Adultery Chudasi (चुदासी ) – Part 1

विजय ने भी रीता के कपड़े नहीं निकलवाए थे, उसने एक हाथ रीता की जीन्स के अंदर डाला हुवा था, और दूसरे हाथ की उंगली रीता के मुँह के अंदर डाल दी थी, जिसे रीता चूसते हुये सिसकारियां ले रही थी।

विकास- “भाई, वो लोग अभी तक नहीं आए बहुत देर कर दी…” विकास ने कहा।

विजय- “आते होंगे, तू क्यों अकेला खड़ा है? जो पसंद है उसके साथ चिपक जा…” विजय ने रीता को जमीन पर बिठाते हुये कहा।

उधर रीता जमीन पर बैठकर विजय का लिंग सहलाने लगी।

ये देखकर मुझे बहुत टेन्शन होने लगी की कहीं नरेश भी मुझे जमीन पर बैठने को न कहे। नरेश मेरी टी-शर्ट को ऊपर करके मेरी ब्रा को निकालने की कोशिश करने लगा। पर वो इस बात में अनाड़ी था, उससे ब्रा खुली नहीं तो उसने भी मुझे जमीन पर बैठने को कहा।

मेरे पास और कोई रास्ता तो था नहीं। मैं जैसे ही जमीन पर बैठने को झुकी तो विजय की आवाज आई- “आइ मेरी रसमलाई, तू भी यहां आ जा..”

विजय की बात सुनकर में ऐसे दौड़ी, जैसे जन्मों-जन्मों से उसकी राह देख रही थी।

उस वक़्त नरेश का मुँह देखने लायक था। उसका चेहरा गुस्से से काले से लाल हो गया था और अगर विजय की जगह और कोई होता तो वो शायद उसका खून कर देता।

मैं विजय के पास गई तो उसने एक हाथ आगे करके मुझे अपनी बाहों में ले लिया। मैंने रीता को देखा तो मेरी आँखें फट गई। रीता विजय का लिंग चूस रही थी। विजय मेरे होंठों को चूसने लगा। पूरा माहौल गरम हो गया था। विजय मुझे किस करते हुये मेरे पूरे शरीर का जायजा ले रहा था, 2-3 मिनट में मेरे बदन का कोई ऐसा हिस्सा नहीं रहा, जिसे उसने सहलाया न हो। मैं भी गरम हो गई थी। विजय ने थोड़ी देर मुझे किस करके जमीन पर बैठने को कहा।

तभी वो लड़के आए, जो दारू और खाना लेने गये थे। लड़के बाइक फुल स्पीड से लेकर आ रहे थे तो मैं और रीता डरकर मारे विजय से अलग हो गई, और लड़के ने बाइक उसके पैरों के पास लाकर खड़ी कर दी।

विजय- “अबे साले मादरचोद मेरा पैर तोड़ेगा?” विजय गुस्से से चिल्लाया।

पर उसकी बात अधूरी रह गई। उसके गाल पर एक जोरों का थप्पड़ पड़ा। हमने देखा तो वो अमित भैया थे और वो बाइक की पीछे की सीट पर बैठे हुये थे। पीछे-पीछे ही पोलिस की जीप आ गई। जीप के अंदर पहले से ही वो लड़का बैठा हुवा था, जो खाना लेने गया था। फिर पोलिस वालों के साथ मिलकर भैया ने सबको जीप में बैठा दिया। जीप की बाहर की सीट पर विजय बैठा था। भैया एक कांस्टेबल को लेकर पूरी जगह को चेक करने गये।

तब विजय रीता को डांटने लगा- “चूतमरानी, तू ही कोई गेम खेल गई। आज तो बच गई, पर अभी जिंदगी कहां खतम हुई है, फिर मिलेंगे…” विजय बोला तो धीरे-धीरे, फिर भी भैया ने सुन लिया।

भैया विजय को शर्ट से पकड़कर जीप में से नीचे उतारकर मारने लगे। जब तक भैया का हाथ दुखने ना लगा, तब तक उन्होंने विजय की पिटाई की और फिर विजय को जीप में डालकर भैया ने हमें घर छोड़ दिया।

दूसरे दिन मैं रीता के घर गई, मैंने पूछा- “कल भी मेसेज भेजा था क्या?”

