शंकर- “टिफिन को मारो गोली मेडम, आज मोका है तो मस्ती कर लो…” शंकर ने बड़ी निर्लज्जता से कहा।
मैं- “क्या बकते हो? निकलो बाहर…” मैंने गुस्से से कहा।
शंकर- “क्यों नखरा कर रही हो मेडम, हर बार मैं इशारे करता था, तब आप रिस्पोन्स तो देती थी..” कहते हुये शंकर मेरे नजदीक आया।
शंकर के नजदीक आते ही मैंने उसके गाल पे एक थप्पड़ दे मारा, मैं मानती थी की थप्पड़ पड़ते ही शंकर डर जाएगा और फिर चला जाएगा क्योंकि वो देखने में कुछ ऐसा ही था, उसकी क़द, बाडी 15 साल के लड़कों जितनी ही थी। पर मेरी धारणा गलत साबित हुई।
शंकर गुस्से में आ गया और दांत पीसते हुये गालियां देते हुये धमकी देने लगा- “साली मादरचोद रंडी, आज तो तुझे चोदकर ही जाऊँगा, प्यार से तो प्यार से, नहीं तो बलात्कार से…” और मुझ पर झपटने के लिए नजदीक आया।
मैंने उसे धक्का दे दिया, तो वो जमीन पर गिर गया और मैंने जाकर दरवाजा खोला त0 सामने रामू खड़ा था। उसे देखकर मुझे आश्चर्य हुवा क्योंकि उसका आने का वक़्त अभी नहीं हुवा था और इतनी आवाज भी नहीं हुई थी की वो आवाज सुनकर आया हो।
रामू- “क्या हुवा मेडम?” रामू समझ तो गया था की क्या हुवा है फिर भी उसने पूछा।
मैंने कोई जवाब नहीं दिया और सिर्फ शंकर की तरफ उंगली करके कहा- “मारो उसको रामू..”
शंकर ने जब से रामू को देखा, तब से वो डर के मारे थरथर कांप रहा था। डरता नहीं तो क्या करता बेचारा, पहलवान खली के सामने रामपाल यादव हो ऐसा लग रहा था रामू के सामने शंकर। रामू ने शंकर को गिरेबान से पकड़कर उठाया और एक थप्पड़ मारा तो शंकर के मुँह से खून निकलने लगा।
शंकर- “माफ करिये मेडम, मुझे जाने दो, इसको कहो छोड़ दे और मेडम साहेब को भी मत कहना नहीं तो मेरे बाल-बच्चे भूखे मर जाएंगे…” शंकर मेरी तरफ हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा।
रामू- “चल भड़वे, नीचे तेरी गाण्ड मारता हूँ.” कहते हुये रामू ने पहले तो शंकर को जमीन पे पटका और फिर खींचता हुवा बाहर ले जाने लगा।
शंकर अभी भी मुझसे माफी माँग रहा था, क्योंकि वो जानता था की रामू मेरे कहने पर ही छोड़ने वाला है।
मैंने रामू को उसे छोड़ने को कहा- “रामू उसे जाने दो…”
रामू- “मेमसाब, ऐसे आदमी को तो छोड़ना नहीं चाहिए, मुझे ले जाने दो, साले को इतना मारूंगा ना की अपनी बीवी को भी नहीं चोदेगा…” रामू ने शंकर को मारते हुये कहा।
क्या कहूँ मैं रामू को? वो आज क्यों शंकर को गलत बता रहा है, पहली बार तो उसने भी यही किया था जो आज शंकर करने जा रहा था, क्या फर्क है उसमें और शंकर में? फर्क है तो सिर्फ इतना ही की वो शंकर से ज्यादा ताकतवर और तकदीर वाला है। वो अपने आपको इस वक़्त फिल्मी हीरो समझ रहा है। क्यों ना समझे मैं जो उसके हाथ में थी। शंकर ने आज जो हिम्मत की, वो रामू बहुत पहले कर चुका है।
मैं- “छोड़ दो उसे रामू…” मैंने कहा।
दूसरी बार कहने पर रामू ने शंकर को छोड़ दिया तो शंकर जल्दी-जल्दी से जाने लगा।
मैं- “एक मिनट शंकर, ये टिफिन ले जाओ और याद रखना आज के बाद किसी भी शरीफ घर की औरत को आँख उठाकर भी देखना नहीं, और मैं तुझे तेरी फेमिली के लिए जाने दे रही हैं, जाओ अब…”
मेरे इतने कहते ही शंकर टिफिन लेकर 3-3 सीढ़ियां कूदते हुये भागा।
शंकर के जाते ही मैंने रामू से पूछा- “क्यों आज जल्दी आ गये, अभी तो मैंने खाना भी नहीं किया..”
