पप्पू ने तुरंत उसके मामा को बुलाया। उन्होंने आकर नीरव के सामने सवालिया नजरों से देखा।
नीरव- “मनसुख भाई हम तो मजाक कर रहे थे, इसमें इतना सीरियस लेना जरूरी नहीं, पप्पू को पतंग उड़ाने दो…” नीरव ने समझाते हुये कहा।
मनसुख- “नीरव भाई, मैंने बोला है तो पप्पू यहां से तो पतंग नहीं चढ़ाएगा…”
मनसुख भाई अभी भी अपनी बात पे कायम थे, वो अपनी बात छोड़ना नहीं चाहते थे।
नीरव- “क्या मनसुख भाई, आप भी एक काम करो कि पप्पू को यहां भेज दो वो हमारे साथ पतंग चढ़ाएगा…” नीरव ने कहा।
मनसुख- “मान गये नीरव साहब आपको, दरियादिल हैं आप तो, जा पप्पू बेटा नीरव अंकल के साथ पतंग उड़ा…” मनसुख भाई की बात सुनकर पप्पू तुरंत वहां दिखना बंद हो गया, और दो मिनट में हमारी छत पर प्रगट हो। गया।
पप्पू ने आते ही नीरव से हाथ मिलाया और कहा- “बैंक्स अंकल, आपने मुझे पतंग उड़ाने बुलाया, मैं तो बोर हो गया था…”
नीरव- “बैंक्स मुझे नहीं आंटी को बोल, उसके कहने पे तुझे बुलाया..” नीरव ने कहा तो पप्पू ने मेरी तरफ देखकर स्माइल की और फिर नीरव से बातें करने लगा।
पप्पू- “अंकल, आपको भी मेरी तरह पतंग उड़ाने का काफी शौक लगता है..” पप्पू ने पूछा।
नीरव- “हाँ, शौक तो है, पर तेरे जैसा अच्छा आता नहीं…” नीरव ने कहा।
पप्पू- “आपको सीखना है?” पप्पू ने पूछा।
नीरव- “क्यों नहीं, लो डोरी तुम ले लो…” नीरव ने पप्पू के हाथ में डोरी देते हुये कहा।
फिर तो वो दोनों एक दूसरे में इतना मसगूल हो गये की मैं उनके साथ हूँ, ये भी वो भूल गये। मैं पीछे खड़ी उनकी बातें सुन रही थी पर दोनों में से कोई मेरी तरफ देख भी नहीं रहा था। एक-दो बार मैंने उनकी बात में इंटरेस्ट दिखाया तो पप्पू ने बात को टाल दिया। उसका ये रवैया मेरी समझ में नहीं आ रहा था। मैं पप्पू को ध्यान से देखने लगी की वो ऐसा क्यों कर रहा है?
बहुत देखने और सोचने के बाद मुझे लगा की शायद वो मुझसे शर्मा रहा है, वैसे उसकी उमर के ज्यादातर लड़के लड़कियां एक दूसरे से शर्माते ही हैं। मैं भी उसकी उम्र की थी तब कितना शर्माती थी, मैं कभी किसी लड़के के सामने आँख उठाकर भी नहीं देखती थी। मुझे पप्पू बहुत अच्छा लग रहा था, उससे प्यार करने को मन करता । था। पर इतना शर्मीला लड़का सामने से कुछ करने को तो क्या बोलने वाला भी नहीं था, और वो जिस तरह मुझे नजर-अंदाज कर रहा था उससे मुझे जलन हो रही थी।
बहुत देखने और सोचने के बाद मुझे लगा की शायद वो मुझसे शर्मा रहा है, वैसे उसकी उमर के ज्यादातर लड़के लड़कियां एक दूसरे से शर्माते ही हैं। मैं भी उसकी उम्र की थी तब कितना शर्माती थी, मैं कभी किसी लड़के के सामने आँख उठाकर भी नहीं देखती थी। मुझे पप्पू बहुत अच्छा लग रहा था, उससे प्यार करने को मन करता । था। पर इतना शर्मीला लड़का सामने से कुछ करने को तो क्या बोलने वाला भी नहीं था, और वो जिस तरह मुझे नजर-अंदाज कर रहा था उससे मुझे जलन हो रही थी।
अब पप्पू की जगह मैं बोर हो चुकी थी। मैं उसके साथ बातें करना चाहती थी इसलिए मैंने उसे यहां बुलाया था, पर वो तो यहां आकर मेरी तरफ नजर भी नहीं कर रहा था। 6:00 बज गये थे, अंधेरा हो चुका था, मैंने नीरव को कहा- “चलो अब नीचे चलते हैं, नीरव..” मैंने नीरव से कहा।
पप्पू- “थोड़ी देर रुकते हैं ना, आंटी…” पप्पू ने पहली बार मुझसे बात की।
मैं- “नहीं मुझे जाना है..” मैंने कहा।
नीरव- “रुक ना निशु, पप्पू कह रहा है तो थोड़ी देर रुकते हैं..” दोनों में शायद दोस्ती अच्छी हो गई थी।
मैं- “मुझे नहीं ठहरना, तुम दोनों रुक जाओ, मैं जाती हूँ..” कहते हुये मैंने फिरकी जमीन पर फेंकी, और छत से बाहर निकल गई। घर पे जाकर मैंने पोहा बनाया, एकाध घंटे बाद नीरव आया और साथ में पप्पू भी था।
नीरव- “पप्पू भी हमारे साथ खाना खाएगा निशु..” नीरव ने कहा।
पप्पू इतना पसंद था मुझे, फिर भी वो यहां आया ये मुझे अच्छा नहीं लगा। क्योंकि वो जिस तरह से मुझे । नजर-अंदाज कर रहा था वो मेरे लिए सहन करना मुश्किल था। खाना खाने के बाद वो बातें करने बैठा रहा, मैं तो थोड़ी ही देर में अंदर जाकर सो गई। न जाने वो कब गया और कितनी देर तक रहा।।
सुबह गोपाल चाचा से दूध लेने के बाद मैं हर रोज की तरह फिर से सो गई।
और तब उठी जब मुझे नीरव ने जगाया- “निशु 9:00 बज गये यार…”
नीरव की बात सुनकर मैं जल्दी से उठी और फटाफट चाय-नाश्ता बनाया। तब तक नीरव नहाकर तैयार होकर आ गया, फिर हम दोनों ने साथ मिलकर चाय-नाश्ता किया, तब तक तो 9:30 बज गये। नीरव के निकलते ही मैं जल्दी से रसोई की तैयारी करने लगी, नहाने का पोग्राम दोपहर को रखा क्योंकी इतना समय नहीं था मेरे पास। मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की पर शंकर आया तब तक पूरी रसोई तैयार नहीं हुई थी।
मैं- “शंकर 5 मिनट ठहरो, सिर्फ रोटियां बाकी हैं..” इतना कहकर मैं जल्दी-जल्दी में दरवाजा खुल्ला छोड़कर अंदर चली गई। रोटियां बनाकर मैंने टिफिन भरा और बाहर गई।
देखा तो शंकर मेनडोर बंद करके खड़ा था, मैं उसका इरादा तो पहले से जानती थी फिर भी मैंने अंजान होकर पूछा- “दरवाजा क्यों बंद किया? ले ये टिफिन तैयार है…”
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