Adultery Chudasi (चुदासी ) – Part 2

रामू उसका मुरझाया लण्ड पकड़कर जमीन पर बैठा था। उसने अभी तक अपनी शर्त नहीं बताई थी। वो शायद ज्यादा से ज्यादा समय देना चाहता था।

मैं- “जल्दी से शर्त बताओ रामू..” मैंने कहा।

रामू- “पाँच मिनट अपन जो बोले वो करेगी ना तो मेरा लण्ड खड़ा हो जाएगा, मेमसाब..” रामू ने कहा।

मैं- “तू मुझसे कुछ उल्टा-सुल्टा तो नहीं कराएगा ना? मैंने तेरी शर्त मान ली है उसका मतलब ये मत निकालना की तुम मुझसे कुछ भी करवा सकते हो…” मैंने सोचते हुये कहा।।

रामू- “उल्टा सुल्टा? हेहेहे… मेमसाब वो तो हम कर ही रहे हैं…” रामू ने हँसते हुये कहा।

जो सुनना मुझे अच्छा नहीं लगा और मेरा मुँह उतर गया।

रामू- “क्या मेमसाब आप भी बुरा मान गई? हम आज तक जो कर चुके हैं वही कराएगा अपुन…” रामू समझ गया की मुझे बुरा लगा है तो उसने हँसना बंद करके कहा।

मैं भी बात को खींचकर समय बिगाड़ना नहीं चाहती थी- “बताओ क्या करना पड़ेगा मुझे?” मैंने कहा।

रामू- “आपको अपुन का लण्ड फिर से मुँह में लेना पड़ेगा मेमसाब..” रामू ने कहा।

मैं- “पर ये तो…” मुझे अल्फ़ाज नहीं मिले मेरी बात करने के लिए।

रामू- “जल्दी करो, इस वक़्त आपके मुँह में पूरा आ जाएगा, बाकी तो आप आधा भी नहीं ले सकती…”

मैं रामू के पास बैठ गई और उसके लण्ड को पकड़कर सहलाने लगी।

रामू- “सो जाओ मेमसाब जमीन पर ही…” रामू ने कहा।

मैं जमीन पर सो गई क्योंकि अब पाँच मिनट के लिए रामू जो कहे वोही करना था। मैंने सोचा था की वो शर्त में पैसे मांगेगा या दो बार चोदने दे ना ऐसा कुछ कहेगा। मैं तो यहां मेरी ही बनाई हुई जाल में फस गई थी। ये बात अलग थी की मुझे अब ये जाल सोने की लगने लगी थी।

रामू मेरे उरोजों के पास बैठ गया और कपड़ों के ऊपर से ही मेरे उरोजों को सहलाते हुये बोला- “गाउन को ऊपर करिए मेमसाब..”

मैंने गाउन को थोड़ा ऊपर करके उसके सामने परेशान आँखों से देखा।

रामू- “यहां तक कीजिए.” रामू ने मेरे पेट पर हाथ रखकर कहा।

मैंने गाउन खींचा और गाण्ड उठाकर नाभि तक कर दिया। रामू सरकते हुये लेटने लगा, लेटते हुये उसने उसके मुँह के सामने मेरी चूत आए उसका ध्यान रखा, जिससे हुवा ये की उसका लण्ड मेरे चेहरे के सामने आ गया।

रामू- “मेमसाब, जब आप मेरा लण्ड चूसेंगी तब अपुन आपकी चूत चाटेगा… और ये क्या आपकी चूत में से तो नादियां बह रही हैं..” रामू ने मेरी चूत के दोनों होंठों को अलग-अलग करते हुये कहा।

रामू 69 की बात कर रहा था, पर उसने ये बात घुमा-फिराकर कहा था। उसके लण्ड से इस वक़्त पेशाब की बदबू गायब थी, जिसकी जगह वीर्य की गंध आ रही थी। रामू का लण्ड देखकर मुझे वो कहावत याद आ गई- जिंदा । हाथी लाख का और मरा हुवा हाथी सवा लाख का…” यहां मामला उल्टा था- “खड़ा लण्ड सवा लाख का और मुरझाया लण्ड नहीं किसी काम का…”

तभी मेरे बदन में सनसनाहट सी फैल गई, सारे शरीर में आग लग गई। मैंने नीचे देखा तो रामू ने अपनी जबान मेरी चूत में डाल दी थी। मैं उसके बालों को धीरे से सहलाने लगी।

रामू- “मेमसाब, आप भी मेरा…..”

