मैं- “नहीं, तुम जाओ अभी प्लीज़्ज़…” मैं कुछ चिढ़ते हुये बोल उठी। मैं रामू के पीछे गई और उसके बाहर निकलते ही घर का मेनडोर बंद करके सोफे पर बैठ गई।
मैंने जीजू का मोबाइल लगाया, रिंग की जगह उनके मोबाइल में हेलो ट्यून बजने लगी- “जिंदगी एक सफर है। सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना, मौत आनी है आएगी एक दिन, जान जानी है जाएगी एक दिन, ऐसी बातों से क्या घबराना जिंदगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना…”
पूरी हेलो ट्यून खतम हो गई, पर जीजू ने फोन नहीं उठाया।
मैंने रिडायल किया और बोलने लगी- “प्लीज़… जीजू फोन उठाओ प्लीज़… जीजू प्लीज़… फोन उठाओ जीजू… फोन उठाओ, जीजू फोन उठाओ, जीजू आपको अपनी साली की कसम फोन उठाओ…”
और जैसे जीजू ने मेरी बात सुन ली हो, वैसे उन्होंने फोन उठाया और उनकी आवाज सुनाई दी- “हेलो..”
मैं- “हाय जीजू कैसे हो?” मैंने मन ही मन सोच लिया की पहले ऐसे ही बात करूंगी फिर धीरे से बात निकालूंगी।
जीजू- “अच्छा हूँ और दसवीं मंजिल पर बैठा हूँ, कूदने के लिए हिम्मत जुटा रहा हूँ..” जीजू ने सीधा ऐसी बात कही की मेरी बोलती बंद हो गई।
मैंने धीरे-धीरे एक-एक शब्द को अलग-अलग करके बोला- “क्यों जीजू, क्या हुवा?”
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जीजू- “तेरी दीदी ने नहीं बताया क्या? तुझे फोन करने को कहा और क्यों मर रहा हूँ वो नहीं कहा क्या?” जीजू ने फिर से मेरी बोलती बंद कर दी।
मैं- “जीजू ऐसी बातों के लिए कोई मरता है? आप दीदी का और पवन का तो खयाल कीजिए…” मैंने कहा।
जीजू- “मैं नहीं रहूँगा तो लेनदार पैसे लेने नहीं आएंगे, और जो है उससे पवन और तेरी दीदी का गुजारा आराम से हो जाएगा…” जीजू ने कहा। पर उसकी आवाज में जो दर्द था उससे मेरी आँखें नम हो गईं।
मैं- “कैसी बातें कर रहे हैं आप? दीदी को सिर्फ हर महीने घर चलाने के लिए पैसे चाहिए, उतनी ही जरूरत है। क्या आपकी? हो सकता है पवन को भी आपके बगैर सब कुछ मिल जाय, पर इतनी ही अहमियत है क्या आपकी? दीदी को पति का प्यार और पवन को पापा का प्यार कौन देगा बताओ जीजू?” बोलते हुये मैं भावुक होकर रोने लगी।
जीजू- “काश.. निशा, तुम जो कह रही हो ऐसा होता, पर सच ये है की तुम्हारी दीदी को मेरी जरूरत हर महीने ही पड़ती है। मेरी आदत है बरसों से मैं घर खर्च के लिए हर महीने एक साथ तेरी दीदी को पैसे देता हूँ और पिछले दो साल से तेरी दीदी में भी एक आदत आ गई है कि वो भी महीने में एक ही बार मेरा लण्ड लेती है, वो भी मासिक के दो दिन बाद, पूरी सुरक्षा के दिनों में। और रही बात पवन की तो वो अभी छोटा है, थोड़े दिन में भूल जाएगा…” जीजू बोलते हुये हॉफने लगे।
मैं- “जीजू अभी आप जो कह रहे हैं, उसके लिए आप ये सब कर रहे हैं की पैसे के लिए?” मैंने जीजू को पूछा।
जीजू- “पैसे के लिए ही मैं मर रहा हूँ निशा, मुझे कभी-कभी लगता है कि मैं जिंदगी की हर लड़ाई में फेल हूँ, ना पैसे, ना नाम, ना इज्ज़त, ना शोहरत, ना प्यार, मैं कुछ भी पा नहीं सका, बीवी भी सेक्स की जगह पूरा दिन । शक करे? ऐसी होती है लाइफ क्या? और इंसान को कोई चाहने वाला हो तो वो पूरी दुनियां से लड़ सकता है.” जीजू ने निराशा से कहा।
