शाम को मैं मार्केट से सब्जी लेकर आ रही थी, तब मैंने कान्ता को गेट से निकलते देखा, वो रो रही थी। मैंने उसे क्या हवा वो पूछने का मन बनाया, तब तक वो निकल गई। लिफ्ट के पास रामू बैठा बीड़ी पी रहा था, मुझे देखकर वो खड़ा हो गया और हँसने लगा। मैं भी मुश्कुरा पड़ी।
रामू ने लिफ्ट की जाली खोली, मैं अंदर दाखिल हुई तो वो भी अंदर आ गया और जाली बंद करके थर्ड फ्लोर का बटन दबाकर पूछा- “अभी समय है मेमसाब?”
मैं कुछ बोली नहीं पर उसकी बात सुनकर मेरी चूत गीली हो गई तो फिर से मुश्कुराई।
मेरी मुश्कुराहट को देखकर रामू समझ गया की मेरी इच्छा है और वो खुश होकर कुछ अलग किश्म का गीत गुनगुनाने लगा- “हो तुझे प्यार तो आ जाना पान की दुकान पे..”
तभी नीचे से आवाज आई- “रामू, रामू कहां गये?” हमारे बिल्डिंग के प्रमुख महेश परमार की आवाज थी। महेश परमार की उमर 30 साल की ही थी, पर छोटी उमर में भी वो बहुत आगे बढ़ चुके थे, बिल्डिंग में सबसे ज्यादा आमिर वोही हैं।
रामू धीरे से बोला- “मैं दो मिनट में आता हूँ मेमसाब…”
तीसरा फ्लोर आते ही मैं लिफ्ट से निकली, रामू वापस नीचे गया, मैं दरवाजे का ताला खोल रही थी पर मेरा ध्यान नीचे था।
महेश- “मेरे साथ चलो, कल उत्तरायण है तो पतंग और डोरी लेने जाना है..” महेश की आवाज आई।
रामू- “कुछ काम था निशा मेमसाब को…” रामू ने कहा।
महेश- “चल ना वहां बहुत भीड़ होगी, गाड़ी बहुत दूर पार्क करनी पड़ती है, तू जाकर ले आना, मैं गाड़ी में बैठा रहूँगा…” महेश ने ऊंची आवाज में कहा।
बाद में रामू की कोई आवाज नहीं आई तो मैं समझ गई की वो महेश के साथ चला गया है।
रात को नीरव भी देर से साथ में पतंग और डोरी लेकर आया। मुझे और नीरव को पतंग उड़ाने का कुछ ज्यादा ही शौक है। हर साल हम सुबह उठते ही चाय नाश्ता करके सबसे पहले छत पर चढ़ जाते हैं, और दोपहर को फटाफट खाना खाकर फिर से ऊपर चले जाते हैं, और शाम को सबसे लास्ट में नीचे उतरते हैं। मैं और नीरव एक मिनट भी बरबाद नहीं करते उस दिन, और पूरा दिन पतंग उड़ाते रहते हैं।
नीरव ने आकर खाना खाया और फिर वो पतंग पे कन्नी बांधने बैठ गया। मैं काम निपटाकर उसे मदद करने लगी। रात के बारह बजे सारी पतंगों को कन्नी बांधकर हम बेड पर लेट गये।
लेटते ही मैं नीरव को बाहों में लेकर किस करने लगी तो उसने अपने हाथ से मेरे मुँह को दूर करके मेरी बाहों से निकलकर दूसरी तरफ मुँह करके बोला- “सो जाओ निशु, बहुत देर हो गई है और कल जल्दी भी उठना है…” और दो ही मिनट में नीरव सो गया।पर मुझे बहुत देर बाद नींद आई।
नीरव ने आकर खाना खाया और फिर वो पतंग पे कन्नी बांधने बैठ गया। मैं काम निपटाकर उसे मदद करने लगी। रात के बारह बजे सारी पतंगों को कन्नी बांधकर हम बेड पर लेट गये।
लेटते ही मैं नीरव को बाहों में लेकर किस करने लगी तो उसने अपने हाथ से मेरे मुँह को दूर करके मेरी बाहों से निकलकर दूसरी तरफ मुँह करके बोला- “सो जाओ निशु, बहुत देर हो गई है और कल जल्दी भी उठना है…” और दो ही मिनट में नीरव सो गया।पर मुझे बहुत देर बाद नींद आई।