रामू को मैंने इतना ही बोलने दिया क्योंकि उसने बोलने के लिए चूत से जबान बाहर निकाल दी थी, जो अब मेरे लिए असह्य था तो मैंने उसके सिर को पीछे से धक्का लगाकर मेरी जांघों के बीच ले लिया था।

तभी मेरे बदन में सनसनाहट सी फैल गई, सारे शरीर में आग लग गई। मैंने नीचे देखा तो रामू ने अपनी जबान मेरी चूत में डाल दी थी। मैं उसके बालों को धीरे से सहलाने लगी।

रामू- “मेमसाब, आप भी मेरा…..”

रामू को मैंने इतना ही बोलने दिया क्योंकि उसने बोलने के लिए चूत से जबान बाहर निकाल दी थी, जो अब मेरे लिए असह्य था तो मैंने उसके सिर को पीछे से धक्का लगाकर मेरी जांघों के बीच ले लिया था।

मैंने रामू के लण्ड को पकड़ा और सहलाते हुये मैंने उस पर फूक मारी, ये सोचकर की मेरी फूक से रामू का लण्ड खड़ा हो जाय। फिर मैंने मेरे मुँह में ढेर सारा थूक लिया और रामू का लण्ड मुँह में लिया और टाफी की तरह उसे इस तरफ से उस तरफ और उस तरफ से इस तरफ चुभलाया, जिससे रामू का लण्ड अच्छी तरह से साफ हो गया। फिर मैं थूक निगल गई और उसके लण्ड के छेद को जीभ से चाटने लगी। तभी मेरे मुँह से चीत्कार निकलते-निकलते रह गई, लण्ड मुँह में था नहीं तो निकल ही जाती। क्योंकि रामू ने दो उंगलियां मेरी गाण्ड में घुसेड़ दी थीं।।

रामू ने पीछे से उंगलियां इतनी जोर से घुसेड़ी थी की मैं जितनी हो सके उतनी आगे हो गई थी, जिससे रामू की जबान मेरी चूत के अंदर दूसरे मर्दो के लण्ड जितनी अंदर चली गई थी। रामू का लण्ड अभी तक बड़ा नहीं हुवा था, पर सख्त हो गया था जिससे मुझे चूसने में मजा आने लगा था, और मैं अपना मुँह आगे-पीछे करके चूस रही थी। रामू मेरी गाण्ड में उंगली घुसेड़ता था तब मेरी चूत भी आगे होकर उसकी जबान को ज्यादा अंदर ले लेती थी। शुरू में तो रामू धीरे-धीरे उंगली अंदर-बाहर करता था, पर बाद में उसने स्पीड बढ़ा दी, जिससे पीछे की तरफ दर्द हो रहा था पर आगे की तरफ का मजा भी बढ़ गया।

मेरी नशों में खून लावा की तरह बहने लगा था। मुझे अब रामू के लण्ड को पकड़ने की जरूरत नहीं थी, तो मैंने उसके सिर को पकड़ लिया।

रामू मुझे तीनों तरफ से चोद रहा था। हर रोज जहां उसका लण्ड होता था वहां आज उसकी जबान थी, और जहां उसकी जबान होती थी वहां उसका लण्ड था। मैंने उससे कहा था ना उल्टा-सुल्टा मत करवाना तो उसने मुझसे उल्टा-सुल्टा नहीं करवाया और वो खुद उल्टा कर रहा था। समय के साथ-साथ मेरी मस्ती और रामू का लण्ड । बढ़ते ही जा रहे थे। मुझे अब मंजिल दिखने लगी थी। मैं मेरी टांगों को पीछे की तरफ खींचने लगी थी। रामू का लण्ड अब चूत में लेना हो तो ले सकें, उतना बड़ा हो गया था। मैं उसे मस्ती से चूस रही थी, मेरी टाफी पिघलने की जगह बड़ी होकर कुल्फी बन चुकी थी।मैंने सुना था की वीर्य निकलने के बाद फिर से लण्ड खड़ा करके उससे चुदवाओ तो मजा दोगुना आता है।

मैं- “अयाया… ऊऊओहो… हुउऊउउ..” करते हुये मेरा पानी छूट गया। मैं असीम आनंद में पहुँच गई, मैंने सख्ती से रामू का चहरा तब तक मेरी चूत पे दबाकर रखा जब तक मेरी सीत्कार थमी नहीं। मैंने रामू का लण्ड मुँह से । निकाला तो रामू उल्टा ही नीचे की तरफ होता हुवा मेरे चेहरे के सामने उसका मुँह लाया और मुझे किस करने लगा। मैंने मेरी जीभ बाहर निकाली जिसे रामू ने अपनी जबान से सहलाई।

