Adultery Chudasi (चुदासी ) – Part 1

मैंने कहा- “रामू प्लीज़… मुझे छोड़ दो नहीं तो मैं बर्बाद हो जाऊँगी, चाहो तो मैं तुम्हें पैसे दे सकती हूँ?”

रामू जोरों से हँसने लगा और बोला- “क्या मेमसाब… पैसे का क्या करेगा अपुन? दारू पिएगा, रंडीबाजी करेगा ना… और वो दोनों चीज आप में है। आप शराब और सबाब दोनों का नशा हो मेमसाब..” कहते हुये रामू ने अपना लिंग मेरी योनि पे टिकाया। रामू ने अपना लिंग मेरी योनि की बाहरी दीवालों पर रगड़ा।

मैं समझ गई थी की अब मेरा बचना मुश्किल है फिर भी मैंने मेरा संघर्ष जारी रखा। मैंने रामू के कंधे पर मुक्के मारे, पर रामू को उसका कोई असर नहीं था। वो तो मेरी चूचियों को चूसने, चाटने में मसगूल था। मैंने सोचा जो भी होगा पर एक बार तो मैं चीखकर सब को इकट्ठा करूं। तभी रामू ने मेरा मुँह उसके हाथों से दबा दिया और मेरी निप्पल को काट लिया मैं दर्द से छटपटा उठी।Adultery

मुझे दर्द से छटपटाते देखकर रामू ने कहा- “ये तो कुछ भी नहीं है मेमसाब। दर्द तो अब होगा, पहली बार चुद रही हो ना मुझसे। मजा भी दोगुना आएगा…”

मैं असहाय सी रामू को देख रही थी। मेरे बाजू भी बचाने की हिम्मत ना कर सके, ऐसे इंसान के नीचे मैं दबी हुई थी। रामू ने अपना लिंग मेरी योनि पर टिकाकर धक्का मारा। रामू का हाथ मेरे मुँह पर ना होता तो मैं जरूर चीख पड़ती। दर्द के मारे मेरी आँखों में आँसू आ गये थे।

रामू- “अभी तो आधा ही गया है मेमसाब…” कहते हुये रामू ने अपना लिंग सुपाड़े तक बाहर निकाला और फिर से अंदर डाला। फिर निकाला, फिर डाला। ऐसे 4-5 बार किया, धीरे-धीरे मेरा दर्द कम होने लगा तब रामू ने फिर से एक और धक्का दिया।

पहली बार जितना दर्द तो नहीं हुवा। रामू ने फिर पहली बार की तरह उसका लिंग अंदर-बाहर किया। मेरा दर्द फिर से कम हो गया, ऐसा रामू को लगा तो उसने अपनी स्पीड बढ़ा दी। वो लयबद्ध अपनी कमर हिलाकर मेरी
योनि में उसका लण्ड आगे-पीछे करने लगा।

रामू- “मेमसाब अपनी टांगों से मेरी कमर को पकड़कर अपनी गाण्ड ऊपर उठा लो ज्यादा मजा आएगा…” रामू ने मेरी कमर पे चुटकी भरते हुये कहा।
मैंने उसकी बात की कोई प्रितिकिया ना देते हुये उसकी बात को अनसुनी कर दी। रामू की रफ़्तार बढ़ती ही जा रही थी। रामू ने मेरे होंठों पर किस करने की कोशिश की पर मैंने मुँह फेर लिया। वो कोई बिरोध किये बगैर मेरे निपपलों को चूसने लगा।

रामू- “अपने कपड़े तो निकल दो मेमसाब…” कहते हुये रामू ने अपना हाथ मेरे मुँह पर से हटा लिया और मेरी गाउन खींचने लगा।

मैंने भी मेरा सिर उठाकर उसे गाउन निकालने में मदद की। अब मेरा मन मेरे काबू में नहीं रहा था। मेरे ना चाहते हुये भी मुझमें सेक्स का खुमार छाने लगा था। रामू का लिंग जितनी बार अंदर आता था, उतनी बार मेरी योनि उसका स्वागत पानी से करती थी। हर बार रामू का लण्ड बाहर जाकर अंदर आता था, तब ज्यादा टाइट होकर मुझे एक नई अनुभूति देता था। रामू मेरी गर्दन पे चुंबनों की बौछार करते हुये मेरी योनि पे वार कर रहा था। मैं भी मेरी कमर उठाकर जवाबी वार करना सीख चुकी थी। मैंने मेरा एक हाथ रामू की गर्दन के चारों तरफ डाल दिए, और दूसरे हाथ से उसकी पीठ सहलाने लगी।Adultery

कितनी देर तक रामू करता रहा वो मालूम नहीं, पर बहुत देर बाद मुझे लगने लगा की मैं अब झड़ने वाली हूँ तो मैंने मेरे हाथ की पकड़ और मजबूत कर दी और मैं झड़ गई। झड़ते ही ग्लानि और शर्म के भाव से मैंने मेरी । आँखें बंद कर ली। मैं झड़ गई हूँ वो रामू को पता चलते ही उसने भी अपनी स्पीड बढ़ा दी और थोड़ी ही देर में वो भी झड़ गया। रामू ने झड़ते ही मेरी योनि को वीर्य से भर दिया।

रामू- “बहुत करारा माल हो मेमसाब, आपको चोदने में बहुत मजा आया अपुन को…” कहते हुये रामू मेरे ऊपर से उठ गया।

मुझे मन कर रहा था की मैं किचन में से चाकू लेकर उसको मार दें।

रामू- “कपड़े पहन लो मेमसाब…” रामू ने कहा।

तब मैं उठी और गाउन लेकर पहनते हुये मैंने न चाहते हुये भी चोरी-छिपे रामू के लिंग पर नजर डाल दी। रामू ने कपड़े पहने और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया। रामू के जाते ही मैं उठकर बेडरूम में गई और बेड पर तकिया पड़ा था उसपर मुँह रखकर फूट-फूट के रोने लगी। मेरे साथ जो हुवा और मैंने जो किया उसमें मुझे सिर्फ मेरा ही दोष नजर आ रहा था। रोते हुये मैंने अपने आपको खतम करने का फैसला कर लिया। मैं उठकर गैलरी में गई, पर वहां नीचे देखकर कूदने की हिम्मत नहीं हुई। Adultery

मैं फिर से रूम में आकर रोने लगी। अब तो आँसू भी निकलने बंद हो गये थे, पर रोना बंद नहीं हो रहा था। शाम को हर रोज सब्जी लेने जाती थी, पर आज तो घर से बाहर निकलने का मन ही नहीं था। शाम के 7:00 बज चुके थे, मैं थोड़ी शांत भी हो गई थी। उठकर मुँह धोया और आईने में देखा तो आँखें सूजकर लाल हो गई थीं। मैंने नीरव को फोन लगाया और बताया- “मेरी तबीयत ठीक नहीं है, आते वक़्त सब्जी लेकर आना…”

मेरी बात सुनकर नीरव ने कहा- “डाक्टर के पास जाना है तो घर आ जाऊँ…”

मैंने कहा- “उसकी जरूरत नहीं है, आराम करूँगी तो ठीक हो जाऊँगी। तुम घर जल्दी आ जाना…”
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