हम बात कर ही रहे थे, तभी एक कोने में से झगड़े की आवाज आई। मैं और रीता उस तरफ गये, जहां पर । लड़ाई हो रही थी, बहुत भीड़ थी। हम किसी तरह भीड़ चीरकर आगे गये तो देखा की हमारे कालेज के ट्रस्टी का बेटा विजय, जो संजय दत्त जैसा दिखता है और पूरे वक़्त कालेज में टपोरीगिरी करता रहता है, किसी बुजुर्ग को मार रहा था, और वो बुजुर्ग उससे हाथ जोड़कर माफी माँग रहा था।
मैं- “क्या हुवा?” मैंने वहां पहले से ही खड़ी एक लड़की को पूछा।
वो लड़की कोई जवाब दे उसके पहले ही रीता बोल पड़ी- “ये तो विजय का हर रोज का लफड़ा है, बाप नंबरी तो बेटा दस नंबरी…” मैंने उसे चुप रहने का इशारा किया।
तभी एक लड़की जोरों से रोती हुई वहां आई और विजय के पैरों पर गिरकर कहने लगी- “प्लीज़्ज़… विजय छोड़ दो मेरे पापा को प्लीज़… गलती हो गई पापा से…” ।
रीता- “यार ये तो पिंकी है ना?” रीता ने मुझसे पूछा।
मैं- “हाँ, लगती तो वही है, पर वो तो विजय की खास फ्रेंड है ना?” मैंने कहा।
हमारी बात सुनकर वो लड़की ने कहा- “कल पिंकी से विजय ने कुछ बदसलूकी की होगी, तो पिंकी के पापा प्रिन्सिपल से शिकायत करने गये थे। जैसे ही पिंकी के पापा सर की केबिन से बाहर निकले कि विजय वहां आ गया और घसीटता हुवा यहां तक लाया और मारने लगा…” लड़की ने अपनी बात पूरी की।
तब रीता ने पूछा- “पर विजय को इतनी जल्दी कैसे मालूम पड़ गया की पिंकी के पापा उसकी शिकायत करने गये हैं?”
मैं- “चल छोड़… अपने को क्या?” कहते हुये मैंने रीता का हाथ पकड़ा और हम भीड़ से बाहर निकल गये।
विजय हमारी कालेज का स्टूडेंट प्लस गुंडा था। उसके पापा शहर के नामी राजकर्मी थे साथ में कालेज के ट्रस्टी भी थे, इसलिए कालेज में कोई विजय को कुछ नहीं कर सकता था। हर वक्त विजय लुच्चों के साथ घूमता हुवा कालेज में दादागिरी करता रहता था। अगर विजय किसी से डरता था तो सिर्फ मेरी हंटरवाली सहेली से डरता था।
कालेज के शुरुवाती दिनों में मैं और रीता कैंटीन में जा रहे थे तो उसने हमारा रास्ता रोक लिया। पर वो रीता को जानता नहीं था (उस वक़्त हम भी उसे जानते नहीं थे) वो कुछ ज्यादा करे उसके पहले रीता ने उसके गाल पे एक थप्पड़ मार दी। उस दिन से आज का दिन विजय ने हमारे सामने आँख उठाकर देखा तक नहीं था। उसके बाद मैं कभी-कभार रीता को उस लड़के के साथ बात करते देखती थी, जिसने उस दिन 500 का रिचार्ज करवा दिया था। जब भी रीता उससे मिलकर आती थी, तब बहुत ही खुश दिखती थी क्योंकी वो लड़का उसे हर बार 200-300 देता रहता था।
रीता आकर मुझे बताती तो मैं उसे डांटती- “क्यों लेती हो पैसे? तुम कह रही थी ना की मैं किसी भी लड़के से एक बार ही पैसे लेती हूँ, तो इससे क्यों ले रही हो? इसे भी सच-सच बता दो…”
रीता कहती- “मैंने उससे बताया की निशा तुमसे दोस्ती नहीं करना चाहती, तो कह रहा है की मुझे सिर्फ 5 मिनट मिला दो निशा से, और पैसे मैं नहीं मांगती वो खुद दे रहा है…”
मैं- “पर तुम क्यों लेती हो? ना भी बोल सकती हो ना?” मैंने चिढ़कर कहा।
पर मेरी बात का रीता पर कोई असर नहीं होता और वो बेशर्मी से हँसते हुये कहती- “आई हुई लक्ष्मी को कौन ठुकराएगा? पर लड़का दिल का अच्छा है, तुझे एक बार उससे मिलना चाहिए…”
तभी बेल बजी और मैं अतीत की यादों में से बाहर निकली। उठकर मैंने दरवाजा खोला, पर दरवाजे पर तो कोई नहीं था। मैंने बाहर निकलकर भी देखा की शायद कोई बेल बजाकर जा रहा हो, पर कोई नहीं था। मैं अंदर जाकर दरवाजा बंद कर ही रही थी की गुप्ता अंकल की आवाज आई- “कब आई बिटिया?”