फिर बोला- “मेमसाब आज से अपुन आपका गुलाम, आज से अपुन वोही करेगा जो आप कहेंगी…”

थोड़ी देर तक मैं और रामू ऐसे ही जमीन पर लेटे रहे, और फिर मैं खड़ी होकर बेड पे आ गई। मेरे पीछे रामू भी ऊपर मेरी दो टांगों के बीच में आ गया। मैंने भी उसके आते ही मेरी टांगों को चौड़ी कर दी थी। रामू मेरी गर्दन को चूमते चाटते हुये उसके लण्ड का टोपा मेरी चूत के द्वार पे घिसने लगा।

मैं- “धीरे से डालना रामू..” मैंने रामू की पीठ पर चिकोटी लेते हुये कहा।

रामू- “जो हुकुम मेमसाब का…” कहते हुये रामू ने उसके लण्ड को निशाने पर लगाकर धीरे से धक्का दिया।

मुझे दर्द तो हुवा पर हर रोज से कम, और दर्द से ऐसा मालूम हो रहा था की उसके लण्ड का % हिस्सा अंदर गया होगा, और दो धक्के लगाए रामू ने तो उसका पूरा लण्ड अंदर घुस गया। उसके बाद रामू कुछ पल के लिए रुक गया। रामू ने मेरे होंठों को उसके होंठों की गिरफ्त में लेकर धीरे-धीरे हिलाना चालू कर दिया। थोड़ी देर पहले मैं झड़ी थी, इसलिए अभी तक मैं थोड़ी सुस्त थी, पर लण्ड चूत में पाकर फिर से मेरे तन-बदन में मस्ती छाने लगी थी। मैं रामू की पीठ सहलाने लगी और थोड़ी ही देर में मैं कराहने भी लगी।रामू- “मेमसाब कभी ऊपर बैठ के चुदवाया है?” रामू अब पूरी स्पीड से चुदाई कर रहा था।

मैं- “नहीं…” मैंने भारी आवाज में कहा।

राम्- “चुदवाओगी?” रामू ने पूछा।

मैं- “हाँ… मैं तो हमेशा चुदवाने के नये-नये तरीकों के लिए तैयार ही होती हैं.”

रामू- “तो फिर आ जाओ मेरे ऊपर…” रामू ने मेरे ऊपर से हटते हुये कहा।

रामू के हटते ही मैं बेड पर साइड में हो गई, वो बेड के बीच में लेट गया। मैं घुटनों के बल खड़ी होकर रामू की जांघों पर बैठ गई। मैंने रामू का लण्ड सहलाया, मेरी नरम-नरम उंगलियों के छूते ही रामू के लण्ड ने झटका मारा। मैं थक के चूर हो गई थी। मैंने मेरा चेहरा रामू के सीने में दबाकर रखा था, मेरे बालों को रामू सहला रहा था। थोड़ी देर बाद रामू ने मेरी पीठ थपथपाई तो मैंने नजरें उठाई और उसकी तरफ देखा।

राम्- “मेमसाब, आपका तो दो बार हुवा, अपुन का तो एक ही बार हुवा है..” रामू ने कहा।

मैं- “मैं बहुत थक चुकी हूँ, अब नहीं कर सकती..” मैंने कहा।

रामू- “टेन्शन मत लो मेमसाब, अब आपको नहीं करना, मैं करूंगा। आप उठ जाइए मेरे ऊपर से..”

मैं ऐसे बैठी-बैठी ही बेड पर झुक गई, और उसके बाजू में लेट गई।

रामू- “एक मिनट, आता हूँ मेमसाब…” कहते हुये रामू खड़ा होकर अटैच बाथरूम के अंदर जाकर पेशाब करके बाहर आया और फिर से मेरे बाजू में लेट गया, उसके शरीर में से पेशाब की बास फिर से आने लगी थी।

मैं- “पेशाब तो धोकर आना था, रामू..” मैंने कहा।

रामू- “क्या मेमसाब आप भी… आप अपुन पर पेशाब कर लो, अपुन कुछ नहीं बोलेगा…”