सुबह होते ही बेल बजी- “डिंग-डोंग, डिंग-डोंग…”
आजकल मैंने रात को नाइटी पहनना छोड़ दिया है, मैं गाउन पहनकर ही सो जाती हूँ। मैं बाहर निकली और बर्तन लेकर दूध लेने के लिए दरवाजा खोला। उस दिन जो मुझसे गलती हुई थी और उसके बाद चाचा ने जो शरारत की थी, और मैं गुस्सा होकर बर्तन छोड़कर रूम में चली गई थी। उस दिन के बाद से चाचा मेरी तरफआँख उठाकर भी नहीं देखते थे, वो चुपचाप दूध देकर निकल जाते थे। क्योंकि 25 साल से चाचा मेरे ससुराल में दूध दे रहे हैं, वो जानते हैं की उस दिन मैंने जानबूझ के नहीं किया था। वो कुछ गलत करने जाएंगे और मैं कहीं बता दूंगी तो उनको खराब लगेगा।
चाचा से दूध लेकर मैंने दरवाजा बंद किया और मैं सोच में पड़ गई की कल जीजू घर पहुँचे उसके बाद दीदी का फोन नहीं आया, क्या हुवा होगा? मैंने दीदी को मोबाइल लगाया।
पहली ही रिंग में दीदी ने उठाया- “हाँ, निशा पतंग उड़ाने नहीं गई अभी..” उनकी आवाज में आज अलग ही मिठास थी।
मैं- “9:00 तो बजने दो, क्या जल्दी है?” मैंने कहा।
दीदी- “याद है निशा, शादी से पहले उत्तरायण के अगले दिन तुम सोती ही नहीं थी, और मैं हमेशा तुम्हारी फिरकी पकड़ती थी…” दीदी ने कहा।
मैं- “हाँ, दीदी… कल जीजू के आने के बाद पूरा दिन घर पे ही रहे थे क्या?” मैंने मुद्दे पर आते हुये पूछा।
दीदी- “हाँ निशा, कही नहीं गये, और पापा और मेरी सास-ससुर भी यहीं थे, और पापा कह रहे थे की अब्दुल चाचा को बात करेंगे तो लेनदार कुछ नहीं कर सकेंगे…” और सारे दिन में जो-जो हुवा था दीदी ने सब बताया।
मैं- “और रात को कुछ किया था? जीजू घर वापस आए उस खुशी में?” मुझे जो जानना था वो भी मैंने पूछ ही लिया।
दीदी- “रात को तो मेरा सर फटा जा रहा था, सारा दिन कितना रोई थी मैं, 9:00 बजे तो सो गई मैं..” दीदी ने कहा।
मैं- “ओके दीदी मैं रखती हूँ, बाइ…” मैंने कहा।
दीदी- “बाइ..” कहकर दीदी ने काल काट दी।
मैं सोफे पर लेटकर मेरे और दीदी के बारे में सोचने लगी। कितना फर्क है मुझमें और दीदी में? उतना ही फर्क है। जीजू और नीरव में। जितना मुझे सेक्स में इंटरेस्ट है उतना ही जीजू को है, और दीदी और नीरव भी एक जैसे । हैं। क्या जोड़ियां बन गई हैं हमारी उलट-सुलट, देखने से दोनों (मैं और जीजू) सुखी, पर अंदर की पीड़ा अंदर जाने ऐसी हालत थी हमारी। मैं दीदी की जगह जीजू के साथ होती, और दीदी नीरव के साथ होती तो हम चारों ज्यादा सुखी होते।
थोड़ी देर बाद मैंने नहाकर नीरव को जगाया। वो नहा रहा था तब तक मैंने चाय-नाश्ता तैयार किया और फिर खाने बैठे।
नाश्ता करते हुये नीरव ने अंकल, आंटी को याद किया- “हर साल अंकल और आंटी होते हैं, आज नहीं होंगे…”
मैं- “हाँ, केयूर आया की नहीं?” मैंने पूछा।
नीरव- “आ गया, आंटी अभी भी ठीक नहीं हैं, मुंबई ले जाने की बात कर रहे हैं…” नीरव ने खड़े होते हुये कहा।
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