रामू- “मेमसाब मुझे बाहर जाना है, तो कहने आया था…” रामू ने कहा।
मैं- “क्यों, कहां जाना है?” मैंने पूछा। रामू की पहले से ही आदत थी, वो हर महीने 2-3 दिन आता नहीं था पर वो कभी बताने भी नहीं आता था, पर अब बात अलग है।
रामू- “महेश साहब के साथ जा रहा हूँ, काम क्या है वो तो वहां जाकर पता चलेगा, बड़े लोग हैं यहां से बताकर थोड़े ले जाएंगे मेमसाब…” रामू की आवाज में लाचारी थी।
मैं कुछ बोली नहीं और सिर्फ सिर हिलाकर उसे जाने को कहा। वो जाने के लिए पलटा और मैं घर के अंदर जाकर दरवाजा बंद करने गई।
तभी रामू की आवाज आई- “मेमसाब…”
मैं फिर से बाहर निकली और परेशान चेहरे से उसके सामने देखने लगी।
मैं कुछ बोली नहीं और सिर्फ सिर हिलाकर उसे जाने को कहा। वो जाने के लिए पलटा और मैं घर के अंदर जाकर दरवाजा बंद करने गई।
तभी रामू की आवाज आई- “मेमसाब…”
मैं फिर से बाहर निकली और परेशान चेहरे से उसके सामने देखने लगी।
रामू- “वो मैं जाता नहीं मेमसाब, पर आप महेश साहेब को जानती हैं ना, वो यहां से निकल दें तो?” इतना कहकर रामू ने चारों तरफ देखा और धीरे से बोला- “आधे घंटे बाद जाना था, इसलिए जल्दी आया था पर वो हरामी ने आधे घंटे की माँ चोद डाली, वो नहीं होता तो बैंड बजा के जाता…”
मैंने इस बार भी कुछ नहीं बोला सिर्फ उसके सामने सिर हिलाया।
तब रामू उसने कहा- “मैं चलता हूँ मेमसाब…”
मैंने फिर से सिर हिलाया। वो फिर से पलटा और सीढ़ियां उतरने लगा, और पाचवीं सीढ़ी पर पहुँचा होगा तभी मेरे मुँह से निकल गया- “रामू एक मिनट..”
मेरी बात सुनकर रामू ने पलटकर पूछा- “क्या मेमसाब?”
मैं- “इधर आ ना…” मैं धीरे से बोली।
मेरी बात सुनकर रामू ने ऐसी छलाँग लगाई की सीधा मेरे पास आ गया- “बोलिए मेमसाब…” झूमते हुये उसने पूछा।
मैं- “मैं बहुत थकी हुई हूँ, किसी को कहना आकर काम कर जाय…”
मेरी बात सुनकर रामू का उत्साह ठंडा पड़ गया और उसने कुछ बोले बगैर सिर्फ सिर हिलाया। तभी लिफ्ट आई।
और उसमें से महेश परमार की आवाज आई- “कितनी देर रामू?”
आवाज सुनते ही मैं घर के अंदर घुस गई। थोड़ी देर बाद मैं टीवी देख रही थी, तभी बाहर से आवाज आईभाभी, भाभी…”
मैंने दरवाजा खोला और देखा तो सामने कान्ता खड़ी थी। कान्ता को देखते ही मुझे उसकी और रामू की चुदाई के दृश्य किसी मूवी की तरह मेरे सामने दिखने लगे, और मैं उसमें खो गई और थोड़ी देर कुछ न बोली।
तब कान्ता ने मुझसे कहा- “मुझे रामू ने कहा है यहां काम करने को…”
मैंने साइड में होकर उसे अंदर आने के लिए जगह दी और बाद में दरवाजा बंद करके फिर से टीवी देखने लगी। कान्ता किचन में जाने लगी तो मैंने उससे कहा- “मैंने अभी खाना नहीं खाया, पहले झाडू पोंछा कर दो…”
मेरी बात सुनकर कान्ता ने हाथ में झाडू लिया और कचरा साफ करने लगी।मेरा जी अब नहीं लग रहा था टीवी देखने में तो मैं कान्ता को ध्यान से देखने लगी। कान्ता का चेहरा मुरझाया हुवा था और साथ में उसका शरीर भी पहले से हल्का लग रहा था। मैं पूछना चाहती थी की क्यों ऐसी हो गई हो? फिर सोचा जाने दो मुझे क्या है? मैं अपना मन टीवी में लगाने की कोशिश कर रही थी पर बार-बार मेरा ध्यान कान्ता पर चला जाता था।
कान्ता सोफे के नीचे से कचरा निकाल रही थी तब मैं उससे पूछ बैठी- “कान्ता तू कोई टेन्शन में है क्या?”