रामू इतना कहकर मेरी तरफ हो गया और मेरे उरोजों को चूसने लगा। थोड़ी देर पहले ही झड़ने के करण मुझे कोई रोमांच नहीं हो रहा था, जो रामू जल्द ही समझ गया। रामू मेरे सारे बदन को सहलाते हुये मेरे हर एक अंग को चूमने लगा, उसकी उंगलियां किसी सांप की भांति मेरे शरीर पे फेरने लगा।

थोड़ी ही देर में मैं फिर से गरम हो गई। मेरे गरम होते ही रामू मेरी टांगों के पास आ गया। वो अच्छी तरह जानता था की लोहा गरम हो तब हथौड़ा मार देना चाहिए। वो क्या संसार के सारे मर्द ये बात अच्छी तरह जानते हैं, एक नीरव को छोड़कर। उसने मेरी दोनों टाँगें एक साथ ऊपर उठाई और कंधे पर ले ली।

रामू ने लण्ड मेरी चूत पर रखकर कहा- “एक साथ ही पूरा डाल रहा हूँ मेमसाब…” और मैं कुछ समझें और बोलू उसके पहले उसने लण्ड को मेरी चूत में एक साथ ही पूरा घुसेड़ दिया।

मुझे कोई ज्यादा तकलीफ नहीं हुई इस बार। शायद उसकी वजह ये भी हो सकती है कि मैं पिछले एक घंटे में तीसरी बार उसका लण्ड मेरी चूत में ले रही थी। रामू ने धीरे-धीरे हिलाना चालू कर दिया। मैंने उसके हाथों को मजबूती से पकड़ लिया और उसके हर धक्के के साथ मैं जब ऊपर सरकती, तब उसके हाथों को खींचकर नीचे होने लगी। थोड़ी देर ऐसे ही चोदने के बाद अचानक रामू रुक गया।

मैं- “क्या हुवा?” मैंने उसकी आँखों में आँखें डालकर पूछा।

रामू- “मेमसाब, साहब आपको चोदते हुये ऐसे रुक जाते हैं तो, क्या कहती हो?” रामू ने पूछा।

मैं- “मैं करो, करो ऐसा कहती हूँ…” मैं समझ गई थी की वो मेरे मुँह से गंदे शब्द सुनना चाहता है।

मेरी बात सुनकर रामू ने फिर से हिलाना चालू कर दिया। कुछ पल के लिए वो निराश भी हुवा, पर मुझे उसकी कोई टेन्शन नहीं थी, मेरे हुश्न के आगे वो निराशा कहां टिकने वाली थी। हर धक्के के बाद उसका लण्ड और । सख़्त होता जा रहा था, जिससे मेरी चूत की पकड़ उसके लण्ड पे ज्यादा होती जा रही थी। जिससे हम दोनों की मस्ती बढ़ती ही जा रही थी। लेकिन मस्ती के साथ-साथ मुझे थकान भी महसूस हो रही थी, क्योंकि मैंने पहली बार इतनी देर तक सेक्स किया था।

थोड़ी देर ऐसे चोदने के बाद रामू ने मेरी टांगों को फैलाने को कहा।

मेरे टाँगें फैलाते ही वो हर रोज की तरह मेरी टांगों के बीच आकर मुझे चोदने लगा। वो मेरे बदन के ऊपरी हिस्से को सहलाते हुये चाटने लगा। मैं उसके सीने को सहलाते हुये बीच-बीच में उसकी गर्दन को चूमने लगी। रूम हम दोनों की सिसकारियों से गूंजने लगा। आज मैंने एसी फुल कर रखा था, नहीं तो रामू का पशीना आज भी मेरे बदन को भिगो रहा होता।

दस मिनट की चुदाई के बाद मुझे मेरी मंजिल नजदीक दिखने लगी थी। पर रामू अभी और कितनी देर करेगा वो समझ में नहीं आ रहा था। और आज के दिन तो झड़ने के बाद अंदर लण्ड तो क्या उंगली भी एक पल के लिए मैं सहन नहीं कर पाऊँगी, वो मैं जानती थी। मैंने मेरी टांगों से रामू की कमर को पकड़ लिया और गाण्ड उचका-उचकाकर सामने वार करने लगी। मैंने रामू का मुँह खींचा और उसके होंठों को चूसने लगी। मैं अब किसी भी तरह रामू को भी मेरे साथ मंजिल तक पहुँचाना चाहती थी।

मैंने रामू के नीचे के होंठ को काटते हुये उससे पूछा- “मुझे तुम इस वक़्त दिल में क्या कह रहे हो?”Adultery

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