मैं- “जीजू शोहरत और दौलत हर इंसान की तकदीर में नहीं होती, और जिस्मानी ताल्लुकात से ही प्यार का पता चलता है, ऐसा किसने कहा आपको? और आपने ये कैसे सोच लिया की आपको कोई प्यार नहीं करता…” मैंने भावुकता से कहा।
जीजू- “जिस्मानी ताल्लुकात से ही प्यार है ऐसा नहीं होता, पर प्यार जताने के लिए तो जिस्मानी ताल्लुकात जरूरी हैं, और मुझे हर रोज सेक्स चाहिए, वो तुम्हारी दीदी जानती है। फिर भी वो समझती क्यों नहीं? निशा, क्यों तेरी दीदी इस बारे में समझना नहीं चाहती और उसके सिवा मुझे प्यार करने वाला कौन है और मैं उससे नहीं तो किससे सेक्स की अपेक्षा रखू?” जीजू ने कहा।
जीजू- “जिस्मानी ताल्लुकात से ही प्यार है ऐसा नहीं होता, पर प्यार जताने के लिए तो जिस्मानी ताल्लुकात जरूरी हैं, और मुझे हर रोज सेक्स चाहिए, वो तुम्हारी दीदी जानती है। फिर भी वो समझती क्यों नहीं? निशा, क्यों तेरी दीदी इस बारे में समझना नहीं चाहती और उसके सिवा मुझे प्यार करने वाला कौन है और मैं उससे नहीं तो किससे सेक्स की अपेक्षा रखू?” जीजू ने कहा।
मैं- “मैं जीजू मैं, मैं हूँ ना आपसे प्यार करने वाली, और सामने वाला हमें न समझे तो हमारा प्यार थोड़ा कम हो जाता है। जीजू, दीदी आपको समझ नहीं पा रही, मैं समझाऊँगी उनको। आप अभी के अभी घर जाओ मैं आपकी जो फरियाद दीदी के लिए है वो मैं उसे समझाऊँगी…” मैंने जीजू को कहा।
जीजू- “झूठ बोल रही हो तुम… तुम अपने जीजू से प्यार करती होती तो मुझे पहले इतना तड़पाती क्यों? तुमने जो किया था वो तो अपनी दीदी के लिए किया था..” जीजू ने कहा। उनकी बात कुछ हद तक सही भी थी।
मैं- “नहीं जीजू, ऐसी बात नहीं है। मैं सच में आपसे प्यार करती हूँ, दिन रात बस आप ही के बारे में सोचती हूँ..” मैंने जीजू को आधा सच और आधा झूठ कहा।
जीजू- “सच में, मेरी कसम खाकर मुझसे कहो और हाँ जीजू मत कहना…” जीजू की बातों में अब निराशा कम हो गई थी।
मैं- “हाँ सच में, आपकी कसम, अनिल आई लोव यू..” मैंने शर्माते हुये कहा।
जीजू- “बैंक्स निशा, कोई प्यार करने वाला और हिम्मत देने वाला हो तो इंसान पूरी दुनियां से लड़ सकता है, वो जंगल में भी मंगल कर सकता है…” जीजू ने कहा।
मैं- “अब आप घर जा रहे हैं ना?” मैंने पूछा।
जीजू- “हाँ जान…” जीजू ने कहा।
मैं- “तो फिर जल्दी जाइए और आज के बाद कभी ये मत सोचना की दीदी आपसे प्यार नहीं करती। मैं उन्हें समझाऊँगी, और अनिल बाकी की बातों के लिए मैं हूँ ना…” मैंने शरारत से कहा।
जीजू- “हाँ, तुम हो ना… पर एक बात कह देता हूँ कि तुम्हारी दीदी गुस्सा करे या लड़ाई पर उसको सुधारने की जवाबदारी तुम्हारी…” जीजू भी अब टेन्शन फ्री हो गये थे।
मैं- “ओके जीजू। अब जल्दी करो और मुझसे बात करना छोड़ो, बाइ..”
मैंने जीजू की बाइ सुने बिना ही काल काट दी और दीदी को फोन करके उन्हें खुश खबरी दी। जीजू का काल काटकर मैंने जब दीदी को काल किया और बताया की जीजू घर आ रहे हैं, तब दीदी ने उस दिन मेरे साथ जो सलूक किया था उसकी माफी माँगी और अपनी गलती को स्वीकार किया। मैंने भी दीदी को ज्यादा शर्मिंदा करना उचित नहीं समझा और उन्हें माफी दे दी।
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