Adultery Chudasi (चुदासी ) – Part 1

रात को नीरव के आते ही मैंने उसे बाहों में ले लिया और रोने लगी। नीरव ने भी मुझे बाहों में ले लिया और मेरी पीठ सहलाते हुये मुझे सोफे पर लिटा दिया। जब में शांत हुई तो नीरव ने मुझे पूछा- क्या हुवा? Adultery

शाम को रसोई करते वक्त मैंने सोच लिया था की मैं नीरव को करण और रामू के बारे में सब बता देंगी, कोई भी बात छिपाये बगैर जो भी हुवा वो सब बता दूंगी। हो सकता है की नीरव मुझे छोड़ भी दे। पर मैं नीरव को धोखा नहीं दे सकती। फिर भी कहने के लिए हिम्मत नहीं हो रही थी। Adultery

तभी नीरव फिर बोला- “बोल ना…”

मैं फिर से उसके सीने पर लगकर रोने लगी।

नीरव ने पूछा- “तुम्हारे पापा की तबीयत ठीक नहीं है क्या?”

मैं उस भोले भाले इंसान की बात सुनकर और जोरों से रोने लगी।

नीरव- “तुम्हारी मम्मी का फोन आया था क्या?” नीरव ने मेरा मुँह ऊपर करते हुये पूछा।

मम्मी-पापा का ख्याल आते ही मेरी हिम्मत टूट गई। नीरव मुझे घर से निकाल देगा तो मेरे मम्मी-पापा तो जीते जी ही मर जाएंगे। ये ख्याल आते ही मैंने नीरव के सामने- “हाँ…” में सिर हिला दिया।

नीरव- “इसमें इतना टेन्शन लेने की क्या जरूरत है?” कहते हुये नीरव ने मुझे फिर से बाहों में ले लिया।

मैं घर पे अकेली रहना नहीं चाहती थी इसलिए दूसरे दिन सुबह मैं नीरव के साथ बड़े घर (मेरे सास-ससुर का घर) चली गई। नीरव का टिफिन भी वहीं से गया। पर मेरे वहां जाते ही मेरी सास का मुँह चढ़ गया, तो मैं दो दिन रहकर घर वापिस आ गई।
तीसरे दिन मैं खाना खा रही थी की बेल बजी। मैंने दरवाजा खोला तो रामू था। मैंने उसको ना बोल दिया की अब आना नहीं। मैंने उसको निकालकर कामवाली रखने का फैसला कर लिया था। खाना खाकर सारा काम कर तो लिया पर 4:00 बज गये और मैं थक गई। मैं बेड पे जाकर लेटी और करण आ गया। Adultery

करण- “कैसी हो जान?” करण ने आते ही पूछा।

मैं- “चले जाओ यहां से उस दिन जो हुवा वो…” मैं बात अधूरी छोड़कर रोने लगी।

करण मेरे नजदीक आया, मुझे बाहों में लेने लगा तो मैं खिसक गई।

मैं- “मुझे छूना मत करण..”

करण- “क्यों इतना गुस्सा कर रही हो निशा, मैंने क्या किया है जो इतना भड़क रही हो?” करण ने आगे बढ़कर मुझे बाहों में ले लिया।

मैं करण के सीने पर सिर रखकर रोते हुये बोली- “करण उस दिन रामू ने जो मेरे साथ किया वो तुम जानते हो, तुमने भी तो रामू को रोका नहीं…”

करण- “मैं रामू को रोकना चाहता था निशा, पर मैंने देखा की तुम भी उसके साथ मजा ले रही हो तो मैं चला गया…” करण ने कहा।

मैं- “क्या मैं उसके साथ मजे ले रही थी? तुम पागल तो नहीं हो गये? चले जाओ, चले जाओ, कभी मत आना अब यहां चले जाओ…” मैंने करण को गुस्से में आकर धकके लगाए और चले जाने को कहा।

करण- “मैं जानता था की निशा सच तुम सुन नहीं सकोगी। और सच ये है की नीरव तुम्हें संतुष्ट नहीं कर पा रहा, और ये भी सच है की तुम्हें रामू के साथ चुदते वक़्त जो संतुष्टि मिली, वो आज तक नीरव से नहीं मिली।
और सच ये भी है की…”