मैं मन ही मन बोली- “साला बूढ़ा, आजकल बिटिया-बिटिया करने लगा है, पहले तो नहीं कहता था…”
मैंने चाचा को कहा- “आज ही आई, ये बेल किसने बजाई अंकल?”
अंकल- “मैंने…” अंकल ने कहा।
मैं- “आपने, क्यों?” मैंने पूछने में गलती कर दी।
अंकल- “वाह री बिटिया, और कोई बजाए तो कुछ नहीं बोलती और हम बजाएं तो आँखें निकालती हो। हम बजाये तब दूसरे के जितना मजा नहीं आता क्या?”
साला हरामी हर बार डबल मीनिंग में बोलता रहता है। गुस्सा तो मुझे बहुत आया पर मैंने दिमाग को ठंडा रखते हुये कहा- “अंकल ऐसी बात मत कीजिए, नहीं तो मुझे आपके बारे में आंटी से बात करनी पड़ेगी…”
अंकल- “क्यों क्या बात करोगी आंटी से की मैं बजाता हूँ..”
मैंने अंकल की बात पूरी हो उसके पहले ही जोर से दरवाजा बंद कर दिया।
बाहर से अंकल की आवाज आ रही थी- “बिटिया, हम कुछ भी करें तुम्हें पसंद ही नहीं आता। मैं बजाऊँ या और कोई बजाए, ये बेल की आवाज की तरह मजा तो एक सरीखा ही आता है…”
मैं- “साला हरामी बूढ़ा…” कहते हुये मैं बेडरूम में जाकर बेड पे लेटकर फिर से पुरानी यादों में खो गई।
आज कालेज का आखिरी दिन था, ज्यादातर दोस्त आज के बाद दो महीने बाद मिलने वाले थे, और लास्ट साल वाले तो फिर कब मिलेंगे वो किश्मत के आधीन था। लेकिन मैं और रीता तो छुट्टयों में भी हर रोज मिलते थे।
आज सुबह से रीता एक ही रट लगाए बैठी थी की मैं उस लड़के से मिलू, वो मुझसे 5 मिनट के लिए मिलना चाहता है। बहुत बहस के बाद मैं रीता की बात मानकर उस लड़के से मिलने को तैयार हो गई।
मैं- “मुझे उसका नाम भी नहीं पता…” मैंने रीता से कहा।
रीता- “विकास नाम है, तुमने पूछा नहीं और मैंने बताया नहीं तो तुझे कैसे पता होगा?”
मैं- “बुला लो उसको, 5 मिनट बात कर लेती हूँ मैं..” मैं जल्दी-जल्दी बात को खतम करना चाहती थी।
रीता- “उसने 3:30 बजे बोला है…” रीता ने कहा।
मैं रीता की बात सुनकर चौंक गई- “3:30 बजे क्यों? उस वक़्त तो कालेज भी बंद हो गया होगा, और मैं कहीं बाहर नहीं मिलूंगी…”
रीता मेरी बात सुनकर हँसने लगी- “तुम तो यार बहनजी ही रह गई, विकास तुम्हें अभी ही मिल लेता, पर उसको किसी अर्जेंट काम से जाना पड़ा और वो तुम्हें यहां ही मिलने आ रहा है…”
फिर भी मेरे दिल ने सांसें नहीं छोड़ी- “3:30 बजे तो कालेज बंद हो जाएगा ना?”
