजूर है बताओ?” मैं भी तो जल्दी से जीजू की बाहों में जाना चाहती थी।

जीजू- “मैं तुम्हें मीना के सामने चोदूंगा…” जीजू ने मेरे सामने बाम्ब फोड़ा।

मैं- “ये कभी नहीं हो सकता जीजू..” मैंने कहा।

जीजू- “तूने मेरी शर्त मंजूर की हुई है.”

मैं- “मंजूर की, इसका मतलब ये नहीं की आप कुछ भी बोलें और मैं करूं.” मेरा सारा मूड खराब हो चुका था।

जीजू- “निशा, मुझे भी कोई शौक नहीं है तुझे मीना के सामने चोदने में। मैं सोचता हूँ की तुम्हारी बेकरारी देखकर मीना में वो बेकरारी आ जाय, तुझसे वो थोड़ा भी सीख जाय ना तो मुझे और कहीं मुँह मारना न पड़े…” बोलते हुये जीजू भावुक हो गये।

मैं- “जीजू, दीदी नहीं मानेगी…”

जीजू- “वो तुम मुझ पर छोड़ दो, और रात की तैयारी चालू कर दो…” इतना कहकर जीजू मुझे उनके नजदीक खींचकर मेरे होंठ पे चुंबन अंकित करके मुझे दुविधा में डालकर बाहर निकल गये।

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