मैं- “तुम जाओ यहां से करण मुझे तुम्हारी एक भी बात नहीं सुननी…” कहते हुये मैं अपने कानों पर हाथ रखते हुये बेड से उठ गई।

शाम को मैं रसोई में खिचड़ी रखकर टीवी देखने बैठी, पर मेरा ध्यान करण की बातों पर ही था, मुझे उसकी आवाज सुनाई दे रही थी- “तुम रामू के साथ मजे ले रही थी… नीरव तुम्हें संतुष्ट नहीं कर पा रहा… उस दिन रामू ने तुम्हें जितना संतुष्ट किया उतना आज तक नीरव ने नहीं किया.” हर बात न जाने कितनी बार सुनाई दे रही थी।

तभी मुझे कुछ जलने की बास आई। मैंने किचन में जाकर देखा तो नीचे की तरफ से खिचड़ी जल गई थी। मैंने गैस बंद कर दिया और फिर से बाहर आकर टीवी देखने लगी। रात को नीरव के आते ही हम लोगों ने खाना खा लिया, जल्दी से काम निपटाकर मैं नींद की गोली लेकर सो गई।

दूसरे दिन सुबह उठी तो मैंने अपने आपको थोड़ा फ्रेश महसूस किया। दोपहर को काम निपटाकर अपार्टमेंट में आ रही दूसरी कामवालियों को काम करने को पूछा, पर किसी ने हाँ नहीं बोला। आजू-बाजू के अपार्टमेंट में भी जाकर आई, 3-4 कामवालियों को तो दोगुना पगार देने को भी बोला पर सबने “ना” ही बोला।

शाम को सब्जी लेकर आ रही थी, तब रामू लिफ्ट के पास बैठा बीड़ी पी रहा था। मैं जैसे ही लिफ्ट के पास पहुँची तो रामू ने उठकर लिफ्ट की जाली खोल दी। मैं उसके सामने देखे बगैर लिफ्ट में दाखिल हो गई।

रामू ने जाली बंद करते हुये पूछा- “कल से फिर काम पे आ जाऊँ मेमसाब?”

मैंने मुँह से कोई जवाब दिए बगैर “हाँ” में सिर हिलाया और तीसरे फ्लोर का बटन दबाया। दूसरे दिन रामू के आने से पहले मैंने साड़ी पहन ली, सामान्य तौर पर मैं घर में हमेशा गाउन ही पहनती हूँ, और जब तक राम् घर में काम करता रहा, तब तक मैं दरवाजा बंद करके बेडरूम में चली गई।

रामू ने काम खतम करते ही दरवाजे पर खटखट करके कहा- “मैं जा रहा हूँ मेमसाब, घर बंद कर लीजिए…”

उसके जाने के 5 मिनट बाद मैंने बाहर निकालकर दरवाजा बंद किया, फिर तो ये रूटीन हो गया। वो हर रोज आता तो मैं बेडरूम में चली जाती। जाते वक़्त वो कहकर जाता तो मैं बाहर जाकर दरवाजा बंद कर लेती। 15 दिन निकल गये, मैं थोड़ी नार्मल हो गई। पर अभी भी मैं रामू के सामने देखती नहीं थी। उसके घर में आते ही मैं नजरें नीची करके बेडरूम में चली जाती थी, और जाने के थोड़ी देर बाद ही बाहर निकलती थी। कभी कभार लिफ्ट के पास बैठे हुये मिल जाता तो मैं सीढ़ियां चढ़ जाती। Adultery

फिर आज का दिन बहुत ही खराब उगा। सुबह से आज कुछ अच्छा नहीं हो रहा था। और सुबह को जो हुवा ना… वो तो मेरी ही गलती थी और गलती भी कितनी बड़ी… किसी को पता चले तो मेरे बारे में कुछ भी सोच ले। मैं रसोई करते हुये सुबह जो हुवा उसके बारे में सोच रही थी।

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