मुझे जवाब देते-देते रीता थक गई थी, उसने मुझसे हाथ जोड़ते हुये कहा- “मेरी माँ कालेज के पीछे वाली जगह पर मिलना है, और वहां छोटा गेट है जहां से कूदकर हम बाहर निकल सकते हैं…”
मेरी शंका अब भी खतम नहीं हुई थी। पर मैंने और ज्यादा पूछना ठीक नहीं समझा तो मैं चुप हो गई। 3:00 बजे गये, पूरा कालेज खाली हो गया। मैं और रीता कालेज के पीछे वाले हिस्से में जाकर बैठे, वहां खास कोई आता जाता नहीं था। पहले तो वहां गार्डन बनाया हुवा था। पर ठीक तरह से मेंटिनेंस न करने की वजह से । जंगल जैसा लगने लगा था, टूटे हुये बेंचेस, कुर्सियां और ब्लैकबोई एक कोन में रखे हुये थे।
रीता- “विकास आएगा तो मैं वहां सामने चली जाऊँगी। निशा, वो तुमसे अकेले में बात करना चाहता है…” रीता ने कहा।
रीता की बात मुझे पसंद नहीं आई- “मैं अकेले में बात नहीं करूंगी, तुम कहीं गई ना तो मैं चली जाऊँगी…” मैंने रीता को धमकी दी।
रीता- “तुम्हें मुझ पर विस्वास है की नहीं? विकास ने मुझे पैसे दिए, इसलिए मैं उसकी तरफदारी नहीं कर रही, वो मुझे अच्छा लगा इसलिए तुम्हें मिलने को कहा और तुम्हें जाना है तो तुम जा सकती हो…” रीता ने कहा।
मुझे भी लगा की मैं बात को ज्यादा ही सियरियस ले रही हैं। मैंने बोलना बंद कर दिया और विकास की राह देखने लगी।
रीता- “विकास आ रहा है निशा…”
ने गेट की तरफ देखा, तो विकास जीन्स और टी-शर्ट में आ रहा था। रीता जाने लगी तो मैंने उससे कहाविकास को बोलकर जाना, 5 मिनट मतलब, 5 मिनट ही…”
रीता कुछ भी जवाब दिए बगैर चली गई और पेड़ के पीछे जाकर बैठ गई। विकास मेरे करीब आ गया। मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा, मैं पहली बार किसी लड़के को अकेले में मिल रही थी।
विकास ने हाथ आगे बढ़ाया और कहा- “आज का दिन मेरी जिंदगी का सबसे हसीन दिन है…”
मैं विकास से हाथ मिलना नहीं चाहती थी पर उसकी आवाज में कोई जादू था। मैंने मेरा हाथ आगे करके मिलाया।
विकास- “निशा तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, मुझसे शादी करोगी?”
विकास की बात सुनकर मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा की मुझे लगा की कहीं मेरा सीना फट ना जाए।
मैंने सोचा भी नहीं था की ये लड़का इस तरह से सीधा अपने दिल की बात करेगा। मैंने तो सोचा था की वो
कहेगा की मुझसे दोस्ती कर लो और मैं ना बोलकर निकल जाऊँगी, पर यहां तो उल्टा हुवा। मैं उसका दिल नहीं तोड़ना चाहती थी थोड़ा सोचकर बोली- “तुम बहुत अच्छे इंसान हो, जो भी लड़की तुमसे शादी करेगी वो खुश रहेगी। पर मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती…”
विकास- “क्यों, तुम किसी और से प्यार करती हो?” विकास ने पूछा।
मैं- “नहीं, मैं किसी से प्यार नहीं करती..” मैंने कहा।
विकास- “तो फिर क्यों ना बोल रही हो?” विकास की आवाज थोड़ी ऊंची हो रही थी।
पर मैंने शांति से कहा- “वो मैं अभी शादी नहीं करना चाहती…”
मेरी बात सुनकर विकास मेरे करीब आया और बोला- “मैं राह देगा, बस तुम सिर्फ हाँ बोल दो…”
मुझे अब उससे डर लगने लगा था- “मुझे जाना है मैं जा रही हूँ..” कहकर मैं वहां से निकलने लगी।
विकास ने मेरा हाथ पकड़ लिया- “मुझे जवाब देकर जाओ, ऐसे कैसे जा सकती हो?”
मैंने उसके हाथ से मेरा हाथ छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते हुये कहा- “मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती,मुझे जाने दो…”
विकास मेरे करीब आ गया और मुझे बाहों में लेकर बोला- “शादी नहीं करना चाहती हो तो सुहागरात मनाते हैं, चलो अपने कपड़े निकालो…”
उसकी बात सुनकर मैं उसके सीने पे मारते हुये चिल्लाने लगी- “रीता, रीता..”