मेरी बात सुनकर कान्ता झाड़ छोड़कर रोने लगी। वो ऐसे रोने लगी की मानो वो राह देख रही थी की कोई उससे उसकी तकलीफ के बारे में पूछे और पूछते ही वो रोना शुरू कर दे।
थोड़ी देर मैंने उसे रोने दिया, सोचा की उसका मन हल्का हो जाय। फिर पूछा- “क्या हुवा है कान्ता? कुछ बताओगी तो मालूम पड़ेगा ना की ऐसे ही रोती रहेगी?”
फिर भी कान्ता रोती रही, थोड़ी देर बाद वो चुप हो गई।
तब मैंने उसके सामने हाथ से इशारा करके फिर से पूछा- “क्या बात है?”
कान्ता- “रामू ने मुझे…….” इतना ही कह पाई कान्ता और फिर से रोने लगी।
मुझे अंदाजा तो था ही कि रामू का ही लफड़ा होगा, और कान्ता के मुँह से तो पहला शब्द ही रामू निकला तो मेरा इंटरेस्ट बढ़ गया। मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरकर सांत्वना देते हुये पूछा- “क्या किया रामू ने?”
कान्ता- “रामू और मैं मेरे बच्चों को लेकर यहां से एक महीने पहले चले जाने वाले थे। पर उस वक़्त हमारे पास पैसे कम थे तो हमने थोड़े दिन बाद जाने को सोचा और अब छे-सात दिन से रामू ना बोल रहा है..” इतना कहकर कान्ता फिर से रोने लगी।
मैं- “पर तू क्यों रामू के साथ जाना चाहती है?” मैं बहुत कुछ जानती थी, पर ये नहीं जानती थी की वो दोनों भाग जाने वाले थे।
कान्ता- “आप नहीं जानती क्या मेरे और रामू के बारे में?” कान्ता अब थोड़ी नार्मल हो गई थी।
मैं- “सुना तो है तुम दोनों के बारे में…” मैंने कहा।
कान्ता- “रामू और मेरे पति के बीच लड़ाई हुई उसके बाद तो सबको मालूम पड़ गया है…” कान्ता ने कहा।
मैं- “वो तो ठीक है पर ऐसे गोल-गोल बात मत कर, पूरी बात बता…” मैंने कान्ता से कहा।
कान्ता- “भाभीजी, मेरा पति पहले से ही एक नंबर का जुआरी और शराबी है। मेरा लड़का सोलह साल का और लड़की तेरह साल की हुई, पर आज तक उसने घर में एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी। कई-कई बार तो कई महीनों घर में भी नहीं आता था। छे महीने से मेरा और रामू का लफड़ा हो गया, दो महीने पहले उसे (मेरे पति को) मालूम पड़ गया तब से कह रहा है- ‘मुझे और मेरे बेटे को मार देगा और बेटी को बेच देगा’ और एक बार तो। रंडी के बच्चे ने अपनी ही बेटी की इज्ज़त लूटने की कोशिश की। वो तो अच्छा हुवा की ऐन मोके पे मैं पहुँच
गई…” कान्ता बात करते-करते फिर से रोने लगी।
फिर थोड़ी देर बाद कान्ता शांत होकर फिर से कहने लगी- “मैंने एकाध महीना पहले रामू को बताया। बहुत सोचने के बाद हम लोगों ने तय किया की बच्चों को लेकर कहीं चले जाते हैं, और छे-सात दिन पहले उसने ना बोल दिया की मैं यहां से कहीं नहीं जाऊँगा। मालूम नहीं क्या हुवा है उसे? वो यहां से क्यों नहीं जाना चाहता, वो मेरी समझ में नहीं आ रहा है। आप समझाओ ना उसे, मेरी हालत के बारे में। मुझे मेरी नहीं मेरे बच्चों की फिकर हो रही है…”
कान्ता की बात पूरी होते ही मैंने उसे खाने को पूछा तो एकाध बार उसने ना बोला फिर वो बैठ गई। खाना खाते ये उसे लगा की खाना कम था तो वो बोली- “मैंने तो आपके हिस्से का खाना ले लिया…”
तुम तो आज पहली बार मेरे हिस्से का ले रही हो, जबकी मैं तो कई दिनों से… मैं आगे सोच नहीं पाई और बोली- “मैं रामू से बात करूंगी, पर तुम उसे मत बताना की तुमने मुझसे ये सब कहा है…” Adultery