रीता- “हाँ, मेरी भोली बहना, कल भी वोही किया था…”

मेरे पास कल की घटना के बाद कुछ सवाल खड़े हो गये थे। फिर मैंने रीता से पूछा- “तो फिर इतनी देर क्यों लगाई आने में?”

रीता ने बहुत ही लंबा जवाब दिया- “भैया तो कब के आ गये थे, पर कालेज को बंद देखकर उन्हें ज्यादा गड़बड़ लगी तो उन्होंने पोलिस वैन भी मंगा ली, और फिर वो लड़के मिल गये। 2-4 थप्पड़ लगाये तो सब सच बोल गये। फिर तो भैया उसके पीछे ही बैठकर आ गये…”

मैं- “थॅंक्स गोड कल भैया समय से आ गये, नहीं तो हम दोनों तो बहक गई थी…” मैंने रीता से हँसते हुये कहा।

रीता- “ऐसे कैसे नहीं आते, आखिर भैया किसके हैं?” रीता अपने असली मूड में आते हुये बोली।

मैं- “पर किसी को बताना नहीं, कोई सुनेगा तो हमारी बदनामी होगी…” मैंने रीता को कहा।

रीता- “पागल हो गई है क्या? ये कोई बताने की बात थोड़ी है…”

उसके बाद एक बार मुझे रीता ने बताया था की विजय को कोई खास सजा नहीं हुई थी, और फिर वो दुबई चला गया था। और आज इतने सालों बाद वो फिर से रीता को मिला था। मेरा दिल किसी अंजान भय से धड़क उठा। तभी मोबाइल की रिंग बजी और मैं मेरी पुरानी यादों में से बाहर आई और मोबाइल उठाकर देखा तो कोई नया नंबर था। मैंने उठाया
तब किसी ने भारी आवाज में पूछा- “तुझे आज रात को आकाश होटेल में कमरा नंबर 5 में जाना है…”
उसके बाद एक बार मुझे रीता ने बताया था की विजय को कोई खास सजा नहीं हुई थी, और फिर वो दुबई चला गया था। और आज इतने सालों बाद वो फिर से रीता को मिला था। मेरा दिल किसी अंजान भय से धड़क उठा। तभी मोबाइल की रिंग बजी और मैं मेरी पुरानी यादों में से बाहर आई और मोबाइल उठाकर देखा तो कोई नया नंबर था। मैंने उठाया
तब किसी ने भारी आवाज में पूछा- “तुझे आज रात को आकाश होटेल में कमरा नंबर 5 में जाना है…”
मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर फोन पे क्या कर सकते हैं? और मैं बात को लंबी खींचना भी नहीं चाहती थी तो मैंने ‘रांग नंबर’ कहकर फोन काट दिया।

शाम की रसोई बनाते हुये मैं मम्मी-पापा के बारे में सोच रही थी। मुझे किसी भी तरह उन्हें पैसे देने थे। नीरव से तो रात को बात करनी ही है, पर मेरे जेठ और ससुर नहीं मानेंगे। मैंने जीजू से भी बात करने का सोचा, फिर सोचा अभी-अभी तो जीजू के साथ के रिस्ते में थोड़ा सुधार आया है और पैसे माँगेंगे तो फिर से कोई प्राब्लम हो। जाएगी तो? नहीं नहीं… जीजू से तो बात ही नहीं करना चाहिए। और कोई रिश्तेदार हमारी मदद करे ऐसी स्थिति में नहीं था। बहुत सोचने के बाद मैंने फाइनल किया की आज रात नीरव से बात करनी ही पड़ेगी।

नीरव घर आया तब तक मैंने उसकी मनपसंद चीजें बना ली थी। पाव-भाजी उसकी सबसे फेवरिट आइटम थी। साथ में मैंने गाजर का हलवा भी बनाया हुवा था, जो उसे बहुत पसंद था। खाना खाते वक़्त वो मेरी रसोई की तारीफ करता गया और खाता गया। खाना खाकर मैंने बर्तन मांजे, सफाई की और नहाने चली गई। मैं नहाकर बेडरूम में गई, तब बेड पर बैठकर नीरव मोबाइल में गेम खेल रहा था। मैं बाथरूम में से बाहर सिर्फ तौलिया में आई थी।

मैं नीरव के पास बैठ गई- “नीरव, मम्मी-पापा को पैसे की कुछ ज्यादा ही तकलीफ है…”