मेरी बात सुनकर रीता ने पेड़ के पीछे से निकलकर हमारी तरफ दौड़ लगाई। पर कहीं से दो लड़के आए और रीता को पकड़कर हमारी तरफ घसीटते हुये लाए। मैं बहुत डर गई और जोर-जोर से रोने लगी।
रीता दोनों लड़कों से अपने आपको छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते विकास को गालियां बोलने लगीविस्वाशघात किया है तुमने मेरे साथ, हम लोगों को छोड़ दे, मेरे भैया पोलिस में हैं, उन्हें मालूम पड़ेगा तो तेरी चमड़ी उतार लेंगे…”
तभी पीछे से कोई आया और उसने रीता के चेहरे पे थप्पड़ मारा।
मैंने रोते हुये उस तरफ देखा तो वो विजय था।
विजय- “हरामजादी, उसने कुछ नहीं किया, जो किया वो मैंने किया है…” विजय ने गुस्से से कहा।
मैंने भी अब अपने आपको थोड़ा संभाल लिया था। मैंने नजरें उठाकर चारों तरफ नजर घुमाई, तो रीता को थप्पड़ जोरों से पड़ा हुवा लगता था, उसके होंठों के कोने से खून निकला हवा था। रीता को जिन लड़कों ने पकड़ा हुवा था, वो शायद हमारे कालेज के नहीं थे। विकास ने मेरे दोनों हाथों को कलाई से मरोड़कर पीछे से खींचकर मुझे पकड़ा हुवा था। मैंने विजय की तरफ देखा, उसके पीछे हमारी कालेज का पियून (नरेश) था। जो बेहद ही निक्कमा और जलील इंसान था, और देखने में कोई गुंडा जैसा दिखता था। उसे कालेज से क्यों नहीं निकालते थे, वो भी हमें आज समझ में आ गया था।
विजय को देखने के बाद रीता ठंडी हो गई थी। रीता ने नर्मी से कहा- “प्लीज़… हमें छोड़ दो, हमने तेरा क्या बिगाड़ा है?”
विजय जोर-जोर से हँसने लगा और फिर बोला- “तू भूल गई होगी, पर मैं अभी तक नहीं भूला तुम्हारे थप्पड़ को। साली मादरचोद, कालेज में किसी की हिम्मत नहीं है मेरे सामने बोलने की और तुमने थप्पड़ मार दिया,
और अब छोड़ने की नहीं चोदने की बात होगी। आज के बाद तुम दोनों मेरी रंडियां बनकर रहोगी…” कहते हुये। विजय ने रीता को बालों से पकड़कर उसे नजदीक खींचा और फिर रीता के होंठों से लगे खून को जीभ से चाटने लगा।
मैं रीता को जहां तक जानती थी, उस हिसाब से मुझे लग रहा था की वो विजय पे हमला कर देगी, पर मेरी सोच गलत निकली। विजय जब उसका खून चाट रहा था उस वक़्त रीता ने अपनी जीभ निकालकर विजय के गाल को चाटा।
रीता की इस हरकत से विजय तो क्या मैं भी सोच में पड़ गई की ये क्या कर रही है।
रीता ने मेरी तरफ देखकर मस्ती भरी आवाज में कहा- “चल निशा आज मोका मिला है, मजा ले लेते हैं…”
मैं रीता को जानती थी, वो हर मुशीबत में हिम्मत हारने वाली लड़की नहीं थी, वो कभी भी मुशीबतों के आगे घुटने टेकने वाली नहीं थी। उसने यहां से बाहर निकलने का रास्ता सोच लिया होगा। ये सब सोचकर मैं मुश्कुराई।
रीता- “विजय इन लोगों को बोलो ना की हमारे हाथ छोड़ दें, हम दोनों तैयार हैं मौज मस्ती के लिए..” रीता ने विजय को कहा।
वो लोग थोड़ा भी सोचते ना तो शायद समझ जाते की रीता नाटक कर रही है। पर है ये मर्द जात, हम औरतें थोड़े भी लटके झटके दिखा दें ना तो मर्दों का दिमाग काम करना बंद कर देता है, और वही उन लोगों के साथ हुवा।
विजय- “छोड़ दो यारों, लड़कियां राजी हैं तो हमें कहां जबरदस्ती करने का शौक है…” और विजय के कहने पर मुझे और रीता को छोड़ दिया गया।
मैंने मेरे दोनों हाथों को आगे करके जहां से पकड़ा था वहां पर सहलाया।
तभी विजय मेरी तरफ मुड़ा और नजदीक आकर बोला- “हे रसमलाई, तू भी तैयार है ना?”
मैंने रीता की तरफ देखा, उसने मुझे पाकेट की तरफ इशारा किया और मेरे दिमाग में बत्ती जली की किसी भी तरह अब रीता को मेसेज़ भेजना है। फिर तो भैया और ये मवाली, सबकी नानी याद दिला देंगे भैया। मैंने विजय के सामने देखा, थोड़ा मुश्कुराई और सिर हिलाकर हाँ कहा।।
विजय- “वाह भाई, आज तो अपनी निकल पड़ी, बहुत ठोकेंगे दोनों को…”
रीता को जिन लड़कों ने पकड़ा था उसमें से एक लड़के से कहा- “चुप भोसड़ी के…” कहते हुये विजय उसका चेहरा मेरे चहरे के बिल्कुल करीब लाकर बोला- “मेरा लौड़ा बाहर निकाल…”
Erotica नज़मा का कामुक सफर -chudai ki kahani