नीरव मोबाइल में देखते हुये बोला- “तो हम क्या करें निशु? मैं भी तुम्हारे मम्मी-पापा की मदद करना चाहता हूँ, पर तू तो जानती है हमारे घर वालों को…”

मैंने नीरव के पायजामे में हाथ डालकर लिंग पकड़ा और बोली- “तुम्हारा कोई हक नहीं बनता की तुम अपनी । मर्जी से कुछ कर सको? तुम वहां नौकरी तो नहीं करते, तुम भी तो मलिक ही हो…” नीरव को मैं किसी भी तरह उकसाना चाहती थी पर यहां तो पत्थर पे पानी था।

नीरव- “निशु, तुम सही हो पर घर के अंदर ही लड़ाई करके क्या फायदा?”
मैंने कोई जवाब दिये बगैर नीरव का पायजामा निकाल दिया, और उसका लिंग मुँह में लेकर चूसने लगी।

नीरव आँखें बंद करके सिसकने लगा। उसने मेरा तौलिया खींच लिया और फिर वो हाथ को नीचे करके मेरे उरोजों को सहलाने लगा, बीच-बीच मेरे बालों को भी सहलाता रहता था। मैंने उसके लिंग 5-6 बार अंदर-बाहर किया तो वो जोर-जोर से सांसें लेने लगा और बोला- “निशु मुँह में से निकाल दो, मेरा निकलने वाला है…”

मैंने उसकी कोई बात नहीं सुनी और चूसती रही।

नीरव- “ऊऊऊ… निशु…” कहते हुये नीरव मेरे मुँह में ही झड़ गया।

मैंने नीरव के सामने अपना मुँह खोला और वीर्य दिखाया और फिर गटक गई। मैंने ऐसा ब्लू-फिल्मों में देखा था। नीरव मुझे आँखें फाड़कर ऐसे देख रहा था की जैसे मैं उसकी पत्नी नहीं और कोई हूँ।
मैं- “नीरव प्लीज़… एक-दो दिन में कुछ पैसों का इंतजाम कर दो ना…”

नीरव ने मेरी बात सुनकर ‘हाँ’ में सिर हिलाया और फिर सोने की कोशिश करने लगा। मैं बाथरूम में से मुँह साफ करके आई, तब तक तो वो सो भी गया था।

दूसरे दिन रात को खाना खाते हुये नीरव ने मुझे बताया- “मैंने तुम्हारे पापा को बीस हजार रूपए भेज दिए हैं.”

नीरव की बात सुनकर मैं खुश हो गई- “पापा (मेरे ससुर) को कैसे मनाया?”

मेरी बात सुनकर नीरव सोच में पड़ गया और थोड़ी देर बाद बोला- “पापा से नहीं लिए, एक फ्रेंड से लिए हैं। पापा से मांगने से वो देने वाले थे नहीं, इसलिए मैंने उनसे बात ही नहीं की…”

नीरव की बात सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा, कहा- “कोशिश तो करनी थी, ना बोलते तो क्या फर्क पड़ता?”

नीरव को मेरी बात पसंद नहीं आई- “छोड़ ना निशु, मैंने तो दिए ना पैसे तेरे पापा को, कहां से लाया उसका टेन्शन तुम क्यों कर रही हो?” नीरव चिढ़ते हुये बोला।

तब मैंने बात को खींचना ठीक नहीं समझा, कहा- “ओके बाबा, अब नहीं पूछूगी…” कहते हुये मैंने नीरव के गाल पर किस किया।

सब काम निपटाकर मैं रूम में गई। तब तक तो नीरव सो भी गया था। मैं भी उसके बाजू में लेट गई, और 1015 मिनट हुई होगी कि करण आ गया। उसने बेडरूम के दरवाजे के पास खड़े रहकर मुझे बाहर आने का इशारा किया। मैंने नीरव की तरफ देखा वो गहरी नींद में था। मैं उठकर बाहर आई तो करण सोफे पर बैठा था।

मैंने उसके पास जाकर बैठते हुये पूछा- “इस वक़्त क्यों आए? नीरव घर में है…”

करण ने मेरा हाथ उसके हाथ में लेते हुये कहा- “तुम्हारी बहुत याद आ रही थी…”

मैं- “झूठे… तो फिर इतने दिन बाद क्यों आए?” मैंने उसके कंधे पर सिर रखते हुये पूछा।

करण- “तुमने ही तो बोला था ना। कभी मत आना ऐसा भी तो कहा था…” करण ने कहा।
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